यहेजकेल (Ezekiel)
Chapter 1
1. तीसवें वर्ष के चौथे महीने के पांचवें दिन, मैं बंधुओं के बीच कबार नदी के तीर पर या, तब स्वर्ग खुल गया, और मैं ने परमेश्वर के दर्शन पाए।
2. यहोयाकीम राजा की बंधुआई के पांचवें वर्ष के चौथे महीने के पांचवें दिन को, कसदियोंके देश में कबार नदी के तीर पर,
3. यहोवा का वचन बूजी के पुत्र यहेजकेल याजक के पास पहुचा; और यहोवा की शक्ति उस पर वहीं प्रगट हुई।
4. जब मैं देखने लगा, तो क्या देखता हूँ कि उत्तर दिशा से बड़ी घटा, और लहराती हुई आग सहित बड़ी आंधी आ रही है; और घटा के चारोंओर प्रकाश और आग के बीचों-बीच से फलकाया हुआ पीतल सा कुछ दिखाई देता है।
5. फिर उसके बीच से चार जीवधारियोंके समान कुछ निकले। और उनका रूप मनुष्य के समान या,
6. परन्तु उन में से हर एक के चार चार मुख और चार चार पंख थे।
7. उनके पांव सीधे थे, और उनके पांवोंके तलुए बछड़ोंके खुरोंके से थे; और वे फलकाए हुए पीतल की नाई चमकते थे।
8. उनकी चारोंअलंग पर पंखोंके नीचे मनुष्य के से हाथ थे। और उन चारोंके मुख और पंख इस प्रकार के थे:
9. उनके पंख एक दूसरे से परस्पर मिले हुए थे; वे अपके अपके साम्हने सीधे ही चलते हुए मुड़ते नहीं थे।
10. उनके साम्हने के मुखोंका रूप मनुष्य का सा या; और उन चारोंके दहिनी ओर के मुख सिंह के से, बाई ओर के मुख बैल के से थे, और चारोंके पीछे के मुख उकाब पक्की के से थे।
11. उनके चेहरे ऐसे थे। और उनके मुख और पंख ऊपर की ओर अलग अलग थे; हर एक जीवधारी के दो दो पंख थे, जो एक दूसरे के पंखोंसे मिले हुए थे, और दो दो पंखोंसे उनका शरीर ढंपा हुआ या।
12. और वे सीधे अपके अपके साम्हने ही चलते थे; जिध्र आत्मा जाना चाहता या, वे उधर ही जाते थे, और चलते समय मुड़ते नहीं थे।
13. और जीबधारियोंके रूप अंगारोंऔर जलते हुए पक्कीतोंके समान दिखाई देते थे, और वह आग जीवधारियोंके बीच इधर उध्र चलती फिरती हुई बड़ा प्रकाश देती रही; और उस आग से बिजली निकलती यी।
14. और जीवधारियोंका चलना-फिरना बिजली का सा या।
15. जब मैं जीवधारियोंको देख ही रहा या, तो क्या देखा कि भूमि पर उनके पास चारोंमुखें की गिनती के अनुसार, एक एक पहिया या।
16. पहियोंका रूप और बनावट फीरोजे की सी यी, और चारोंका एक ही रूप या; और उनका रूप और बनावट ऐसी यी जैसे एक पहिथे के बीच दूसरा पहिया हो।
17. चलते समय वे अपक्की चारोंअलंगोंकी ओर चल सकते थे, और चलने में मुड़ते नहीं थे।
18. और उन चारोंपहियोंके घेरे बहुत बड़े और डरावने थे, और उनके घेरोंमें चारोंओर आंखें ही आंखें भरी हुई यीं।
19. और जब जीवधारी चलते थे, तब पहिथे भी उनके साय चलते थे; और जब जीवधारी भूमि पर से उठते थे, तब पहिथे भी उठते थे।
20. जिधर आत्मा जाना चाहती यी, उधर ही वे जाते, और और पहिथे जीवधारियोंके साय उठते थे; क्योंकि उनकी आत्मा पहियोंमें यी।
21. जब वे चलते थे तब थे भी चलते थे; और जब जब वे खड़े होते थे तब थे भी खड़े होते थे; और जब वे भूमि पर से उठते थे तब पहिथे भी उनके साय उठते थे; क्योंकि जीवधारियोंकी आत्मा पहियोंमें यी।
22. जीवधारियोंके सिरोंके ऊपर आकाश्मण्डल सा कुछ या जो बर्फ की नाई भयानक रीति से चमक्ता या, और वह उनके सिरोंके ऊपर फैला हुआ या।
23. और आकाशमण्डल के नीचे, उनके पंख एक दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे; और हर एक जीवधारी के दो दो और पंख थे जिन से उनके शरीर ढंपे हुए थे।
24. और उनके चलते समय उनके पंखोंकी फड़फड़ाहट की आहट मुझे बहुत से जल, वा सर्पशक्तिमान की वाणी, वा सेना के हलचल की सी सुनाई पड़ती यी; और जब वे खड़े होते थे, तब अपके पंख लटका लेते थे।
25. फिर उनके सिरोंके ऊपर जो आकाशमण्डल या, उसके ऊपर से एक शब्द सुनाई पड़ता या; और जब वे खड़े होते थे, तब अपके पंख लटका लेते थे।
26. और जो आकाशमण्डल उनके सिरोंके ऊपर या, उसके ऊपर मानो कुछ नीलम का बना हुआ सिंहासन या; इस सिंहासन के ऊपर मनुष्य के समान कोई दिखाई देता या।
27. और उसकी मानो कमर से लेकर ऊपर की ओर मुझे फलकाया हुआ पीतल सा दिखाई पड़ा, और उसके भीतर और चारोंओर आग सी दिखाई पड़ती यी; फिर उस मनुष्य की कमर से लेकर नीचे की ओर भी मुझे कुछ आग सी दिखाई पड़ती यी; और उसके चारोंओर प्रकाश या।
28. जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारोंओर का प्रकाश दिखाई देता या। यहोवा के तेज का रूप ऐसा ही या। और उसे देखकर, मैं मुंह के बल गिरा, तब मैं ने एक शब्द सुना जैसे कोई बातें करता है।
Chapter 2
1. और उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपके पांवोंके बल खड़ा हो, और मैं तुझ से बातें करूंगा।
2. जैसे ही उस ने मुझ से यह कहा, त्योंही आत्मा ने मुझ में समाकर मुझे पांवोंके बल खड़ा कर दिया; और जो मुझ से बातें करता या मैं ने उसकी सुनी।
3. और उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, मैं तुझे इस्राएलियोंके पास अर्यात् बलवा करनेवाली जाति के पास भेजता हूँ, जिन्होंने मेरे विरुद्ध बलवा किया है; उनके पुरखा और वे भी आज के दिल तक मेरा अपराध करते चले आए हैं।
4. इस पीढ़ी के लोग जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, वे निर्लज्ज और हठीले हैं;
5. और तू उन से कहना, प्रभु यहोवा योंकहता हे, इस से वे, जो बलवा करनेवाले घराने के हैं, चाहे वे सुनें व न सुनें, तौभी वे इतना जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्ता प्रगट हुआ है।
6. और हे मनुष्य के सन्तान, तू उन से न डरना; चाहे तुझे कांटों, ऊंटकटारोंओर बिच्चुओं के बीच भी रहना पके, तौभी उनके वचनोंसे न डरना; यद्यपि वे बलवई घराने के हैं, तौभी न तो उनके वचनोंसे डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो।
7. सो चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े बलवई हैं।
8. परन्तु हे मनुष्य के सन्तान, जो मैं तुझ से कहता हूँ, उसे तू सुन ले, उस बलवई घराने के समान तू भी बलवई न बनना; जो में तुझे देता हूँ, उसे मुंह खोलकर खा ले।
9. तब मैं ने दृष्टि की और क्या देख, कि मेरी ओर एक हाथ बढ़ा हुआ है और उस में एक पुसतक है।
10. उसको उस ने मेरे साम्हने खोलकर फैलाया, ओर वह दोनोंओर लिखी हुई यी; और जो उस में लिखा या, वे विलाप और शोक और दु:खभरे वचन थे।
Chapter 3
1. तब उस ने मुझ से कहा हे मनुष्य के सन्तान, जो तुझे मिला है उसे खा ले; अर्यात् इस पुस्तक को खा, तब जाकर इस्राएल के घराने से बातें कर।
2. सो मैं ने मुंह खोला और उस ने वह पुस्तक पुफे खिला दी।
3. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यह पुस्तक जो मैं तुझे देता हूँ उसे पचा ले, और अपक्की अन्तडिय़ां इस से भर ले। सो मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुंह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी।
4. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने के पास जाकर उनको मेरे वचन सुना।
5. ैक्यांकि तू किसी अनोखी बोली वा कठिन भाषावाली जाति के पास नहीं भेजा जाता है, परन्तु इस्राएल ही के घराने के पास भेजा जाता है।
6. अनोखी बोली वा कठिन भाषावाली बहुत सी जातियोंके पास जो तेरी बात समझ न सकें, तू नहीं भेजा जाता। नि:सन्देह यदि मैं तुझे ऐसोंके पास भेजता तो वे तेरी सुनते।
7. परन्तु इस्राएल के घरानेवाले तेरी सुनने से इनकार करेंगे; वे मेरी भी सुनने से इनकार करते हैं; क्योंकि इस्राएल का सारा घराना ढीठ और कठोर मन का है।
8. देख, मैं तेरे मुख को उनके मुख के साम्हने, और तेरे माथे को उनके माथे के साम्हने, ढीठ कर देता हूँ।
9. मैं तेरे माथे को हीरे के तुल्य कड़ा कर दोता हूँ जो चकमक पत्य्र से भी कड़ा होता है; सो तू उन से न डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो; क्योंकि वे बलवई घराने के हैं।
10. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, ेिकतने वचन मैं तुझ से कहूँ, वे सब ह्रृदय में रख और कानोंसे सुन।
11. और उन बंधुओं के पास जाकर, जो तेरे जाति भाई हैं, उन से बातें करना और कहना, कि प्रभु यहोवा योंकहता है; चाहे वे सुनें, व न सुनें।
12. तब आत्मा ने मुझे उठाया, और मैं ने अपके पीछे बड़ी घड़घड़ाहट के साय एक शब्द सुना, कि यहोवा के भवन से उसका तेज धन्य है।
13. और उसके साय ही उन जीवधारियोंके पंखोंका शब्द, जो एक दूसरे से लगते थे, और उनके संग के पहियोंका शब्द और एक बड़ी ही घड़घड़ाहट सुन पक्की।
14. सो आत्मा मुझे उठाकर ले गई, और मैं कठिन दु:ख से भरा हुआ, और मन में जलता हुआ चला गया; और यहोवा की शक्ति मुझ में प्रबल यी;
15. और मैं उन बंधुओं के पास आया जो कबार नदी के तीर पर तेलाबीब में रहते थे। और वहां मैं सात दिन तक उनके बीच व्याकुल होकर बैठा रहा।
16. सात दिन के व्यतीत होने पर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
17. हे मनुष्य के सन्तान मैं ने तुझे इस्राएल के घराने के लिथे पहरुआ नियुक्त किया है; तू मेरे मुंह की बात सुनकर, उन्हें मेरी ओर से चिताना।
18. जब मैं दुष्ट से कहूं कि तू निश्चय मरेगा, और यदि तू उसको न चिताए, और न दुष्ट से ऐसी बात कहे जिस से कि वह सचेत हो और अपना दुष्ट मार्ग छोड़कर जीवित रहे, तो वह दुष्ट अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा।
19. पर यदि तू दुष्ट को चिताए, और वह अपक्की दुष्टता ओर दुष्ट पार्ग से न फिरे, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा; परन्तु तू अपके प्राणोंको बचाएगा।
20. फिर जब धमीं जन अपके धर्म से फिरकर कुटिल काम करने लगे, और मैं उसके साम्हने ठोकर रखूं, तो वह मर जाएगा, क्योंकि तू ने जो उसको नहीं चिताया, इसलिथे वह अपके पाप में फंसा हुआ मरेगा; और जो धर्म के कर्म उस ने किए हों, उनकी सुधि न ली जाएगी, पर उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा।
21. परन्तु यदि तू धमीं को ऐसा कहकर चिताए, कि वह पाप न करे, और वह पाप से बच जाए, तो वह चितौनी को ग्रहण करने के कारण निश्चय जीवित रहेगा, और तू अपके प्राण को बचाएगा।
22. फिर यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई, और उस ने मुझ से कहा, उठकर मैदान में जा; और वहां मैं तुझ से बातें करूंगा।
23. तब मैं उठकर मैदान में गया, और वहां क्या देखा, कि यहोवा का प्रताप जैसा मुझे कबार नदी के तीर पर, वैसा ही यहां भी दिखाई पड़ता है; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
24. तब आत्मा ने मुझ में समाकर मुझे पांवोंके बल खड़ा कर दिया; फिर वह मुझ से कहने लगा, जा अपके घर के भीतर द्वार बन्द करके बैठ रह।
25. और हे मनुष्य के सन्तान, देख; वे लोग तुझे रस्सिक्कों जकड़कर बान्ध रखेंगे, और तू निकलकर उनके बीच जाने नहीं पाएगा।
26. और मैं तेरी जीभ तेरे तालू से लगाऊंगा; जिस से तू मौैन रहकर उनका डांटनेवाला न हो, क्योंकि वे बलवई घराने के हैं।
27. परन्तु जब जब मैं तुझ से बातें करूं, तब तब तेरे मुंह को खोलूंगा, और तू उन से ऐसा कहना, कि प्रभु यहोवा योंकहता है, जो सुनता है वह सुन ले और जो नहीं सुनता वह न सुने, वे तो बलवई घराने के हैं ही।
Chapter 4
1. और हे मनुष्य के सन्तान, तू एक ईट ले और उसे अपके साम्हने रखकर उस पर एक नगर, अर्यात् यरूशलेम का चित्र ख्ींच;
2. तब उसे घेर अर्यात् उसके विरुद्ध क़िला बना और उसके साम्हने दमदमा बान्ध; और छावनी डाल, और उसके चारोंओर युद्ध के यंत्र लगा।
3. तब तू लोहे की याली लेकर उसको लोहें की शहरपनाह मानकर अपके ओर उस नगर के बीच खड़ा कर; तब अपना मुंह उसके साम्हने करके उसे घेरवा, इस रीति से तू उसे घेर रखना। यह इस्राएल के घराने के लिथे चिन्ह ठहरेगा।
4. फिर तू अपके बांथें पांजर के बल लेटकर इस्राएल के घराने का अधर्म अपके ऊपर रख; क्योंकि जितने दिन तू उस पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने दिन तक उन लोगोंके अधर्म का भार सहता रह।
5. मैं ने उनके अधर्म के बषॉं के तुल्य तेरे लिथे दिन ठहराए हैं, अर्यात् तीन सौ नब्बे दिन; उतने दिन तक तू इस्राएल के घराने के अधर्म का भार सहता रह।
6. और जब इतने दिन पूरे हो जाएं, तब अपके दहिने पांजर के बल लेटकर यहूदा के घराने के अधर्म का भार सह लेना; मैं ने उसके लिथे भी और तेरे लिथे एक वर्ष की सन्ती एक दिन अर्यात् चालीस दिन ठहराए हैं।
7. और तू यरूशलेम के घेरने के लिथे बांह उघाड़े हुए अपना मुंह उघर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करना।
8. और देख, मैं तुझे रस्सिक्कों जकडूंगा, और जब तक उसके घेरने के दिन पूरे न हों, तब तक तू करवट न ले सकेगा।
9. और तू गेहूं, जव, सेम, मसूर, बाजरा, और कठिया गेहूं लेकर, एक बासन में रखकर उन से रोटी बनाया करना। जितने दिन तू अपके पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने अर्यात् तीन सौ नब्बे दिन तक उसे खाया करना।
10. और जो भेजन तू खाए, उसे तौल तौलकर खाना, अर्यात् प्रति दिन बीस बीस शेकेल भर खाया करता, और उसे समय समय पर खाना।
11. पानी भी तू मापकर पिया करना, अर्यात् प्रति दिन हीन का छठवां अंश पीना; और उसको समय समय पर पीना।
12. और अपना भोजन जब की रोटियोंकी नाई बनाकर खाया करना, और उसको मनुष्य की बिष्ठा से उनके देखते दनाया करना।
13. फिर यहोवा ने कहा, इसी प्रकार से इस्राएल उन जातियोंके बीच अपक्की अपक्की रोटी अशुद्धता से खाया करेंगे, जहां में उन्हें बरबस पहुंचाऊंगा।
14. तब मैं ने कहा, हाथ, यहोवा परमेश्वर देख, मेरा मन कभी अशुद्ध नहीं हुआ, और न मैं ने बचपन से लेकर अब तक अपक्की मृत्यु से मरे हुए वा फाड़े हुए पशु का मांस खाया, और न किसी प्रकार का घिनौना मांस मेरे पुंह में कभी गया है।
15. तब उस ने मुझ से कहा, देख, मैं ने तेरे लिथे मनुष्य की विष्ठा की सन्ती गोबर ठहराया है, और उसी से तू अपक्की रोठी बनाना।
16. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, देख, मैं यरूशलेम में अन्नरूपी आधार को दूर करूंगा; सो वहां के लोग तौल तोलकर और चिन्ता कर करके रोटी खाया करेंगे; और माप मापकर और विस्मित हो होकर पानी पिया करेंगे।
17. और इस से उन्हें रोटी और पानी की घटी होगी; और वे सब के सब घबराएंगे, और अपके अधर्म में फंसे हुए सूख् जाएंगे।
Chapter 5
1. और हे मनुष्य के सन्तान, एक पैनी तलवार ले, और उसे नाऊ के छुरे के काम में लाकर अपके सिर और दाढ़ी के बाल मूंड़ डाल; तब तौलने का कांटा लेकर बालोंके भाग कर।
2. जब नगर के घिरने के दिन पूरे हों, तब नगर के भीतर एक तिहाई आग में डालकर जलाना; और एक तिहाई लेकर चारोंओर तलवार से मारना; ओर एक तिहाई को पवन में उड़ाना, और मैं तलवार खींचकर उसके पीछे चलाऊंगा।
3. तब इन में से योड़े से बाल लेकर अपके कपके की छोर में बान्धना।
4. फिर उन में से भी योड़े से लेकर आग के बीच डालना कि वे आग में जल जाएं; तब उसी में से एक लो भड़ककर इस्राएल के सारे धराने में फैल जाएगी।
5. प्रभु यहोवा योंकहता है, यरूशलेम गेसी ही है; मैं ने उसको अन्यजातियोंके बीच में ठहराया, और वह चारोंओर देशोंसे घिरी है।
6. उस ने मेरे नियमोंके विरुद्ध काम करके अन्यजातियोंसे अधिक दुष्टता की, और मेरी विधियोंके विरुद्ध चारोंओर के देशोंके लोगोंसे अधिक बुराई की है; क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने, और वे मेरी विधियोंपर नहीं चले।
7. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, तुम लोग जो अपके चारोंओर की जातियोंसे अधिक हुल्लड़ मचाते, और न मेरी विधियोंपर चलते, न मेरे नियमोंको मानते और अपके चारोंओर की जातियोंके नियमोंके अनुसार भी न किया,
8. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं स्वयं तेरे विरुद्ध हूँ; और अन्यजातियोंके देखते मैं तेरे बीच न्याय के काम करूंगा।
9. और तेरे सब घिनौने कामोंके कारण मैं तेरे बीच ऐसा करूंगा, जैसा न अब तक किया है, और न भविष्य में फिर करूंगा।
10. सो तेरे बीच लड़केबाले अपके अपके बाप का, और बाप अपके अपके लड़केबालोंका मांस खाएंगे; और मैं तुझ को दण्ड दूंगा,
11. और तेरे सब बचे हुओं को चारोंओर तितर-बितर करूंगा। इसलिथे प्रभु यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की सौगन्ध, इसलिथे कि तू ने मेरे पवित्रस्यान को अपक्की सारी घिनौनी मूरतोंऔर सारे घिनौने कामोंसे अशुद्ध किया है, मैं तुझे घटाऊंगा, और तुझ पर दया की दृष्टि न करूंगा, और तुझ पर कुछ भी कोमलता न करूंगा।
12. तेरी एक तिहाई तो मरी से मरेगी, और तेरे बीच भूख से मर मिटेगी; एक तिहाई तेरे आस पास तलवार से मारी जाएगी; और एक तिहाई को मैं चारोंओर तितर-बितर करूंगा और तलवार खींचकर उनके पीछे चलाऊंगा।
13. इस प्रकार से मेरा कोप शान्त होगा, और अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से भड़काकर मैं शान्ति पाऊंगा; और जब मैं अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से भड़का चुकूं, तब वे जान लेंगे कि मुझ यहोवा ही ने जलन में आकर यह कहा है।
14. और मैं तुझे तेरे चारोंओर की जातियोंके बीच, सब बटोहियोंके देखते हुए उजाडूंगा, और तेरी नामधराई कराऊंगा।
15. सो जब मैं तुझ को कोप और जलजलाहट और रिसवाली घुड़कियोंके साय दण्ड दूंगा, तब तेरे चारोंओर की जातियोंके साम्हने नामधराई, ठट्ठा, शिझा और विस्मय होगा, क्योंकि मूफ यहोवा ने यह कहा है।
16. यह उस समय होगा, जब मैं उन लोगोंको नाश करने के लिथे तुम पर महंगी के तीखे तीर चलाकर, तुम्हारे बीच महंगी बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे अन्नरूपी आधार को दूर करूंगा।
17. और मैं तुम्हारे बीच महंगी और दुष्ट जन्तु भेजूंगा जो तुम्हें नि:सन्तान करेंगे; और मरी और खून तुम्हारे बीच चलते रहेंगे; और मैं तुम पर तलवार चलवाऊंगा, मुझ यहोवा ने यह कहा है।
Chapter 6
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा।
2. हे मतुष्य के सन्तान अपना मुख इस्राएल के पहाड़ोंकी ओर करके उनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
3. और कह, हे इस्राएल के पहाड़ो, प्रभु यहोवा का वचन सुनो ! प्रभु यहोवा पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंसे, और नालोंऔर तराइयोंसे योंकहता है, देखो, मैं तुम पर तलवार चलवाऊंगा, और तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यानोंको नाश करूंगा।
4. तुम्हारी वेदियां उजड़ेंगी और तुम्हारी सूर्य की प्रतिमाएं तोड़ी जाएंगी; और मैं तुम में से मारे हुओं को तुम्हारी मूरतोंके आगे फेंक दूंगा।
5. मैं इस्राएलियोंकी लोयोंको उनकी मूरतोंके साम्हने रखूंगा, और उनकी हड्डियोंको तुम्हारी वेदियोंके आस पास छितरा दूंगां
6. तुम्हारे जितने बसाए हुए नगर हैं, वे सब ऐसे उजड़ जाएंगे, कि तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यान भी उजाड़ हो जाएंगे, तुम्हारी वेदियां उजड़ेंगी और ढाई जाएंगी, तुम्हारी मूरतें जाती रहेंगी और तुम्हारी सूर्य की प्रतिमाएं काटी जाएंगी; और तुम्हारी सारी कारीगरी मिटाई जाएगी।
7. और तुम्हारे बीच मारे हुए गिरेंगे, और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
8. तौभी मैं कितनोंको बचा रखूंगा। सो जब तुम देश देश में तितर-बितर होगे, तब अन्यजातियोंके बीच तुम्हारे कुछ लोग तलवार से बच जाएंगे।
9. और वे बचे हुए जोग, उन जातियोंके बीच, जिन में वे बंधुए होकर जाएंगे, मुझे स्मरण करेंगे; और यह भी कि हमारा व्यभिचारी ह्रृदय यहोवा से कैसे हट गया है और व्यभिचारिणी की सी हमारी आंखें मूरतोंपर कैसी लगी हैं जिस से यहोवा का मन टूटा है। इस रीति से उन बुराइयोंके कारण, जो उन्होंने अपके सारे घिनौने काम करके की हैं, वे अपक्की दृष्टि में घिनौने ठहरेंगे।
10. तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ, और उनकी सारी हानि करने को मैं ने जो यह कहा है, उसे व्यर्य नहीं कहा।
11. प्रभु यहोवा योंकहता है, कि अपना हाथ मारकर और अपना पांव पटककर कह, इस्राएल के घराने के सारे घिनौने कामोंपर हाथ, हाथ, क्योंकि वे तलवार, भूख, और मरी से नाश हो जाएंगे।
12. जो दूर हो वह मरी से मरेगा, और जो निकट हो वह तलवार से मार डाला जाएगा; और जो बचकर नगर में रहते हुए घेरा जाए, वह भूख से मरेगा। इस भांति मैं अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से उतारूंगा।
13. और जब हर एक ऊंची पहाड़ी और पहाड़ोंकी हर एक चोटी पर, और हर एक हरे पेड़ के नीचे, और हर एक घने बांजवृझ की छाया में, जहां जहां वे अपक्की सब मूरतोंको सुखदायक सुगन्ध द्रव्य चढ़ाते हैं, वहां उनके मारे हुए लोग अपक्की वेदियोंके आस पास अपक्की मूरतोंके बीच में पके रहेंगे; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
14. मैं अपना हाथ उनके विरुद्ध बढ़ाकर उस देश को सारे घरोंसमेत जंगल से ले दिबला की ओर तक उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 7
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, प्रभु यहोवा इस्राएल की भूमि के विषय में योंकहता है, कि अन्त हुआ; चारोंकोनोंसमेत देश का अन्त आ गया है।
3. तेरा अन्त भी आ गया, और मैं अपना कोप तुझ पर भड़काकर तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा; और तेरे सारे घिनौने कामोंका फल तुझे दूंगा।
4. मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी, और न मैं कोतलता करूंगा; और जब तक तेरे घिनौने पाप तुझ में बने रहेंगे तब तक मैं तेरे चालचलन का फल तुझे दूंगा। तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
5. प्रभु यहोवा योंकहता है, विपत्ति है, एक बड़ी विपत्ति है ! देखो, वह आती है।
6. अन्त आ गया है, सब का अन्त आया है; वह तेरे विरुद्ध जागा है। देखो, वह आता है।
7. हे देश के निवासी, तेरे लिथे चक्र घूम चुका, समय आ गया, दिन निकट है; पहाड़ोंपर आनन्द के शब्द का दिन नहीं, हुल्लड़ ही का होगा।
8. अब योड़े दिनोंमें मैं अपक्की जलजलाहट तुझ पर भड़काऊंगा, और तुझ पर पूरा कोप उण्डेलूंगा और तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा। और तेरे सारे घिनौने कामोंका फल तुझे भुगताऊंगा।
9. मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी और न मैं तुझ पर कोपलता करूंगा। मैं तेरी चालचलन का फल तुझे भुगताऊंगा, और तेरे घिनौने पाप तुझ में बने रहेंगे। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा दण्ड देनेवाला हूँ।
10. देखो, उस दिन को देखो, वह आता है ! चक्र घूम चुका, छड़ी फूल चुकी, अभिमान फूला है।
11. उपद्रव बढ़ते बढ़ते दुष्टता का दण्ड बन गया; उन में से कोई न बचेगा, और न उनकी भीड़-भाड़, न उनके धन में से कुछ रहेगा; और न उन में से किसी के लिथे विलाप सुन पकेगा।
12. समय आ गया, दिन निकट आ गया है; न तो मोल लेनेवाला आनन्द करे और न बेचनेवाला शोक करे, क्योंकि उनकी सारी भीड़ पर कोप भड़क उठा है।
13. चाहे वे जीवित रहें, तौभी बेचनेवाला बेची हुई वस्तु के पास कभी लौटने न पाएगा; क्योंकि दर्शन की यह बात देश की सारी भीड़ पर घटेगी; कोई न लौटेगा; कोई भी मनुष्य, जो अधर्म में जीवित रहता है, बल न पकड़ सकेगा।
14. उन्होंने नरसिंगा फूंका और सब कुछ तैयार कर दिया; परन्तु युद्ध में कोई नहीं जाता क्योंकि देश की सारी भीड़ पर मेरा कोप भड़का हुआ है।
15. बाहर तलवार और भीतर महंगी और मरी हैं; जो मैदान में हो वह तलवार से मरेगा, और जो नगर में हो वह भूख और मरी से मारा जाएगा।
16. और उन में से जो बच निकलेंगे वे बचेंगे तो सही परन्तु अपके अपके अधर्म में फसे रहकर तराइयोंमें रहनेवाले कबूतरोंकी नाई पहाड़ोंके ऊपर विलाप करते रहेंगे।
17. सब के हाथ ढीले और सब के घुटने अति निर्बल हो जाएंगे।
18. और वे कमर में टाट कसेंगे, और उनके रोए खड़े होंगे; सब के मुंह सूख जाएंगे और सब के सिर मूंड़े जाएंगे।
19. वे अपक्की चान्दी सड़कोंमें फेंक देंगे, और उनका सोना अशुद्ध वस्तु छहरेगा; यहोवा की जलन के दिन उनका सोना चान्दी उनको बचा न सकेगी, न उस से उनका जी सन्तुष्ट होगा, न उनके पेट भरेंगे। क्योंकि वह उनके अधर्म के ठोकर का कारण हुआ है।
20. उनका देश जो शोभायमान और शिरोमणि या, उसके विषय में उन्होंने गर्व ही गर्व करके उस में अपक्की घृणित वस्तु ओं की मूरतें, और घृणित वस्तुएं बना रखीं, इस कारण मैं ने उसे उनके लिथे अशुद्ध वस्तु ठहराया हे।
21. और मैं उसे लूटने के लिथे परदेशियोंके हाथ, और घन छाीनने के लिथे पृय्वी के बुष्ट लोगोंके वश में कर दूंगा; और वे उसे अपवित्र कर डालेंगे।
22. मैं उन से मुंह फेर लूंगा, तब वे मेरे रझित स्यान को अपवित्र करेंगे; डाकू उस में घुसकर उसे अपवित्र करेंगे;
23. एक सांकल बना दे, क्योंकि देश अन्याय की हत्या से, और नगर उपद्रव से भरा हुआ है।
24. मैं अन्यजातियोंके बुरे से बुरे लोगोंको लाऊंगा, जो उनके घरोंके स्वामी हो जाएंगे; और मैं सामयिर्योंका गर्व तोड़ दूंगा और उनके पवित्रस्यान अपवित्र किए जाएंगे।
25. सत्यानाश होने पर है तब ढूंढ़ने पर भी उन्हें शान्ति न मिलेंगी।
26. विपत्ति पर विपत्ति आएगी और उड़ती हुई चर्चा पर चर्चा सुनाई पकेगी; और लोग भविष्यद्वक्ता से दर्शन की बात पूछेंगे, परन्तु याजक के पास से व्यवस्या, और पुरनिथे के पास से सम्मति देने की शक्ति जाती रहेगी।
27. राजा तो शोक करेगा, और रईस उदासीरूपी वस्त्र पहिनेंगे, और देश के लोगोंके हाथ ढीले पकेंगे। मैं उनके चलन के अनुसार उन से बर्ताव करूंगा, और उनकी कमाई के समान उनको दण्ड दूंगा; तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 8
1. फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पांचवें दिन को जब मैं अपके घर में बैठा या, और यहूदियोंके पुरदिथे मेरे साम्हने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
2. और मैं ने देखा कि आग का सा एक रूप दिखई देता है; उसकी कमर से नीचे की ओर आग है, और उसकी कमर से ऊपर की ओर फलकाए हुए पीतल की फलक सी कुछ है।
3. उस ने हाथ सा कुछ बढ़ाकर मेरे सिर के बाल पकड़े; तब आत्मा ने मुझे पृय्वी और आकाश के बीच में उठाकर परमेश्वर के दिखाए हुए दर्शनोंमें यरूशलेम के मन्दिर के भीतर, आंगन के उस फाटक के पास पहुचा दिया जिसका मुंह उत्तर की ओर है; और जिस में उस जलन उपजानेवाली प्रतिमा का स्यान या जिसके कारण द्वेष उपजता है।
4. फिर वहां इस्राएल के परमेश्वर का तेज वैसा ही या जैसा मैं ने मैदान में देखा या।
5. उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपक्की आंखें उत्तर की ओर उठाकर देख। सो मैं ने अपक्की आंखें उत्तर की ओर उठाकर देखा कि वेदी के फाटक की उत्तर की ओर उसके प्रवेशस्यान ही में वह डाह उपजानेवाली प्रतिमा है।
6. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू देखता है कि थे लोग क्या कर रहे हैं? इस्राएल का घराना क्या ही बड़े घृणित काम यहां करता है, ताकि मैं अपके पवित्रस्यान से दूर हो जाऊं; परन्तु तू इन से भी अधिक घृणित काम देखेगा।
7. तब वह मुझे आंगन के द्वार पर ले गया, और मैं ने देखा, कि भीत में एक छेद है।
8. तब उस ने मूफ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, भीत को फोड़; तो मैं ने भीत को फोड़कर क्या देखा कि एक द्वार है
9. उस ने मुझ से कहा, भीतर जाकर देख कि थे लोग यहां कैसे कैसे और अति घृणित काम कर रहे हैं।
10. सो मैं ने भीतर जाकर देखा कि चारोंओर की भीत पर जाति जाति के रेंगनेवाले जन्तुओं और घृणित पशुओं और इस्राएल के घराने की सब मूरतोंके चित्र खिचे हुए हैं।
11. और इस्राएल के घराने के पुरनियोंमें से सत्तर पुरुष जिन के बीच में शापान का पुत्र याजन्याह भी है, वे उन चित्रोंके साम्हने खड़े हैं, और हर एक पुरुष अपके हाथ में घूपदान लिए हुए है; और धूप के धूएं के बादल की सुगन्ध उठ रही है।
12. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिथे अपक्की अपक्की नक्काशीवाली कोठरियोंके भीतर अर्यात् अन्धिक्कारने में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता; यहोवा ने देश को त्याग दिया है।
13. फिर उस ने मुझ से कहा, तू इन से और भी अति घृणित काम देखेगा जो वे करते हैं।
14. तब वह मुझे यहोवा के भवन के उस फाटक के पास ले गया जो उत्तर की ओर या और वहां स्त्रियाँ बैठी हुई तम्मूज के लिथे रो रही यीं।
15. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर इन से भी बड़े घृणित काम तू देखेगा।
16. तब वह मुझे यहोवा के भवन के भीतरी आंगन में ले गया; और वहां यहोवा के भवन के द्वार के पास ओसारे और वेदी के बीच कोई पच्चीस पुरुष अपक्की पीठ यहोवा के भवन की ओर और अपके मुख पूर्व की ओर किए हुए थे; और वे पूर्व दिशा की ओर सूर्य को दण्डवत् कर रहे थे।
17. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा? क्या यहूदा के घराने के लिथे घृणित कामोंका करना जो वे यहां करते हैं छोटी बात है? उन्होंने अपके देश को उपद्रव से भर दिया, और फिर यहां आकर मुझे रिस दिलाते हैं। वरन वे डाली को अपक्की नाक के आगे लिए रहते हैं।
18. इसलिथे मैं भी जलजलाहट के साय काम करूंगा, न मैं दया करूंगा और न मैं कोमलता करूंगा; और चाहे वे मेरे कानोंमें ऊंचे शब्द से पुकारें, तौभी मैं उनकी बात न सुनूंगा।
Chapter 9
1. फिर उस ने मेरे कानोंमें ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा, नगर के अधिक्कारनेियोंको अपके अपके हाथ में नाश करने का हयियार लिए हुए निकट लाओ।
2. इस पर छ:पुरुष, उत्तर की ओर ऊपक्की फाटक के मार्ग से अपके अपके हाथ में घात करने का हयियार लिए हुए आए; और उनके बीच सन का वस्त्र पहिने, कमर में लिखने की दवात बान्धे हुए एक और पुरुष या; और वे सब भवन के भीतर जाकर पीतल की वेदी के पास खड़े हुए।
3. और इस्राएल के परमेश्वर का तेज करूबोंपर से, जिनके ऊपर वह रहा करता या, भवन की डेवढ़ी पर उठ आया या; और उस ने उस सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष को जो कमर में दवात बान्धे हुए या, पुकारा।
4. और यहोवा ने उस से कहा, इस यरूशलेम नगर के भीतर इधर उधर जाकर जितने मनुष्य उन सब घृणित कामोंके कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते हैं, उनके मायोंपर चिन्ह कर दे।
5. तब उस ने मेरे सुनते हुए दूसरोंसे कहा, नगर में उनके पीछे पीछे चलकर मारते जाओ; किसी पर दया न करना और न कोमलता से काम करना।
6. बूढ़े, युवा, कुंवारी, बालबच्चे, स्त्रियां, सब को मारकर नाश करो, परन्तु जिस किसी मनुष्य के माथे पर वह चिन्ह हो, उसके निकट न जाना। और मेरे पवित्रस्यान ही से आरम्भ करो। और उन्होंने उन पुरनियोंसे आरम्भ किया जो भवन के साम्हने थे।
7. फिर उस ने उन से कहा, भवन को अशुद्ध करो, और आंगनोंको लोयोंसे भर दो। चलो, बाहर निकलो। तब वे निकलकर नगर में मारने लगे।
8. जब वे मार रहे थे, और मैं अकेला रह गया, तब मैं मुंह के बल गिरा और चिल्लाकर कहा, हाथ प्रभु यहोवा ! क्या तू अपक्की जलजलाहट यरूशलेम पर भड़काकर इस्राएल के सब बचे हुओं को भी नाश करेगा?
9. तब उस ने मुझ से कहा, इस्राएल और यहूदा के घरानोंका अधर्म अत्यन्त ही अधिक है, यहां तक कि देश हत्या से और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हें कि यहोवा ने पृय्वी को त्याग दिया और यहोवा कुछ नहीं देखता।
10. इसलिथे उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।
11. तब मैं ने क्या देखा, कि जो पुरुष सन का वस्त्र पहिने हुए और कमर में दवात बान्धे या, उस ने यह कहकर समाचार दिया, जैसे तू ने आज्ञा दी, मैं ने वैसे ही किया है।
Chapter 10
1. इसके बाद मैं ने देखा कि करूबोंके सिरोंके ऊपर जो आकाशमण्डल है, उस में नीलमणि का सिंहासन सा कुछ दिखाई देता है।
2. तब यहोवा ने उस सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष से कहा, घूमनेवाले पहियोंके बीच करूबोंके नीचे जा और अपक्की दोनोंमुट्ठियोंको करूबोंके बीच के अंगारोंसे भरकर नगर पर छितरा दे। सो वह मेरे देखते देखते उनके बीच में गया।
3. जब वह पुरुष भीतर गया, तब वे करुब भवन की दक्खिन ओर खड़े थे; और बादल भीतरवाले आंगन में भरा हुआ या।
4. तब यहोवा का तेज करूबोंके ऊपर से उठकर भवन की डेवढ़ी पर आ गया; और बादल भवन में भर गया; और वह आंगन यहोवा के तेज के प्रकाश से भर गया।
5. और करूबोंके पंखोंका शब्द बाहरी आंगन तक सुनाई देता या, वह सर्वशक्तिमान् परमेश्वर के बोलने का सा शब्द या।
6. जब उस ने सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष को घूमनेवाले पहियोंके भीतर करूबोंके बीच में से आग लेने की आज्ञा दी, तब वह उनके बीच में जाकर एक पहिथे के पास खड़ा हुआ।
7. तब करूबोंके बीच से एक करूब ने अपना हाथ बढ़ाकर, उस आग में से जो करूबोंके बीच में यी, कुछ उठाकर सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष की मुट्ठी में दे दी; और वह उसे लेकर बाहर चला गया।
8. करूबोंके पंखोंके नीचे तो मनुष्य का हाथ सा कुछ दिखाई देता या।
9. तब मैं ने देखा, कि करूबें के पास चार पहिथे हैं; अर्यात् एक एक करूब के पास एक एक पहिया है, और पहियोंका रूप फीरोज़ा का सा है।
10. और उनका ऐसा रूप है, कि चारोंएक से दिखाई देते हैं, जैसे एक पहिथे के बीच दूसरा पहिया हो।
11. चलने के समय वे अपक्की चारोंअलंगोंके बल से चलते हैं; और चलते समय मुड़ते नहीं, वरन जिधर उनका सिर रहता है वे उधर ही उसके पीछे चलते हैं और चलते समय वे मुड़ते नहीं।
12. और पीठ हाथ और पंखोंसमेत करूबोंका सारा शरीर और जो पहिथे उनके हैं, वे भी सब के सब चारोंओर आंखोंसे भरे हुए हैं।
13. मेरे सुनते हुए इन पहियोंको चक्कर कहा गया, अर्यात् घूमनेवाले पहिथे।
14. और एक एक के चार चार मुख थे; एक मुख तो करूब का सा, दूसरा पनुष्य का सा, तीसरा सिंह का सा, और चौया उकाब पक्की का सा।
15. और करूब भूमि पर से उठ गए। थे वे ही जीवधारी हैं, जो मैं ने कबार नदी के पास देखे थे।
16. और जब जब वे करूब चलते थे तब तब वे पहिथे उनके पास पास चलते थे; और जब जब करूब पृय्वी पर से उठने के लिथे अपके पंख उठाते तब तब पहिथे उनके पास से नहीं मुड़ते थे।
17. जब वे खड़े होते तब थे भी खड़े होते थे; और जब वे उठते तब थे भी उनके संग उठते थे; क्योंकि जीवधारियोंकी आत्मा इन में भी रहती यी।
18. यहोवा का तेज भवन की डेवढ़ी पर से उठकर करूबोंके ऊपर ठहर गया।
19. और करूब अपके पंख उठाकर मेरे देखते देखते पृय्वी पर से उठकर निकल गए; और पहिथे भी उनके संग संग गए, और वे सब यहोवा के भवन के पूवीं फाटक में खड़े हो गए; और इस्राएल के परमेश्वर का तेज उनके ऊपर ठहरा रहा।
20. थे वे ही जीवधारी हैं जो मैं ने कबार नदी के पास इस्राएल के परमेश्वर के नीचे देखे थे; और मैं ने जान लिया कि वे भी करूब हैं
21. हर एक के चार मुख और चार पंख और पंखोंके नीचे मनुष्य के से हाथ भी थे।
22. और उनके मुखोंका रूप वही है जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा या। और उनके मुख ही क्या वरन उनकी सारी देह भी वैसी ही यी। वे सीधे अपके अपके साम्हने ही चलते थे।
Chapter 11
1. तब आत्मा ने मुझे उठाकर यहोवा के भवन के पूवीं फाटक के पास जिसका मुंह पूवीं दिशा की ओर है, पहुंचा दिया; और वहां मैं ने क्या देखा, कि फाटक ही में पच्चीस पुरुष हैं। और मैं ने उनके बीच अज्जूर के पुत्र याजन्याह को और बनायाह के पुत्र पलत्याह को देखा, जो प्रजा के प्रधान थे।
2. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, जो मनुष्य इस नगर में अनर्य कल्पना और बुरी युक्ति करते हैं वे थे ही हैं।
3. थे कहते हैं, घर बनाने का समय निकट नहीं, यह नगर हंडा और हम उस में का मांस है।
4. इसलिथे हे मनुष्य के सन्तान, इनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर, भविष्यद्वाणी।
5. तब यहोवा का आत्मा मुझ पर उतरा, और मुझ से कहा, ऐसा कह, यहोवा योंकहता है, कि हे इस्राएल के घराने तुम ने ऐसा ही कहा हे; जो कुछ तुम्हारे मन में आता है, उसे मैं जानता हूँ।
6. तुम ने तो इस नगर में बहुतोंको मार डाला वरन उसकी सड़कोंको लोयोंसे भर दिया है।
7. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, कि जो मनुष्य तुम ने इस में मार डाले हैं, उनकी लोथें ही इस नगररूपी हंडे में का मांस है; और तुम इसके बीच से निकाले जाओगे।
8. तुम तलवार से डरते हो, और मैं तुम पर तलवार चलाऊंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. मैं तुम को इस में से निकालकर परदेशियोंके हाथ में कर दूंगा, और तुम को दण्ड दिलाऊंगा।
10. तुम तलवार से मरकर गिरोगे, और मैं तुम्हारा मुकद्दमा, इस्राएल के देश के सिवाने पर चुकाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
11. यह नगर तुम्हारे लिथे हंडा न बनेगा, और न तुम इस में का मांस होगे; मैं तुम्हारा मुक़द्दमा इस्राएल के देश के सिवाने पर चुकाऊंगा।
12. तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ; तुम तो मेरी विधियोंपर नहीं चले, और मेरे नियमोंको तुम ने नहीं माना; परन्तु अपके चारोंओर की अन्यजातियोंकी रीतियोंपर चले हो।
13. मैं इस प्रकार की भविष्यद्वाणी कर रहा या, कि बनायाह का पुत्र पलत्याह मर गया। तब मैं मुंह के बल गिरकर ऊंचे शब्द से चिल्ला उठा, और कहा, हाथ प्रभु यहोवा, क्या तू इस्राएल के बचे हुओं को सत्यानाश कर डालेगा?
14. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
15. हे मनुष्य के सन्तान, यरूशलेम के निवासियोंने तेरे निकट भाइयोंसे वरन इस्राएल के सारे घराने से भी कहा है कि तुम यहोवा के पास से दूर हो जाओ; यह देश हमारे ही अधिक्कारने में दिया गया है।
16. परन्तु तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है कि मैं ने तुम को दूर दूर की जातियोंमें बसाया और देश देश में तितर-बितर कर दिया तो है, तौभी जिन देशोंमें तुम आए हुए हो, उन में मैं स्वयं तुम्हारे लिथे योड़े दिन तक पवित्रस्यान ठहरूंगा।
17. इसलिथे, उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, कि मैं तुम को जाति जाति के लोगोंके बीच से बटोरूंगा, और जिन देशोंमें तुम तितर-बितर किए गए हो, उन में से तुम को इकट्ठा करूंगा, और तुम्हें इस्राएल की भूमि दूंगा।
18. और वे वहां पहुंचकर उस देश की सब घृणित मूरतें और सब घृणित काम भी उस में से दूर करेंगे।
19. और मैं उनका ह्रृदय एक कर दूंगा; और उनके भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा, और उनकी देह में से पत्यर का सा ह्रृदय निकालकर उन्हें मांस का ह्रृदय दूंगा,
20. जिस से वे मेरी विधियोंपर नित चला करें और मेरे नियमोंको मानें; और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा।
21. परन्तु वे लोग जो अपक्की घृणित मूरतोंऔर घृणित कामोंमें मन लगाकर चलते रहते हैं, उनको मैं ऐसा करूंगा कि उनकी चाल उन्हीं के सिर पर पकेंगी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
22. इस पर करूबोंने अपके पंख उठाए, और पहिथे उनके संग संग चले; और इस्राएल के परमेश्वर का तेज उनके ऊपर या।
23. तब यहोवा का तेज नगर के बीच में से उठकर उस पर्वत पर ठहर गया जो नगर की पूर्व ओर है।
24. फिर आत्मा ने मुझे उठाया, और परमेश्वर के आत्मा की शक्ति से दर्शन में मुझे कसदियोंके देश में बंधुुओं के पास पहुंचा दिया। और जो दर्शन मैं ने पाया या वह लोप हो गया।
25. तब जितनी बातें यहोवा ने मुझे दिखाई यीं, वे मैं ने बंधुओं को बता दीं।
Chapter 12
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, तू बलवा करनेवाले घराने के बीच में रहता है, जिनके देखने के लिथे आंखें तो हैं, परन्तु नहीं देखते; और सुनने के लिथे कान तो हैं परन्तु नहीं सुनते; क्योंकि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं।
3. इसलिथे हे मनुष्य के सन्तान दिन को बंधुआई का सामान, तैयार करके उनके देखते हुए उठ जाना, उनके देखते हुए अपना स्यान छोड़कर दूसरे स्यान को जाना। यद्यपि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं, तौभी सम्भव है कि वे ध्यान दें।
4. सो तू दिन को उनके देखते हुए बंधुआई के सामान की नाई अपना सामान निकालना, और तब तू सांफ को बंधुआई में जानेवाले के समान उनके देखते हुए उठ जाना।
5. उनके देखते हुए भीत को फोड़कर उसी से अपना सामान निकालना।
6. उनके देखते हुए उसे अपके कंधे पर उठाकर अन्धेरे में निकालना, और अपना मुंह ढांपे रहना कि भूमि तुझे न देख पके; क्योंकि मैं ने तुझे इस्राएल के घराने के लिथे एक चिन्ह ठहराया है।
7. उस आज्ञा के अनुसार मैं ने वैसा ही किया। दिन को मैं ने अपना सामान बंधुआई के सामान की नाई निकाला, और सांफ को अपके हाथ से भीत को फोड़ा; फिर अन्धेरे में सामान को निकालकर, उनके देखते हुए अपके कंधे पर उठाए हुए चला गया।
8. बिहान को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
9. हे मनुष्य के सन्तान, क्या इस्राएल के घराने ने अर्यात् उस बलवा करनेवाले घराने ने तुझ से यह नहीं पूछा, कि यह तू क्या करता है?
10. तू उन से कह कि प्रभु यहोवा योंकहता है, यह प्रभावशाली वचन यरूशलेम के प्रधान पुरुष और इस्राएल के सारे घराने के विष्य में है जिसके बीच में वे रहते हैं।
11. तू उन से कह, मैं नुम्हारे लिथे चिन्ह हूँ; जैसा मैं ने किया है, वैसा ही इस्रााएली लागोंसे भी किया जाएगा; उनको उठकर बंधुआई में जाना पकेगा।
12. उनके बीच में जो प्रधान है, सो अन्धेरे में अपके कंघे पर बोफ उठाए हुए निकलेगा; वह अपना सामान निकालने के लिथे भीत को फोड़ेगा, और अपना मुंह ढांपे रहेगा कि उसको भूमि न देख पके।
13. और मैं उस पर अपना जाल फैलाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंसेगा; और मैं उसे कसदियोंके देश के बाबुल में पहुंचा दूंगा; यद्यपि वह उस नगर में मर जाएगा, तौभी उसको न देखेगा।
14. और जितने उसके सहाथक उसके आस पास होंगे, उनको और उसकी सारी टोलियोंको मैं सब दिशाओं में तितर-बितर कर दूंगा; और तलवार खींचकर उनके पीछे चलवाऊंगा।
15. और जब मैं उन्हे जाति जाति में तितर-बितर कर दूंगा, और देश देश में छिन्न भीन्न कर दूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
16. परन्तु मैं उन में से थेड़े से लोगोंको तलवार, भूख और मरी से बचा रखूंगा; और वे अपके घृणित काम उन जातियोंमें बखान करेंगे जिनके बीच में वे पहुंचेंगे; तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
17. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, कांपके हुए अपक्की रोटी खाना और यरयराते और चिन्ता करते हुए अपना पानी पीना;
19. और इस देश के लोगोंसे योंकहना, कि प्रभु यहोवा यरूशलेम और इस्राएल के देश के निवासियोंके विषय में योंकहता है, वे अपक्की रोटी चिन्ता के साय खाएंगे, और अपना पानी विस्मय के साय पीएंगे; क्योंकि देश अपके सब रहनेवालोंके उपद्रव के कारण अपक्की सारी भरपूरी से रहित हो जाएगा।
20. और बसे हुए नगर उजड़ जाएंगे, और देश भी उजाड़ हो जाएगा; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
21. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
22. हे मनुष्य के सन्तान यह क्या कहावत है जो तुम लोग इस्राएल के देश में कहा करते हो, कि दिन अधिक हो गए हैं, और दर्शन की कोई बात पूरी नहीं हुई?
23. इसलिथे उन से कह, पभु यहोवा योंकहता है, मैं इस कहावत को बन्द करूंगा; और यह कहावत इस्राएल पर फिर न चलेगी। और तू उन से कह कि वह दिन निकट आ गया है, और दर्शन की सब बातें पूरी होने पर हैं।
24. क्योंकि इस्राएल के घराने में न तो और अधिक फूठे दर्शन की कोई बात और न कोई चिकनी-चुपक्की बात फिर कही जाएगी।
25. क्योंकि मैं यहोवा हूँ; जब मैं बोलूं, तब जो वचन मैं कहूं, वह पूरा हो जाएगा। उस में विलम्ब न होगा, परन्तु, हे बलवा करनेवाले घराने तुम्हारे ही दिनोंमें मैं वचन कहूंगा, और वह पूरा हो जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
26. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
27. हे मनुष्य के सन्तान, देख, इस्राएल के घराने के लोग यह कह रहे हैं कि जो दर्शन वह देखता है, वह बहुत दिन के बाद पूरा होनेवाला है; और कि वह दूर के समय के विषय में भविष्यद्वाणी करता है।
28. इसलिथे तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे किसी बचन के पूरा होने में फिर विलम्ब न होगा, वरन जो वचन मैं कहूं, सो वह निश्चय पूरा होगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 13
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के जो भविष्यद्वक्ता अपके ही मन से भविष्यवाणी करते हैं, उनके विरुद्व भविष्यवाणी करके तू कह, यहोवा का वचन सुनो।
3. प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उन मूढ़ भविष्यद्वक्ताओं पर जो अपक्की ही आत्मा के पीछे भटक जाते हैं, और कुछ दर्शन नहीं पाया !
4. हे इस्राएल, तेरे भविष्यद्वक्ता खण्डहरोंमें की लोमडिय़ोंके समान बने हैं।
5. तुम ने नाकोंमें चढ़कर इस्राएल के घराने के लिथे भीत नहीं सुधारी, जिस से वे यहोवा के दिन युद्ध में स्यिर रह सकते।
6. वे लोग जो कहते हैं, यहोवा की यह वाणी है, उन्होंने भावी का व्यर्य और फूठा दावा किया है; और तब भी यह आशा दिलाई कि यहोवा यह वचन पूरा करेगा; तौभी यहोवा ने उन्हें नहीं भेजा।
7. क्या तुम्हारा दर्शन फूठा नहीं है, और क्या तुम फूठमूठ भावी नहीं कहते? तुम कहते हो, कि यहोवा की यह वाणी है; परन्तु मैं ने कुछ नहीं कहा है।
8. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, तुम ने जो व्यर्य बात कही और फूठे दर्शन देखे हैं, इसलिथे मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. जो भविष्यद्वक्ता फूठे दर्शन देखते और फूठमूठ भावी कहते हैं, मेरा हाथ उनके विरुद्ध होगा, और वे मेरी प्रजा की गोष्ठी में भागी न होंगे, न उनके नाम इस्राएल की नामावली में लिखे जाएंगे, और न वे इस्राएल के देश में प्रवेश करने पाएंगे; इस से तुम लोग जान लोगे कि मैं प्रभु यहोवा हूँ।
10. क्योंकि हां, क्योंकि उन्होंने “शान्ति है”, ऐसा कहकर मेरी प्रजा को बहकाया हे जब कि शान्ति नहीं है; और इसलिथे कि जब कोई भीत बनाता है तब वे उसकी कच्ची लेसाई करते हैं।
11. उन कच्ची लेसाई करनेवालोंसे कह कि वह गिर जाएगी। क्योंकि बड़े जोर की वर्षा होगी, और बड़े बड़े ओले भी गिरेंगे, और प्रचण्ड आंधी उसे गिराएगी।
12. सो जब भीत गिर जाएगी, तब क्या लोग तुम से यह न कहेंगे कि जो लेसाई तुम ने की वह कहां रही?
13. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, मैं जलकर उसको पचण्ड आंधी के द्वारा गिराऊंगा; और मेरे कोप से भारी वर्षा होगी, और मेरी जलजलाहट से बड़े बड़े ओले गिरेंगे कि भीत को नाश करें।
14. इस रीति जिस भीत पर तुम ने कच्ची लेसाई की है, उसे मैं ढा दूंगा, वरन मिट्टी में मिलाऊंगा, और उसकी नेव खुल जाएगी; और जब वह गिरेगी, तब तुम भी उसके नीचे दबकर नाश होगे; और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
15. इस रीति मैं भीत और उसकी कच्ची लेसाई करनेवाले दोनोंपर अपक्की जलजलाहट पूर्ण रीति से भड़काऊंगा; फिर तुम से कहूंगा, न तो भीत रही,और न उसके लेसनेवाले रहे,
16. अर्यात् इस्राएल के वे भविष्यद्वक्ता जो यरूशलेम के विषय में भविष्यद्वाणी करते और उनकी शान्ति का दर्शन बताते थे, परन्तु प्रभु यहोवा की यह वाणी है, कि शान्ति है ही नहीं।
17. फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू अपके लोगोंकी स्त्रियोंसे विमुख होकर, जो अपके ही मन से भविष्यद्वाणी करती हे; उनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके कह,
18. प्रभु यहोवा योंकहता है, जो स्त्रियां हाथ के सब जोड़ो के लिथे तकिया सीतीं और प्राणियोंका अहेर करने को सब प्रकार के मनुष्योंकी आंख ढांपके के लिथे कपके बनाती हैं, उन पर हाथ ! क्या तुम मेरी प्रजा के प्राणोंका अहेर करके अपके निज प्राण बचा रखोगी?
19. तुम ने तो मुुट्ठी मुट्ठी भर जव और रोटी के टुकड़ोंके बदले मुझे मेरी प्रजा की दृष्टि में अपवित्र ठहराकर, और अपक्की उन फूठी बातोंके द्वारा, जो मेरी प्रजा के लोग तुम से सुनते हैं, जो नाश के योग्य न थे, उनको मार डाला; और जो बचने के योग्य न थे उन प्राणोंको बचा रखा है।
20. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, देखो, मैं तुम्हारे उन तकियोंके विरुद्व हूं, जिनके द्वारा तुम प्राणोंका अहेर करती हो, इसलिथे जिन्हें तुम अहेर कर करके उड़ाती हो उनको मैं तुम्हारी बांह पर से छीनकर उनको छुड़ा दूंगा।
21. मैं तुम्हारे सिर के बुक को फाड़कर अपक्की प्रजा के लोगोंको नुम्हारे हाथ से छुड़ाऊंगा, और आगे को वे तुम्हारे वश में न रहेंगे कि तुम उनका अहेर कर सको; तब तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
22. तुम ने जो फूठ कहकर धमीं के मन को उदास किया है, यद्यपि मैं ने उसको उदास करना नहीं चाहा, और तुम ने दुष्ट जन को हियाव बन्धाया है, ताकि वह अपके बुरे मार्ग से न फिरे और जीवित रहे।
23. इस कारण तुम फिर न तो फूठा दर्शन देखोगी, और न भावी कहोगी; क्योंकि मैं अपक्की प्रजा को तुम्हारे हाथ से दुड़ाऊंगा। तब तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 14
1. फिर इस्राएल के कितने पुरनिथे मेरे पास आकर मेरे साम्हने बैठ गए।
2. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
3. हे मनुष्य के सन्तान, इन पुरुषोंने तो अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित कीं, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखी है; फिर क्या वे मुझ से कुछ भी पूछने पाएंगे?
4. सो तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, कि इस्राएल के घराने में से जो कोई अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित करके, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखकर भविष्यद्वक्ता के पास आए, उसको, मैं यहोवा, उसकी बहुत सी मूरतोंके अनुसार ही उत्तर दूंगा,
5. जिस से इस्राएल का घराना, जो अपक्की मूरतोंके द्वारा मुझे त्यागकर दूर हो गया है, उन्हें मैं उन्हीं के मन के द्वारा फंसाऊंगा।
6. सो इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता हे, फिरो और अपक्की मूरतोंको पीठ के पीछे करो; और अपके सब घृणित कामोंसे मुंह मोड़ो।
7. क्योंकि इस्राएल के घराने में से और उसके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से भी कोई क्योंन हो, जो मेरे पीछे हो लेना छोड़कर अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित करे, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखे, और तब मुझ से अपक्की कोई बात पूछने के लिथे भविष्यद्वक्ता के पास आए, तो उसको, मैं यहोवा आप ही उत्तर दूंगा।
8. और मैं उस मनुष्य के विरुद्ध होकर उसको विस्मित करूंगा, और चिन्ह ठहराऊंगा; और उसकी कहावत चनाऊंगा और उसे अपक्की प्रजा में से नाश करूंगा; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
9. और यदि भविष्यद्वक्ता ने धोखा खाकर कोई वचन कहा हो, तो जानो कि मुझ यहोवा ने उस भविष्यद्वक्ता को धोखा दिया है; और मैं अपना हाथ उसके विरुद्ध बढ़ाकर उसे अपक्की प्रजा इस्राएल में से नाश करूंगा।
10. वे सब लोग अपके अपके अधर्म का बोफ उठाएंगे, अर्यात् जैसा भविष्यद्वक्ता से पूछनेवाले का अधर्म ठहरेगा, वैसा ही भविष्यद्वक्ता का भी अधर्म ठहरेगा।
11. ताकि इस्राएल का घराना आगे को मेरे पीछे हो लेना न छोड़े और न अपके भांति भांति के अपराधोंके द्वारा आगे को अशुद्ध बने; वरन वे मेरी प्रजा बनें और मैं उनका परमेश्वर ठहरूं, प्रभु यहोवा की यही आणी है।
12. और यहोवा का यह वचन मेरे पास महुंचा,
13. हे मनुष्य के सन्तान, जब किसी देश के लोग मुझ से विश्वासघात करके पापी हो जाएं, और मैं अपना हाथ उस देश के विरुद्ध बढ़ाकर उसका अन्नरूपी आधार दूर करूं, और उस में अकाल डालकर उस में से मनुष्य और पशु दोनोंको नाश करूं,
14. तब चाहे उस में नूह, दानिय्थेल और अय्यूब थे तीनोंपुरुष हों, तौभी वे अपके धर्म के द्वारा केवल अपके ही प्राणोंको बचा सकेंगे; प्रभु यहोवा की यही वाणी हे।
15. यदि मैं किसी देश में दुष्ट जन्तु भेजूं जो उसको निर्जन करके उजाड़ कर डालें, और जन्तुओं के कारण कोई उस में होकर न जाएं,
16. तो चाहे उसे में वे तीन पुरुष हों, तौभी प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, न वे पुत्रोंको ओर न पुत्रियोंको बचा सकेंगे; वे ही अकेले बचेंगे; परन्तु देश उजाड़ हो जाएगा।
17. और यदि मैं उस देश पर तलवार खीचकर कहूं, हे तलवार उस देश में चल; और इस रीति मैं उस में से मनुष्य और पशु नाश करूं,
18. तब चाहे उस में वे तीन पुरुष भी हों, तौभी प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, न तो वे पुत्रोंको और न पुत्रियोंको बचा सकेंगे, वे ही अकेले बचेंगे।
19. यदि मैं उस देश में मरी फैलाऊं और उस पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर उसका लोहू ऐसा बहाऊं कि वहां के मनुष्य और पशु दोनोंनाश हों,
20. तो चाहे नूह, दानिय्थेल और अय्यूब भी उस में हों, तौभी, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, वे न पुत्रोंको और न पुत्रियोंको बचा सकेंगे, अपके धर्म के द्वारा वे केवल अपके ही प्राणोंको बचा सकेंगे।
21. क्योंकि प्रभु यहोवा योंकहता है, मैं यरूशलेम पर अपके चारोंदण्ड पहुंचाऊंगा, अर्यात् तलवार, अकाल, दुष्ट जन्तु और मरी, जिन से मनुष्य और पशु सब उस में से नाश हों।
22. तौभी उस में योड़े से पुत्र-पुत्रियां बचेंगी जो वहां से निकालकर तुम्हारे पास पहुंचाई जाएंगी, और तुम उनके चालचलन और कामोंको देखकर उस विपत्ति के विषय में जो मैं यरूशलेम पर डालूंगा, वरन जितनी विपत्ति मैं उस पर डालूंगा, उस सब के विषय में शान्ति पाओगे।
23. जब तुम उनका चालचलन और काम देखो, तब वे तुम्हारी शान्ति के कारण होंगे; और तुम जान लोगे कि मैं ने यरूशलेम में जो कुछ किया, वह बिना कारण नहीं किया, प्रभु यहोवा की यही वाणी हैं
Chapter 15
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सब वृझोंमें अंगूर की लता की क्या श्रेष्टता है? अंगूर की शाखा जो जंगल के पेड़ोंके बीच उत्पन्न होती है, उस में क्या गुण है?
