The Holy Bible - यहेजकेल (Daniel)

यहेजकेल (Daniel)

Chapter 1

1. यहूदा के राजा यहोयाकीम के राज्य के तीसरे वर्ष में बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने यरूशेलम पर चढ़ाई करके उसको घेर लिया। 
2. तब परमेश्वर ने यहूदा के राजा यहोयाकीम को परमेश्वर के भवन के कई पात्रोंसहित उसके हाथ में कर दिया; और उस ने उन पात्रोंको शिनार देश में अपके देवता के मन्दिर में ले जाकर, अपके देवता के भण्डार में रख दिया। 
3. तब उस राजा ने अपके खोजोंके प्रधान अशपनज को आज्ञा दी कि इस्राएली राजपुत्रोंऔर प्रतिष्ठित पुरूषोंमें से ऐसे कई जवानोंको ला, 
4. जो निर्दोष, सुन्दर और सब प्रकार की बुद्धि में प्रवीण, और ज्ञान में निपुण और विद्वान्‌ और राजमन्दिर में हाजिर रहने के योग्य हों; और उन्हें कसदियोंके शास्त्र और भाषा की शिझा दे। 
5. और राजा ने आज्ञा दी कि उसके भोजन और पीने के दाखमधु में से उन्हें प्रतिदिन खाने-पीने को दिया जाए। इस प्रकार तीन वर्ष तक उनका पालन पोषण होता रहे; तब उसके बाद वे राजा के साम्हने हाजिर किए जाएं। 
6. उन में यहूदा की सन्तान से चुने हुए, दानिय्थेल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह नाम यहूदी थे। 
7. और खोजोंके प्रधान ने उनके दूसरे नाम रखें; अर्यात्‌ दानिय्थेल का नाम रखे; अर्यात्‌ दानिय्थेल का नाम उस ने बेलतशस्सर, हनन्याह का शद्रक, मीशाएल का मेशक, और अजर्याह का नाम अबेदनगो रखा।। 
8. परन्तु दानिय्थेल ने अपके मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर, और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए; इसलिथे उस ने खोजोंके प्रधान से बिनती की कि उसे अपवित्र न होना पके। 
9. परमेश्वर ने खोजोंके प्रधान के मन में दानिय्थेल के प्रति कृपा और दया भर दी। 
10. और खोजोंके प्रधान ने दानिय्थेल से कहा, मैं अपके स्वामी राजा से डरता हूं, क्योंकि तुम्हारा खाना-पीना उसी ने ठहराया है, कहीं ऐसा न हो कि वह तेरा मुंह तेरे संगी के जवानोंसे उतरा हुआ और उदास देखे और तुम मेरा सिर राजा के साम्हने जाखिम में डालो। 
11. तब दानिय्थेल ने उस मुखिथे से, जिसको खोजोंके प्रधान ने दानिय्थेल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के ऊपर देखभाल करने के लिथे नियक्त किया या, कहा, 
12. मैं तेरी बिनती करता हूं, अपके दासोंको दस दिन तक जांच, हमारे खाने के लिथे सागपात और पीने के लिथे पानी ही दिया जाए। 
13. फिर दस दिन के बाद हमारे मुंह और जो जवान राजा का भोजन खाते हैं उनके मुंह को देख; और जैसा तुझे देख पके, उसी के अनुसार अपके दासोंसे व्यवहार करना। 
14. उनकी यह बिनती उस ने मान ली, और दास दिन तक उनको जांचता रहा। 
15. दस दिन के बाद उनके मुंह राजा के भोजन के खानेवाले सब जवानोंसे अधिकर अच्छे और चिकने देख पके। 
16. तब वह मुखिया उनका भोजन और उनके पीने के लिथे ठहराया हुआ दाखमधु दोनोंछुड़ाकर, उनको सागपात देने लगा।। 
17. और परमेश्वर ने उन चारोंजवानोंको सब शस्त्रों, और सब प्रकार की विद्याओं में बुद्धिमानी और प्रवीणता दी; और दानिय्थेल सब प्रकार के दर्शन और स्वपन के अर्य का ज्ञानी हो गया। 
18. तब जितने दिन के बाद नबूकदनेस्सर राजा ने जवानोंको भीतर ले आने की आज्ञा दी यी, उतने दिन के बीतने पर खोजोंके प्रधान उन्हें उसके सामने ले गया। 
19. और राजा उन से बातचीत करने लगा; और दानिय्थेल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के तुल्य उन सब में से कोई न ठहरा; इसलिथे वे राजा के सम्मुख हाजिर रहने लगे। 
20. और बुद्धि और हर प्रकार की समझ के विषय में जो कुछ राजा उन से पूछता या उस में वे राज्य भर के सब ज्योतिषयोंऔर तन्त्रियोंसे दसगुणे निपुण ठहरते थे। 
21. और दानिय्थेल कुस्रू राजा के पहिले वर्ष तक बना रहा।।

Chapter 2

1. अपके राज्य के दूसरे वर्ष में नबूकदनेस्सर ने ऐसा स्वप्न देखा जिस से उसका मन बहुत ही व्याकुल हो गया और उसको नींद न आई। 
2. तब राजा ने आज्ञा दी, कि ज्योतिषी, तन्त्री, टोनहे और कसदी बुलाए जाएं कि वे राजा को उसका स्वप्त बताएं; सो वे आए और राजा के साम्हने हाजिर हुए। 
3. तब राजा ने उन से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और मेरा मन व्याकुल है कि स्वपन को कैसे समझूं। 
4. कसदियोंने, राजा से अरामी भाषा में कहा, हे राजा, तू चिरंजीव रहे! अपके दासोंको स्वप्न बता, और हम उसका फल बताएंगे। 
5. राजा ने कसदियोंको उत्तर दिया, मैं यह आज्ञा दे चुका हूं कि यदि तुम फल समेत स्वप्न को न बताओगे तो तुम टुकड़े टुकड़े किए जाओगे, और तुम्हारे घर फुंकवा दिए जाएंगे। 
6. और यदि तुम फल समेत स्वप्न को बता दो तो मुझ से भांति भांति के दान और भारी प्रतिष्ठा पाओगे। 
7. इसलिथे तुम मुझे फल समेत स्वप्न बाताओ। उन्होंने दूसरी बार कहा, हे राजा स्वप्न तेरे दासोंको बताया जाए, और हम उसका फल समझाा देंगे। 
8. राजा ने उत्तर दिया, मैं निश्चय जानता हूं कि तुम यह देखकर, कि राजा के मुंह से आज्ञा निकल चुकी है, समय बढ़ाना चाहते हो। 
9. इसलिथे यदि तुम मुझे स्वप्न न बताओ तो तुम्हारे लिथे एक ही आज्ञा है। क्योंकि तुम ने गोष्ठी की होगी कि जब तक समय न बदले, तब तक हम राजा के साम्हने फूठी और गपशप की बातें कहा करेंगे। इसलिथे तुम मुझे स्वप्न को बताओ, तब मैं जानूंगा कि तुम उसका फल भी समझा सकते हो। 
10. कसदियोंने राजा से कहा, पृय्वी भर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो राजा के मन की बात बता सके; और न कोई ऐसा राजा, वा प्रधान, वा हाकिम कभी हुआ है जिस ने किसी ज्योतिषी वा तन्त्री, वा कसदी से ऐसी बात पूछी हो। 
11. जो बात राजा पूछता है, वह अनोखी है, और देवताओं को छोड़कर जिनका निवास मनुष्योंके संग नहीं है, और कोई दूसरा नहीं, जो राजा को यह बता सके।। 
12. इस पर राजा ने फुंफलाकर, और बहुत की क्रोधित होकर, बाबुल के सब पण्डितोंके नाश करने की आज्ञा दे दी। 
13. सो यह आज्ञा निकली, और पण्डित लोगोंका घात होने पर या; और लोग दानिय्थेल और उसके संगियोंको ढूंढ़ रहे थे कि वे भी घात किए जाएं। 
14. तब दानिय्थेल ने, जल्लादोंके प्रधान अर्योक से, जो बाबुल के पण्डितोंको घात करने के लिथे निकला या, सोच विचारकर और बुद्धिमानी के साय कहा; 
15. और राजा के हाकिम अर्योक से पूछने लगा, यह आज्ञा राजा की ओर से ऐसी उतावली के साय क्योंनिकली? तब अर्योक ने दानिय्थेल को इसका भेद बता दिया। 
16. और दानिय्थेल ने भीतर जाकर राजा से बिनती की, कि उसके लिथे कोई समय ठहराया जाए, तो वह महाराज को स्वप्न का फल बता देगा। 
17. तब दानिय्थेल ने अपके घर जाकर, अपके संगी हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह को यह हाल बताकर कहा, 
18. इस भेद के विषश् में स्वर्ग के परमश्ेवर की दया के लिथे यह कहकर प्रार्यना करो, कि बाबुल के और सब पण्डितोंके संग दानिय्थेल और उसके संगी भी नाश न किए जाएं। 
19. तब वह भेद दानिय्थेल को रात के समय दर्शन के द्वारा प्रगट किया गया। सो दानिय्थेल ने स्वर्ग के परमेश्वर का यह कहकर धन्यवाद किया, 
20. परमेश्वर का नाम युगानुयुग धन्य है; क्योंकि बुद्धि और पराक्रम उसी के हैं। 
21. समयोंऔर ऋतुओं को वही पलटता है; राजाओं का अस्त और उदय भी वही करता है; बुद्धिमानोंको बुद्धि और समझवालोंको समझ भी वही देता है; 
22. वही गूढ़ और गुप्त बातोंको प्रगट करता है; वह जानता है कि अन्धिक्कारने में क्या है, और उसके संग सदा प्रकाश बना रहता है। 
23. हे मेरे पूर्वजोंके परमश्ेवर, मैं तेरा धन्यवाद और स्तुति करता हूं, क्योंकि तू ने मुझे बुद्धि और शक्ति दी है, और जिस भेद का खुलना हम लोगोंन तुझ से मांगे या, उसे तू ने मुझ पर प्रगट किया है, तू ने हम को राजा की बात बताई है। 
24. तब दानिय्थेल ने अर्योक के पास, जिसे राजा ने बाबुल के पण्डितोंके नाश करने के लिथे ठहराया या, भीतर जाकर कहा, बाबुल के पण्डितोंका नाश न कर, मुझे राजा के सम्मुख भीतर ले चल, मैं फल बताऊंगा।। 
25. तब अर्योक ने दानिय्थेल को राजा के सम्मुख शीघ्र भीतर ले जाकर उस से कहा, यहूदी बंधुओं में से एक पुरूष मुझ को मिला है, जो राजा को स्वप्न का फल बताएगा। 
26. राजा ने दानिय्थेल से, जिसका नाम बेलतशस्सर भी या, पूछा, क्या तुझ में इतनी शक्ति है कि जो स्वप्न मैं ने देखा है, उसे फल समेत मुझे बताए? 
27. दानिय्थेल ने राजा का उत्तर दिया, जो भेद राजा पूछता है, वह न तो पण्डित न तन्त्री, न ज्योतिषी, न दूसरे भावी बतानेवाले राजा को बता सकते हैं, 
28. परन्तु भेदोंका प्रगटकर्त्ता परमेश्वर स्वर्ग में है; और उसी ने नबूकदनेस्सर राजा को जताया है कि अन्त के दिनोंमें क्या क्या होनवाला है। तेरा स्वपन और जो कुछ तू ने पलंग पर पके हुए देखा, वह यह है: 
29. हे राजा, जब तुझ को पलंग पर यह विचार हुआ कि भविष्य में क्या क्या होनेवाला है, तब भेदोंको खोलनेवाले ने तुझ को बताया, कि क्या क्या होनेवाला है। 
30. मुझ पर यह भेद इस कारण नहीं खोला गया कि मैं और सब प्राणियोंसे अधिक बुद्धिमान हूं, परन्तु केवल इसी कारण खोला गया है कि स्वपन का फल राजा को बताया जाए, और तू अपके मन के विचार समझ सके।। 
31. हे राजा, जब तू देख रहा या, तब एक बड़ी मूत्तिर् देख पक्की, और वह मूत्तिर् जो तेरे साम्हने खड़ी यी, सो लम्बी चौड़ी यी; उसकी चमक अनुपम यी, और उसका रूप भयंकर या। 
32. उस मूत्तिर् का सिर तो चोखे सोने का या, उसकी छाती और भुजाएं चान्दी की, उसका पेट और जांघे पीतल की, 
33. उसकी टांगे लोहे की और उसके पांव कुछ तो लोहे के और कुछ मिट्टी के थे। 
34. फिर देखते देखते, तू ने क्या देखा, कि एक पत्यर ने, बिना किसी के खोदे, आप ही आप उखड़कर उस मूत्तिर् के पांवोंपर लगकर जो लोहे और मिट्टी के थे, उनको चूर चूर कर डाला। 
35. तब लोहा, मिट्टी, पीतल, चान्दी और सोना भी सब चूर चूर हो गए, और धूपकाल में खलिहानोंके भूसे की नाईं हवा से ऐसे उड़ गए कि उनका कहीं पता न रहा; और वह पत्यर जो मूत्तिर् पर लगा या, वह बड़ा पहाड़ बनकर सारी पृय्वी में फैल गया।। 
36. स्वपन तो योंही हुआ; और अब हम उसका फल राजा को समझा देते हैं। 
37. हे राजा, तू तो महाराजाधिरा है, क्योंकि स्वर्ग के परमेश्वर ने तुझ को राज्य, सामर्य, शक्ति और महिमा दी है, 
38. और जहां कहीं मनुष्य पाए जाते हैं, वहां उस ने उन सभोंको, और मैदान के जीवजन्तु, और आकाश के पक्की भी तेरे वश में कर दिए हैं; और तुझ को उन सब का अधिक्कारनेी ठहराया है। यह सोने का सिर तू ही है। 
39. तेरे बाद एक राज्य और उदय होगा जो तुझ से छोटा होगा; फिर एक और तीसरा पीतल का सा राज्य होगा जिस में सारी पृय्वी आ जाएगी। 
40. और चौया राज्य लोहे के तुल्य मजबूत होगा; लोहे से तो सब वस्तुएं चूर चूर हो जाती और पिस जाती हैं; इसलिथे जिस भांति लोहे से वे सब कुचक्की जाती हैं, उसी भांति, उस चौथे राज्य से सब कुछ चूर चूर होकर पिस जाएगा। 
41. और तू ने जो मूत्तिर् के पांवोंऔर उनकी उंगलियोंको देखा, जो कुछ कुम्हार की मिट्टी की और कुछ लोहे की यीं, इस से वह चौया राज्य बटा हुआ होगा; तौभी उस में लोहे का सा कड़ापन रहेगा, जैसे कि तू ने कुम्हार की मिट्टी के संग लोहा भी मिला हुआ देखा या। 
42. और जैसे पांवोंकी उंगलियां कुछ तो लोहे की और कुछ मिट्टी की यीं, इसका अर्य यह है, कि वह राज्य कुछ तो दृढ़ और कुछ निर्बल होगा। 
43. और तू ने जो लोहे को कुम्हार की मिट्टी के संग मिला हुआ देखा, इसका अर्य यह है, कि उस राज्य के लोग एक दूसरे मनुष्योंसे मिले जुले तो रहेंगे, परन्तु जैसे लोहा मिट्टी के साय मेल नहीं खाता, वैसे ही वे भी एक न बने रहेंगे। 
44. और उन राजाओं के दिनोंमें स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्योंको चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्यिर रहेगा; 
45. जैसा तू ने देखा कि एक पत्यर किसी के हाथ के बिन खोदे पहाड़ में से उखड़ा, और उस ने लोहे, पीतर, मिट्टी, चान्दी, और सोने को चूर चूर किया, इसी रीति महान्‌ परमेश्वर ने राजा को जताया है कि इसके बाद क्या क्या होनेवाला है। न स्वप्न में और न उसके फल में कुछ सन्देह है।। 
46. इतना सुनकर नबूकदनेस्सर राजा ने मुंह के बल गिरकर दानिय्थेल को दण्डवत्‌ की, और आज्ञा दी कि उसको भेंट चढ़ाओ, और उसके साम्हने सुगन्ध वस्तु जलाओ। 
47. फिर राजा ने दानिय्थेल से कहा, सच तो यह है कि तुम लोगोंका परमेश्वर, सब ईश्वरोंका ईश्वर, राजाओं का राजा और भेदोंका खोलनेवाला है, इसलिथे तू यह भेद प्रगट कर पाया। 
48. तब राजा ने दानिय्थेल का पद बड़ा किया, और उसको बहुत से बड़े बड़े दान दिए; और यह आज्ञा दी कि वह बाबुल के सारे प्रान्त पर हाकिम और बाबुल के सब पण्डितोंपर मुख्य प्रधान बने। 
49. तब दानिय्थेल के बिनती करने से राजा ने शद्रक, मेशक, और अबेदनगो को बाबुल के प्रान्त के कार्य के ऊपर नियुक्त कर दिया; परन्तु दानिय्थेल आप ही राजा के दरबार में रहा करता या।।

Chapter 3

1. नबूकदनेस्सर राजा ने सोने की एक मूरत बनवाई, जिनकी ऊंचाई साठ हाथ, और चौड़ाई छ: हाथ की यी। और उस ने उसको बाबुल के प्रान्त के दूरा नाम मैदान में खड़ा कराया। 
2. तब नबूकदनेस्सर राजा ने अधिपतियों, हाकिमों, गवर्नरों, जजों, खजांनचियों, न्यायियों, शास्त्रियों, आदि प्रान्त-प्रान्त के सब अधिक्कारनेियोंको बुलवा भेजा कि वे उस मूरत की प्रतिष्ठा में आएं जो उस ने खड़ी कराई यी। 
3. तब अधिपति, हाकिम, गर्वनर, जज, खजांनची, न्यायी, शास्त्री आदि प्रान्त-प्रान्त के सब अधिक्कारनेी नबूकदनेस्सर राजा की खड़ी कराई हुई मूरत की प्रतिष्ठा के लिथे इकट्ठे हुए, और उस मूरत के साम्हने खड़े हुए। 
4. तब ढिंढोरिथे ने ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा, हे देश-देश और जाति-जाति के लोगों, और भिन्न भिन्न भाषा बोलनेवालो, तुम को यह आज्ञा सुनाई जाती है कि, 
5. जिस समय तुम नरसिंगे, बांसुली, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई आदि सब प्रकार के बाजोंका शब्द सुनो, तुम उसी समय गिरकर नबूकदनेस्सर राजा की खड़ी कराई हुए सोने की मूरत को दण्डवत्‌ करो। 
6. और जो कोई गिरकर दण्डवत्‌ न करेगा वह उसी घड़ी धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाल दिया जाएगा। 
7. इस कारण उस समय ज्योंही सब जाति के लोगोंको नरसिंगे, बांसुली, वीणा, सारंगी, सितार शहनाई आदि सब प्रकार के बाजोंका शब्द सुन पड़ा, त्योंही देश-देश और जाति-जाति के लोगोंऔर भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालोंने गिरकर उस सोने की मूरत को जो नबूकदनेस्सर राजा ने खड़ी कराई यी, दण्डवत्‌ की।। 
8. उसी समय कई एक कसदी पुरूष राजा के पास गए, और कपट से यहूदियोंकी चुगली खाई। 
9. वे नबुकदनेस्सर राजा से कहने लगे, हे राजा, तू चिरंजीव रहे। 
10. हे राजा, तू ने तो यह आज्ञा दी है कि जो मनुष्य नरसिंगे, बांसुली, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई आदि सब प्रकार के बाजोंका शब्द सुने, वह गिरकर उस सोने की मूरत को दण्डवत करे; 
11. और जो कोई गिरकर दण्डवत्‌ न करे वह धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाल दिया जाए। 
12. देख, शद्रक, मेशक, और अबेदनगो नाम कुछ यहूदी पुरूष हैं, जिन्हें तू ने बाबुल के प्रान्त के कार्य के ऊपर नियुक्त किया है। उन पुरूषोंने, हे राजा, तेरी आज्ञा की कुछ चिन्ता नहीं की; वे तेरे देवता की उपासना नहीं करते, और जो सोने की मूरत तू ने खड़ी कराई है, उसको दण्डवत्‌ नहीं करते।। 
13. तब नबूकदनेस्सर ने रोष और जलजलाहट में आकर आज्ञा दी कि शद्रक मेशक और अबेदनगो को लाओ। तब वे पुरूष राजा के साम्हने हाजिर किए गए। 
14. नबूकदनेस्सर ने उन से पूछा, हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, तुम लोग जो मेरे देवता की उपासना नहीं करते, और मेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ नहीं करते, सो क्या तुम जान बूफकर ऐसा करते हो? 
15. यदि तुम अभी तैयार हो, कि जब नरसिंगे, बाुसुली, वीणा, सारंगी, सितार, शहनाई आदि सब प्रकार के बाजोंका शब्द सुनो, और उसी झण गिरकर मेरी बनवाई हुई मूरत को दण्डवत्‌ करो, तो बचोगे; और यदि तुम दण्डवत्‌ ने करो तो इसी घड़ी धधकते हुए भट्ठे के बीच में डाले जाओगे; फिर ऐसा कौन देवता है, जो तुम को मेरे हाथ से छुड़ा सके? 
16. शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने राजा से कहा, हे नबूकदनेस्सर, इस विषय में तुझे उत्तर देने का हमें कुछ प्रयोजन नहीं जान पड़ता। 
17. हमारा परमेश्वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकते हुए भट्टे की आग से बचाने की शक्ति रखता है; वरन हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है। 
18. परन्तु, यदि नहीं, तो हे राजा तुझे मालूम हो, कि हम लोग तेरे देवता की उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई सोने की मूरत को दण्डवत्‌ करेंगे।। 
19. तब नबूकदनेस्सर फुंफला उठा, और उसके चेहरे का रंग शद्रक, मेशक और अबेदनगो की ओर बदल गया। और उस ने आज्ञा दी कि भट्ठे को सातगुणा अधिक धधका दो। 
20. फिर अपक्की सेना में के कई एक बलवान्‌ पुरूषोंको उस ने आज्ञा दी, कि शद्रक, मेशक और अबेदनगो को बान्धकर उन्हें धधकते हुए भट्ठे में डाल दो। 
21. तब वे पुरूष अपके मोजों, अंगरखों, बागोंऔर और वस्त्रोंसहित बान्धकर, उस धधकते हुए भट्ठे में डाल दिए गए। 
22. वह भट्ठा तो राजा की दृढ़ आज्ञा होने के कारण अत्यन्त धधकाया गया या, इस कारण जिन पुरूषोंने शद्रक, मेशक और अबेदनगो को उठाया वे ही आग की आंच से जल मरे। 
23. और उसी धधकते हुए भट्ठे के बीच थे तीनोंपुरूष, शद्रक, मेशक और अबेदनगो, बन्धे हुए फेंक दिए गए।। 
24. तब नबूकदनेस्सरे राजा अचम्भित हुआ और घबराकर उठ खड़ा हुआ। और अपके मन्त्रियोंसे पूछने लगा, क्या हम ने उस आग के बीच तीन ही पुरूष बन्धे हुए नहीं डलवाए? उन्होंने राजा को उत्तर दिया, हां राजा, सच बात तो है। 
25. फिर उस ने कहा, अब मैं देखता हूं कि चार पुरूष आग के बीच खुले हुए टहल रहे हैं, और उनको कुछ भी हानि नहीं पहुंची; और चौथे पुरूष का स्वरूप ईश्वर के पुत्र के सदृश्य है।। 
26. फिर नबूकदनेस्सर उस धधकते हुए भट्ठे के द्वार के पास जाकर कहने लगा, हे शद्रक, मेशक और अबेदनगो, हे परमप्रधान परमेश्वर के दासो, निकलकर यहां आओ! यह सुनकर शद्रक, मेशक और अबेदनगो आग के बीच से निकल आए। 
27. जब अधिपति, हाकिम, गर्वनर और राजा के मन्त्रियोंने, जो इकट्ठे हुए थे, उन पुरूषोंकी ओर देखा, तब उनकी देह में आग का कुछ भी प्रभाव नहीं पाया; और उनके सिर का एक बाल भी न फुलसा, न उनके मोजे कुछ बिगड़े, न उन में जलने की कुछ गन्ध पाई गई। 
28. नबूकदनेस्सर कहने लगा, धन्य है शद्रक, मेशक और अबेदनगो का परमेश्वर, जिस ने अपना दूत भेजकर अपके इन दासोंको इसलिथे बचाया, क्योंकि इन्होंने राजा की आज्ञा न मानकर, उसी पर भरोसा रखा, और यह सोचकर अपना शरीर भी अर्पण किया, कि हम अपके परमेश्वर को छोड़, किसी देवता की उपासना वा दण्डवत्‌ न करेंगे। 
29. इसलिथे अब मैं यह आज्ञा देता हूं कि देश-देश और जाति-जाति के लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालोंमें से जो कोई शद्रक, मेशक और अबेदनगो के परमेश्वर की कुछ निन्दा करेगा, वह टुकड़े टुकड़े किया जाएगा, और उसका घर घूरा बनाया जाएगा; क्योंकि ऐसा कोई और देवता नहीं जो इस रीति से बचा सके। 
30. तब राजा ने बाबुल के प्रान्त में शद्रक, मेशक, अबेदनगो का पद और ऊंचा किया।।