3. क्या कोई वस्तु बनाने के लिथे उस में से लकड़ी ली जाती, वा कोई बर्तन टांगने के लिथे उस में से खूंटी बन सकती है?
4. वह तो ईन्धन बनाकर आग में फोंकी जाती है; उसके दोनोंसिक्के आग से जल जाते, और उसके बीख् का भाग भस्म हो जाता है, क्या वह किसी भी काम की है?
5. देख, जब वह बनी यी, तब भी वह किसी काम की न यी, फिर जब वह आग का ईन्धन होकर भस्म हो गई है, तब किस काम की हो सकती है?
6. सो प्रभु यहोवा योंकहता है, जैसे जंगल के पेड़ोंमें से मैं अंगूर की लता को आग का ईन्धन कर देता हूँ, वैसे ही मैं यरूशलेम के निवासिक्कों नाश कर दूंगा।
7. मैं उन से विरुद्ध हूंगा, और वे एक आग में से निकलकर फिर दूसरी आग का ईन्धन हो जाएंगे; और जब मैं उन से विमुख हूंगा, तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
8. और मैं उनका देश उजाड़ दूंगा, क्योंकि उन्होंने मुझ से विश्वासघात किया है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 16
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, यरूशलेम को उसके सब घृणित काम जता दे।
3. और उस से कह, हे यरूशलेम, प्रभु यहोवा तुझ से योंकहता है, तेरा जन्म और तेरी उत्पत्ति कनानियोंके देश से हुई; तेरा पिता तो एमोरी और तेरी माता हित्तिन यी।
4. और तेरा जन्म ऐसे हुआ कि जिस दिन तू जन्मी, उस दिन न तेरा नाल काटा गया, न तू शुद्ध होने के लिथे धोई गई, न तेरे कुछ लोन मला गया और न तू कुछ कपड़ोंमें लमेटी गई।
5. किसी की दयादृष्टि तुझ पर नहीं हुई कि इन कामोंमें से तेरे लिथे एक भी काम किया जाता; वरन अपके जन्म के दिन तू घृणित होने के कारण खुले मैदान में फेंक दी गई यी।
6. और जब मैं तेरे पास से होकर निकला, और तुझे लोहू में लोटते हुए देखा, तब मैं ने तुझ से कहा, हे नोहू में लोटती हुई जीवित रह; हां, तुझ ही से मैं ने कहा, हे लोहू मे लोटती हुई, जीवित रह।
7. फिर मैं ने तुझे खेत के बिरुले की नाई बढाया, और तू बढ़ते बढ़ते बड़ी हो गई और अति सुन्दर हो गई; तेरी छातियां सुडौल हुई, और तेरे बाल बढे; तौभी तू नंगी यी।
8. मैं ने फिर तेरे पास से होकर जाते हुए तुझे देखा, और अब तू पूरी स्त्री हो गई यी; सो मैं ने तुझे अपना वस्त्र ओढ़ाकर तेरा तन ढांप दिया; और सौगन्ध खाकर तुझ से पाचा बान्धी और तू मेरी हो गई, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. तब मैं ने तुझे जल से नहलाकर तुझ पर से लोहू धो दिया, और तेरी देह पर तेल मला।
10. फिर मैं ने तुझे बूटेदार वस्त्र और सूइसोंके चमड़े की जूतियां पहिनाई; और तेरी कमर में सूझ्म सन बान्धा, और तुझे रेशमी कपड़ा ओढ़ाया।
11. तब मैं ने तेरा श्र्ृंगार किया, और तेरे हाथें में चूडिय़ां और गले में तोड़ा पहिनाया।
12. फिर मैं ने तेरी नाक में नत्य और तेरे कानोंमें बालियां पहिनाई, और तेरे सिर पर शोभायमान मुकुट धरा।
13. तेरे आभूषण सोने चान्दी के और तेरे वस्त्र सूझ्म सन, रेशम और बूटेदार कमड़े के बने; फिर तेरा भोजन मैदा, मधु और तेल हुआ; और तू अत्यन्त सुन्दर, वरन रानी होने के योग्य हो गई।
14. और तेरी सुन्दरता की कीत्तिर् अन्यजातियोंमें फैल गई, क्योंकि उस प्रताप के कारण, जो मैं ने अपक्की ओर से तुझे दिया या, तू अत्यन्त सुन्दर यी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
15. परन्तु तू अपक्की सुन्दरता पर भरोसा करके अपक्की नामवरी के कारण व्यभिचार करने लगी, और सब यात्रियोंके संग बहुत कुकर्म किया, और जो कोई तुझे चाहता या तू उसी से मिलती यी।
16. तू ने अपके वस्त्र लेकर रंग बिरंग के ऊंचे स्यान बना लिए, और उन पर व्यभिचार किया, ऐसे कुकर्म किए जो न कभी हुए और न होंगे।
17. और तू ने अपके सुशोभित गहने लेकर जो मेरे दिए हुए सोने-चान्दी के थे, उन से पुरुषोंकी मूरतें बना ली, और उन से भी व्यभिचार करने लगी;
18. और अपके बूटेदार वस्त्र लेकर उनको पहिनाए, और मेरा तेल और मेरा धूप उनके साम्हने चढ़ाया।
19. और जो भोजन मैं ने तुझे दिया या, अर्यात् जो मैदा, तेल और मधु मैं तुझे खिलाता या, वह सब तु ने उनके साम्हने सुखदायक सुगत्ध करके रखा; प्रभु यहोवा की यही वाणी है कि योंही हुआ।
20. फिर तू ने अपके पुत्र-पुत्रियां लेकर जिन्हें तू ने मेरे लिथे जन्म दिया, उन मूरतोंको नैवेद्य करके चढ़ाई। क्या तेरा व्सभिचार ऐसी छोटी बात यीं;
21. कि तू ने मेरे लड़केबाले उन मूरतोंके आगे आग में चढ़ाकर घात किए हैं?
22. और तू ने अपके सब घृणित कामोंमें और व्यभिचार करते हुए, अपके बचपन के दिनोंकी कभी सुधि न ली, जब कि तू नंगी अपके लोहू में लोटनी यी।
23. और तेरी उस सारी बुराई के पीछे क्या हुआ?
24. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, हाथ, तुझ पर हाथ ! कि तू ने एक गुम्मट बनवा लिया, और हर एक चौक में एक ऊंचा स्यान बनवा लिया;
25. और एक एक सड़क के सिक्के पर भी तू ने अपना ऊंचा स्यान बनवाकर अपक्की सुन्दरता घृणित करा दी, और हर एक यात्री को कुकर्म के लिथे बुलाकर महाव्यभिचारिणी हो गई।
26. तू ने अपके पड़ोसी मिस्री लोगोंसे भी, जो मोटे-ताजे हैं, व्यभिचार किया और मुझे क्रोध दिलाने के लिथे अपना व्यभिचार चढ़ाती गई।
27. इस कारण मैं ने अपना हाथ तेरे विरुद्ध बढ़ाकर, तेरा प्रति दिन का खाना घटा दिया, और तेरी बैरिन पलिश्ती स्त्रियां जो तेरे महापाप की चाल से लजाती है, उनकी इच्छा पर मैं ने तुझे छोड़ दिया है।
28. फिर भी तेरी तृष्णा न बुफी, इसलिथे तू ने अश्शूरी लोगोंसे भी व्यभिचार किया; और उन से व्यभिचार करने पर भी तेरी तृष्णा न बुफी।
29. फिर तू लेन देन के देश में व्यभिचार करते करते कसदियोंके देश तक पहुंची, और वहां भी तेरी तृष्णा न बुफी।
30. प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि तेरा ह्रृदय कैसा चंचल है कि तू थे सब काम करती है, जो निर्लज्ज वेश्या ही के काम हैं?
31. तू ने हर एक सड़क के सिक्के पर जो अपना गुम्मट, और हर चौक में अपना ऊंचा स्यान बनवाया है, क्या इसी में तू वेश्या के समान नहीं ठहरी? क्योंकि तू ऐसी कमाई पर हंसती है।
32. तू व्यभिचारिणी पत्नी है। तू पराथे पुरुषोंको अपके पति की सन्ती ग्रहण करती है।
33. सब वेश्याओं को तो रुपया मिलता है, परन्तु तू ने अपके सब मित्रोंको स्वयं रुपए देकर, और उनको लालच दिखाकर बुलाया है कि वे चारोंओर से आकर तुझ से व्यभिचार करें।
34. इस प्रकार तेरा व्यभिचार और व्यभिचारियोंसे उलटा है। तेरे पीछे कोई व्यभिचारी नहीं चलता, और तू किसी से दाम लेती नहीं, वरन तू ही देती है; इसी कारण तू उलटी ठहरी।
35. इस कारण, हे वेश्या, यहोवा का वचन सुन,
36. प्रभु यहोवा योंकहता है, कि तू ने जो व्यभिचार में अति निर्लज्ज होकर, अपक्की देह अपके मित्रोंको दिखाई, और अपक्की मूरतोंसे घृणित काम किए, और अपके लड़केबालोंका लोहू बहाकर उन्हें बलि चढ़ाया है,
37. इस कारण देख, मैं तेरे सब मित्रोंको जो तेरे प्रेमी हैं और जितनोंसे तू ने प्रीति लगाई, और जितनोंसे तू ने वैर रखा, उन सभोंको चारोंओर से तेरे विरुद्ध इकट्ठा करके उनको तेरी देह नंगी करके दिखाऊंगा, और वे तेरा तन देखेंगे।
38. तब मैं तुझ को ऐसा दण्ड दूंगा, जैसा व्यभिचारिणियोंऔर लोहू बहानेवाली स्त्रियोंको दिया जाता है; और क्रोध और जलन के साय तेरा लोहू बहाऊंगा।
39. इस रीति मैं तुझे उनके वश में कर दूंगा, और वे तेरे गुम्मटोंको ढा देंगे, और तेरे ऊंचे स्यानोंको तोड़देंगे; वे तेरे वस्त्र बरबस उतारेंगे, और तेरे सुन्दर गहने छीन लेंगे, और तुझे नंगा करके छोड़ देंगे।
40. तब तेरे विरुद्ध एक सभा इकट्ठी करके वे तुझ को पत्यरवाह करेंगे, और अपक्की कटारोंसे वारपार छेदेंगे।
41. तब वे आग लगाकर तेरे घरोंको जला देंगे, और तूफे बहुत सी स्त्रियोंके देखते दण्ड देंगे; और मैं तेरा व्यभिचार बन्द करूंगा, और तू फिर छिनाले के लिथे दाम न देगी।
42. और जब मैं तुझ पर पूरी जलजलाहट प्रगट कर चुकूंगा, तब तुझ पर और न जलूंगा वरन शान्त हो जाऊंगा: और फिर न रिसियाऊंगा।
43. तू ने जो अपके बचपन के दिन स्मरण नही रखे, वरन इन सब बातोंके द्वारा मुझे चिढाया; इस कारण मैं तेरा चालचलन तेरे सिर पर डालूंगा और तू अपके सब पिछले घृणित कामोंसे और अधिक महापाप न करेगी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
44. देख, सब कहावत कहनेवाले तेरे विषय यह कहावत कहेंगे, कि जैसी मां वैसी पुत्री।
45. तेरी मां जो अपके पति और लड़केबालोंसे घृणा करती यी, तू भी ठीक उसकी पुत्री ठहरी; और तेरी बहिनें जो अपके अपके पति और लड़केबालोंसे घृृणा करती यीं, तू भी ठीक उनकी बहिन निकली। तेरी माता हित्तिन और पिता एमोरी या।
46. तेरी बड़ी बहिन हाोमरोन है, जो अपक्की पुत्रियोंसमेत तेरी बाई ओर रहती है, और तेरी छोटी बहिन, जो तेरी दहिनी ओर रहती है वह पुत्रियोंसमेत सदोम है।
47. तू उनकी सी चाल नहीं चक्की, और न उनके से घृणित कामोंही से सन्तुष्ट हुई; यह तो बहुत छोटी बात ठहरती, परन्तु तेरा सारा चालचलन उन से भी अधिक बिगड़ गया।
48. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, तेरी बहिन सदोम ने अपक्की पुत्रियोंसमेत तेरे ओर तेरी पुत्रियोंके समान काम नहीं किए।
49. देख, तेरी बहिन सदोम का अधर्म यह या, कि वह अपक्की पुत्रियोंसहित घमण्ड करती, पेट भर भरके खाती, और सुख चैन से रहती यी: और दीन दरिद्र को न संभालती यी।
50. सो वह गर्व करके मेरे साम्हने घृणित काम करने लगी, और यह देखकर मैं ने उन्हें दूर कर दिया।
51. फिर शोमरोन ने तेरे पापोंके आधे भी पाप नहीं किए: तू ने तो उस से बढ़कर घृणित काम किए ओर अपके घोर घृणित कामोंके द्वारा अपक्की बहिनोंको जीत लिया।
52. सो तू ने जो अपक्की बहिनोंका न्याय किया, इस कारण लज्जित हो, क्योंकि तू ने उन से बढ़कर घृणित पाप किए हैं; इस कारण वे तुझ से कम दोषी ठहरी हैं। सो तू इस बात से लज्जा कर और लजाती रह, क्योंकि तू ने अपक्की बहिनोंको कम दोषी ठहराया है।
53. जब मैं उनको अर्यात् पुत्रियोंसहित सदोम और शोमरोन को बंधुआई से फेर लाऊंगा, तब उनके बीच ही तेरे बंधुओं को भी फेर लाऊंगा,
54. जिस से तू लजाती रहे, और अपके सब कामोंको देखकर लजाए, क्योंकि तू उनकी शान्ति ही का कारण हुई है।
55. और तेरी बहिनें सदोम और शोमरोन अपक्की अपक्की पुत्रियोंसमेत अपक्की पहिली दशा को फिर पहुंचेंगी, और तू भी अपक्की पुत्रियोंसहित अपक्की पहिली दशा को फिर पहंचेगी।
56. जब तक तेरी बुराई प्रगट न हुई यी, अर्यात् जिस समय तक तू आस पास के लोगोंसमेत अरामी और पलिश्ती स्त्रियोंकी जो अब चारोंओर से तुझे तुच्छ जानती हैं, नामधराई करती यी,
57. उन अपके घ्मण्ड के दिनोंमें तो तू अपक्की बहिन सदोम का नाम भी न लेती यी।
58. परन्तु अब तुझ को अपके महापाप और घृणित कामोंका भार आप ही उठाना पड़ा है, यहोवा की यही वाणी है।
59. प्रभु यहोवा यह कहता है, मैं तेरे साय ऐसा ही बर्ताव करूंगा, जैसा तू ने किया है, क्योंकि तू ने तो वाचा तोड़कर शपय तुच्छ जानी है,
60. तौभी मैं तेरे बचपन के दिनोंकी अपक्की वाचा स्मरण करूंगा, और तेरे साय सदा की वाचा बान्धूंगा।
61. और जब तू अपक्की बहिनोंको अर्यात् अपक्की बड़ी और छोटी बहिनोंको ग्रहण करे, तब तू अपना चालचलन स्मरण करके लज्जित होगी; और मैं उन्हें तेरी पुत्रियां ठहरा दूंगा; परन्तु यह तेरी वाचा के अनुसार न करूंगा।
62. मैं तेरे साय अपक्की वाचा स्यिर करूंगा, और तब तू जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ,
63. जिस से तू स्मरण करके लज्जित हो, और लज्जा के मारे फिर कभी मुंह न खोले। यह उस समय होगा, जब मैं तेरे सब कामोंको ढांपूंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 17
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह पकेली और दृष्टान्त कह; प्रभू यहोवा योंकहता हे,
3. एक लम्बे पंखवाले, परोंसे भरे और रडंगे बिरडंगे बडे उकाब पक्की ने लबानोन जाकर एक देवदार की फुनगी नोच ली।
4. तब उस ने उस फुनगी की सब से ऊपर की पतली टहनी को तोड़ लिया, और उसे लेन देन करनेवालोंके देश में ले जाकर व्योपारियोंके एक नगर में लगाया।
5. तब उस ने देश का कुछ बीज लेकर एक उपजाऊ खेत में बोया, और उसे बहुत जल भरे स्यान में मजनू की नाई लगाया।
6. और वह उगकर छोटी फैलनेवाली अंगूर की लता हो गई जिसकी डालियां उसकी ओर फुकीं, और उसकी सोर उसके नीचे फैलीं; इस प्रकार से वह अंगूर की लता होकर कनखा फोड़ने और पत्तोंसे भरने लगी।
7. फिर और एक लम्बे पंखवाला और परोंसे भरा हुआ बड़ा उकाब पक्की या; और वह अंगूर की लता उस स्यान से जहां वह लगाई गई यी, उस दूसरे उकाब की ओर अपक्की सोर फैलाने और अपक्की डालियां फुकाने लगी कि वह उसे ख्ींचा करे।
8. परन्तु वह तो इसलिथे अच्छी भूमि में बहुत जल के पास लगाई गई यी, कि कनखएं फोड़े, और फले, और उत्तम अंगूर की लता बने।
9. सो तू यह कह, कि प्रभु यहोवा योंपूछता है, क्या वह फूले फलेगी? क्या वह उसको जड़ से न उखाड़ेगा, और उसके फलोंको न फाड़ डालेगा कि वह अपक्की सब हरी नई पत्तियोंसमेत सूख जाए? इसे जड़ से उखाड़ने के लिथे अधिक बल और बहुत से मनुष्योंकी आवश्यकता न होगी।
10. चाहे, वह लगी भी रहे, तौभी क्या वह फूले फलेगी? जब पुरवाई उसे लगे, तब क्या वह बिलकुल सूख न जाएगी? वह तो जहां उगी है उसी क्यारी में सूख जाएगी।
11. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, उस बलवा करनेवाले घराने से कह,
12. क्या तुम इन बातोंका अर्य नहीं समझते? फिर उन से कह, बाबुल के राजा ने यरूशलेम को जाकर उसके राजा और और प्रधानोंको लेकर अपके यहां बाबुल में पहुंचाया।
13. तब राजवंश में से एक पुरुष को लेकर उस से वाचा बान्धी, और उसको वश में रहने की शपय खिलाई, और देश के सामयीं पुरुषोंको ले गया
14. कि वह राज्य निर्बल रहे और सिर न उठा सके, वरन वाचा पालने से स्यिर रहे।
15. तौभी इस ने घोड़े और बड़ी सेना मांगने को अपके दूत मिस्र में भेजकर उस से बलवा किया। क्या वह फूले फलेगा? क्या ऐसे कामोंका करनेवाला बचेगा? क्या वह अपक्की वाचा तोड़ने पर भी बच जाएगा?
16. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध, जिस राजा की खिलाई हुई शपय उस ने तुच्छ जानी, और जिसकी वाचा उस ने तोड़ी, उसके यहां जिस ने उसे राजा बनाया या, अर्यात् बाबुल में ही वह उसके पास ही मर जाएगा।
17. और जब वे बहुत से प्राणियोंको नाश करने के लिथे दमदमा बान्धे, और गढ़ बनाएं, तब फिरौन अपक्की बड़ी सेना और बहुतोंकी मण्डली रहते भी युद्ध में उसकी सहाथता न करेगा।
18. क्योंकि उस न शपय को तुच्छ जाना, और वाचा को तोड़ा; देखो, उस ने वचन देने पर भी ऐसे ऐसे काम किए हैं, सो वह बचने न पाएगा।
19. प्रभु यहोवा योंकहता है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, उस ने मेरी शपय तुच्छ जानी, और मेरी वाचा तोड़ी है; यह पाप मैं उसी के सिर पर डालूंगा।
20. और मैं अपना जाल उस पर फैलाऊंगा और वह मेरे फन्दे में फंसेगा; और मैं उसको बाबुल में पहुंचाकर उस विश्वासघात का मुक़द्दमा उस से लड़ूंगा, जो उस ने मुझ से किया है।
21. और उसके सब दलोंमें से जितने भागें वे सब तलवार से मारे जाएंगे, और जो रह जाएं सो चारोंदिशाओं में तितर-बितर हो जाएंगे। तब तुम लोग जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने ऐसा कहा है।
22. फिर प्रभु यहोवा योंकहता है, मैं भी देवदार की ऊंची फुनगी में से कुछ लेकर लगाऊंगा, और उसकी सब से ऊपरवाली कनखाओं में से एक कोमल कनखा तोड़कर एक अति ऊंचे पर्वत पर लगाऊंगा।
23. अर्यात् इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर लगाऊंगा; सो वह डालियां फोड़कर बलवन्त और उत्तम देवदार बन जाएगा, और उसके नीचे अर्यात् उसकी डालियोंकी छाया में भांति भांति के सब पक्की बसेरा करेंगे।
24. तब मैदान के सब वृझ जान लेंगे कि मुझ यहोवा ही ने ऊंचे वृझ को नीचा और नीचे पृझ को ऊंचा किया, हरे वृझ को सुखा दिया, और सूखे वृझ को फुलाया फलाया है। मुझ यहोवा ही ने यह कहा और वैसा ही कर भी दिया है।
Chapter 18
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. तुम लोग जो इस्राएल के देश के विषय में यह कहावत कहते हो, कि जंगली अंगूर तो पुरखा लोग खाते, परन्तु दांत खट्टे होते हैं लड़केबालोंके। इसका क्या अर्य है?
3. प्रभु यहोवा योंकहता है कि मेरे जीवन की शपय, तुम को इस्राएल में फिर यह कहावत कहने का अवसर न मिलेगा।
4. देखो, सभोंके प्राण तो मेरे हैं; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है; दोनोंमेरे ही हैं। इसलिथे जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।
5. जो कोई धमीं हो, और न्याय और धर्म के काम करे,
6. और न तो पहाड़ोंपर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतोंकी ओर आंखें उठाई हों; न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो, और न ऋतुमती के पास गया हो,
7. और न किसी पर अन्धेर किया हो वरन ऋणी को उसकी बन्धक फेर दी हो, न किसी को लूटा हो, वरन भूखे को अपक्की रोटी दी हो और नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
8. न ब्याज पर रुपया दिया हो, न रुपए की बढ़ती ली हो, और अपना हाथ कुटिल काम से रोका हो, मनुष्य के बीच सच्चाई से न्याय किया हो,
9. और मेरी विधियोंपर चलता और मेरे नियमोंको मानता हुआ सच्चाई से काम किया हो, ऐसा मनुष्य धमीं है, वह निश्चय जीवित रहेगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
10. परन्तु यदि उसका पुत्र डाकू, हत्यारा, वा ऊपर कहे हुए पापोंमें से किसी का करनेवाला हो,
11. और ऊपर कहे हुए उचित कामोंका करनेवाला न हो, और पहाड़ोंपर भोजन किया हो, पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
12. दीन दरिद्र पर अन्धेर किया हो, औरोंको लूटा हो, बन्धक न फेर दी हो, मूरतोंकी ओर आंख उठाई हो, घृणित काम किया हो,
13. ब्याज पर रुपया दिया हो, और बढ़ती ली हो, तो क्या वह जीवित रहेगा? वह जीवित न रहेगा; इसलिथे कि उस ने थे सब घिनौने काम किए हैं वह निश्चय मरेगा और उसका खून उसी के सिर पकेगा।
14. फिर यदि ऐसे मनुष्य के पुत्र होंऔर वह अपके पिता के थे सब पाप देखकर भय के मारे उनके समान न करता हो।
15. अर्यात् न तो पहाड़ोंपर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतोंकी ओर आंख उठाई हो, न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
16. न किसी पर अन्धेर किया हो, न कुछ बन्धक लिया हो, न किसी को लूटा हो, वरन अपक्की रोटी भूखे को दी हो, नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
17. दीन जन की हानि करने से हाथ रोका हो, ब्याज और बढ़ी न ली हो, मेरे नियमोंको माना हो, और मेरी विधियोंपर चला हो, तो वह अपके पिता के अधर्म के कारण न मरेगा, वरन जीवित ही रहेगा।
18. उसका पिता, जिस ने अन्धेर किया और लूटा, और अपके भाइयोंके बीच अनुचित काम किया है, वही अपके अधर्म के कारण मर जाएगा।
19. तौभी तुम लोग कहते हो, क्यों? क्या पुत्र पिता के अधर्म का भार नहीं उठाता? जब पुत्र ने न्याय और धर्म के काम किए हों, और मेरी सब विधियोंका पालनकर उन पर चला हो, तो वह जीवित ही रहेगा।
20. जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का; धमीं को अपके ही धर्म का फल, और दुष्ट को अपक्की ही दुष्टता का फल मिलेगा।
21. परन्तु यदि दुष्ट जन अपके सब पापोंसे फिरकर, मेरी सब विधियोंका पालन करे और न्याय और धर्म के काम करे, तो वह न मरेगा; वरन जीवित ही रहेगा।
22. उस ने जितने अपराध किए हों, उन में से किसी का स्मरण उसके विरुद्ध न किया जाएगा; जो धर्म का काम उस ने किया हो, उसके कारण वह जीवित रहेगा।
23. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, क्या मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न होता हूँ? क्या मैं इस से प्रसन्न नहीं होता कि वह अपके मार्ग से फिरकर जीवित रहे?
24. परन्तु जब धमीं अपके धर्म से फिरकर टेढ़े काम, वरन दुष्ट के सब घृणित कामोंके अनुसार करने लगे, तो क्या वह जीवित रहेगा? जितने धर्म के काम उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा। जो विश्वासघात और पाप उस ने किया हो, उसके कारण वह मर जाएगा।
25. तौभी तुम लोग कहते हो, कि प्रभु की गति एकसी नहीं। हे इस्राएल के घराने, देख, क्या मेरी गति एकसी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं है?
26. जब धमीं अपके धर्म से फिरकर, टेढ़े काम करने लगे, तो वह उनके कारण मरेगा, अर्यात् वह अपके टेढ़े काम ही के कारण मर जाएगा।
27. फिर जब दुष्ट अपके दुष्ट कामोंसे फिरकर, न्याय और धर्म के काम करने लगे, तो वह अपना प्राण बचाएगा।
28. वह जो सोच विचार कर अपके सब अपराधोंसे फिरा, इस कारण न मरेगा, जीवित ही रहेगा।
29. तौभी इस्राएल का घराना कहता है कि प्रभु की गति एकसी नहीं। हे इस्राएल के घराने, क्या मेरी गति एकसी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं?
30. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, हे इस्राएल के घराने, मैं तुम में से हर एक मनुष्य का न्याय उसकी चालचलन के अनुसार ही करूंगा। पश्चात्ताप करो और अपके सब अपराधोंको छोड़ो, तभी तुम्हारा अधर्म तुम्हारे ठोकर खाने का कारण न होगा।
31. अपके सब अपराधोंको जो तुम ने किए हैं, दूर करो; अपना मन और अपक्की आत्मा बदल डालो ! हे इस्राएल के घराने, तुम क्योंमरो?
32. क्योंकि, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, जो मरे, उसके मरने से मैं प्रसन्न नहीं होता, इसलिथे पश्चात्ताप करो, तभी तुम जीवित रहोगे।
Chapter 19
1. और इस्राएल के प्रधानोंके विषय तू यह विलापक्कीत सुना,
2. तेरी माता एक कैसी सिंहनी यी ! वह सिंहोंके बीच बैठा करती और अपके बच्चोंको जवान सिंहोंके बीच पालती पोसती यी।
3. अपके बच्चोंमें से उस ने एक को पाला और वह जवान सिंह हो गया, और अहेर पकडना सीख गया; उस ने मनुष्योंको भी फाड़ खाया।
4. और जाति जाति के लोगोंने उसकी चर्चा सुनी, और उसे अपके खोदे हुए गड़हे में फंसाया; और उसके नकेल डालकर उसे मिस्र देश में ले गए।
5. जब उसकी मां ने देखा कि वह धीरज धरे रही तौभी उसकी आशा टूट गई, तब अपके एक और बच्चे को लेकर उसे जवान सिंह कर दिया।
6. तब वह जवान सिंह होकर सिंहोंके बीच चलने फिरने लगा, और वह भी अहेर पकड़ना सीख गया; और मनुष्योंको भी फाड़ खाया।
7. और उस ने उनके भवनोंको बिगाड़ा, और उनके नगरोंको उजाड़ा वरन उसके गरजने के डर के मारे देश और जो कुछ उस में या सब उजड़ गया।
8. तब चारोंओर के जाति जाति के लोग अपके अपके प्रान्त से उसके विरुद्ध निकल आए, और उसके लिथे जाल लगाया; और वह उनके खोदे हुए गड़हे में फंस गया।
9. तब वे उसके नकेल डालकर और कठघरे में बन्द करके बाबुल के राजा के पास ले गए, और गढ़ में बन्द किया, कि उसका बोल इस्राएल के पहाड़ी देश में फिर सुनाई न दे।
10. तेरी माता जिस से तू अत्पन्न हुआ, वह तीर पर लगी हुई दाखलता के समान यी, और गहिरे जल के कारण फलोंऔर शाखाओं से भरी हुई यी।
11. और प्रभुता करनेवालोंके राजदणडोंके लिथे उस में मोटी मोटी टहनियां यीं; और उसकी ऊंचाई्र इतनी इुई कि वह बादलोंके बीच तक पहुंची; और अपक्की बहुत सी डालियोंसमेत बहुत ही लम्बी दिखाई पक्की।
12. तौभी वह जलजलाहट के साय उखाड़कर भूमि पर गिराई गई, और उसके फल पुरवाई हवा के लगने से सूख गए; और उसकी मोटी टहनियां टूटकर सूख गई; और वे आग से भस्म हो गई।
13. अब वह जंगल में, वरन निर्जल देश में लगाई गई है।
14. और उसकी शाखाओं की टहनियोंमें से आग निकली, जिस से उसके फल भस्म हो गए, और प्रभुता करने के योग्य राजदण्ड के लिथे उस में अब कोई मोटी टहनी न रही। यही विलापक्कीत है, और यह विलापक्कीत बना रहेगा।
Chapter 20
1. सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन को इस्राएल के कितने पुरनिथे यहोवा से प्रश्न करने को आए, और मेरे साम्हने बैठ गए।
2. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
3. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएली पुरनियोंसे यह कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, क्या तुम मुझ से प्रश्न करने को आए हो? प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, तुम मुझ से प्रश्न करने न पाओगे।
4. हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उनका न्याय न करेगा? क्या तू उनका न्याय न करेगा? उनके पुरखाओं के घिनौने काम उन्हें जता दे,
5. और उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, जिस दिन मैं ने इस्राएल को चुन लिया, और याकूब के घराने के वंश से शपय खाई, और मिस्र देख में अपके को उन पर प्रगट किया, और उन से शपय खाकर कहा, मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ,
6. उसी दिन मैं ने उन से यह भी शपय खाई, कि मैं तुम को मिस्र देश से निकालकर एक देश में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने तुम्हारे लिथे चुन लिया है; वह सब देशोंका शिरोमणि है, और उस में दूध और मधु की धराएं बहती हैं।
7. फिर मैं ने उन से कहा, जिन घिनौनी वस्तुओं पर तुम में से हर एक की आंखें लगी हैं, उन्हें फेंक दो; और मिस्र की मूरतोंसे अपके को अशुद्ध न करो; मैं ही तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
8. परन्तु वे मुझ से बिगड़ गए और मेरी सुननी न चाही; जिन घिनौनी वस्तुओं पर उनकी आंखें लगी यीं, उनकी किसी ने फेंका नहीं, और न मिस्र की मूरतोंको छोड़ा। तब मैं ने कहा, मैं यहीं, मिस्र देश के बीच मुम पर अपक्की जलजलाहट भड़काऊंगा। और पूरा कोप दिखाऊंगा।
9. तौभी मैं ने अपके नाम के निमित्त ऐसा किया कि जिनके बीच वे थे, और जिनके देखते हुए मैं ने उनको मिस्र देश से निकलने के लिथे अपके को उन पर प्रगट किया या उन जातियोंके साम्हने वे अपवित्र न ठहरे।
10. मैं उनको मिस्र देश से निकालकर जंगल में ले आया।
11. वहां उनको मैं ने अपक्की विधियां बताई और अपके नियम भी बताए कि जो मतुष्य उनको माने, वह उनके कारण जीवित रहेगा।
12. फिर मैं ने उनके लिथे अपके विश्रमदिन ठहराए जो मेरे और उनके बीच चिन्ह ठहरें; कि वे जानें कि मैं यहोवा उनका पवित्र करनेवाला हूँ।
13. तौभी इस्राएल के घराने ने जंगल में मुझ से बलवा किया; वे मेरी विधियोंपर न चले, और मेरे नियमोंको तुच्छ जाना, जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; और उन्होंने मेरे विश्रमदिनोंको अति अपवित्र किया। तब मैं ने कहा, मैं जंगल में इन पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर इनका अन्त कर डालूंगा।
14. परन्तु मैं ने अपके नाम के निमित्त ऐसा किया कि वे उन जातियोंके साम्हने, जिनके देखते मैं उनको निकाल लाया या, अपवित्र न ठहरे।
15. फिर मैं ने जंगल में उन से शपय खाई कि जो देश मैं ने उनको दे दिया, और जो सब देशोंका शिरोमणि है, जिस में दूध और मधु की धराएं बहती हैं, उस में उन्हें न पहुंचाऊंगा,
16. क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने और मेरी विधियोंपर न चले, और मेरे विश्रमदिन अपवित्र किए थे; इसलिथे कि उनका मन उनकी मूरतोंकी ओर लगा रहा।
17. लौभी मैं ने उन पर कृपा की दृष्टि की, और उन्हें नाश न किया, और न जंगल में पूरी रीति से उनका अन्त कर डाला।
18. फिर मैं ने जंगल में उनकी सन्तान से कहा, अपके पुरखाओं की विधियोंपर न चलो, न उनकी ीिति योंको मानो और न उनकी मूरतें पूजकर अपके को अशुुद्ध करो।
19. मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, मेरी विधियोंपर चलो, ओर मेरे नियमोंके मानने में चौकसी करो,
20. और मेरे विश्रमदिनोंको पवित्र मानो कि वे मेरे और तुम्हारे बीच चिन्ह ठहरें, और जिस से तुम जानो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
21. परन्तु उनकी सन्तान ने भी मुझ से बलवा किया; वे मेरी विधियोंपर न चले, न मेरे नियमोंके मानने में चौकसी की; जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; मेरे विश्रमदिनोंको उन्होंने अपवित्र किया। तब मैं ने कहा, मैं जंगल में उन पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर अपना कोप दिखलाऊंगा।
22. तौभी मैं ने हाथ खींच लिया, और अपके नाम के निमित्त ऐसा किया, कि उन जातियोंके साम्हने जिनके देखते हुए मैं उन्हें निकाल लाया या, वे अपवित्र न ठहरे।
23. फिर मैं ने जंगल में उन से शपय खाई, कि मैं तुम्हें जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितरा दूंगा,
24. क्योंकि उन्होंने मेरे नियम न माने, मेरी विधियोंको तुच्छ जाना, मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया, और अपके पुरखाओं की मूरतोंकी ओर उनकी आंखें लगी रहीं।
25. फिर मैं ने उनके लिथे ऐसी ऐसी विधियां ठहराई जो अच्छी न यी और ऐसी ऐसी रीतियां जिनके कारण वे जीवित न रह सकें;
26. अर्यात् वे अपके सब पहिलौठोंको आग में होम करने लगे; इस रीति मैं ने उन्हें उनहीं की भेंटोंके द्वारा अशुद्ध किया जिस से उन्हें निर्वश कर डालूं; और तब वे जान लें कि मैं यहोवा हूँ।
27. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, तुम्हारे पुरखाओं ने इस में भी मेरी निन्दा की कि उन्होंने मेरा विश्वासघात किया।
28. क्योंकि जब मैं ने उनको उस देश में पहुंचाया, जिसके उन्हें देने की शपय मैं ने उन से खाई यी, तब वे हर एक ऊंचे टीले और हर एक घने वृझ पर दृष्टि करके वहीं अपके मेलबलि करने लगे; और वहीं रिस दिलानेवाली अपक्की भेंटें चढ़ाने लगे और वहीं अपना सुखदायक सुगन्धद्रव्य जलाने लगे, और वहीं अपके तपावन देने लगे।
29. तब मैं ने उन से पूछा, जिस ऊंचे स्यान को तुम लोग जाते हो, उस से क्या प्रयोजन है? इसी से उसका नाम आज तक बामा कहलाता है।
30. इसलिथे इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा तुम से यह पूछता है, क्या तुम भी अपके पुरखाओं की रीति पर चलकर अशुद्ध होकर, और उनके घिनौने कामोंके अनुसार व्यभिचारिणी की नाई काम करते हो?
31. आज तक जब जब तुम अपक्की भेंटें चढ़ाते और अपके लड़केबालोंको होम करके आग में चढ़ाते हो, तब तब तुम अपक्की मूरतोंके निमित्त अशुद्ध ठहरते हो। हे इस्राएल के घराने, क्या तुम मुझ से पूघने पाओगे? प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की शपय तुम मुझ से पूछने न पाओगे।
32. जो बात तुम्हारे मन में आती है कि हम काठ और पत्यर के उपासक होकर अन्यजातियोंऔर देश देश के कुलोंके समान हो जाएंगे, वह किसी भांति पूरी नहीं होने की।
33. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की शपय मैं निश्चय बली हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई इुई जलजलाहट के साय तुम्हारे ऊपर राज्य करूंगा।
34. मैं बली हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई हुई जलजलाहट के साय तुम्हें देश देश के लोगोंमें से अलग करूंगा, और उन देशें से जिन में तुम तितर-बितर हो गए थे, इकट्ठा करूंगा;
35. और मैं तुम्हें देश देश के लोगोंके जंगल में ले जाकर, वहां आम्हने-साम्हने तुम से मुक़द्दमा लड़ूंगा।
36. जिस प्रकार मैं तुम्हारे पूर्वजोंसे मिस्र देशरूपी जंगल में मुक़द्दमा लड़ता या, उसी प्रकार तुम से मुक़द्दमा लड़ूंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
37. मैं तुम्हें लाठी के तले चलाऊंगा। और तुम्हें वाचा के बन्धन में डालूंगा।
38. मैं तुम में से सब बलवाइयोंको निकालकर जो मेरा अपराध करते है; तुम्हें शुद्ध करूंगा; और जिस देश में वे टिकते हैं उस में से मैं उन्हें निकाल दूंगा; परन्तु इस्राएल के देश में घुसने न दूंगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
39. और हे इस्राएल के घराने तुम से तो प्रभु यहोवा योंकहता है कि जाकर अपक्की अपक्की मूरतोंकी उपासना करो; और यदि तुम मेरी न सुनोगे, तो आगे को भी यही किया करो; परन्तु मेरे पवित्र नाम को अपक्की भेंटोंओर मूरतोंके द्वारा फिर अपवित्र न करना।
40. क्योंकि प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि इस्राएल का सारा घरानाा अपके देश में मेरे पवित्र पर्वत पर, इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर, सब का सब मेरी उपासना करेगा; वही मैं उन से प्रसन्न हूंगा, और वहीं मैं तुम्हारी उठाई हुई भेंटें और चढ़ाई हुई उत्तम उत्तम वस्तुएं, और तुमहारी सब पवित्र की हुई वस्तुएं तुम से लिया करूंगा।
41. जब मैं तुम्हें देश देश के लोगोंमें से अलग करूं और उन देशोंसे जिन में तुम तितर-बितर हुए हो, इकट्ठा करूं, तब तुम को सुखदायक सुगन्ध जानकर ग्रहण करूंगा, और अन्य जातियोंके साम्हने तुम्हारे द्वारा पवित्र ठहराया जाऊंगा।
42. और जब मैं तुम्हें इस्राएल के देश में पहुंचाऊं, जिसके देने की शपय मैं ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाई यी, तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
43. और वहां तुम अपक्की चाल चलन और अपके सब कामोंको जिनके करने से तुम अशुद्ध हुए हो स्मरण करोगे, और अपके सब बुरे कामोंके कारण अपक्की दृष्टि में घिनौने ठहरोगे।
44. और हे इस्राएल के घराने, जब मैं तुम्हारे साय तुत्हारे बुरे चालचलन और बिगड़े हुए कामोंके अनुसार नहीं, परन्तु अपके ही नाम के निमित्त बर्ताव करूं, तब तुम जान लोगे कि मेैं यहोवा हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
45. और यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
46. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख दक्खिन की ओर कर, दक्खिन की ओर वचन सुना, और दक्खिन देश के वन के विषय में भविष्यद्वाणी कर;
47. और दक्खिन देश के वन से कह, यहोवा का यह वचन सुन, प्रभु यहोवा योंकहता हेै, मैं तुझ में आग लगाऊंगा, और तुझ में क्या हरे, क्या सूखे, जितने पेड़ हैं, सब को वह भस्म करेगी; असकी धधकती ज्वाला न बुफेगी, और उसके कारण दक्खिन से उत्तर तक सब के मुख फुलस जाएंगे।
48. तब सब प्राणियोंको सूफ पकेगा कि वह आग यहोवा की लगाई हुई है; और वह कभी न बुफेगी।
49. तब मैं ने कहा, हाथ परमेश्वर यहोवा ! लोग तो मेरे विषय में कहा करते हैं कि क्या वह दृष्टान्त ही का कहनेवाला नहीं है?
Chapter 21
1. यहोवा का सह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख यरूशलेम की ओर कर और पवित्रस्यानोंकी ओर वचन सुना; इस्राएल देश के विषय में भविष्यद्वाणी कर और उस से कह,
3. प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं तेरे विरुद्ध हूँ, ओर अपक्की तलवार मियान में से खींचकर तुझ में से धमीं और अधमीं दोनोंको नाश करूंगा।
4. इसलिथे कि मैं तुझ में से धमीं और अधमीं सब को नाश करनेवाला हूँ, इस कारण, मेरी तलवार मियान से निकलकर दक्खिन से उत्तर तक सब प्राणियोंके विरुद्ध चलेगी;
5. तब सब प्राणी जान लेंगे कि यहोवा ने मियान में से अपक्की तलवार खींची है; ओर वह उस में फिर रखी न जाएगी।
6. सो हे मनुष्य के सन्तान, तू आह मार, भारी खेद कर, और टूटी कमर लेकर लोगोंके साम्हने आह मार।
7. और जब वे तुझ से पूछें कि तू कयोंआह मारता है, तब कहना, समाचार के कारण। क्योंकि ऐसी बात आनेवाली है कि सब के मन टूट जाएंगे और सब के हाथ ढीले पकेंगे, सब की आत्मा बेबस और सब के घूटने निर्बल हो जाएंगे। देखो, ऐसी ही बात आनेवाली है, और वह अवश्य पूरी होगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
8. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह,
9. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, सात चढ़ाई हुई तलवार, और फलकाई हुई तलवार !
10. वह इसलिथे सान चढ़ाई गई कि उस से घात किया जाए, और इसलिथे फलकाई गई कि बिजली की नाई चमके ! तो क्या हम हषिर्त हो? वह तो यहोवा के पुत्र का राजदण्ड है और सब पेड़ोंको तुच्छ जाननेवाला है।
11. और वह फलकाने को इसलिथे दी गई कि हाथ में ली जाए; वह इसलिथे सान चढ़ाई और फलकाई गई कि घात करनेवालोंके हाथ में दी जाए।
12. हे मनुष्य के सन्तान चिल्ला, और हाथ, हाथ, कर ! क्योंकि वह मेरी प्रजा पर चला चाहती है, वह इस्राएल के सारे प्रधानोंपर चला चाहती है; मेरी प्रजा के संग वे भी तलवार के वश में आ गए। इस कारण तू अपक्की छाती पीट।
13. क्योंकि सचमुच उसकी जांच हुई है, और यदि उसे तुच्छ जाननेवाला राजदण्ड भी न रहे, तो क्या? परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
14. सो हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी कर, और हाथ पर हाथ दे मार, और तीन बार तलवार का बल दुगुना किया जाए; वह तो घात करने की तलवार वरन बड़े से बड़े के घात करने की तलवार है, जिस से कोठरियोंमें भी कोई नहीं बच सकता।
15. मैं ने घात करनेवाली तलवार को उनके सब फाटकोंके विरुद्ध इसलिथे चलाया है कि लोगोंके मन टूट जाएं, और वे बहुत ठोकर खाएं। हाथ, हाथ ! वह तो बिजली के समान बनाई गई, और घात करने को सान चढ़ाई गई है।
16. सिकुड़कर दहिनी ओर जा, फिर तैयार होकर बाई ओर मुड़, जिधर भी तेरा मुख हो।
17. मैं भी ताली बजाऊंगा और अपक्की जलजलाहट को ठंडा करूंगा, मुझ यहोवा ने ऐसा कहा है।
18. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
19. हे मनुष्य के सन्तान, दो मार्ग ठहरा ले कि बाबुल के राजा की तलवार आए; दोनोंमार्ग एक ही देश से निकलें ! फिर एक चिन्ह कर, अर्यात् नगर के मार्ग के सिर पर एक चिन्ह कर;
20. एक मार्ग ठहरा कि तलवार अम्मोनियोंके रब्बा नगर पर, और यहूदा देश के गढ़वाले नगर यरूशलेम पर भी चले।
21. क्योंकि बाबुल का राजा तिर्मुहाने अर्यात् दोनोंमागॉं के निकलने के स्यान पर भावी बूफने को खड़ा हुआ है, उस ने तीरोंको हिला दिया, और गृहदेवताओं से प्रश्न किया, और कलेजे को भी देखा।
22. उसके दहिने हाथ में यरूशलेम का नाम है कि वह उसकी ओर युद्ध के यन्त्र लगाए, और गला फाड़कर घात करने की आज्ञा दे और ऊंचे शब्द से ललकारे, फाटकोंकी ओर युद्ध के यन्त्र लगाए और दमदमा बान्धे और कोट बनाए।
23. परन्तु लोग तो उस भावी कहने को मिय्या समझेंगे; उन्होंने जो उनकी शपय खाई है; इस कारण वह उनके अधर्म का स्मरण कराकर उन्हें पकड़ लेगा।
24. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, इसलिथे कि तुम्हारा अधर्म जो स्मरण किया गया है, और तुम्हारे अपराध जो खुल गए हैं, कसोंकि तुम्हारे सब कामोंमें पाप ही पाप दिखाई पड़ा है, और तुम स्मरण में आए हो, इसलिथे तुम उन्हीं से पकड़े जाओगे।
25. और हे इस्राएल दुष्ट प्रधान, तेरा दिन आ गया है; अधर्म के अन्त का समय पहुंच गया है।
26. तेरे विषय में परमेश्वर यहोवा योंकहता है, पगड़ी उतार, और मुकुट भी उतार दे; वह ज्योंका त्योंनहीं रहने का; जो नीचा है उसे ऊंचा कर और जो ऊंचा है उसे नीचा कर।
27. मैं इसको उलट दूंगा और उलट पुलट कर दूंगा; हां उलट दूंगा और जब तक उसका अधिक्कारनेी न आए तब तक वह उलटा हुआ रहेगा; तब मैं उसे दे दूंगा।
28. फिर हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह कि प्रभु यहोवा अम्मोनियोंऔर उनकी की हुई नामधराई के विषय में योंकहता है; तू योंकह, खींची हुई तलवार है, वह तलवार घात के लिथे फलकाई हुई है कि नाश करे और बिजली के समान हो---
29. जब तक कि वे तेरे विषय में फूठे दर्शन पाते, और फूठे भावी तुझ को बताते हैं---कि तू उन दुष्ट असाध्य घायलोंकी गर्दनोंपर पके जिनका दिन आ गया, और जिनके अधर्म के अन्त का समय आ पहुंचा है।
30. उसको मियान में फिर रख। जिस स्यान में तू सिरजी गई और जिस देश में तेरी उत्पत्ति हुई, उसी में मैं तेरा न्याय करूंगा।
31. और मैं तुझ पर अपना क्रोध भड़काऊंगा और तुझ पर अपक्की जलजलाहट की आग फूंक दूंगा; ओर तुझे पशु सरीखे मनुष्य के हाथ कर दूंगा जो नाश करने में निपुण हैं।
32. तू आग का कौर होगी; तेरा खून देश में बना रहेगा; तू स्मरण में न रहेगी क्योंकि मुझ यहोवा ही ने ऐसा कहा है।
Chapter 22
1. और यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उस हत्यारे नगर का न्याय न करेगा? क्या तू उसका न्याय न करेगा? उसको उसके सब घिनौने काम जता दे,
3. और कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे नगर तू अपके बीच में हत्या करता है जिस से तेरा समय आए, और अपक्की ही हानि करने और अशुद्ध होने के लिथे मूरतें बनाता है।
4. जो हत्या तू ने की है, उस से तू दोषी ठहरी, और जो मूरतें तू ने बनाई है, उनके कारण तू अशुद्ध हो गई है; तू ने अपके अन्त के दिन को समीप कर लिया, और अपके पिछले वषाॉं तक पहुंच गई है। इस कारण मैं ने तुझे जाति जाति के लोगोंकी ओर से नामधराई का और सब देशोंके ठट्ठे का कारण कर दिया है।
5. हे बदनाम, हे हुल्लड़ से भरे हुए नगर, जो निकट और जो दूर है, वे सब तुझे ठट्ठोंमें उड़ाएंगे।
6. देख, इस्राएल के प्रधान लोग अपके अपके बल के अनुसार तुझ में हत्या करनेवाले हुए हैं।
7. तुझ में माता-पिता तुच्छ जाने गए हैं; तेरे बीच परदेशी पर अन्धेर किया गया; और अनाय और विधवा तुझ में पीसी गई हैं।
8. तू ने मेरी पवित्र वस्तुओं को तुच्छ जाना, और मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया है।
9. तुझ में लुच्चे लोग हत्या करने का तत्पर हुए, और तेरे लोगोंने पहाड़ोंपर भोजन किया है; तेरे बीच महापाप किया गया है।
10. तुझ में पिता की देश उधारी गई; तुझ में ऋतुमती स्त्री से भी भोग किया गया है।
11. किसी ने तुझ में पड़ोसी की स्त्री के साय घिनौना काम किया; और किसी ने अपक्की बहू को बिगाड़कर महापाप किया है, और किसी ने अपक्की बहिन अर्यात् अपके पिता की बेटी को भ्रष्ट किया है।
12. तुझ में हत्या करने के लिथे उन्होंने घूस ली है, तू ने ब्याज और सूद लिया और अपके पड़ोसिक्कों पीस पीसकर अन्याय से लाभ उठाया; और मुझ को तू ने फुला दिया है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
13. सो देख, जो लाभ तू ने अन्याय से उठाया और अपके बीच हत्या की है, उस से मैं ने हाथ पर हाथ दे मारा है।
14. सो जिन दिनोंमें तेरा न्याय करूंगा, क्या उन में तेरा ह्रृदय दृढ़ यौर तेरे हाथ स्यिर रह सकेंगे? मुझ यहोवा ने यह कहा है, और ऐसा ही करूंगा।
15. मैं तेरे लोगोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितरा दूंगा, और तेरी अशुद्धता को तुझ में से नाश करूंगा।
16. और तू जाति जाति के देखते हुए अपक्की ही दृष्टि में अपवित्र ठहरेगी; तब तू जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ।
17. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल का घराना मेरी दृष्टि में धातु का मैल हो गया है; वे सब के सब भट्टी के बीच के पीतल और रांगे और लोहे और शीशे के समान बन गए; वे चान्दी के मैल के समान हो गए हैं।
19. इस कारण प्रभु यहोवा उन से योंकहता है, इसलिथे कि तुम सब के सब धातु के मैल के समान बन गए हो, हो देखो, तैं तुम को यरूशलेम के भीतर इकट्ठा करने पर हूँ।
20. जैसे लोग चान्दी, पीतल, लोहा, शीशा, और रांगा इसलिथे भट्ठी के भीतर बटोरकर रखते हैं कि उन्हे आग फूंककर पिघलाएं, वैसे ही मैं तुम को अपके कोप और जलजलाहट से इकट्ठा करके वहीं रखकर पिघला दूंगा।
21. मैं तुम को वहां बटोरकर अपके रोष की आग से फूंकूंगा, और तुम उसके बीच पिघलाए जाओगे।
22. जैसे चान्दी भट्ठी के बीच में पिघलाई जाती है, वैसे ही तुम उसके बीच में पिघलाए जाओगे; तब तुम जान लोगे कि जिस ने हम पर अपक्की जलजलाहट भड़काई है, वह यहोवा है।
23. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
24. हे मनुष्य के सन्तान, उस देश से कह, तू ऐसा देश है जो शुद्ध नहीं हुआ, और जलजलाहट के दिन में तुझ पर वर्षा नहीं हुई्र;
25. तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने तुझ में राजद्रोह की गोष्ठी की, उन्होंने गरजनेवाले सिंह की नाई अहेर पकड़ा और प्राणियोंको खा डाला है; वे रखे हुए अनमोल धन को छीन लेते हैं, और तुझ में बहुत स्त्रियोंको विधवा कर दिया हे।
26. उसके याजकोंने मेरी व्यवस्या का अर्य खींचखांचकर लगाया है, और मेरी पवित्र वस्तुओं को अपवित्र किया है; उन्होंने पवित्रन्अपवित्र का कुछ भेद नहीं माना, और न औरोंको शुद्ध-अशुद्ध का भेद सिखाया है, और वे मेरे विश्रमदिनोंके विषय में निश्चिन्त रहते हैं, जिस से मैं उनके बीच अपवित्र ठहरता हूँ।
27. उसके प्रधान हुंड़ारोंकी नाई अहेर पकड़ते, और अन्याय से लाभ उठाने के लिथे हत्या करते हैं और प्राण घात करने को तत्पर रहते हैं।
28. और उसके भविष्यद्वक्ता उनके लिथे कच्ची लेसाई करते हैं, उनका दर्शन पाना मिध्या है; यहोवा के बिना कुछ कहे भी वे यह कहकर फूठी भावी बताते हैं कि “प्रभु यहोवा योंकहता है”।
29. देश के साधारण लोग भी अन्धेर करते और पराया धन छीनते हैं, वे दीन दरिद्र को पीसते और न्याय की चिन्ता छोड़कर परदेशी पर अन्धेर करते हैं।
30. और मैं ने उन में ऐसा मनुष्य ढूंढ़ना चाहा जो बाड़े को सुधारे और देश के निमित्त नाके में मेरे साम्हने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पके, परन्तु ऐसा कोई न मिला।
31. इस कारण मैं ने उन पर अपना रोष भड़काया और अपक्की जलजलाहट की आग से उन्हें भस्म कर दिया है; मैं ने उनकी चाल उन्ही के सिर पर लौटा दी है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।।
Chapter 23
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, दो स्त्रियां यी, जो एक ही मा की बेटी यी,
3. वे अपके बचपन ही में वेश्या का काम मिस्र में करने लगी; उनकी छातियां कुंवारपन में पहिले वहीं मींजी गई और उनका मरदन भी हुआ।
4. उन लड़कियोंमें से बड़ी का नाम ओहोला और उसकी बहिन का नाम ओहोलीबा या। वे मेरी हो गई, और उनके पुत्र पुत्रियां उत्पन्न हुई। उनके नामोंमें से ओहोला तो शोमरोन, और ओहेलीबा यरूशलेम है।
5. ओहोला जब मेरी यी, तब ही व्यभिचारिणी होकर अपके मित्रोंपर मोहित होने लगी जो उसके पड़ोसी अश्शूरी थे।
6. वे तो सब के सब नीले वस्त्र पहिननेवाले मनभावने जवान, अधिपति और प्रधान थे, और घोड़ोंपर सवार थे।
7. सो उस ने उन्हीं के साय व्यभिचार किया जो सब के सब सवॉत्तम अश्शूरी थे; और जिस किसी पर वह मोहित हुई, उसी की मूरतोंसे वह अशुद्ध हुई।
8. जो व्यभिचार उस ने मिस्र में सीखा या, उसको भी उस ने न छोड़ा; क्योंकि बचपन में मनुष्योंने उसके साय कुकर्म किया, और उसकी छातियां मींजी, और तन-मन से उसके साय व्यभिचार किया गया या।
9. इस कारण मैं ने उसको उन्हीं अश्शूरी मित्रोंके हाथ कर दिया जिन पर वह मोहित हुई यी।
10. उन्होंने उसको नंगी किया; उसके पुत्र-मुत्रियां छीनकर उसको तलवार से घात किया; इस प्रकार उनके हाथ से दण्ड पाकर वह स्त्रियोंमें प्रसिद्ध हो गई।
11. उसकी बहिन ओहोलीबा ने यह देखा, तौभी वह मोहित होकर व्यभिचार करने में अपक्की बहिन से भी अधिक बढ़ गई।
12. वह अपके अश्शूरी पड़ोसियोंपर मोहित होती यी, जो सब के सब अति सुन्दर वस्त्र पहिननेवाले और घोड़ोंके सवार मनभावने, जवानन अधिपति और और प्रकार के प्रधान थे।
13. तब मैं ने देखा कि वह भी अशुद्ध हो गई; उन दोनोंबहिनोंकी एक ही चाल यी।
14. परन्तु ओहोलीबा अधिक व्यभिचार करती गई; सो जब उस ने भीत पर सेंदूर से खींचे हुए ऐसे कसदी पुरुषें के चित्र देखे,
15. जो कटि में फेंटे बान्धे हुए, सिर में छोर लटकती हुई रंगीली पगडिय़ां पहिने हुए, और सब के सब अपक्की कसदी जन्मभूमि अर्यात् बाबुल के लोगोंकी रीति पर प्रधानोंका रूप धरे हुए थे,
16. तब उनको देखते ही वह उन पर मोहित हुई और उनके पास कसदियोंके देश में दूत भेजे।
17. सो बाबुली लोग उसके पास पलंग पर आए, और उसके साय व्यभिचार करके उसे अशुद्ध किया; और जब वह उन से अशुद्ध हो गई, तब उसका मन उन से फिर गया।
18. तौभी जब वह तन उधड़ती और व्यभिचार करती गई, तब मेरा मन जैसे उसकी बहिन से फिर गया या, वैसे ही उस से भी फिर गया।
19. इस पर भी वह मिस्र देश के अपके बचपन के दिन स्मरण करके जब वह वेश्या का काम करती यी, और अधिक व्यभिचार करती गई;
20. और ऐसे मिस्रोंपर मोहित हुई, जिनका मांस गदहोंका सा, और वीर्य घोड़ोंका सा या।
21. तू इस प्रकार से अपके बचपन के उस समय के महापाप का स्मरण कराती है जब मिस्री लोग तेरी छातियां मींजते थे।
22. इस कारण हे ओहोलीबा, परमेश्वर यहोवा तुझ से योंकहता है, देख, मैं तेरे मिस्रोंको उभारकर जिन से तेरा मन फिर गया चारोंओर से तेरे विरुद्ध ले आऊंगा।
23. अर्यात् बाबुलियोंऔर सब कसदियोंको, और पकोद, शो और कोआ के लोगोंको; और उनके साय सब अश्शूरियोंको लाऊंगा जो सब के सब घोड़ोंके सवार मनभावने जवान अधिपति, और कई प्रकार के प्रतिनिधि, प्रधान और नामी पुरुष हैं।
24. वे लोग हयियार, रय, छकड़े और देश देश के लोगोंका दल लिए हुए तुझ पर चढ़ाई करेंगे; और ढाल और फरी और टोप धारण किए हुए तेरे विरुद्ध चारोंओर पांति बान्धेंगे; और मैं उन्हीं के हाथ न्याय का काम सौंपूंगा, और वे अपके अपके नियम के अनुसार तेरा न्याय करेंगे।
25. और मैं तुझ पर जलूंगा, जिस से वे जलजलाहट के साय तुझ से बर्ताव करेंगे। वे तेरी नाक और कान काट लेंगे, और तेरा जो भी बचा रहेगा वह तलवार से मारा जाएगा। वे तेरे पुत्र-पुत्रियोंको छीन ले जाएंगे, और तेरा जो भी बचा रहेगा, वह आग से भस्म हो जाएगा।
26. वे तेरे वस्त्र भी उतारकर तेरे सुन्दर-सुन्दर गहने छीन ले जाएंगे।
27. इस रीति से मैं तेरा महापाप और जो वेश्या का काम तू ने मिस्र देश में सीखा या, उसे भी तुझ से छुड़ाऊंगा, यहां तक कि तू फिर अपक्की आंख उनकी ओर न लगाएगी और न मिस्र देश को फिर स्मरण करेगी।
28. क्योंकि प्रभु यहोवा तुझ से योंकहता है, देख, मैं तुझे उनके हाथ सौंपूंगा जिन से तू वैर रखती है और जिन से तेरा मन फिर गया है;
29. और वे तुझ से वैर के साय बर्ताव करेंगे, और तेरी सारी कमाई को उठा लेंगे, और तुझे नंगा करके छोड़ देंगे, और तेरे तन के उघाड़े जाने से तेरा व्यभिचार और महापाप प्रगट हो जाएगा।
30. थे काम तुझ से इस कारण किए जाएंगे क्योंकि तू अन्यजातियोंके पीछे व्यभिचारिणी की नाई हो गई, और उनकी मूरतें पूजकर अशुद्ध हो गई है।
31. तू अपक्की बहिन की लीक पर चक्की है; इस कारण मैं तेरे हाथ में उसका सा कटोरा दूंगा।
32. प्रभु यहोवा योंकहता है, अपक्की बहिन के कटोरे से तुझे पीना पकेगा जीे गहिरा और चौड़ा है; तू हंसी और ठट्ठोंमें उड़ाई जाएगी, क्योंकि उस कटोरे में बहुत कुछ समाता है।
33. तू मतवालेपन और दु:ख से छक जाएगी। तू अपक्की बहिन शोमरोन के कटोरे को, अर्यात् विस्मय और उजाड़ को पीकर छक जाएगी।
34. उस में से तू गार गारकर पीएगी, और उसके ठिकरोंको भी चबाएगी और अपक्की छातियां घायल करेगी; क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
35. तू ने जो मुझे भुला दिया है और अपना मुंह मुझ से फेर लिया है, इसलिथे तू आप ही अपके महापाप और व्यभिचार का भार उठा, परमेश्वर यहोवा का यही वचन है।
36. यहोवा ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ओहोला और ओहोलीबा का न्याय करेगा? तो फिर उनके घिनौने काम उन्हें जता दे।
37. क्योंकि उन्होंने व्यभिचार किया है, और उनके हाथोंमें खून लगा है; उन्होंने अपक्की मूरतोंके साय व्यभिचार किया, और अपके लड़केबाले जो मुझ से उत्पन्न हुए थे, उन मूरतोंके आगे भस्म होने के लिथे चढ़ाए हैं।
38. फिर उन्होंने मुझ से ऐसा बर्ताव भी किया कि उसी के साय मेरे पवित्रस्यान को भी अशुद्ध किया और मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया है।
39. वे अपके लड़केबाले अपक्की मूरतोंके साम्हने बलि चढ़ाकर उसी दिन मेरा पवित्रस्यान अपवित्र करने को उस में घुसी। देख, उन्होंने इस भांति का काम मेरे भवन के भीतर किया हे।
40. और उन्होंने दूर से पुरुषोंको बुलवा भेजा, और वे चले भी आए। उनके लिथे तू नहा धो, आंखोंमें अंजन लगा, गहने पहिनकर;
41. सुन्दर पलंग पर बैठी रही; और तेरे साम्हने एक मेज़ बिछी हुई यी, जिस पर तू ने मेरा धूप और मेरा तेल रखा या।
42. तब उसके साय निश्चिन्त लोगोंकी भीड़ का कोलाहल सुन पड़ा, और उन साधारण लोगोंके पास जंगल से बुलाए हुए पियक्कड़ लोग भी थे; उन्होंने उन दोनोंबहिनोंके हाथोंमें चूडियां पहिनाई, और उनके सिरोंपर शोभायमान मुकुट रखे।
43. तब जो क्यभिचार करते करते बुढिय़ा हो गई यी, उसके विषय में बोल उठा, अब तो वे उसी के साय व्यभिचार करेंगे।
44. क्योंकि वे उसके पास ऐसे गए जैसे लोग वेश्या के पास जाते हैं। वैसे ही वे ओहोला और ओहोलीबा नाम महापापिनी स्त्रियोंके पास गए।
45. सो धमीं लोग व्यभिचारिणियोंऔर हत्यारोंके योग्य उसका न्याय करें; क्योंकि वे व्यभिचारिणीयोंऔर हत्यारोंके योग्य उसका न्याय करें; क्योंकि वे व्यभिचारिण्ी है, और उनके हाथोंमें खून लगा है।
46. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं एक भीड़ से उन पर चढ़ाई कराकर उन्हें ऐसा करूंगा कि वे मारी मारी फिरेंगी और लटी जाएंगी।
47. और उस भीड़ के लोग उनको पत्त्रवाह करके उन्हें अपक्की तलवारोंसे काट डालेंगे, तब वे उनके पुत्र-पुत्रियोंको घात करके उनके घर भी आग लगाकर फूंक देंगे।
48. इस प्रकार मैं महापाप को देश में से दूर करूंगा, और सब स्त्रियां शिझा माकर तुम्हारा सा महापाप करने से बची रहेगी।
49. तुम्हारा महापाप तुम्हारे ही सिर पकेगा; और तुम निश्चय अपक्की मूरतोंको पूजा के पापोंका भार उठाओगे; और तब तुम जान लोगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूं।
Chapter 24
1. नवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को, यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, आज का दिन लिख रख, क्योंकि आज ही के दिन बाबुल के राजा ने यरूशलेम आ घेरा है।
3. और इस बलबई घराने से यह दृष्टान्त कह, प्रभु यहोवा कहता है, हण्डे को आग पर घर दो; उसे धरकर उस में पानी डाल दो;
4. तब उस में जांध, कन्धा और सब अच्छे अच्छे टुकड़े बटोरकर रखो; और उसे उत्तम उत्तम हड्डियोंसे भर दो।
5. फुंड में से सब से अच्छे पशु लेकर उन हड्डियोंको हगडे के नीचे ढेर करो; और उनको भली-भांति पकाओ ताकि भीतर ही हड्डियां भी पक जाएं।
6. इसलिथे प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उस हत्यारी नगरी पर ! हाथ उस हण्डे पर ! जिसका मोर्चा उस में बना है और छूटा नहीं; उस में से टुकड़ा टुकड़ा करके निकाल लो, उस पर चिट्ठी न डाली जाए।
7. क्योंकि उस नगरी में किया हुआ खून उस में है; उस ने उसे भूमि पर डालकर धूलि से नहीं ढांपा, परन्तु नंगी चट्टान पर रख दिया।
8. इसलिथे मैं ने भी उसका खून नंगी चट्टान पर रखा है कि वह ढंप न सके और कि बदला लेने को जलजलाहट भड़के।
9. प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उस खूनी नगरी पर ! मैं भी ढेर को बड़ा करूंगा।
10. और अधिक लकड़ी डाल, आग को बहुत तेज कर, मांस को भली भांति पका और मसाला मिला, और हड्डियां भी जला दो।
11. तब हण्डे को छूछा करके अंगारोंपर रख जिस से वह गर्म हो और उसका पीतल जले और उस में का मैल गले, और उसका मोर्चा नष्ट हो जाए।
12. मैं उसके कारण परिश्र्म करते करते यक गया, परन्तु उसका भारी मोर्चा उस से छूटता नहीं, उसका मोर्चा आग के द्वारा भी नहीं छूटता।
13. हे नगरी तेरी अशुद्धता महापाप की है। मैं तो तुझे शुद्ध करना चाहता या, परन्तु तू शुद्ध नहीं हुई, इस कारण जब तक मैं अपक्की लजलजाहट तुझ पर शान्त न कर लूं, तब तक तू फिर शुद्ध न की जाएगी।
14. मुझ यहोवा ही ने यह कहा है; और वह हो जाएगा, मैं ऐसा ही करूंगा, मैं तुझे न छोड़ूंगा, न तुझ पर तरस खऊंगा न पछताऊंगा; तेरे चालचलन और कामोंही के अनुसार तेरा न्याय किया जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
15. यहोवा का यह भी वचन मेरे पास पहुंचा,
16. हे मनुष्य के सन्तान, देख, मैं तेरी आंखोंकी प्रिय को मारकर तेरे पास से ले लेने पर हूँ; परन्तु न तू रोना-पीटना और न आंसू बहाना।
17. लम्बी सांसें ले तो ले, परन्तु वे सुनाई न पकें; मरे हुओं के लिथे भी विलाप न करना । सिर पर पगड़ी बान्धे और पांवोंमें जूती पहने रहना; और न तो अपके होंठ को ढांपना न शोक के योग्य रोटी खाना।
18. तब मैं सवेरे लोगोंसे बोला, और सांफ को मेरी स्त्री मर गई। और बिहान को मैं ने आज्ञा के अनुसार किया।
19. तब लोग मुझ से कहने लगे, क्या तू हमें न बताएगा कि यह जो तू करता है, इसका हम लोगोंके लिथे क्या अर्य है?