Chapter 4

1. नबूकदनेस्सर राजा की ओर से देश-देश और जाति जाति के लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले जितने सारी पृय्वी पर रहते हैं, उन सभोंको यह वचन मिला, तुम्हारा कुशल झेम बए�े! 
2. मुझे यह अच्छा लगा, कि परमप्रधान परमेश्वर ने मुझे जो जो चिन्ह और चमत्कार दिखाए हैं, उनको प्रगट करूं। 
3. उसके दिखाए हुए चिन्ह क्या ही बड़े, और उसके चमत्कारोंमें क्या ही बड़ी शक्ति प्रगट होती है! उसका राज्य तो सदा का और उसकी प्रभुता पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।। 
4. मैं नबूकदनेस्सर अपके भवन में चैन से और प्रफुल्लित रहता या। 
5. मैं ने ऐसा स्वप्न देखा जिसके कारण मैं डर गया; और पलंग पर पके पके जो विचार मेरे मन में आए और जो बातें मै ने देखीं, उनके कारण मैं घबरा गया या। 
6. तब मैं ने आज्ञा दी कि बाबुल के सब पण्डित मेरे स्वप्न का फल मुझे बताने के लिथे मेरे साम्हने हाजिर किए जाएं। 
7. तब ज्योतिषी, तन्त्री, कसदी और होनहार बतानेवाले भीतर आए, और मैं ने उनको अपना स्वप्न बताया, परन्तु वे उसका फल न बता सके। 
8. निदान दानिय्थेल मेरे सम्मुख आया, जिसका नाम मेरे देवता के नाम के कारण बेलतशस्सर रखा गया या, और जिस में पवित्र ईश्वरोंकी आत्मा रहती है; और मैं ने उसको अपना स्वप्न यह कहकर बता दिया, 
9. कि, हे बेलेतश्स्सर तू तो सब ज्योतिषियोंका प्रधान है, मैं जानता हूं कि तुझ में पवित्र ईश्वरोंकी आत्मा रहती है, और तू किसी भेद के कारण नहीं घबराता; इसलिथे जो स्वपन मैं ने देखा है उसे फल समेत मुझे बताकर समझा दे। 
10. जो दर्शन मैं ने पलंग पर पाया वह यह है: मैं ने देखा, कि पृय्वी के बीचोबीच एक वृझ लगा है; उसकी ऊंचाई बहुत बड़ी है। 
11. वह वृझ बड़ा होकर दृढ़ हो गया, और उसकी ऊंचाई स्वर्ग तक पहुंची, और वह सारी पृय्वी की छोर तक देख पड़ता या। 
12. उसके पत्ते सुन्दर, और उस में बहुत फल थे, यहां तक कि उस में सभोंके लिथे भोजन या। उसके नीचे मैदान के सब पशुओं को छाया मिलती यी, और उसकी डालियोंमें आकाश की सब चिडिय़ां बसेरा करता यीं, और सब प्राणी उस से आहार पाते थे।। 
13. मैं ने पलंग पर दर्शन पाते समय क्या देखा, कि एक पवित्र पहरूआ स्वर्ग से उतर आया। 
14. उस ने ऊंचे शब्द से पुकारकर यह कहा, वृझ को काट डालो, उसकी डालियोंको छांट दो, उसके पत्ते फाड़ दो और उसके फल छितरा डालो; पशु उसके नीचे से हट जाएं, और चिडिय़ें उसकी डालियोंपर से उड़ जाएं। 
15. तौभी उसके ठूंठ को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बान्धकर मैदान की हरी घास के बीच रहने दो। वह आकाश की ओस से भींगा करे और भूमि की घास खाने में मैदान के पशुओं के संग भागी हो। 
16. उसका मन बदले और मनुष्य का न रहे, परन्तु पशु का सा बन जाए; और उस पर सात काल बीतें। 
17. यह आज्ञा पहरूओं के निर्णय से, और यह बात पवित्र लोगोंके वचन से निकली, कि जो जीवित हैं वे जान लें कि परमप्रधान परमश्ेवर मनुष्योंके राज्य में प्रभुता करता है, और उसको जिसे चाहे उसे दे देता है, और वह छोटे से छोटे मनुष्य को भी उस पर नियुक्त कर देता है। 
18. मुझ नबूकदनेस्सर राजा ने यही स्वपन देखा। सो हे बेलतशस्सर, तू इसका फल बता, क्योंकि मेरे राज्य में और कोई पण्डित इसका फल मुझे समझा नहीं सकता, परन्तु तुझ में तो पवित्र ईश्वरोंकी आत्मा रहती है, इस कारण तू उसे समझा सकता है।। 
19. तब दानिय्थेल जिसका नाम बेलतशस्सर भी या, घड़ी भर घबराता रहा, और सोचते सोचते व्याकुल हो गया। तब राजा कहने लगा, हे बेलतशस्सर इस स्वप्न से, वा इसके फल से तू व्याकुल मत हो। बेलतशस्सर ने कहा, हे मेरे प्रभु, यह स्वप्न तेरे बैरियोंपर, और इसका अर्य तेरे द्रोहियोंपर फले! 
20. जिस वृझ हो तू ने देखा, जो बड़ा और दृढ़ हो गया, और जिसकी ऊंचाई स्वर्ग तक पहुंची और जो पृय्वी के सिक्के तक दिखाई देता या; 
21. जिसके पत्ते सुन्दर और फल बहुत थे, और जिस में सभोंके लिथे भोजन या; जिसके नीचे मैदान के सब पशु रहते थे, और जिसकी डालियोंमें आकाश की चिडिय़ां बसेरा करती यीं, 
22. हे राजा, वह तू ही है। तू महान और सामर्यी हो गया, तेरी महिमा बढ़ी और स्वर्ग तक पहुंच गई, और तेरी प्रभुता पृय्वी की छोर तक फैली है। 
23. और हे राजा, तू ने जो एक पवित्र पहिरूए को स्वर्ग से उतरते और यह कहते देखा कि वृझ को काट डालो और उसका नाश करो, तौभी उसके ठूंठ को जड़ समेत भूमि में छोड़ो, और उसको लोहे और पीतल के बन्धन से बान्धकर मैदान की हरी घास के बीच में रहने दो; वह आकाश की ओस से भीगा करे, और उसको मैदान के पशुओं के संग ही भाग मिले; और जब तक सात युग उस पर बीत न चुकें, तब तक उसकी ऐसी ही दशा रहे। 
24. हे राजा, इसका फल जो परमप्रधान ने ठाना है कि राजा पर घटे, वह यह है, 
25. कि तू मनुष्योंके बीच से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; तू बैलोंकी नाई घास चरेगा; और सात युग तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि मनुष्योंके राज्य में परमप्रधान ही प्रभुता करता है, और जिसे चाहे वह उसे दे देता है। 
26. और उस वृझ के ठूंठ को जड़ समेत छोड़ने की आज्ञा जो हुई है, इसका अर्य यह है कि तेरा राज्य तेरे लिथे बना रहेगा; और जब तू जान लेगा कि जगत का प्रभु स्वर्ग ही में है, तब तू फिर से राज्य करने पाएगा। 
27. इस कारण, हे राजा, मेरी यह सम्मति स्वीकार कर, कि यदि तू पाप छोड़कर धर्म करने लगे, और अधर्म छोड़कर दीन-हीनोंपर दया करने लगे, तो सम्भव है कि ऐसा करने से तेरा चैन बना रहे।। 
28. यह सब कुछ नबूकदनेस्सर राजा पर घट गया। 
29. बारह महीने बीतने पर जब वह बाबुल के राजभवन की छत पर टहल रहा या, तब वह कहने लगा, 
30. क्या यह बड़ा बाबुल नहीं है, जिसे मैं ही ने अपके बल और सामर्य से राजनिवास होने को और अपके प्रताप की बड़ाई के लिथे बसाया है? 
31. यह वचन राजा के मुंह से निकलने भी न पाया या कि आकाशवाणी हुई, हे राजा नबूकदनेस्सर तेरे विषय में यह आज्ञा निकलती है कि राज्य तेरे हाथ से निकल गया, 
32. और तू मनुष्योंके बीच में से निकाला जाएगा, और मैदान के पशुओं के संग रहेगा; और बैलोंकी नाईं घास चरेगा9 और सात काल तुझ पर बीतेंगे, जब तक कि तू न जान ले कि परमप्रधान, मनुष्योंके राज्य में प्रभुता करता है और जिसे चाहे वह उसे दे देता है। 
33. उसी घड़ी यह वचन नबूकदनेस्सर के विषय में पूरा हुआ। वह मनुष्योंमें से निकाला गया, और बैलोंकी नाईं घास चरने लगा, और उसकी देह आकाश की ओस से भीगती यी, यहां तक कि उसके बाल उकाब पझियोंके परोंसे और उसके नाखून चिडिय़ोंके चंगुलोंके समान बढ़ गए।। 
34. उन दिनोंके बीतने पर, मुझ नबूकदनेस्सर ने अपक्की आंखें स्वर्ग की ओर उठाईं, और मेरी बुद्धि फिर ज्योंकी त्योंहो गई; तब मैं ने परमप्रधान को धन्य कहा, और जो सदा जीवित है उसकी स्तुति और महिमा यह कहकर करने लगा: उसकी प्रभुता सदा की है और उसका राज्य पीढ़ी से पीढ़ी तब बना रहनेवाला है। 
35. पृय्वी के सब रहनेवाले उसके साम्हने तुच्छ गिने जाते हैं, और वह स्वर्ग की सेना और पृय्वी के रहनेवालोंके बीच अपक्की इच्छा के अनुसार काम करता है; और कोई उसको रोककर उस से नहीं कह सकता है, तू ने यह क्या किया है? 
36. उसी समय, मेरी बुद्धि फिर ज्योंकी त्योंहो गई; और मेरे राज्य की महिमा के लिथे मेरा प्रताप और मुकुट मुझ पर फिर आ गया। और मेरे मन्त्री और प्रधान लोग मुझ से भेंट करने के लिथे आने लगे, और मैं राज्य में स्यिर हो गया; और मेरी और अधिक प्रशंसा होने लगी। 
37. अब मैं नबूकदनेस्सर स्वर्ग के राजा को सराहता हूं, और उसकी स्तुति और महिमा करता हूं क्योंकि उसके सब काम सच्चे, और उसके सब व्यवहार न्याय के हैं; और जो लोग घमण्ड से चलते हैं, उन्हें वह नीचा कर सकता है।।

Chapter 5

1. बेलशस्सर नाम राजा ने अपके हजार प्रधानोंके लिथे बड़ी जेवनार की, और उन हजार लोगोंके साम्हने दाखमधु पिया।। 
2. दाखमधु पीते पीते बेलशस्सर ने आज्ञा दी, कि सोने-चान्दी के जो पात्र मेरे पिता नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम के मन्दिर में से निकाले थे, उन्हें ले आओ कि राजा अपके प्रधानों, और रानियोंऔर रखेलियोंसमेत उन में से पीए। 
3. तब जो सोने के पात्र यरूशलेम में परमेश्वर के भवन के मन्दिर में से निकाले गए थे, वे लाए गए; और राजा अपके प्रधानों, और रानियों, और रखेलियोंसमेत उन में से पीने लगा।। 
4. वे दाखमधु पी पीकर सोने, चान्दी, पीतल, लोहे, काठ और पत्यर के देवताओं की स्तुति कर ही रहे थे, 
5. कि उसी घड़ी मनुष्य के हाथ की सी कई उंगलियां निकलकर दीवट के साम्हने राजमन्दिर की भीत के चूने पर कुछ लिखने लगीं; और हाथ का जो भाग लिख रहा या वह राजा को दिखाई पड़ा। 
6. उसे देखकर राजा भयभीत हो गया, और वह अपके सोच में घबरा गया, और उसकी कटि के जोड़ ढ़ीले हो गए, और कांपके कांपके उसके घुटने एक दूसरे से लगने लगे। 
7. तब राजा ने ऊंचे शब्द से पुकारकर तन्त्रियों, कसदियोंऔर और होनहार बतानेवालोंको हाजिर करवाने की आज्ञा दी। जब बाबुल के पण्डित पास आए, तब राज उन से कहने लगा, जो कोई वह लिखा हुआ पढ़कर उसका अर्य मुझे समझाए उसे बैंजनी रंग का वस्त्र और उसके गले में सोने की कण्ठमाला पहिनाई जाएगी; और मेरे राज्य में तीसरा वही प्रभुता करेगा। 
8. तब राजा के सब पण्डित लोग भीतर आए, परन्तु उस लिखे हुए को न पढ़ सके और न राजा को उसका अर्य समझा सके। 
9. इस पर बेलशस्सर राजा निपट घबरा गया और भयातुर हो गया; और उसके प्रधान भी बहुत व्याकुल हुए।। 
10. राजा और प्रधानोंके वचनोंको सुनकर, रानी जेवनार के घर में आई और कहने लगी, हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे, अपके मन में न घबरा और न उदास हो। 
11. तेरे राज्य में दानिय्थेल एक पुरूष है जिसका नाम तेरे पिता ने बेलतशस्सर रखा या, उस में पवित्र ईश्वरोंकी आत्मा रहती है, और उस राजा के दिनोंमें उस में प्रकाश, प्रवीणता और ईश्वरोंके तुल्य बुद्धि पाई गई। और हे राजा, तेरा पिता जो राजा या, उस ने उसको सब ज्योतिषियों, तन्त्रियों, कसदियोंऔर और होनहार बतानेवालोंका प्रधान ठहराया या, 
12. क्योंकि उस में उत्तम आत्मा, ज्ञान और प्रवीणता, और स्वप्नोंका फल बताने और पकेलियां खोलने, और सन्देह दूर करने की शक्ति पाई गई। इसलिथे अब दानिय्थेल बुलाया जाए, और वह इसका अर्य बताएगा।। 
13. तब दानिय्थेल राजा के साम्हने भीतर बुलाया गया। राजा दानिय्थेल से पूछने लगा, क्या तू वही दानिय्थेल है जो मेरे पिता नबूकदनेस्सर राजा के यहूदा देश से लाए हुए यहूदी बंधुओं में से है? 
14. मैं ने तेरे विषय में सुना है कि ईश्वर की आत्मा तुझ में रहती है; और प्रकाश, प्रवीणता और उत्तम बुद्धि तुझ में पाई जाती है। 
15. देख, अभी पण्डित और तन्त्री लोग मेरे साम्हने इसलिथे लाए गए थे कि यह लिखा हुआ पकें और उसका अर्य मुझे बताएं, परन्तु वे उस बात का अर्य न समझा सके। 
16. परन्तु मैं ने तेरे विषय में सुना है कि दानिय्थेल भेद खोल सकता और सन्देह दूर कर सकता है। इसलिथे अब यदि तू उस लिखे हुए को पढ़ सके और उसका अर्य भी मुझे समझा सके, तो तुझे बैंजनी रंग का वस्त्र, और तेरे गले में सोने की कण्ठमाला पहिनाई जाएगी, और राज्य में तीसरा तू ही प्रभुता करेगा।। 
17. दानिय्थेल ने राजा से कहा, अपके दान अपके ही पास रख; और जो बदला तू देना चाहता है, वह दूसरे को दे; वह लिखी हुई बात मैं राजा को पढ़ सुनाऊंगा, और उसका अर्य भी तुझे समझाऊंगा। 
18. हे राजा, परमप्रधान परमेश्वर ने तेरे पिता नबूकदनेस्सर को राज्य, बड़ाई, प्रतिष्ठा और प्रताप दिया या; 
19. और उस बड़ाई के कारण जो उस ने उसको दी यी, देश-देश और जाति जाति के सब लोग, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले उसके साम्हने कांपके और यरयराते थे, जिसे वह चाहता उसे वह घात करता या, और जिसको वह चाहता उसे वह जीवित रखता या जिसे वह चाहता उसे वह ऊंचा पद देता या, और जिसको वह चाहता उसे वह गिरा देता या। 
20. परन्तु जब उसका मन फूल उठा, और उसकी आत्मा कठोर हो गई, यहां तक कि वह अभिमान करने लगा, तब वह अपके राजसिंहासन पर से उतारा गया, और उसकी प्रतिष्ठा भंग की गई; 
21. वह मनुष्योंमें से निकाला गया, और उसका मन पशुओं का सा, और उसका निवास जंगली गदहोंके बीच हो गया; वह बैलोंकी नाईं घास चरता, और उसका शरीर आकाश की ओस से भीगा करता या, जब तक कि उस ने जान न लिया कि परमप्रधान परमश्ेवर मनुष्योंके राज्य में प्रभुता करता है और जिसे चाहता उसी को उस पर अधिक्कारनेी ठहराता है। 
22. तौभी, हे बेलशस्सर, तू जो उसका पुत्र है, और यह सब कुछ जानता या, तौभी तेरा मन नम्र न हुआ। 
23. वरन तू ने स्वर्ग के प्रभु के विरूद्ध सिर उठाकर उसके भवन के पात्र मंगवाकर अपके साम्हने धरवा लिए, और अपके प्रधानोंऔर रानियोंऔर रखेलियोंसमेत तू ने उन में दाखमधु पिया; और चान्दी-सोने, पीतल, लोहे, काठ और पत्यर के देवता, जो न देखते न सुनते, न कुछ जानते हैं, उनकी तो स्तुति की, परन्तु परमेश्वर, जिसके हाथ में तेरा प्राण है, और जिसके वश में तेरा सब चलना फिरना है, उसका सन्मान तू ने नहीं किया।। 
24. तब ही यह हाथ का एक भाग उसी की ओर से प्रगट किया गया है और वे शब्द लिखे गए हैं। 
25. और जो शब्द लिखे गए वे थे हैं, मने, मने, तकेल, और ऊपर्सीन। 
26. इस वाक्य का अर्य यह है, मने, अर्यात्‌ परमेश्वर ने तेरे राज्य के दिन गिनकर उसका अन्त कर दिया है। 
27. तकेल, तू मानो तराजू में तौला गया और हलका पाया गया। 
28. पकेस, अर्यात्‌ तेरा राज्य बांटकर मादियोंऔर फारसिक्कों दिया गया है।। 
29. तब बेलशस्सर ने आज्ञा दी, और दानिय्थेल को बैंजनी रंग का वस्त्र और उसके गले में सोने की कण्ठमाला पहिनाई गई; और ढिंढोरिथे ने उसके विषय में पुकारा, कि राज्य में तीसरा दानिय्थेल ही प्रभुता करेगा।। 
30. उसी रात कसदियोंका राजा बेलशस्सर मार डाला गया। 
31. और दारा मादी जो कोई बासठ वर्ष का या राजगद्दी पर विराजमान हुआ।।