20. मैं ने उनको उत्तर दिया, यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. तू इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मैं अपके पवित्रस्यान को जिसके गढ़ होने पर तुम फूलते हो, और जो तम्हारी आंखोंका चाहा हुआ है, और जिसको तुम्हारा मन चाहता है, उसे मैं अपवित्र करने पर हूं; और अपके जिन बेटे-बेटियोंको तुम वहां छोड़ आए हो, वे तलवार से मारे जाएंगे।
22. और जैसा मैं ने किया है वैसा ही तुम लोग करोगे, तुम भी अपके होंठ न ढांपोगे, न शोक के योग्य रोटी खाओगे।
23. तूम सिर पर पगड़ी बान्धे और पांवोंमें जूती पहिने रहोगे, न तुम रोओगे, न छाती पीटोगे, वरन अपके अधर्म के कामोंमें फंसे हुए गलते जाओगे और एक दूसरे की ओर कराहते रहोगे।
24. इस रीति यहोजकेल तुम्हारे लिथे चिन्ह ठहरेगा; जैसा उस ने किया, ठीक वैसा ही तुम भी करोगे। और जब यह हो जाए, तब तुम जान लोगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
25. और हे मनुष्य के सन्तान, क्या यह सच नहीं, कि जिस दिन मैं उनका दृढ़ गढ़, उनकी शोभा, और हर्ष का कारण, और उनके बेटे-बेटियां जो उनकी शोभा, उनकी आंखोंका आनन्द, और मन की चाह हैं, उनको मैं उन से ले लूंगा,
26. उसी दिन जो भागकर बचेगा, वह तेरे पास आकर तुझे समाचार सुनाएगा।
27. उसी दिन तेरा मुंह खुलेगा, और तू फिर चुप न रहेगा परन्तु उस बचे हुए के साय बातें करेगा। सो तू इन लोगोंके लिथे चिन्ह ठहरेगा; और थे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 25
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अम्मोनियोंकी ओर मुंह करके उनके विषय में भविष्यद्वाणी कर।
3. उन से कह, हे अम्मोनियो, परमेश्वर यहोवा का वचन सुनो, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि तुम ने जो मेरे पवित्रस्यान के विषय जब वह अपवित्र किया गया, और इस्राएल के देश के विषय जब वह उजड़ गया, और यहूदा के घराने के विषय जब वे बंधुआई में गए, अहा, अहा ! कहा !
4. इस कारण देखो, मैं तुझ को पूरबियोंके अधिक्कारने में करने पर हूँ; और वे तेरे बीच अपक्की छावनियां डालेंगे और अपके घर बनाएंगे; वे तेरे फल खाएंगे और तेरा दूध पीएंगे।
5. और मैं रब्बा नगर को ऊंटोंके रहने और अम्मोनियोंके देश को भेड़-बकरियोंके बैठने का स्यान कर दूंगा; तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
6. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तुम ने जो इस्राएल के देश के कारण ताली बजाई और नाचे, और अपके सारे मन के अभिमान से आनन्द किया,
7. इस कारण देख, मैं ने अपना हाथ तेरे ऊपर बढ़ाया है; और तुझ को जाति जाति की लूट कर दूंगा, और देश देश के लोगोंमें से तुझे मिटाऊंगा; और देश देश में से नाश करूंगा। मैं तेरा सत्यानाश कर डालूंगा; तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
8. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मोआब और सेईर जो कहते हैं, देखो, यहूदा का घराना और सब जातियोंके समान हो गया हे।
9. इस कारण देख, मोआब के देश के किनारे के नगरोंको बेत्यशीमोत, बालमोन, और किर्यातैम, जो उस देश के शिरोमणि हैं, मैं उनका मार्ग खोलकर
10. उन्हें पूरबियोंके वश में ऐसा कर दूंगा कि वे अम्योनियोंपर चढ़ाई करें; और मैं अम्मोनियोंको यहां तक उनके अधिक्कारने में कर दूंगा कि जाति जाति के बीच उनका स्मरण फिर न रहेगा।
11. और मैं मोआब को भी दण्ड दूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
12. परमेश्वर यहोवा योंभी कहता है, एदोम ने जो यहूदा के घराने से पलटा लिया, और उन से बदला लेकर बड़ा दोषी हो गया है,
13. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं एदोम के देश के विरुद्ध अपना हाथ बढ़ाकर उस में से मनुष्य और पशु दोनोंको मिटाऊंगा; और तेमान से लेकर ददान तक उसको उजाड़ कर दूंगा; और वे तलवार से मारे जाएंगे।
14. और मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के द्वारा एदोम से अपना बदला लूंगा; और वे उस देश में मेरे कोप और जलजलाहट के अनुसार काम करेंगे। तब वे मेरा पलटा लेना जान लेंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, क्योंकि पलिश्ती लोगोंने पलटा लिया, वरन अपक्की युग युग की शत्रुता के कारण अपके मन के अभिमान से बदला लिया कि नाश करें,
16. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, मैं पलिश्तियोंके विरुद्ध अपना हाथ बढ़ाने पर हूँ, और करेतियोंको मिटा डालूंगा; और समुद्रतीर के बचे हुए रहनेवालोंको नाश करूंगा।
17. और मैं जलजलाहट के साय मुक़द्दमा लड़कर, उन से कड़ाई के साय पलटा लूंगा। और जब मैं उन से बदला ले लूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 26
1. ग्सारहवें वर्ष के पक्कीले महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर ने जो यरूशलेम के विष्य में कहा है, अहा, अहा। जो देश देश के लोगोंके फाटक के समान यी, वह नाश होगई।
3. उसके उजड़ जाने से मैं भरपूर हो जाऊंगा ! इस कारण परमेश्वर यहोवा कहता है, हे सोर, देख, मैं तेरे पिरुद्ध हूँ; और ऐसा करूंगा कि बहुत सी जातियां तेरे विरुद्ध ऐसी उठेंगी जैसे समुद्र की लहरें उठती हैं।
4. और वे सोर की शहरपनाह को गिराएंगी, और उसके गुम्मटोंको तोड़ डालेंगी; और मैं उस पर से उसकी मिट्टी खुरचकर उसे नंगी चट्टान कर दूंगा।
5. वह समुद्र के बीच का जाल फैलाने ही का स्यान हो जएगा; क्योंकि परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है; और वह जाति जाति से लुट जाएगा;
6. और उसकी जो बेटियां मैदान में हैं, वे तलवार से मारी जाएंगी। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
7. क्योंकि परमेश्वर यहोवा यह कहता है, देख, मैं सोर के विरुद्ध राजाधिराज बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को घेड़ों, रयों, सवारों, बड़ी भीड़, और दल समेत उत्तर दिशा से ले आऊंगा।
8. और तेरी जो बेटियां मैदान में हों, उनको वह तलवार से मारेगा, और तेरे विरुद्ध कोट बनाएगा और दमदमा बान्धेगा; और ढाल उठाएगा।
9. और वह तेरी शहरपनाह के विरुद्ध युद्ध के यन्त्र चलाएगा और तेरे गुम्मटोंको फरसोंसे ढा देगा।
10. उसके घोड़े इतने होंगे, कि तू उनकी धूलि से ढंप जाएगा, और जब वह तेरे फाटकोंमें ऐसे घुसेगा जैसे लोग नाकेवाले नगर में घुसते हैं, तब तेरी शहरपनाह सवारों, छकड़ों, और रयोंके शब्द से कांप उठेगी।
11. वह अपके घेड़ोंकी टापोंसे तेरी सब सड़कोंको रौन्द डालेगा, और तेरे निवासिक्कों तलवार से मार डालेगा, और तेरे बल के खंभे भूमि पर बिराए जाएंगे।
12. और लोग तेरा धन लूटेंगे और तेरे व्योपार की वस्तुएं छीन लेंगे; वे तेरी शहरपनाह ढा देंगे और तेरे मनभाऊ घर तोड़ डालेंगे; तेरे पत्यर और काठ, और तेरी धूलि वे जल में फेंक देंगे।
13. और मैं तेरे गीतोंका सुरताल बन्द करूंगा, और तेरी वीणाओं की ध्वनि फिर सुनाई न देगी।
14. मैं तुझे नंगी चट्टान कर दूंगा; तू जाल फैलाने ही का स्यान हो जाएगा; और फिर बसाया न जाएगा; क्योंकि मुझ यहोवा ही ने यह कहा है, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है।
15. परमेश्वर यहोवा सोर से योंकहता है, तेरे गिरने के शब्द से जब घायल लोग कराहेंगे और तुझ में घात ही घात होगा, तब क्या टापू न कांप उठेंगे?
16. तब समुद्रतीर के सब प्रधान लोग अपके अपके सिंहासन पर से उतरेंगे, और अपके बाग�े और बूटेदार वस्त्र उतारकर यरयराहट के वस्त्र पहिनेंगे और भूमि पर बैठकर झण झण में कांपेंगे; और तेरे कारण विस्मित रहेंगे।
17. और वे तेरे विषय में विलाप का गीत बनाकर तुझ से कहेंगे, हाथ ! मल्लाहोंकी बसाई हुई हाथ ! सराही हुई नगरी जो समुद्र के बीच निवासियोंसमेत सामयीं रही और सब टिकनेवालोंकी डरानेवाली नगरी यी, तू कैसी नाश हुई है?
18. तेरे गिरने के दिन टापू कांप उठेंगे, और तेरे जाते रहने के कारण समुद्र से सब टापू घबरा जाएंगे।
19. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब मैं तुझे निर्जन नगरोंके समान उजाड़ करूंगा और तेरे ऊपर महासागर चढ़ाऊंगा, और तू गहिरे जल में डूब जाएगा,
20. तब गड़हे में और गिरनेवालोंके संग मैं तुझे भी प्राचीन लोगोंमें उतार दूंगा; और गड़हे में और गिरनेवालोंके संग तुझे भी नीचे के लोक में रखकर प्राचीनकाल के उजड़े हुए स्यानोंके समान कर दूंगा; यहां तक कि तू फिर न बसेगा और न जीवन के लोक में कोई स्यान पाएगा।
21. मैं तुझे घबराने का कारण करूंगा, और तू भविष्य में फिर न रहेगा, वरन ढूंढ़ने पर भी तेरा पता न लगेगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 27
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के विषय एक विलाप का गीत बनाकर उस से योंकह,
3. हे समुद्र के पैठाव पर रहनेवाली, हे बहुत से द्वीपोंके लिथे देश देश के लोगोंके साय व्योपार करनेवाली, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे सोर तू ने कहा है कि मैं सर्वांग सुन्दर हूँ।
4. तेरे सिवाने समुद्र के बीच हैं; तेरे बनानेवाले ने तुझे सर्वांग सुन्दर बनाया।
5. तेरी सब पटरियां सनीर पर्वत के सनौवर की लकड़ी की बनी हैं; तेरे मस्तूल के लिथे लबानोन के देवदार लिए गए हैं।
6. तेरे डांड़ बाशान के बांजवृझोंके बने; तेरे जहाज़ोंका पटाव कित्तियोंके द्वीपोंसे लाए हुए सीधे सनौवर की हाथीदांत जड़ी हुई लकड़ी का बना।
7. तेरे जहाज़ोंके पाल मिस्र से लाए हुए बूटेदार सन के कपके के बने कि तेरे लिथे फणडे का काम दें; तेरी चांदनी एलीशा के द्वीपोंसे लाए हुए नीले और बैंजनी रंग के कपड़ोंकी बनी।
8. तेरे खेनेवाले सीदोन और अर्बद के रहनेवाले थे; हे सोर, तेरे ही बीच के बुद्धिमान लोग तेरे मांफी थे।
9. तेरे कारीगर जोड़ाई करनेवाले गबल नगर के पुरनिथे और बुद्धिमान लोग थे; तुझ में व्योपार करने के लिथे मल्लाहोंसमेत समुद्र पर के सब जहाज तुझ में आ गए थे।
10. तेरी सेना में फारसी, लूदी, और पूती लोग भरती हुए थे; उन्होंने तुझ में ढाल, और टोपी टांगी; और उन्हीं के कारण तेरा प्रताप बढ़ा या।
11. तेरी शहरपनाह पर तेरी सेना के साय अर्बद के लोग चारोंओर थे, और तेरे गुम्मटोंमें शूरवीर खड़े थे; उन्होंने अपक्की ढालें तेरी चारोंओर की शहरपनाह पर टांगी यी; तेरी सुन्दरता उनके द्वारा पूरी हुई यी।
12. अपक्की सब प्रकार की सम्पत्ति की बहुतायत के कारण तशींशी लोग तेरे व्योपारी थे; उन्होंने चान्दी, लोहा, रांगा और सीसा देकर तेरा माल मोल लिया।
13. यावान, तूबल, और मेशेक के लोग तेरे माल के बदले दास-दासी और पीतल के पात्र तुझ से व्योपार करते थे।
14. तोगर्मा के घराने के लोगोंने तेरी सम्पत्ति लेकर घोड़े, सवारी के घोड़े और खच्चर दिए।
15. ददानी तेरे व्योपारी थे; बहुत से द्वीप तेरे हाट बने थे; वे तेरे पास हाथीदांत की सींग और आबनूस की लकड़ी व्योपार में लाते थे।
16. तेरी बहुत कारीगरी के कारण आराम तेरा व्योपारी या; मरकत, बैजनी रंग का और बूटेदार वस्त्र, सन, मूगा, और लालड़ी देकर वे तेरा माल लेते थे।
17. यहूदा और इस्राएल भी तेरे व्योपारी थे; उन्होंने मिन्नीत का गेहूं, पन्नग, और मधु, तेल, और बलसान देकर तेरा माल लिया।
18. तुझ में बहुत कारीगरी हुई और सब प्रकार का धन इकट्टा हुआ, इस से दमिश्क तेरा व्योपारी हुआ; तेरे पास हेलबोन का दाखमधु और उजला ऊन पहुंचाया गया।
19. बदान और यावान ने तेरे माल के बदले में सूत दिया; और उनके कारण फौलाद, तज और अगर में भी तेरा व्योपार हुआ।
20. सवारी के चार-जामे के लिथे ददान तेरा व्योपारी हुआ।
21. अरब और केदार के सब प्रधान तेरे व्योपारी ठहरे; उन्होंने मेम्ने, मेढ़े, और बकरे लाकर तेरे साय लेन-देन किया।
22. शबा और रामा के व्योपारी तेरे व्योपारी ठहरे; उन्होंने उत्तम उत्तम जाति का सब भांति का मसाला, सर्व भांति के मणि, और सोना देकर तेरा माल लिया।
23. हारान, कन्ने, एदेन, शबा के व्योपारी, और अश्शूर और कलमद, थे सब नेरे व्योपारी ठहरे।
24. इन्होंने उत्तम उत्तम वस्तुएं अर्यात् ओढ़ने के नीले और बूटेदार वस्त्र और डोरियोंसे बन्धी और देवदार की बनी हुई चि?ा विचित्र कपड़ोंकी पेटियां लाकर तेरे साय लेन-देन किया।
25. तशींश के जहाज तेरे व्योपार के माल के ढोनेवाले हुए। उनके द्वारा तू समुद्र के बीच रहकर बहुत धनवान् और प्रतापी हो गई यी।
26. तेरे खिवैयोंने तुझे गहिरे जल में पहुंचा दिया है, और पुरवाई ने तुझे समुद्र के बीच तोड़ दिया है।
27. जिस दिन तू डूबेगी, उसी दिन तेरा धन-सम्पत्ति, व्योपार का माल, मल्लाह, मांफी, जुड़ाई का काम करनेवाले, व्योपारी लोग, और तुझ में जितने सिपाही हैं, और तेरी सारी भीड़-भाड़ समुद्र के बीच गिर जाएंगी।
28. तेरे मांफियोंकी चिल्लाहट के शब्द के मारे तेरे आस पास के स्यान कांप उठेंगे।
29. और सब खेनेवाले और मल्लाह, और समुद्र में जितने मांफी रहते हैं, वे अपके अपके जहाज पर से उतरेंगे,
30. और वे भूमि पर खड़े होकर तेरे पिषय में ऊंचे शब्द से बिलक बिलककर रोएंगे। वे अपके अपके सिर पर धूलि उड़ाकर राख में लोटेंगे;
31. और तेरे शोक में अपके सिर मुंड़वा देंगे, और कमर में टाट बान्धकर अपके मन के कड़े दु:ख के साय तेरे विषय में रोएंगे और छाती पीटेंगे।
32. वे विलाप करते हुए तेरे विषय में विलाप का यह गीत बनाकर गाएंगे, सोर जो अब समुद्र के बीच चुपचाप पक्की है, उसके तुल्य कौन नगरी है?
33. जब तेरा माल समुद्र पर से निकलता या, तब बहुत सी जातियोंके लोग तृप्त होते थे; तेरे धन और व्योपार के माल की बहुतायत से पृय्वी के राजा धनी होते थे।
34. जिस समय तू अयाह जल में लहरोंसे टूटी, उस समय तेरे वयोपार का माल, और तेरे सब निवासी भी तेरे भीतर रहकर नाश हो गए।
35. टापुओं के सब रहनेवाले तेरे कारण विस्मित हुए; और उनके सब राजाओं के रोएं खड़े हो गए, और उनके मुंह उदास देख पके हैं।
36. देश देश के व्योपारी तेरे विरुद्ध हयौड़ी बजा रहे हैं; तू भय का कारण हो गई है और फिर स्यिर न रह सकेगी।
Chapter 28
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के प्रधान से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि तू ने मन में फूलकर यह कहा है, मैं ईश्वर हूँ, मैं समुद्र के बीच परमेश्वर के आसन पर बैठा हूँ, परन्तु, यद्यपि तू अपके आपको परमेश्वर सा दिखाता है, तौभी तू ईश्वर नहीं, मनुष्य ही है।
3. तू दानिय्थेल से अधिक बुद्धिमान तो है; कोई भेद तुझ से छिपा न होगा;
4. तू ने अपक्की बुद्धि और समझ के द्वारा धन प्राप्त किया, और अपके भण्डारोंमें सोना-चान्दी रखा है;
5. तू ने बड़ी बुद्धि से लेन-देन किया जिस से तेरा धन बढ़ा, और धन के कारण तेरा मन फूल उठा है।
6. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू जो अपना मन परमेश्वर सा दिखाता है,
7. इसलिथे देख, मैं तुझ पर ऐसे परदेशियोंसे चढ़ाई कराऊंगा, जो सब जातियोंसे अधिक बलात्कारी हैं; वे अपक्की तलवारें तेरी बुद्धि की शोभा पर चलाएंगे और तेरी चमक-दमक को बिगाड़ेंगे।
8. वे तुझे कबर में उतारेंगे, और तू समुद्र के बीच के मारे हुओं की रीति पर मर जाएगा।
9. तब, क्या तू अपके घात करनेवाले के साम्हने कहता रहेगा कि तू परमेश्वर है? तू अपके घायल करनेवाले के हाथ में ईश्वर नहीं, मनुष्य ही ठहरेगा।
10. तू परदेशियोंके हाथ से खतनाहीन लोगोंकी नाई मारा जाएगा; क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है।
11. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
12. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उस से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है।
13. तू परमेश्वर की एदेन नाम बारी में या; तेरे पास आभूषण, माणिक, पद्क़राग, हीरा, फीरोज़ा, सुलैमानी मणि, यशब, तीलमणि, मरकद, और लाल सब भांति के मणि और सोने के पहिरावे थे; तेरे डफ और बांसुलियां तुझी में बनाई गई यीं; जिस दिन तू सिरजा गया या; उस दिन वे भी तैयार की गई यीं।
14. तू छानेवाला अभिषिक्त करूब या, मैं ने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता या; तू आग सरीखे चमकनेवाले मणियोंके बीच चलता फिरता या।
15. जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपक्की सारी चालचलन में निदॉष रहा।
16. परन्तु लेन-देन की बहुतायत के कारण तू उपद्रव से भरकर पापी हो गया; इसी से मैं ने तुझे अपवित्र जानकर परमेश्वर के पर्वत पर से उतारा, और हे छानेवाले करूब मैं ने तुझे आग सरीखे चमकनेवाले मण्यथें के बीच से नाश किया है।
17. सुन्दरता के कारण तेरा मन फूल उठा या; और विभव के कारण तेरी बुद्धि बिगड़ गई यी। मैं ने तुझे भूमि पर पटक दिया; और राजाओं के साम्हने तुझे रखा कि वे तुझ को देखें।
18. तेरे अधर्म के कामो की बहुतायत से और तेरे लेन-देन की कुटिलता से तेरे पवित्रस्यान अपवित्र हो गए; सो मैं ने तुझ में से ऐसी आग उत्पन्न की जिस से तू भस्म हुआ, और मैं ने तुझे सब देखनेवालोंके साम्हने भूमि पर भस्म कर डाला है।
19. देश देश के लोगोंमें से जितने तुझे जानते हैं सब तेरे कारण विस्मित हुए; तू भय का कारण हुआ है और फिर कभी पाया न जाएगा।
20. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख सीदोन की ओर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
22. और कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, हे सीदोन, मैं तेरे विरुद्ध हूँ; मैं तेरे बीच अपक्की महिमा कराऊंगा। जब मैं उसके बीच दण्ड दूंगा और उस में अपके को पवित्र ठहराऊंगा, तब लोग जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
23. मैं उस में मरी फैलाऊंगा, और उसकी सड़कोंमें लोहू बहाऊंगा; और उसके चारोंओर तलवार चलेगी; तब उसके बीच घायल लोग गिरेंगे, और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
24. और इस्राएल के घराने के चारोंओर की जितनी जातियां उनके साय अभिमान का बर्ताव करती हैं, उन में से कोई उनका चुभनेवाला काँटा वा बेधनेवाला शूल फिर न ठहरेगी; तब वे जान लेंगी कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
25. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब में इस्राएल के घराने को उन सब लोगोंमें से इकट्ठा करूंगा, जिनके बीच वे तितर-बितर हुए हैं, और देश देश के लोगोंके साम्हने उनके द्वारा पवित्र ठहरूंगा, तब वे उस देश में वास करेंगे जो मैं ने अपके दास याकूब को दिया या।
26. वे उस में निडर बसे रहेंगे; वे घर बनाकर और दाख की बारियां लगाकर निडर रहेंगे; तब मैं उनके चारोंओर के सब लोगोंको दण्ड दूंगा जो उन से अभिमान का बर्ताव करते हैं, तब वे जान लेंगे कि उनका परमेश्वर यहोवा ही है।
Chapter 29
1. दसवें वर्ष के दसवें महीने के बारहवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख मिस्र के राजा फिरौन की ओर करके उसके और सारे मिस्र के विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर;
3. यह कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, हे मिस्र के राजा फिरौन, मैं तेरे विरुद्ध हूँ, हे बड़े नगर, तू जो अपक्की नदियोंके बीच पड़ा रहता है, जिस ने कहा है कि मेरी नदी मेरी निज की है, और मैं ही ने उसको अपके लिथे बनाया है।
4. मैं तेरे जबड़ोंमें आँकड़े डालूंगा, औरतेरी नदियोंकी मछलियोंको तेरी खाल में चिपटाऊंगा, और तेरी खाल में चिपक्की हुई तेरी नदियोंकी सब मछलियोंसमेत तुझ को तेरी नदियोंमें से निकालूंगा।
5. तब मैं तुझे तेरी नदियोंकी सारी मछलियोंसमेत जंगल में निकाल दूंगा, और तू मैदान में पड़ा रहेगा; किसी भी प्रकार से तेरी सुधि न ली जाएगी। मैं ने तुझे वनपशुओं और आकाश के पझियोंका आहार कर दिया है।
6. तब मिस्र के सारे निवासी जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ। वे तो इस्राएल के घराने के लिथे नरकट की टेक ठहरे थे।
7. जब उन्होंने तुझ पर हाथ का बल दिया तब तू टूट गया और उनके पखौड़े उखड़ ही गए; और जब उन्होंने तुझ पर टेक लगाई, तब तू टूट गया, और उनकी कमर की सारी नसें चढ़ गई।
8. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं तुझ पर तलवार चलवाकर, तेरे मनुष्य और पशु, सभोंको नाश करूंगा।
9. तब मिस्र देश उजाड़ ही अजाड़ होगा; और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ। डस ने कहा है कि मेरी नदी मेरी अपक्की ही है, और मैं ही ने उसे बनाया।
10. इस कारण देख, मैं तेरे और तेरी नदियोंके विरुद्ध हूँ, और मिस्र देश को मिग्दोल से लेकर सवेने तक वरन कूश देश के सिवाने तक उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा।
11. चालीस वर्ष तक उस में मनुष्य वा पशु का पांव तक न पकेगा; और न उस में कोई बसेगा।
12. चालीस वर्ष तक मैं मिस्र देश को उजड़े हुए देशोंके बीच उजाड़ कर रखूंगा; और उसके नगर उजड़े हुए नगरोंके बीच खण्डहर ही रहेंगे। मैं मिस्रियोंको जाति जाति में छिन्न-भिन्न कर दूंगा, और देश देश में तितर-बितर कर दूंगा।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि चालीस वर्ष के बीतने पर मैं मिस्रियोंको उन जातियोंके बीच से इकट्ठा करूंगा, जिन में वे तितर-बितर हुए;
14. और मैं मिस्रियोंको बंधुआई से छुड़ाकर पत्रास देश में, जो उनकी जन्मभूमि है, फिर पहुंचाऊंगा; और वहां उनका छोटा सा राज्य हो जाएगा।
15. वह सब राज्योंमें से छोटा होगा, और फिर अपना सिर और जातियोंके ऊपर न उठाएगा; क्योंकि मैं मिस्रियोंको ऐसा घटाऊंगा कि वे अन्यजातियोंपर फिर प्रभुता न करने पाएंगे।
16. और वह फिर इस्राएल के घराने के भरोसे का कारण न होगा, क्योंकि जब वे फिर उनकी बोर देखने लगें, तब वे उनके अधर्म को स्मरण करेंगे। और तब वे जान लेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
17. फिर सत्ताइसवें वर्ष के पहले महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने सोर के घेरने में अपक्की सेना से बड़ा परिश्र्म कराया; हर एक का सिर चन्दला हो गया, और हर एक के कन्धोंका चमड़ा उड़ गया; तौभी उसको सोर से न तो इस बड़े परिश्र्म की मज़दूरी कुछ मिली और न उसकी सेना को।
19. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, देख, मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को मिस्र देश दूंगा; और वह उसकी भीड़ को ले जाएगा, और उसकी धन सम्पत्ति को लूटकर अपना कर लेगा; सो यही पजदूरी उसकी सेना को मिलेगी।
20. मैं ने उसके परिश्र्म के बदले में उसको मिस्र देश इस कारण दिया है कि उन लोगोंने मेरे लिथे काम किया या, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हे।
21. उसी समय मैं इस्राएल के घराने का एक सींग उगाऊंगा, और उनके बीच तेरा मुंह खोलूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 30
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हाथ, हाथ करो, हाथ उस दिन पर !
3. क्योंकि वह दिन अर्यात् यहोवा का दिन निकट है; वह बादलोंका दिन, और जातियोंके दण्ड का समय होगा।
4. मिस्र में तलवार चलेगी, और जब मिस्र में लोग मारे जाकर गिरेंगे, तब कूश में भी संकट पकेगा, लोग मिस्र को लूट ले लाएंगे, और उसकी तेवें उलट दी जाएंगी।
5. कूश, पूत, लूद और सब दोगले, और कूब लोग, और वाचा बान्धे हुए देश के निवासी, मिस्रियोंके संग तलवार से मारे जाएंगे।
6. यहोवा योंकहता है, मिस्र के संभालनेवाले भी गिर जाएंगे, और अपक्की जिस सामर्य पर मिस्री फूलते हैं, वह टूटेगी; मिग्दोल से लेकर सवेने तक उसके निवासी तलवार से मारे जाएंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
7. और वे उजड़े हुए देशोंके बीच उजड़े ठहरेंगे, और उनके नगर खण्डहर किए हुए नगरोंमें गिने जाएंगे।
8. जब मैं मिस्र में आग लगाऊंगा। और उसके सब सहाथक नाश होंगे, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
9. उस समय मेरे साम्हने से दूत जहाज़ोंपर चढ़कर निडर निकलेंगे और कूशियोंको डराएंगे; और उन पर ऐसा संकट पकेगा जैसा कि मिस्र के दण्ड के समय; क्योंकि दख, वह दिन आता है !
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर के हाथ से मिस्र की भीड़-भाड़ को नाश करा दूंगा।
11. वह अपक्की प्रजा समेत, जो सब जातियोंमें भयानक है, उस देश के नाश करने को पहुंचाया जाएगा; और वे मिस्र के विरुद्ध तलवार खींचकर देश को मरे हुओं से भर देंगे।
12. और मैं नदियोंको सुखा डालूंगा, और देश को बुरे लोगोंके हाथ कर दूंगा; और मैं परदेशियोंके द्वारा देश को, और जो कुछ उस में है, उजाड़ करा दूंगा; मुझ यहोवा ही ने यह कहा है।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं नोप में से मूरतोंको नाश करूंगा और उस में की मूरतोंको रहने न दूंगा; फिर कोई प्रधान मिस्र देश में न उठेगा; और में मिस्र देश में भय उपजाऊंगा।
14. मैं पत्रोस को उजाड़ूंगा, और सोअन में आग लगाऊंगा, और नो को दण्ड दूंगा।
15. और सीन जो मिस्र का दृढ़ स्यान है, उस पर मैं अपक्की जलजलाहट भड़काऊंगा, और नो की भीड़-भाड़ का अन्त कर डालूंगा।
16. और मैं मिस्र में आग लगाऊंगा; सीन बहुत यरयराएगा; और नो फाड़ा जाएगा और नोप के विरोधी दिन दहाड़े उठेंगे।
17. आवेन और पीवेसेत के जवान तलवार से गिरेंगे, और थे नगर बंधुआई में चले जाएंगे।
18. जब मैं मिस्रियोंके जुओं को तहपन्हेस में तोड़ूंगा, तब उस में दिन को अन्धेरा होगा, और उसकी सामर्य जिस पर वह फूलता है, वह नाश हो जाएगी; उस पर घटा छा जाएगी और उसकी बेटियां बंधुआई में चक्की जाएंगी।
19. इस प्रकार मैं मिस्रियोंको दण्ड दूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
20. फिर ग्यारहवें वर्ष के पहिले महीने के सातवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने मिस्र के राजा फिरौन की भुजा तोड़ दी है; और देख? न तो वह जोड़ी गई, न उस पर लेप लगाकर पट्टी चढ़ाई गई कि वह बान्धने से तलवार पकड़ने के योग्य बन सके।
22. सो प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं मिस्र के राजा फिरौन के विरुद्ध हूँ, और उसकी अच्छी और टूटी दीनोंभुजाओं को तोड़ूंगा; और तलवार को उसके हाथ से गिराऊंगा।
23. मैं मिस्रियोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितराऊंगा।
24. और मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को बली करके अपक्की तलवार उसके हाथ में दूंगा; परन्तु फिरौन की भुजाओं को तोड़ूंगा, और वह उसके साम्हने ऐसा कराहेगा जैसा मरनहार घायल कराहता है।
25. मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को सम्भालूंगा, और फिरौन की भुजाएं ढीली पकेंगी, तब वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ। जब मैं बाबुल के राजा के हाथ में अपक्की तलवार दूंगा, तब वह उसे मिस्र देश पर चलाएगा;
26. और मैं मिस्रियोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा और देश देश में छितरा दूंगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 31
1. ग्यारहवें वर्ष के तीसरे महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र के राजा फिरौन और उसकी भीड़ से कह, अपक्की बड़ाई में तू किस के समान है।
3. देख, अश्शूर तो लबानोन का एक देवदार या जिसकी सुन्दर सुन्दर शाखें, घनी छाया देतीं और बड़ी ऊंची यीं, और उसकी फुनगी बादलोंतक पहुंचक्की यी।
4. जल ने उसे बढ़ाया, उस गहिरे जल के कारण वह ऊंचा हुआ, जिस से नदियां उसके स्यान के चारोंओर बहती यीं, और उसकी नालियां निकलकर मैदान के सारे वृझोंके पास पहुंचक्की यीं।
5. इस कारण उसकी ऊंचाई मैदान के सब वृझोंसे अधिक हुई; उसकी टहनियां बहुत हुई, और उसकी शाखाएं लम्बी हो गई, क्योंकि जब वे निकलीं, तब उनको बहुत जल मिला।
6. उसकी टहनियोंमें आकाश के सब प्रकार के पक्की बसेरा करते थे, और उसकी शाखाओं के नीचे मैदान के सब भांति के जीवजन्तु जन्मते थे; और उसकी छाया में सब बड़ी जातियां रहती यीं।
7. वह अपक्की बड़ाई और अपक्की डालियोंकी लम्बाई के कारण सुन्दर हुआ; क्योंकि उसकी जड़ बहुत जल के निकट यी।
8. परमेश्वर की बारी के देवदार भी उसको न छिपा सकते थे, सनौबर उसकी टहनियोंके समान भी न थे, और न अमॉन वृझ उसकी शाखाओं के तुल्य थे; परमेश्वर की बारी का भी कोई वृझ सुन्दरता में उसके बराबर न या।
9. मैं ने उसे डालियोंकी बहुतायत से सुन्दर बनाया या, यहां तक कि एदेन के सब वृझ जो परमेश्वर की बारी में थे, उस से डाह करते थे।
10. इस कारण परमेश्वर यहोवा ने योंकहा है, उसकी ऊंचाई जो बढ़ गई, और उसकी फुनगी जो बादलोंतक पहुंची है, और अपक्की ऊंचाई के कारण उसका मन जो फूल उठा है,
11. इसलिथे जातियोंमें जो सामयीं है, मैं उसी के हाथ उसको कर दूंगा, और वह निश्चय उस से बुरा व्यवहार करेगा। उसकी दुष्टता के कारण मैं ने उसको निकाल दिया है।
12. परदेशी, जो जातियोंमें भयानक लोग हैं, वे उसको काटकर छोड़ देंगे, उसकी डालियां पहाड़ोंपर, और सब तराइयोंमें गिराई जाएंगी, और उसकी शाखाएं देश के सब नालोंमें टूटी पक्की रहेंगी, और जाति जाति के सब लोग उसकी छाया को छोड़कर चले जाएंगे।
13. उस गिरे हुए वृझ पर आकाश के सब पक्की बसेरा करते हैं, और उसकी शाखाओं के ऊपर मैदान के सब जीवजन्तु चढ़ने पाते हैं।
14. यह इसलिथे हुआ है कि जल के पास के सब वृझोंमें से कोई अपक्की ऊंचाई न बढ़ाए, न अपक्की फुनगी को बादलोंतक पहुंचाए, और उन में से जितने जल पाकर दृढ़ हो गए हैं वे ऊंचे होने के कारण सिर न उठाएं; क्योंकि वे भी सब के सब कबर में गड़े हुए मनुष्योंके समान मृत्यु के वश करके अधोलोक में डाल दिए जाएंगे।
15. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस दिन वह अधोलोक में उतर गया, उस दिन मैं ने विलाप कराया और गहिरे समुद्र को ढांप दिया, और नदियोंका बहुत जल रुक गया; और उसके कारण मैं ने लबानोन पर उदासी छा दी, और मैदान के सब वृझ मूछिर्त हुए।
16. जब मैं ने उसको कबर में गड़े हुओं के पास अधोलोक में फेंक दिया, तब उसके गिरने के शब्द से जाति जाति यरयरा गई, और एदेन के सब वृझ अर्यात् लबानोन के उत्तम उत्तम वृझोंने, जितने उस से जल पाते हैं, उन सभोंने अधोलोक में शान्ति पाई।
17. वे भी उसके संग तलवार से मारे हुओं के पास अधोलोक में उतर गए; अर्यात् वे जो उसकी भुजा थे, और जाति जाति के बीच उसकी छाया में रहते थे।
18. सो महिमा और बड़ाई के विषय में एदेन के वृझोंमें से तू किस के समान है? तू तो एदेन के और वृझोंके साय अधोलोक में उतारा जाएगा, और खतनाहीन लोगोंके बीच तलवार से मारे हुओं के संग पड़ा रहेगा। फिरौन अपक्की सारी भेड़-भाड़ समेत योंही होगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 32
1. बारहवें वर्ष के बारहवें महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र के राजा फिरौन के विषय विलाप का गीत बनाकर उसको सुना: जाति जाति में तेरी उपमा जवान सिंह से दी गई यी, परन्तु तू समुद्र के मगर के समान है; तू अपक्की नदियोंमें टूट पड़ा, और उनके जल को पांवोंसे मयकर गंदला कर दिया।
3. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं बहुत सी जातियोंकी सभा के द्वारा तुझ पर अपना जाल फैलाऊंगा, और वे तुझे मेरे महाजाल में खींच लेंगे।
4. तब मैं तुझे भूमि पर छोड़ूंगा, और मैदान में फेंककर आकाश के सब पझियोंको तुझ पर बैठाऊंगा; और तेरे मांस से सारी पृय्वी के जीवजन्तुओं को तृप्त करूंगा।
5. मैं तेरे मांस को पहाड़ोंपर रखूंगा, और तराइयोंको तेरी ऊंचाई से भर दूंगा।
6. और जिस देश में तू तैरता है, उसको पहाड़ोंतक मैं तेरे लोहू से खींचूंगा; और उसके नाले तुझ से भर जाएंगे।
7. जिस समय मैं तुझे मिटाने लगूं, उस समय मैं आकाश को ढांपूंगा और तारोंको धुन्धला कर दूंगा; मैं सूर्य को बादल से छिपाऊंगा, और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा।
8. आकाश में जितनी प्रकाशमान ज्योतियां हैं, उन सब को मैं तेरे कारण धुन्धला कर दूंगा, और तेरे देश में अन्धकार कर दूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
9. जब मैं तेरे विनाश का समाचार जाति जाति में और तेरे अनजाने देशोंमें फैलाऊंगा, तब बड़े बड़े देशोंके लोगोंके मन में रिस उपजाऊंगा।
10. मैं बहुत सी जातियोंको तेरे कारण विस्मित कर दूंगा, और जब मैं उनके राजाओं के साम्हने अपक्की तलवार भेजूंगा, तब तेरे कारण उनके रोएं खड़े हो जाएंगे, और तेरे गिरने के दिन वे अपके अपके प्राण के लिथे कांपके रहेंगे।
11. क्योंकि पामेश्वर यहोवा योंकहता है, बाबुल के राजा की तलवार तुझ पर चलेगी।
12. मैं तेरी भीड़ को ऐसे शूरवीरोंकी तलवारोंके द्वारा गिराऊंगा जो सब जातियोंमे भयानक हैं। वे मिस्र के घमण्ड को तोड़ेंगे, और उसकी सारी भीड़ का सत्यानाश होगा।
13. मैं उसके सब पशुओं को उसके बहुतेरे जलाशयोंके तीर पर से नाश करूंगा; और भविष्य में वे न तो मनुष्य के पांव से और न पशुओं के खुरोंसे गंदले किए जाएंगे।
14. तब मैं उनका जल निर्मल कर दूंगा, और उनकी नदियां तेल की नाई बहेंगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. जब मैं मिस्र देश को उजाड़ कर दूंगा और जिस से वह भरपूर है, उस से छूछा कर दूंगा, और जब मैं उसके सब रहनेवालोंको मारूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
16. लोगोंके विलाप करने के लिथे विलाप का गीत यही है; जाति-जाति की स्त्रियां इसे गाएंगी; मिस्र और उसकी सारी भीड़ के विषय वे यही विलापक्कीत गाएंगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
17. फिर बारहवें वर्ष के पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र की भीड़ के लिथे हाथ-हाथ कर, और उसको प्रतापी जातियोंकी बेटियोंसमेत कबर में गड़े हुओं के पास अधोलोक में उतार।
19. तू किस से मनोहर है? तू उतरकर खतनाहीनोंके संग पड़ा रह।
20. वे तलवार से मरे हुओं के बीच गिरेंगे, उन के लिथे तलवार ही ठहराई गई है; सो मिस्र को उसकी सारी भीड़ समेत घसीट ले जाओ।
21. सामयीं शूरवीर उस से और उसके सहाथकोंसे अधोलोक में बातें करेंगे; वे खतनाहीन लोग वहां तलवार से मरे पके हैं।
22. अपक्की सारी सभा समेत अश्शूर भी वहां है, उसकी कबरें उसके चारोंओर हैं; सब के सब तलवार से मारे गए हैं।
23. उसकी कबरें गड़हे के कोनोंमें बनी हुई हैं, और उसकी कबर के चारोंओर उसकी सभा है; वे सब के सब जो जीवनलोक में भय उपजाते थे, अब तलवार से मरे पके हैं।
24. वहां एलाम है, और उसकी कबर की चारोंओर उसकी सारी भीड़ है; वे सब के सब तलवार से मारे गए हैं, वे खतनाहीन अधोलोक में उतर गए हैं; वे जीवनलोक में भय उपजाते थे, परन्तु अब कबर में और गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर भी सियाही छाई हुई है।
25. उसकी सारी भीड़ समेत उसे मारे हुओं के बीच सेज मिली, उसकी कबरें उसी के चारोंओर हैं, वे सब के सब खतनाहीन तलवार से मारे गए; उन्होंने जीवनलोक में भय उपजाया या, परन्तु अब कबर में और गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर सियाही छाई हुई है; और वे मरे हुओं के बीच रखे गए हैं।
26. वहां सारी भीड़ समेत मेशेक और तूबल हैं, उनके चारोंओर कबरें हैं; वे सब के सब खतनाहीन तलवार से मारे गए, क्योंकि जीवनलोक में वे भय उपजाते थे।
27. और उन गिरे हुए खतनाहीन शूरवीरोंके संग वे पके न रहेंगे जो अपके अपके युद्ध के हयियार लिए हुए अधोलोक में उतर गए हैं, वहां उनकी तलवारें उनके सिरोंके नीचे रखी हुई हैं, और उनके अधर्म के काम उनकी हड्डियोंमें व्यापे हैं; क्योंकि जीवनलोक में उन से शूरवीरोंको भी भय उपजता या।
28. इसलिथे तू भी खतनाहीनोंके संग अंग-भंग होकर तलवार से मरे हुओं के संग पड़ा रहेगा।
29. वहां एदोम और उसके राजा और उसके सारे प्रधान हैं, जो पराक्रमी होने पर भी तलवार से मरे हुओं के संग रखे हैं; गड़हे में गड़े हुए खतनाहीन लोगोंके संग वे भी पके रहेंगे।
30. वहां उत्तर दिशा के सारे प्रधान और सारे सीदोनी भी हैं जो मरे हुओं के संग उतर गए; उन्होंने अपके पराक्रम से भय उपजाया या, परन्तु अब वे लज्जित हुए और तलवार से और मरे हुओं के साय वे भी खतनाहीन पके हुए हैं, और कबर में अन्य गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर भी सियाही छाई हुई है।
31. इन्हें देखकर फिरौन भी अपक्की सारी भीड़ के विषय में शान्ति पाएगा, हां फिरौन और उसकी सारी सेना जो तलवार से मारी गई है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
32. क्योंकि मैं ने उसके कारण जीवनलोक में भय उपजाया या; इसलिथे वह सारी भीड़ समेत तलवार से और मरे हुओं के सहित खतनाहीनोंके बीच लिटाया जाएगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 33
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपके लोगोंसे कह, जब मैं किसी देश पर तलवार चलाने लगूं, और उस देश के लोग किसी को अपना पहरुआ करके ठहराएं,
3. तब यदि वह यह देखकर कि इस देश पर तलवार चला चाहती है, नरसिंगा फूंककर लोगोंको चिता दे,
4. तो जो कोई नरसिंगे का शब्द सुनने पर न चेते और तलवार के चलने से मर जाए, उसका खून उसी के सिर पकेगा।
5. उस ने नरसिंगे का शब्द सुना, परनतु न चेता; सो उसका खून उसी को लगेगा। परन्तु, यदि वह चेत जाता, तो अपना प्राण बचा लेता।
6. परन्तु यदि पहरुआ यह देखने पर कि तलवार चला चाहती है नरसिंगा फूंककर लोगोंको न चिताए, और तलवार के चलने से उन में से कोई मर जाए, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा, परन्तु उसके खुन का लेखा मैं पहरुए ही से लूंगा।
7. इसलिथे, हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने तुझे इस्राएल के घराने का पहरुआ ठहरा दिया है; तु मेरे मुंह से वचन सुन सुनकर उन्होंमेरी ओर से चिता दे।
8. यदि मैं दुष्ट से कहूं, हे दुष्ट, तू निश्चय मरेगा, तब यदि तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय न चिताए, तो वह दुष्ट अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा में तुझी से लूंगा।
9. परन्तु यदि तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय चिताए कि वह अपके मार्ग से फिरे और वह अपके मार्ग मे न फिरे, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु तू अपना प्राण बचा लेगा।
10. फिर हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह कह, तुम लोग कहते हो, हमारे अपराधोंऔर पापोंका भार हमारे ऊपर लदा हुआ है और हम उसके कारण गलते जाते हैं; हम कैसे जीवित रहें?
11. सो तू ने उन से यह कह, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इस से कि दुष्ट अपके मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपके अपके बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्योंमरो?
12. और हे मनुष्य के सन्तान, अपके लोगोंसे यह कह, जब धमीं जन अपराध करे तब उसका धर्म उसे बचा न सकेगा; और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धमीं जन जब वह पाप करे, तब अपके धर्म के कारण जीवित न रहेगा।
13. यदि मैं धमीं से कहूं कि तू निश्चय जीवित रहेगा, और वह अपके धर्म पर भरोसा करके कुटिल काम करने लगे, तब उसके धर्म के कामोंमें से किसी का स्मरण न किया जाएगा; जो कुटिल काम उस ने किए होंवह उन्ही में फंसा हुआ मरेगा।
14. फिर जब मैं दुष्ट से कहूं, तू दिश्चय मरेगा, और वह अपके पाप से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे,
15. अर्यात् यदि दुष्ट जन बन्धक फेर दे, अपक्की लूटी हुई वस्तुएं भर दे, और बिना कुटिल काम किए जीवनदायक विधियोंपर चलने लगे, तो वह न मरेगा; वह निश्चय जीवित रहेगा।
16. जितने पाप उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा; उस ने न्याय और धर्म के काम किए और वह निश्चय जीवित रहेगा।
17. तौभी तुम्हारे लोग कहते हैं, प्रभु की चाल ठीक नहीं; परन्तु उन्हीं की चाज ठीक नहीं है।
18. जब धमीं अपके धर्म से फिरकर कुटिल काम करने लगे, तब निश्चय वह उन में फंसा हुआ मर जाएगा।
19. और जब दुष्ट अपक्की दुष्टता से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, तब वह उनके कारण जीवित रहेगा।
20. तौभी तुम कहते हो कि प्रभु की चाल ठीक नहीं? हे इस्राएल के घराने, मैं हर एक व्यक्ति का न्याय उसकी चाल ही के अनुसार करूंगा।
21. फिर हमारी बंधुआई के ग्यारहवें वर्ष के दसवें महीने के पांचवें दिन को, एक व्यक्ति जो यरूशलेम से भागकर बच गया या, वह मेरे पास आकर कहने लगा, नगर ले लिया गया।
22. उस भागे हुए के आने से पहिले सांफ को यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई यी; और भोर तक अर्यात् उस मनुष्य के आने तक उस ने मेरा मुंह खोल दिया; यो मेरा मुह खुला ही रहा, और मैं फिर गूंगा न रहा।
23. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
24. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल की भूमि के उन खण्डहरोंके रहनेवाले यह कहते हैं, इब्राहीम एक ही मनुष्य या, तौभी देश का अधिक्कारनेी हुआ; परन्तु हम लोग बहुत से हैं, इसलिथे देश निश्चय हमारे ही अधिक्कारने में दिया गया है।
25. इस कारण तू उन से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तुम लोग तो मांस लोहू समेत खाते और अपक्की मूरतोंकी ओर दृष्टि करते, और हत्या करते हो; फिर क्या तुम उस देश के अधिक्कारनेी रहने पाओगे?
26. तुम अपक्की अपक्की तलवार पर भरोसा करते और घिनौने काम करते, और अपके अपके पड़ोसी की स्त्री को अशुद्ध करते हो; फिर क्या तुम उस देश के अधिक्कारनेी रहने पाओगे?
27. तू उन से यह कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध, नि:सन्देह जो लोग खण्डहरोंमें रहते हैं, वे तलवार से गिरेंगे, और जो खुले मैदान में रहता है, उसे मैं जीवजन्तुओं का आहार कर दूंगा, और जो गढ़ोंऔर गुफाओं में रहते हैं, वे मरी से मरेंगे।
28. और मैं उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा; और उसके बल का घमण्ड जाता रहेगा; और इस्राएल के पहाड़ ऐसे उजड़ेंगे कि उन पर होकर कोई न चलेगा।
29. सो जब मैं उन लोगोंके किए हुए सब घिनौने कामोंके कारण उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
30. और हे मनुष्य के सन्तान, तेरे लोग भीतोंके पास और घरोंके द्वारोंमें तेरे विषय में बातें करते और एक दूसरे से कहते हैं, आओ, सुनो, कि यहोवा की ओर से कौन सा वचन निकलता है।
31. वे प्रजा की नाई तेरे पास आते और मेरी प्रजा बनकर तेरे साम्हने बैठकर तेरे वचन सुनते हैं, परन्तु वे उन पर चलते नहीं; मुंह से तो वे बहुत प्रेम दिखाते हैं, परन्तु उनका मन लालच ही में लगा रहता है।
32. और तू उनकी दृष्टि में प्रेम के मधुर गीत गानेवाले और अच्छे बजानेवाले का सा ठहरा है, क्योंकि वे तेरे वचन सुनते तो है, परन्तु उन पर चलते नहीं।
33. सो जब यह बात घटेगी, और वह निश्चय घटेगी ! तब वे जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्ता आया या।
Chapter 34
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के चरवाहोंके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके उन चरवाहोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, हाथ इस्राएल के चरवाहोंपर जो अपके अपके पेट भरते हैं ! क्या चरवाहोंको भेड़- बकरियोंका पेट न भरना चाहिए?
3. तुम लोग चक्कीं खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियोंको तुम नहीं चराते।
4. तुम ने बीमारोंको बलवान न किया, न रोगियोंको चंगा किया, न घयलोंके घावोंको बान्धा, न निकाली हुई को फेर लाए, न खोई्र इुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिक्कारने चलाया है।
5. वे चरवाहे के न होने के कारण तितर-बितर हुई; और सब वनपशुओं का आहार हो गई।
6. मेरी भेड़-बकरियां तितर-बितर हुई है; वे सारे पहाड़ोंऔर ऊंचे ऊंचे टीलोंपर भटकती यीं; मेरी भेड़-बकरियां सारी पृय्वी के ऊपर तितर-बितर हुई; और न तो कोई उनकी सुधि लेता या, न कोई उनको ढूंढ़ता या।
7. इस कारण, हे चरवाहो, यहोवा का वचन सुनो।
8. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मेरी भेड़-बकरियां जो लुट गई, और मेरी भेड़-बकरियां जो चरवाहे के न होने के कारण सब वनपशुओं का आहार हो गई; और इसलिथे कि मेरे चरवाहोंने मेरी भेड़-बकरियोंकी सुधि नहीं ली, और मेरी भेड़- बकरियोंका पेट नहीं, अपना ही अपना पेट भरा;
9. इस कारण हे चरवाहो, यहोवा का वचन सुनो,
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, देखो, मैं चरवाहोंके विरुद्ध हूँ; और मैं उन से अपक्की भेड़-बकरियोंका लेखा लूंगा, और उनको फिर उन्हें चराने न दूंगा; वे फिर अपना अपना पेट भरने न पाएंगे। मैं अपक्की भेड़-बकरियां उनके मुंह से छुड़ाऊंगा कि आगे को वे उनका आहार न हों।
11. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं आप ही अपक्की भेड़-करियोंकी सुधि दूंगा, और उन्हें ढूंढ़ूंगा।
12. जैसे चरवाहा अपक्की भेड़-बकरियोंमें से भटकी हुई को फिर से अपके फुण्ड में बटोरता है, वैसे ही मैं भी अपक्की भेड़-बकरियोंको बटोरूंगा; मैं उन्हे उन सब स्यानोंसे निकाल ले आऊंगा, जहां जहां वे बादल और घोर अन्धकार के दिन तितर-बितर हो गई हों।
13. और मैं उन्होंदेश देश के लोगोंमें से निकालूंगा, और देश देश से इाट्ठा करूंगा, और उन्हीं के निज भूमि में ले आऊंगा; और इस्राएल के पहाड़ोंपर ओर नालोंमें और उस देश के सब बसे हुए स्यानोंमें चराऊंगा।
14. मैं उन्हें अच्छी चराई में चराऊंगा, और इस्राएल के ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंपर उनको चराई मिलेगी; वहां वे अच्छी हरियाली में बैठा करेंगी, और इस्राएल के पहाड़ोंपर उत्तम से उत्तम चराई चरेंगी।
15. मैं आप ही अपक्की भेड़-बकरियोंका चरवाहा हूंगा, और मैं आप ही उन्हें बैठाऊंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. मैं खोई हुई को ढूंढ़ूंगा, और निकाली हुई को फेर लाऊंगा, और घायल के घाव बान्धूंगा, और बीमार को बलवान् करूंगा, और जो मोटी और बलवन्त हैं उन्हें मैं नाश करूंगा; मैं उनकी चरवाही न्याय से करूंगा।
17. और हे मेरे फुण्ड, तुम से परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो मैं भेड़-भेड़ के बीच और मेढ़ोंऔर बकरोंके बीच न्याय करता हूँ।
18. क्या तुम्हें यह छोटी बात जान पड़ती है कि तुम अच्छी चराई चर लो और शेष चराई को अपके पांवोंसे रौंदो; और क्या तुम्हें यह छोटी बात जान पड़ती है कि तुम निर्मल जल पी लो और शेष जल को अपके पांवोंसे गंदला करो?
19. और क्या मेरी भेड़-बकरियोंको तुम्हारे पांवोंसे रौंदे हुए को चरना, और तुम्हारे पांवोंसे गंदले किए हुए को पीना पकेगा?
20. इस कारण परमेश्वर यहोवा उन से योंकहता है, देखो, मैं आप मोटी और दुबली भेड़-बकरियोंके बीच न्याय करूंगा।
21. तुम जो सब बीमारोंको पांजर और कन्धे से यहां तक ढकेलते और सींग से यहां तक मारते हो कि वे तितर-बितर हो जाती हैं,
22. इस कारण मैं अपक्की भेड़-बकरियोंको छुड़ाऊंगा, और वे फिर न लुटेंगी, और मैं भेड़-भेड़ के और बकरी-बकरी के बीच न्याय करूंगा।
23. और मैं उन पर ऐसा एक चरवाहा ठहराऊंगा जो उनकी चरवाही करेगा, वह मेरा दास दाऊद होगा, वही उनको चराएगा, और वही उनका चरवाहा होगा।
24. और मैं, यहोवा, उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और मेरा दास दाऊद उनके बीच प्रधान होगा; मुझ यहोवा ही ने यह कहा है।
25. मैं उनके साय शान्ति की वाचा बान्धूंगा, और दुष्ट जन्तुओं को देश में न रहने दूंगा; सो वे जंगल में निडर रहेंगे, और वन में सोएंगे।
26. और मैं उन्हें और अपक्की पहाड़ी के आस पास के स्यानोंको आशीष का कारण बना दूंगा; और मेंह को मैं ठीक समय में बरसाया करूंगा; और वे आशीषोंकी वर्षा होंगी।
27. और मैदान के वृझ फलेंगे और भूमि अपक्की उपज उपजाएगी, और वे अपके देश में निडर रहेंगे; जब मैं उनके जूए को तोड़कर उन लोगोंके हाथ से छुड़ाऊंगा, जो उन से सेवा कराते हैं, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
28. वे फिर जाति-जाति से लूटे न जाएंगे, और न वनपशु उन्हें फाड़ खाएंगे; वे निडर रहेंगे, और उनको कोई न डराएगा।
29. और मैं उनके लिथे महान बारिथें उपजाऊंगा, और वे देश में फिर भूखोंन मरेंगे, और न जाति-जाति के लोग फिर उनकी निन्दा करेंगे।
30. और वे जानेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा, उनके संग हूँ, और वे जो इस्राएल का घराना है, वे मेरी प्रजा हैं, मुझ परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हैं।
31. तुम तो मेरी भेड़-बकरियां, मेरी चराई की भेड़-बकरियां हो, तुम तो मनुष्य हो, और मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 35
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुंह सेईर पहाड़ की ओर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
3. और उस से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे सेईर पहाड़, मैं तेरे विरुद्ध हूँ; और अपना हाथ तेरे विरुद्ध बढ़ाकर तुझे उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा।
4. मैं तेरे नगरोंको खण्डहर कर दूंगा, और तू उजाड़ हो जाएगा; तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
5. क्योंकि तू इस्राएलियोंसे युग-युग की शत्रुता रखता या, और उनकी विपत्ति के समय जब उनके अधर्म के दण्ड का समय पहुंचा, तब उन्हें तलवार से मारे जाने को दे दिया।
6. इसलिथे परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं तुझे हत्या किए जाने के लिथे तैयार करूंगा ओर खून तेरा पीछा करेगा; तू तो खून से न घिनाता या, अस कारण खून तेरा पीछा करेगा।
7. इस रीति मैं सेईर पहाड़ को उजाड ही उजाड़ कर दूंगा, और जो उस में आता-जाता हो, मैं उसको नाश करूंगा।
8. और मैं उसके पहाड़ोंको मारे हुओं से भर दूंगा; तेरे टीलों, तराइयोंऔर सब नालोंमें तलवार से मारे हुए गिरेंगे !