Chapter 6

1. दारा को यह अच्छा लगा कि अपके राज्य के ऊपर एक सौ बीस ऐसे अधिपति ठहराए, जो पूरे राज्य में अधिक्कारने रखें। 
2. और उनके ऊपर उस ने तीन अध्यझ, जिन में से दानिय्थेल एक या, इसलिथे ठहराए, कि वे उन अधिपतियोंसे लेखा लिया रकें, और इस रीति राजा की कुछ हानि न होने पाए। 
3. जब यह देखा गया कि दानिय्थेल में उत्तम आत्मा रहती है, तब उसको उन अध्यझोंऔर अधिपतियोंसे अधिक प्रतिष्ठा मिली; वरन राजा यह भी सोचता या कि उसको सारे राज्य के ऊपर ठहराए। 
4. तब अध्यझ और अधिपति राजकार्य के विषय में दानिय्थेल के विरूद्ध दोष ढूंढ़ने लगे; परन्तु वह विश्वासयोग्य या, और उसके काम में कोई भूल वा दोष न निकला, और वे ऐसा कोई अपराध वा दोष न पा सके। 
5. तब वे लोग कहने लगे, हम उस दानिय्थेल के परमेश्वर की व्यवस्या को छोड़ और किसी विषय में उसके विरूद्ध कोई दोष न पा सकेंगे।। 
6. तब वे अध्यझ और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उस से कहा, हे राजा दारा, तू युगयुग जीवित रहे। 
7. राज्य के सारे अध्यझोंने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और गवर्नरोंने भी आपास में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य वा देवता से बिनती करे, वह सिंहोंकी मान्द में डाल दिया जाए। 
8. इसलिथे अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताझर कर, जिस से यह बात मादियोंऔर फारसियोंकी अटल व्यवस्या के अनुसार अदल-बदल न हो सके। 
9. तब दारा राजा ने उस आज्ञापत्र पर हस्ताझर कर दिया।। 
10. जब दानिय्थेल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताझर किया गया है, तब वह अपके घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियां यरूशलेम के सामने खुली रहती यीं, और अपक्की रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपके परमेश्वर के साम्हने घुटने टेककर प्रार्यना और धन्यवाद करता या, वैसा ही तब भी करता रहा। 
11. तब उन पुरूषोंने उतावली से आकर दानिय्थेल को अपके परमेश्वर के सामने बिनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया। 
12. सो वे राजा के पास जाकर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उस से कहने लगे, हे राजा, क्या तू ने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताझर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी मनुष्य वा देवता से बिनती करेगा, वह सिंहोंकी मान्द में डाल दिया जाएगा? राजा ने उत्तर दिया, हां, मादियोंऔर फारसियोंकी अटल व्यवस्या के अनुसार यह बात स्यिर है। 
13. तब उन्होंने राजा से कहा, यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्थेल है, उस ने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताझर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार बिनती किया करता है।। 
14. यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्थेल के बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा। 
15. तब वे पुरूष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, हे राजा, यह जान रख, कि मादियोंऔर फारसियोंमें यह व्यवस्या है कि जो जो मनाही वा आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती।। 
16. तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्थेल लाकर सिंहोंकी मान्द में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्थेल से कहा, तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए! 
17. तब एक पत्यर लाकर उस गड़हे के मुंह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपक्की अंगूठी से, और अपके प्रधानोंकी अंगूठियोंसे मुहर लगा दी कि दानिय्थेल के विषय में कुछ बदलने ने पाए। 
18. तब राजा अपके महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख विलास की कोई वस्तु नहीं पहुंचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई।। 
19. भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहोंके गड़हे की ओर फुर्ती से चला गया। 
20. जब राजा गड़हे के निकट आया, तब शोकभरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्थेल से कहा, हे दानिय्थेल, हे जीवते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहोंसे बचा सका है? 
21. तब दानिय्थेल ने राजा से कहा, हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे! 
22. मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहोंके मुंह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके साम्हने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की। 
23. तब राजा ने बहुत आनन्दित होकर, दानिय्थेल को गड़हे में से निकालने की आज्ञा दी। सो दानिय्थेल गड़हे में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपके परमेश्वर पर विश्वास रखता या। 
24. और राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरूषोंने दानिय्थेल की चुगली खाई यी, वे अपके अपके लड़केबालोंऔर स्त्रियोंसमेत लाकर सिंहोंके गड़हे में डाल दिए जाएं; और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुंचे कि सिंहोंने उन पर फपटकर सब हड्डियोंसमेत उनको चबा डाला।। 
25. तब दारा राजा ने सारी पृय्वी के रहनेवाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालोंके पास यह लिखा, तुम्हारा बहुत कुशल हो। 
26. मैं यह आज्ञा देता हूं कि जहां जहां मेरे राज्य का अधिक्कारने है, वहां के लोग दानिय्थेल के परमेश्वर के सम्मुख कांपके और यरयराते रहें, क्योंकि जीवता और युगानयुग तक रहनेवाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्यिर रहेगी। 
27. जिस ने दानिय्थेल को सिंहोंसे बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृय्वी पर चिन्होंऔर चमत्कारोंका प्रगट करनेवाला है। 
28. और दानिय्थेल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनोंके राज्य के दिनोंमें भाग्यवान्‌ रहा।।

Chapter 7

1. बाबुल के राजा बेलशस्सर के पहिले वर्ष में, दानिय्थेल ने पलंग पर स्वप्न देखा। तब उस ने वह स्वप्न लिखा, और बातोंका सारांश भी वर्णन किया। 
2. दानिय्थेल ने यह कहा, मैं ने रात को यह स्वप्न देखा कि महासागर पर चौमुखी आंधी चलने लगी। 
3. तब समुद्र में से चार बड़े बड़े जन्तु, जो एक दूसरे से भिन्न थे, निकल आए। 
4. पहिला जन्तु सिंह के समान या और उसके पंख उकाब के से थे। और मेरे देखते देखते उसके पंखोंके पर नीचे गए और वह भूमि पर से उठाकर, मनुष्य की नाईं पांवोंके बल खड़ा किया गया; और उसको मनुष्य का ह्रृदय दिया गया। 
5. फिर मैं ने एक और जन्तु देखा जो रीछ के समान या, और एक पांजर के बल उठा हुआ या, और सके मुंह में दांतोंके बीच तीन पसुली यीं; और लाग उस से कह रहे थे, उठकर बहुत मांस खा। 
6. इसके बाद मैं ने दृष्टि की और देखा कि चीते के समान एक और जन्तु है जिसकी पीठ पर पक्की के से चार पंख हैं; और उस जन्तु के चार सिर थे; और उसको अधिक्कारने दिया गया। 
7. फिर इसके बाद मैं ने स्वप्न में दृष्टि की और देखा, कि एक चौया जन्तु है जो भयंकर और डरावना और बहुत सामर्यी है; और उसके बड़े बड़े लोहे के दांत हैं; वह सब कुछ खा डालता है और चूर चूर करता है, और जो बच जाता है, उसे पैरोंसे रौंदता है। और वह सब पहिले जन्तुओं से भिन्न है; और उसके दस सींग हैं। 
8. मैं उन सींगोंको ध्यान से देख रहा या तो क्या देखा कि उनके बीच एक और छोटा सा सींग निकला, और उसके बल से उन पहिले सींगोंमें से तीन उखाड़े गए; फिर मैं ने देखा कि इस सींग में मनुष्य की सी आंखें, और बड़ा बोल बोलनेवाला मुंह भी है। 
9. मैं ने देखते देखते अन्त में क्या देखा, कि सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला, और सिर के बाल निर्मल ऊन सरीखे थे; उसका सिंहासन अग्निमय और उसके पहिथे धधकती हुई आग के से देख पड़ते थे। 
10. उस प्राचीन के सम्मुख से आग की धारा निकलकर बह रही यी; फिर हजारोंहजार लोग उसकी सेवा टहल कर रहे थे, और लाखोंलाख लोग उसके साम्हने हाजिर थे; फिर न्यायी बैठ गए, और पुस्तकें खोली गईं। 
11. उस समय उस सींग का बड़ा बोल सुनकर मैं देखता रहा, और देखते देखते अन्त में देखा कि वह जन्तु घात किया गया, और उसका शरीर धधकती हुई आग में भस्म किया गया। 
12. और रहे हुए जन्तुओं का अधिक्कारने ले लिया गया, परन्तु उनका प्राण कुछ समय के लिथे बचाया गया। 
13. मैं ने रात में स्वप्न में देखा, और देखो, मनुष्य के सन्तान सा कोई आकाश के बादलोंसमेत आ रहा या, और वह उस अति प्राचीन के पास पहुंचा, और उसको वे उसके समीप लाए। 
14. तब उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बालनेवाले सब उसके अधीन हों; उसकी प्रभुता सदा तक अटल, और उसका राज्य अविनाशी ठहरा।। 
15. और मुझ दानिय्थेल का मन विकल हो गया, और जो कुछ मैं ने देखा या उसके कारण मैं घबरा गया। 
16. तब जो लोग पास खड़े थे, उन में से एक के पास जाकर मैं ने उन सारी बातोंका भेद पूछा, उस न यह कहकर मुझे उन बातोंका अर्य बताया, 
17. उन चार बड़े बड़े जन्तुओं का अर्य चार राज्य हैं, जो पृय्वी पर उदय होंगे। 
18. परन्तु परमप्रधान के पवित्र लोग राज्य को पाएंगे और युगानयुग उसके अधिक्कारनेी बन रहेंगे।। 
19. तब मेरे मन में यह इच्छा हुई की उस चौथे जन्तु का भेद भी जान लूं जो और तीनोंसे भिन्न और अति भयंकर या और जिसके दांत लोहे के और नख पीतल के थे; वह सब कुछ खा डालता, और चूर चूर करता, और बचे हुए को पैरोंसे रौंद डालता या। 
20. फिर उसके सिर में के दस सींगोंका भेद, और जिस नथे सींग के निकलने से तीन सींग गिर गए, अर्यात्‌ जिस सींग की आंखें और बड़ा बोल बोलनेवाला मुंह और सब और सींगोंसे अधिक भयंकर या, उसका भी भेद जानने की मुझे इच्छा हुई। 
21. और मैं ने देखा या कि वह सींग पवित्र लोगोंके संग लड़ाई करके उन पर उस समय तक प्रबल भी हो गया, 
22. जब तब वह अति प्राचीन न आया, और परमप्रधान के पवित्र लोग न्यायी न ठहरे, और उन पवित्र लोगोंके राज्याधिक्कारनेी होने का समय न आ पहुंचा।। 
23. उस ने कहा, उस चौथे जन्तु का अर्य, एक चौया राज्य है, जो पृय्वी पर होकर और सब राज्योंसे भिन्न होगा, और सारी पृय्वी को नाश करेगा, और दांवकर चूर-चूर करेगा। 
24. और उन दस सींगोंका अर्य यह है, कि उस राज्य में से दास राजा उठेंगे, और उनके बाद उन पहिलोंसे भिन्न एक और राजा उठेगा, जो तीन राजाओं को गिरा देगा। 
25. और वह परमप्रधान के विरूद्ध बातें कहेगा, और परमप्रधान के पवित्र लोगोंको पीस डालेगा, और समयोंऔर व्यवस्या के बदल देने की आशा करेगा, वरन साढ़े तीन काल तक वे सब उसके वश में कर दिए जाएंगे। 
26. परन्तु, तब न्यायी बैठेंगे, और उसकी प्रभुता छीनकर मिटाई और नाश की जाएगी; यहां तक कि उसका अन्त ही हो जाएगा। 
27. तब राज्य और प्रभुता और धरती पर के राज्य की महिमा, परमप्रधान ही की प्रजा अर्यात्‌ उसके पवित्र लोगोंको दी जाएगी, उसका राज्य सदा का राज्य है, और सब प्रभुता करनेवाले उसके अधीन होंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे। 
28. इस बात का वर्णन मैं अब कर चुका, परन्तु मुझ दानिय्थेल के मन में बड़ी घबराहट बनी रही, और मैं भयभीत हो गया; और इस बात को मै। अपके मन में रखे रहा।।

Chapter 8

1. बेलशस्सर राजा के राज्य के तीसरे वर्ष में उस पहिले दर्शन के बाद एक और बात मुझ दानिय्थेल को दर्शन के द्वारा दिखाई गई। 
2. जब मैं एलाम नाम प्रान्त में, शूशन नाम राजगढ़ में रहता या, तब मैं ने दर्शन में देखा कि मैं ऊलै नदी के किनारे पर हूं। 
3. फिर मैं ने आंख उठाकर देखा, कि उस नदी के साम्हने दो सींगवाला एक मेढ़ा खड़ा है, उसके दोनोंसींग बड़े हैं, परन्तु उन में से एक अधिक बड़ा है, और जो बड़ा है, वह दूसरे के बाद निकला। 
4. मैं ने उस मेढ़े को देखा कि वह पश्चिम, उत्तर और दक्खिन की ओर सींग मारता है, और कोई जन्तु उसके साम्हने खड़ा नहीं रह सकता, और न उसके हाथ से कोई किसी को बचा सकता है; और वह अपक्की ही इच्छा के अनुसार काम करके बढ़ता जाता या।। 
5. मैं सोच ही रहा या, तो फिर क्या देखा कि एक बकरा पश्चिम दिशा से निकलकर सारी पृय्वी के ऊपर ऐसा फिर कि चलते समय भूमि पर पांव न छुआया और उस बकरे की आंखोंके बीच एक देखने योग्य सींग या। 
6. वह उस दो सींगवाले मेढ़े के पास जाकर, जिसको मैं ने नदी के साम्हने खड़ा देखा या, उस पर जलकर अपके पूरे बल से लपका। 
7. मैं ने देखा कि वह मेढ़े के निकट आकर उस पर फुंफलाया; और मेढ़े को मारकर उसके दोनोंसींगोंको तोड़ दिया; और उसका साम्हना करने को मेढ़े का कुछ भी वश न चला; तब बकरे ने उसको भूमि पर गिराकर रौंद डाला; और मेढ़े को उसके हाथ से छुड़ानेवाला कोई न मिला। 
8. तब बकरा अत्यन्त बड़ाई मारने लगा, और जब बलवन्त हुआ, तक उसका बड़ा सींग टूट गया, और उसकी सन्ती देखने योग्य चार सींग निकलकर चारोंदिशाओं की ओर बढ़ने लगे।। 
9. फिर इन में से एक छोटा सा सींग और निकला, जो दक्खिन, पूरब और शिरोमणि देश की ओर बहुत ही बढ़ गया। 
10. वह स्वर्ग की सेना तक बढ़ गया; और उस में से और तारोंमें से भी कितनोंको भूमि पर गिराकर रौंद डाला। 
11. वरन वह उस सेना के प्रधान तक भी बढ़ गया, और उसका नित्य होमबलि बन्द कर दिया गया; और उसका पवित्र वासस्यान गिरा दिया गया। 
12. और लोगोंके अपराध के कारण नित्य होमबलि के साय सेना भी उसके हाथ में कर दी गई, और उस सींग ने सच्चाई को मिट्टी में मिला दिया, और वह काम करते करते सफल हो गया। 
13. तब मैं ने एक पवित्र जन को बोलते सुना; फिर एक और पवित्र जन ने उस पहिले बोलनेवाले अपराध के विषय में जो कुछ दर्शन देखा गया, वह कब तक फलता रहेगा; अर्यात्‌ पवित्रस्यान और सेना दोनोंको रौंदा जाना कब तक होता रहेगा? 
14. और उस ने मुझ से कहा, जब तक सांफ और सवेरा दो हजार तीन सौ बार न हों, तब तक वह होता रहेगा; तब पवित्रस्यान शुद्ध किया जाएगा।। 
15. यह बात दर्शन मे देखकर, मैं, दानिय्थेल, इसके समझने का यत्न करने लगा; इतने में पुरूष के रूप धरे हुए कोई मेरे सम्मुख खड़ा हुआ देख पड़ा। 
16. तब मुझे ऊलै नदी के बीच से एक मनुष्य का शब्द सुन पड़ा, जो पुकारकर कहता या, हे जिब्राएल, उस जन को उसकी देखी हुई बातें समझा दे। 
17. तब जहां मैं खड़ा या, वहां वह मेरे निकट आया; औश्र् उसके आते ही मैं घबरा गया, और मुंह के बल गिर पड़ा। तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, उन देखी हुई बातोंको समझ ले, क्योंकि उसका अर्य अन्त ही के समय में फलेगा।। 
18. जब वह मुझ से बातें कर रहा या, तब मैं अपना मुंह भुमि की ओर किए हुए भारी नींद में पड़ा या, परन्तु उस ने मुझे छूकर सीधा खड़ा कर दिया। 
19. तब उस ने कहा, क्रोध भड़काने के अन्त के दिनोंमें जो कुछ होगा, वह मैं तुझे जताता हूं; क्योंकि अन्त के ठहराए हुए समय में वह सब पूरा हो जाएगा। 
20. जो दो सींगवाला मेढ़ा तू ने देखा है, उसका अर्य मादियोंऔर फारसियोंके राज्य से है। 
21. और वह रोंआर बकरा यूनान का राज्य है; और उसकी आंखोंके बीच जो बड़ा सींग निकला, वह पहिला राजा ठहरा। 
22. और वह सींग जो टूट गया और उसकी सन्ती जो चार सींग निकले, इसका अर्य यह है कि उस जाति से चार राज्य उदय होंगे, परन्तु उनका बल उस पहिले का सा न होगा। 
23. और उन राज्योंके अन्त समय में जब अपराधी पूरा बल पकड़ेंगे, तब क्रूर दृष्टिवाला और पकेली बूफनेवाला एक राजा उठेगा। 
24. उसका सामर्य्य बड़ा होगा, परन्तु उस पहिले राजा का सा नहीं; और वह अदभुत्‌ रीति से लोगोंको नाश करेगा, और सफल होकर काम करता जाएगा, और सामयिर्योंऔर पवित्र लोगोंके समुदाय को नाश करेगा। 
25. उसकी चतुराई के कारण उसका छल सफल होगा, और वह मन में फूलकर निडर रहते हुए बहुत लोगोंको नाश करेगा। वह सब हाकिमोंके हाकिम के विरूद्ध भी खड़ा होगा; परन्तु अन्त को वह किसी के हाथ स ेबिना मार खाए टूट जाएगा। 
26. सांफ और सवेरे के विषय में जो कुछ तू ने देखा और सुना है वह सच है; परन्तु जो कुछ तू ने दर्शन में देखा है उसे बन्द रख, क्योंकि वह बहुत दिनोंके बाद फलेगा।। 
27. तब मुझ दानिय्थेल का बल जाता रहा, और मैं कुछ दिन तक बीमार पड़ा रहा; तब मैं उठकर राजा का कामकाज फिर करने लगा; परन्तु जो कुछ मैं ने देखा या उस से मैं चकित रहा, क्योंकि उसका कोई समझानेवाला न या।।

Chapter 9

1. मादी झयर्ष का पुत्र दारा, जो कसदियोंके देश पर राजा ठहराया गया या, 
2. उसके राज्य के पहिले वर्ष में, मुझ दानिय्थेल ने शास्त्र के द्वारा समझ लिया कि यरूशलेम की उजड़ी हुई दशा यहोवा के उस वचन के अनुसार, जो यिर्मयाह नबी के पास पहुंचा या, कुछ वर्षोंके बीतने पर अर्यात्‌ सत्तर वर्ष के बाद पूरी हो जाएगी। 
3. तब मैं अपना मुख परमेश्वर की ओर करके गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहिन, राख में बैठकर वरदान मांगने लगा। 
4. मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार प्रार्यना की और पाप का अंगीकार किया, हे प्रभु, तू महान और भययोग्य परमेश्वर है, जो अपके प्रेम रखने और आज्ञा माननेवालोंके साय अपक्की वाचा को पूरा करता और करूणा करता रहता है, 
5. हम लोगोंने तो पाप, कुटिलता, दुष्टता और बलवा किया है, और तेरी आज्ञाओं और नियमोंको तोड़ दिया है। 
6. और तेरे जो दास नबी लोग, हमारे राजाओं, हाकिमों, पूर्वजोंऔर सब साधारण लोगोंसे तेरे नाम से बातें करते थे, उनकी हम ने नहीं सुनी। 
7. हे प्रभु, तू धर्मी है, परन्तु हम लोगोंको आज के दिन लज्जित होना पड़ता है, अर्यात्‌ यरूशलेम के निवासी आदि सब यहूदी, क्या समीप क्या दूर के सब इस्राएली लोग जिन्हें तू ने उस विश्वासघात के कारण जो उन्होंने तेरा किया या, देश देश में बरबस कर दिया है, उन सभोंको लज्जित होना पड़ता है। 
8. हे यहोवा हम लोगोंने अपके राजाओं, हाकिमोंऔर पूर्वजोंसमेत तेरे विरूद्ध पाप किया है, इस कारण हम को लज्जित होना पड़ता है। 
9. परन्तु, यद्यपि हम अपके परमेश्वर प्रभु से फिर गए, तौभी तू दयासागर और झमा की खानि है। 
10. हम तो अपके परमेश्वर यहोवा की शिझा सुनने पर भी उस पर नहीं चले जो उस ने अपके दास नबियोंसे हमको सुनाई। 
11. वरन सब इस्राएलियोंने तेरी व्यवस्या का उल्लंघन किया, और ऐसे हट गए कि तेरी नहीं सुनी। इस कारण जिस शाप की चर्चा परमेश्वर के दास मूसा की व्यवस्या में लिखी हुई है, वह शाप हम पर घट गया, क्योंकि हम ने उसके विरूद्ध पाप किया है। 
12. सो उस ने हमारे और न्यायियोंके विषय जो वचन कहे थे, उन्हें हम पर यह बड़ी विपत्ति डालकर पूरा किया है; यहां तक कि जैसी विपत्ति यरूशलेम पर पक्की है, वैसी सारी धरती पर और कहीं नहीं पक्की। 
13. जैसे मूसा की व्यवस्या में लिखा है, वैसे ही यह सारी विपत्ति हम पर आ पक्की है, तौभी हम अपके परमेश्वर यहोवा को मनाने के लिथे न तो अपके अधर्म के कामोंसे फिरे, और ने तेरी सत्य बातोंपर ध्यान दिया। 
14. इस कारण यहोवा ने सोच विचारकर हम पर विपत्ति डाली है; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा जितने काम करता है उन सभोंमें धर्मी ठहरता है; परन्तु हम ने उसकी नहीं सुनी। 
15. और अब, हे हमारे परमेश्वर, हे प्रभु, तू ने अपक्की प्रजा को मिस्र देश से, बली हाथ के द्वारा निकाल लाकर अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जो आज तक प्रसिद्ध है, परन्तु हम ने पाप किया है और दुष्टता ही की है। 
16. हे प्रभु, हमारे पापोंऔर हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामोंके कारण यरूशलेम की और तेरी प्रजा की, और हमारे आस पास के सब लोगोंकी ओर से नामधराई हो रही है; तौभी तू अपके सब धर्म के कामोंके कारण अपना क्रोध और जलजलाहट अपके नगर यरूशलेम पर से उतार दे, जो तेरे पवित्र पर्वत पर बसा है। 
17. हे हमारे परमेश्वर, अपके दास की प्रार्यना और गिड़गड़ाहट सुनकर, अपके उजड़े हुए पवित्रस्यान पर अपके मुख का प्रकाश चमका; हे प्रभु, अपके नाम के निमित्त यह कर। 
18. हे मेरे परमेश्वर, कान लगाकर सुन, आंख खोलकर हमारी उजड़ी हुई दशा और उस नगर को भी देख जो तेरा कहलाता है; क्योंकि हम जो तेरे साम्हने गिड़गिड़ाकर प्रार्यना करते हैं, सो अपके धर्म के कामोंपर नहीं, वरन तेरी बड़ी दया ही के कामोंपर भरोसा रखकर करते हैं। 
19. हे प्रभु, सुन ले; हे प्रभु, पाप झमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करता है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है; इसलिथे अपके नाम के निमित्त ऐसा ही कर।। 
20. इस प्रकार मैं प्रार्यना करता, और अपके और अपके इस्राएली जाति भाइयोंके पाप का अंगीकार करता हुआ, अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख उसके पवित्र पर्वत के लिथे गिड़गिड़ाकर बिनती करता ही या, 
21. तब वह पुरूष जिब्राएल जिस मैं ने उस समय देखा जब मुझे पहिले दर्शन हुआ या, उस ने वेग से उड़ने की आज्ञा पाकर, सांफ के अन्नबलि के समय मुझ को छू लिया; और मुझे समझाकर मेरे साय बातें करने लगा। 
22. उस ने मुझ से कहा, हे दानिय्थेल, मैं तुझे बुद्धि और प्रविणता देने को अभी निकल आया हूं। 
23. जब तू गिड़गिड़ाकर बिनती करने लगा, तब ही इसकी आज्ञा निकली, इसलिथे मैं तुझे बताने आया हूं, क्योंकि तू अति प्रिय ठहरा है; इसलिथे उस विषय को समझ ले और दर्शन की बात का अर्य बूफ ले।। 
24. तेरे लोगोंऔर तेरे पवित्र नगर के लिथे सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापोंको अन्त और अधर्म का प्रायश्चित्त किया जाए, और युगयुग की धामिर्कता प्रगट होए; और दर्शन की बात पर और भविष्यवाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए। 
25. सो यह जान और समझ ले, कि यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे। फिर बासठ सप्ताहोंके बीतने पर चौक और खाई समेत वह नगर कष्ट के समय में फिर बसाया जाएगा। 
26. और उन बासठ सप्ताहोंके बीतने पर अभिषिक्त पुरूष काटा जाएगा : और उसके हाथ कुछ न लगेगा; और आनेवाले प्रधान की प्रजा नगर और पवित्रस्यान को नाश तो करेगी। परन्तु उस प्रधान का अन्त ऐसा होगा जैसा बाढ़ से होता है; तौभी उसके अन्त तक लड़ाई होती रहेगी; क्योंकि उसका उजड़ जाना निश्चय ठाना गया है। 
27. और वह प्रधान एक सप्ताह के लिथे बहुतोंके संग दृढ़ वाचा बान्धेगा, परन्तु आधे सप्ताह के बीतने पर वह मेलबलि और अन्नबलि को बन्द करेगा; और कंगूरे पर उजाड़नेवाली घृणित वस्तुएं दिखाई देंगी और निश्चय से ठनी हुई बात के समाप्त होने तक परमेश्वर का क्रोध उजाड़नेवाले पर पड़ा रहेगा।।