9. मैं तुझे युग युग के लिथे उजाड़ कर दूंगा, और तेरे नगर फिर न बसेंगे। तब तुम जान लागे कि मैं यहोवा हूँ।
10. क्योंकि तू ने कहा है, कि थे दोनोंजातियां और थे दोनोंदेश मेरे होंगे; और हम ही उनके स्वामी हो जाएंगे, यद्यपि यहोवा वहां या।
11. इस कारण, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगनध, तेरे कोप के अनुसार, और जो जलजलाहट तू ने उन पर अपके वैर के कारण की है, उसी के अनुसार मैं तुझ से बर्ताव करूंगा, और जब मैं तेरा न्याय करूं, तब तुम में अपके को प्रगट करूंगा।
12. और तू जानेगा, कि मुझ यहोवा ने तेरी सब तिरस्कार की बातें सुनी हैं, जो तू ने इस्राएल के पहाड़ोंके विषय में कहीं, कि, वे तो उजड़ गए, वे हम ही को दिए गए हैं कि हम उन्हें खा डालें।
13. तुम ने अपके मुुंह से मेरे विरुद्ध बड़ाई मारी, और मेरे विरुद्ध बहुत बातें कही हैं; इसे मैं ने सुना है।
14. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब पृय्वी भर में आनन्द होगा, तब मैं तुझे उजाड़ करूंगा।
15. तू इस्राएल के घराने के निज भाग के उजड़ जाने के कारण आनन्दित हुआ, सो मैं भी तुझ से वैसा ही करूंगा; हे सेईर पहाड़, हे एदोम के सारे देश, तू उजाड़ हो जाएगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 36
1. फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के पहाड़ोंसे भविष्यद्वाणी करके कह, हे इस्राएल के पहाड़ो, यहोवा का वचन सुनो।
2. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, शत्रु ने तो तुम्हारे विषय में कहा है, आहा ! प्राचीनकाल के ऊंचे स्यान अब हमारे अधिक्कारने में आ गए।
3. इस कारण भविष्यद्वाणी करके कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, लोगोंने जो तुम्हें उजाड़ा और चारोंओर से तुम्हें ऐसा निगल लिया कि तुम बची हुई जातियोंका अधिक्कारने हो जाओ, और लुतरे तुम्हारी चर्चा करते और साधारण लोग तुम्हारी निन्दा करते हैं;
4. इस कारण, हे इस्राएल के पहाड़ो, परमेश्वर यहोवा का वचन सुनो, परमेश्वर यहोवा तुम से योंकहता है, अर्यात् पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंसे और नालोंऔर तराइयोंसे, और उजड़े हुए खण्डहरोंऔर निर्जन नगरोंसे जो चारोंओर की बची हुई जातियोंसे लुट गए और उनके हंसने के कारण हो गए हैं;
5. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, निश्चय मैं ने अपक्की जलन की आग में बची हुई जातियोंके और सारे एदोम के विरुद्ध में कहा है कि जिन्होंने मेरे देश को अपके मन के पूरे आनन्द और अभिमान से अपके अधिक्कारने में किया है कि वह पराया होकर लूटा जाए।
6. इस कारण इस्राएल के देश के विषय में भविष्यद्वाणी करके पहाड़ों, पहाडिय़ों, नालों, और तराइयोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, तुम ने जातियोंकी निन्दा सही है, इस कारण मैं अपक्की बड़ी जलजलाहट से बोला हूँ।
7. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं ने यह शपय खाई है कि नि:सन्देह तुम्हारे चारोंओर जो जातियां हैं, उनको अपक्की निन्दा आप ही सहनी पकेगी।
8. परन्तु, हे इस्राएल के पहाड़ो, तुम पर डालियां पनपेंगी और उनके फल मेरी प्रजा इस्राएल के लिथे लगेंगे; क्योंकि उसका लौट आना निकट है।
9. और देखो, मैं तुम्हारे पझ में हूँ, और तुम्हारी ओर कृपादृष्टि करूंगा, और तुम जोते-बोए जाओगे;
10. और मैं तुम पर बहुत मनुष्य अर्यात् इस्राएल के सारे घराने को बसाऊंगा; और नगर फिर बसाए और खण्डहर फिर बनाएं जाएंगे।
11. और मैं तुम पर मनुष्य और पशु दोनोंको बहुत बढ़ाऊंगा; और वे बढ़ेंगे और फूलें-फलेंगे; और मैं तुम को प्राचीनकाल की नाई बसाऊंगा, और पहिले से अधिक तुम्हारी भलाई करूंगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
12. और मैं ऐसा करूंगा कि मनुष्य अर्यत् मेरी प्रजा इस्राएल तुम पर चल-फिरेगी; और वे तुम्हारे स्वामी होंगे, और तुम उनका निज भाग होंगे, और वे फिर तुम्हारे कारण निर्वश न हो जाएंगे।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, जो लोग तुम से कहा करते हैं, कि तू मनुष्योंका खानेवाला है, और अपके पर बसी हुई जाति को तिर्वश कर देता है,
14. सो फिर तू मनुष्योंको न खएगा, और न अपके पर बसी हुई जाति को निर्वश करेगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. और मैं फिर जाति-जाति के लोगोंसे तेरी निन्दा न सुनवाऊंगा, और तुझे जाति-जाति की ओर से फिर नामधराई न सहनी पकेगी, और तुझ पर बसी हुई जाति को तू फिर ठोकर न खिलाएगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
17. हे मनुष्य के सन्तान, जब इस्राएल का घराना अपके देश में रहता या, तब अपक्की चालचलन और कामोंके द्वारा वे उसको अशुद्ध करते थे; उनकी चालचलन मुझे ऋतुमती की अशुद्धता सी जान पड़ती यी।
18. सो जो हत्या उन्होंने देश में की, और देश को अपक्की मूरतोंके द्वारा अशुद्ध किया, इसके कारण मैं ने उन पर अपक्की जलजलाहट भड़काई।
19. और मैं ने उन्हें जाति-जाति में तितर-बितर किया, और वे देश देश में छितर गए; उनके चालचलन और कामोंके अनुसार मैं ने उनको दण्ड दिया।
20. परन्तु जब वे उन जातियोंमें पहुंचे जिन में वे पहुंचाए गए, तब उन्होंने मेरे पवित्र नाम को अपवित्र ठहराया, क्योंकि लोग उनके विषय में यह कहने लगे, थे यहोवा की प्रजा हैं, पर्रनतु उसके देश से निकाले गए हैं।
21. परन्तु मैं ने अपके पवित्र नाम की सुधि ली, जिसे इस्राएल के घराने ने उन जातियोंके बीच अपवित्र ठहराया या, जहां वे गए थे।
22. इस कारण तू इस्राएल के घराने से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने, मैं इस को तुम्हारे निमित्त नहीं, परन्तु अपके पवित्र नाम के निमित्त करता हूँ जिसे तुम ने उन जातियोंमें अपवित्र ठहराया जहां तुम गए थे।
23. और मैं अपके बड़े नाम को पवित्र ठहराऊंगा, जो जातियोंमें अपवित्र ठहराया गया, जिसे तुम ने उनके बीच अपवित्र किया; और जब मैं उनकी दृष्टि में तुम्हारे बीच पवित्र ठहरूंगा, तब वे जातियां जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
24. मैं तुम को जातियोंमें से ले लूंगा, और देशोंमें से इकट्ठा करूंगा; और तुम को तुम्हारे निज देश में पहुंचा दूंगा।
25. मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूंगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतोंसे शुद्ध करूंगा।
26. मैं तुम को नया मन दूंगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा; और तुम्हारी देह में से पत्यर का ह्रृदय निकालकर तुम को मांस का ह्रृदय दूंगा।
27. और मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूंगा कि तुम मेरी विधियोंपर चलोगे और मेरे नियमोंको मानकर उनके अनुसार करोगे।
28. तुम उस देश में बसोगे जो मैं ने तुम्हारे पितरोंको दिया या; और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूंगा।
29. और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता से छुड़ाऊंगा, और अन्न उपजने की आज्ञा देकर, उसे बढ़ाऊंगा और तुम्हारे बीच अकाल न डालूंगा।
30. मैं वृझोंके फल और खेत की उपज बढ़ाऊंगा, कि जातियोंमें अकाल के कारण फिर तुम्हारी नामधराई न होगी।
31. तब तुम अपके बुरे चालचलन और अपके कामोंको जो अच्छे नहीं थे, स्मरण करके अपके अधर्म और घिनौने कामोंके कारण अपके आप से घृणा करोगे।
32. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, तुम जान जो कि मैं इसको तुम्हारे निमित्त नहीं करता। हे इस्राएल के घराने अपके चालचलन के विषय में लज्जित हो और तुम्हारा मुख काला हो जाए।
33. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब मैं तुम को तुम्हारे सब अधर्म के कामोंसे शुद्ध करूंगा, तब तुम्हारे नगरोंको बसाऊंगा; और तुम्हारे खण्डहर फिर बनाए जाएंगे।
34. और तुम्हारा देश जो सब आने जानेवालोंके साम्हने उजाड़ है, वह उजाड़ होने की सन्ती जोता बोया जाएगा।
35. और लोग कहा करेंगे, यह देश जो उजाड़ या, सो एदेन की बारी सा हो गया, और जो नगर खण्डहर और उजाड़ हो गए और ढाए गए थे, सो गढ़वाले हुए, और बसाए गए हैं।
36. तब जो जातियां तुम्हारे आस पास बची रहेंगी, सो जान लेंगी कि मुझ यहोवा ने ढाए हुए को फिर बनाया, और उजाड़ में पेड़ रोपे हैं, मुझ यहोवा ने यह कहा, और ऐसा ही करूंगा।
37. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, इस्राएल के घराने में फिर मुझ से बिनती की जाएगी कि मैं उनके लिथे यह करूं; अर्यात् मैं उन में मनुष्योंकी गिनती फोड़-बकरियोंकी नाई बढ़ाऊं।
38. जैसे पवित्र समयोंकी भेड़-बकरियां, अर्यात्नियत पवॉं के समय यरूशलेम में की भेड़-बकरियां अनगिनित होती हैं वैसे ही जो नगर अब खण्ढहर हैं वे अनगिनित मनुष्योंके फुण्डोंसे भर जाएंगे। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 37
1. यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और वह मुझ में अपना आत्मा समवाकर बाहर ले गया और मुझे तराई के बीच खड़ा कर दिया; वह तराई हड्डियोंसे भरी हुई यी।
2. तब उस ने मुझे उनके चारोंओर घुमाया, और तराई की तह पर बहुत ही हड्डियोंयीं; और वे बहुत सूखी यीं।
3. तब उस ने मुझ से पूछा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या थे हड्डियां जी सकती हैं? मैं ने कहा, हे परमेश्वर यहोवा, तू ही जानता है।
4. तब उस ने मुझ से कहा, इन हड्डियोंसे भविष्यद्वाणी करके कह, हे सूखी हड्डियो, यहोवा का वचन सुनो।
5. परमेश्वर यहोवा तुम हड्डियोंसे योंकहता हे, देखो, मैं आप तुम में सांस समवाऊंगा, और तुम जी उठोगी।
6. और मैं तुम्हारी नसें उपजाकर मांस चढ़ाऊंगा, और तुम को चमड़े से ढांपूंगा; और तुम में सांस समवाऊंगा और तुम जी जाओगी; और तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
7. इस आज्ञा के अनुसार मैं भविष्यद्वाणी करने लगा; और मैं भविष्यद्वाणी कर ही रहा या, कि एक आहट आई, और भुईडोल हुआ, और वे हड्डियां इकट्ठी होकर हड्डी से हड्डी जुड़ गई।
8. और मैं देखता रहा, कि उन में नसें उत्पन्न हुई और मांस चढ़ा, और वे ऊपर चमड़े से ढंप गई; परन्तु उन में सांस कुछ न यी।
9. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान सांस से भविष्यद्वाणी कर, और सांस से भविष्यद्वाणी करके कह, हे सांस, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि चारोंदिशाओं से आकर इन घात किए हुओं में समा जा कि थे जी उठें।
10. उसकी इस आज्ञा के अनुसार मैं ने भविष्यद्वाणी की, तब सांस उन में आ गई, ओर वे जीकर अपके अपके पांवोंके बल खड़े हो गए; और एक बहुत बड़ी सेना हो गई।
11. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, थे हड्डियां इस्राएल के सारे घराने की उपमा हैं। वे कहत हैं, हमारी हड्डियां सूख गई, और हमारी आशा जाती रही; हम पूरी रीति से कट चूके हैं।
12. इस कारण भविष्यद्वाणी करके उन से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे मेरी प्रजा के लोगो, देखो, मैं तुमहारी कबरें खोलकर तुम को उन से निकालूंगा, और इस्राएल के देश में पहुंचा दूंगा।
13. सो जब मैं तुमहारी कबरें खोलूं, और तुम को उन से निकालूं, तब हे मेरी प्रजा के लोगो, तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
14. और मैं तुम में अपना आत्मा समवाऊंगा, और तुम जीओगे, और तुम को तुम्हारे निज देश में बसाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने यह कहा, और किया भी है, यहोवा की यही वाणी है।
15. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
16. हे मनुष्य के सन्तान, एक लकड़ी लेकर उस पर लिख, यहूदा की और उसके संगी इस्राएलियोंकी; तब दूसरी लकड़ी लेकर उस पर लिख, यूसुफ की अर्यात् गप्रैम की, और उसके संगी इस्राएलियोंकी लकड़ी।
17. फिर उन लकडिय़ोंको एक दूसरी से जोड़कर एक ही कर ले कि वे तेरे हाथ में एक ही लकड़ी बन जाएं।
18. और जब तेरे लोग तुझ से पूछें, क्या तू हमें न बताएगा कि इन से तेरा क्या अभिप्राय है?
19. तब उन से कहना, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं यूसुफ की लकड़ी को जो एप्रैम के हाथ में है, और इस्राएल के जो गोत्र उसके संगी हैं, उनको लेकर यहूदा की लकड़ी से जोड़कर उसके साय एक ही लकड़ी कर दूंगा; और दोनोंमेरे हाथ में एक ही लकड़ी बनेंगी।
20. और जिन लकडिय़ोंपर तू ऐसा लिखेगा, वे उनके साम्हने तेरे हाथ में रहें।
21. और तू उन लोगोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं इस्राएलियोंको उन जातियोंमें से लेकर जिन में वे चले गए हैं, चारोंओर से इकट्ठा करूंगा; और उनके निज देश में पहुचाऊंगा।
22. और मैं उनको उस देश अर्यात् इस्राएल के पहाड़ोंपर एक ही जाति कर दूंगा; और उन सभोंका एक ही राजा होगा; और वे फिर दो न रहेंगे और न दो राज्योंमें कभी बटेंगे।
23. वे फिर अपक्की मूरतों, और घिनौने कामोंवा अपके किसी प्रकार के पाप के द्वारा अपके को अशुद्ध न करेंगे; परन्तु मैं उनको उन सब बस्तियोंसे, जहां वे पाप करते थे, निकालकर शुद्ध रूिंगा, और वे मेरी प्रजा होंगे, और मैं उनका परमेश्वर हूंगा।
24. मेरा दास दाऊद उनका राजा होगा; सो उन सभोंका एक ही चरवाहा होगा। वे मेरे नियमोंपर चलेंगे और मेरी विधियोंको मानकर उनके अनुसार चलेंगे।
25. वे उस देश में रहेंगे जिसे मैं ने अपके दास याकूब को दिया या; और जिस में तुम्हारे पुरखा रहते थे, उसी में वे और उनके बेटे-पोते सदा बसे रहेंगे; और मेरा दास दाऊद सदा उनका प्रधान रहेगा।
26. मैं उनके साय शान्ति की वाचा बान्धूंगा; वह सदा की वाचा ठहरेगी; और मैं उन्हें स्यान देकर गिनती में बढ़ाऊंगा, और उनके बीच अपना पवित्रस्यान सदा बनाए रखूंगा।
27. मेरे निवास का तम्बू उनके ऊपर तना रहेगा; और मैं उनका परमेश्वर हूंगा, और वे मेरी प्रजा होंगे।
28. और जब मेरा पवित्रस्यान उनके बीच सदा के लिथे रहेगा, तब सब जातियां जान लेंगी कि मैं यहोवा इस्राएल का पवित्र करनेवाला हूँ।
Chapter 38
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुंह मागोग देश के गोग की ओर करके, जो रोश, मेशेक और तूबल का प्रधान है, उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर।
3. और यह कह, हे गोग, हे रोश, मेशेक, और तूबल के प्रधान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, मैं तेरे विरुद्ध हूँ।
4. मैं तुझे घुमा ले आऊंगा, और तेरे जबड़ोंमें आंकड़े डालकर तुझे निकालूंगा; और तेरी सारी सेना को भी अर्यात् घोड़ोंऔर सवारोंको जो सब के सब कवच पहिने हुए एक बड़ी भीड़ हैं, जो फरी और ढाल लिए हुए सब के सब तलवार चलानेवाले होंगे;
5. और उनके संग फारस, कूश और पूत को, जो सब के सब ढाल लिए और टोप लगाए होंगे;
6. और गोमेर और उसके सारे दलोंको, और उत्तर दिशा के दूर दूर देशोंके तोगर्मा के घराने, और उसके सारे दलोंको निकालूंगा; तेरे संग बहुत से देशोंके लोग होंगे।
7. इसलिथे तू तैयार हो जा; तू और जितनी भीड़ तेरे पास इकट्ठी हों, तैयार रहना, और तू उनका अगुवा बनना।
8. बहुत दिनोंके बीतने पर तेरी सुधि ली जाएगी; और अन्त के वषॉं में तू उस देश में आएगा, जो तलवार के वश से छूटा हुआ होगा, और जिसके निवासी बहुत सी जातियोंमें से इकट्ठे होंगे; अर्यात् तू इस्राएल के पहाड़ोंपर आएगा जो निरन्तर उजाड़ रहे हैं; परन्तु वे देश देश के लोगोंके वश से छुड़ाए जाकर सब के सब निडर रहेंगे।
9. तू चढ़ाई करेगा, और आंधी की नाई आएगा, और अपके सारे दलोंऔर बहुत देशोंके लोगोंसमेत मेघ के समान देश पर छा जाएगा।
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, उस दिन तेरे मन में ऐसी ऐसी बातें आएंगी कि तू एक बुरी युक्ति भी निकालेगा;
11. और तू कहेगा कि मैं बिन शहरपनाह के गांवोंके देश पर चढ़ाई करूंगा; मैं उन लोगोंके पास जाऊंगा जो चैन से निडर रहते हैं; जो सब के सब बिना शहरपनाह ओर बिना बेड़ोंऔर पल्लोंके बसे हुए हैं;
12. ताकि छीनकर तू उन्हें लूटे और अपना हाथ उन खण्डहरोंपर बढ़ाए जो फिर बसाए गए, और उन लोगोंके विरुद्ध फेरे जो जातियोंमें से इाट्ठे हुए थे और पृय्वी की नाभी पर बसे हुए ढोर और और सम्पत्ति रखते हैं।
13. शबा और ददान के लोग और तशींश के व्योपारी अपके देश के सब जवान सिंहोंसमेत तुझ से कहेंगे, क्या तू लूटने को आता है? क्या तू ने धन छीनने, सोना-चाँदी उठाने, ढोर और और सम्पत्ति ले जाने, और बड़ी लूट अपना लेने को अपक्की भीड़ इकट्टी की है?
14. इस कारण, हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके गोग से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस समय मेरी प्रजा इस्राएल निडर बसी रहेगी, क्या तुझे इसका समाचार न मिलेगा?
15. और तू उत्तर दिशा के दूर दूर स्यानोंसे आएगा; तू और तेरे साय बहुत सी जातियोंके लोग, जो सब के सब घोड़ोंपर चढ़े हुए होंगे, अर्यात् एक बड़ी भीड़ और बलवन्त सेना।
16. और जैसे बादल भूमि पर छा जाता है, वैसे ही तू मेरी प्रजा इस्राएल के देश पर ऐसे चढ़ाई करेगा। इसलिथे हे गोग, अन्त के दिनोंमें ऐसा ही होगा, कि मैं तुझ से अपके देश पर इसलिथे चढ़ाई कराऊंगा, कि जब मैं जातियोंके देखते तेरे द्वारा अपके को पवित्र ठहराऊं, तब वे मुझे पहिचान लेंगे।
17. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, क्या तू वही नहीं जिसकी चर्चा मैं ने प्राचीनकाल में अपके दासोंके, अर्यात् इस्राएल के उन भविष्यद्वक्ताओं द्वारा की यी, जो उन दिनोंमें वषॉं तक यह भविष्यद्वाणी करते गए, कि यहोवा गोग से इस्राएलियोंपर चढ़ाई कराएगा?
18. और जिस दिन इस्राएल के देश पर गोग चढ़ाई करेगा, उसी दिन मेरी जलजलाहट मेरे मुख से प्रगट होगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
19. और मैं ने जलजलाहट और क्रोध की आग में कहा कि नि:सन्देह उस दिन इस्राएल के देश में बड़ा भुईडोल होगा।
20. और मेरे दर्शन से समुद्र की मछलियां और आकाश के पक्की, मैदान के पशु और भूमि पर जितने जीवजन्तु रेंगते हैं, और भूमि के ऊपर जितने मनुष्य रहते हैं, सब कांप उठेंगे; और पहाड़ गिराए जाएंगे; और चढ़ाइयां नाश होंगी, और सब भीतें गिरकर मिट्टी में मिल जाएंगी।
21. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है कि मैं उसके विरुद्ध तलवार चलाने के लिथे अपके सब पहाड़ोंको पुकारूंगा और हर एक की तलवार उसके भाई के विरुद्ध उठेगी।
22. और मैं मरी और इून के द्वारा उस से मुकद्दमा लड़ूंगा; और उस पर और उसके दलोंपर, और उन बहुत सी जातियोंपर जो उसके पास होंगी, मैं बड़ी फड़ी लगाऊंगा, और ओले और आग और गन्धक बरसाऊंगा।
23. इस प्रकार मैं अपके को महान और पवित्र ठहराऊंगा और बहुत सी जातियोंके साम्हने अपके को प्रगट करूंगा। तब वे जान लेंगी कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 39
1. फिर हे मनुष्य के सन्तान, गोग के विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके यह कह, हे गोग, हे रोश, मेशेक और तूबल के प्रधान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं तेरे विरुद्ध हूँ।
2. मैं तुझे घुमा ले आऊंगा, और उत्तर दिशा के दूर दूर देशोंसे चढ़ा ले आऊंगा, और इस्राएल के पहाड़ोंपर पहुंचाऊंगा।
3. वहां मैं तेरा धनुष तेरे बाएं हाथ से गिराऊंगा, और तेरे तीरोंको तेरे दहिने हाथ से गिरा दूंगा।
4. तू अपके सारे दलोंऔर अपके साय की सारी जातियोंसमेत इस्राएल के पहाड़ोंपर मार डाला जाएगा; मैं तुझे भांति भांति के मांसाहारी पझ्ियोंऔर वनपशुओं का आहार कर दूंगा।
5. तू खेत में गिरेगा, क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
6. मैं मागोग में और द्वीपोंके निडर रहनेवालोंके बीच आग लगाऊंगा; और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
7. और मैं अपक्की प्रजा ईस्राएल के बीच अपना नाम प्रगट करूंगा; और अपना पवित्र नाम फिर अपवित्र न होने दूंगा; तब जाति-जाति के लोग भी जान लेंगे कि मैं यहोवा, इस्राएल का पवित्र हूँ।
8. यह घटना हुआ चाहती है और वह हो जाएगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है। यह वही दिन है जिसकी चर्चा मैं ने की है।
9. तब इस्राएल के नगरोंके रहनेवाले निकलेंगे और हयियारोंमें आग लगाकर जला देंगे, ढाल, और फरी, धनुष, और तीर, लाठी, बछ, सब को वे सात वर्ष तक जलाते रहेंगे।
10. और इसके कारण वे मैदान में लकड़ी न बीनेंगे, न जंगल में काटेंगे, क्योंकि वे हयियारोंही को जलाया करेंगे; वे अपके लूटनेवाले को लूटेंगे, और अपके छीननेवालोंसे छीनेंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
11. उस समय मैं गोग को इस्राएल के देश में कब्रिस्तान दूंगा, वह ताल की पूर्व ओर होगा; वह आने जानेवालोंकी तराई कहलाएगी, और आने जानेवालोंको वहां रुकना पकेगा; वहां सब भीड़ समेत गोग को मिट्टी दी जाएगी और उस स्यान का नाम गोग की भीड़ की तराई पकेगा।
12. इस्राएल का घराना उनको सात महीने तक मिट्टी देता रहेगा ताकि अपके देश को शुद्ध करे।
13. देश के सब लोग मिलकर उनको मिट्टी देंगे; और जिस समय मेरी महिमा होगी, उस समय उनका भी नाम बड़ा होगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
14. तब वे मनुष्योंको नियुक्त करेंगे, जो निरन्तर इसी काम में लगे रहेंगे, अर्यात् देश में घूम-घामकर आने जानेवालोंके संग होकर देश को शुद्ध करने के लिथे उनको जो भूमि के ऊपर पके हों, मिट्टी देंगे; और सात महीने के बीतने तक वे ढूंढ़ ढूंढ़कर यह काम करते रहेंगे।
15. और देश में आने जानेवालोंमें से जब कोई मनुष्य की हड्डी देखे, तब उसके पास एक चिन्ह खड़ा करेगा, यह उस समय तक बना रहेगा जब तक मिट्टी देनेवाले उसे गोग की भीड़ की तराई में गाड़ न दें।
16. वहां के नगर का नाम भी “हमोना है”। योंदेश शुद्ध किया जाएगा।
17. फिर हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, भांति भांति के सब पझियोंऔर सब वनपशुओं को आज्ञा दे, इकट्ठे होकर आओ, मेरे इस बड़े यज्ञ में जो मैं तुम्हारे लिथे इस्राएल के पहाड़ोंपर करता हूँ, हर एक दिशा से इकट्ठे हो कि तुम मांस खाओ और लोहू पीओ।
18. तुम शूरवीरोंका मांस खाओगे, और पृय्वी के प्रधानोंका लोहू पीओगे और मेढ़ों, मेम्नों, बकरोंऔर बैलोंका भी जो सब के सब बाशान के तैयार किए हुए होंगे।
19. और मेरे उस भोज की चक्कीं से जो मैं तुम्हारे लिथे करता हूँ, तुम खाते-खाते अधा जाओगे, और उसका लोहू मीते-पीते छक जाओगे।
20. तुम मेरी मेज़ पर घाड़ों, सवारों, शूरवीरों, और सब प्रकार के योद्धाओं से तृप्त होंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
21. और मैं जाति-जाति के बीच अपक्की महिमा प्रगट करूंगा, और जाति-जाति के सब लोग मेरे न्याय के काम जो मैं करूंगा, और मेरा हाथ जो उन पर पकेगा, देख लेंगे।
22. उस दिन से आगे इस्राएल का घराना जान लेगा कि यहोवा हमारा परमेश्वर है।
23. और जाति-जाति के लोग भी जान लेंगे कि इस्राएल का घराना अपके अधर्म के कारण बंधुआई में गया या; क्योंकि उन्होंने मुझ से ऐसा विश्वासघात किया कि मैं ने अपना मुंह उन से फेर लिया और अनको उनके वैरियोंके वश कर दिया, और वे सब तलवार से मारे गए।
24. मैं ने उनकी अशुद्धता और अपराधोंही के अनुसार उन से बर्ताव करके उन से अपना मुंह फेर लिया या।
25. इसलिथे परमेश्वर यहोवा योंकहता है, अब मैं याकूब को बंधुआई से फेर लाऊंगा, और इस्राएल के सारे घराने पर दया करूंगा; और अपके पवित्र नाम के लिथे मुझे जलन होगी।
26. तब उस सारे विश्वासघात के कारण जो उन्होंने मेरे विरुद्ध किया वे लज्जित होंगे; और अपके देश में निडर रहेंगे; और कोई उनको न डराएगा।
27. और जब मैं उनको जाति-जाति के बीच से फेर लाऊंगा, और उन शत्रुओं के देशोंसे इकट्ठा करूंगा, तब बहुत जातियोंकी दृष्टि में उनके द्वारा पवित्र ठहरूंगा।
28. और तब वे जान लेंगे कि यहोवा हमारा परमेश्वर है, क्योंकि मैं ने उनको जाति-जाति में बंधुआ करके फिर उनके निज देश में इकट्ठा किया है। मैं उन में से किसी को फिर परदेश में न छोडूंगा,
29. और उन से अपना मुंह फिर कभी न फेर लूंगा, क्योंकि मैं ने इस्राएल के घराने पर अपना आत्मा उण्डेला है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 40
1. हमारी बंधुआई के पच्चीसवें वर्ष अर्यात् यरूशलेम नगर के ले लिए जाने के बाद चौदहवें वर्ष के पहिले महीने के दसवें दिन को, यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और उस ने मुझे वहां पहुंचाया।
2. अपके दर्शनोंमें परमेश्वर ने मुझे इस्राएल के देश में पहुंचाया और वहां एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर खड़ा किया, जिस पर दक्खिन ओर मानो किसी नगर का आकार या।
3. जब वह मुझे वहां ले गया, तो मैं ने क्या देखा कि पीतल का रूप घरे हुए और हाथ में सन का फीता और मापके का बांस लिए हुए एक पुरुष फाटक में खड़ा है।
4. उस पुरुष ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपक्की आंखोंसे देख, और अपके कानोंसे सुन; और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊंगा उस सब पर ध्यान दे, क्योंकि तू इसलिथे यहां पहुंचाया गया है कि मैं तुझे थे बातें दिखाऊं; और जो कुछ तू देखे वह इस्राएल के घराने को बताए।
5. और देखो, भवन के बाहर चारोंओर एक भीत यी, और उस पुरुष के हाथ में मापके का बांस या, जिसकी लम्बाई ऐसे छ:हाथ की यी जो साधारण हाथोंसे चौवा भर अधिक है; सो उस ने भीत की मोटाई मापकर बांस भर की पाई, फिर उसकी ऊंचाई भी मापकर बांस भर की पाई।
6. तब वह उस फाटक के पास आया जिसका मुंह पूर्व की ओर या, और उसकी सीढ़ी पर चढ़कर फाटक की दोनोंडेवढिय़ोंकी चौड़ाई मापकर एक एक बांस भर की पाई।
7. और पहरेवाली कोटरियां बांस भर लम्बी और बांस भर चौड़ी यी; और दो कोठरियोंका अन्तर पांच हाथ का या; और फाटक की डेवढ़ी जो फाटक के ओसारे के पास भवन की ओर यी, वह भी बांस भर की यी।
8. तब उस ने फाटक का वह ओसारा जो भवन के साम्हने या, मापकर बांस भर का पाया।
9. और उस ने फाटक का ओसारा मापकर आठ हाथ का पाया, और उसके खम्भे दो दो हाथ के पाए, और फाटक का ओसारा भवन के साम्हने या।
10. और पूवीं फाटक की दोनोंओर तीन तीन पहरेवाली कोठरियां यीं जो सब एक ही माप की यीं, और दोनोंओर के खम्भे भी एक ही माप के थे।
11. फिर उस न फाटक के द्वार की चौड़ाई मापकर दस हाथ की पाई; और फाटक की लम्बाई मापकर तेरह हाथ की पाई।
12. और दोनोंओर की पहरेवाली कोठरियोंके आगे हाथ भर का स्यान या और दोनोंओर कोठरियां छ:छ: हाथ की यीं।
13. फिर उस ने फाटक को एक ओर की पहरेवाली कोठरी की छत से लेकर दूसरी ओर की पहरेवाली कोठरी की छत तक मापकर पच्चीस हाथ की दूरी पाई, और द्वार आम्हने-साम्हने थे।
14. फिर उस ने साठ हाथ के खम्भे मापे, और आंगन, फाटक के आस पास, खम्भोंतक या।
15. ओर फाटक के बाहरी द्वार के आगे से लेकर उसके भीतरी ओसारे के आगे तक पचास हाथ का अन्तर या।
16. और पहरेवाली कोठरियोंमें, और फाटक के भीतर चारोंओर कोठरियोंके बीच के खम्भे के बीच बीच में फिलमिलीदार खिड़कियां यी, और खम्भोंके ओसारे में भी वैसी ही यी; और फाटक के भीतर के चारोंओर खिड़कियां यीं; और हर एक खम्भे पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
17. तब वह मुझे बाहरी आंगन में ले गया; और उस आंगन के चारोंओर कोठरियां यीं; और एक फर्श बना हुआ या; जिस पर तीस कोठरियां बनी यीं।
18. और यह फर्श अर्यात् निचला फर्श फाटकोंसे लगा हुआ या और उनकी लम्बाई के अनुसार या।
19. फिर उस ने निचले फाटक के आगे से लेकर भीतरी आंगन के बाहर के आगे तक मापकर सौ हाथ पाए; वह पूर्व और उत्तर दोनोंओर ऐसा ही या।
20. तब बाहरी आंगन के उत्तरमुखी फाटक की लम्बाई और चौड़ाई उस ने मापी।
21. और उसकी दोनोंओर तीन तीन पहरेवााली कोठरियां यीं, और इसके भी खम्भोंके ओसारे की माप पहिले फाटक के अनुसार यी; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
22. और इसकी भी खिड़कियोंऔर खम्भोंके ओसारे और खजूरोंकी माप पूर्वमुखी फाटक की सी यी; और इस पर चढ़ने को सात सीढिय़ां यीं; और उनके साम्हने इसका ओसारा या।
23. और भीतरी आंगन की उत्तर और पूर्व ओर दूसरे फाटकोंके साम्हने फाटक थे और उस ने फाटकोंकी दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
24. फिर वह मुझे दक्खिन ओर ले गया, और दक्खिन ओर एक फाटक या; और उस ने इसके खम्भे और खम्भोंका ओसारा मापकर इनकी वैसी ही माप पाई।
25. और उन खिड़कियोंकी नाई इसके और इसके खम्भोंके ओसारोंके चारोंओर भी खिड़कियां यीं; इसकी भी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
26. और इस में भी चढ़ने के लिथे सात सीढिय़ां यीं और उनके साम्हने खम्भोंका ओसारा या; और उसके दोनोंओर के खम्भोंपर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
27. और दक्खिन ओर भी भीतरी आंगन का एक फाटक या, और उस ने दक्खिन ओर के दोनोंफाटकोंकी दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
28. तब वह दक्खिनी फाटक से होकर मुझे भीतरी आंगन में ले गया, और उस ने दक्खिनी फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
29. अर्यात् इसकी भी पहरेवाली कोठरियां, और खम्भे, और खम्भोंका ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भोंके ओसारे के भी चारोंओर भी खिड़कियां यीं; और इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
30. और इसके चारोंओर के खम्भोंका ओसार भी पच्चीस हाथ लम्बा, और पचास हाथ चौड़ा या।
31. और इसका खम्भोंका ओसारा बाहरी आंगन की ओर या, और इसके खम्भोंपर भी खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, और इस पर चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
32. फिर वह पुरुष मुझे पूर्व की ओर भीतरी आंगन में ले गया, और उस ओर के फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
33. और इसकी भी पहरेवाली कोठरियां और खम्भे और खम्भोंका ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भोंके ओसारे के चारोंओर भी खिड़कियां यीं; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
34. इसका ओसारा भी बाहरी आंगन की ओर या, और उसके दोनोंओर के खम्भोंपर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और इस पर भी चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
35. फिर उस पुरुष ने मुझे उत्तरी फाटक के पास ले जाकर उसे मापा, और उसकी भी माप वैसी ही पाई।
36. उसके भी पहरेवाली कोठरियां और खम्भे और उनका ओसारा या; और उसके भी चारोंओर खिड़कियां यीं; उसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
37. उसके खम्भे बाहरी आंगन की ओर थे, और उन पर भी दोनोंओर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और उस में चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
38. फिर फाटकोंके पास के खम्भोंके निकट द्वार समेत कोठरी यी, जहां होमबलि धोया जाता या।
39. और होमबलि, पापबलि, और दोषबलि के पशुओं के वध करने के लिथे फाटक के ओसारे के पास उसके दोनोंओर दो दो मेज़ें यीं।
40. और फाटक की एक बाहरी अलंग पर अर्यात् उत्तरी फाटक के द्वार की चढ़ाई पर दो मेज़ें यीं; और उसकी दूसरी बाहरी अलंग पर भी, जो फाटक के ओसारे के पास यी, दो मेजें यीं।
41. फाटक की दोनोंअलंगोंपर चार चार मेजें यीं, सो सब मिलकर आठ मेज़ें यीं, जो बलिपशु वध करने के लिथे यीं।
42. फिर होमबलि के लिथे तराशे हुए पत्यर की चार मेज़ें यीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी, डेढ़ हाथ चौड़ी, और हाथ भर ऊंची यीं; उन पर होमबलि और मेलबलि के पशुओं को वध करने के हयियार रखे जाते थे।
43. भीतर चारोंओर चौवे भर की अंकडिय़ां लगी यीं, और मेज़ोंपर चढ़ावे का मांस रखा हुआ या।
44. और भीतरी आंगन की उत्तरी फाटक की अलंग के बाहर गानेवालोंकी कोठरियां यीं जिनके द्वार दक्खिन ओर थे; और पूवीं फाटक की अलंग पर एक कोठरी यी, जिसका द्वार उत्तर ओर या।
45. उस ने मुझ से कहा, यह कोठरी, जिसका द्वार दक्खिन की ओर है, उन याजकोंके लिथे है जो भवन की चौकसी करते हैं,
46. और जिस कोठरी का द्वार उत्तर ओर है, वह उन याजकोंके लिथे है जो वेदी की चौकसी करते हैं; थे सादोक की सन्तान हैं; और लेवियोंमें से यहोवा की सेवा टहल करने को केवल थे ही उसके समीप जाते हैं।
47. फिर उस ने आंगन को मापकर उसे चौकोना अर्यात् सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा पाया; और भवन के साम्हने वेदी यी।
48. फिर वह मुझे भवन के ओसारे में ले गया, और ओसारे के दोनोंओर के खम्भोंको मापकर पांच पांच हाथ का पाया; और दोनोंओर फाटक की चौड़ाई तीन तीन हाथ की यी।
49. ओसारे की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की यी; और उस पर चढ़ने को सीढिय़ां यीं; और दोनोंओर के खम्भोंके पास लाटें यीं।
Chapter 41
1. फिर वह मुझे मन्दिर के पास ले गया, और उसके दोनोंओर के खम्भोंको मापकर छ:छ: हाथ चौड़े पाया, यह तो तम्बू की चौड़ाई यी।
2. और द्वार की चौड़ाई दस हाथ की यी, और द्वार की दोनोंअलंगें पांच पांच हाथ की यीं; और उस ने मन्दिर की लम्बाई मापकर चालीस हाथ की, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की पाई।
3. तब उस ने भीतर जाकर द्वार के खम्भोंको मापा, और दो दो हाथ का पाया; और द्वार छ: हाथ का या; और द्वार की चौड़ाई सात हाथ की यी।
4. तब उस ने भीतर के भवन की लम्बाई और चौड़ाई मन्दिर के साम्हने मापकर बीस बीस हाथ की पाई; और उस ने मुझ से कहा, यह तो परमपवित्र स्यान है।
5. फिर उस ने भवन की भीत को मापकर छ: हाथ की पाया, और भवन के आस पास चार चार हाथ चौड़ी बाहरी कोठरियां यीं।
6. और थे बाहरी कोठरियां तिमहली यीं; और एक एक महल में तीस तीस कोठरियां यीं। भवन के आस पास की भीत इसलिथे यी कि बाहरी कोठरियां उसके सहारे में हो; और उसी में कोठरियोंकी कडिय़ां पैठाई हुई यीं और भवन की भीत के सहारे में न यीं।
7. और भवन के आस पास जो कोठरियां बाहर यीं, उन में से जो ऊपर यीं, वे अधिक चौड़ी यीं; अर्यात् भवन के आस पास जो कुछ बना या, वह जैसे जैसे ऊपर की ओर चढ़ता गया, वैसे वैसे चौड़ा होता गया; इस रीति, इस घर की चौड़ाई ऊपर की ओर बढ़ी हुई यी, और लोग नीचले महल के बीच से उपरले महल को चढ़ सकते थे।
8. फिर मैं ने भवन के आस पास ऊंची भूमि देशी, और बाहरी कोठरियोंकी ऊंचाई जोड़ तक छ: हाथ के बांस की यी।
9. बाहरी कोठरियोंके लिथे जो भीत यी, वह पांच हाथ मोटी यी, और जो स्यान खाली रह गया या, वह भवन की बाहरी कोठरियोंका स्यान या।
10. बाहरी कोठरियोंके बीच बीच भवन के आस पास बीस हाथ का अन्तर या।
11. और बाहरी कोठरियोंके द्वार उस स्यान की ओर थे, जो खाली या, अर्यात् एक द्वार उत्तर की ओर और दूसरा दक्खिन की ओर या; और जो स्यान रह गया, उसकी चौड़ाई चारोंओर पांच हाथ की यी।
12. फिर जो भवन मन्दिर के पश्चिमी आंगन के साम्हने या, वह सत्तर हाथ चौडा या; और भवन के आस पास की भीत पांच हाथ मोटी यी, और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ की यी।
13. तब उस न भवन की लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई; और भीतोंसमेत आंगन की भी लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई।
14. और भवन का पूवीं साम्हना और उसका आंगन सौ हाथ चौड़ा या।
15. फिर उस ने पीछे के आंगन के साम्हने की भीत की लम्बाई जिसके दोनोंओर छज्जे थे, मापकर सौ हाथ की पाई; और भीतरी भवन और आंगन के ओसारोंको भी मापा।
16. तब उस ने डेवढिय़ोंऔर फिलमिलीदार खिड़कियों, और आस पास के तीनोंमहलोंके छज्जोंको मापा जो डेवढ़ी के साम्हने थे, और चारोंओर उनकी तखता-बन्दी हुई यी; और भूमि से खिड़कियोंतक और खिड़कियोंके आस पास सब कहीं तख़ताबन्दी हुई यी।
17. फिर उस ने द्वार के ऊपर का स्यान भीतरी भवन तक ओर उसके बाहर भी और आस पास की सारी भीत के भीतर और बाहर भी मापा।
18. और उस में करूब और खजूर के पेड़ ऐसे हुदे हुए थे कि दो दो करूबोंके बीच एक एक खजूर का पेड़ या; और करूबोंके दो दो मुख थे।
19. इस प्रकार से एक एक खजूर की एक ओर मनुष्य का मुख बनाया हुआ या, और दूसरी ओर जवान सिंह का मुख बनाया हुआ या। इसी रीति सारे भवन के चारोंओर बना या।
20. भूमि से लेकर द्वार के ऊपर तक करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, मन्दिर की भीत इसी भांति बनी हुई यी।
21. भवन के द्वारोंके खम्भे चौपहल थे, और पवित्रस्यान के साम्हने का रूप मन्दिर का सा या।
22. वेदी काठ की बनी यी, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ, ओर लम्बाई दो हाथ की यी; और उसके कोने और उसका सारा पाट और अलंगें भी काठ की यीं। और उस ने मुुफ से कहा, यह तो यहोवा के सम्मुख की मेज़ है।
23. और मन्दिर और पवित्रस्यान के द्वारोंके दो दो किवाड़ थे।
24. और हर एक किवाड़ में दो दो मुड़नेवाले पल्ले थे, हर एक किवाड़ के लिथे दो दो पल्ले।
25. और जैसे मन्दिर की भीतोंमें करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, वैसे ही उसके किवाड़ोंमें भी थे, और ओसारे की बाहरी ओर लकड़ी की मोटी मोटी धरनें यीं।
26. और ओसारे के दोनोंओर फिलमिलीदार खिड़कियां यीं और खजूर के पेड़ खुदे थे; और भवन की बाहरी कोठरियां और मोटी मोटी धरनें भी यीं।
Chapter 42
1. फिर वह मुझे बाहरी आंगन में उत्तर की ओर ले गया, और मुझे उन दो कोठरियोंके पास लाया जो भवन के आंगन के साम्हने और उसकी उत्तर ओर यीं।
2. सौ हाथ की दूरी पर उत्तरी द्वार या, और चौड़ाई पचास हाथ की यी।
3. भीतरी आंगन के बीस हाथ साम्हने और बाहरी आंगन के फर्श के साम्हने तीनोंमहलोंमें छज्जे थे।
4. और कोठरियोंके साम्हने भीतर की ओर जानेवाला दस हाथ चौड़ा एक मार्ग या; और हाथ भर का एक और मार्ग या; और कोठरियोंके द्वार उत्तर ओर थे।
5. और उपरली कोठरियां छोटी यीं, अर्यात् छज्जोंके कारण वे निचक्की और बिचक्की कोठरियोंसे छोटी यीं।
6. क्योंकि वे सिमहली यीं, और आंगनोंके समान उनके खम्भे न थे; इस कारण उपरली कोठरियां निचक्की और बिचक्की कोठरियोंसे छोटी यीं।
7. और जो भीत कोठरियोंके बाहर उनके पास पास यी अर्यात् कोठरियोंके साम्हने बाहरी आंगन की ओर यी, उसकी लम्बाई पचास हाथ की यी।
8. क्योंकि बाहरी आंगन की कोठरियां पचास हाथ लम्बी यीं, और मन्दिर के साम्हने की अलंग सौ हाथ की यी।
9. और इन कोठरियोंके नीचे पूर्व की ओर मार्ग या, जहां लोग बाहरी आंगन से इन में जाते थे।
10. आंगन की भीत की चौड़ाई में पूर्व की ओर अलग स्यान और भवन दोनोंके साम्हने कोठरियां यीं।
11. और उनके साम्हने का मार्ग उत्तरी कोठरियोंके मार्ग सा य; उनकी लम्बाई-चौड़ाई बराबर यी और निकास और ढंग उनके द्वार के से थे।
12. और दक्खिनी कोठरियोंके द्वारोंके अनुसार मार्ग के सिक्के पर द्वार या, अर्यात् पूर्व की ओर की भीत के साम्हने, जहां से लोग उन में प्रवेश करते थे।
13. फिर उस ने मुझ से कहा, थे उत्तरी और दक्खिनी कोठरियां जो आंगन के साम्हने हें, वे ही पवित्र कोठरियां हैं, जिन में यहोवा के समीप जानेवाले याजक परमपवित्र वस्तुएं खाया करेंगे; वे परमपवित्र वस्तुएं, और अन्नबलि, और पापबलि, और दोषबलि, वहीं रखेंगे; क्योंकि वह स्यान पवित्र हे।
14. जब जब याजक लोग भीतर जाएंगे, तब तब निकलने के समय वे पवित्रस्यान से बाहरी आंगन में योंही न निकलेंगे, अर्यात् वे पहिले अपक्की सेवा टहल के वस्त्र पवित्रस्यान में रख देंगे; क्योंकि थे कोठरियां पवित्र हैं। तब वे और वस्त्र पहिनकर साधारण लोगोंके स्यान में जाएंगे।
15. जब वह भीतरी भवन को माप चुका, तब मुझे पूर्व दिशा के फाटक के मार्ग से बाहर ले जाकर बाहर का स्यान चारोंओर मापके लगा।
16. उस ने पूवीं अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
17. तब उस ने उत्तरी अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
18. तब उस ने दक्खिनी अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
19. और पच्छिमी अलंग को मुड़कर उस ने मापके के बांस से मापकर उसे पांच सौ बांस का पाया।
20. उस ने उस स्यान की चारोंअलंगें मापीं, और उसकी चारोंओर एक भीत यी, वह पांच सौ बांस लम्बी और पांच सौ बांस चौड़ी यी, और इसलिथे बनी यी कि पवित्र और सर्वसाधारण को अलग अलग करे।
Chapter 43
1. फिर वह मुझ को उस फाटक के पास ले गया जो पूर्वमुखी या।
2. तब इस्राएल के परमेश्वर का तेज पूर्व दिशा से आया; और उसकी वाणी बहुत से जल की घरघराहट सी हुई; और उसके तेज से पृय्वी प्रकाशित हुई।
3. और यह दर्शन उस दर्शन के तुल्य या, जो मैं ने उसे नगर के नाश करने को आते समय देखा या; और उस दर्शन के समान, जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा या; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
4. तब यहोवा का तेज उस फाटक से होकर जो पूर्वमुखी या, भवन में आ गया।
5. तब आत्मा ने मुझे उठाकर भीतरी आंगन में पहुंचाया; और यहोवा का तेज भवन में भरा या।
6. तब मैं ने एक जन का शब्द सुना, जो भवन में से मुझ से बोल रहा या, और वह पुरुष मेरे पास खड़ा या।
7. उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यहोवा की यह वाणी है, यह तो मेरे सिंहासन का स्यान और मेरे पांव रखने की जगह है, जहां मैं इस्राएल के बीच सदा वास किए रहूंगा। और न तो इस्राएल का घराना, और न उसके राजा अपके व्यभिचार से, वा उपके ऊंचे स्यानोंमें अपके राजाओं की लोयोंके द्वारा मेरा पवित्र नाम फिर अशुद्ध ठहराएंगे।
8. वे अपक्की डेवढ़ी मेरी डेवढ़ी के पास, और अपके द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भोंके निकट बनाते थे, और मेरे और उनके बीच केवल भीत ही यी, और उन्होंने अपके घिनौने कामोंसे मेरा पवित्र नाम अशुद्ध ठहराया या; इसलिथे मैं ने कोप करके उन्हें नाश किया।
9. अब वे अपना व्यभिचार और अपके राजाओं की लोथें मेरे सम्मुख से दूर कर दें, तब मैं उनके बीच सदा वास किए रहूंगा।
10. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने को इस भवन का नमूना दिखा कि वे अपके अधर्म के कामोंसे लज्जित होकर उस नमूने को मापें।
11. और यदि वे अपके सारे कामोंसे लज्जित हों, तो उन्हें इस भवन का आकार और स्वरूप, और इसके बाहर भीतर आने जाने के मार्ग, और इसके सब आकार और विधियां, और नियम बतलाना, और उनके साम्हने लिख रखना; जिस से वे इसका सब आकार और इसकी सब विधियां स्मरण करके उनके अनुसार करें।
12. भवन का नियम यह है कि पहाड़ की चोटी के चारोंओर का सम्पूर्ण भाग परमपवित्र है। देख भवन का नियम यही है।
13. और ऐसे हाथ के माप से जो साधारण हाथ से चौवा भर अधिक हो, वेदी की माप यह है, अर्यात् उसका आधार एक हाथ का, और उसकी चौड़ाई एक हाथ की, और उसके चारोंओर की छोर पर की पटरी एक चौवे की। और वेदी की ऊंचाई यह है:
14. भूमि पर धरे हुए आधार से लेकर निचक्की कुसीं तक दो हाथ की ऊंचाई रहे, और उसकी चा।ड़ाई हाथ भर की हो; और छोटी कुसीं से लेकर बड़ी कुसीं तक चार हाथ होंऔर उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो;
15. और उपरला भाग चार हाथ ऊंचा हो; और वेदी पर जलाने के स्यान के चार सींग ऊपर की ओर निकले हों।
16. और वेदी पर जलाने का स्यान चौकोर अर्यात् बारह हाथ लम्बा और बारह हाथ चौड़ा हो।
17. और निचक्की कुसीं चौदह हाथ लम्बी और चौदह चौड़ी हो, और उसके चारोंओर की पटरी आधे हाथ की हो, और उसका आधर चारोंऔर हाथ भर का हो। उसकी सीढ़ी उसकी पूर्व ओर हो।
18. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस दिन हामबलि चढ़ाने और लोहू छिडकने के लिथे वेदी बनाई जाए, उस दिन की विधियां थे ठहरें:
19. अर्यात् लेवीय याजक लोग, जो सादोक की सन्तान हैं, और मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप रहते हैं, उन्हें तू पापबलि के लिथे एक बछड़ा देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
20. तब तू उसके लोहू में से कुछ लेकर वेदी के चारोंसींगोंऔर कुसीं के चारोंकोनोंऔर चारोंओर की पटरी पर लगाना; इस प्रकार से उसके लिथे प्रायश्चित्त करने के द्वारा उसको पवित्र करना।
21. तब पापबलि के बछड़े को लेकर, भवन के पवित्रस्यान के बाहर ठहराए हुए स्यान में जला देना।
22. और दूसरे दिन एक निदॉष बकरा पापबलि करके चढ़ाना; और जैसे बछड़े के द्वारा वेदी पवित्र की जाए, वैसे ही वह इस बकरे के द्वारा भी पवित्र की जाएगी।
23. जब तू उसे पवित्र कर चूके, तब एक निदॉष बछड़ा और एक निदॉष मेढ़ा चढ़ाना।
24. तू उन्हें यहोवा के साम्हने ले आना, और याजक लोग उन पर लोन डालकर उन्हें यहोवा को होमबलि करके चढ़ाएं।
25. सात दिन तक नू प्रति दिन पापबलि के लिथे एक बकरा तैयार करना, और निदॉष बछड़ा और भेड़ोंमें से निदॉष मेढ़ा भी तैयार किया जाए।
26. सात दिन तक याजक लोग वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करके उसे शुद्ध करते रहें; इसी भांति उसका संस्कार हो।
27. और जब वे दिन समाप्त हों, तब आठवें दिन के बाद से याजक लोग तुम्हारे होमबलि और मेलबलि वेदी पर चढ़ाया करें; तब मैं तुम से प्रसन्न हूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 44
1. फिर वह मुझे पवित्रस्यान के उस बाहरी फाटक के पास लौटा ले गया, जो पूर्वमुखी है; और वह बन्द या।
2. तब यहोवा ने मुझ से कहा, यह फाटक बन्द रहे और खेला न जाए; कोई इस से होकर भीतर जाने न पाए; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस से होकर भीतर आया है; इस कारण यह बन्द रहे।
3. केवल प्रधान ही, प्रधान होने के कारण, मेरे साम्हने भोजन करने को वहां बैठेगा; वह फाटक के ओसारे से होकर भीतर जाए, और इसी से होकर निकले।
4. फिर वह उत्तरी फाटक के पास होकर मुझे भवन के साम्हने ले गया; तब मैं ने देश कि यहोवा का भवन यहोवा के तेज से भर गया है; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
5. तब यहोवा ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, ध्यान देकर अपक्की आंखोंसे देख, और जो कुछ मैं तुझ से अपके भवन की सब विधियोंऔर नियमोंके विषय में कहूं, वह सब अपके कानोंसे सुन; और भवन के पैठाव और पवित्रस्यान के सब निकासोंपर ध्यान दे।
6. और उन बलवाइयोंअर्यात् इस्राएल के घराने से कहना, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने, अपके सब घृणित कामोंसे अब हाथ उठा।
7. जब तुम मेरा भोजन अर्यात् चक्कीं और लोहू चढ़ाते थे, तब तुम बिराने लोगोंको जो मन और तन दोनोंके खतनाहीन थे, मेरे पवित्रस्यान में आने देते थे कि वे मेरा भवन अपवित्र करें; और उन्होंने मेरी वाचा को तोड़ दिया जिस से तुम्हारे सब घृणित काम बढ़ गए।
8. और तूम ने मेरी पवित्र वस्तुओं की रझा न की, परन्तु तुम ने अपके ही मन से अन्य लोगोंको मेरे पवित्रस्यान में मेरी वस्तुओं की रझा करनेवाले ठहराया।
9. इसलिथे परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि इस्राएलियोंके बीच जितने अन्य लोग हों, जो मन और तन दोनोंके खतनाहीन हैं, उन में से कोई मेरे पवित्रस्यान में न आने पाए।
10. परन्तु लेवीय लोग जो उस समय मुझ से दूर हो गए थे, जब इस्राएली लोग मुझे छोड़कर अपक्की मूरतोंके पीछे भटक गए थे, वे अपके अधर्म का भार उठाएंगे।
11. परन्तु वे मेरे पवित्रस्यान में टहलुए होकर भवन के फाटकोंका पहरा देनेवाले और भवन के टहलुग रहें; वे होमबलि और मेलबलि के पशु लोगोंके लिथे वध करें, और उनकी सेवा टहल करने को उनके साम्हने खड़े हुआ करें।
12. क्योंकि इस्राएल के घराने की सेवा टहल वे उनकी मूरतोंके साम्हने करते थे, और उनके ठोकर खाने और अधर्म में फंसने का कारण हो गए थे; इस कारण मैं ने उनके विषय में शपय खाई है कि वे अपके अधर्म का भार उठाएं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
13. वे मेरे समीप न आएं, और न मेरे लिथे याजक का काम करें; और न मेरी किसी पवित्र पस्तु, वा किसी परमपवित्र वसतु को छूने पाएं; वे अपक्की लज्जा का और जो घृणित काम उन्होंने किए, उनका भी भार उठाएं। तौभी मैं उन्हें भवन में की सौंपी हुई वस्तुओं का रझक ठहराऊंगा;
14. उस में सेवा का जितना काम हो, और जो कुछ उस में करना हो, उसके करनेवाले वे ही हों
15. फिर लेवीय याजक जो सादोक की सन्तान हैं, और जिन्होंने उस समय मेरे पवित्रस्यान की रझा की जब इस्राएली मेरे पास से भटक गए थे, वे मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप आया करें, और मुझे चक्कीं और लोहू चढ़ाने को मेरे सम्मुख खड़े हुआ करें, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. वे मेरे पवित्रस्यान में आया करें, और मेरी मेज़ के पास मेरी सेवा टहल करने को आएं और मेरी वस्तुओं की रझा करें।
17. और जब वे भीतरी आंगन के फाटकोंसे होकर जाया करें, तब सन के वस्त्र पहिने हुए जाएं, और जब वे भीतरी आंगन के फाटकोंमें वा उसके भीतर सेवा टहल करते हों, तब कुछ ऊन के वस्त्र न पहिनें।
18. वे सिर पर सन की सुन्दर टोपियां पहिनें और कमर में सन की जांघिया बान्धें हों; किसी ऐसे कपके से वे कमर न बांधें जिस से पक्कीना होता है।
19. और जब वे बाहरी आंगन में लोगोंके पास निकलें, तब जो वस्त्र पहिने हुए वे सेवा टहल करते थे, उन्हें उतारकर और पवित्र कोठरियोंमें रखकर दूसरे वस्त्र पहिनें, जिस से लोग उनके वस्त्रें के कारण पवित्र न ठहरें।
20. और न तो वे सिर मुण्डाएं, और न बाल लम्बे होने दें; वे केवल अपके बाल कटाएं।
21. और भीतरी आंगन में जाने के समय कोई याजक दाखमधु न पीए।
22. वे विधवा वा छोड़ी हुई सत्री को ब्याह न लें; केवल इस्राएल के घराने के पंश में से कुंवारी वा ऐसी विधवा बयाह लें जो किसी याजक की स्त्री हुई हो।
23. वे मेरी प्रजा को पवित्र अपवित्र का भेद सिखाया करें, और शुद्ध अशुद्ध का अन्तर बताया करें।
24. और जब कोई मुक़द्दमा हो तब न्याय करने को भी वे ही बैठें, और मेरे नियमोंके अनुसार न्याय करें। मेरे सब नियत पबॉं के विषय भी वे मेरी व्यवस्या और विधियां पालन करें, और मेरे विश्रमदिनोंको पवित्र मानें।
25. वे किसी मनुष्य की लोय के पास न जाएं कि अशुद्ध हो जाएं; केवल माता-पिता, बेटे-बेटी; भाई, और ऐसी बहिन की लोय के कारण जिसका विवाह न हुआ हो वे अपके को अशुद्ध कर सकते हैं।
26. और जब वे अशुद्ध हो जाएं, तब उनके लिथे सात दिन गिने जाएं और तब वे शुद्ध ठहरें,
27. और जिस दिन वे पवित्रस्यान अर्यात् भीतरी आंगन में सेवा टहल करने को फिर प्रवेश करें, उस निद अपके लिथे पापबलि चढ़ाएं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हे।
28. और उनका एक ही निज भाग होगा, अर्यात् उनका भाग मैं ही हूँ; तुम उन्हें इस्राएल के बीच कुछ ऐसी भूमि न देना जो उनकी निज हो; उनकी निज भूमि मैं ही हूँ।
29. वे अन्नबलि, पापबलि और दोषबलि खाया करें; और इस्राएल में जो वस्तु अर्पण की जाए, वह उनको मिला करे।
30. और सब प्रकार की सब से पहिली उपज और सब प्रकार की उठाई हुई वस्तु जो तुम उठाकर चढ़ाओ, याजकोंको मिला करे; और नथे अन्न का पहिला गूंधा हुआ आटा भी याजक को दिया करना, जिस से तुम लोगोंके घर में आशीष हो।
31. जो कुछ अपके आप मरे वा फाड़ा गया हो, चाहे पक्की हो या पशु उसका मांस याजक न खाए।
Chapter 45
1. जब तुम चिट्ठी डालकर देश को बांटो, तब देश में से एक भाग पवित्र जानकर यहोवा को अर्पण करना; उसकी लम्बाई पच्चीस हजार बांस की और चौड़ाई दस हजार बांस की हो; वह भाग अपके चारोंओर के सिवाने तक पवित्र ठहरे।
2. उस में से पवित्रस्यान के लिथे पांच सौ बांस लम्बी और पांच सौ बांस चौड़ी चौकोनी भूमि हो, और उसकी चारोंओर पचास पचास हाथ चौड़ी भूमि छूटी पक्की रहे।
3. उस पवित्र भाग में तुम पच्चीस हाजार बांस लम्बी और दस हजार बांस चौड़ी भूमि को मापना, और उसी में पवित्रस्यान बनाना, जो परमपवित्र ठहरे।
4. जो याजक पवित्रस्यन की सेवा टहल करें और यहोवा की सेवा टहल करने को समीप आएं, वह उन्हीं के लिथे हो; वहां उनके घरोंके लिथे स्यान हो और पवित्रस्यान के लिथे पवित्र ठहरे।
5. फिर पच्चीस हजार बांस लम्बा, और दस हजार बांस चौड़ा एक भाग, भवन की सेवा टहल करनेवाले लेवियोंकी बीस कोठरियोंके लिथे हो।
6. फिर नगर के लिथे, अर्पण किए हुए पवित्र भाग के पास, तुम पांच हजार बांस चौड़ी और पच्चीस हाजार बांस लम्बी, विशेष भूमि ठहराना; वह इस्राएल के सारे घराने के लिथे हो।
7. और प्रधान का निज भाग पवित्र अर्पण किए हुए भाग और नगर की विशेष भूमि की दोनोंओर अर्यात् दोनो की पश्चिम और पूर्व दिशाओं में दोनोंभागोंके साम्हने हों; और उसकी लम्बाई पश्चिम से लेकर पूर्व तक उन दो भागोंमें से किसी भी एक के तुल्य हो।
8. इस्राएल के देश में प्रधान की यही निज भूमि हो। और मेरे ठहराए हुए प्रधान मेरी प्रजा पर फिर अन्धेर न करें; परन्तु इस्राएल के घराने को उसके गोत्रोंके अनुसार देश मिले।
9. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के प्रधनो ! बस करो, उपद्रव और उत्पात को दूर करो, और न्याय और धर्म के काम किया करो; मेरी प्रजा के लोगोंको निकाल देना छोड़ दो, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
10. तुम्हारे पास सच्चा तराजू, सच्चा एपा, और सच्चा बत रहे।
11. एपा और बत दोनोंएक ही नाप के हों, अर्यात् दोनोंमें होमेर का दसवां अंश समाए; दोनोंकी नाप होमेर के हिसाब से हो।
12. और शेकेल बीस गेरा का हो; और तुम्हारा माना बीस, पच्चीस, या पन्द्रह शेकेल का हो।