Chapter 10

1. फारस देश के राजा कुस्रू के राज्य के तीसरे वर्ष में दानिय्थेल पर, जो बेलतशस्सर भी कहलाता है, एक बात प्रगट की गई। और वह बात सच यी कि बड़ा युद्ध होगा। उस ने इस बात को बूफ लिया, और उसको इस देखी हुई बात की समझ आ गई।। 
2. उन दिनोंमैं, दानिय्थेल, तीन सप्ताह तक शोक करता रहा। 
3. उन तीन सप्ताहोंके पूरे होने तक, मैं ने न तो स्वादिष्ट भोजन किया और न मांस वा दाखमधु अपके मुंह में रखा, और न अपक्की देह में कुछ भी तेल लगाया। 
4. फिर पहिले महिने के चौबीसवें दिन को जब मैं हिद्देकेल नाम नबी के तीर पर या, 
5. तब मैं ने आंखें उठाकर देखा, कि सन का वस्त्र पहिने हुए, और ऊफाज देश के कुन्दन से कमर बान्धे हुए एक पुरूष खड़ा है। 
6. उसका शरीर फीरोजा के समान, उसका मुख बिजली की नाईं, उसकी आंखें जलते हुए दीपक की सी, उसकी बाहें और पांव चमकाए हुए पीतल के से, और उसके वचनोंके शब्द भीड़ोंके शब्द का सा या। 
7. उसको केवल मुझ दानिय्थेल ही ने देखा, और मेरे संगी मनुष्योंको उसका कुछ भी दर्शन न हुआ; परन्तु वे बहुत ही यरयराने लगे, और छिपके के लिथे भाग गए। 
8. तब मैं अकेला रहकर यह अद्‌भुत दर्शन देखता रहा, इस से मेरा बल जाता रहा; मैं भयातुर हो गया, और मुझ में कुछ भी बल न रहा। 
9. तौभी मैं ने उस पुरूष के वचनोंका शब्द सुना, और जब वह मुझे सुन पड़ा तब मैं मुंह के बल गिर गया और गहरी नींद में भूमि पर औंधे मुंह पड़ा रहा।। 
10. फिर किसी ने अपके हाथ से मेरी देह को छुआ, और मुझे उठाकर घुटनोंऔर हथेलियोंके बल यरयराते हुए बैठा दिया। 
11. तब उस ने मुझ से कहा, हे दानिय्थेल, हे अति प्रिय पुरूष, जो वचन मैं तुझ से कहता हूं उसे समझ ले, और सीधा खड़ा हो, क्योंकि मैं अभी तेरे पास भेजा गया हूं। जब उस ने मुझ से यह वचन कहा, तब मैं खड़ा तो हो गया परन्तु यरयराता रहा। 
12. फिर उस ने मुझ से कहा, हे दानिय्थेल, मत डर, क्योंकि पहिले ही दिन को जब तू ने समझने-बूफने के लिथे मन लगाया और अपके परमेश्वर के साम्हने अपके को दीन किया, उसी दिन तेरे वचन सुने गए, और मैं तेरे वचनोंके कारण आ गया हूं। 
13. फारस के राज्य का प्रधान इक्कीस दिन तक मेरा साम्हना किए रहा; परन्तु मीकाएल जो मुख्य प्रधानोंमें से है, वह मेरी सहाथता के लिथे आया, इसलिथे मैं फारस के राजाओं के पास रहा, 
14. और जब मैं तुझे समझाने आया हूं, कि अन्त के दिनोंमें तेरे लोगोंकी क्या दशा होगी। क्योंकि जो दर्शन तू ने देखा है, वह कुछ दिनोंके बाद पूरा होगा।। 
15. जब वह पुरूष मुझ से ऐसी बातें कह चुका, तब मैं ने भूमि की ओर मुंह किया और चुपका रह गया। 
16. तब मनुष्य के सन्तान के समान किसी ने मेरे ओंठ छुए, और मैं मुंह खोलकर बालने लगा। और जो मेरे साम्हने खड़ा या, उस से मैं ने कहा, हे मेरे प्रभु, दर्शन की बातोंके कारण मुझ को पीड़ा सी उठी, और मुझ में कुछ भी बल नहीं रहा। 
17. सो प्रभु का दास, अपके प्रभु के साय क्योंकर बातें कर सके? क्योंकि मेरी देह में ने तो कुछ बल रहा, और न कुछ सांस ही रह गई।। 
18. तब मनुष्य के समान किसी ने मुझे छूकर फिर मेरा हियाव बन्धाया। 
19. और उस ने कहा, हे अति प्रिय पुरूष, मत डर, तुझे शान्ति मिले; तू दृढ़ हो और तेरा हियाव बन्धा रहे। जब उस ने यह कहा, तब मैं ने हियाव बान्धकर कहा, हे मेरे प्रभु, अब कह, क्योंकि तू ने मेरा हियाव बन्धाया है। 
20. तब उस ने कहा, क्या तू जानता है कि मैं किस कारण तेरे पास आया हूं? अब मैं फारस के प्रधार से लडने को लौंटृंगा; और जब मैं निकलूंगा, तब यूनाना का प्रधान आएगा। 
21. और जो कुछ सच्ची बातोंसे भरी हुई पुस्तक में लिखा हुआ है, वह मैं तुझे बताता हूं; उन प्रधानोंके विरूद्ध, तुम्हारे प्रधान मीकाएल को छोड़, मेरे संग स्यिर रहनेवाला और कोई भी नहीं है।।