13. तुम्हारी उठाई हुई भेंट यह हो, अर्यात् गेहूं के होमेर से एपा का छठवां अंश, और जव के होमेर में से एपा का छठवां अंश देना।
14. और तेल का नियत अंश कोर में से बत का दसवां अंश हो; कोर तो दस बत अर्यात् एक होमेर के तुल्य है, क्योंकि होमेर दस बत का होता है।
15. और इस्राएल की उत्तम उत्तम चराइयोंसे दो दो सौ भेड़बकरियोंमें से एक भेड़ वा बकरी दी जाए। थे सब वस्तुएं अन्नबलि, होमबलि और मेलबलि के लिथे दी जाएं जिस से उनके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. इस्राएल के प्रधान के लिथे देश के सब लोग यह भेंट दें।
17. पवॉं, नथे चांद के दिनों, विश्रमदिनोंऔर इस्राएल के घराने के सब नियत समयोंमें होमबलि, अन्नबलि, और अर्ध देना प्रधान ही का काम हो। इस्राएल के घराने के लिथे प्रायश्चित्त करने को वह पापबलि, अन्नबलि, होमबलि, और मेलबलि तैयार करे।
18. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, पहिले महीने के पहले दिन को तू एक निदॉष बछड़ा लेकर पवित्रस्यान को पवित्र करता।
19. इस पापबलि के लोहू में से याजक कुछ लेकर भवन के चौखट के खम्भों, और वेदी की कुसीं के चारोंकोनों, और भीतरी आंगन के फाटक के खम्भोंपर लगाए।
20. फिर महीने के सातवें दिन को सब भूल में पके हुओं और भोलोंके लिथे भी योंही करना; इसी प्रकार से भवन के लिथे प्रायश्चित्त करना।
21. पहिले महीने के चौदहवें दिन को तुम्हारा फसह हुआ करे, वह सात दिन का पर्व हो और उस में अखमीरी रोटी खई जाए।
22. उस दिन प्रधान अपके और प्रजा के सब लोगोंके निमित्त एक बछड़ा पापबलि के लिथे तैयार करे।
23. और पर्व के सातोंदिन वह यहोवा के लिथे होमबलि तैयार करे, अर्यात् हर एक दिन सात सात निदॉष बछड़े और सात सात निदॉष मेढ़े और प्रति दिन एक एक बकरा पापबलि के लिथे तैयार करे।
24. और हर एक बछड़े और मेढ़े के साय वह एपा भर अन्नबलि, और एपा पीछे हीन भर तेल तैयार करे।
25. सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से लेकर सात दिन तक अर्यात् पर्व के दिनोंमें वह पापबलि, होमबलि, अन्नबलि, और तेल इसी विधि के अनुसार किया करे।
Chapter 46
1. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, भीतरी आंगन का पूर्वमुखी फाटक काम काज के छहोंदिन बन्द रहे, परन्तु विश्रमदिन को खुला रहे। और नथे चांद के दिन भी खुला रहे।
2. प्रधान बाहर से फाटक के ओसारे के मार्ग से आकर फाटक के एक खम्भे के पास खड़ा हो जाए, और याजक उसका होमबलि और मेलबलि तैयार करें; और वह फाटक की डेवढ़ी पर दण्डवत् करे; तब वह बाहर जाए, और फाटक सांफ से पहिले बन्द न किया जाए।
3. और लोग विश्रम और नथे चांद के दिनोंमें उस फाटक के द्वार में यहोवा के साम्हने दण्डवत् करें।
4. और विश्रमदिन में जो होमबलि प्रधान यहोवा के लिथे चढ़ाए, वह भेड़ के छ: निदॉष बच्चे और एक निदॉष मेढ़े का हो।
5. और अन्नबलि यह हो, अर्यात् मेढ़े के साय एपा भर अन्न और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न और एपा पीछे हीन भर तेल।
6. और नथे चांद के दिन वह एक निदॉष बछड़ा और भेड़ के छ: बच्चे और एक मेढ़ा चढ़ाए; थे सब निदॉष हों।
7. और बछड़े और मेढ़े दोनोंके साय वह एक एक एपा अन्नबलि तैयार करे, और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न, और एपा पीछे हीन भर तेल।
8. और जब प्रधान भीतर जाए तब वह फाटक के ओसारे से होकर जाए, और उसी मार्ग से निकल जाए।
9. जब साधारण लोग नियत समयोंमें यहोवा के साम्हने दण्डवत् करने आएं, तब जो उत्तरी फाटक से होकर दण्डवत् करने को भीतर आए, वह दक्खिनी फाटक से होकर निकले, और जो दक्खिनी फाटक से होकर भीतर आए, वह उत्तरी फाटक से होकर निकले, अर्यात् जो जिस फाटक से भीतर आया हो, वह उसी फाटक से न लौटे, अपके साम्हने ही निकल जाए।
10. और जब वे भीतर आएं तब प्रधान उनके बीच होकर आएं, और जब वे निकलें, तब वे एक साय निकलें।
11. और पवॉं और अन्य नियत समयोंका अन्नबलि बछड़े पीछे एपा भर, और मेढ़े पीछे एपा भर का हो; और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न और एपा पीछे हीन भर तेल।
12. फिर जब प्रधान होमबलि वा मेलबलि को स्वेच्छा बलि करके यहोवा के लिथे तैयार करे, तब पूर्वमुखी फाटक उनके लिथे खोला जाए, और वह अपना होमबलि वा मेलबलि वैसे ही तैयार करे जैसे वह विश्रमदिन को करता है; तब वह निकले, और उसके निकलने के पीछे फाटक बन्द किया जाए।
13. और प्रति दिन तू वर्ष भर का एक निदॉष भेड़ का बच्चा यहोवा के होमबलि के लिथे तैयार करना, यह प्रति भोर को तैयार किया जाए।
14. और प्रति भोर को उसके साय एक अन्नबलि तैयार करना, अर्यात् एपा का छठवां अंश और मैदा में मिलाने के लिथे हीन भर तेल की तिहाई यहोवा के लिथे सदा का अन्नबलि नित्य विधि के अनुसार चढ़ाया जाए।
15. भेड़ का बच्चा, अन्नबलि और तेल, प्रति भोर को नित्य होमबलि करके चढ़ाया जाए।
16. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, यदि प्रधान अपके किसी पुत्र को कुछ दे, तो वह उसका भाग होकर उसके पोतोंको भी मिले; भाग के नियम के अनुसार वह उनका भी निज घन ठहरे।
17. परन्तु यदि वह अपके भाग में से अपके किसी कर्मचारी को कुछ दे, तो छुट्टी के वर्ष तक तो वह उसका बना रहे, परन्तु उसके बाद प्रधान को लैटा दिया जाए; और उसका निज भाग ही उसके पुत्रोंको मिले।
18. और प्रजा का ऐसा कोई भाग प्रधान न ले, जो अन्धेर से उनकी निज भूमि से छीना हो; अपके पुत्रोंको वह अपक्की ही निज भूमि में से भाग दे; ऐसा न हो कि मेरी प्रजा के लोग अपक्की अपक्की निज भूमि से तितर-बितर हो जाएं।
19. फिर वह मुझे फाटक की एक अलंग में द्वार से होकर याजकोंकी उत्तरमुखी पवित्र कोठरियोंमें ले गया; वहां पश्चिम ओर के कोने में एक स्यान या।
20. तब उस ने मुझ से कहा, यह वह स्यान है जिस में याजक लोग दोषबलि और पापबलि के मांस को पकाएं और अन्नबलि को पकाएं, ऐसा न हो कि उन्हें बाहरी आंगन में ले जाने से साधारण लोग पवित्र ठहरें।
21. तब उस ने मुझे बाहरी आंगन में ले जाकर उस आंगन के चारोंकोनोंमें फिराया, और आंगन के हर एक कोने में एक एक ओट बना या,
22. अर्यात् आंगन के चारोंकोनोंमें चालीस हाथ लम्बे और तीस हाथ चौड़े ओट थे; चारोंकोनोंके ओटोंकी एक ही माप यी।
23. और भीतर चारोंओर भीत यी, और भीतोंके नीचे पकाने के चूल्हे बने हुए थे।
24. तब उस ने मुझ से कहा, पकाने के घर, जहां भवन के टहलुए लोगोंके बलिदानोंको पकाएं, वे थे ही हैं।
Chapter 47
1. फिर वह मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले गया; और भवन की डेवढ़ी के नीचे से एक सोता निकलकर पूर्व ओर बह रहा या। भवन का द्वार तो पूर्वमुखी या, और सोता भवन के पूर्व और वेदी के दक्खिन, नीचे से निकलता या।
2. तब वह मुझे उत्तर के फाटक से होकर बाहर ले गया, और बाहर बाहर से घुमाकर बाहरी अर्यात् पूर्वमुखी फाटक के पास पहुंचा दिया; और दक्खिनी अलंग से जल पक्कीजकर वह रहा या।
3. जब वह पुरुष हाथ में मापके की डोरी लिए हुए पूर्व ओर निकला, तब उस ने भवन से लेकर, हजार हाथ तक उस सोते को मापा, और मुझे जल में से चलाया, और जल टखनोंतक या।
4. उस ने फिर हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल घुटनोंतक या, फिर ओर हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल कमर तक या।
5. तब फिर उस ने एक हजार हाथ मापे, और ऐसी नदी हो गई जिसके पार मैं न जा सका, क्योंकि जल बढ़कर तैरने के योग्य या; अर्यात् ऐसी नदी यी जिसके पार कोई न जा सकता या।
6. तब उस ने मुझ से पूछा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर उस ने मुझे नदी के तीर लौटाकर पहुंचा दिया।
7. लौटकर मैं ने क्या देखा, कि नदी के दोनोंतीरोंपर बहुत से वृझ हैं।
8. तब उस ने मुझ से कहा, यह सोता पूवीं देश की ओर बह रहा है, और अराबा में उतरकर ताल की ओर बहेगा; और यह भवन से निकला हुआ सीधा ताल में मिल जाएगा; और उसका जल मीठा हो जाएगा।
9. और जहां जहां यह नदी बहे, वहां वहां सब प्रकार के बहुत अण्डे देनेवाले जीवजन्तु जीएंगे और मछलियां भी बहुत हो जाएंगी; क्योंकि इस सोते का जल वहां पहुंचा है, और ताल का जल मीठा हो जाएगा; और जहा कहीं यह नदी पहुंचेगी वहां सब जन्तु जीएंगे।
10. ताल के तीर पर मछवे खड़े रहेंगे, और एनगदी से लेकर ऐनेग्लैम तक वे जाल फैलाए जाएंगे, और उन्हें महासागर की सी भांति भांति की अनगिनित मछलियां मिलेंगी।
11. परन्तु ताल के पास जो दलदल ओर गड़हे हैं, उनका जल मीठा न होगा; वे खारे ही रहेंगे।
12. और नदी के दोनोंतीरोंपर भांति भांति के खाने योग्य फलदाई पृझ उपकेंगे, जिनके पत्ते न मुर्फाएंगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्र स्यान से तिकला है। उन में महीने महीने, नथे नथे फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, ओर पत्ते औषधि के काम आएंगे।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस सिवाने के भीतर तुम को यह देश अपके बारहोंगोत्रोंके अनुसार बांटना पकेगा, वह यह है: यूसुफ को दो भाग मिलें।
14. और उसे तुम एक दूसरे के समान निज भाग में पाओगे, क्योंकि मैं ने शपय खाई कि उसे तुम्हारे पितरोंको दूंगा, सो यह देश तुम्हारा निज भाग ठहरेगा।
15. देश का सिवाना यह हो, अर्यात् उत्तर ओर का सिवाना महासागर से लेकर हेतलोन के पास से सदाद की घाटी तक पहुंचे,
16. और उस सिवाने के पास हमात बेरोता, और सिब्रैम जो दमिश्क ओर हमात के सिवानोंके बीच में है, और हसर्हत्तीकोन तक, जो हौरान के सिवाने पर है।
17. और यह सिवाना समुद्र से लेकर दमिश्क के सिवाने के पास के हसरेनोन तक महुंचे, और उसकी उत्तर ओर हमात हो। उत्तर का सिवाना यही हो।
18. और पूवीं सिवाना जिसकी एक ओर हौरान दमिश्क; और यरदन की ओर गिलाद और इस्राएल का देश हो; उत्तरी सिवाने से लेकर पूवीं ताल तक उसे मापना। पूवीं सिवाना तो यही हो।
19. और दक्खिनी सिवाना तामार से लेकर कादेश के मरीबोत नाम सोते तक अर्यात् मिस्र के नाले तक, और महासागर तक महुंचे। दक्खिनी सिवाना यही हो।
20. और पश्चिमीसिवाना दक्खिनी सिवाने से लेकर हमात की घाटी के साम्हने तक का महासागर हो। पच्छिमी सिवाना यही हो।
21. इस प्रकार देश को इस्राएल के गोत्रोंके अनुसार आपस में बांट लेना।
22. और इसको आपस में और उन परदेशियोंके साय बांट लेना, जो तुम्हारे बीच रहते हुए बालकोंको जन्माएं। वे तुम्हारी दृष्टि में देशी इस्राएलियोंकी नाई ठहरें, और तुम्हारे गोत्रोंके बीच अपना अपना भाग पाएं।
23. जो परदेशी जिस गोत्र के देश में रहता हो, उसको वहीं भाग देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 48
1. गोत्रें के भाग थे हों; उत्तर सिवाने से लगा हुआ हेतलोन के मार्ग के पास से हमात की घाटी तक, और दमिश्क के सिवाने के पास के हमरेनान से उत्तर ओर हमात के पास तक एक भाग दान का हो; और उसके पूवीं और पश्चिमी सिवाने भी हों।
2. दान के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पश्चिम तक आशेर का एक भाग हो।
3. आशेर के सिवाने से लगा हुआ, पूर्व से पश्चिम तक नप्ताली का एक भाग हो।
4. तप्ताली के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पश्चिम तक मनश्शे का एक भाग।
5. मनश्शे के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक एप्रैम का एक भाग हो।
6. एप्रैम के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक रूबेन का एक भाग हो।
7. और रूबेन के सिवाने से लगा हुआ, पूर्व से पच्छिम तक यहूदा का एक भाग हो।
8. यहूदा के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक वह अर्पण किया हुआ भाग हो, जिसे तुम्हें अर्पण करना होगा, वह पच्चीस हजार बांस चौड़ा और पूर्व से पच्छिम तक किसी एक गोत्र के भाग के तुल्य लम्बा हो, और उसके बीच में पवित्रस्यान हो।
9. जो भाग तुम्हें यहोवा को अर्पण करना होगा, उसकी लम्बाई पच्चास हजार बांस और चौड़ाई दस हजार बांस की हो।
10. यह अर्पण किया हुआ पवित्र भाग याजकोंको मिले; वह उत्तर ओर पच्चीस हजार बांस लम्बा, पच्छिम ओर दस हजार बांस चौड़ा, पूर्व ओर दस हजार बांस चौड़ा और दक्खिन ओर पच्चीस हजार बांस लम्बा हो; और उसके बीचोबीच यहोवा का पवित्रस्यान हो।
11. यह विशेष पवित्र भाग सादोक की सन्तान के उन याजकोंका हो जो मेरी आज्ञाओं को पालते रहे, और इस्राएलियोंके भटक जाने के समय लेवियोंकी नाई न भटके थे।
12. सो देश के अर्पण किए हुए भाग में से यह उनके लिथे अर्पण किया हुआ भाग, अर्यात््परमपवित्र देश ठहरे; और लेवियोंके सिवाने से लगा रहे।
13. और याजकोंके सिवाने से लगा हुआ लेवियोंका भाग हो, वह पच्चीस हजार बांस लम्बा और दस हजार बांस चौड़ा हो। सारी लम्बाई पच्चीस हजार बांस की और चोड़ाई दस हजार बांस की हो।
14. वे उस में से न तो कुछ बेजें, न दूसरी भूमि से बदलें; और न भूमि की पहिली उपज और किसी को दी जाए। क्योंकि वह यहोवा के लिथे पवित्र है।
15. और चौड़ाई के पच्चीस हजार बांस के साम्हने जो पांच हजार बचा रहेगा, वह नगर और बस्ती और चराई के लिथे साधारण भाग हो; और नगर उसके बीच में हो।
16. ओर नगर की यह माप हो, अर्यात् उत्तर, दक्खिन, पूर्व और पच्छिम ओर साढ़े चार चार हजार हाथ।
17. और नगर के पास उत्तर, दक्खिन, पूर्व, पच्छिम, चराइयां होंजो अढ़ाई अढ़ाई सौ बांस चौड़ी हों।
18. और अर्पण किए हुए पवित्र भाग के पास की लम्बाई में से जो कुछ बचे, अर्यात् पूर्व और पच्छिम दोनोंओर दस दस बांस जो अर्पण किए हुए भाग के पास हो, उसकी उपज नगर में परिश्र्म करनेवालोंके खाने के लिथे हो।
19. और इस्राएल के सारे गोत्रोंमें से जो तगर में परिश्र्म करें, वे उसकी खेती किया करें।
20. सारा अर्पण किया हुआ भाग पच्चीस हजार बांस लम्बा और पच्चीस हजार बांस चौड़ा हो; तुम्हें चौकोना पवित्र भाग अर्पण करना होगा जिस में नगर की विशेष भूमि हो।
21. और जो भाग रह जाए, वह प्रधान को मिले। पवित्र अर्पण किए हुए भाग की, और नगर की विशेष भूमि की दोनोंओर अर्यात् उनकी पूर्व और पच्छिम अलंगोंके पच्चीस पच्चीस हजार बांस की चौड़ाई के पास, जो ओर गोत्रोंके भागोंके पास रहे, वह प्रधान को मिले। और अर्पण किया हुआ पवित्र भाग और भवन का पवित्रस्यान उनके बीच में हो।
22. जो प्रधान का भाग होगा, वह लेवियोंके बीच और नगरोंकी विशेष भूमि हो। प्रधान का भाग यहूदा और बिन्यामीन के सिवाने के बीच में हो।
23. अन्य गोत्रें के भाग इस प्रकार हों: पूर्व से पच्छिम तक बिन्यामीन का एक भाग हो।
24. बिन्यामीन के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक शिमोन का एक भाग।
25. शिमोन के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक इस्साकार का एक भाग।
26. इस्साकार के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक जबूलून का एक भाग।
27. जबूलून के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक गाद का एक भाग।
28. और गाद के सिवाने के पास दक्खिन ओर का सिवाना तामार से लेकर कादेश के मरीबोत नाम सोते तक, और मिस्र के नाले ओर महासागर तक पहुंचे।
29. जो देश तुम्हें इस्राएल के गोत्रोंको बांटना होगा वह यही है, और उनके भाग भी थे ही हैं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
30. तगर के निकास थे हों, अर्यात् उत्तर की अलंग जिसकी लम्बाई साढ़े चार हजार बांस की हो।
31. उस में तीन फाटक हों, अर्यात् एक रूबेन का फाटक, एक यहूदा का फाटक, और एक लेवी का फाटक हो; क्योंकि नगर के फाटकोंके नाम इस्राएल के गोत्रोंके नामोंपर रखने होंगे।
32. और पूरब की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी जो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यात् एक यूसुफ का फाटक, एक बिन्यामीन का फाटक, और एक दान का फाटक हो।
33. और दक्खिन की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी हो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यात् एक शिमोन का फाटक, एक इस्साकार का फाटक, और एक जबूलून का फाटक हो।
34. और पश्चिम की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी हो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यत् एक गाद का फाटक, एक आशेर का फाटक और नप्ताली का फाटक हो।
35. तगर की चारोंअलंगोंका घेरा अठारह हजार बांस का हो, और उस दिन से आगे को नगर का नाम “यहोवा शाम्मा” रहेगा।
Chapter 1
1. तीसवें वर्ष के चौथे महीने के पांचवें दिन, मैं बंधुओं के बीच कबार नदी के तीर पर या, तब स्वर्ग खुल गया, और मैं ने परमेश्वर के दर्शन पाए।
2. यहोयाकीम राजा की बंधुआई के पांचवें वर्ष के चौथे महीने के पांचवें दिन को, कसदियोंके देश में कबार नदी के तीर पर,
3. यहोवा का वचन बूजी के पुत्र यहेजकेल याजक के पास पहुचा; और यहोवा की शक्ति उस पर वहीं प्रगट हुई।
4. जब मैं देखने लगा, तो क्या देखता हूँ कि उत्तर दिशा से बड़ी घटा, और लहराती हुई आग सहित बड़ी आंधी आ रही है; और घटा के चारोंओर प्रकाश और आग के बीचों-बीच से फलकाया हुआ पीतल सा कुछ दिखाई देता है।
5. फिर उसके बीच से चार जीवधारियोंके समान कुछ निकले। और उनका रूप मनुष्य के समान या,
6. परन्तु उन में से हर एक के चार चार मुख और चार चार पंख थे।
7. उनके पांव सीधे थे, और उनके पांवोंके तलुए बछड़ोंके खुरोंके से थे; और वे फलकाए हुए पीतल की नाई चमकते थे।
8. उनकी चारोंअलंग पर पंखोंके नीचे मनुष्य के से हाथ थे। और उन चारोंके मुख और पंख इस प्रकार के थे:
9. उनके पंख एक दूसरे से परस्पर मिले हुए थे; वे अपके अपके साम्हने सीधे ही चलते हुए मुड़ते नहीं थे।
10. उनके साम्हने के मुखोंका रूप मनुष्य का सा या; और उन चारोंके दहिनी ओर के मुख सिंह के से, बाई ओर के मुख बैल के से थे, और चारोंके पीछे के मुख उकाब पक्की के से थे।
11. उनके चेहरे ऐसे थे। और उनके मुख और पंख ऊपर की ओर अलग अलग थे; हर एक जीवधारी के दो दो पंख थे, जो एक दूसरे के पंखोंसे मिले हुए थे, और दो दो पंखोंसे उनका शरीर ढंपा हुआ या।
12. और वे सीधे अपके अपके साम्हने ही चलते थे; जिध्र आत्मा जाना चाहता या, वे उधर ही जाते थे, और चलते समय मुड़ते नहीं थे।
13. और जीबधारियोंके रूप अंगारोंऔर जलते हुए पक्कीतोंके समान दिखाई देते थे, और वह आग जीवधारियोंके बीच इधर उध्र चलती फिरती हुई बड़ा प्रकाश देती रही; और उस आग से बिजली निकलती यी।
14. और जीवधारियोंका चलना-फिरना बिजली का सा या।
15. जब मैं जीवधारियोंको देख ही रहा या, तो क्या देखा कि भूमि पर उनके पास चारोंमुखें की गिनती के अनुसार, एक एक पहिया या।
16. पहियोंका रूप और बनावट फीरोजे की सी यी, और चारोंका एक ही रूप या; और उनका रूप और बनावट ऐसी यी जैसे एक पहिथे के बीच दूसरा पहिया हो।
17. चलते समय वे अपक्की चारोंअलंगोंकी ओर चल सकते थे, और चलने में मुड़ते नहीं थे।
18. और उन चारोंपहियोंके घेरे बहुत बड़े और डरावने थे, और उनके घेरोंमें चारोंओर आंखें ही आंखें भरी हुई यीं।
19. और जब जीवधारी चलते थे, तब पहिथे भी उनके साय चलते थे; और जब जीवधारी भूमि पर से उठते थे, तब पहिथे भी उठते थे।
20. जिधर आत्मा जाना चाहती यी, उधर ही वे जाते, और और पहिथे जीवधारियोंके साय उठते थे; क्योंकि उनकी आत्मा पहियोंमें यी।
21. जब वे चलते थे तब थे भी चलते थे; और जब जब वे खड़े होते थे तब थे भी खड़े होते थे; और जब वे भूमि पर से उठते थे तब पहिथे भी उनके साय उठते थे; क्योंकि जीवधारियोंकी आत्मा पहियोंमें यी।
22. जीवधारियोंके सिरोंके ऊपर आकाश्मण्डल सा कुछ या जो बर्फ की नाई भयानक रीति से चमक्ता या, और वह उनके सिरोंके ऊपर फैला हुआ या।
23. और आकाशमण्डल के नीचे, उनके पंख एक दूसरे की ओर सीधे फैले हुए थे; और हर एक जीवधारी के दो दो और पंख थे जिन से उनके शरीर ढंपे हुए थे।
24. और उनके चलते समय उनके पंखोंकी फड़फड़ाहट की आहट मुझे बहुत से जल, वा सर्पशक्तिमान की वाणी, वा सेना के हलचल की सी सुनाई पड़ती यी; और जब वे खड़े होते थे, तब अपके पंख लटका लेते थे।
25. फिर उनके सिरोंके ऊपर जो आकाशमण्डल या, उसके ऊपर से एक शब्द सुनाई पड़ता या; और जब वे खड़े होते थे, तब अपके पंख लटका लेते थे।
26. और जो आकाशमण्डल उनके सिरोंके ऊपर या, उसके ऊपर मानो कुछ नीलम का बना हुआ सिंहासन या; इस सिंहासन के ऊपर मनुष्य के समान कोई दिखाई देता या।
27. और उसकी मानो कमर से लेकर ऊपर की ओर मुझे फलकाया हुआ पीतल सा दिखाई पड़ा, और उसके भीतर और चारोंओर आग सी दिखाई पड़ती यी; फिर उस मनुष्य की कमर से लेकर नीचे की ओर भी मुझे कुछ आग सी दिखाई पड़ती यी; और उसके चारोंओर प्रकाश या।
28. जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारोंओर का प्रकाश दिखाई देता या। यहोवा के तेज का रूप ऐसा ही या। और उसे देखकर, मैं मुंह के बल गिरा, तब मैं ने एक शब्द सुना जैसे कोई बातें करता है।
Chapter 2
1. और उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपके पांवोंके बल खड़ा हो, और मैं तुझ से बातें करूंगा।
2. जैसे ही उस ने मुझ से यह कहा, त्योंही आत्मा ने मुझ में समाकर मुझे पांवोंके बल खड़ा कर दिया; और जो मुझ से बातें करता या मैं ने उसकी सुनी।
3. और उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, मैं तुझे इस्राएलियोंके पास अर्यात् बलवा करनेवाली जाति के पास भेजता हूँ, जिन्होंने मेरे विरुद्ध बलवा किया है; उनके पुरखा और वे भी आज के दिल तक मेरा अपराध करते चले आए हैं।
4. इस पीढ़ी के लोग जिनके पास मैं तुझे भेजता हूँ, वे निर्लज्ज और हठीले हैं;
5. और तू उन से कहना, प्रभु यहोवा योंकहता हे, इस से वे, जो बलवा करनेवाले घराने के हैं, चाहे वे सुनें व न सुनें, तौभी वे इतना जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्ता प्रगट हुआ है।
6. और हे मनुष्य के सन्तान, तू उन से न डरना; चाहे तुझे कांटों, ऊंटकटारोंओर बिच्चुओं के बीच भी रहना पके, तौभी उनके वचनोंसे न डरना; यद्यपि वे बलवई घराने के हैं, तौभी न तो उनके वचनोंसे डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो।
7. सो चाहे वे सुनें या न सुनें; तौभी तू मेरे वचन उन से कहना, वे तो बड़े बलवई हैं।
8. परन्तु हे मनुष्य के सन्तान, जो मैं तुझ से कहता हूँ, उसे तू सुन ले, उस बलवई घराने के समान तू भी बलवई न बनना; जो में तुझे देता हूँ, उसे मुंह खोलकर खा ले।
9. तब मैं ने दृष्टि की और क्या देख, कि मेरी ओर एक हाथ बढ़ा हुआ है और उस में एक पुसतक है।
10. उसको उस ने मेरे साम्हने खोलकर फैलाया, ओर वह दोनोंओर लिखी हुई यी; और जो उस में लिखा या, वे विलाप और शोक और दु:खभरे वचन थे।
Chapter 3
1. तब उस ने मुझ से कहा हे मनुष्य के सन्तान, जो तुझे मिला है उसे खा ले; अर्यात् इस पुस्तक को खा, तब जाकर इस्राएल के घराने से बातें कर।
2. सो मैं ने मुंह खोला और उस ने वह पुस्तक पुफे खिला दी।
3. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यह पुस्तक जो मैं तुझे देता हूँ उसे पचा ले, और अपक्की अन्तडिय़ां इस से भर ले। सो मैं ने उसे खा लिया; और मेरे मुंह में वह मधु के तुल्य मीठी लगी।
4. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने के पास जाकर उनको मेरे वचन सुना।
5. ैक्यांकि तू किसी अनोखी बोली वा कठिन भाषावाली जाति के पास नहीं भेजा जाता है, परन्तु इस्राएल ही के घराने के पास भेजा जाता है।
6. अनोखी बोली वा कठिन भाषावाली बहुत सी जातियोंके पास जो तेरी बात समझ न सकें, तू नहीं भेजा जाता। नि:सन्देह यदि मैं तुझे ऐसोंके पास भेजता तो वे तेरी सुनते।
7. परन्तु इस्राएल के घरानेवाले तेरी सुनने से इनकार करेंगे; वे मेरी भी सुनने से इनकार करते हैं; क्योंकि इस्राएल का सारा घराना ढीठ और कठोर मन का है।
8. देख, मैं तेरे मुख को उनके मुख के साम्हने, और तेरे माथे को उनके माथे के साम्हने, ढीठ कर देता हूँ।
9. मैं तेरे माथे को हीरे के तुल्य कड़ा कर दोता हूँ जो चकमक पत्य्र से भी कड़ा होता है; सो तू उन से न डरना, और न उनके मुंह देखकर तेरा मन कच्चा हो; क्योंकि वे बलवई घराने के हैं।
10. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, ेिकतने वचन मैं तुझ से कहूँ, वे सब ह्रृदय में रख और कानोंसे सुन।
11. और उन बंधुओं के पास जाकर, जो तेरे जाति भाई हैं, उन से बातें करना और कहना, कि प्रभु यहोवा योंकहता है; चाहे वे सुनें, व न सुनें।
12. तब आत्मा ने मुझे उठाया, और मैं ने अपके पीछे बड़ी घड़घड़ाहट के साय एक शब्द सुना, कि यहोवा के भवन से उसका तेज धन्य है।
13. और उसके साय ही उन जीवधारियोंके पंखोंका शब्द, जो एक दूसरे से लगते थे, और उनके संग के पहियोंका शब्द और एक बड़ी ही घड़घड़ाहट सुन पक्की।
14. सो आत्मा मुझे उठाकर ले गई, और मैं कठिन दु:ख से भरा हुआ, और मन में जलता हुआ चला गया; और यहोवा की शक्ति मुझ में प्रबल यी;
15. और मैं उन बंधुओं के पास आया जो कबार नदी के तीर पर तेलाबीब में रहते थे। और वहां मैं सात दिन तक उनके बीच व्याकुल होकर बैठा रहा।
16. सात दिन के व्यतीत होने पर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
17. हे मनुष्य के सन्तान मैं ने तुझे इस्राएल के घराने के लिथे पहरुआ नियुक्त किया है; तू मेरे मुंह की बात सुनकर, उन्हें मेरी ओर से चिताना।
18. जब मैं दुष्ट से कहूं कि तू निश्चय मरेगा, और यदि तू उसको न चिताए, और न दुष्ट से ऐसी बात कहे जिस से कि वह सचेत हो और अपना दुष्ट मार्ग छोड़कर जीवित रहे, तो वह दुष्ट अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा।
19. पर यदि तू दुष्ट को चिताए, और वह अपक्की दुष्टता ओर दुष्ट पार्ग से न फिरे, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा; परन्तु तू अपके प्राणोंको बचाएगा।
20. फिर जब धमीं जन अपके धर्म से फिरकर कुटिल काम करने लगे, और मैं उसके साम्हने ठोकर रखूं, तो वह मर जाएगा, क्योंकि तू ने जो उसको नहीं चिताया, इसलिथे वह अपके पाप में फंसा हुआ मरेगा; और जो धर्म के कर्म उस ने किए हों, उनकी सुधि न ली जाएगी, पर उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा।
21. परन्तु यदि तू धमीं को ऐसा कहकर चिताए, कि वह पाप न करे, और वह पाप से बच जाए, तो वह चितौनी को ग्रहण करने के कारण निश्चय जीवित रहेगा, और तू अपके प्राण को बचाएगा।
22. फिर यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई, और उस ने मुझ से कहा, उठकर मैदान में जा; और वहां मैं तुझ से बातें करूंगा।
23. तब मैं उठकर मैदान में गया, और वहां क्या देखा, कि यहोवा का प्रताप जैसा मुझे कबार नदी के तीर पर, वैसा ही यहां भी दिखाई पड़ता है; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
24. तब आत्मा ने मुझ में समाकर मुझे पांवोंके बल खड़ा कर दिया; फिर वह मुझ से कहने लगा, जा अपके घर के भीतर द्वार बन्द करके बैठ रह।
25. और हे मनुष्य के सन्तान, देख; वे लोग तुझे रस्सिक्कों जकड़कर बान्ध रखेंगे, और तू निकलकर उनके बीच जाने नहीं पाएगा।
26. और मैं तेरी जीभ तेरे तालू से लगाऊंगा; जिस से तू मौैन रहकर उनका डांटनेवाला न हो, क्योंकि वे बलवई घराने के हैं।
27. परन्तु जब जब मैं तुझ से बातें करूं, तब तब तेरे मुंह को खोलूंगा, और तू उन से ऐसा कहना, कि प्रभु यहोवा योंकहता है, जो सुनता है वह सुन ले और जो नहीं सुनता वह न सुने, वे तो बलवई घराने के हैं ही।
Chapter 4
1. और हे मनुष्य के सन्तान, तू एक ईट ले और उसे अपके साम्हने रखकर उस पर एक नगर, अर्यात् यरूशलेम का चित्र ख्ींच;
2. तब उसे घेर अर्यात् उसके विरुद्ध क़िला बना और उसके साम्हने दमदमा बान्ध; और छावनी डाल, और उसके चारोंओर युद्ध के यंत्र लगा।
3. तब तू लोहे की याली लेकर उसको लोहें की शहरपनाह मानकर अपके ओर उस नगर के बीच खड़ा कर; तब अपना मुंह उसके साम्हने करके उसे घेरवा, इस रीति से तू उसे घेर रखना। यह इस्राएल के घराने के लिथे चिन्ह ठहरेगा।
4. फिर तू अपके बांथें पांजर के बल लेटकर इस्राएल के घराने का अधर्म अपके ऊपर रख; क्योंकि जितने दिन तू उस पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने दिन तक उन लोगोंके अधर्म का भार सहता रह।
5. मैं ने उनके अधर्म के बषॉं के तुल्य तेरे लिथे दिन ठहराए हैं, अर्यात् तीन सौ नब्बे दिन; उतने दिन तक तू इस्राएल के घराने के अधर्म का भार सहता रह।
6. और जब इतने दिन पूरे हो जाएं, तब अपके दहिने पांजर के बल लेटकर यहूदा के घराने के अधर्म का भार सह लेना; मैं ने उसके लिथे भी और तेरे लिथे एक वर्ष की सन्ती एक दिन अर्यात् चालीस दिन ठहराए हैं।
7. और तू यरूशलेम के घेरने के लिथे बांह उघाड़े हुए अपना मुंह उघर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करना।
8. और देख, मैं तुझे रस्सिक्कों जकडूंगा, और जब तक उसके घेरने के दिन पूरे न हों, तब तक तू करवट न ले सकेगा।
9. और तू गेहूं, जव, सेम, मसूर, बाजरा, और कठिया गेहूं लेकर, एक बासन में रखकर उन से रोटी बनाया करना। जितने दिन तू अपके पांजर के बल लेटा रहेगा, उतने अर्यात् तीन सौ नब्बे दिन तक उसे खाया करना।
10. और जो भेजन तू खाए, उसे तौल तौलकर खाना, अर्यात् प्रति दिन बीस बीस शेकेल भर खाया करता, और उसे समय समय पर खाना।
11. पानी भी तू मापकर पिया करना, अर्यात् प्रति दिन हीन का छठवां अंश पीना; और उसको समय समय पर पीना।
12. और अपना भोजन जब की रोटियोंकी नाई बनाकर खाया करना, और उसको मनुष्य की बिष्ठा से उनके देखते दनाया करना।
13. फिर यहोवा ने कहा, इसी प्रकार से इस्राएल उन जातियोंके बीच अपक्की अपक्की रोटी अशुद्धता से खाया करेंगे, जहां में उन्हें बरबस पहुंचाऊंगा।
14. तब मैं ने कहा, हाथ, यहोवा परमेश्वर देख, मेरा मन कभी अशुद्ध नहीं हुआ, और न मैं ने बचपन से लेकर अब तक अपक्की मृत्यु से मरे हुए वा फाड़े हुए पशु का मांस खाया, और न किसी प्रकार का घिनौना मांस मेरे पुंह में कभी गया है।
15. तब उस ने मुझ से कहा, देख, मैं ने तेरे लिथे मनुष्य की विष्ठा की सन्ती गोबर ठहराया है, और उसी से तू अपक्की रोठी बनाना।
16. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, देख, मैं यरूशलेम में अन्नरूपी आधार को दूर करूंगा; सो वहां के लोग तौल तोलकर और चिन्ता कर करके रोटी खाया करेंगे; और माप मापकर और विस्मित हो होकर पानी पिया करेंगे।
17. और इस से उन्हें रोटी और पानी की घटी होगी; और वे सब के सब घबराएंगे, और अपके अधर्म में फंसे हुए सूख् जाएंगे।
Chapter 5
1. और हे मनुष्य के सन्तान, एक पैनी तलवार ले, और उसे नाऊ के छुरे के काम में लाकर अपके सिर और दाढ़ी के बाल मूंड़ डाल; तब तौलने का कांटा लेकर बालोंके भाग कर।
2. जब नगर के घिरने के दिन पूरे हों, तब नगर के भीतर एक तिहाई आग में डालकर जलाना; और एक तिहाई लेकर चारोंओर तलवार से मारना; ओर एक तिहाई को पवन में उड़ाना, और मैं तलवार खींचकर उसके पीछे चलाऊंगा।
3. तब इन में से योड़े से बाल लेकर अपके कपके की छोर में बान्धना।
4. फिर उन में से भी योड़े से लेकर आग के बीच डालना कि वे आग में जल जाएं; तब उसी में से एक लो भड़ककर इस्राएल के सारे धराने में फैल जाएगी।
5. प्रभु यहोवा योंकहता है, यरूशलेम गेसी ही है; मैं ने उसको अन्यजातियोंके बीच में ठहराया, और वह चारोंओर देशोंसे घिरी है।
6. उस ने मेरे नियमोंके विरुद्ध काम करके अन्यजातियोंसे अधिक दुष्टता की, और मेरी विधियोंके विरुद्ध चारोंओर के देशोंके लोगोंसे अधिक बुराई की है; क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने, और वे मेरी विधियोंपर नहीं चले।
7. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, तुम लोग जो अपके चारोंओर की जातियोंसे अधिक हुल्लड़ मचाते, और न मेरी विधियोंपर चलते, न मेरे नियमोंको मानते और अपके चारोंओर की जातियोंके नियमोंके अनुसार भी न किया,
8. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं स्वयं तेरे विरुद्ध हूँ; और अन्यजातियोंके देखते मैं तेरे बीच न्याय के काम करूंगा।
9. और तेरे सब घिनौने कामोंके कारण मैं तेरे बीच ऐसा करूंगा, जैसा न अब तक किया है, और न भविष्य में फिर करूंगा।
10. सो तेरे बीच लड़केबाले अपके अपके बाप का, और बाप अपके अपके लड़केबालोंका मांस खाएंगे; और मैं तुझ को दण्ड दूंगा,
11. और तेरे सब बचे हुओं को चारोंओर तितर-बितर करूंगा। इसलिथे प्रभु यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की सौगन्ध, इसलिथे कि तू ने मेरे पवित्रस्यान को अपक्की सारी घिनौनी मूरतोंऔर सारे घिनौने कामोंसे अशुद्ध किया है, मैं तुझे घटाऊंगा, और तुझ पर दया की दृष्टि न करूंगा, और तुझ पर कुछ भी कोमलता न करूंगा।
12. तेरी एक तिहाई तो मरी से मरेगी, और तेरे बीच भूख से मर मिटेगी; एक तिहाई तेरे आस पास तलवार से मारी जाएगी; और एक तिहाई को मैं चारोंओर तितर-बितर करूंगा और तलवार खींचकर उनके पीछे चलाऊंगा।
13. इस प्रकार से मेरा कोप शान्त होगा, और अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से भड़काकर मैं शान्ति पाऊंगा; और जब मैं अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से भड़का चुकूं, तब वे जान लेंगे कि मुझ यहोवा ही ने जलन में आकर यह कहा है।
14. और मैं तुझे तेरे चारोंओर की जातियोंके बीच, सब बटोहियोंके देखते हुए उजाडूंगा, और तेरी नामधराई कराऊंगा।
15. सो जब मैं तुझ को कोप और जलजलाहट और रिसवाली घुड़कियोंके साय दण्ड दूंगा, तब तेरे चारोंओर की जातियोंके साम्हने नामधराई, ठट्ठा, शिझा और विस्मय होगा, क्योंकि मूफ यहोवा ने यह कहा है।
16. यह उस समय होगा, जब मैं उन लोगोंको नाश करने के लिथे तुम पर महंगी के तीखे तीर चलाकर, तुम्हारे बीच महंगी बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे अन्नरूपी आधार को दूर करूंगा।
17. और मैं तुम्हारे बीच महंगी और दुष्ट जन्तु भेजूंगा जो तुम्हें नि:सन्तान करेंगे; और मरी और खून तुम्हारे बीच चलते रहेंगे; और मैं तुम पर तलवार चलवाऊंगा, मुझ यहोवा ने यह कहा है।
Chapter 6
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा।
2. हे मतुष्य के सन्तान अपना मुख इस्राएल के पहाड़ोंकी ओर करके उनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
3. और कह, हे इस्राएल के पहाड़ो, प्रभु यहोवा का वचन सुनो ! प्रभु यहोवा पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंसे, और नालोंऔर तराइयोंसे योंकहता है, देखो, मैं तुम पर तलवार चलवाऊंगा, और तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यानोंको नाश करूंगा।
4. तुम्हारी वेदियां उजड़ेंगी और तुम्हारी सूर्य की प्रतिमाएं तोड़ी जाएंगी; और मैं तुम में से मारे हुओं को तुम्हारी मूरतोंके आगे फेंक दूंगा।
5. मैं इस्राएलियोंकी लोयोंको उनकी मूरतोंके साम्हने रखूंगा, और उनकी हड्डियोंको तुम्हारी वेदियोंके आस पास छितरा दूंगां
6. तुम्हारे जितने बसाए हुए नगर हैं, वे सब ऐसे उजड़ जाएंगे, कि तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यान भी उजाड़ हो जाएंगे, तुम्हारी वेदियां उजड़ेंगी और ढाई जाएंगी, तुम्हारी मूरतें जाती रहेंगी और तुम्हारी सूर्य की प्रतिमाएं काटी जाएंगी; और तुम्हारी सारी कारीगरी मिटाई जाएगी।
7. और तुम्हारे बीच मारे हुए गिरेंगे, और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
8. तौभी मैं कितनोंको बचा रखूंगा। सो जब तुम देश देश में तितर-बितर होगे, तब अन्यजातियोंके बीच तुम्हारे कुछ लोग तलवार से बच जाएंगे।
9. और वे बचे हुए जोग, उन जातियोंके बीच, जिन में वे बंधुए होकर जाएंगे, मुझे स्मरण करेंगे; और यह भी कि हमारा व्यभिचारी ह्रृदय यहोवा से कैसे हट गया है और व्यभिचारिणी की सी हमारी आंखें मूरतोंपर कैसी लगी हैं जिस से यहोवा का मन टूटा है। इस रीति से उन बुराइयोंके कारण, जो उन्होंने अपके सारे घिनौने काम करके की हैं, वे अपक्की दृष्टि में घिनौने ठहरेंगे।
10. तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ, और उनकी सारी हानि करने को मैं ने जो यह कहा है, उसे व्यर्य नहीं कहा।
11. प्रभु यहोवा योंकहता है, कि अपना हाथ मारकर और अपना पांव पटककर कह, इस्राएल के घराने के सारे घिनौने कामोंपर हाथ, हाथ, क्योंकि वे तलवार, भूख, और मरी से नाश हो जाएंगे।
12. जो दूर हो वह मरी से मरेगा, और जो निकट हो वह तलवार से मार डाला जाएगा; और जो बचकर नगर में रहते हुए घेरा जाए, वह भूख से मरेगा। इस भांति मैं अपक्की जलजलाहट उन पर पूरी रीति से उतारूंगा।
13. और जब हर एक ऊंची पहाड़ी और पहाड़ोंकी हर एक चोटी पर, और हर एक हरे पेड़ के नीचे, और हर एक घने बांजवृझ की छाया में, जहां जहां वे अपक्की सब मूरतोंको सुखदायक सुगन्ध द्रव्य चढ़ाते हैं, वहां उनके मारे हुए लोग अपक्की वेदियोंके आस पास अपक्की मूरतोंके बीच में पके रहेंगे; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
14. मैं अपना हाथ उनके विरुद्ध बढ़ाकर उस देश को सारे घरोंसमेत जंगल से ले दिबला की ओर तक उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 7
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, प्रभु यहोवा इस्राएल की भूमि के विषय में योंकहता है, कि अन्त हुआ; चारोंकोनोंसमेत देश का अन्त आ गया है।
3. तेरा अन्त भी आ गया, और मैं अपना कोप तुझ पर भड़काकर तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा; और तेरे सारे घिनौने कामोंका फल तुझे दूंगा।
4. मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी, और न मैं कोतलता करूंगा; और जब तक तेरे घिनौने पाप तुझ में बने रहेंगे तब तक मैं तेरे चालचलन का फल तुझे दूंगा। तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
5. प्रभु यहोवा योंकहता है, विपत्ति है, एक बड़ी विपत्ति है ! देखो, वह आती है।
6. अन्त आ गया है, सब का अन्त आया है; वह तेरे विरुद्ध जागा है। देखो, वह आता है।
7. हे देश के निवासी, तेरे लिथे चक्र घूम चुका, समय आ गया, दिन निकट है; पहाड़ोंपर आनन्द के शब्द का दिन नहीं, हुल्लड़ ही का होगा।
8. अब योड़े दिनोंमें मैं अपक्की जलजलाहट तुझ पर भड़काऊंगा, और तुझ पर पूरा कोप उण्डेलूंगा और तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा। और तेरे सारे घिनौने कामोंका फल तुझे भुगताऊंगा।
9. मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी और न मैं तुझ पर कोपलता करूंगा। मैं तेरी चालचलन का फल तुझे भुगताऊंगा, और तेरे घिनौने पाप तुझ में बने रहेंगे। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा दण्ड देनेवाला हूँ।
10. देखो, उस दिन को देखो, वह आता है ! चक्र घूम चुका, छड़ी फूल चुकी, अभिमान फूला है।
11. उपद्रव बढ़ते बढ़ते दुष्टता का दण्ड बन गया; उन में से कोई न बचेगा, और न उनकी भीड़-भाड़, न उनके धन में से कुछ रहेगा; और न उन में से किसी के लिथे विलाप सुन पकेगा।
12. समय आ गया, दिन निकट आ गया है; न तो मोल लेनेवाला आनन्द करे और न बेचनेवाला शोक करे, क्योंकि उनकी सारी भीड़ पर कोप भड़क उठा है।
13. चाहे वे जीवित रहें, तौभी बेचनेवाला बेची हुई वस्तु के पास कभी लौटने न पाएगा; क्योंकि दर्शन की यह बात देश की सारी भीड़ पर घटेगी; कोई न लौटेगा; कोई भी मनुष्य, जो अधर्म में जीवित रहता है, बल न पकड़ सकेगा।
14. उन्होंने नरसिंगा फूंका और सब कुछ तैयार कर दिया; परन्तु युद्ध में कोई नहीं जाता क्योंकि देश की सारी भीड़ पर मेरा कोप भड़का हुआ है।
15. बाहर तलवार और भीतर महंगी और मरी हैं; जो मैदान में हो वह तलवार से मरेगा, और जो नगर में हो वह भूख और मरी से मारा जाएगा।
16. और उन में से जो बच निकलेंगे वे बचेंगे तो सही परन्तु अपके अपके अधर्म में फसे रहकर तराइयोंमें रहनेवाले कबूतरोंकी नाई पहाड़ोंके ऊपर विलाप करते रहेंगे।
17. सब के हाथ ढीले और सब के घुटने अति निर्बल हो जाएंगे।
18. और वे कमर में टाट कसेंगे, और उनके रोए खड़े होंगे; सब के मुंह सूख जाएंगे और सब के सिर मूंड़े जाएंगे।
19. वे अपक्की चान्दी सड़कोंमें फेंक देंगे, और उनका सोना अशुद्ध वस्तु छहरेगा; यहोवा की जलन के दिन उनका सोना चान्दी उनको बचा न सकेगी, न उस से उनका जी सन्तुष्ट होगा, न उनके पेट भरेंगे। क्योंकि वह उनके अधर्म के ठोकर का कारण हुआ है।
20. उनका देश जो शोभायमान और शिरोमणि या, उसके विषय में उन्होंने गर्व ही गर्व करके उस में अपक्की घृणित वस्तु ओं की मूरतें, और घृणित वस्तुएं बना रखीं, इस कारण मैं ने उसे उनके लिथे अशुद्ध वस्तु ठहराया हे।
21. और मैं उसे लूटने के लिथे परदेशियोंके हाथ, और घन छाीनने के लिथे पृय्वी के बुष्ट लोगोंके वश में कर दूंगा; और वे उसे अपवित्र कर डालेंगे।
22. मैं उन से मुंह फेर लूंगा, तब वे मेरे रझित स्यान को अपवित्र करेंगे; डाकू उस में घुसकर उसे अपवित्र करेंगे;
23. एक सांकल बना दे, क्योंकि देश अन्याय की हत्या से, और नगर उपद्रव से भरा हुआ है।
24. मैं अन्यजातियोंके बुरे से बुरे लोगोंको लाऊंगा, जो उनके घरोंके स्वामी हो जाएंगे; और मैं सामयिर्योंका गर्व तोड़ दूंगा और उनके पवित्रस्यान अपवित्र किए जाएंगे।
25. सत्यानाश होने पर है तब ढूंढ़ने पर भी उन्हें शान्ति न मिलेंगी।
26. विपत्ति पर विपत्ति आएगी और उड़ती हुई चर्चा पर चर्चा सुनाई पकेगी; और लोग भविष्यद्वक्ता से दर्शन की बात पूछेंगे, परन्तु याजक के पास से व्यवस्या, और पुरनिथे के पास से सम्मति देने की शक्ति जाती रहेगी।
27. राजा तो शोक करेगा, और रईस उदासीरूपी वस्त्र पहिनेंगे, और देश के लोगोंके हाथ ढीले पकेंगे। मैं उनके चलन के अनुसार उन से बर्ताव करूंगा, और उनकी कमाई के समान उनको दण्ड दूंगा; तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 8
1. फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पांचवें दिन को जब मैं अपके घर में बैठा या, और यहूदियोंके पुरदिथे मेरे साम्हने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
2. और मैं ने देखा कि आग का सा एक रूप दिखई देता है; उसकी कमर से नीचे की ओर आग है, और उसकी कमर से ऊपर की ओर फलकाए हुए पीतल की फलक सी कुछ है।
3. उस ने हाथ सा कुछ बढ़ाकर मेरे सिर के बाल पकड़े; तब आत्मा ने मुझे पृय्वी और आकाश के बीच में उठाकर परमेश्वर के दिखाए हुए दर्शनोंमें यरूशलेम के मन्दिर के भीतर, आंगन के उस फाटक के पास पहुचा दिया जिसका मुंह उत्तर की ओर है; और जिस में उस जलन उपजानेवाली प्रतिमा का स्यान या जिसके कारण द्वेष उपजता है।
4. फिर वहां इस्राएल के परमेश्वर का तेज वैसा ही या जैसा मैं ने मैदान में देखा या।
5. उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपक्की आंखें उत्तर की ओर उठाकर देख। सो मैं ने अपक्की आंखें उत्तर की ओर उठाकर देखा कि वेदी के फाटक की उत्तर की ओर उसके प्रवेशस्यान ही में वह डाह उपजानेवाली प्रतिमा है।
6. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू देखता है कि थे लोग क्या कर रहे हैं? इस्राएल का घराना क्या ही बड़े घृणित काम यहां करता है, ताकि मैं अपके पवित्रस्यान से दूर हो जाऊं; परन्तु तू इन से भी अधिक घृणित काम देखेगा।
7. तब वह मुझे आंगन के द्वार पर ले गया, और मैं ने देखा, कि भीत में एक छेद है।
8. तब उस ने मूफ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, भीत को फोड़; तो मैं ने भीत को फोड़कर क्या देखा कि एक द्वार है
9. उस ने मुझ से कहा, भीतर जाकर देख कि थे लोग यहां कैसे कैसे और अति घृणित काम कर रहे हैं।
10. सो मैं ने भीतर जाकर देखा कि चारोंओर की भीत पर जाति जाति के रेंगनेवाले जन्तुओं और घृणित पशुओं और इस्राएल के घराने की सब मूरतोंके चित्र खिचे हुए हैं।
11. और इस्राएल के घराने के पुरनियोंमें से सत्तर पुरुष जिन के बीच में शापान का पुत्र याजन्याह भी है, वे उन चित्रोंके साम्हने खड़े हैं, और हर एक पुरुष अपके हाथ में घूपदान लिए हुए है; और धूप के धूएं के बादल की सुगन्ध उठ रही है।
12. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने देखा है कि इस्राएल के घराने के पुरनिथे अपक्की अपक्की नक्काशीवाली कोठरियोंके भीतर अर्यात् अन्धिक्कारने में क्या कर रहे हैं? वे कहते हैं कि यहोवा हम को नहीं देखता; यहोवा ने देश को त्याग दिया है।
13. फिर उस ने मुझ से कहा, तू इन से और भी अति घृणित काम देखेगा जो वे करते हैं।
14. तब वह मुझे यहोवा के भवन के उस फाटक के पास ले गया जो उत्तर की ओर या और वहां स्त्रियाँ बैठी हुई तम्मूज के लिथे रो रही यीं।
15. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर इन से भी बड़े घृणित काम तू देखेगा।
16. तब वह मुझे यहोवा के भवन के भीतरी आंगन में ले गया; और वहां यहोवा के भवन के द्वार के पास ओसारे और वेदी के बीच कोई पच्चीस पुरुष अपक्की पीठ यहोवा के भवन की ओर और अपके मुख पूर्व की ओर किए हुए थे; और वे पूर्व दिशा की ओर सूर्य को दण्डवत् कर रहे थे।
17. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा? क्या यहूदा के घराने के लिथे घृणित कामोंका करना जो वे यहां करते हैं छोटी बात है? उन्होंने अपके देश को उपद्रव से भर दिया, और फिर यहां आकर मुझे रिस दिलाते हैं। वरन वे डाली को अपक्की नाक के आगे लिए रहते हैं।
18. इसलिथे मैं भी जलजलाहट के साय काम करूंगा, न मैं दया करूंगा और न मैं कोमलता करूंगा; और चाहे वे मेरे कानोंमें ऊंचे शब्द से पुकारें, तौभी मैं उनकी बात न सुनूंगा।
Chapter 9
1. फिर उस ने मेरे कानोंमें ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा, नगर के अधिक्कारनेियोंको अपके अपके हाथ में नाश करने का हयियार लिए हुए निकट लाओ।
2. इस पर छ:पुरुष, उत्तर की ओर ऊपक्की फाटक के मार्ग से अपके अपके हाथ में घात करने का हयियार लिए हुए आए; और उनके बीच सन का वस्त्र पहिने, कमर में लिखने की दवात बान्धे हुए एक और पुरुष या; और वे सब भवन के भीतर जाकर पीतल की वेदी के पास खड़े हुए।
3. और इस्राएल के परमेश्वर का तेज करूबोंपर से, जिनके ऊपर वह रहा करता या, भवन की डेवढ़ी पर उठ आया या; और उस ने उस सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष को जो कमर में दवात बान्धे हुए या, पुकारा।
4. और यहोवा ने उस से कहा, इस यरूशलेम नगर के भीतर इधर उधर जाकर जितने मनुष्य उन सब घृणित कामोंके कारण जो उस में किए जाते हैं, सांसें भरते और दु:ख के मारे चिल्लाते हैं, उनके मायोंपर चिन्ह कर दे।
5. तब उस ने मेरे सुनते हुए दूसरोंसे कहा, नगर में उनके पीछे पीछे चलकर मारते जाओ; किसी पर दया न करना और न कोमलता से काम करना।
6. बूढ़े, युवा, कुंवारी, बालबच्चे, स्त्रियां, सब को मारकर नाश करो, परन्तु जिस किसी मनुष्य के माथे पर वह चिन्ह हो, उसके निकट न जाना। और मेरे पवित्रस्यान ही से आरम्भ करो। और उन्होंने उन पुरनियोंसे आरम्भ किया जो भवन के साम्हने थे।
7. फिर उस ने उन से कहा, भवन को अशुद्ध करो, और आंगनोंको लोयोंसे भर दो। चलो, बाहर निकलो। तब वे निकलकर नगर में मारने लगे।
8. जब वे मार रहे थे, और मैं अकेला रह गया, तब मैं मुंह के बल गिरा और चिल्लाकर कहा, हाथ प्रभु यहोवा ! क्या तू अपक्की जलजलाहट यरूशलेम पर भड़काकर इस्राएल के सब बचे हुओं को भी नाश करेगा?
9. तब उस ने मुझ से कहा, इस्राएल और यहूदा के घरानोंका अधर्म अत्यन्त ही अधिक है, यहां तक कि देश हत्या से और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हें कि यहोवा ने पृय्वी को त्याग दिया और यहोवा कुछ नहीं देखता।
10. इसलिथे उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।
11. तब मैं ने क्या देखा, कि जो पुरुष सन का वस्त्र पहिने हुए और कमर में दवात बान्धे या, उस ने यह कहकर समाचार दिया, जैसे तू ने आज्ञा दी, मैं ने वैसे ही किया है।
Chapter 10
1. इसके बाद मैं ने देखा कि करूबोंके सिरोंके ऊपर जो आकाशमण्डल है, उस में नीलमणि का सिंहासन सा कुछ दिखाई देता है।
2. तब यहोवा ने उस सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष से कहा, घूमनेवाले पहियोंके बीच करूबोंके नीचे जा और अपक्की दोनोंमुट्ठियोंको करूबोंके बीच के अंगारोंसे भरकर नगर पर छितरा दे। सो वह मेरे देखते देखते उनके बीच में गया।
3. जब वह पुरुष भीतर गया, तब वे करुब भवन की दक्खिन ओर खड़े थे; और बादल भीतरवाले आंगन में भरा हुआ या।
4. तब यहोवा का तेज करूबोंके ऊपर से उठकर भवन की डेवढ़ी पर आ गया; और बादल भवन में भर गया; और वह आंगन यहोवा के तेज के प्रकाश से भर गया।
5. और करूबोंके पंखोंका शब्द बाहरी आंगन तक सुनाई देता या, वह सर्वशक्तिमान् परमेश्वर के बोलने का सा शब्द या।
6. जब उस ने सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष को घूमनेवाले पहियोंके भीतर करूबोंके बीच में से आग लेने की आज्ञा दी, तब वह उनके बीच में जाकर एक पहिथे के पास खड़ा हुआ।
7. तब करूबोंके बीच से एक करूब ने अपना हाथ बढ़ाकर, उस आग में से जो करूबोंके बीच में यी, कुछ उठाकर सन के वस्त्र पहिने हुए पुरुष की मुट्ठी में दे दी; और वह उसे लेकर बाहर चला गया।
8. करूबोंके पंखोंके नीचे तो मनुष्य का हाथ सा कुछ दिखाई देता या।
9. तब मैं ने देखा, कि करूबें के पास चार पहिथे हैं; अर्यात् एक एक करूब के पास एक एक पहिया है, और पहियोंका रूप फीरोज़ा का सा है।
10. और उनका ऐसा रूप है, कि चारोंएक से दिखाई देते हैं, जैसे एक पहिथे के बीच दूसरा पहिया हो।
11. चलने के समय वे अपक्की चारोंअलंगोंके बल से चलते हैं; और चलते समय मुड़ते नहीं, वरन जिधर उनका सिर रहता है वे उधर ही उसके पीछे चलते हैं और चलते समय वे मुड़ते नहीं।
12. और पीठ हाथ और पंखोंसमेत करूबोंका सारा शरीर और जो पहिथे उनके हैं, वे भी सब के सब चारोंओर आंखोंसे भरे हुए हैं।
13. मेरे सुनते हुए इन पहियोंको चक्कर कहा गया, अर्यात् घूमनेवाले पहिथे।
14. और एक एक के चार चार मुख थे; एक मुख तो करूब का सा, दूसरा पनुष्य का सा, तीसरा सिंह का सा, और चौया उकाब पक्की का सा।
15. और करूब भूमि पर से उठ गए। थे वे ही जीवधारी हैं, जो मैं ने कबार नदी के पास देखे थे।
16. और जब जब वे करूब चलते थे तब तब वे पहिथे उनके पास पास चलते थे; और जब जब करूब पृय्वी पर से उठने के लिथे अपके पंख उठाते तब तब पहिथे उनके पास से नहीं मुड़ते थे।
17. जब वे खड़े होते तब थे भी खड़े होते थे; और जब वे उठते तब थे भी उनके संग उठते थे; क्योंकि जीवधारियोंकी आत्मा इन में भी रहती यी।
18. यहोवा का तेज भवन की डेवढ़ी पर से उठकर करूबोंके ऊपर ठहर गया।
19. और करूब अपके पंख उठाकर मेरे देखते देखते पृय्वी पर से उठकर निकल गए; और पहिथे भी उनके संग संग गए, और वे सब यहोवा के भवन के पूवीं फाटक में खड़े हो गए; और इस्राएल के परमेश्वर का तेज उनके ऊपर ठहरा रहा।
20. थे वे ही जीवधारी हैं जो मैं ने कबार नदी के पास इस्राएल के परमेश्वर के नीचे देखे थे; और मैं ने जान लिया कि वे भी करूब हैं
21. हर एक के चार मुख और चार पंख और पंखोंके नीचे मनुष्य के से हाथ भी थे।
22. और उनके मुखोंका रूप वही है जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा या। और उनके मुख ही क्या वरन उनकी सारी देह भी वैसी ही यी। वे सीधे अपके अपके साम्हने ही चलते थे।
Chapter 11
1. तब आत्मा ने मुझे उठाकर यहोवा के भवन के पूवीं फाटक के पास जिसका मुंह पूवीं दिशा की ओर है, पहुंचा दिया; और वहां मैं ने क्या देखा, कि फाटक ही में पच्चीस पुरुष हैं। और मैं ने उनके बीच अज्जूर के पुत्र याजन्याह को और बनायाह के पुत्र पलत्याह को देखा, जो प्रजा के प्रधान थे।
2. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, जो मनुष्य इस नगर में अनर्य कल्पना और बुरी युक्ति करते हैं वे थे ही हैं।
3. थे कहते हैं, घर बनाने का समय निकट नहीं, यह नगर हंडा और हम उस में का मांस है।
4. इसलिथे हे मनुष्य के सन्तान, इनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर, भविष्यद्वाणी।
5. तब यहोवा का आत्मा मुझ पर उतरा, और मुझ से कहा, ऐसा कह, यहोवा योंकहता है, कि हे इस्राएल के घराने तुम ने ऐसा ही कहा हे; जो कुछ तुम्हारे मन में आता है, उसे मैं जानता हूँ।
6. तुम ने तो इस नगर में बहुतोंको मार डाला वरन उसकी सड़कोंको लोयोंसे भर दिया है।
7. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, कि जो मनुष्य तुम ने इस में मार डाले हैं, उनकी लोथें ही इस नगररूपी हंडे में का मांस है; और तुम इसके बीच से निकाले जाओगे।
8. तुम तलवार से डरते हो, और मैं तुम पर तलवार चलाऊंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. मैं तुम को इस में से निकालकर परदेशियोंके हाथ में कर दूंगा, और तुम को दण्ड दिलाऊंगा।
10. तुम तलवार से मरकर गिरोगे, और मैं तुम्हारा मुकद्दमा, इस्राएल के देश के सिवाने पर चुकाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
11. यह नगर तुम्हारे लिथे हंडा न बनेगा, और न तुम इस में का मांस होगे; मैं तुम्हारा मुक़द्दमा इस्राएल के देश के सिवाने पर चुकाऊंगा।
12. तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ; तुम तो मेरी विधियोंपर नहीं चले, और मेरे नियमोंको तुम ने नहीं माना; परन्तु अपके चारोंओर की अन्यजातियोंकी रीतियोंपर चले हो।
13. मैं इस प्रकार की भविष्यद्वाणी कर रहा या, कि बनायाह का पुत्र पलत्याह मर गया। तब मैं मुंह के बल गिरकर ऊंचे शब्द से चिल्ला उठा, और कहा, हाथ प्रभु यहोवा, क्या तू इस्राएल के बचे हुओं को सत्यानाश कर डालेगा?
14. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
15. हे मनुष्य के सन्तान, यरूशलेम के निवासियोंने तेरे निकट भाइयोंसे वरन इस्राएल के सारे घराने से भी कहा है कि तुम यहोवा के पास से दूर हो जाओ; यह देश हमारे ही अधिक्कारने में दिया गया है।
16. परन्तु तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है कि मैं ने तुम को दूर दूर की जातियोंमें बसाया और देश देश में तितर-बितर कर दिया तो है, तौभी जिन देशोंमें तुम आए हुए हो, उन में मैं स्वयं तुम्हारे लिथे योड़े दिन तक पवित्रस्यान ठहरूंगा।
17. इसलिथे, उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, कि मैं तुम को जाति जाति के लोगोंके बीच से बटोरूंगा, और जिन देशोंमें तुम तितर-बितर किए गए हो, उन में से तुम को इकट्ठा करूंगा, और तुम्हें इस्राएल की भूमि दूंगा।
18. और वे वहां पहुंचकर उस देश की सब घृणित मूरतें और सब घृणित काम भी उस में से दूर करेंगे।
19. और मैं उनका ह्रृदय एक कर दूंगा; और उनके भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा, और उनकी देह में से पत्यर का सा ह्रृदय निकालकर उन्हें मांस का ह्रृदय दूंगा,
20. जिस से वे मेरी विधियोंपर नित चला करें और मेरे नियमोंको मानें; और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा।
21. परन्तु वे लोग जो अपक्की घृणित मूरतोंऔर घृणित कामोंमें मन लगाकर चलते रहते हैं, उनको मैं ऐसा करूंगा कि उनकी चाल उन्हीं के सिर पर पकेंगी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
22. इस पर करूबोंने अपके पंख उठाए, और पहिथे उनके संग संग चले; और इस्राएल के परमेश्वर का तेज उनके ऊपर या।
23. तब यहोवा का तेज नगर के बीच में से उठकर उस पर्वत पर ठहर गया जो नगर की पूर्व ओर है।
24. फिर आत्मा ने मुझे उठाया, और परमेश्वर के आत्मा की शक्ति से दर्शन में मुझे कसदियोंके देश में बंधुुओं के पास पहुंचा दिया। और जो दर्शन मैं ने पाया या वह लोप हो गया।
25. तब जितनी बातें यहोवा ने मुझे दिखाई यीं, वे मैं ने बंधुओं को बता दीं।
Chapter 12
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, तू बलवा करनेवाले घराने के बीच में रहता है, जिनके देखने के लिथे आंखें तो हैं, परन्तु नहीं देखते; और सुनने के लिथे कान तो हैं परन्तु नहीं सुनते; क्योंकि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं।
3. इसलिथे हे मनुष्य के सन्तान दिन को बंधुआई का सामान, तैयार करके उनके देखते हुए उठ जाना, उनके देखते हुए अपना स्यान छोड़कर दूसरे स्यान को जाना। यद्यपि वे बलवा करनेवाले घराने के हैं, तौभी सम्भव है कि वे ध्यान दें।
4. सो तू दिन को उनके देखते हुए बंधुआई के सामान की नाई अपना सामान निकालना, और तब तू सांफ को बंधुआई में जानेवाले के समान उनके देखते हुए उठ जाना।
5. उनके देखते हुए भीत को फोड़कर उसी से अपना सामान निकालना।
6. उनके देखते हुए उसे अपके कंधे पर उठाकर अन्धेरे में निकालना, और अपना मुंह ढांपे रहना कि भूमि तुझे न देख पके; क्योंकि मैं ने तुझे इस्राएल के घराने के लिथे एक चिन्ह ठहराया है।
7. उस आज्ञा के अनुसार मैं ने वैसा ही किया। दिन को मैं ने अपना सामान बंधुआई के सामान की नाई निकाला, और सांफ को अपके हाथ से भीत को फोड़ा; फिर अन्धेरे में सामान को निकालकर, उनके देखते हुए अपके कंधे पर उठाए हुए चला गया।
8. बिहान को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
9. हे मनुष्य के सन्तान, क्या इस्राएल के घराने ने अर्यात् उस बलवा करनेवाले घराने ने तुझ से यह नहीं पूछा, कि यह तू क्या करता है?
10. तू उन से कह कि प्रभु यहोवा योंकहता है, यह प्रभावशाली वचन यरूशलेम के प्रधान पुरुष और इस्राएल के सारे घराने के विष्य में है जिसके बीच में वे रहते हैं।
11. तू उन से कह, मैं नुम्हारे लिथे चिन्ह हूँ; जैसा मैं ने किया है, वैसा ही इस्रााएली लागोंसे भी किया जाएगा; उनको उठकर बंधुआई में जाना पकेगा।
12. उनके बीच में जो प्रधान है, सो अन्धेरे में अपके कंघे पर बोफ उठाए हुए निकलेगा; वह अपना सामान निकालने के लिथे भीत को फोड़ेगा, और अपना मुंह ढांपे रहेगा कि उसको भूमि न देख पके।
13. और मैं उस पर अपना जाल फैलाऊंगा, और वह मेरे फंदे में फंसेगा; और मैं उसे कसदियोंके देश के बाबुल में पहुंचा दूंगा; यद्यपि वह उस नगर में मर जाएगा, तौभी उसको न देखेगा।
14. और जितने उसके सहाथक उसके आस पास होंगे, उनको और उसकी सारी टोलियोंको मैं सब दिशाओं में तितर-बितर कर दूंगा; और तलवार खींचकर उनके पीछे चलवाऊंगा।
15. और जब मैं उन्हे जाति जाति में तितर-बितर कर दूंगा, और देश देश में छिन्न भीन्न कर दूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
16. परन्तु मैं उन में से थेड़े से लोगोंको तलवार, भूख और मरी से बचा रखूंगा; और वे अपके घृणित काम उन जातियोंमें बखान करेंगे जिनके बीच में वे पहुंचेंगे; तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
17. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, कांपके हुए अपक्की रोटी खाना और यरयराते और चिन्ता करते हुए अपना पानी पीना;
19. और इस देश के लोगोंसे योंकहना, कि प्रभु यहोवा यरूशलेम और इस्राएल के देश के निवासियोंके विषय में योंकहता है, वे अपक्की रोटी चिन्ता के साय खाएंगे, और अपना पानी विस्मय के साय पीएंगे; क्योंकि देश अपके सब रहनेवालोंके उपद्रव के कारण अपक्की सारी भरपूरी से रहित हो जाएगा।
20. और बसे हुए नगर उजड़ जाएंगे, और देश भी उजाड़ हो जाएगा; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
21. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
22. हे मनुष्य के सन्तान यह क्या कहावत है जो तुम लोग इस्राएल के देश में कहा करते हो, कि दिन अधिक हो गए हैं, और दर्शन की कोई बात पूरी नहीं हुई?
23. इसलिथे उन से कह, पभु यहोवा योंकहता है, मैं इस कहावत को बन्द करूंगा; और यह कहावत इस्राएल पर फिर न चलेगी। और तू उन से कह कि वह दिन निकट आ गया है, और दर्शन की सब बातें पूरी होने पर हैं।
24. क्योंकि इस्राएल के घराने में न तो और अधिक फूठे दर्शन की कोई बात और न कोई चिकनी-चुपक्की बात फिर कही जाएगी।
25. क्योंकि मैं यहोवा हूँ; जब मैं बोलूं, तब जो वचन मैं कहूं, वह पूरा हो जाएगा। उस में विलम्ब न होगा, परन्तु, हे बलवा करनेवाले घराने तुम्हारे ही दिनोंमें मैं वचन कहूंगा, और वह पूरा हो जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
26. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
27. हे मनुष्य के सन्तान, देख, इस्राएल के घराने के लोग यह कह रहे हैं कि जो दर्शन वह देखता है, वह बहुत दिन के बाद पूरा होनेवाला है; और कि वह दूर के समय के विषय में भविष्यद्वाणी करता है।
28. इसलिथे तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे किसी बचन के पूरा होने में फिर विलम्ब न होगा, वरन जो वचन मैं कहूं, सो वह निश्चय पूरा होगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 13
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के जो भविष्यद्वक्ता अपके ही मन से भविष्यवाणी करते हैं, उनके विरुद्व भविष्यवाणी करके तू कह, यहोवा का वचन सुनो।
3. प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उन मूढ़ भविष्यद्वक्ताओं पर जो अपक्की ही आत्मा के पीछे भटक जाते हैं, और कुछ दर्शन नहीं पाया !
4. हे इस्राएल, तेरे भविष्यद्वक्ता खण्डहरोंमें की लोमडिय़ोंके समान बने हैं।
5. तुम ने नाकोंमें चढ़कर इस्राएल के घराने के लिथे भीत नहीं सुधारी, जिस से वे यहोवा के दिन युद्ध में स्यिर रह सकते।
6. वे लोग जो कहते हैं, यहोवा की यह वाणी है, उन्होंने भावी का व्यर्य और फूठा दावा किया है; और तब भी यह आशा दिलाई कि यहोवा यह वचन पूरा करेगा; तौभी यहोवा ने उन्हें नहीं भेजा।
7. क्या तुम्हारा दर्शन फूठा नहीं है, और क्या तुम फूठमूठ भावी नहीं कहते? तुम कहते हो, कि यहोवा की यह वाणी है; परन्तु मैं ने कुछ नहीं कहा है।
8. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, तुम ने जो व्यर्य बात कही और फूठे दर्शन देखे हैं, इसलिथे मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. जो भविष्यद्वक्ता फूठे दर्शन देखते और फूठमूठ भावी कहते हैं, मेरा हाथ उनके विरुद्ध होगा, और वे मेरी प्रजा की गोष्ठी में भागी न होंगे, न उनके नाम इस्राएल की नामावली में लिखे जाएंगे, और न वे इस्राएल के देश में प्रवेश करने पाएंगे; इस से तुम लोग जान लोगे कि मैं प्रभु यहोवा हूँ।
10. क्योंकि हां, क्योंकि उन्होंने “शान्ति है”, ऐसा कहकर मेरी प्रजा को बहकाया हे जब कि शान्ति नहीं है; और इसलिथे कि जब कोई भीत बनाता है तब वे उसकी कच्ची लेसाई करते हैं।
11. उन कच्ची लेसाई करनेवालोंसे कह कि वह गिर जाएगी। क्योंकि बड़े जोर की वर्षा होगी, और बड़े बड़े ओले भी गिरेंगे, और प्रचण्ड आंधी उसे गिराएगी।
12. सो जब भीत गिर जाएगी, तब क्या लोग तुम से यह न कहेंगे कि जो लेसाई तुम ने की वह कहां रही?
13. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, मैं जलकर उसको पचण्ड आंधी के द्वारा गिराऊंगा; और मेरे कोप से भारी वर्षा होगी, और मेरी जलजलाहट से बड़े बड़े ओले गिरेंगे कि भीत को नाश करें।
14. इस रीति जिस भीत पर तुम ने कच्ची लेसाई की है, उसे मैं ढा दूंगा, वरन मिट्टी में मिलाऊंगा, और उसकी नेव खुल जाएगी; और जब वह गिरेगी, तब तुम भी उसके नीचे दबकर नाश होगे; और तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
15. इस रीति मैं भीत और उसकी कच्ची लेसाई करनेवाले दोनोंपर अपक्की जलजलाहट पूर्ण रीति से भड़काऊंगा; फिर तुम से कहूंगा, न तो भीत रही,और न उसके लेसनेवाले रहे,
16. अर्यात् इस्राएल के वे भविष्यद्वक्ता जो यरूशलेम के विषय में भविष्यद्वाणी करते और उनकी शान्ति का दर्शन बताते थे, परन्तु प्रभु यहोवा की यह वाणी है, कि शान्ति है ही नहीं।
17. फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू अपके लोगोंकी स्त्रियोंसे विमुख होकर, जो अपके ही मन से भविष्यद्वाणी करती हे; उनके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके कह,
18. प्रभु यहोवा योंकहता है, जो स्त्रियां हाथ के सब जोड़ो के लिथे तकिया सीतीं और प्राणियोंका अहेर करने को सब प्रकार के मनुष्योंकी आंख ढांपके के लिथे कपके बनाती हैं, उन पर हाथ ! क्या तुम मेरी प्रजा के प्राणोंका अहेर करके अपके निज प्राण बचा रखोगी?
19. तुम ने तो मुुट्ठी मुट्ठी भर जव और रोटी के टुकड़ोंके बदले मुझे मेरी प्रजा की दृष्टि में अपवित्र ठहराकर, और अपक्की उन फूठी बातोंके द्वारा, जो मेरी प्रजा के लोग तुम से सुनते हैं, जो नाश के योग्य न थे, उनको मार डाला; और जो बचने के योग्य न थे उन प्राणोंको बचा रखा है।
20. इस कारण प्रभु यहोवा तुम से योंकहता है, देखो, मैं तुम्हारे उन तकियोंके विरुद्व हूं, जिनके द्वारा तुम प्राणोंका अहेर करती हो, इसलिथे जिन्हें तुम अहेर कर करके उड़ाती हो उनको मैं तुम्हारी बांह पर से छीनकर उनको छुड़ा दूंगा।
21. मैं तुम्हारे सिर के बुक को फाड़कर अपक्की प्रजा के लोगोंको नुम्हारे हाथ से छुड़ाऊंगा, और आगे को वे तुम्हारे वश में न रहेंगे कि तुम उनका अहेर कर सको; तब तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
22. तुम ने जो फूठ कहकर धमीं के मन को उदास किया है, यद्यपि मैं ने उसको उदास करना नहीं चाहा, और तुम ने दुष्ट जन को हियाव बन्धाया है, ताकि वह अपके बुरे मार्ग से न फिरे और जीवित रहे।
23. इस कारण तुम फिर न तो फूठा दर्शन देखोगी, और न भावी कहोगी; क्योंकि मैं अपक्की प्रजा को तुम्हारे हाथ से दुड़ाऊंगा। तब तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 14
1. फिर इस्राएल के कितने पुरनिथे मेरे पास आकर मेरे साम्हने बैठ गए।
2. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
3. हे मनुष्य के सन्तान, इन पुरुषोंने तो अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित कीं, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखी है; फिर क्या वे मुझ से कुछ भी पूछने पाएंगे?
4. सो तू उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, कि इस्राएल के घराने में से जो कोई अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित करके, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखकर भविष्यद्वक्ता के पास आए, उसको, मैं यहोवा, उसकी बहुत सी मूरतोंके अनुसार ही उत्तर दूंगा,
5. जिस से इस्राएल का घराना, जो अपक्की मूरतोंके द्वारा मुझे त्यागकर दूर हो गया है, उन्हें मैं उन्हीं के मन के द्वारा फंसाऊंगा।
6. सो इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता हे, फिरो और अपक्की मूरतोंको पीठ के पीछे करो; और अपके सब घृणित कामोंसे मुंह मोड़ो।
7. क्योंकि इस्राएल के घराने में से और उसके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से भी कोई क्योंन हो, जो मेरे पीछे हो लेना छोड़कर अपक्की मूरतें अपके मन में स्यापित करे, और अपके अधर्म की ठोकर अपके साम्हने रखे, और तब मुझ से अपक्की कोई बात पूछने के लिथे भविष्यद्वक्ता के पास आए, तो उसको, मैं यहोवा आप ही उत्तर दूंगा।
8. और मैं उस मनुष्य के विरुद्ध होकर उसको विस्मित करूंगा, और चिन्ह ठहराऊंगा; और उसकी कहावत चनाऊंगा और उसे अपक्की प्रजा में से नाश करूंगा; तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
9. और यदि भविष्यद्वक्ता ने धोखा खाकर कोई वचन कहा हो, तो जानो कि मुझ यहोवा ने उस भविष्यद्वक्ता को धोखा दिया है; और मैं अपना हाथ उसके विरुद्ध बढ़ाकर उसे अपक्की प्रजा इस्राएल में से नाश करूंगा।
10. वे सब लोग अपके अपके अधर्म का बोफ उठाएंगे, अर्यात् जैसा भविष्यद्वक्ता से पूछनेवाले का अधर्म ठहरेगा, वैसा ही भविष्यद्वक्ता का भी अधर्म ठहरेगा।
11. ताकि इस्राएल का घराना आगे को मेरे पीछे हो लेना न छोड़े और न अपके भांति भांति के अपराधोंके द्वारा आगे को अशुद्ध बने; वरन वे मेरी प्रजा बनें और मैं उनका परमेश्वर ठहरूं, प्रभु यहोवा की यही आणी है।
12. और यहोवा का यह वचन मेरे पास महुंचा,
13. हे मनुष्य के सन्तान, जब किसी देश के लोग मुझ से विश्वासघात करके पापी हो जाएं, और मैं अपना हाथ उस देश के विरुद्ध बढ़ाकर उसका अन्नरूपी आधार दूर करूं, और उस में अकाल डालकर उस में से मनुष्य और पशु दोनोंको नाश करूं,
14. तब चाहे उस में नूह, दानिय्थेल और अय्यूब थे तीनोंपुरुष हों, तौभी वे अपके धर्म के द्वारा केवल अपके ही प्राणोंको बचा सकेंगे; प्रभु यहोवा की यही वाणी हे।
15. यदि मैं किसी देश में दुष्ट जन्तु भेजूं जो उसको निर्जन करके उजाड़ कर डालें, और जन्तुओं के कारण कोई उस में होकर न जाएं,
16. तो चाहे उसे में वे तीन पुरुष हों, तौभी प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, न वे पुत्रोंको ओर न पुत्रियोंको बचा सकेंगे; वे ही अकेले बचेंगे; परन्तु देश उजाड़ हो जाएगा।
17. और यदि मैं उस देश पर तलवार खीचकर कहूं, हे तलवार उस देश में चल; और इस रीति मैं उस में से मनुष्य और पशु नाश करूं,
18. तब चाहे उस में वे तीन पुरुष भी हों, तौभी प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, न तो वे पुत्रोंको और न पुत्रियोंको बचा सकेंगे, वे ही अकेले बचेंगे।
19. यदि मैं उस देश में मरी फैलाऊं और उस पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर उसका लोहू ऐसा बहाऊं कि वहां के मनुष्य और पशु दोनोंनाश हों,
20. तो चाहे नूह, दानिय्थेल और अय्यूब भी उस में हों, तौभी, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, वे न पुत्रोंको और न पुत्रियोंको बचा सकेंगे, अपके धर्म के द्वारा वे केवल अपके ही प्राणोंको बचा सकेंगे।
21. क्योंकि प्रभु यहोवा योंकहता है, मैं यरूशलेम पर अपके चारोंदण्ड पहुंचाऊंगा, अर्यात् तलवार, अकाल, दुष्ट जन्तु और मरी, जिन से मनुष्य और पशु सब उस में से नाश हों।
22. तौभी उस में योड़े से पुत्र-पुत्रियां बचेंगी जो वहां से निकालकर तुम्हारे पास पहुंचाई जाएंगी, और तुम उनके चालचलन और कामोंको देखकर उस विपत्ति के विषय में जो मैं यरूशलेम पर डालूंगा, वरन जितनी विपत्ति मैं उस पर डालूंगा, उस सब के विषय में शान्ति पाओगे।
23. जब तुम उनका चालचलन और काम देखो, तब वे तुम्हारी शान्ति के कारण होंगे; और तुम जान लोगे कि मैं ने यरूशलेम में जो कुछ किया, वह बिना कारण नहीं किया, प्रभु यहोवा की यही वाणी हैं
Chapter 15
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सब वृझोंमें अंगूर की लता की क्या श्रेष्टता है? अंगूर की शाखा जो जंगल के पेड़ोंके बीच उत्पन्न होती है, उस में क्या गुण है?
3. क्या कोई वस्तु बनाने के लिथे उस में से लकड़ी ली जाती, वा कोई बर्तन टांगने के लिथे उस में से खूंटी बन सकती है?
4. वह तो ईन्धन बनाकर आग में फोंकी जाती है; उसके दोनोंसिक्के आग से जल जाते, और उसके बीख् का भाग भस्म हो जाता है, क्या वह किसी भी काम की है?
5. देख, जब वह बनी यी, तब भी वह किसी काम की न यी, फिर जब वह आग का ईन्धन होकर भस्म हो गई है, तब किस काम की हो सकती है?
6. सो प्रभु यहोवा योंकहता है, जैसे जंगल के पेड़ोंमें से मैं अंगूर की लता को आग का ईन्धन कर देता हूँ, वैसे ही मैं यरूशलेम के निवासिक्कों नाश कर दूंगा।
7. मैं उन से विरुद्ध हूंगा, और वे एक आग में से निकलकर फिर दूसरी आग का ईन्धन हो जाएंगे; और जब मैं उन से विमुख हूंगा, तब तुम लोग जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
8. और मैं उनका देश उजाड़ दूंगा, क्योंकि उन्होंने मुझ से विश्वासघात किया है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 16
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, यरूशलेम को उसके सब घृणित काम जता दे।
3. और उस से कह, हे यरूशलेम, प्रभु यहोवा तुझ से योंकहता है, तेरा जन्म और तेरी उत्पत्ति कनानियोंके देश से हुई; तेरा पिता तो एमोरी और तेरी माता हित्तिन यी।
4. और तेरा जन्म ऐसे हुआ कि जिस दिन तू जन्मी, उस दिन न तेरा नाल काटा गया, न तू शुद्ध होने के लिथे धोई गई, न तेरे कुछ लोन मला गया और न तू कुछ कपड़ोंमें लमेटी गई।
5. किसी की दयादृष्टि तुझ पर नहीं हुई कि इन कामोंमें से तेरे लिथे एक भी काम किया जाता; वरन अपके जन्म के दिन तू घृणित होने के कारण खुले मैदान में फेंक दी गई यी।
6. और जब मैं तेरे पास से होकर निकला, और तुझे लोहू में लोटते हुए देखा, तब मैं ने तुझ से कहा, हे नोहू में लोटती हुई जीवित रह; हां, तुझ ही से मैं ने कहा, हे लोहू मे लोटती हुई, जीवित रह।
7. फिर मैं ने तुझे खेत के बिरुले की नाई बढाया, और तू बढ़ते बढ़ते बड़ी हो गई और अति सुन्दर हो गई; तेरी छातियां सुडौल हुई, और तेरे बाल बढे; तौभी तू नंगी यी।
8. मैं ने फिर तेरे पास से होकर जाते हुए तुझे देखा, और अब तू पूरी स्त्री हो गई यी; सो मैं ने तुझे अपना वस्त्र ओढ़ाकर तेरा तन ढांप दिया; और सौगन्ध खाकर तुझ से पाचा बान्धी और तू मेरी हो गई, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
9. तब मैं ने तुझे जल से नहलाकर तुझ पर से लोहू धो दिया, और तेरी देह पर तेल मला।
10. फिर मैं ने तुझे बूटेदार वस्त्र और सूइसोंके चमड़े की जूतियां पहिनाई; और तेरी कमर में सूझ्म सन बान्धा, और तुझे रेशमी कपड़ा ओढ़ाया।
11. तब मैं ने तेरा श्र्ृंगार किया, और तेरे हाथें में चूडिय़ां और गले में तोड़ा पहिनाया।
12. फिर मैं ने तेरी नाक में नत्य और तेरे कानोंमें बालियां पहिनाई, और तेरे सिर पर शोभायमान मुकुट धरा।
13. तेरे आभूषण सोने चान्दी के और तेरे वस्त्र सूझ्म सन, रेशम और बूटेदार कमड़े के बने; फिर तेरा भोजन मैदा, मधु और तेल हुआ; और तू अत्यन्त सुन्दर, वरन रानी होने के योग्य हो गई।
14. और तेरी सुन्दरता की कीत्तिर् अन्यजातियोंमें फैल गई, क्योंकि उस प्रताप के कारण, जो मैं ने अपक्की ओर से तुझे दिया या, तू अत्यन्त सुन्दर यी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
15. परन्तु तू अपक्की सुन्दरता पर भरोसा करके अपक्की नामवरी के कारण व्यभिचार करने लगी, और सब यात्रियोंके संग बहुत कुकर्म किया, और जो कोई तुझे चाहता या तू उसी से मिलती यी।
16. तू ने अपके वस्त्र लेकर रंग बिरंग के ऊंचे स्यान बना लिए, और उन पर व्यभिचार किया, ऐसे कुकर्म किए जो न कभी हुए और न होंगे।
17. और तू ने अपके सुशोभित गहने लेकर जो मेरे दिए हुए सोने-चान्दी के थे, उन से पुरुषोंकी मूरतें बना ली, और उन से भी व्यभिचार करने लगी;
18. और अपके बूटेदार वस्त्र लेकर उनको पहिनाए, और मेरा तेल और मेरा धूप उनके साम्हने चढ़ाया।
19. और जो भोजन मैं ने तुझे दिया या, अर्यात् जो मैदा, तेल और मधु मैं तुझे खिलाता या, वह सब तु ने उनके साम्हने सुखदायक सुगत्ध करके रखा; प्रभु यहोवा की यही वाणी है कि योंही हुआ।
20. फिर तू ने अपके पुत्र-पुत्रियां लेकर जिन्हें तू ने मेरे लिथे जन्म दिया, उन मूरतोंको नैवेद्य करके चढ़ाई। क्या तेरा व्सभिचार ऐसी छोटी बात यीं;
21. कि तू ने मेरे लड़केबाले उन मूरतोंके आगे आग में चढ़ाकर घात किए हैं?
22. और तू ने अपके सब घृणित कामोंमें और व्यभिचार करते हुए, अपके बचपन के दिनोंकी कभी सुधि न ली, जब कि तू नंगी अपके लोहू में लोटनी यी।
23. और तेरी उस सारी बुराई के पीछे क्या हुआ?
24. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, हाथ, तुझ पर हाथ ! कि तू ने एक गुम्मट बनवा लिया, और हर एक चौक में एक ऊंचा स्यान बनवा लिया;
25. और एक एक सड़क के सिक्के पर भी तू ने अपना ऊंचा स्यान बनवाकर अपक्की सुन्दरता घृणित करा दी, और हर एक यात्री को कुकर्म के लिथे बुलाकर महाव्यभिचारिणी हो गई।
26. तू ने अपके पड़ोसी मिस्री लोगोंसे भी, जो मोटे-ताजे हैं, व्यभिचार किया और मुझे क्रोध दिलाने के लिथे अपना व्यभिचार चढ़ाती गई।
27. इस कारण मैं ने अपना हाथ तेरे विरुद्ध बढ़ाकर, तेरा प्रति दिन का खाना घटा दिया, और तेरी बैरिन पलिश्ती स्त्रियां जो तेरे महापाप की चाल से लजाती है, उनकी इच्छा पर मैं ने तुझे छोड़ दिया है।
28. फिर भी तेरी तृष्णा न बुफी, इसलिथे तू ने अश्शूरी लोगोंसे भी व्यभिचार किया; और उन से व्यभिचार करने पर भी तेरी तृष्णा न बुफी।
29. फिर तू लेन देन के देश में व्यभिचार करते करते कसदियोंके देश तक पहुंची, और वहां भी तेरी तृष्णा न बुफी।
30. प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि तेरा ह्रृदय कैसा चंचल है कि तू थे सब काम करती है, जो निर्लज्ज वेश्या ही के काम हैं?
31. तू ने हर एक सड़क के सिक्के पर जो अपना गुम्मट, और हर चौक में अपना ऊंचा स्यान बनवाया है, क्या इसी में तू वेश्या के समान नहीं ठहरी? क्योंकि तू ऐसी कमाई पर हंसती है।
32. तू व्यभिचारिणी पत्नी है। तू पराथे पुरुषोंको अपके पति की सन्ती ग्रहण करती है।
33. सब वेश्याओं को तो रुपया मिलता है, परन्तु तू ने अपके सब मित्रोंको स्वयं रुपए देकर, और उनको लालच दिखाकर बुलाया है कि वे चारोंओर से आकर तुझ से व्यभिचार करें।
34. इस प्रकार तेरा व्यभिचार और व्यभिचारियोंसे उलटा है। तेरे पीछे कोई व्यभिचारी नहीं चलता, और तू किसी से दाम लेती नहीं, वरन तू ही देती है; इसी कारण तू उलटी ठहरी।
35. इस कारण, हे वेश्या, यहोवा का वचन सुन,
36. प्रभु यहोवा योंकहता है, कि तू ने जो व्यभिचार में अति निर्लज्ज होकर, अपक्की देह अपके मित्रोंको दिखाई, और अपक्की मूरतोंसे घृणित काम किए, और अपके लड़केबालोंका लोहू बहाकर उन्हें बलि चढ़ाया है,
37. इस कारण देख, मैं तेरे सब मित्रोंको जो तेरे प्रेमी हैं और जितनोंसे तू ने प्रीति लगाई, और जितनोंसे तू ने वैर रखा, उन सभोंको चारोंओर से तेरे विरुद्ध इकट्ठा करके उनको तेरी देह नंगी करके दिखाऊंगा, और वे तेरा तन देखेंगे।
38. तब मैं तुझ को ऐसा दण्ड दूंगा, जैसा व्यभिचारिणियोंऔर लोहू बहानेवाली स्त्रियोंको दिया जाता है; और क्रोध और जलन के साय तेरा लोहू बहाऊंगा।
39. इस रीति मैं तुझे उनके वश में कर दूंगा, और वे तेरे गुम्मटोंको ढा देंगे, और तेरे ऊंचे स्यानोंको तोड़देंगे; वे तेरे वस्त्र बरबस उतारेंगे, और तेरे सुन्दर गहने छीन लेंगे, और तुझे नंगा करके छोड़ देंगे।
40. तब तेरे विरुद्ध एक सभा इकट्ठी करके वे तुझ को पत्यरवाह करेंगे, और अपक्की कटारोंसे वारपार छेदेंगे।
41. तब वे आग लगाकर तेरे घरोंको जला देंगे, और तूफे बहुत सी स्त्रियोंके देखते दण्ड देंगे; और मैं तेरा व्यभिचार बन्द करूंगा, और तू फिर छिनाले के लिथे दाम न देगी।
42. और जब मैं तुझ पर पूरी जलजलाहट प्रगट कर चुकूंगा, तब तुझ पर और न जलूंगा वरन शान्त हो जाऊंगा: और फिर न रिसियाऊंगा।
43. तू ने जो अपके बचपन के दिन स्मरण नही रखे, वरन इन सब बातोंके द्वारा मुझे चिढाया; इस कारण मैं तेरा चालचलन तेरे सिर पर डालूंगा और तू अपके सब पिछले घृणित कामोंसे और अधिक महापाप न करेगी, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
44. देख, सब कहावत कहनेवाले तेरे विषय यह कहावत कहेंगे, कि जैसी मां वैसी पुत्री।
45. तेरी मां जो अपके पति और लड़केबालोंसे घृणा करती यी, तू भी ठीक उसकी पुत्री ठहरी; और तेरी बहिनें जो अपके अपके पति और लड़केबालोंसे घृृणा करती यीं, तू भी ठीक उनकी बहिन निकली। तेरी माता हित्तिन और पिता एमोरी या।
46. तेरी बड़ी बहिन हाोमरोन है, जो अपक्की पुत्रियोंसमेत तेरी बाई ओर रहती है, और तेरी छोटी बहिन, जो तेरी दहिनी ओर रहती है वह पुत्रियोंसमेत सदोम है।
47. तू उनकी सी चाल नहीं चक्की, और न उनके से घृणित कामोंही से सन्तुष्ट हुई; यह तो बहुत छोटी बात ठहरती, परन्तु तेरा सारा चालचलन उन से भी अधिक बिगड़ गया।
48. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, तेरी बहिन सदोम ने अपक्की पुत्रियोंसमेत तेरे ओर तेरी पुत्रियोंके समान काम नहीं किए।
49. देख, तेरी बहिन सदोम का अधर्म यह या, कि वह अपक्की पुत्रियोंसहित घमण्ड करती, पेट भर भरके खाती, और सुख चैन से रहती यी: और दीन दरिद्र को न संभालती यी।
50. सो वह गर्व करके मेरे साम्हने घृणित काम करने लगी, और यह देखकर मैं ने उन्हें दूर कर दिया।
51. फिर शोमरोन ने तेरे पापोंके आधे भी पाप नहीं किए: तू ने तो उस से बढ़कर घृणित काम किए ओर अपके घोर घृणित कामोंके द्वारा अपक्की बहिनोंको जीत लिया।
52. सो तू ने जो अपक्की बहिनोंका न्याय किया, इस कारण लज्जित हो, क्योंकि तू ने उन से बढ़कर घृणित पाप किए हैं; इस कारण वे तुझ से कम दोषी ठहरी हैं। सो तू इस बात से लज्जा कर और लजाती रह, क्योंकि तू ने अपक्की बहिनोंको कम दोषी ठहराया है।
53. जब मैं उनको अर्यात् पुत्रियोंसहित सदोम और शोमरोन को बंधुआई से फेर लाऊंगा, तब उनके बीच ही तेरे बंधुओं को भी फेर लाऊंगा,
54. जिस से तू लजाती रहे, और अपके सब कामोंको देखकर लजाए, क्योंकि तू उनकी शान्ति ही का कारण हुई है।
55. और तेरी बहिनें सदोम और शोमरोन अपक्की अपक्की पुत्रियोंसमेत अपक्की पहिली दशा को फिर पहुंचेंगी, और तू भी अपक्की पुत्रियोंसहित अपक्की पहिली दशा को फिर पहंचेगी।
56. जब तक तेरी बुराई प्रगट न हुई यी, अर्यात् जिस समय तक तू आस पास के लोगोंसमेत अरामी और पलिश्ती स्त्रियोंकी जो अब चारोंओर से तुझे तुच्छ जानती हैं, नामधराई करती यी,
57. उन अपके घ्मण्ड के दिनोंमें तो तू अपक्की बहिन सदोम का नाम भी न लेती यी।
58. परन्तु अब तुझ को अपके महापाप और घृणित कामोंका भार आप ही उठाना पड़ा है, यहोवा की यही वाणी है।
59. प्रभु यहोवा यह कहता है, मैं तेरे साय ऐसा ही बर्ताव करूंगा, जैसा तू ने किया है, क्योंकि तू ने तो वाचा तोड़कर शपय तुच्छ जानी है,
60. तौभी मैं तेरे बचपन के दिनोंकी अपक्की वाचा स्मरण करूंगा, और तेरे साय सदा की वाचा बान्धूंगा।
61. और जब तू अपक्की बहिनोंको अर्यात् अपक्की बड़ी और छोटी बहिनोंको ग्रहण करे, तब तू अपना चालचलन स्मरण करके लज्जित होगी; और मैं उन्हें तेरी पुत्रियां ठहरा दूंगा; परन्तु यह तेरी वाचा के अनुसार न करूंगा।
62. मैं तेरे साय अपक्की वाचा स्यिर करूंगा, और तब तू जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ,
63. जिस से तू स्मरण करके लज्जित हो, और लज्जा के मारे फिर कभी मुंह न खोले। यह उस समय होगा, जब मैं तेरे सब कामोंको ढांपूंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 17
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह पकेली और दृष्टान्त कह; प्रभू यहोवा योंकहता हे,
3. एक लम्बे पंखवाले, परोंसे भरे और रडंगे बिरडंगे बडे उकाब पक्की ने लबानोन जाकर एक देवदार की फुनगी नोच ली।
4. तब उस ने उस फुनगी की सब से ऊपर की पतली टहनी को तोड़ लिया, और उसे लेन देन करनेवालोंके देश में ले जाकर व्योपारियोंके एक नगर में लगाया।
5. तब उस ने देश का कुछ बीज लेकर एक उपजाऊ खेत में बोया, और उसे बहुत जल भरे स्यान में मजनू की नाई लगाया।
6. और वह उगकर छोटी फैलनेवाली अंगूर की लता हो गई जिसकी डालियां उसकी ओर फुकीं, और उसकी सोर उसके नीचे फैलीं; इस प्रकार से वह अंगूर की लता होकर कनखा फोड़ने और पत्तोंसे भरने लगी।
7. फिर और एक लम्बे पंखवाला और परोंसे भरा हुआ बड़ा उकाब पक्की या; और वह अंगूर की लता उस स्यान से जहां वह लगाई गई यी, उस दूसरे उकाब की ओर अपक्की सोर फैलाने और अपक्की डालियां फुकाने लगी कि वह उसे ख्ींचा करे।
8. परन्तु वह तो इसलिथे अच्छी भूमि में बहुत जल के पास लगाई गई यी, कि कनखएं फोड़े, और फले, और उत्तम अंगूर की लता बने।
9. सो तू यह कह, कि प्रभु यहोवा योंपूछता है, क्या वह फूले फलेगी? क्या वह उसको जड़ से न उखाड़ेगा, और उसके फलोंको न फाड़ डालेगा कि वह अपक्की सब हरी नई पत्तियोंसमेत सूख जाए? इसे जड़ से उखाड़ने के लिथे अधिक बल और बहुत से मनुष्योंकी आवश्यकता न होगी।
10. चाहे, वह लगी भी रहे, तौभी क्या वह फूले फलेगी? जब पुरवाई उसे लगे, तब क्या वह बिलकुल सूख न जाएगी? वह तो जहां उगी है उसी क्यारी में सूख जाएगी।
11. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, उस बलवा करनेवाले घराने से कह,
12. क्या तुम इन बातोंका अर्य नहीं समझते? फिर उन से कह, बाबुल के राजा ने यरूशलेम को जाकर उसके राजा और और प्रधानोंको लेकर अपके यहां बाबुल में पहुंचाया।
13. तब राजवंश में से एक पुरुष को लेकर उस से वाचा बान्धी, और उसको वश में रहने की शपय खिलाई, और देश के सामयीं पुरुषोंको ले गया
14. कि वह राज्य निर्बल रहे और सिर न उठा सके, वरन वाचा पालने से स्यिर रहे।
15. तौभी इस ने घोड़े और बड़ी सेना मांगने को अपके दूत मिस्र में भेजकर उस से बलवा किया। क्या वह फूले फलेगा? क्या ऐसे कामोंका करनेवाला बचेगा? क्या वह अपक्की वाचा तोड़ने पर भी बच जाएगा?
16. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध, जिस राजा की खिलाई हुई शपय उस ने तुच्छ जानी, और जिसकी वाचा उस ने तोड़ी, उसके यहां जिस ने उसे राजा बनाया या, अर्यात् बाबुल में ही वह उसके पास ही मर जाएगा।
17. और जब वे बहुत से प्राणियोंको नाश करने के लिथे दमदमा बान्धे, और गढ़ बनाएं, तब फिरौन अपक्की बड़ी सेना और बहुतोंकी मण्डली रहते भी युद्ध में उसकी सहाथता न करेगा।
18. क्योंकि उस न शपय को तुच्छ जाना, और वाचा को तोड़ा; देखो, उस ने वचन देने पर भी ऐसे ऐसे काम किए हैं, सो वह बचने न पाएगा।
19. प्रभु यहोवा योंकहता है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, उस ने मेरी शपय तुच्छ जानी, और मेरी वाचा तोड़ी है; यह पाप मैं उसी के सिर पर डालूंगा।
20. और मैं अपना जाल उस पर फैलाऊंगा और वह मेरे फन्दे में फंसेगा; और मैं उसको बाबुल में पहुंचाकर उस विश्वासघात का मुक़द्दमा उस से लड़ूंगा, जो उस ने मुझ से किया है।
21. और उसके सब दलोंमें से जितने भागें वे सब तलवार से मारे जाएंगे, और जो रह जाएं सो चारोंदिशाओं में तितर-बितर हो जाएंगे। तब तुम लोग जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने ऐसा कहा है।
22. फिर प्रभु यहोवा योंकहता है, मैं भी देवदार की ऊंची फुनगी में से कुछ लेकर लगाऊंगा, और उसकी सब से ऊपरवाली कनखाओं में से एक कोमल कनखा तोड़कर एक अति ऊंचे पर्वत पर लगाऊंगा।
23. अर्यात् इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर लगाऊंगा; सो वह डालियां फोड़कर बलवन्त और उत्तम देवदार बन जाएगा, और उसके नीचे अर्यात् उसकी डालियोंकी छाया में भांति भांति के सब पक्की बसेरा करेंगे।
24. तब मैदान के सब वृझ जान लेंगे कि मुझ यहोवा ही ने ऊंचे वृझ को नीचा और नीचे पृझ को ऊंचा किया, हरे वृझ को सुखा दिया, और सूखे वृझ को फुलाया फलाया है। मुझ यहोवा ही ने यह कहा और वैसा ही कर भी दिया है।
Chapter 18
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. तुम लोग जो इस्राएल के देश के विषय में यह कहावत कहते हो, कि जंगली अंगूर तो पुरखा लोग खाते, परन्तु दांत खट्टे होते हैं लड़केबालोंके। इसका क्या अर्य है?
3. प्रभु यहोवा योंकहता है कि मेरे जीवन की शपय, तुम को इस्राएल में फिर यह कहावत कहने का अवसर न मिलेगा।
4. देखो, सभोंके प्राण तो मेरे हैं; जैसा पिता का प्राण, वैसा ही पुत्र का भी प्राण है; दोनोंमेरे ही हैं। इसलिथे जो प्राणी पाप करे वही मर जाएगा।
5. जो कोई धमीं हो, और न्याय और धर्म के काम करे,
6. और न तो पहाड़ोंपर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतोंकी ओर आंखें उठाई हों; न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो, और न ऋतुमती के पास गया हो,
7. और न किसी पर अन्धेर किया हो वरन ऋणी को उसकी बन्धक फेर दी हो, न किसी को लूटा हो, वरन भूखे को अपक्की रोटी दी हो और नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
8. न ब्याज पर रुपया दिया हो, न रुपए की बढ़ती ली हो, और अपना हाथ कुटिल काम से रोका हो, मनुष्य के बीच सच्चाई से न्याय किया हो,
9. और मेरी विधियोंपर चलता और मेरे नियमोंको मानता हुआ सच्चाई से काम किया हो, ऐसा मनुष्य धमीं है, वह निश्चय जीवित रहेगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
10. परन्तु यदि उसका पुत्र डाकू, हत्यारा, वा ऊपर कहे हुए पापोंमें से किसी का करनेवाला हो,
11. और ऊपर कहे हुए उचित कामोंका करनेवाला न हो, और पहाड़ोंपर भोजन किया हो, पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
12. दीन दरिद्र पर अन्धेर किया हो, औरोंको लूटा हो, बन्धक न फेर दी हो, मूरतोंकी ओर आंख उठाई हो, घृणित काम किया हो,
13. ब्याज पर रुपया दिया हो, और बढ़ती ली हो, तो क्या वह जीवित रहेगा? वह जीवित न रहेगा; इसलिथे कि उस ने थे सब घिनौने काम किए हैं वह निश्चय मरेगा और उसका खून उसी के सिर पकेगा।
14. फिर यदि ऐसे मनुष्य के पुत्र होंऔर वह अपके पिता के थे सब पाप देखकर भय के मारे उनके समान न करता हो।
15. अर्यात् न तो पहाड़ोंपर भोजन किया हो, न इस्राएल के घराने की मूरतोंकी ओर आंख उठाई हो, न पराई स्त्री को बिगाड़ा हो,
16. न किसी पर अन्धेर किया हो, न कुछ बन्धक लिया हो, न किसी को लूटा हो, वरन अपक्की रोटी भूखे को दी हो, नंगे को कपड़ा ओढ़ाया हो,
17. दीन जन की हानि करने से हाथ रोका हो, ब्याज और बढ़ी न ली हो, मेरे नियमोंको माना हो, और मेरी विधियोंपर चला हो, तो वह अपके पिता के अधर्म के कारण न मरेगा, वरन जीवित ही रहेगा।
18. उसका पिता, जिस ने अन्धेर किया और लूटा, और अपके भाइयोंके बीच अनुचित काम किया है, वही अपके अधर्म के कारण मर जाएगा।
19. तौभी तुम लोग कहते हो, क्यों? क्या पुत्र पिता के अधर्म का भार नहीं उठाता? जब पुत्र ने न्याय और धर्म के काम किए हों, और मेरी सब विधियोंका पालनकर उन पर चला हो, तो वह जीवित ही रहेगा।
20. जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का; धमीं को अपके ही धर्म का फल, और दुष्ट को अपक्की ही दुष्टता का फल मिलेगा।
21. परन्तु यदि दुष्ट जन अपके सब पापोंसे फिरकर, मेरी सब विधियोंका पालन करे और न्याय और धर्म के काम करे, तो वह न मरेगा; वरन जीवित ही रहेगा।
22. उस ने जितने अपराध किए हों, उन में से किसी का स्मरण उसके विरुद्ध न किया जाएगा; जो धर्म का काम उस ने किया हो, उसके कारण वह जीवित रहेगा।
23. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, क्या मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न होता हूँ? क्या मैं इस से प्रसन्न नहीं होता कि वह अपके मार्ग से फिरकर जीवित रहे?
24. परन्तु जब धमीं अपके धर्म से फिरकर टेढ़े काम, वरन दुष्ट के सब घृणित कामोंके अनुसार करने लगे, तो क्या वह जीवित रहेगा? जितने धर्म के काम उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा। जो विश्वासघात और पाप उस ने किया हो, उसके कारण वह मर जाएगा।
25. तौभी तुम लोग कहते हो, कि प्रभु की गति एकसी नहीं। हे इस्राएल के घराने, देख, क्या मेरी गति एकसी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं है?
26. जब धमीं अपके धर्म से फिरकर, टेढ़े काम करने लगे, तो वह उनके कारण मरेगा, अर्यात् वह अपके टेढ़े काम ही के कारण मर जाएगा।
27. फिर जब दुष्ट अपके दुष्ट कामोंसे फिरकर, न्याय और धर्म के काम करने लगे, तो वह अपना प्राण बचाएगा।
28. वह जो सोच विचार कर अपके सब अपराधोंसे फिरा, इस कारण न मरेगा, जीवित ही रहेगा।
29. तौभी इस्राएल का घराना कहता है कि प्रभु की गति एकसी नहीं। हे इस्राएल के घराने, क्या मेरी गति एकसी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं?
30. प्रभु यहोवा की यह वाणी है, हे इस्राएल के घराने, मैं तुम में से हर एक मनुष्य का न्याय उसकी चालचलन के अनुसार ही करूंगा। पश्चात्ताप करो और अपके सब अपराधोंको छोड़ो, तभी तुम्हारा अधर्म तुम्हारे ठोकर खाने का कारण न होगा।
31. अपके सब अपराधोंको जो तुम ने किए हैं, दूर करो; अपना मन और अपक्की आत्मा बदल डालो ! हे इस्राएल के घराने, तुम क्योंमरो?
32. क्योंकि, प्रभु यहोवा की यह वाणी है, जो मरे, उसके मरने से मैं प्रसन्न नहीं होता, इसलिथे पश्चात्ताप करो, तभी तुम जीवित रहोगे।
Chapter 19
1. और इस्राएल के प्रधानोंके विषय तू यह विलापक्कीत सुना,
2. तेरी माता एक कैसी सिंहनी यी ! वह सिंहोंके बीच बैठा करती और अपके बच्चोंको जवान सिंहोंके बीच पालती पोसती यी।
3. अपके बच्चोंमें से उस ने एक को पाला और वह जवान सिंह हो गया, और अहेर पकडना सीख गया; उस ने मनुष्योंको भी फाड़ खाया।
4. और जाति जाति के लोगोंने उसकी चर्चा सुनी, और उसे अपके खोदे हुए गड़हे में फंसाया; और उसके नकेल डालकर उसे मिस्र देश में ले गए।
5. जब उसकी मां ने देखा कि वह धीरज धरे रही तौभी उसकी आशा टूट गई, तब अपके एक और बच्चे को लेकर उसे जवान सिंह कर दिया।
6. तब वह जवान सिंह होकर सिंहोंके बीच चलने फिरने लगा, और वह भी अहेर पकड़ना सीख गया; और मनुष्योंको भी फाड़ खाया।
7. और उस ने उनके भवनोंको बिगाड़ा, और उनके नगरोंको उजाड़ा वरन उसके गरजने के डर के मारे देश और जो कुछ उस में या सब उजड़ गया।
8. तब चारोंओर के जाति जाति के लोग अपके अपके प्रान्त से उसके विरुद्ध निकल आए, और उसके लिथे जाल लगाया; और वह उनके खोदे हुए गड़हे में फंस गया।
9. तब वे उसके नकेल डालकर और कठघरे में बन्द करके बाबुल के राजा के पास ले गए, और गढ़ में बन्द किया, कि उसका बोल इस्राएल के पहाड़ी देश में फिर सुनाई न दे।
10. तेरी माता जिस से तू अत्पन्न हुआ, वह तीर पर लगी हुई दाखलता के समान यी, और गहिरे जल के कारण फलोंऔर शाखाओं से भरी हुई यी।
11. और प्रभुता करनेवालोंके राजदणडोंके लिथे उस में मोटी मोटी टहनियां यीं; और उसकी ऊंचाई्र इतनी इुई कि वह बादलोंके बीच तक पहुंची; और अपक्की बहुत सी डालियोंसमेत बहुत ही लम्बी दिखाई पक्की।
12. तौभी वह जलजलाहट के साय उखाड़कर भूमि पर गिराई गई, और उसके फल पुरवाई हवा के लगने से सूख गए; और उसकी मोटी टहनियां टूटकर सूख गई; और वे आग से भस्म हो गई।
13. अब वह जंगल में, वरन निर्जल देश में लगाई गई है।
14. और उसकी शाखाओं की टहनियोंमें से आग निकली, जिस से उसके फल भस्म हो गए, और प्रभुता करने के योग्य राजदण्ड के लिथे उस में अब कोई मोटी टहनी न रही। यही विलापक्कीत है, और यह विलापक्कीत बना रहेगा।
Chapter 20
1. सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन को इस्राएल के कितने पुरनिथे यहोवा से प्रश्न करने को आए, और मेरे साम्हने बैठ गए।
2. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
3. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएली पुरनियोंसे यह कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, क्या तुम मुझ से प्रश्न करने को आए हो? प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की सौगन्ध, तुम मुझ से प्रश्न करने न पाओगे।
4. हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उनका न्याय न करेगा? क्या तू उनका न्याय न करेगा? उनके पुरखाओं के घिनौने काम उन्हें जता दे,
5. और उन से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, जिस दिन मैं ने इस्राएल को चुन लिया, और याकूब के घराने के वंश से शपय खाई, और मिस्र देख में अपके को उन पर प्रगट किया, और उन से शपय खाकर कहा, मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ,
6. उसी दिन मैं ने उन से यह भी शपय खाई, कि मैं तुम को मिस्र देश से निकालकर एक देश में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने तुम्हारे लिथे चुन लिया है; वह सब देशोंका शिरोमणि है, और उस में दूध और मधु की धराएं बहती हैं।
7. फिर मैं ने उन से कहा, जिन घिनौनी वस्तुओं पर तुम में से हर एक की आंखें लगी हैं, उन्हें फेंक दो; और मिस्र की मूरतोंसे अपके को अशुद्ध न करो; मैं ही तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
8. परन्तु वे मुझ से बिगड़ गए और मेरी सुननी न चाही; जिन घिनौनी वस्तुओं पर उनकी आंखें लगी यीं, उनकी किसी ने फेंका नहीं, और न मिस्र की मूरतोंको छोड़ा। तब मैं ने कहा, मैं यहीं, मिस्र देश के बीच मुम पर अपक्की जलजलाहट भड़काऊंगा। और पूरा कोप दिखाऊंगा।
9. तौभी मैं ने अपके नाम के निमित्त ऐसा किया कि जिनके बीच वे थे, और जिनके देखते हुए मैं ने उनको मिस्र देश से निकलने के लिथे अपके को उन पर प्रगट किया या उन जातियोंके साम्हने वे अपवित्र न ठहरे।
10. मैं उनको मिस्र देश से निकालकर जंगल में ले आया।
11. वहां उनको मैं ने अपक्की विधियां बताई और अपके नियम भी बताए कि जो मतुष्य उनको माने, वह उनके कारण जीवित रहेगा।
12. फिर मैं ने उनके लिथे अपके विश्रमदिन ठहराए जो मेरे और उनके बीच चिन्ह ठहरें; कि वे जानें कि मैं यहोवा उनका पवित्र करनेवाला हूँ।
13. तौभी इस्राएल के घराने ने जंगल में मुझ से बलवा किया; वे मेरी विधियोंपर न चले, और मेरे नियमोंको तुच्छ जाना, जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; और उन्होंने मेरे विश्रमदिनोंको अति अपवित्र किया। तब मैं ने कहा, मैं जंगल में इन पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर इनका अन्त कर डालूंगा।
14. परन्तु मैं ने अपके नाम के निमित्त ऐसा किया कि वे उन जातियोंके साम्हने, जिनके देखते मैं उनको निकाल लाया या, अपवित्र न ठहरे।
15. फिर मैं ने जंगल में उन से शपय खाई कि जो देश मैं ने उनको दे दिया, और जो सब देशोंका शिरोमणि है, जिस में दूध और मधु की धराएं बहती हैं, उस में उन्हें न पहुंचाऊंगा,
16. क्योंकि उन्होंने मेरे नियम तुच्छ जाने और मेरी विधियोंपर न चले, और मेरे विश्रमदिन अपवित्र किए थे; इसलिथे कि उनका मन उनकी मूरतोंकी ओर लगा रहा।
17. लौभी मैं ने उन पर कृपा की दृष्टि की, और उन्हें नाश न किया, और न जंगल में पूरी रीति से उनका अन्त कर डाला।
18. फिर मैं ने जंगल में उनकी सन्तान से कहा, अपके पुरखाओं की विधियोंपर न चलो, न उनकी ीिति योंको मानो और न उनकी मूरतें पूजकर अपके को अशुुद्ध करो।
19. मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, मेरी विधियोंपर चलो, ओर मेरे नियमोंके मानने में चौकसी करो,
20. और मेरे विश्रमदिनोंको पवित्र मानो कि वे मेरे और तुम्हारे बीच चिन्ह ठहरें, और जिस से तुम जानो कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।
21. परन्तु उनकी सन्तान ने भी मुझ से बलवा किया; वे मेरी विधियोंपर न चले, न मेरे नियमोंके मानने में चौकसी की; जिन्हें यदि मनुष्य माने तो वह उनके कारण जीवित रहेगा; मेरे विश्रमदिनोंको उन्होंने अपवित्र किया। तब मैं ने कहा, मैं जंगल में उन पर अपक्की जलजलाहट भड़काकर अपना कोप दिखलाऊंगा।
22. तौभी मैं ने हाथ खींच लिया, और अपके नाम के निमित्त ऐसा किया, कि उन जातियोंके साम्हने जिनके देखते हुए मैं उन्हें निकाल लाया या, वे अपवित्र न ठहरे।
23. फिर मैं ने जंगल में उन से शपय खाई, कि मैं तुम्हें जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितरा दूंगा,
24. क्योंकि उन्होंने मेरे नियम न माने, मेरी विधियोंको तुच्छ जाना, मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया, और अपके पुरखाओं की मूरतोंकी ओर उनकी आंखें लगी रहीं।
25. फिर मैं ने उनके लिथे ऐसी ऐसी विधियां ठहराई जो अच्छी न यी और ऐसी ऐसी रीतियां जिनके कारण वे जीवित न रह सकें;
26. अर्यात् वे अपके सब पहिलौठोंको आग में होम करने लगे; इस रीति मैं ने उन्हें उनहीं की भेंटोंके द्वारा अशुद्ध किया जिस से उन्हें निर्वश कर डालूं; और तब वे जान लें कि मैं यहोवा हूँ।
27. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, तुम्हारे पुरखाओं ने इस में भी मेरी निन्दा की कि उन्होंने मेरा विश्वासघात किया।
28. क्योंकि जब मैं ने उनको उस देश में पहुंचाया, जिसके उन्हें देने की शपय मैं ने उन से खाई यी, तब वे हर एक ऊंचे टीले और हर एक घने वृझ पर दृष्टि करके वहीं अपके मेलबलि करने लगे; और वहीं रिस दिलानेवाली अपक्की भेंटें चढ़ाने लगे और वहीं अपना सुखदायक सुगन्धद्रव्य जलाने लगे, और वहीं अपके तपावन देने लगे।
29. तब मैं ने उन से पूछा, जिस ऊंचे स्यान को तुम लोग जाते हो, उस से क्या प्रयोजन है? इसी से उसका नाम आज तक बामा कहलाता है।
30. इसलिथे इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा तुम से यह पूछता है, क्या तुम भी अपके पुरखाओं की रीति पर चलकर अशुद्ध होकर, और उनके घिनौने कामोंके अनुसार व्यभिचारिणी की नाई काम करते हो?
31. आज तक जब जब तुम अपक्की भेंटें चढ़ाते और अपके लड़केबालोंको होम करके आग में चढ़ाते हो, तब तब तुम अपक्की मूरतोंके निमित्त अशुद्ध ठहरते हो। हे इस्राएल के घराने, क्या तुम मुझ से पूघने पाओगे? प्रभु यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की शपय तुम मुझ से पूछने न पाओगे।
32. जो बात तुम्हारे मन में आती है कि हम काठ और पत्यर के उपासक होकर अन्यजातियोंऔर देश देश के कुलोंके समान हो जाएंगे, वह किसी भांति पूरी नहीं होने की।
33. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की शपय मैं निश्चय बली हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई इुई जलजलाहट के साय तुम्हारे ऊपर राज्य करूंगा।
34. मैं बली हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से, और भड़काई हुई जलजलाहट के साय तुम्हें देश देश के लोगोंमें से अलग करूंगा, और उन देशें से जिन में तुम तितर-बितर हो गए थे, इकट्ठा करूंगा;
35. और मैं तुम्हें देश देश के लोगोंके जंगल में ले जाकर, वहां आम्हने-साम्हने तुम से मुक़द्दमा लड़ूंगा।
36. जिस प्रकार मैं तुम्हारे पूर्वजोंसे मिस्र देशरूपी जंगल में मुक़द्दमा लड़ता या, उसी प्रकार तुम से मुक़द्दमा लड़ूंगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
37. मैं तुम्हें लाठी के तले चलाऊंगा। और तुम्हें वाचा के बन्धन में डालूंगा।
38. मैं तुम में से सब बलवाइयोंको निकालकर जो मेरा अपराध करते है; तुम्हें शुद्ध करूंगा; और जिस देश में वे टिकते हैं उस में से मैं उन्हें निकाल दूंगा; परन्तु इस्राएल के देश में घुसने न दूंगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
39. और हे इस्राएल के घराने तुम से तो प्रभु यहोवा योंकहता है कि जाकर अपक्की अपक्की मूरतोंकी उपासना करो; और यदि तुम मेरी न सुनोगे, तो आगे को भी यही किया करो; परन्तु मेरे पवित्र नाम को अपक्की भेंटोंओर मूरतोंके द्वारा फिर अपवित्र न करना।
40. क्योंकि प्रभु यहोवा की यह वाणी है कि इस्राएल का सारा घरानाा अपके देश में मेरे पवित्र पर्वत पर, इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर, सब का सब मेरी उपासना करेगा; वही मैं उन से प्रसन्न हूंगा, और वहीं मैं तुम्हारी उठाई हुई भेंटें और चढ़ाई हुई उत्तम उत्तम वस्तुएं, और तुमहारी सब पवित्र की हुई वस्तुएं तुम से लिया करूंगा।
41. जब मैं तुम्हें देश देश के लोगोंमें से अलग करूं और उन देशोंसे जिन में तुम तितर-बितर हुए हो, इकट्ठा करूं, तब तुम को सुखदायक सुगन्ध जानकर ग्रहण करूंगा, और अन्य जातियोंके साम्हने तुम्हारे द्वारा पवित्र ठहराया जाऊंगा।
42. और जब मैं तुम्हें इस्राएल के देश में पहुंचाऊं, जिसके देने की शपय मैं ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाई यी, तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
43. और वहां तुम अपक्की चाल चलन और अपके सब कामोंको जिनके करने से तुम अशुद्ध हुए हो स्मरण करोगे, और अपके सब बुरे कामोंके कारण अपक्की दृष्टि में घिनौने ठहरोगे।
44. और हे इस्राएल के घराने, जब मैं तुम्हारे साय तुत्हारे बुरे चालचलन और बिगड़े हुए कामोंके अनुसार नहीं, परन्तु अपके ही नाम के निमित्त बर्ताव करूं, तब तुम जान लोगे कि मेैं यहोवा हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
45. और यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
46. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख दक्खिन की ओर कर, दक्खिन की ओर वचन सुना, और दक्खिन देश के वन के विषय में भविष्यद्वाणी कर;
47. और दक्खिन देश के वन से कह, यहोवा का यह वचन सुन, प्रभु यहोवा योंकहता हेै, मैं तुझ में आग लगाऊंगा, और तुझ में क्या हरे, क्या सूखे, जितने पेड़ हैं, सब को वह भस्म करेगी; असकी धधकती ज्वाला न बुफेगी, और उसके कारण दक्खिन से उत्तर तक सब के मुख फुलस जाएंगे।
48. तब सब प्राणियोंको सूफ पकेगा कि वह आग यहोवा की लगाई हुई है; और वह कभी न बुफेगी।
49. तब मैं ने कहा, हाथ परमेश्वर यहोवा ! लोग तो मेरे विषय में कहा करते हैं कि क्या वह दृष्टान्त ही का कहनेवाला नहीं है?
Chapter 21
1. यहोवा का सह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख यरूशलेम की ओर कर और पवित्रस्यानोंकी ओर वचन सुना; इस्राएल देश के विषय में भविष्यद्वाणी कर और उस से कह,
3. प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं तेरे विरुद्ध हूँ, ओर अपक्की तलवार मियान में से खींचकर तुझ में से धमीं और अधमीं दोनोंको नाश करूंगा।
4. इसलिथे कि मैं तुझ में से धमीं और अधमीं सब को नाश करनेवाला हूँ, इस कारण, मेरी तलवार मियान से निकलकर दक्खिन से उत्तर तक सब प्राणियोंके विरुद्ध चलेगी;
5. तब सब प्राणी जान लेंगे कि यहोवा ने मियान में से अपक्की तलवार खींची है; ओर वह उस में फिर रखी न जाएगी।
6. सो हे मनुष्य के सन्तान, तू आह मार, भारी खेद कर, और टूटी कमर लेकर लोगोंके साम्हने आह मार।
7. और जब वे तुझ से पूछें कि तू कयोंआह मारता है, तब कहना, समाचार के कारण। क्योंकि ऐसी बात आनेवाली है कि सब के मन टूट जाएंगे और सब के हाथ ढीले पकेंगे, सब की आत्मा बेबस और सब के घूटने निर्बल हो जाएंगे। देखो, ऐसी ही बात आनेवाली है, और वह अवश्य पूरी होगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
8. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह,
9. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, सात चढ़ाई हुई तलवार, और फलकाई हुई तलवार !