Chapter 11

1. और दारा नाम मादी राजा के राज्य के पहिले वर्ष में उसको हियाव दिलाने और बल देने के लिथे मैं खड़ा हो गया ।। 
2. और अब मैं तुझ को सच्ची बात बताता हूं। देख, फारस के राज्य में अब तीन और राजा उठेंगे; और चौया राजा उन सभोंसे अधिक धनी होगा; और जब वह धन के कारण सामर्यी होगा, तब सब लोगोंको यूनान के राज्य के विरूद्ध उभारेगा। 
3. उसके बाद एक पराक्रमी राजा उठकर अपना राज्य बहुत बढ़ाएगा, और अपक्की इच्छा के अनुसार ही काम किया करेगा। 
4. और जब वह बड़ा होगा, तब उसका राज्य टूटेगा और चारोंदिशाओं में बटकर अलग अलग हो जाएगा; और न तो उसके राज्य की शक्ति ज्योंकी त्योंरहेगी और न उसके वंश को कुछ मिलेगा; क्योंकि उसका राज्य उखड़कर, उनकी अपेझा और लोगोंको प्राप्त होगा।। 
5. तब दक्खिन देश का राजा बल पकड़ेगा; परन्तु उसका एक हाकिम उस से अधिक बल पकड़कर प्रभुता करेगा; यहां तक कि उसकी प्रभुता बड़ी हो जाएगी। 
6. कई वर्षोंके बीतने पर, वे दोनोंआपस में मिलेंगे, और दक्खिन देश के राजा की बेटी उत्तर देश के राजा के पास शान्ति की वाचा बान्धने को आएगी; परन्तु उसका बाहुबल बना न रहेगा, और न वह राजा और न उसका नाम रहेगा; परन्तु वह स्त्री अपके पहुंचानेवालोंऔर अपके पिता और अपके सम्भालनेवालोंसमेत अलग कर दी जाएगी।। 
7. फिर उसकी जड़ोंमें से एक डाल उत्पन्न होकर उसके स्यान में बढ़ेगी; वह सेना समेत उत्तर के राजा के गढ़ में प्रवेश करेगा, ओश्र् उन से युद्ध करके प्रबल होगा। 
8. तब वह उसके देवताओं की ढली हुई मूरतों, और सोने-चान्दी के मनभाऊ पात्रोंको छीनकर मिस्र में ले जाएगा; इसके बाद वह कुछ वर्ष तक उत्तर देश के राजा के विरूद्ध हाथ रोके रहेगा। 
9. ृतब वह राजा दक्खिन देश के राजा के देश में आएगा, परन्तु फिर अपके देश में लौट जाएगा।। 
10. उसके पुत्र फगड़ा मचाकर बहुत से बड़े बड़े दल इकट्टे करेंगे, और उपण्डनेवाली नदी की नाईं आकर देश के बीच होकर जाएंगे, फिर लौटते हुए उसके गढ़ तक फगड़ा मचाते जाऐंगे। 
11. तब दक्खिन देश का राजा चिढ़ेगा, और निकलकर उत्तर देश के उस राजा से युद्ध करेगा, और वह राजा लड़ने के लिथे बड़ी भीड़ इकट्ठी करेगा, परन्तु वह भीड़ उसके हाथ में कर दी जाएगी। 
12. उस भीड़ को जीत करके उसका मन फूल उठेगा, और वह लाखोंलोगोंको गिराएगा, परन्तु वह प्रबल न होगा। 
13. क्योंकि उत्तर देश का राजा लौटकर पहिली से भी बड़ी भीड़ इकट्ठी करेगा; और कई दिनोंवरन वर्षोंके बीतने पर वह निश्चय बड़ी सेना और सम्पत्ति लिए हुए आएगा।। 
14. उन दिनोंमें बहुत से लोग दक्खिन देश के राजा के विरूद्ध उठेंगे; वरन तेरे लोगोंमें से भी बलात्कारी लोग उठ खड़े होंगे, जिस से इस दर्शन की बात पूरी हो जाएगी; परन्तु वे ठोकर खाकर गिरेंगे। 
15. तब उत्तर देश का राजा आकर किला बान्धेगा और दृढ़ नगर ले लेगा। और दक्खिन देश के न तो प्रधान खड़े रहेंगे और न बड़े वीर; क्योंकि किसी के खड़े रहने का बल न रहेगा। 
16. तब जो भी उनके विरूद्ध आएगा, वह अपक्की इच्छा पूरी करेगा, और वह हाथ में स्त्यानाश लिए हुए शिरोमणि देश में भी खड़ा होगा और उसका साम्हना करनेवाला कोई न रहेगा। 
17. तब वह अपके राज्य के पूर्ण बल समेत, कई सीधे लोगोंको संग लिए हुए आने लगेगा, और अपक्की इच्छा के अनुसार काम किया करेगा। और वह उसको एक स्त्री इसलिथे देगा कि उसका राज्य बिगाडा जाए; परन्तु वह स्यिर न रहेगी, न उस राजा की होगी। 
18. तब वह द्धीपोंकी ओर मुंह करके बहुतोंको ले लेगा; परन्तु एक सेनापति उसके अहंकार को मिटाएगा; वरन उसके अहंकार के अनुकूल उसे बदला देता। 
19. तब वह अपके देश के गढ़ोंकी ओर मुंह फेरेगा, और वह ठोकर खाकर गिरेगा, और कहीं उसका पता न रहेगा। 
20. तब उसके स्यान में कोई ऐसा उठेगा, जो शिरोमणि राज्य में अन्धेर करनेवाले को घुमाएगा; परन्तु योड़े दिन बीतने पर वह क्रोध वा युद्ध किए बिना ही नाश हो जाएगा। 
21. उसके स्यान में एक तुच्छ मनुष्य उठेगा, जिसकी राजप्रतिष्ठा पहिले तो न होगी, तौभी वह चैन के समय आकर चिकनी-चुपक्की बातोंके द्वारा राज्य को प्राप्त करेगा। 
22. तब उसकी भुजारूपी बाढ़ से लोग, वरन वाचा का प्रधान भी उसके साम्हने से बहकर नाश होंगे। 
23. क्योंकि वह उसके संग वाचा बान्धने पर भी छल करेगा, और योड़े ही लोगोंको संग लिए हुए चढ़कर प्रबल होगा। 
24. चैन के समय वह प्रान्त के उत्तम से उत्तम स्यानोंपर चढ़ाई करेगा; और जो काम न उसके पुरखा और न उसके पुरखाओं के पुरखा करते थे, उसे वह करेगा; और लूटी हुई धन-सम्पत्ति उन में बहुत बांटा करेगा। वह कुछ काल तक दृढ़ नगरोंके लेने की कल्पना करता रहेगा। 
25. तब वह दक्खिन देश के राजा के विरूद्ध बड़ी सेना लिए हुए अपके बल और हियाव को बढ़ाएगा, और दक्खिन देश का राजा अत्यन्त बड़ी सामर्यी सेना लिए हुए युद्ध तो करेगा, परन्तु ठहर न सकेगा, क्योंकि लोग उसके विरूद्ध कल्पना करेंगे। 
26. उसके भोजन के खानेवाले भी उसको हरवाएंगे; और यघपि उसकी सेना बाढ़ की नाईं चढ़ेंगी, तौभी उसके बहुत से लोग मर मिटेंगे। 
27. तब उन दोनोंराजाओं के मन बुराई करने में लगेंगे, यहां तक कि वे एक ही मेज पर बैठे हुए आपस में फूठ बोलेंगे, परन्तु इस से कुछ बन न पकेगा; क्योंकि इन सब बातोंका अन्त नियत ही समय में होनेवाला है। 
28. तब उत्तर देश का राजा बड़ी लूट लिए हुए अपके देश को लौटेगा, और उसका मन पवित्र वाचा के विरूद्ध उभरेगा, और वह अपक्की इच्छ पूरी करके अपके देश को लौट जाएगा।। 
29. नियत समय पर वह फिर दक्खिन देश की ओर जाएगा, परन्तु उस पिछली बार के समान इस बार उसका वश न चलेगा। 
30. क्योंकि कित्तियोंके जहाज उसके विरूद्ध आएंगे, और वह उदास होकर लौटेगा, और पवित्र वाचा पर चिढ़कर अपक्की इच्छा पूरी करेगा। वह लौटकर पवित्र वाचा के तोड़नेवालोंकी सुधि लेगा। 
31. तब उसके सहाथक खड़े होकर, दृढ़ पवित्र स्यान को अपवित्र करेंगे, और नित्य होमबलि को बन्द करेंगे। और वे उस घृणित वस्तु को खड़ा करेंगे जो उजाड़ करा देती है। 
32. और जो दुष्ट होकर उस वाचा को तोड़ेंगे, उनको वह चिकनी-चुपक्की बातें कह कहकर भक्तिहीन कर देगा; परन्तु जो लोग अपके परमेश्वर का ज्ञान रखेंगे, वे हियाव बान्धकर बड़े काम करेंगे। 
33. और लोगोंको सिखानेवाले बुद्धिमान जन बहुतोंको समझाएंगे, तौभी वे बहुत दिन तक तलवार से छिदकर और आग में जलकर, और बंधुए होकर और लुटकर, बड़े दु:ख में पके रहेंगे। 
34. जब वे दु:ख में पकेंगे तब योड़ा बहुत सम्भलेंगे, परन्तु बहुत से लोग चिकनी-चुपक्की बातें कह कहकर उन से मिल जाएंगे; 
35. और सिखानेवालोंमें से कितनें गिरेंगे, और इसलिथे गिरने पाएंगे कि जांचे जाएं, और निर्मल और उजले किए जाएं। यह दशा अन्त के समय तक बनी रहेगी, क्योंकि इन सब बातोंका अन्त नियत समय में होनेवाला है।। 
36. तब वह राजा अपक्की इच्छा के अनुसार काम करेगा, और अपके आप को सारे देवताओं से ऊंचा और बड़ा ठहराएगा; वरन सब देवताओं के परमेश्वर के विरूद्ध भी अनोखी बातें कहेगा। 
37. और जब तक परमेश्वर का क्रोध न हो जाए तब तक उस राजा का कार्य सफल होता रहेगा; क्योंकि जो कुछ निश्चय करके ठाना हुआ है वह अवश्य ही पूरा होनेवाला है।
38. वह अपके राजपद पर स्यिर रहकर दृढ़ गढ़ोंही के देवता का सम्मान करेगा, एक ऐसे देवता का जिसे उसके पुरखा भी न जानते थे, वह सोना, चान्दी, मणि और मनभावनी वस्तुएं चढ़ाकर उसका सम्मान करेगा। 
39. उस बिराने देवता के सहारे से वह अति दृढ़ गढ़ोंसे लड़ेगा, और जो कोई उसको माने उसे वह बड़ी प्रतिष्ठा देगा। ऐसे लोगोंको वह बहुतोंके ऊपर प्रभुता देगा, और अपके लाभ के लिए अपके देश की भूमि को बांट देगा।। 
40. अन्त के समय दक्खिन देश का राजा उसको सींग मारने लगेगा; परन्तु उत्तर देश का राजा उस पर बवण्डर की नाईं बहुत से रय-सवार और जहाज लेकर चढ़ाई करेगा; इस रीति से वह बहुत से देशोंमें फैल जाएगा, और उन में से निकल जाएगा। 
41. वह शिरोमणि देश में भी आएगा। और बहुत से देश उजड़ जाएंगे, परन्तु ऐदोमी, मोआबी और मुख्य मुख्य अम्मोनी आदि जातियोंके देश उसके हाथ से बच जाएंगे। 
42. वह कई देशोंपर हाथ बढ़ाएगा और मिस्र देश भी न बचेगा। 
43. वह मिस्र के सोने चान्दी के खजानोंऔर सब मनभावनी वस्तुओं का स्वामी हो जाएगा; और लूबी और कूशी लोग भी उसके पीछे हो लेंगे। 
44. उसी समय वह पूरब और उत्तर दिशाओं से समाचार सुनकर घबराएगा, और बड़े क्रोध में आकर बहुतोंको सत्यानाश करने के लिथे निकलेगा। 
45. और वह दोनोंसमुद्रोंके बीच पवित्र शिरोमणि पर्वत के पास अपना राजकीय तम्बू खड़ा कराएगा; इतना करने पर भी उसका अन्त जा जाएगा, और कोई उसका सहाथक न रहेगा।।

Chapter 12

1. उसी समय मीकाएल नाम बड़ा प्रधान, जो तेरे जाति-भाइयोंका पझ करने को खड़ा रहता है, वह उठेगा। तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ होगा; परन्तु उस समय तेरे लोगोंमें से जितनोंके नाम परमेश्वर की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे। 
2. और जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिथे, और कितने अपक्की नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिथे। 
3. तब सिखानेवालोंकी चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतोंको धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा की नाईं प्रकाशमान रहेंगे। 
4. परन्तु हे दानिय्थेल, तू इस पुस्तक पर मुहर करके इन वचनोंको अन्त समय तक के लिथे बन्द रख। और बहुत लोग पूछ-पाछ और ढूंढ-ढांढ करेंगे, और इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा।। 
5. यह सब सुन, मुझ दानिय्थेल ने दृष्टि करके क्या देखा कि और दो पुरूष खड़ें हैं, एक तो नदी के इस तीर पर, और दूसरा नदी के उस तीर पर है। 
6. यह सब सुन, मुझ दानिय्थेल ने दृष्टि करके क्या देशा कि और दो पुरूष खड़ें हैं, एक तो नदी के इस तीर पर, और दूसरा नदी के उस तीर पर है। 
7. तब जो पुरूष सन का वस्त्र पहिने हुए नदी के जल के ऊपर या, उस से उन पुरूषोंमें से एक ने पूछा, इन आश्चर्यकर्मोंका अन्त कब तक होगा? 
8. तब जो पुरूष सन का वस्त्र पहिने हुए नदी के जल के ऊपर या, उस ने मेरे सुनते दहिना और बांया अपके दोनोंहाथ स्वर्ग की ओर उठाकर, सदा जीवित रहनेवाले की शपय खाकर कहा, यह दशा साढ़े तीन काल तक ही रहेगी; और जब पवित्र प्रजा की शक्ति टूटते टूटते समाप्त हो जाएगी, तब थे बातें पूरी होंगी। 
9. उस ने कहा, हे दानिय्थेल चला जा; क्योंकि थे बातें अन्तसमय के लिथे बन्द हैं और इन पर मुहर दी हुई है। 
10. बहुत लोग तो अपके अपके को निर्मल और उजले करेंगे, और स्वच्छ हो जाएंगे; परन्तु दुष्ट लोग दुष्टता ही करते रहेंगे; और दुष्टोंमें से कोई थे बातें न समझेगा; परन्तु जो बुद्धिमान है वे ही समझेंगे। 
11. और जब से नित्य होमबलि उठाई जाएगी, और वह घिनौनी वस्तु जो उजाड़ करा देती है, स्यापित की जाएगी, तब से बारह सौ नब्बे दिन बीतेंगे। 
12. क्या ही धन्य है वह, जो धीरज धरकर तेरह सौ पैंतीस दिन के अन्त तक भी पहुंचे। 

13. अब तू जाकर अन्त तक ठहरा रह; और तू विश्रम करता रहेगा; और उन दिनोंके अन्त में तू अपके निज भाग पर खड़ा होगा।।
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