10. वह इसलिथे सान चढ़ाई गई कि उस से घात किया जाए, और इसलिथे फलकाई गई कि बिजली की नाई चमके ! तो क्या हम हषिर्त हो? वह तो यहोवा के पुत्र का राजदण्ड है और सब पेड़ोंको तुच्छ जाननेवाला है।
11. और वह फलकाने को इसलिथे दी गई कि हाथ में ली जाए; वह इसलिथे सान चढ़ाई और फलकाई गई कि घात करनेवालोंके हाथ में दी जाए।
12. हे मनुष्य के सन्तान चिल्ला, और हाथ, हाथ, कर ! क्योंकि वह मेरी प्रजा पर चला चाहती है, वह इस्राएल के सारे प्रधानोंपर चला चाहती है; मेरी प्रजा के संग वे भी तलवार के वश में आ गए। इस कारण तू अपक्की छाती पीट।
13. क्योंकि सचमुच उसकी जांच हुई है, और यदि उसे तुच्छ जाननेवाला राजदण्ड भी न रहे, तो क्या? परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
14. सो हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी कर, और हाथ पर हाथ दे मार, और तीन बार तलवार का बल दुगुना किया जाए; वह तो घात करने की तलवार वरन बड़े से बड़े के घात करने की तलवार है, जिस से कोठरियोंमें भी कोई नहीं बच सकता।
15. मैं ने घात करनेवाली तलवार को उनके सब फाटकोंके विरुद्ध इसलिथे चलाया है कि लोगोंके मन टूट जाएं, और वे बहुत ठोकर खाएं। हाथ, हाथ ! वह तो बिजली के समान बनाई गई, और घात करने को सान चढ़ाई गई है।
16. सिकुड़कर दहिनी ओर जा, फिर तैयार होकर बाई ओर मुड़, जिधर भी तेरा मुख हो।
17. मैं भी ताली बजाऊंगा और अपक्की जलजलाहट को ठंडा करूंगा, मुझ यहोवा ने ऐसा कहा है।
18. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
19. हे मनुष्य के सन्तान, दो मार्ग ठहरा ले कि बाबुल के राजा की तलवार आए; दोनोंमार्ग एक ही देश से निकलें ! फिर एक चिन्ह कर, अर्यात् नगर के मार्ग के सिर पर एक चिन्ह कर;
20. एक मार्ग ठहरा कि तलवार अम्मोनियोंके रब्बा नगर पर, और यहूदा देश के गढ़वाले नगर यरूशलेम पर भी चले।
21. क्योंकि बाबुल का राजा तिर्मुहाने अर्यात् दोनोंमागॉं के निकलने के स्यान पर भावी बूफने को खड़ा हुआ है, उस ने तीरोंको हिला दिया, और गृहदेवताओं से प्रश्न किया, और कलेजे को भी देखा।
22. उसके दहिने हाथ में यरूशलेम का नाम है कि वह उसकी ओर युद्ध के यन्त्र लगाए, और गला फाड़कर घात करने की आज्ञा दे और ऊंचे शब्द से ललकारे, फाटकोंकी ओर युद्ध के यन्त्र लगाए और दमदमा बान्धे और कोट बनाए।
23. परन्तु लोग तो उस भावी कहने को मिय्या समझेंगे; उन्होंने जो उनकी शपय खाई है; इस कारण वह उनके अधर्म का स्मरण कराकर उन्हें पकड़ लेगा।
24. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, इसलिथे कि तुम्हारा अधर्म जो स्मरण किया गया है, और तुम्हारे अपराध जो खुल गए हैं, कसोंकि तुम्हारे सब कामोंमें पाप ही पाप दिखाई पड़ा है, और तुम स्मरण में आए हो, इसलिथे तुम उन्हीं से पकड़े जाओगे।
25. और हे इस्राएल दुष्ट प्रधान, तेरा दिन आ गया है; अधर्म के अन्त का समय पहुंच गया है।
26. तेरे विषय में परमेश्वर यहोवा योंकहता है, पगड़ी उतार, और मुकुट भी उतार दे; वह ज्योंका त्योंनहीं रहने का; जो नीचा है उसे ऊंचा कर और जो ऊंचा है उसे नीचा कर।
27. मैं इसको उलट दूंगा और उलट पुलट कर दूंगा; हां उलट दूंगा और जब तक उसका अधिक्कारनेी न आए तब तक वह उलटा हुआ रहेगा; तब मैं उसे दे दूंगा।
28. फिर हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह कि प्रभु यहोवा अम्मोनियोंऔर उनकी की हुई नामधराई के विषय में योंकहता है; तू योंकह, खींची हुई तलवार है, वह तलवार घात के लिथे फलकाई हुई है कि नाश करे और बिजली के समान हो---
29. जब तक कि वे तेरे विषय में फूठे दर्शन पाते, और फूठे भावी तुझ को बताते हैं---कि तू उन दुष्ट असाध्य घायलोंकी गर्दनोंपर पके जिनका दिन आ गया, और जिनके अधर्म के अन्त का समय आ पहुंचा है।
30. उसको मियान में फिर रख। जिस स्यान में तू सिरजी गई और जिस देश में तेरी उत्पत्ति हुई, उसी में मैं तेरा न्याय करूंगा।
31. और मैं तुझ पर अपना क्रोध भड़काऊंगा और तुझ पर अपक्की जलजलाहट की आग फूंक दूंगा; ओर तुझे पशु सरीखे मनुष्य के हाथ कर दूंगा जो नाश करने में निपुण हैं।
32. तू आग का कौर होगी; तेरा खून देश में बना रहेगा; तू स्मरण में न रहेगी क्योंकि मुझ यहोवा ही ने ऐसा कहा है।
Chapter 22
1. और यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू उस हत्यारे नगर का न्याय न करेगा? क्या तू उसका न्याय न करेगा? उसको उसके सब घिनौने काम जता दे,
3. और कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे नगर तू अपके बीच में हत्या करता है जिस से तेरा समय आए, और अपक्की ही हानि करने और अशुद्ध होने के लिथे मूरतें बनाता है।
4. जो हत्या तू ने की है, उस से तू दोषी ठहरी, और जो मूरतें तू ने बनाई है, उनके कारण तू अशुद्ध हो गई है; तू ने अपके अन्त के दिन को समीप कर लिया, और अपके पिछले वषाॉं तक पहुंच गई है। इस कारण मैं ने तुझे जाति जाति के लोगोंकी ओर से नामधराई का और सब देशोंके ठट्ठे का कारण कर दिया है।
5. हे बदनाम, हे हुल्लड़ से भरे हुए नगर, जो निकट और जो दूर है, वे सब तुझे ठट्ठोंमें उड़ाएंगे।
6. देख, इस्राएल के प्रधान लोग अपके अपके बल के अनुसार तुझ में हत्या करनेवाले हुए हैं।
7. तुझ में माता-पिता तुच्छ जाने गए हैं; तेरे बीच परदेशी पर अन्धेर किया गया; और अनाय और विधवा तुझ में पीसी गई हैं।
8. तू ने मेरी पवित्र वस्तुओं को तुच्छ जाना, और मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया है।
9. तुझ में लुच्चे लोग हत्या करने का तत्पर हुए, और तेरे लोगोंने पहाड़ोंपर भोजन किया है; तेरे बीच महापाप किया गया है।
10. तुझ में पिता की देश उधारी गई; तुझ में ऋतुमती स्त्री से भी भोग किया गया है।
11. किसी ने तुझ में पड़ोसी की स्त्री के साय घिनौना काम किया; और किसी ने अपक्की बहू को बिगाड़कर महापाप किया है, और किसी ने अपक्की बहिन अर्यात् अपके पिता की बेटी को भ्रष्ट किया है।
12. तुझ में हत्या करने के लिथे उन्होंने घूस ली है, तू ने ब्याज और सूद लिया और अपके पड़ोसिक्कों पीस पीसकर अन्याय से लाभ उठाया; और मुझ को तू ने फुला दिया है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
13. सो देख, जो लाभ तू ने अन्याय से उठाया और अपके बीच हत्या की है, उस से मैं ने हाथ पर हाथ दे मारा है।
14. सो जिन दिनोंमें तेरा न्याय करूंगा, क्या उन में तेरा ह्रृदय दृढ़ यौर तेरे हाथ स्यिर रह सकेंगे? मुझ यहोवा ने यह कहा है, और ऐसा ही करूंगा।
15. मैं तेरे लोगोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितरा दूंगा, और तेरी अशुद्धता को तुझ में से नाश करूंगा।
16. और तू जाति जाति के देखते हुए अपक्की ही दृष्टि में अपवित्र ठहरेगी; तब तू जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ।
17. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल का घराना मेरी दृष्टि में धातु का मैल हो गया है; वे सब के सब भट्टी के बीच के पीतल और रांगे और लोहे और शीशे के समान बन गए; वे चान्दी के मैल के समान हो गए हैं।
19. इस कारण प्रभु यहोवा उन से योंकहता है, इसलिथे कि तुम सब के सब धातु के मैल के समान बन गए हो, हो देखो, तैं तुम को यरूशलेम के भीतर इकट्ठा करने पर हूँ।
20. जैसे लोग चान्दी, पीतल, लोहा, शीशा, और रांगा इसलिथे भट्ठी के भीतर बटोरकर रखते हैं कि उन्हे आग फूंककर पिघलाएं, वैसे ही मैं तुम को अपके कोप और जलजलाहट से इकट्ठा करके वहीं रखकर पिघला दूंगा।
21. मैं तुम को वहां बटोरकर अपके रोष की आग से फूंकूंगा, और तुम उसके बीच पिघलाए जाओगे।
22. जैसे चान्दी भट्ठी के बीच में पिघलाई जाती है, वैसे ही तुम उसके बीच में पिघलाए जाओगे; तब तुम जान लोगे कि जिस ने हम पर अपक्की जलजलाहट भड़काई है, वह यहोवा है।
23. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
24. हे मनुष्य के सन्तान, उस देश से कह, तू ऐसा देश है जो शुद्ध नहीं हुआ, और जलजलाहट के दिन में तुझ पर वर्षा नहीं हुई्र;
25. तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने तुझ में राजद्रोह की गोष्ठी की, उन्होंने गरजनेवाले सिंह की नाई अहेर पकड़ा और प्राणियोंको खा डाला है; वे रखे हुए अनमोल धन को छीन लेते हैं, और तुझ में बहुत स्त्रियोंको विधवा कर दिया हे।
26. उसके याजकोंने मेरी व्यवस्या का अर्य खींचखांचकर लगाया है, और मेरी पवित्र वस्तुओं को अपवित्र किया है; उन्होंने पवित्रन्अपवित्र का कुछ भेद नहीं माना, और न औरोंको शुद्ध-अशुद्ध का भेद सिखाया है, और वे मेरे विश्रमदिनोंके विषय में निश्चिन्त रहते हैं, जिस से मैं उनके बीच अपवित्र ठहरता हूँ।
27. उसके प्रधान हुंड़ारोंकी नाई अहेर पकड़ते, और अन्याय से लाभ उठाने के लिथे हत्या करते हैं और प्राण घात करने को तत्पर रहते हैं।
28. और उसके भविष्यद्वक्ता उनके लिथे कच्ची लेसाई करते हैं, उनका दर्शन पाना मिध्या है; यहोवा के बिना कुछ कहे भी वे यह कहकर फूठी भावी बताते हैं कि “प्रभु यहोवा योंकहता है”।
29. देश के साधारण लोग भी अन्धेर करते और पराया धन छीनते हैं, वे दीन दरिद्र को पीसते और न्याय की चिन्ता छोड़कर परदेशी पर अन्धेर करते हैं।
30. और मैं ने उन में ऐसा मनुष्य ढूंढ़ना चाहा जो बाड़े को सुधारे और देश के निमित्त नाके में मेरे साम्हने ऐसा खड़ा हो कि मुझे उसको नाश न करना पके, परन्तु ऐसा कोई न मिला।
31. इस कारण मैं ने उन पर अपना रोष भड़काया और अपक्की जलजलाहट की आग से उन्हें भस्म कर दिया है; मैं ने उनकी चाल उन्ही के सिर पर लौटा दी है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।।
Chapter 23
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, दो स्त्रियां यी, जो एक ही मा की बेटी यी,
3. वे अपके बचपन ही में वेश्या का काम मिस्र में करने लगी; उनकी छातियां कुंवारपन में पहिले वहीं मींजी गई और उनका मरदन भी हुआ।
4. उन लड़कियोंमें से बड़ी का नाम ओहोला और उसकी बहिन का नाम ओहोलीबा या। वे मेरी हो गई, और उनके पुत्र पुत्रियां उत्पन्न हुई। उनके नामोंमें से ओहोला तो शोमरोन, और ओहेलीबा यरूशलेम है।
5. ओहोला जब मेरी यी, तब ही व्यभिचारिणी होकर अपके मित्रोंपर मोहित होने लगी जो उसके पड़ोसी अश्शूरी थे।
6. वे तो सब के सब नीले वस्त्र पहिननेवाले मनभावने जवान, अधिपति और प्रधान थे, और घोड़ोंपर सवार थे।
7. सो उस ने उन्हीं के साय व्यभिचार किया जो सब के सब सवॉत्तम अश्शूरी थे; और जिस किसी पर वह मोहित हुई, उसी की मूरतोंसे वह अशुद्ध हुई।
8. जो व्यभिचार उस ने मिस्र में सीखा या, उसको भी उस ने न छोड़ा; क्योंकि बचपन में मनुष्योंने उसके साय कुकर्म किया, और उसकी छातियां मींजी, और तन-मन से उसके साय व्यभिचार किया गया या।
9. इस कारण मैं ने उसको उन्हीं अश्शूरी मित्रोंके हाथ कर दिया जिन पर वह मोहित हुई यी।
10. उन्होंने उसको नंगी किया; उसके पुत्र-मुत्रियां छीनकर उसको तलवार से घात किया; इस प्रकार उनके हाथ से दण्ड पाकर वह स्त्रियोंमें प्रसिद्ध हो गई।
11. उसकी बहिन ओहोलीबा ने यह देखा, तौभी वह मोहित होकर व्यभिचार करने में अपक्की बहिन से भी अधिक बढ़ गई।
12. वह अपके अश्शूरी पड़ोसियोंपर मोहित होती यी, जो सब के सब अति सुन्दर वस्त्र पहिननेवाले और घोड़ोंके सवार मनभावने, जवानन अधिपति और और प्रकार के प्रधान थे।
13. तब मैं ने देखा कि वह भी अशुद्ध हो गई; उन दोनोंबहिनोंकी एक ही चाल यी।
14. परन्तु ओहोलीबा अधिक व्यभिचार करती गई; सो जब उस ने भीत पर सेंदूर से खींचे हुए ऐसे कसदी पुरुषें के चित्र देखे,
15. जो कटि में फेंटे बान्धे हुए, सिर में छोर लटकती हुई रंगीली पगडिय़ां पहिने हुए, और सब के सब अपक्की कसदी जन्मभूमि अर्यात् बाबुल के लोगोंकी रीति पर प्रधानोंका रूप धरे हुए थे,
16. तब उनको देखते ही वह उन पर मोहित हुई और उनके पास कसदियोंके देश में दूत भेजे।
17. सो बाबुली लोग उसके पास पलंग पर आए, और उसके साय व्यभिचार करके उसे अशुद्ध किया; और जब वह उन से अशुद्ध हो गई, तब उसका मन उन से फिर गया।
18. तौभी जब वह तन उधड़ती और व्यभिचार करती गई, तब मेरा मन जैसे उसकी बहिन से फिर गया या, वैसे ही उस से भी फिर गया।
19. इस पर भी वह मिस्र देश के अपके बचपन के दिन स्मरण करके जब वह वेश्या का काम करती यी, और अधिक व्यभिचार करती गई;
20. और ऐसे मिस्रोंपर मोहित हुई, जिनका मांस गदहोंका सा, और वीर्य घोड़ोंका सा या।
21. तू इस प्रकार से अपके बचपन के उस समय के महापाप का स्मरण कराती है जब मिस्री लोग तेरी छातियां मींजते थे।
22. इस कारण हे ओहोलीबा, परमेश्वर यहोवा तुझ से योंकहता है, देख, मैं तेरे मिस्रोंको उभारकर जिन से तेरा मन फिर गया चारोंओर से तेरे विरुद्ध ले आऊंगा।
23. अर्यात् बाबुलियोंऔर सब कसदियोंको, और पकोद, शो और कोआ के लोगोंको; और उनके साय सब अश्शूरियोंको लाऊंगा जो सब के सब घोड़ोंके सवार मनभावने जवान अधिपति, और कई प्रकार के प्रतिनिधि, प्रधान और नामी पुरुष हैं।
24. वे लोग हयियार, रय, छकड़े और देश देश के लोगोंका दल लिए हुए तुझ पर चढ़ाई करेंगे; और ढाल और फरी और टोप धारण किए हुए तेरे विरुद्ध चारोंओर पांति बान्धेंगे; और मैं उन्हीं के हाथ न्याय का काम सौंपूंगा, और वे अपके अपके नियम के अनुसार तेरा न्याय करेंगे।
25. और मैं तुझ पर जलूंगा, जिस से वे जलजलाहट के साय तुझ से बर्ताव करेंगे। वे तेरी नाक और कान काट लेंगे, और तेरा जो भी बचा रहेगा वह तलवार से मारा जाएगा। वे तेरे पुत्र-पुत्रियोंको छीन ले जाएंगे, और तेरा जो भी बचा रहेगा, वह आग से भस्म हो जाएगा।
26. वे तेरे वस्त्र भी उतारकर तेरे सुन्दर-सुन्दर गहने छीन ले जाएंगे।
27. इस रीति से मैं तेरा महापाप और जो वेश्या का काम तू ने मिस्र देश में सीखा या, उसे भी तुझ से छुड़ाऊंगा, यहां तक कि तू फिर अपक्की आंख उनकी ओर न लगाएगी और न मिस्र देश को फिर स्मरण करेगी।
28. क्योंकि प्रभु यहोवा तुझ से योंकहता है, देख, मैं तुझे उनके हाथ सौंपूंगा जिन से तू वैर रखती है और जिन से तेरा मन फिर गया है;
29. और वे तुझ से वैर के साय बर्ताव करेंगे, और तेरी सारी कमाई को उठा लेंगे, और तुझे नंगा करके छोड़ देंगे, और तेरे तन के उघाड़े जाने से तेरा व्यभिचार और महापाप प्रगट हो जाएगा।
30. थे काम तुझ से इस कारण किए जाएंगे क्योंकि तू अन्यजातियोंके पीछे व्यभिचारिणी की नाई हो गई, और उनकी मूरतें पूजकर अशुद्ध हो गई है।
31. तू अपक्की बहिन की लीक पर चक्की है; इस कारण मैं तेरे हाथ में उसका सा कटोरा दूंगा।
32. प्रभु यहोवा योंकहता है, अपक्की बहिन के कटोरे से तुझे पीना पकेगा जीे गहिरा और चौड़ा है; तू हंसी और ठट्ठोंमें उड़ाई जाएगी, क्योंकि उस कटोरे में बहुत कुछ समाता है।
33. तू मतवालेपन और दु:ख से छक जाएगी। तू अपक्की बहिन शोमरोन के कटोरे को, अर्यात् विस्मय और उजाड़ को पीकर छक जाएगी।
34. उस में से तू गार गारकर पीएगी, और उसके ठिकरोंको भी चबाएगी और अपक्की छातियां घायल करेगी; क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
35. तू ने जो मुझे भुला दिया है और अपना मुंह मुझ से फेर लिया है, इसलिथे तू आप ही अपके महापाप और व्यभिचार का भार उठा, परमेश्वर यहोवा का यही वचन है।
36. यहोवा ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ओहोला और ओहोलीबा का न्याय करेगा? तो फिर उनके घिनौने काम उन्हें जता दे।
37. क्योंकि उन्होंने व्यभिचार किया है, और उनके हाथोंमें खून लगा है; उन्होंने अपक्की मूरतोंके साय व्यभिचार किया, और अपके लड़केबाले जो मुझ से उत्पन्न हुए थे, उन मूरतोंके आगे भस्म होने के लिथे चढ़ाए हैं।
38. फिर उन्होंने मुझ से ऐसा बर्ताव भी किया कि उसी के साय मेरे पवित्रस्यान को भी अशुद्ध किया और मेरे विश्रमदिनोंको अपवित्र किया है।
39. वे अपके लड़केबाले अपक्की मूरतोंके साम्हने बलि चढ़ाकर उसी दिन मेरा पवित्रस्यान अपवित्र करने को उस में घुसी। देख, उन्होंने इस भांति का काम मेरे भवन के भीतर किया हे।
40. और उन्होंने दूर से पुरुषोंको बुलवा भेजा, और वे चले भी आए। उनके लिथे तू नहा धो, आंखोंमें अंजन लगा, गहने पहिनकर;
41. सुन्दर पलंग पर बैठी रही; और तेरे साम्हने एक मेज़ बिछी हुई यी, जिस पर तू ने मेरा धूप और मेरा तेल रखा या।
42. तब उसके साय निश्चिन्त लोगोंकी भीड़ का कोलाहल सुन पड़ा, और उन साधारण लोगोंके पास जंगल से बुलाए हुए पियक्कड़ लोग भी थे; उन्होंने उन दोनोंबहिनोंके हाथोंमें चूडियां पहिनाई, और उनके सिरोंपर शोभायमान मुकुट रखे।
43. तब जो क्यभिचार करते करते बुढिय़ा हो गई यी, उसके विषय में बोल उठा, अब तो वे उसी के साय व्यभिचार करेंगे।
44. क्योंकि वे उसके पास ऐसे गए जैसे लोग वेश्या के पास जाते हैं। वैसे ही वे ओहोला और ओहोलीबा नाम महापापिनी स्त्रियोंके पास गए।
45. सो धमीं लोग व्यभिचारिणियोंऔर हत्यारोंके योग्य उसका न्याय करें; क्योंकि वे व्यभिचारिणीयोंऔर हत्यारोंके योग्य उसका न्याय करें; क्योंकि वे व्यभिचारिण्ी है, और उनके हाथोंमें खून लगा है।
46. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं एक भीड़ से उन पर चढ़ाई कराकर उन्हें ऐसा करूंगा कि वे मारी मारी फिरेंगी और लटी जाएंगी।
47. और उस भीड़ के लोग उनको पत्त्रवाह करके उन्हें अपक्की तलवारोंसे काट डालेंगे, तब वे उनके पुत्र-पुत्रियोंको घात करके उनके घर भी आग लगाकर फूंक देंगे।
48. इस प्रकार मैं महापाप को देश में से दूर करूंगा, और सब स्त्रियां शिझा माकर तुम्हारा सा महापाप करने से बची रहेगी।
49. तुम्हारा महापाप तुम्हारे ही सिर पकेगा; और तुम निश्चय अपक्की मूरतोंको पूजा के पापोंका भार उठाओगे; और तब तुम जान लोगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूं।
Chapter 24
1. नवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को, यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, आज का दिन लिख रख, क्योंकि आज ही के दिन बाबुल के राजा ने यरूशलेम आ घेरा है।
3. और इस बलबई घराने से यह दृष्टान्त कह, प्रभु यहोवा कहता है, हण्डे को आग पर घर दो; उसे धरकर उस में पानी डाल दो;
4. तब उस में जांध, कन्धा और सब अच्छे अच्छे टुकड़े बटोरकर रखो; और उसे उत्तम उत्तम हड्डियोंसे भर दो।
5. फुंड में से सब से अच्छे पशु लेकर उन हड्डियोंको हगडे के नीचे ढेर करो; और उनको भली-भांति पकाओ ताकि भीतर ही हड्डियां भी पक जाएं।
6. इसलिथे प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उस हत्यारी नगरी पर ! हाथ उस हण्डे पर ! जिसका मोर्चा उस में बना है और छूटा नहीं; उस में से टुकड़ा टुकड़ा करके निकाल लो, उस पर चिट्ठी न डाली जाए।
7. क्योंकि उस नगरी में किया हुआ खून उस में है; उस ने उसे भूमि पर डालकर धूलि से नहीं ढांपा, परन्तु नंगी चट्टान पर रख दिया।
8. इसलिथे मैं ने भी उसका खून नंगी चट्टान पर रखा है कि वह ढंप न सके और कि बदला लेने को जलजलाहट भड़के।
9. प्रभु यहोवा योंकहता है, हाथ, उस खूनी नगरी पर ! मैं भी ढेर को बड़ा करूंगा।
10. और अधिक लकड़ी डाल, आग को बहुत तेज कर, मांस को भली भांति पका और मसाला मिला, और हड्डियां भी जला दो।
11. तब हण्डे को छूछा करके अंगारोंपर रख जिस से वह गर्म हो और उसका पीतल जले और उस में का मैल गले, और उसका मोर्चा नष्ट हो जाए।
12. मैं उसके कारण परिश्र्म करते करते यक गया, परन्तु उसका भारी मोर्चा उस से छूटता नहीं, उसका मोर्चा आग के द्वारा भी नहीं छूटता।
13. हे नगरी तेरी अशुद्धता महापाप की है। मैं तो तुझे शुद्ध करना चाहता या, परन्तु तू शुद्ध नहीं हुई, इस कारण जब तक मैं अपक्की लजलजाहट तुझ पर शान्त न कर लूं, तब तक तू फिर शुद्ध न की जाएगी।
14. मुझ यहोवा ही ने यह कहा है; और वह हो जाएगा, मैं ऐसा ही करूंगा, मैं तुझे न छोड़ूंगा, न तुझ पर तरस खऊंगा न पछताऊंगा; तेरे चालचलन और कामोंही के अनुसार तेरा न्याय किया जाएगा, प्रभु यहोवा की यही वाणी है।
15. यहोवा का यह भी वचन मेरे पास पहुंचा,
16. हे मनुष्य के सन्तान, देख, मैं तेरी आंखोंकी प्रिय को मारकर तेरे पास से ले लेने पर हूँ; परन्तु न तू रोना-पीटना और न आंसू बहाना।
17. लम्बी सांसें ले तो ले, परन्तु वे सुनाई न पकें; मरे हुओं के लिथे भी विलाप न करना । सिर पर पगड़ी बान्धे और पांवोंमें जूती पहने रहना; और न तो अपके होंठ को ढांपना न शोक के योग्य रोटी खाना।
18. तब मैं सवेरे लोगोंसे बोला, और सांफ को मेरी स्त्री मर गई। और बिहान को मैं ने आज्ञा के अनुसार किया।
19. तब लोग मुझ से कहने लगे, क्या तू हमें न बताएगा कि यह जो तू करता है, इसका हम लोगोंके लिथे क्या अर्य है?
20. मैं ने उनको उत्तर दिया, यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. तू इस्राएल के घराने से कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मैं अपके पवित्रस्यान को जिसके गढ़ होने पर तुम फूलते हो, और जो तम्हारी आंखोंका चाहा हुआ है, और जिसको तुम्हारा मन चाहता है, उसे मैं अपवित्र करने पर हूं; और अपके जिन बेटे-बेटियोंको तुम वहां छोड़ आए हो, वे तलवार से मारे जाएंगे।
22. और जैसा मैं ने किया है वैसा ही तुम लोग करोगे, तुम भी अपके होंठ न ढांपोगे, न शोक के योग्य रोटी खाओगे।
23. तूम सिर पर पगड़ी बान्धे और पांवोंमें जूती पहिने रहोगे, न तुम रोओगे, न छाती पीटोगे, वरन अपके अधर्म के कामोंमें फंसे हुए गलते जाओगे और एक दूसरे की ओर कराहते रहोगे।
24. इस रीति यहोजकेल तुम्हारे लिथे चिन्ह ठहरेगा; जैसा उस ने किया, ठीक वैसा ही तुम भी करोगे। और जब यह हो जाए, तब तुम जान लोगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
25. और हे मनुष्य के सन्तान, क्या यह सच नहीं, कि जिस दिन मैं उनका दृढ़ गढ़, उनकी शोभा, और हर्ष का कारण, और उनके बेटे-बेटियां जो उनकी शोभा, उनकी आंखोंका आनन्द, और मन की चाह हैं, उनको मैं उन से ले लूंगा,
26. उसी दिन जो भागकर बचेगा, वह तेरे पास आकर तुझे समाचार सुनाएगा।
27. उसी दिन तेरा मुंह खुलेगा, और तू फिर चुप न रहेगा परन्तु उस बचे हुए के साय बातें करेगा। सो तू इन लोगोंके लिथे चिन्ह ठहरेगा; और थे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 25
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अम्मोनियोंकी ओर मुंह करके उनके विषय में भविष्यद्वाणी कर।
3. उन से कह, हे अम्मोनियो, परमेश्वर यहोवा का वचन सुनो, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि तुम ने जो मेरे पवित्रस्यान के विषय जब वह अपवित्र किया गया, और इस्राएल के देश के विषय जब वह उजड़ गया, और यहूदा के घराने के विषय जब वे बंधुआई में गए, अहा, अहा ! कहा !
4. इस कारण देखो, मैं तुझ को पूरबियोंके अधिक्कारने में करने पर हूँ; और वे तेरे बीच अपक्की छावनियां डालेंगे और अपके घर बनाएंगे; वे तेरे फल खाएंगे और तेरा दूध पीएंगे।
5. और मैं रब्बा नगर को ऊंटोंके रहने और अम्मोनियोंके देश को भेड़-बकरियोंके बैठने का स्यान कर दूंगा; तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
6. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तुम ने जो इस्राएल के देश के कारण ताली बजाई और नाचे, और अपके सारे मन के अभिमान से आनन्द किया,
7. इस कारण देख, मैं ने अपना हाथ तेरे ऊपर बढ़ाया है; और तुझ को जाति जाति की लूट कर दूंगा, और देश देश के लोगोंमें से तुझे मिटाऊंगा; और देश देश में से नाश करूंगा। मैं तेरा सत्यानाश कर डालूंगा; तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
8. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मोआब और सेईर जो कहते हैं, देखो, यहूदा का घराना और सब जातियोंके समान हो गया हे।
9. इस कारण देख, मोआब के देश के किनारे के नगरोंको बेत्यशीमोत, बालमोन, और किर्यातैम, जो उस देश के शिरोमणि हैं, मैं उनका मार्ग खोलकर
10. उन्हें पूरबियोंके वश में ऐसा कर दूंगा कि वे अम्योनियोंपर चढ़ाई करें; और मैं अम्मोनियोंको यहां तक उनके अधिक्कारने में कर दूंगा कि जाति जाति के बीच उनका स्मरण फिर न रहेगा।
11. और मैं मोआब को भी दण्ड दूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
12. परमेश्वर यहोवा योंभी कहता है, एदोम ने जो यहूदा के घराने से पलटा लिया, और उन से बदला लेकर बड़ा दोषी हो गया है,
13. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं एदोम के देश के विरुद्ध अपना हाथ बढ़ाकर उस में से मनुष्य और पशु दोनोंको मिटाऊंगा; और तेमान से लेकर ददान तक उसको उजाड़ कर दूंगा; और वे तलवार से मारे जाएंगे।
14. और मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के द्वारा एदोम से अपना बदला लूंगा; और वे उस देश में मेरे कोप और जलजलाहट के अनुसार काम करेंगे। तब वे मेरा पलटा लेना जान लेंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, क्योंकि पलिश्ती लोगोंने पलटा लिया, वरन अपक्की युग युग की शत्रुता के कारण अपके मन के अभिमान से बदला लिया कि नाश करें,
16. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, मैं पलिश्तियोंके विरुद्ध अपना हाथ बढ़ाने पर हूँ, और करेतियोंको मिटा डालूंगा; और समुद्रतीर के बचे हुए रहनेवालोंको नाश करूंगा।
17. और मैं जलजलाहट के साय मुक़द्दमा लड़कर, उन से कड़ाई के साय पलटा लूंगा। और जब मैं उन से बदला ले लूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 26
1. ग्सारहवें वर्ष के पक्कीले महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर ने जो यरूशलेम के विष्य में कहा है, अहा, अहा। जो देश देश के लोगोंके फाटक के समान यी, वह नाश होगई।
3. उसके उजड़ जाने से मैं भरपूर हो जाऊंगा ! इस कारण परमेश्वर यहोवा कहता है, हे सोर, देख, मैं तेरे पिरुद्ध हूँ; और ऐसा करूंगा कि बहुत सी जातियां तेरे विरुद्ध ऐसी उठेंगी जैसे समुद्र की लहरें उठती हैं।
4. और वे सोर की शहरपनाह को गिराएंगी, और उसके गुम्मटोंको तोड़ डालेंगी; और मैं उस पर से उसकी मिट्टी खुरचकर उसे नंगी चट्टान कर दूंगा।
5. वह समुद्र के बीच का जाल फैलाने ही का स्यान हो जएगा; क्योंकि परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है; और वह जाति जाति से लुट जाएगा;
6. और उसकी जो बेटियां मैदान में हैं, वे तलवार से मारी जाएंगी। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
7. क्योंकि परमेश्वर यहोवा यह कहता है, देख, मैं सोर के विरुद्ध राजाधिराज बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को घेड़ों, रयों, सवारों, बड़ी भीड़, और दल समेत उत्तर दिशा से ले आऊंगा।
8. और तेरी जो बेटियां मैदान में हों, उनको वह तलवार से मारेगा, और तेरे विरुद्ध कोट बनाएगा और दमदमा बान्धेगा; और ढाल उठाएगा।
9. और वह तेरी शहरपनाह के विरुद्ध युद्ध के यन्त्र चलाएगा और तेरे गुम्मटोंको फरसोंसे ढा देगा।
10. उसके घोड़े इतने होंगे, कि तू उनकी धूलि से ढंप जाएगा, और जब वह तेरे फाटकोंमें ऐसे घुसेगा जैसे लोग नाकेवाले नगर में घुसते हैं, तब तेरी शहरपनाह सवारों, छकड़ों, और रयोंके शब्द से कांप उठेगी।
11. वह अपके घेड़ोंकी टापोंसे तेरी सब सड़कोंको रौन्द डालेगा, और तेरे निवासिक्कों तलवार से मार डालेगा, और तेरे बल के खंभे भूमि पर बिराए जाएंगे।
12. और लोग तेरा धन लूटेंगे और तेरे व्योपार की वस्तुएं छीन लेंगे; वे तेरी शहरपनाह ढा देंगे और तेरे मनभाऊ घर तोड़ डालेंगे; तेरे पत्यर और काठ, और तेरी धूलि वे जल में फेंक देंगे।
13. और मैं तेरे गीतोंका सुरताल बन्द करूंगा, और तेरी वीणाओं की ध्वनि फिर सुनाई न देगी।
14. मैं तुझे नंगी चट्टान कर दूंगा; तू जाल फैलाने ही का स्यान हो जाएगा; और फिर बसाया न जाएगा; क्योंकि मुझ यहोवा ही ने यह कहा है, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है।
15. परमेश्वर यहोवा सोर से योंकहता है, तेरे गिरने के शब्द से जब घायल लोग कराहेंगे और तुझ में घात ही घात होगा, तब क्या टापू न कांप उठेंगे?
16. तब समुद्रतीर के सब प्रधान लोग अपके अपके सिंहासन पर से उतरेंगे, और अपके बाग�े और बूटेदार वस्त्र उतारकर यरयराहट के वस्त्र पहिनेंगे और भूमि पर बैठकर झण झण में कांपेंगे; और तेरे कारण विस्मित रहेंगे।
17. और वे तेरे विषय में विलाप का गीत बनाकर तुझ से कहेंगे, हाथ ! मल्लाहोंकी बसाई हुई हाथ ! सराही हुई नगरी जो समुद्र के बीच निवासियोंसमेत सामयीं रही और सब टिकनेवालोंकी डरानेवाली नगरी यी, तू कैसी नाश हुई है?
18. तेरे गिरने के दिन टापू कांप उठेंगे, और तेरे जाते रहने के कारण समुद्र से सब टापू घबरा जाएंगे।
19. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब मैं तुझे निर्जन नगरोंके समान उजाड़ करूंगा और तेरे ऊपर महासागर चढ़ाऊंगा, और तू गहिरे जल में डूब जाएगा,
20. तब गड़हे में और गिरनेवालोंके संग मैं तुझे भी प्राचीन लोगोंमें उतार दूंगा; और गड़हे में और गिरनेवालोंके संग तुझे भी नीचे के लोक में रखकर प्राचीनकाल के उजड़े हुए स्यानोंके समान कर दूंगा; यहां तक कि तू फिर न बसेगा और न जीवन के लोक में कोई स्यान पाएगा।
21. मैं तुझे घबराने का कारण करूंगा, और तू भविष्य में फिर न रहेगा, वरन ढूंढ़ने पर भी तेरा पता न लगेगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 27
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के विषय एक विलाप का गीत बनाकर उस से योंकह,
3. हे समुद्र के पैठाव पर रहनेवाली, हे बहुत से द्वीपोंके लिथे देश देश के लोगोंके साय व्योपार करनेवाली, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे सोर तू ने कहा है कि मैं सर्वांग सुन्दर हूँ।
4. तेरे सिवाने समुद्र के बीच हैं; तेरे बनानेवाले ने तुझे सर्वांग सुन्दर बनाया।
5. तेरी सब पटरियां सनीर पर्वत के सनौवर की लकड़ी की बनी हैं; तेरे मस्तूल के लिथे लबानोन के देवदार लिए गए हैं।
6. तेरे डांड़ बाशान के बांजवृझोंके बने; तेरे जहाज़ोंका पटाव कित्तियोंके द्वीपोंसे लाए हुए सीधे सनौवर की हाथीदांत जड़ी हुई लकड़ी का बना।
7. तेरे जहाज़ोंके पाल मिस्र से लाए हुए बूटेदार सन के कपके के बने कि तेरे लिथे फणडे का काम दें; तेरी चांदनी एलीशा के द्वीपोंसे लाए हुए नीले और बैंजनी रंग के कपड़ोंकी बनी।
8. तेरे खेनेवाले सीदोन और अर्बद के रहनेवाले थे; हे सोर, तेरे ही बीच के बुद्धिमान लोग तेरे मांफी थे।
9. तेरे कारीगर जोड़ाई करनेवाले गबल नगर के पुरनिथे और बुद्धिमान लोग थे; तुझ में व्योपार करने के लिथे मल्लाहोंसमेत समुद्र पर के सब जहाज तुझ में आ गए थे।
10. तेरी सेना में फारसी, लूदी, और पूती लोग भरती हुए थे; उन्होंने तुझ में ढाल, और टोपी टांगी; और उन्हीं के कारण तेरा प्रताप बढ़ा या।
11. तेरी शहरपनाह पर तेरी सेना के साय अर्बद के लोग चारोंओर थे, और तेरे गुम्मटोंमें शूरवीर खड़े थे; उन्होंने अपक्की ढालें तेरी चारोंओर की शहरपनाह पर टांगी यी; तेरी सुन्दरता उनके द्वारा पूरी हुई यी।
12. अपक्की सब प्रकार की सम्पत्ति की बहुतायत के कारण तशींशी लोग तेरे व्योपारी थे; उन्होंने चान्दी, लोहा, रांगा और सीसा देकर तेरा माल मोल लिया।
13. यावान, तूबल, और मेशेक के लोग तेरे माल के बदले दास-दासी और पीतल के पात्र तुझ से व्योपार करते थे।
14. तोगर्मा के घराने के लोगोंने तेरी सम्पत्ति लेकर घोड़े, सवारी के घोड़े और खच्चर दिए।
15. ददानी तेरे व्योपारी थे; बहुत से द्वीप तेरे हाट बने थे; वे तेरे पास हाथीदांत की सींग और आबनूस की लकड़ी व्योपार में लाते थे।
16. तेरी बहुत कारीगरी के कारण आराम तेरा व्योपारी या; मरकत, बैजनी रंग का और बूटेदार वस्त्र, सन, मूगा, और लालड़ी देकर वे तेरा माल लेते थे।
17. यहूदा और इस्राएल भी तेरे व्योपारी थे; उन्होंने मिन्नीत का गेहूं, पन्नग, और मधु, तेल, और बलसान देकर तेरा माल लिया।
18. तुझ में बहुत कारीगरी हुई और सब प्रकार का धन इकट्टा हुआ, इस से दमिश्क तेरा व्योपारी हुआ; तेरे पास हेलबोन का दाखमधु और उजला ऊन पहुंचाया गया।
19. बदान और यावान ने तेरे माल के बदले में सूत दिया; और उनके कारण फौलाद, तज और अगर में भी तेरा व्योपार हुआ।
20. सवारी के चार-जामे के लिथे ददान तेरा व्योपारी हुआ।
21. अरब और केदार के सब प्रधान तेरे व्योपारी ठहरे; उन्होंने मेम्ने, मेढ़े, और बकरे लाकर तेरे साय लेन-देन किया।
22. शबा और रामा के व्योपारी तेरे व्योपारी ठहरे; उन्होंने उत्तम उत्तम जाति का सब भांति का मसाला, सर्व भांति के मणि, और सोना देकर तेरा माल लिया।
23. हारान, कन्ने, एदेन, शबा के व्योपारी, और अश्शूर और कलमद, थे सब नेरे व्योपारी ठहरे।
24. इन्होंने उत्तम उत्तम वस्तुएं अर्यात् ओढ़ने के नीले और बूटेदार वस्त्र और डोरियोंसे बन्धी और देवदार की बनी हुई चि?ा विचित्र कपड़ोंकी पेटियां लाकर तेरे साय लेन-देन किया।
25. तशींश के जहाज तेरे व्योपार के माल के ढोनेवाले हुए। उनके द्वारा तू समुद्र के बीच रहकर बहुत धनवान् और प्रतापी हो गई यी।
26. तेरे खिवैयोंने तुझे गहिरे जल में पहुंचा दिया है, और पुरवाई ने तुझे समुद्र के बीच तोड़ दिया है।
27. जिस दिन तू डूबेगी, उसी दिन तेरा धन-सम्पत्ति, व्योपार का माल, मल्लाह, मांफी, जुड़ाई का काम करनेवाले, व्योपारी लोग, और तुझ में जितने सिपाही हैं, और तेरी सारी भीड़-भाड़ समुद्र के बीच गिर जाएंगी।
28. तेरे मांफियोंकी चिल्लाहट के शब्द के मारे तेरे आस पास के स्यान कांप उठेंगे।
29. और सब खेनेवाले और मल्लाह, और समुद्र में जितने मांफी रहते हैं, वे अपके अपके जहाज पर से उतरेंगे,
30. और वे भूमि पर खड़े होकर तेरे पिषय में ऊंचे शब्द से बिलक बिलककर रोएंगे। वे अपके अपके सिर पर धूलि उड़ाकर राख में लोटेंगे;
31. और तेरे शोक में अपके सिर मुंड़वा देंगे, और कमर में टाट बान्धकर अपके मन के कड़े दु:ख के साय तेरे विषय में रोएंगे और छाती पीटेंगे।
32. वे विलाप करते हुए तेरे विषय में विलाप का यह गीत बनाकर गाएंगे, सोर जो अब समुद्र के बीच चुपचाप पक्की है, उसके तुल्य कौन नगरी है?
33. जब तेरा माल समुद्र पर से निकलता या, तब बहुत सी जातियोंके लोग तृप्त होते थे; तेरे धन और व्योपार के माल की बहुतायत से पृय्वी के राजा धनी होते थे।
34. जिस समय तू अयाह जल में लहरोंसे टूटी, उस समय तेरे वयोपार का माल, और तेरे सब निवासी भी तेरे भीतर रहकर नाश हो गए।
35. टापुओं के सब रहनेवाले तेरे कारण विस्मित हुए; और उनके सब राजाओं के रोएं खड़े हो गए, और उनके मुंह उदास देख पके हैं।
36. देश देश के व्योपारी तेरे विरुद्ध हयौड़ी बजा रहे हैं; तू भय का कारण हो गई है और फिर स्यिर न रह सकेगी।
Chapter 28
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के प्रधान से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि तू ने मन में फूलकर यह कहा है, मैं ईश्वर हूँ, मैं समुद्र के बीच परमेश्वर के आसन पर बैठा हूँ, परन्तु, यद्यपि तू अपके आपको परमेश्वर सा दिखाता है, तौभी तू ईश्वर नहीं, मनुष्य ही है।
3. तू दानिय्थेल से अधिक बुद्धिमान तो है; कोई भेद तुझ से छिपा न होगा;
4. तू ने अपक्की बुद्धि और समझ के द्वारा धन प्राप्त किया, और अपके भण्डारोंमें सोना-चान्दी रखा है;
5. तू ने बड़ी बुद्धि से लेन-देन किया जिस से तेरा धन बढ़ा, और धन के कारण तेरा मन फूल उठा है।
6. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू जो अपना मन परमेश्वर सा दिखाता है,
7. इसलिथे देख, मैं तुझ पर ऐसे परदेशियोंसे चढ़ाई कराऊंगा, जो सब जातियोंसे अधिक बलात्कारी हैं; वे अपक्की तलवारें तेरी बुद्धि की शोभा पर चलाएंगे और तेरी चमक-दमक को बिगाड़ेंगे।
8. वे तुझे कबर में उतारेंगे, और तू समुद्र के बीच के मारे हुओं की रीति पर मर जाएगा।
9. तब, क्या तू अपके घात करनेवाले के साम्हने कहता रहेगा कि तू परमेश्वर है? तू अपके घायल करनेवाले के हाथ में ईश्वर नहीं, मनुष्य ही ठहरेगा।
10. तू परदेशियोंके हाथ से खतनाहीन लोगोंकी नाई मारा जाएगा; क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है।
11. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
12. हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उस से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है।
13. तू परमेश्वर की एदेन नाम बारी में या; तेरे पास आभूषण, माणिक, पद्क़राग, हीरा, फीरोज़ा, सुलैमानी मणि, यशब, तीलमणि, मरकद, और लाल सब भांति के मणि और सोने के पहिरावे थे; तेरे डफ और बांसुलियां तुझी में बनाई गई यीं; जिस दिन तू सिरजा गया या; उस दिन वे भी तैयार की गई यीं।
14. तू छानेवाला अभिषिक्त करूब या, मैं ने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता या; तू आग सरीखे चमकनेवाले मणियोंके बीच चलता फिरता या।
15. जिस दिन से तू सिरजा गया, और जिस दिन तक तुझ में कुटिलता न पाई गई, उस समय तक तू अपक्की सारी चालचलन में निदॉष रहा।
16. परन्तु लेन-देन की बहुतायत के कारण तू उपद्रव से भरकर पापी हो गया; इसी से मैं ने तुझे अपवित्र जानकर परमेश्वर के पर्वत पर से उतारा, और हे छानेवाले करूब मैं ने तुझे आग सरीखे चमकनेवाले मण्यथें के बीच से नाश किया है।
17. सुन्दरता के कारण तेरा मन फूल उठा या; और विभव के कारण तेरी बुद्धि बिगड़ गई यी। मैं ने तुझे भूमि पर पटक दिया; और राजाओं के साम्हने तुझे रखा कि वे तुझ को देखें।
18. तेरे अधर्म के कामो की बहुतायत से और तेरे लेन-देन की कुटिलता से तेरे पवित्रस्यान अपवित्र हो गए; सो मैं ने तुझ में से ऐसी आग उत्पन्न की जिस से तू भस्म हुआ, और मैं ने तुझे सब देखनेवालोंके साम्हने भूमि पर भस्म कर डाला है।
19. देश देश के लोगोंमें से जितने तुझे जानते हैं सब तेरे कारण विस्मित हुए; तू भय का कारण हुआ है और फिर कभी पाया न जाएगा।
20. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख सीदोन की ओर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
22. और कह, प्रभु यहोवा योंकहता है, हे सीदोन, मैं तेरे विरुद्ध हूँ; मैं तेरे बीच अपक्की महिमा कराऊंगा। जब मैं उसके बीच दण्ड दूंगा और उस में अपके को पवित्र ठहराऊंगा, तब लोग जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
23. मैं उस में मरी फैलाऊंगा, और उसकी सड़कोंमें लोहू बहाऊंगा; और उसके चारोंओर तलवार चलेगी; तब उसके बीच घायल लोग गिरेंगे, और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
24. और इस्राएल के घराने के चारोंओर की जितनी जातियां उनके साय अभिमान का बर्ताव करती हैं, उन में से कोई उनका चुभनेवाला काँटा वा बेधनेवाला शूल फिर न ठहरेगी; तब वे जान लेंगी कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
25. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब में इस्राएल के घराने को उन सब लोगोंमें से इकट्ठा करूंगा, जिनके बीच वे तितर-बितर हुए हैं, और देश देश के लोगोंके साम्हने उनके द्वारा पवित्र ठहरूंगा, तब वे उस देश में वास करेंगे जो मैं ने अपके दास याकूब को दिया या।
26. वे उस में निडर बसे रहेंगे; वे घर बनाकर और दाख की बारियां लगाकर निडर रहेंगे; तब मैं उनके चारोंओर के सब लोगोंको दण्ड दूंगा जो उन से अभिमान का बर्ताव करते हैं, तब वे जान लेंगे कि उनका परमेश्वर यहोवा ही है।
Chapter 29
1. दसवें वर्ष के दसवें महीने के बारहवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुख मिस्र के राजा फिरौन की ओर करके उसके और सारे मिस्र के विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर;
3. यह कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, हे मिस्र के राजा फिरौन, मैं तेरे विरुद्ध हूँ, हे बड़े नगर, तू जो अपक्की नदियोंके बीच पड़ा रहता है, जिस ने कहा है कि मेरी नदी मेरी निज की है, और मैं ही ने उसको अपके लिथे बनाया है।
4. मैं तेरे जबड़ोंमें आँकड़े डालूंगा, औरतेरी नदियोंकी मछलियोंको तेरी खाल में चिपटाऊंगा, और तेरी खाल में चिपक्की हुई तेरी नदियोंकी सब मछलियोंसमेत तुझ को तेरी नदियोंमें से निकालूंगा।
5. तब मैं तुझे तेरी नदियोंकी सारी मछलियोंसमेत जंगल में निकाल दूंगा, और तू मैदान में पड़ा रहेगा; किसी भी प्रकार से तेरी सुधि न ली जाएगी। मैं ने तुझे वनपशुओं और आकाश के पझियोंका आहार कर दिया है।
6. तब मिस्र के सारे निवासी जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ। वे तो इस्राएल के घराने के लिथे नरकट की टेक ठहरे थे।
7. जब उन्होंने तुझ पर हाथ का बल दिया तब तू टूट गया और उनके पखौड़े उखड़ ही गए; और जब उन्होंने तुझ पर टेक लगाई, तब तू टूट गया, और उनकी कमर की सारी नसें चढ़ गई।
8. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं तुझ पर तलवार चलवाकर, तेरे मनुष्य और पशु, सभोंको नाश करूंगा।
9. तब मिस्र देश उजाड़ ही अजाड़ होगा; और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ। डस ने कहा है कि मेरी नदी मेरी अपक्की ही है, और मैं ही ने उसे बनाया।
10. इस कारण देख, मैं तेरे और तेरी नदियोंके विरुद्ध हूँ, और मिस्र देश को मिग्दोल से लेकर सवेने तक वरन कूश देश के सिवाने तक उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा।
11. चालीस वर्ष तक उस में मनुष्य वा पशु का पांव तक न पकेगा; और न उस में कोई बसेगा।
12. चालीस वर्ष तक मैं मिस्र देश को उजड़े हुए देशोंके बीच उजाड़ कर रखूंगा; और उसके नगर उजड़े हुए नगरोंके बीच खण्डहर ही रहेंगे। मैं मिस्रियोंको जाति जाति में छिन्न-भिन्न कर दूंगा, और देश देश में तितर-बितर कर दूंगा।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि चालीस वर्ष के बीतने पर मैं मिस्रियोंको उन जातियोंके बीच से इकट्ठा करूंगा, जिन में वे तितर-बितर हुए;
14. और मैं मिस्रियोंको बंधुआई से छुड़ाकर पत्रास देश में, जो उनकी जन्मभूमि है, फिर पहुंचाऊंगा; और वहां उनका छोटा सा राज्य हो जाएगा।
15. वह सब राज्योंमें से छोटा होगा, और फिर अपना सिर और जातियोंके ऊपर न उठाएगा; क्योंकि मैं मिस्रियोंको ऐसा घटाऊंगा कि वे अन्यजातियोंपर फिर प्रभुता न करने पाएंगे।
16. और वह फिर इस्राएल के घराने के भरोसे का कारण न होगा, क्योंकि जब वे फिर उनकी बोर देखने लगें, तब वे उनके अधर्म को स्मरण करेंगे। और तब वे जान लेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा हूँ।
17. फिर सत्ताइसवें वर्ष के पहले महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने सोर के घेरने में अपक्की सेना से बड़ा परिश्र्म कराया; हर एक का सिर चन्दला हो गया, और हर एक के कन्धोंका चमड़ा उड़ गया; तौभी उसको सोर से न तो इस बड़े परिश्र्म की मज़दूरी कुछ मिली और न उसकी सेना को।
19. इस कारण परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, देख, मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को मिस्र देश दूंगा; और वह उसकी भीड़ को ले जाएगा, और उसकी धन सम्पत्ति को लूटकर अपना कर लेगा; सो यही पजदूरी उसकी सेना को मिलेगी।
20. मैं ने उसके परिश्र्म के बदले में उसको मिस्र देश इस कारण दिया है कि उन लोगोंने मेरे लिथे काम किया या, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हे।
21. उसी समय मैं इस्राएल के घराने का एक सींग उगाऊंगा, और उनके बीच तेरा मुंह खोलूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 30
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हाथ, हाथ करो, हाथ उस दिन पर !
3. क्योंकि वह दिन अर्यात् यहोवा का दिन निकट है; वह बादलोंका दिन, और जातियोंके दण्ड का समय होगा।
4. मिस्र में तलवार चलेगी, और जब मिस्र में लोग मारे जाकर गिरेंगे, तब कूश में भी संकट पकेगा, लोग मिस्र को लूट ले लाएंगे, और उसकी तेवें उलट दी जाएंगी।
5. कूश, पूत, लूद और सब दोगले, और कूब लोग, और वाचा बान्धे हुए देश के निवासी, मिस्रियोंके संग तलवार से मारे जाएंगे।
6. यहोवा योंकहता है, मिस्र के संभालनेवाले भी गिर जाएंगे, और अपक्की जिस सामर्य पर मिस्री फूलते हैं, वह टूटेगी; मिग्दोल से लेकर सवेने तक उसके निवासी तलवार से मारे जाएंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
7. और वे उजड़े हुए देशोंके बीच उजड़े ठहरेंगे, और उनके नगर खण्डहर किए हुए नगरोंमें गिने जाएंगे।
8. जब मैं मिस्र में आग लगाऊंगा। और उसके सब सहाथक नाश होंगे, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
9. उस समय मेरे साम्हने से दूत जहाज़ोंपर चढ़कर निडर निकलेंगे और कूशियोंको डराएंगे; और उन पर ऐसा संकट पकेगा जैसा कि मिस्र के दण्ड के समय; क्योंकि दख, वह दिन आता है !
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर के हाथ से मिस्र की भीड़-भाड़ को नाश करा दूंगा।
11. वह अपक्की प्रजा समेत, जो सब जातियोंमें भयानक है, उस देश के नाश करने को पहुंचाया जाएगा; और वे मिस्र के विरुद्ध तलवार खींचकर देश को मरे हुओं से भर देंगे।
12. और मैं नदियोंको सुखा डालूंगा, और देश को बुरे लोगोंके हाथ कर दूंगा; और मैं परदेशियोंके द्वारा देश को, और जो कुछ उस में है, उजाड़ करा दूंगा; मुझ यहोवा ही ने यह कहा है।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं नोप में से मूरतोंको नाश करूंगा और उस में की मूरतोंको रहने न दूंगा; फिर कोई प्रधान मिस्र देश में न उठेगा; और में मिस्र देश में भय उपजाऊंगा।
14. मैं पत्रोस को उजाड़ूंगा, और सोअन में आग लगाऊंगा, और नो को दण्ड दूंगा।
15. और सीन जो मिस्र का दृढ़ स्यान है, उस पर मैं अपक्की जलजलाहट भड़काऊंगा, और नो की भीड़-भाड़ का अन्त कर डालूंगा।
16. और मैं मिस्र में आग लगाऊंगा; सीन बहुत यरयराएगा; और नो फाड़ा जाएगा और नोप के विरोधी दिन दहाड़े उठेंगे।
17. आवेन और पीवेसेत के जवान तलवार से गिरेंगे, और थे नगर बंधुआई में चले जाएंगे।
18. जब मैं मिस्रियोंके जुओं को तहपन्हेस में तोड़ूंगा, तब उस में दिन को अन्धेरा होगा, और उसकी सामर्य जिस पर वह फूलता है, वह नाश हो जाएगी; उस पर घटा छा जाएगी और उसकी बेटियां बंधुआई में चक्की जाएंगी।
19. इस प्रकार मैं मिस्रियोंको दण्ड दूंगा। और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
20. फिर ग्यारहवें वर्ष के पहिले महीने के सातवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
21. हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने मिस्र के राजा फिरौन की भुजा तोड़ दी है; और देख? न तो वह जोड़ी गई, न उस पर लेप लगाकर पट्टी चढ़ाई गई कि वह बान्धने से तलवार पकड़ने के योग्य बन सके।
22. सो प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, मैं मिस्र के राजा फिरौन के विरुद्ध हूँ, और उसकी अच्छी और टूटी दीनोंभुजाओं को तोड़ूंगा; और तलवार को उसके हाथ से गिराऊंगा।
23. मैं मिस्रियोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा, और देश देश में छितराऊंगा।
24. और मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को बली करके अपक्की तलवार उसके हाथ में दूंगा; परन्तु फिरौन की भुजाओं को तोड़ूंगा, और वह उसके साम्हने ऐसा कराहेगा जैसा मरनहार घायल कराहता है।
25. मैं बाबुल के राजा की भुजाओं को सम्भालूंगा, और फिरौन की भुजाएं ढीली पकेंगी, तब वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ। जब मैं बाबुल के राजा के हाथ में अपक्की तलवार दूंगा, तब वह उसे मिस्र देश पर चलाएगा;
26. और मैं मिस्रियोंको जाति जाति में तितर-बितर करूंगा और देश देश में छितरा दूंगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 31
1. ग्यारहवें वर्ष के तीसरे महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र के राजा फिरौन और उसकी भीड़ से कह, अपक्की बड़ाई में तू किस के समान है।
3. देख, अश्शूर तो लबानोन का एक देवदार या जिसकी सुन्दर सुन्दर शाखें, घनी छाया देतीं और बड़ी ऊंची यीं, और उसकी फुनगी बादलोंतक पहुंचक्की यी।
4. जल ने उसे बढ़ाया, उस गहिरे जल के कारण वह ऊंचा हुआ, जिस से नदियां उसके स्यान के चारोंओर बहती यीं, और उसकी नालियां निकलकर मैदान के सारे वृझोंके पास पहुंचक्की यीं।
5. इस कारण उसकी ऊंचाई मैदान के सब वृझोंसे अधिक हुई; उसकी टहनियां बहुत हुई, और उसकी शाखाएं लम्बी हो गई, क्योंकि जब वे निकलीं, तब उनको बहुत जल मिला।
6. उसकी टहनियोंमें आकाश के सब प्रकार के पक्की बसेरा करते थे, और उसकी शाखाओं के नीचे मैदान के सब भांति के जीवजन्तु जन्मते थे; और उसकी छाया में सब बड़ी जातियां रहती यीं।
7. वह अपक्की बड़ाई और अपक्की डालियोंकी लम्बाई के कारण सुन्दर हुआ; क्योंकि उसकी जड़ बहुत जल के निकट यी।
8. परमेश्वर की बारी के देवदार भी उसको न छिपा सकते थे, सनौबर उसकी टहनियोंके समान भी न थे, और न अमॉन वृझ उसकी शाखाओं के तुल्य थे; परमेश्वर की बारी का भी कोई वृझ सुन्दरता में उसके बराबर न या।
9. मैं ने उसे डालियोंकी बहुतायत से सुन्दर बनाया या, यहां तक कि एदेन के सब वृझ जो परमेश्वर की बारी में थे, उस से डाह करते थे।
10. इस कारण परमेश्वर यहोवा ने योंकहा है, उसकी ऊंचाई जो बढ़ गई, और उसकी फुनगी जो बादलोंतक पहुंची है, और अपक्की ऊंचाई के कारण उसका मन जो फूल उठा है,
11. इसलिथे जातियोंमें जो सामयीं है, मैं उसी के हाथ उसको कर दूंगा, और वह निश्चय उस से बुरा व्यवहार करेगा। उसकी दुष्टता के कारण मैं ने उसको निकाल दिया है।
12. परदेशी, जो जातियोंमें भयानक लोग हैं, वे उसको काटकर छोड़ देंगे, उसकी डालियां पहाड़ोंपर, और सब तराइयोंमें गिराई जाएंगी, और उसकी शाखाएं देश के सब नालोंमें टूटी पक्की रहेंगी, और जाति जाति के सब लोग उसकी छाया को छोड़कर चले जाएंगे।
13. उस गिरे हुए वृझ पर आकाश के सब पक्की बसेरा करते हैं, और उसकी शाखाओं के ऊपर मैदान के सब जीवजन्तु चढ़ने पाते हैं।
14. यह इसलिथे हुआ है कि जल के पास के सब वृझोंमें से कोई अपक्की ऊंचाई न बढ़ाए, न अपक्की फुनगी को बादलोंतक पहुंचाए, और उन में से जितने जल पाकर दृढ़ हो गए हैं वे ऊंचे होने के कारण सिर न उठाएं; क्योंकि वे भी सब के सब कबर में गड़े हुए मनुष्योंके समान मृत्यु के वश करके अधोलोक में डाल दिए जाएंगे।
15. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस दिन वह अधोलोक में उतर गया, उस दिन मैं ने विलाप कराया और गहिरे समुद्र को ढांप दिया, और नदियोंका बहुत जल रुक गया; और उसके कारण मैं ने लबानोन पर उदासी छा दी, और मैदान के सब वृझ मूछिर्त हुए।
16. जब मैं ने उसको कबर में गड़े हुओं के पास अधोलोक में फेंक दिया, तब उसके गिरने के शब्द से जाति जाति यरयरा गई, और एदेन के सब वृझ अर्यात् लबानोन के उत्तम उत्तम वृझोंने, जितने उस से जल पाते हैं, उन सभोंने अधोलोक में शान्ति पाई।
17. वे भी उसके संग तलवार से मारे हुओं के पास अधोलोक में उतर गए; अर्यात् वे जो उसकी भुजा थे, और जाति जाति के बीच उसकी छाया में रहते थे।
18. सो महिमा और बड़ाई के विषय में एदेन के वृझोंमें से तू किस के समान है? तू तो एदेन के और वृझोंके साय अधोलोक में उतारा जाएगा, और खतनाहीन लोगोंके बीच तलवार से मारे हुओं के संग पड़ा रहेगा। फिरौन अपक्की सारी भेड़-भाड़ समेत योंही होगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 32
1. बारहवें वर्ष के बारहवें महीने के पहिले दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र के राजा फिरौन के विषय विलाप का गीत बनाकर उसको सुना: जाति जाति में तेरी उपमा जवान सिंह से दी गई यी, परन्तु तू समुद्र के मगर के समान है; तू अपक्की नदियोंमें टूट पड़ा, और उनके जल को पांवोंसे मयकर गंदला कर दिया।
3. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं बहुत सी जातियोंकी सभा के द्वारा तुझ पर अपना जाल फैलाऊंगा, और वे तुझे मेरे महाजाल में खींच लेंगे।
4. तब मैं तुझे भूमि पर छोड़ूंगा, और मैदान में फेंककर आकाश के सब पझियोंको तुझ पर बैठाऊंगा; और तेरे मांस से सारी पृय्वी के जीवजन्तुओं को तृप्त करूंगा।
5. मैं तेरे मांस को पहाड़ोंपर रखूंगा, और तराइयोंको तेरी ऊंचाई से भर दूंगा।
6. और जिस देश में तू तैरता है, उसको पहाड़ोंतक मैं तेरे लोहू से खींचूंगा; और उसके नाले तुझ से भर जाएंगे।
7. जिस समय मैं तुझे मिटाने लगूं, उस समय मैं आकाश को ढांपूंगा और तारोंको धुन्धला कर दूंगा; मैं सूर्य को बादल से छिपाऊंगा, और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा।
8. आकाश में जितनी प्रकाशमान ज्योतियां हैं, उन सब को मैं तेरे कारण धुन्धला कर दूंगा, और तेरे देश में अन्धकार कर दूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
9. जब मैं तेरे विनाश का समाचार जाति जाति में और तेरे अनजाने देशोंमें फैलाऊंगा, तब बड़े बड़े देशोंके लोगोंके मन में रिस उपजाऊंगा।
10. मैं बहुत सी जातियोंको तेरे कारण विस्मित कर दूंगा, और जब मैं उनके राजाओं के साम्हने अपक्की तलवार भेजूंगा, तब तेरे कारण उनके रोएं खड़े हो जाएंगे, और तेरे गिरने के दिन वे अपके अपके प्राण के लिथे कांपके रहेंगे।
11. क्योंकि पामेश्वर यहोवा योंकहता है, बाबुल के राजा की तलवार तुझ पर चलेगी।
12. मैं तेरी भीड़ को ऐसे शूरवीरोंकी तलवारोंके द्वारा गिराऊंगा जो सब जातियोंमे भयानक हैं। वे मिस्र के घमण्ड को तोड़ेंगे, और उसकी सारी भीड़ का सत्यानाश होगा।
13. मैं उसके सब पशुओं को उसके बहुतेरे जलाशयोंके तीर पर से नाश करूंगा; और भविष्य में वे न तो मनुष्य के पांव से और न पशुओं के खुरोंसे गंदले किए जाएंगे।
14. तब मैं उनका जल निर्मल कर दूंगा, और उनकी नदियां तेल की नाई बहेंगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. जब मैं मिस्र देश को उजाड़ कर दूंगा और जिस से वह भरपूर है, उस से छूछा कर दूंगा, और जब मैं उसके सब रहनेवालोंको मारूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
16. लोगोंके विलाप करने के लिथे विलाप का गीत यही है; जाति-जाति की स्त्रियां इसे गाएंगी; मिस्र और उसकी सारी भीड़ के विषय वे यही विलापक्कीत गाएंगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
17. फिर बारहवें वर्ष के पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
18. हे मनुष्य के सन्तान, मिस्र की भीड़ के लिथे हाथ-हाथ कर, और उसको प्रतापी जातियोंकी बेटियोंसमेत कबर में गड़े हुओं के पास अधोलोक में उतार।
19. तू किस से मनोहर है? तू उतरकर खतनाहीनोंके संग पड़ा रह।
20. वे तलवार से मरे हुओं के बीच गिरेंगे, उन के लिथे तलवार ही ठहराई गई है; सो मिस्र को उसकी सारी भीड़ समेत घसीट ले जाओ।
21. सामयीं शूरवीर उस से और उसके सहाथकोंसे अधोलोक में बातें करेंगे; वे खतनाहीन लोग वहां तलवार से मरे पके हैं।
22. अपक्की सारी सभा समेत अश्शूर भी वहां है, उसकी कबरें उसके चारोंओर हैं; सब के सब तलवार से मारे गए हैं।
23. उसकी कबरें गड़हे के कोनोंमें बनी हुई हैं, और उसकी कबर के चारोंओर उसकी सभा है; वे सब के सब जो जीवनलोक में भय उपजाते थे, अब तलवार से मरे पके हैं।
24. वहां एलाम है, और उसकी कबर की चारोंओर उसकी सारी भीड़ है; वे सब के सब तलवार से मारे गए हैं, वे खतनाहीन अधोलोक में उतर गए हैं; वे जीवनलोक में भय उपजाते थे, परन्तु अब कबर में और गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर भी सियाही छाई हुई है।
25. उसकी सारी भीड़ समेत उसे मारे हुओं के बीच सेज मिली, उसकी कबरें उसी के चारोंओर हैं, वे सब के सब खतनाहीन तलवार से मारे गए; उन्होंने जीवनलोक में भय उपजाया या, परन्तु अब कबर में और गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर सियाही छाई हुई है; और वे मरे हुओं के बीच रखे गए हैं।
26. वहां सारी भीड़ समेत मेशेक और तूबल हैं, उनके चारोंओर कबरें हैं; वे सब के सब खतनाहीन तलवार से मारे गए, क्योंकि जीवनलोक में वे भय उपजाते थे।
27. और उन गिरे हुए खतनाहीन शूरवीरोंके संग वे पके न रहेंगे जो अपके अपके युद्ध के हयियार लिए हुए अधोलोक में उतर गए हैं, वहां उनकी तलवारें उनके सिरोंके नीचे रखी हुई हैं, और उनके अधर्म के काम उनकी हड्डियोंमें व्यापे हैं; क्योंकि जीवनलोक में उन से शूरवीरोंको भी भय उपजता या।
28. इसलिथे तू भी खतनाहीनोंके संग अंग-भंग होकर तलवार से मरे हुओं के संग पड़ा रहेगा।
29. वहां एदोम और उसके राजा और उसके सारे प्रधान हैं, जो पराक्रमी होने पर भी तलवार से मरे हुओं के संग रखे हैं; गड़हे में गड़े हुए खतनाहीन लोगोंके संग वे भी पके रहेंगे।
30. वहां उत्तर दिशा के सारे प्रधान और सारे सीदोनी भी हैं जो मरे हुओं के संग उतर गए; उन्होंने अपके पराक्रम से भय उपजाया या, परन्तु अब वे लज्जित हुए और तलवार से और मरे हुओं के साय वे भी खतनाहीन पके हुए हैं, और कबर में अन्य गड़े हुओं के संग उनके मुंह पर भी सियाही छाई हुई है।
31. इन्हें देखकर फिरौन भी अपक्की सारी भीड़ के विषय में शान्ति पाएगा, हां फिरौन और उसकी सारी सेना जो तलवार से मारी गई है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
32. क्योंकि मैं ने उसके कारण जीवनलोक में भय उपजाया या; इसलिथे वह सारी भीड़ समेत तलवार से और मरे हुओं के सहित खतनाहीनोंके बीच लिटाया जाएगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 33
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपके लोगोंसे कह, जब मैं किसी देश पर तलवार चलाने लगूं, और उस देश के लोग किसी को अपना पहरुआ करके ठहराएं,
3. तब यदि वह यह देखकर कि इस देश पर तलवार चला चाहती है, नरसिंगा फूंककर लोगोंको चिता दे,
4. तो जो कोई नरसिंगे का शब्द सुनने पर न चेते और तलवार के चलने से मर जाए, उसका खून उसी के सिर पकेगा।
5. उस ने नरसिंगे का शब्द सुना, परनतु न चेता; सो उसका खून उसी को लगेगा। परन्तु, यदि वह चेत जाता, तो अपना प्राण बचा लेता।
6. परन्तु यदि पहरुआ यह देखने पर कि तलवार चला चाहती है नरसिंगा फूंककर लोगोंको न चिताए, और तलवार के चलने से उन में से कोई मर जाए, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मर जाएगा, परन्तु उसके खुन का लेखा मैं पहरुए ही से लूंगा।
7. इसलिथे, हे मनुष्य के सन्तान, मैं ने तुझे इस्राएल के घराने का पहरुआ ठहरा दिया है; तु मेरे मुंह से वचन सुन सुनकर उन्होंमेरी ओर से चिता दे।
8. यदि मैं दुष्ट से कहूं, हे दुष्ट, तू निश्चय मरेगा, तब यदि तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय न चिताए, तो वह दुष्ट अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु उसके खून का लेखा में तुझी से लूंगा।
9. परन्तु यदि तू दुष्ट को उसके मार्ग के विषय चिताए कि वह अपके मार्ग से फिरे और वह अपके मार्ग मे न फिरे, तो वह तो अपके अधर्म में फंसा हुआ मरेगा, परन्तु तू अपना प्राण बचा लेगा।
10. फिर हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह कह, तुम लोग कहते हो, हमारे अपराधोंऔर पापोंका भार हमारे ऊपर लदा हुआ है और हम उसके कारण गलते जाते हैं; हम कैसे जीवित रहें?
11. सो तू ने उन से यह कह, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इस से कि दुष्ट अपके मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपके अपके बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्योंमरो?
12. और हे मनुष्य के सन्तान, अपके लोगोंसे यह कह, जब धमीं जन अपराध करे तब उसका धर्म उसे बचा न सकेगा; और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धमीं जन जब वह पाप करे, तब अपके धर्म के कारण जीवित न रहेगा।
13. यदि मैं धमीं से कहूं कि तू निश्चय जीवित रहेगा, और वह अपके धर्म पर भरोसा करके कुटिल काम करने लगे, तब उसके धर्म के कामोंमें से किसी का स्मरण न किया जाएगा; जो कुटिल काम उस ने किए होंवह उन्ही में फंसा हुआ मरेगा।
14. फिर जब मैं दुष्ट से कहूं, तू दिश्चय मरेगा, और वह अपके पाप से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे,
15. अर्यात् यदि दुष्ट जन बन्धक फेर दे, अपक्की लूटी हुई वस्तुएं भर दे, और बिना कुटिल काम किए जीवनदायक विधियोंपर चलने लगे, तो वह न मरेगा; वह निश्चय जीवित रहेगा।
16. जितने पाप उस ने किए हों, उन में से किसी का स्मरण न किया जाएगा; उस ने न्याय और धर्म के काम किए और वह निश्चय जीवित रहेगा।
17. तौभी तुम्हारे लोग कहते हैं, प्रभु की चाल ठीक नहीं; परन्तु उन्हीं की चाज ठीक नहीं है।
18. जब धमीं अपके धर्म से फिरकर कुटिल काम करने लगे, तब निश्चय वह उन में फंसा हुआ मर जाएगा।
19. और जब दुष्ट अपक्की दुष्टता से फिरकर न्याय और धर्म के काम करने लगे, तब वह उनके कारण जीवित रहेगा।
20. तौभी तुम कहते हो कि प्रभु की चाल ठीक नहीं? हे इस्राएल के घराने, मैं हर एक व्यक्ति का न्याय उसकी चाल ही के अनुसार करूंगा।
21. फिर हमारी बंधुआई के ग्यारहवें वर्ष के दसवें महीने के पांचवें दिन को, एक व्यक्ति जो यरूशलेम से भागकर बच गया या, वह मेरे पास आकर कहने लगा, नगर ले लिया गया।
22. उस भागे हुए के आने से पहिले सांफ को यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई यी; और भोर तक अर्यात् उस मनुष्य के आने तक उस ने मेरा मुंह खोल दिया; यो मेरा मुह खुला ही रहा, और मैं फिर गूंगा न रहा।
23. तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
24. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल की भूमि के उन खण्डहरोंके रहनेवाले यह कहते हैं, इब्राहीम एक ही मनुष्य या, तौभी देश का अधिक्कारनेी हुआ; परन्तु हम लोग बहुत से हैं, इसलिथे देश निश्चय हमारे ही अधिक्कारने में दिया गया है।
25. इस कारण तू उन से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तुम लोग तो मांस लोहू समेत खाते और अपक्की मूरतोंकी ओर दृष्टि करते, और हत्या करते हो; फिर क्या तुम उस देश के अधिक्कारनेी रहने पाओगे?
26. तुम अपक्की अपक्की तलवार पर भरोसा करते और घिनौने काम करते, और अपके अपके पड़ोसी की स्त्री को अशुद्ध करते हो; फिर क्या तुम उस देश के अधिक्कारनेी रहने पाओगे?
27. तू उन से यह कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध, नि:सन्देह जो लोग खण्डहरोंमें रहते हैं, वे तलवार से गिरेंगे, और जो खुले मैदान में रहता है, उसे मैं जीवजन्तुओं का आहार कर दूंगा, और जो गढ़ोंऔर गुफाओं में रहते हैं, वे मरी से मरेंगे।
28. और मैं उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा; और उसके बल का घमण्ड जाता रहेगा; और इस्राएल के पहाड़ ऐसे उजड़ेंगे कि उन पर होकर कोई न चलेगा।
29. सो जब मैं उन लोगोंके किए हुए सब घिनौने कामोंके कारण उस देश को उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
30. और हे मनुष्य के सन्तान, तेरे लोग भीतोंके पास और घरोंके द्वारोंमें तेरे विषय में बातें करते और एक दूसरे से कहते हैं, आओ, सुनो, कि यहोवा की ओर से कौन सा वचन निकलता है।
31. वे प्रजा की नाई तेरे पास आते और मेरी प्रजा बनकर तेरे साम्हने बैठकर तेरे वचन सुनते हैं, परन्तु वे उन पर चलते नहीं; मुंह से तो वे बहुत प्रेम दिखाते हैं, परन्तु उनका मन लालच ही में लगा रहता है।
32. और तू उनकी दृष्टि में प्रेम के मधुर गीत गानेवाले और अच्छे बजानेवाले का सा ठहरा है, क्योंकि वे तेरे वचन सुनते तो है, परन्तु उन पर चलते नहीं।
33. सो जब यह बात घटेगी, और वह निश्चय घटेगी ! तब वे जान लेंगे कि हमारे बीच एक भविष्यद्वक्ता आया या।
Chapter 34
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के चरवाहोंके विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके उन चरवाहोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, हाथ इस्राएल के चरवाहोंपर जो अपके अपके पेट भरते हैं ! क्या चरवाहोंको भेड़- बकरियोंका पेट न भरना चाहिए?
3. तुम लोग चक्कीं खाते, ऊन पहिनते और मोटे मोटे पशुओं को काटते हो; परन्तु भेड़-बकरियोंको तुम नहीं चराते।
4. तुम ने बीमारोंको बलवान न किया, न रोगियोंको चंगा किया, न घयलोंके घावोंको बान्धा, न निकाली हुई को फेर लाए, न खोई्र इुई को खोजा, परन्तु तुम ने बल और जबरदस्ती से अधिक्कारने चलाया है।
5. वे चरवाहे के न होने के कारण तितर-बितर हुई; और सब वनपशुओं का आहार हो गई।
6. मेरी भेड़-बकरियां तितर-बितर हुई है; वे सारे पहाड़ोंऔर ऊंचे ऊंचे टीलोंपर भटकती यीं; मेरी भेड़-बकरियां सारी पृय्वी के ऊपर तितर-बितर हुई; और न तो कोई उनकी सुधि लेता या, न कोई उनको ढूंढ़ता या।
7. इस कारण, हे चरवाहो, यहोवा का वचन सुनो।
8. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मेरी भेड़-बकरियां जो लुट गई, और मेरी भेड़-बकरियां जो चरवाहे के न होने के कारण सब वनपशुओं का आहार हो गई; और इसलिथे कि मेरे चरवाहोंने मेरी भेड़-बकरियोंकी सुधि नहीं ली, और मेरी भेड़- बकरियोंका पेट नहीं, अपना ही अपना पेट भरा;
9. इस कारण हे चरवाहो, यहोवा का वचन सुनो,
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, देखो, मैं चरवाहोंके विरुद्ध हूँ; और मैं उन से अपक्की भेड़-बकरियोंका लेखा लूंगा, और उनको फिर उन्हें चराने न दूंगा; वे फिर अपना अपना पेट भरने न पाएंगे। मैं अपक्की भेड़-बकरियां उनके मुंह से छुड़ाऊंगा कि आगे को वे उनका आहार न हों।
11. क्योंकि परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं आप ही अपक्की भेड़-करियोंकी सुधि दूंगा, और उन्हें ढूंढ़ूंगा।
12. जैसे चरवाहा अपक्की भेड़-बकरियोंमें से भटकी हुई को फिर से अपके फुण्ड में बटोरता है, वैसे ही मैं भी अपक्की भेड़-बकरियोंको बटोरूंगा; मैं उन्हे उन सब स्यानोंसे निकाल ले आऊंगा, जहां जहां वे बादल और घोर अन्धकार के दिन तितर-बितर हो गई हों।
13. और मैं उन्होंदेश देश के लोगोंमें से निकालूंगा, और देश देश से इाट्ठा करूंगा, और उन्हीं के निज भूमि में ले आऊंगा; और इस्राएल के पहाड़ोंपर ओर नालोंमें और उस देश के सब बसे हुए स्यानोंमें चराऊंगा।
14. मैं उन्हें अच्छी चराई में चराऊंगा, और इस्राएल के ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंपर उनको चराई मिलेगी; वहां वे अच्छी हरियाली में बैठा करेंगी, और इस्राएल के पहाड़ोंपर उत्तम से उत्तम चराई चरेंगी।
15. मैं आप ही अपक्की भेड़-बकरियोंका चरवाहा हूंगा, और मैं आप ही उन्हें बैठाऊंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. मैं खोई हुई को ढूंढ़ूंगा, और निकाली हुई को फेर लाऊंगा, और घायल के घाव बान्धूंगा, और बीमार को बलवान् करूंगा, और जो मोटी और बलवन्त हैं उन्हें मैं नाश करूंगा; मैं उनकी चरवाही न्याय से करूंगा।
17. और हे मेरे फुण्ड, तुम से परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो मैं भेड़-भेड़ के बीच और मेढ़ोंऔर बकरोंके बीच न्याय करता हूँ।
18. क्या तुम्हें यह छोटी बात जान पड़ती है कि तुम अच्छी चराई चर लो और शेष चराई को अपके पांवोंसे रौंदो; और क्या तुम्हें यह छोटी बात जान पड़ती है कि तुम निर्मल जल पी लो और शेष जल को अपके पांवोंसे गंदला करो?
19. और क्या मेरी भेड़-बकरियोंको तुम्हारे पांवोंसे रौंदे हुए को चरना, और तुम्हारे पांवोंसे गंदले किए हुए को पीना पकेगा?
20. इस कारण परमेश्वर यहोवा उन से योंकहता है, देखो, मैं आप मोटी और दुबली भेड़-बकरियोंके बीच न्याय करूंगा।
21. तुम जो सब बीमारोंको पांजर और कन्धे से यहां तक ढकेलते और सींग से यहां तक मारते हो कि वे तितर-बितर हो जाती हैं,
22. इस कारण मैं अपक्की भेड़-बकरियोंको छुड़ाऊंगा, और वे फिर न लुटेंगी, और मैं भेड़-भेड़ के और बकरी-बकरी के बीच न्याय करूंगा।
23. और मैं उन पर ऐसा एक चरवाहा ठहराऊंगा जो उनकी चरवाही करेगा, वह मेरा दास दाऊद होगा, वही उनको चराएगा, और वही उनका चरवाहा होगा।
24. और मैं, यहोवा, उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और मेरा दास दाऊद उनके बीच प्रधान होगा; मुझ यहोवा ही ने यह कहा है।
25. मैं उनके साय शान्ति की वाचा बान्धूंगा, और दुष्ट जन्तुओं को देश में न रहने दूंगा; सो वे जंगल में निडर रहेंगे, और वन में सोएंगे।
26. और मैं उन्हें और अपक्की पहाड़ी के आस पास के स्यानोंको आशीष का कारण बना दूंगा; और मेंह को मैं ठीक समय में बरसाया करूंगा; और वे आशीषोंकी वर्षा होंगी।
27. और मैदान के वृझ फलेंगे और भूमि अपक्की उपज उपजाएगी, और वे अपके देश में निडर रहेंगे; जब मैं उनके जूए को तोड़कर उन लोगोंके हाथ से छुड़ाऊंगा, जो उन से सेवा कराते हैं, तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
28. वे फिर जाति-जाति से लूटे न जाएंगे, और न वनपशु उन्हें फाड़ खाएंगे; वे निडर रहेंगे, और उनको कोई न डराएगा।
29. और मैं उनके लिथे महान बारिथें उपजाऊंगा, और वे देश में फिर भूखोंन मरेंगे, और न जाति-जाति के लोग फिर उनकी निन्दा करेंगे।
30. और वे जानेंगे कि मैं परमेश्वर यहोवा, उनके संग हूँ, और वे जो इस्राएल का घराना है, वे मेरी प्रजा हैं, मुझ परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हैं।
31. तुम तो मेरी भेड़-बकरियां, मेरी चराई की भेड़-बकरियां हो, तुम तो मनुष्य हो, और मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 35
1. यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुंह सेईर पहाड़ की ओर करके उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर,
3. और उस से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे सेईर पहाड़, मैं तेरे विरुद्ध हूँ; और अपना हाथ तेरे विरुद्ध बढ़ाकर तुझे उजाड़ ही उजाड़ कर दूंगा।
4. मैं तेरे नगरोंको खण्डहर कर दूंगा, और तू उजाड़ हो जाएगा; तब तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।
5. क्योंकि तू इस्राएलियोंसे युग-युग की शत्रुता रखता या, और उनकी विपत्ति के समय जब उनके अधर्म के दण्ड का समय पहुंचा, तब उन्हें तलवार से मारे जाने को दे दिया।
6. इसलिथे परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगन्ध, मैं तुझे हत्या किए जाने के लिथे तैयार करूंगा ओर खून तेरा पीछा करेगा; तू तो खून से न घिनाता या, अस कारण खून तेरा पीछा करेगा।
7. इस रीति मैं सेईर पहाड़ को उजाड ही उजाड़ कर दूंगा, और जो उस में आता-जाता हो, मैं उसको नाश करूंगा।
8. और मैं उसके पहाड़ोंको मारे हुओं से भर दूंगा; तेरे टीलों, तराइयोंऔर सब नालोंमें तलवार से मारे हुए गिरेंगे !
9. मैं तुझे युग युग के लिथे उजाड़ कर दूंगा, और तेरे नगर फिर न बसेंगे। तब तुम जान लागे कि मैं यहोवा हूँ।
10. क्योंकि तू ने कहा है, कि थे दोनोंजातियां और थे दोनोंदेश मेरे होंगे; और हम ही उनके स्वामी हो जाएंगे, यद्यपि यहोवा वहां या।
11. इस कारण, परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की सौगनध, तेरे कोप के अनुसार, और जो जलजलाहट तू ने उन पर अपके वैर के कारण की है, उसी के अनुसार मैं तुझ से बर्ताव करूंगा, और जब मैं तेरा न्याय करूं, तब तुम में अपके को प्रगट करूंगा।
12. और तू जानेगा, कि मुझ यहोवा ने तेरी सब तिरस्कार की बातें सुनी हैं, जो तू ने इस्राएल के पहाड़ोंके विषय में कहीं, कि, वे तो उजड़ गए, वे हम ही को दिए गए हैं कि हम उन्हें खा डालें।
13. तुम ने अपके मुुंह से मेरे विरुद्ध बड़ाई मारी, और मेरे विरुद्ध बहुत बातें कही हैं; इसे मैं ने सुना है।
14. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब पृय्वी भर में आनन्द होगा, तब मैं तुझे उजाड़ करूंगा।
15. तू इस्राएल के घराने के निज भाग के उजड़ जाने के कारण आनन्दित हुआ, सो मैं भी तुझ से वैसा ही करूंगा; हे सेईर पहाड़, हे एदोम के सारे देश, तू उजाड़ हो जाएगा। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 36
1. फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के पहाड़ोंसे भविष्यद्वाणी करके कह, हे इस्राएल के पहाड़ो, यहोवा का वचन सुनो।
2. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, शत्रु ने तो तुम्हारे विषय में कहा है, आहा ! प्राचीनकाल के ऊंचे स्यान अब हमारे अधिक्कारने में आ गए।
3. इस कारण भविष्यद्वाणी करके कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, लोगोंने जो तुम्हें उजाड़ा और चारोंओर से तुम्हें ऐसा निगल लिया कि तुम बची हुई जातियोंका अधिक्कारने हो जाओ, और लुतरे तुम्हारी चर्चा करते और साधारण लोग तुम्हारी निन्दा करते हैं;
4. इस कारण, हे इस्राएल के पहाड़ो, परमेश्वर यहोवा का वचन सुनो, परमेश्वर यहोवा तुम से योंकहता है, अर्यात् पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंसे और नालोंऔर तराइयोंसे, और उजड़े हुए खण्डहरोंऔर निर्जन नगरोंसे जो चारोंओर की बची हुई जातियोंसे लुट गए और उनके हंसने के कारण हो गए हैं;
5. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, निश्चय मैं ने अपक्की जलन की आग में बची हुई जातियोंके और सारे एदोम के विरुद्ध में कहा है कि जिन्होंने मेरे देश को अपके मन के पूरे आनन्द और अभिमान से अपके अधिक्कारने में किया है कि वह पराया होकर लूटा जाए।
6. इस कारण इस्राएल के देश के विषय में भविष्यद्वाणी करके पहाड़ों, पहाडिय़ों, नालों, और तराइयोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, तुम ने जातियोंकी निन्दा सही है, इस कारण मैं अपक्की बड़ी जलजलाहट से बोला हूँ।
7. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं ने यह शपय खाई है कि नि:सन्देह तुम्हारे चारोंओर जो जातियां हैं, उनको अपक्की निन्दा आप ही सहनी पकेगी।
8. परन्तु, हे इस्राएल के पहाड़ो, तुम पर डालियां पनपेंगी और उनके फल मेरी प्रजा इस्राएल के लिथे लगेंगे; क्योंकि उसका लौट आना निकट है।
9. और देखो, मैं तुम्हारे पझ में हूँ, और तुम्हारी ओर कृपादृष्टि करूंगा, और तुम जोते-बोए जाओगे;
10. और मैं तुम पर बहुत मनुष्य अर्यात् इस्राएल के सारे घराने को बसाऊंगा; और नगर फिर बसाए और खण्डहर फिर बनाएं जाएंगे।
11. और मैं तुम पर मनुष्य और पशु दोनोंको बहुत बढ़ाऊंगा; और वे बढ़ेंगे और फूलें-फलेंगे; और मैं तुम को प्राचीनकाल की नाई बसाऊंगा, और पहिले से अधिक तुम्हारी भलाई करूंगा। तब तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
12. और मैं ऐसा करूंगा कि मनुष्य अर्यत् मेरी प्रजा इस्राएल तुम पर चल-फिरेगी; और वे तुम्हारे स्वामी होंगे, और तुम उनका निज भाग होंगे, और वे फिर तुम्हारे कारण निर्वश न हो जाएंगे।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, जो लोग तुम से कहा करते हैं, कि तू मनुष्योंका खानेवाला है, और अपके पर बसी हुई जाति को तिर्वश कर देता है,
14. सो फिर तू मनुष्योंको न खएगा, और न अपके पर बसी हुई जाति को निर्वश करेगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
15. और मैं फिर जाति-जाति के लोगोंसे तेरी निन्दा न सुनवाऊंगा, और तुझे जाति-जाति की ओर से फिर नामधराई न सहनी पकेगी, और तुझ पर बसी हुई जाति को तू फिर ठोकर न खिलाएगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
17. हे मनुष्य के सन्तान, जब इस्राएल का घराना अपके देश में रहता या, तब अपक्की चालचलन और कामोंके द्वारा वे उसको अशुद्ध करते थे; उनकी चालचलन मुझे ऋतुमती की अशुद्धता सी जान पड़ती यी।
18. सो जो हत्या उन्होंने देश में की, और देश को अपक्की मूरतोंके द्वारा अशुद्ध किया, इसके कारण मैं ने उन पर अपक्की जलजलाहट भड़काई।
19. और मैं ने उन्हें जाति-जाति में तितर-बितर किया, और वे देश देश में छितर गए; उनके चालचलन और कामोंके अनुसार मैं ने उनको दण्ड दिया।
20. परन्तु जब वे उन जातियोंमें पहुंचे जिन में वे पहुंचाए गए, तब उन्होंने मेरे पवित्र नाम को अपवित्र ठहराया, क्योंकि लोग उनके विषय में यह कहने लगे, थे यहोवा की प्रजा हैं, पर्रनतु उसके देश से निकाले गए हैं।
21. परन्तु मैं ने अपके पवित्र नाम की सुधि ली, जिसे इस्राएल के घराने ने उन जातियोंके बीच अपवित्र ठहराया या, जहां वे गए थे।
22. इस कारण तू इस्राएल के घराने से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने, मैं इस को तुम्हारे निमित्त नहीं, परन्तु अपके पवित्र नाम के निमित्त करता हूँ जिसे तुम ने उन जातियोंमें अपवित्र ठहराया जहां तुम गए थे।
23. और मैं अपके बड़े नाम को पवित्र ठहराऊंगा, जो जातियोंमें अपवित्र ठहराया गया, जिसे तुम ने उनके बीच अपवित्र किया; और जब मैं उनकी दृष्टि में तुम्हारे बीच पवित्र ठहरूंगा, तब वे जातियां जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
24. मैं तुम को जातियोंमें से ले लूंगा, और देशोंमें से इकट्ठा करूंगा; और तुम को तुम्हारे निज देश में पहुंचा दूंगा।
25. मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूंगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतोंसे शुद्ध करूंगा।
26. मैं तुम को नया मन दूंगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा; और तुम्हारी देह में से पत्यर का ह्रृदय निकालकर तुम को मांस का ह्रृदय दूंगा।
27. और मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूंगा कि तुम मेरी विधियोंपर चलोगे और मेरे नियमोंको मानकर उनके अनुसार करोगे।
28. तुम उस देश में बसोगे जो मैं ने तुम्हारे पितरोंको दिया या; और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूंगा।
29. और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता से छुड़ाऊंगा, और अन्न उपजने की आज्ञा देकर, उसे बढ़ाऊंगा और तुम्हारे बीच अकाल न डालूंगा।
30. मैं वृझोंके फल और खेत की उपज बढ़ाऊंगा, कि जातियोंमें अकाल के कारण फिर तुम्हारी नामधराई न होगी।
31. तब तुम अपके बुरे चालचलन और अपके कामोंको जो अच्छे नहीं थे, स्मरण करके अपके अधर्म और घिनौने कामोंके कारण अपके आप से घृणा करोगे।
32. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, तुम जान जो कि मैं इसको तुम्हारे निमित्त नहीं करता। हे इस्राएल के घराने अपके चालचलन के विषय में लज्जित हो और तुम्हारा मुख काला हो जाए।
33. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जब मैं तुम को तुम्हारे सब अधर्म के कामोंसे शुद्ध करूंगा, तब तुम्हारे नगरोंको बसाऊंगा; और तुम्हारे खण्डहर फिर बनाए जाएंगे।
34. और तुम्हारा देश जो सब आने जानेवालोंके साम्हने उजाड़ है, वह उजाड़ होने की सन्ती जोता बोया जाएगा।
35. और लोग कहा करेंगे, यह देश जो उजाड़ या, सो एदेन की बारी सा हो गया, और जो नगर खण्डहर और उजाड़ हो गए और ढाए गए थे, सो गढ़वाले हुए, और बसाए गए हैं।
36. तब जो जातियां तुम्हारे आस पास बची रहेंगी, सो जान लेंगी कि मुझ यहोवा ने ढाए हुए को फिर बनाया, और उजाड़ में पेड़ रोपे हैं, मुझ यहोवा ने यह कहा, और ऐसा ही करूंगा।
37. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, इस्राएल के घराने में फिर मुझ से बिनती की जाएगी कि मैं उनके लिथे यह करूं; अर्यात् मैं उन में मनुष्योंकी गिनती फोड़-बकरियोंकी नाई बढ़ाऊं।
38. जैसे पवित्र समयोंकी भेड़-बकरियां, अर्यात्नियत पवॉं के समय यरूशलेम में की भेड़-बकरियां अनगिनित होती हैं वैसे ही जो नगर अब खण्ढहर हैं वे अनगिनित मनुष्योंके फुण्डोंसे भर जाएंगे। तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 37
1. यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और वह मुझ में अपना आत्मा समवाकर बाहर ले गया और मुझे तराई के बीच खड़ा कर दिया; वह तराई हड्डियोंसे भरी हुई यी।
2. तब उस ने मुझे उनके चारोंओर घुमाया, और तराई की तह पर बहुत ही हड्डियोंयीं; और वे बहुत सूखी यीं।
3. तब उस ने मुझ से पूछा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या थे हड्डियां जी सकती हैं? मैं ने कहा, हे परमेश्वर यहोवा, तू ही जानता है।
4. तब उस ने मुझ से कहा, इन हड्डियोंसे भविष्यद्वाणी करके कह, हे सूखी हड्डियो, यहोवा का वचन सुनो।
5. परमेश्वर यहोवा तुम हड्डियोंसे योंकहता हे, देखो, मैं आप तुम में सांस समवाऊंगा, और तुम जी उठोगी।
6. और मैं तुम्हारी नसें उपजाकर मांस चढ़ाऊंगा, और तुम को चमड़े से ढांपूंगा; और तुम में सांस समवाऊंगा और तुम जी जाओगी; और तुम जान लोगी कि मैं यहोवा हूँ।
7. इस आज्ञा के अनुसार मैं भविष्यद्वाणी करने लगा; और मैं भविष्यद्वाणी कर ही रहा या, कि एक आहट आई, और भुईडोल हुआ, और वे हड्डियां इकट्ठी होकर हड्डी से हड्डी जुड़ गई।
8. और मैं देखता रहा, कि उन में नसें उत्पन्न हुई और मांस चढ़ा, और वे ऊपर चमड़े से ढंप गई; परन्तु उन में सांस कुछ न यी।
9. तब उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान सांस से भविष्यद्वाणी कर, और सांस से भविष्यद्वाणी करके कह, हे सांस, परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि चारोंदिशाओं से आकर इन घात किए हुओं में समा जा कि थे जी उठें।
10. उसकी इस आज्ञा के अनुसार मैं ने भविष्यद्वाणी की, तब सांस उन में आ गई, ओर वे जीकर अपके अपके पांवोंके बल खड़े हो गए; और एक बहुत बड़ी सेना हो गई।
11. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, थे हड्डियां इस्राएल के सारे घराने की उपमा हैं। वे कहत हैं, हमारी हड्डियां सूख गई, और हमारी आशा जाती रही; हम पूरी रीति से कट चूके हैं।
12. इस कारण भविष्यद्वाणी करके उन से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे मेरी प्रजा के लोगो, देखो, मैं तुमहारी कबरें खोलकर तुम को उन से निकालूंगा, और इस्राएल के देश में पहुंचा दूंगा।
13. सो जब मैं तुमहारी कबरें खोलूं, और तुम को उन से निकालूं, तब हे मेरी प्रजा के लोगो, तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ।
14. और मैं तुम में अपना आत्मा समवाऊंगा, और तुम जीओगे, और तुम को तुम्हारे निज देश में बसाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने यह कहा, और किया भी है, यहोवा की यही वाणी है।
15. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
16. हे मनुष्य के सन्तान, एक लकड़ी लेकर उस पर लिख, यहूदा की और उसके संगी इस्राएलियोंकी; तब दूसरी लकड़ी लेकर उस पर लिख, यूसुफ की अर्यात् गप्रैम की, और उसके संगी इस्राएलियोंकी लकड़ी।
17. फिर उन लकडिय़ोंको एक दूसरी से जोड़कर एक ही कर ले कि वे तेरे हाथ में एक ही लकड़ी बन जाएं।
18. और जब तेरे लोग तुझ से पूछें, क्या तू हमें न बताएगा कि इन से तेरा क्या अभिप्राय है?
19. तब उन से कहना, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं यूसुफ की लकड़ी को जो एप्रैम के हाथ में है, और इस्राएल के जो गोत्र उसके संगी हैं, उनको लेकर यहूदा की लकड़ी से जोड़कर उसके साय एक ही लकड़ी कर दूंगा; और दोनोंमेरे हाथ में एक ही लकड़ी बनेंगी।
20. और जिन लकडिय़ोंपर तू ऐसा लिखेगा, वे उनके साम्हने तेरे हाथ में रहें।
21. और तू उन लोगोंसे कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देखो, मैं इस्राएलियोंको उन जातियोंमें से लेकर जिन में वे चले गए हैं, चारोंओर से इकट्ठा करूंगा; और उनके निज देश में पहुचाऊंगा।
22. और मैं उनको उस देश अर्यात् इस्राएल के पहाड़ोंपर एक ही जाति कर दूंगा; और उन सभोंका एक ही राजा होगा; और वे फिर दो न रहेंगे और न दो राज्योंमें कभी बटेंगे।
23. वे फिर अपक्की मूरतों, और घिनौने कामोंवा अपके किसी प्रकार के पाप के द्वारा अपके को अशुद्ध न करेंगे; परन्तु मैं उनको उन सब बस्तियोंसे, जहां वे पाप करते थे, निकालकर शुद्ध रूिंगा, और वे मेरी प्रजा होंगे, और मैं उनका परमेश्वर हूंगा।
24. मेरा दास दाऊद उनका राजा होगा; सो उन सभोंका एक ही चरवाहा होगा। वे मेरे नियमोंपर चलेंगे और मेरी विधियोंको मानकर उनके अनुसार चलेंगे।
25. वे उस देश में रहेंगे जिसे मैं ने अपके दास याकूब को दिया या; और जिस में तुम्हारे पुरखा रहते थे, उसी में वे और उनके बेटे-पोते सदा बसे रहेंगे; और मेरा दास दाऊद सदा उनका प्रधान रहेगा।
26. मैं उनके साय शान्ति की वाचा बान्धूंगा; वह सदा की वाचा ठहरेगी; और मैं उन्हें स्यान देकर गिनती में बढ़ाऊंगा, और उनके बीच अपना पवित्रस्यान सदा बनाए रखूंगा।
27. मेरे निवास का तम्बू उनके ऊपर तना रहेगा; और मैं उनका परमेश्वर हूंगा, और वे मेरी प्रजा होंगे।
28. और जब मेरा पवित्रस्यान उनके बीच सदा के लिथे रहेगा, तब सब जातियां जान लेंगी कि मैं यहोवा इस्राएल का पवित्र करनेवाला हूँ।
Chapter 38
1. फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा,
2. हे मनुष्य के सन्तान, अपना मुंह मागोग देश के गोग की ओर करके, जो रोश, मेशेक और तूबल का प्रधान है, उसके विरुद्ध भविष्यद्वाणी कर।
3. और यह कह, हे गोग, हे रोश, मेशेक, और तूबल के प्रधान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, देख, मैं तेरे विरुद्ध हूँ।
4. मैं तुझे घुमा ले आऊंगा, और तेरे जबड़ोंमें आंकड़े डालकर तुझे निकालूंगा; और तेरी सारी सेना को भी अर्यात् घोड़ोंऔर सवारोंको जो सब के सब कवच पहिने हुए एक बड़ी भीड़ हैं, जो फरी और ढाल लिए हुए सब के सब तलवार चलानेवाले होंगे;
5. और उनके संग फारस, कूश और पूत को, जो सब के सब ढाल लिए और टोप लगाए होंगे;
6. और गोमेर और उसके सारे दलोंको, और उत्तर दिशा के दूर दूर देशोंके तोगर्मा के घराने, और उसके सारे दलोंको निकालूंगा; तेरे संग बहुत से देशोंके लोग होंगे।
7. इसलिथे तू तैयार हो जा; तू और जितनी भीड़ तेरे पास इकट्ठी हों, तैयार रहना, और तू उनका अगुवा बनना।
8. बहुत दिनोंके बीतने पर तेरी सुधि ली जाएगी; और अन्त के वषॉं में तू उस देश में आएगा, जो तलवार के वश से छूटा हुआ होगा, और जिसके निवासी बहुत सी जातियोंमें से इकट्ठे होंगे; अर्यात् तू इस्राएल के पहाड़ोंपर आएगा जो निरन्तर उजाड़ रहे हैं; परन्तु वे देश देश के लोगोंके वश से छुड़ाए जाकर सब के सब निडर रहेंगे।
9. तू चढ़ाई करेगा, और आंधी की नाई आएगा, और अपके सारे दलोंऔर बहुत देशोंके लोगोंसमेत मेघ के समान देश पर छा जाएगा।
10. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, उस दिन तेरे मन में ऐसी ऐसी बातें आएंगी कि तू एक बुरी युक्ति भी निकालेगा;
11. और तू कहेगा कि मैं बिन शहरपनाह के गांवोंके देश पर चढ़ाई करूंगा; मैं उन लोगोंके पास जाऊंगा जो चैन से निडर रहते हैं; जो सब के सब बिना शहरपनाह ओर बिना बेड़ोंऔर पल्लोंके बसे हुए हैं;
12. ताकि छीनकर तू उन्हें लूटे और अपना हाथ उन खण्डहरोंपर बढ़ाए जो फिर बसाए गए, और उन लोगोंके विरुद्ध फेरे जो जातियोंमें से इाट्ठे हुए थे और पृय्वी की नाभी पर बसे हुए ढोर और और सम्पत्ति रखते हैं।
13. शबा और ददान के लोग और तशींश के व्योपारी अपके देश के सब जवान सिंहोंसमेत तुझ से कहेंगे, क्या तू लूटने को आता है? क्या तू ने धन छीनने, सोना-चाँदी उठाने, ढोर और और सम्पत्ति ले जाने, और बड़ी लूट अपना लेने को अपक्की भीड़ इकट्टी की है?
14. इस कारण, हे मनुष्य के सन्तान, भविष्यद्वाणी करके गोग से कह, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस समय मेरी प्रजा इस्राएल निडर बसी रहेगी, क्या तुझे इसका समाचार न मिलेगा?
15. और तू उत्तर दिशा के दूर दूर स्यानोंसे आएगा; तू और तेरे साय बहुत सी जातियोंके लोग, जो सब के सब घोड़ोंपर चढ़े हुए होंगे, अर्यात् एक बड़ी भीड़ और बलवन्त सेना।
16. और जैसे बादल भूमि पर छा जाता है, वैसे ही तू मेरी प्रजा इस्राएल के देश पर ऐसे चढ़ाई करेगा। इसलिथे हे गोग, अन्त के दिनोंमें ऐसा ही होगा, कि मैं तुझ से अपके देश पर इसलिथे चढ़ाई कराऊंगा, कि जब मैं जातियोंके देखते तेरे द्वारा अपके को पवित्र ठहराऊं, तब वे मुझे पहिचान लेंगे।
17. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, क्या तू वही नहीं जिसकी चर्चा मैं ने प्राचीनकाल में अपके दासोंके, अर्यात् इस्राएल के उन भविष्यद्वक्ताओं द्वारा की यी, जो उन दिनोंमें वषॉं तक यह भविष्यद्वाणी करते गए, कि यहोवा गोग से इस्राएलियोंपर चढ़ाई कराएगा?
18. और जिस दिन इस्राएल के देश पर गोग चढ़ाई करेगा, उसी दिन मेरी जलजलाहट मेरे मुख से प्रगट होगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
19. और मैं ने जलजलाहट और क्रोध की आग में कहा कि नि:सन्देह उस दिन इस्राएल के देश में बड़ा भुईडोल होगा।
20. और मेरे दर्शन से समुद्र की मछलियां और आकाश के पक्की, मैदान के पशु और भूमि पर जितने जीवजन्तु रेंगते हैं, और भूमि के ऊपर जितने मनुष्य रहते हैं, सब कांप उठेंगे; और पहाड़ गिराए जाएंगे; और चढ़ाइयां नाश होंगी, और सब भीतें गिरकर मिट्टी में मिल जाएंगी।
21. परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है कि मैं उसके विरुद्ध तलवार चलाने के लिथे अपके सब पहाड़ोंको पुकारूंगा और हर एक की तलवार उसके भाई के विरुद्ध उठेगी।
22. और मैं मरी और इून के द्वारा उस से मुकद्दमा लड़ूंगा; और उस पर और उसके दलोंपर, और उन बहुत सी जातियोंपर जो उसके पास होंगी, मैं बड़ी फड़ी लगाऊंगा, और ओले और आग और गन्धक बरसाऊंगा।
23. इस प्रकार मैं अपके को महान और पवित्र ठहराऊंगा और बहुत सी जातियोंके साम्हने अपके को प्रगट करूंगा। तब वे जान लेंगी कि मैं यहोवा हूँ।
Chapter 39
1. फिर हे मनुष्य के सन्तान, गोग के विरुद्ध भविष्यद्वाणी करके यह कह, हे गोग, हे रोश, मेशेक और तूबल के प्रधान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं तेरे विरुद्ध हूँ।
2. मैं तुझे घुमा ले आऊंगा, और उत्तर दिशा के दूर दूर देशोंसे चढ़ा ले आऊंगा, और इस्राएल के पहाड़ोंपर पहुंचाऊंगा।
3. वहां मैं तेरा धनुष तेरे बाएं हाथ से गिराऊंगा, और तेरे तीरोंको तेरे दहिने हाथ से गिरा दूंगा।
4. तू अपके सारे दलोंऔर अपके साय की सारी जातियोंसमेत इस्राएल के पहाड़ोंपर मार डाला जाएगा; मैं तुझे भांति भांति के मांसाहारी पझ्ियोंऔर वनपशुओं का आहार कर दूंगा।
5. तू खेत में गिरेगा, क्योंकि मैं ही ने ऐसा कहा है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
6. मैं मागोग में और द्वीपोंके निडर रहनेवालोंके बीच आग लगाऊंगा; और वे जान लेंगे कि मैं यहोवा हूँ।
7. और मैं अपक्की प्रजा ईस्राएल के बीच अपना नाम प्रगट करूंगा; और अपना पवित्र नाम फिर अपवित्र न होने दूंगा; तब जाति-जाति के लोग भी जान लेंगे कि मैं यहोवा, इस्राएल का पवित्र हूँ।
8. यह घटना हुआ चाहती है और वह हो जाएगी, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है। यह वही दिन है जिसकी चर्चा मैं ने की है।
9. तब इस्राएल के नगरोंके रहनेवाले निकलेंगे और हयियारोंमें आग लगाकर जला देंगे, ढाल, और फरी, धनुष, और तीर, लाठी, बछ, सब को वे सात वर्ष तक जलाते रहेंगे।
10. और इसके कारण वे मैदान में लकड़ी न बीनेंगे, न जंगल में काटेंगे, क्योंकि वे हयियारोंही को जलाया करेंगे; वे अपके लूटनेवाले को लूटेंगे, और अपके छीननेवालोंसे छीनेंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
11. उस समय मैं गोग को इस्राएल के देश में कब्रिस्तान दूंगा, वह ताल की पूर्व ओर होगा; वह आने जानेवालोंकी तराई कहलाएगी, और आने जानेवालोंको वहां रुकना पकेगा; वहां सब भीड़ समेत गोग को मिट्टी दी जाएगी और उस स्यान का नाम गोग की भीड़ की तराई पकेगा।
12. इस्राएल का घराना उनको सात महीने तक मिट्टी देता रहेगा ताकि अपके देश को शुद्ध करे।
13. देश के सब लोग मिलकर उनको मिट्टी देंगे; और जिस समय मेरी महिमा होगी, उस समय उनका भी नाम बड़ा होगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
14. तब वे मनुष्योंको नियुक्त करेंगे, जो निरन्तर इसी काम में लगे रहेंगे, अर्यात् देश में घूम-घामकर आने जानेवालोंके संग होकर देश को शुद्ध करने के लिथे उनको जो भूमि के ऊपर पके हों, मिट्टी देंगे; और सात महीने के बीतने तक वे ढूंढ़ ढूंढ़कर यह काम करते रहेंगे।
15. और देश में आने जानेवालोंमें से जब कोई मनुष्य की हड्डी देखे, तब उसके पास एक चिन्ह खड़ा करेगा, यह उस समय तक बना रहेगा जब तक मिट्टी देनेवाले उसे गोग की भीड़ की तराई में गाड़ न दें।
16. वहां के नगर का नाम भी “हमोना है”। योंदेश शुद्ध किया जाएगा।
17. फिर हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा योंकहता हे, भांति भांति के सब पझियोंऔर सब वनपशुओं को आज्ञा दे, इकट्ठे होकर आओ, मेरे इस बड़े यज्ञ में जो मैं तुम्हारे लिथे इस्राएल के पहाड़ोंपर करता हूँ, हर एक दिशा से इकट्ठे हो कि तुम मांस खाओ और लोहू पीओ।
18. तुम शूरवीरोंका मांस खाओगे, और पृय्वी के प्रधानोंका लोहू पीओगे और मेढ़ों, मेम्नों, बकरोंऔर बैलोंका भी जो सब के सब बाशान के तैयार किए हुए होंगे।
19. और मेरे उस भोज की चक्कीं से जो मैं तुम्हारे लिथे करता हूँ, तुम खाते-खाते अधा जाओगे, और उसका लोहू मीते-पीते छक जाओगे।
20. तुम मेरी मेज़ पर घाड़ों, सवारों, शूरवीरों, और सब प्रकार के योद्धाओं से तृप्त होंगे, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
21. और मैं जाति-जाति के बीच अपक्की महिमा प्रगट करूंगा, और जाति-जाति के सब लोग मेरे न्याय के काम जो मैं करूंगा, और मेरा हाथ जो उन पर पकेगा, देख लेंगे।
22. उस दिन से आगे इस्राएल का घराना जान लेगा कि यहोवा हमारा परमेश्वर है।
23. और जाति-जाति के लोग भी जान लेंगे कि इस्राएल का घराना अपके अधर्म के कारण बंधुआई में गया या; क्योंकि उन्होंने मुझ से ऐसा विश्वासघात किया कि मैं ने अपना मुंह उन से फेर लिया और अनको उनके वैरियोंके वश कर दिया, और वे सब तलवार से मारे गए।
24. मैं ने उनकी अशुद्धता और अपराधोंही के अनुसार उन से बर्ताव करके उन से अपना मुंह फेर लिया या।
25. इसलिथे परमेश्वर यहोवा योंकहता है, अब मैं याकूब को बंधुआई से फेर लाऊंगा, और इस्राएल के सारे घराने पर दया करूंगा; और अपके पवित्र नाम के लिथे मुझे जलन होगी।
26. तब उस सारे विश्वासघात के कारण जो उन्होंने मेरे विरुद्ध किया वे लज्जित होंगे; और अपके देश में निडर रहेंगे; और कोई उनको न डराएगा।
27. और जब मैं उनको जाति-जाति के बीच से फेर लाऊंगा, और उन शत्रुओं के देशोंसे इकट्ठा करूंगा, तब बहुत जातियोंकी दृष्टि में उनके द्वारा पवित्र ठहरूंगा।
28. और तब वे जान लेंगे कि यहोवा हमारा परमेश्वर है, क्योंकि मैं ने उनको जाति-जाति में बंधुआ करके फिर उनके निज देश में इकट्ठा किया है। मैं उन में से किसी को फिर परदेश में न छोडूंगा,
29. और उन से अपना मुंह फिर कभी न फेर लूंगा, क्योंकि मैं ने इस्राएल के घराने पर अपना आत्मा उण्डेला है, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 40
1. हमारी बंधुआई के पच्चीसवें वर्ष अर्यात् यरूशलेम नगर के ले लिए जाने के बाद चौदहवें वर्ष के पहिले महीने के दसवें दिन को, यहोवा की शक्ति मुझ पर हुई, और उस ने मुझे वहां पहुंचाया।
2. अपके दर्शनोंमें परमेश्वर ने मुझे इस्राएल के देश में पहुंचाया और वहां एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर खड़ा किया, जिस पर दक्खिन ओर मानो किसी नगर का आकार या।
3. जब वह मुझे वहां ले गया, तो मैं ने क्या देखा कि पीतल का रूप घरे हुए और हाथ में सन का फीता और मापके का बांस लिए हुए एक पुरुष फाटक में खड़ा है।
4. उस पुरुष ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, अपक्की आंखोंसे देख, और अपके कानोंसे सुन; और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊंगा उस सब पर ध्यान दे, क्योंकि तू इसलिथे यहां पहुंचाया गया है कि मैं तुझे थे बातें दिखाऊं; और जो कुछ तू देखे वह इस्राएल के घराने को बताए।
5. और देखो, भवन के बाहर चारोंओर एक भीत यी, और उस पुरुष के हाथ में मापके का बांस या, जिसकी लम्बाई ऐसे छ:हाथ की यी जो साधारण हाथोंसे चौवा भर अधिक है; सो उस ने भीत की मोटाई मापकर बांस भर की पाई, फिर उसकी ऊंचाई भी मापकर बांस भर की पाई।
6. तब वह उस फाटक के पास आया जिसका मुंह पूर्व की ओर या, और उसकी सीढ़ी पर चढ़कर फाटक की दोनोंडेवढिय़ोंकी चौड़ाई मापकर एक एक बांस भर की पाई।
7. और पहरेवाली कोटरियां बांस भर लम्बी और बांस भर चौड़ी यी; और दो कोठरियोंका अन्तर पांच हाथ का या; और फाटक की डेवढ़ी जो फाटक के ओसारे के पास भवन की ओर यी, वह भी बांस भर की यी।
8. तब उस ने फाटक का वह ओसारा जो भवन के साम्हने या, मापकर बांस भर का पाया।
9. और उस ने फाटक का ओसारा मापकर आठ हाथ का पाया, और उसके खम्भे दो दो हाथ के पाए, और फाटक का ओसारा भवन के साम्हने या।
10. और पूवीं फाटक की दोनोंओर तीन तीन पहरेवाली कोठरियां यीं जो सब एक ही माप की यीं, और दोनोंओर के खम्भे भी एक ही माप के थे।
11. फिर उस न फाटक के द्वार की चौड़ाई मापकर दस हाथ की पाई; और फाटक की लम्बाई मापकर तेरह हाथ की पाई।
12. और दोनोंओर की पहरेवाली कोठरियोंके आगे हाथ भर का स्यान या और दोनोंओर कोठरियां छ:छ: हाथ की यीं।
13. फिर उस ने फाटक को एक ओर की पहरेवाली कोठरी की छत से लेकर दूसरी ओर की पहरेवाली कोठरी की छत तक मापकर पच्चीस हाथ की दूरी पाई, और द्वार आम्हने-साम्हने थे।
14. फिर उस ने साठ हाथ के खम्भे मापे, और आंगन, फाटक के आस पास, खम्भोंतक या।
15. ओर फाटक के बाहरी द्वार के आगे से लेकर उसके भीतरी ओसारे के आगे तक पचास हाथ का अन्तर या।
16. और पहरेवाली कोठरियोंमें, और फाटक के भीतर चारोंओर कोठरियोंके बीच के खम्भे के बीच बीच में फिलमिलीदार खिड़कियां यी, और खम्भोंके ओसारे में भी वैसी ही यी; और फाटक के भीतर के चारोंओर खिड़कियां यीं; और हर एक खम्भे पर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
17. तब वह मुझे बाहरी आंगन में ले गया; और उस आंगन के चारोंओर कोठरियां यीं; और एक फर्श बना हुआ या; जिस पर तीस कोठरियां बनी यीं।
18. और यह फर्श अर्यात् निचला फर्श फाटकोंसे लगा हुआ या और उनकी लम्बाई के अनुसार या।
19. फिर उस ने निचले फाटक के आगे से लेकर भीतरी आंगन के बाहर के आगे तक मापकर सौ हाथ पाए; वह पूर्व और उत्तर दोनोंओर ऐसा ही या।
20. तब बाहरी आंगन के उत्तरमुखी फाटक की लम्बाई और चौड़ाई उस ने मापी।
21. और उसकी दोनोंओर तीन तीन पहरेवााली कोठरियां यीं, और इसके भी खम्भोंके ओसारे की माप पहिले फाटक के अनुसार यी; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
22. और इसकी भी खिड़कियोंऔर खम्भोंके ओसारे और खजूरोंकी माप पूर्वमुखी फाटक की सी यी; और इस पर चढ़ने को सात सीढिय़ां यीं; और उनके साम्हने इसका ओसारा या।
23. और भीतरी आंगन की उत्तर और पूर्व ओर दूसरे फाटकोंके साम्हने फाटक थे और उस ने फाटकोंकी दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
24. फिर वह मुझे दक्खिन ओर ले गया, और दक्खिन ओर एक फाटक या; और उस ने इसके खम्भे और खम्भोंका ओसारा मापकर इनकी वैसी ही माप पाई।
25. और उन खिड़कियोंकी नाई इसके और इसके खम्भोंके ओसारोंके चारोंओर भी खिड़कियां यीं; इसकी भी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
26. और इस में भी चढ़ने के लिथे सात सीढिय़ां यीं और उनके साम्हने खम्भोंका ओसारा या; और उसके दोनोंओर के खम्भोंपर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे।
27. और दक्खिन ओर भी भीतरी आंगन का एक फाटक या, और उस ने दक्खिन ओर के दोनोंफाटकोंकी दूरी मापकर सौ हाथ की पाई।
28. तब वह दक्खिनी फाटक से होकर मुझे भीतरी आंगन में ले गया, और उस ने दक्खिनी फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
29. अर्यात् इसकी भी पहरेवाली कोठरियां, और खम्भे, और खम्भोंका ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भोंके ओसारे के भी चारोंओर भी खिड़कियां यीं; और इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
30. और इसके चारोंओर के खम्भोंका ओसार भी पच्चीस हाथ लम्बा, और पचास हाथ चौड़ा या।
31. और इसका खम्भोंका ओसारा बाहरी आंगन की ओर या, और इसके खम्भोंपर भी खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, और इस पर चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
32. फिर वह पुरुष मुझे पूर्व की ओर भीतरी आंगन में ले गया, और उस ओर के फाटक को मापकर वैसा ही पाया।
33. और इसकी भी पहरेवाली कोठरियां और खम्भे और खम्भोंका ओसारा, सब वैसे ही थे; और इसके और इसके खम्भोंके ओसारे के चारोंओर भी खिड़कियां यीं; इसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
34. इसका ओसारा भी बाहरी आंगन की ओर या, और उसके दोनोंओर के खम्भोंपर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और इस पर भी चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
35. फिर उस पुरुष ने मुझे उत्तरी फाटक के पास ले जाकर उसे मापा, और उसकी भी माप वैसी ही पाई।
36. उसके भी पहरेवाली कोठरियां और खम्भे और उनका ओसारा या; और उसके भी चारोंओर खिड़कियां यीं; उसकी लम्बाई पचास और चौड़ाई पच्चीस हाथ की यी।
37. उसके खम्भे बाहरी आंगन की ओर थे, और उन पर भी दोनोंओर खजूर के पेड़ खुदे हुए थे; और उस में चढ़ने को आठ सीढिय़ां यीं।
38. फिर फाटकोंके पास के खम्भोंके निकट द्वार समेत कोठरी यी, जहां होमबलि धोया जाता या।
39. और होमबलि, पापबलि, और दोषबलि के पशुओं के वध करने के लिथे फाटक के ओसारे के पास उसके दोनोंओर दो दो मेज़ें यीं।
40. और फाटक की एक बाहरी अलंग पर अर्यात् उत्तरी फाटक के द्वार की चढ़ाई पर दो मेज़ें यीं; और उसकी दूसरी बाहरी अलंग पर भी, जो फाटक के ओसारे के पास यी, दो मेजें यीं।
41. फाटक की दोनोंअलंगोंपर चार चार मेजें यीं, सो सब मिलकर आठ मेज़ें यीं, जो बलिपशु वध करने के लिथे यीं।
42. फिर होमबलि के लिथे तराशे हुए पत्यर की चार मेज़ें यीं, जो डेढ़ हाथ लम्बी, डेढ़ हाथ चौड़ी, और हाथ भर ऊंची यीं; उन पर होमबलि और मेलबलि के पशुओं को वध करने के हयियार रखे जाते थे।
43. भीतर चारोंओर चौवे भर की अंकडिय़ां लगी यीं, और मेज़ोंपर चढ़ावे का मांस रखा हुआ या।
44. और भीतरी आंगन की उत्तरी फाटक की अलंग के बाहर गानेवालोंकी कोठरियां यीं जिनके द्वार दक्खिन ओर थे; और पूवीं फाटक की अलंग पर एक कोठरी यी, जिसका द्वार उत्तर ओर या।
45. उस ने मुझ से कहा, यह कोठरी, जिसका द्वार दक्खिन की ओर है, उन याजकोंके लिथे है जो भवन की चौकसी करते हैं,
46. और जिस कोठरी का द्वार उत्तर ओर है, वह उन याजकोंके लिथे है जो वेदी की चौकसी करते हैं; थे सादोक की सन्तान हैं; और लेवियोंमें से यहोवा की सेवा टहल करने को केवल थे ही उसके समीप जाते हैं।
47. फिर उस ने आंगन को मापकर उसे चौकोना अर्यात् सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा पाया; और भवन के साम्हने वेदी यी।
48. फिर वह मुझे भवन के ओसारे में ले गया, और ओसारे के दोनोंओर के खम्भोंको मापकर पांच पांच हाथ का पाया; और दोनोंओर फाटक की चौड़ाई तीन तीन हाथ की यी।
49. ओसारे की लम्बाई बीस हाथ और चौड़ाई ग्यारह हाथ की यी; और उस पर चढ़ने को सीढिय़ां यीं; और दोनोंओर के खम्भोंके पास लाटें यीं।
Chapter 41
1. फिर वह मुझे मन्दिर के पास ले गया, और उसके दोनोंओर के खम्भोंको मापकर छ:छ: हाथ चौड़े पाया, यह तो तम्बू की चौड़ाई यी।
2. और द्वार की चौड़ाई दस हाथ की यी, और द्वार की दोनोंअलंगें पांच पांच हाथ की यीं; और उस ने मन्दिर की लम्बाई मापकर चालीस हाथ की, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की पाई।
3. तब उस ने भीतर जाकर द्वार के खम्भोंको मापा, और दो दो हाथ का पाया; और द्वार छ: हाथ का या; और द्वार की चौड़ाई सात हाथ की यी।
4. तब उस ने भीतर के भवन की लम्बाई और चौड़ाई मन्दिर के साम्हने मापकर बीस बीस हाथ की पाई; और उस ने मुझ से कहा, यह तो परमपवित्र स्यान है।
5. फिर उस ने भवन की भीत को मापकर छ: हाथ की पाया, और भवन के आस पास चार चार हाथ चौड़ी बाहरी कोठरियां यीं।
6. और थे बाहरी कोठरियां तिमहली यीं; और एक एक महल में तीस तीस कोठरियां यीं। भवन के आस पास की भीत इसलिथे यी कि बाहरी कोठरियां उसके सहारे में हो; और उसी में कोठरियोंकी कडिय़ां पैठाई हुई यीं और भवन की भीत के सहारे में न यीं।
7. और भवन के आस पास जो कोठरियां बाहर यीं, उन में से जो ऊपर यीं, वे अधिक चौड़ी यीं; अर्यात् भवन के आस पास जो कुछ बना या, वह जैसे जैसे ऊपर की ओर चढ़ता गया, वैसे वैसे चौड़ा होता गया; इस रीति, इस घर की चौड़ाई ऊपर की ओर बढ़ी हुई यी, और लोग नीचले महल के बीच से उपरले महल को चढ़ सकते थे।
8. फिर मैं ने भवन के आस पास ऊंची भूमि देशी, और बाहरी कोठरियोंकी ऊंचाई जोड़ तक छ: हाथ के बांस की यी।
9. बाहरी कोठरियोंके लिथे जो भीत यी, वह पांच हाथ मोटी यी, और जो स्यान खाली रह गया या, वह भवन की बाहरी कोठरियोंका स्यान या।
10. बाहरी कोठरियोंके बीच बीच भवन के आस पास बीस हाथ का अन्तर या।
11. और बाहरी कोठरियोंके द्वार उस स्यान की ओर थे, जो खाली या, अर्यात् एक द्वार उत्तर की ओर और दूसरा दक्खिन की ओर या; और जो स्यान रह गया, उसकी चौड़ाई चारोंओर पांच हाथ की यी।
12. फिर जो भवन मन्दिर के पश्चिमी आंगन के साम्हने या, वह सत्तर हाथ चौडा या; और भवन के आस पास की भीत पांच हाथ मोटी यी, और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ की यी।
13. तब उस न भवन की लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई; और भीतोंसमेत आंगन की भी लम्बाई मापकर सौ हाथ की पाई।
14. और भवन का पूवीं साम्हना और उसका आंगन सौ हाथ चौड़ा या।
15. फिर उस ने पीछे के आंगन के साम्हने की भीत की लम्बाई जिसके दोनोंओर छज्जे थे, मापकर सौ हाथ की पाई; और भीतरी भवन और आंगन के ओसारोंको भी मापा।
16. तब उस ने डेवढिय़ोंऔर फिलमिलीदार खिड़कियों, और आस पास के तीनोंमहलोंके छज्जोंको मापा जो डेवढ़ी के साम्हने थे, और चारोंओर उनकी तखता-बन्दी हुई यी; और भूमि से खिड़कियोंतक और खिड़कियोंके आस पास सब कहीं तख़ताबन्दी हुई यी।
17. फिर उस ने द्वार के ऊपर का स्यान भीतरी भवन तक ओर उसके बाहर भी और आस पास की सारी भीत के भीतर और बाहर भी मापा।
18. और उस में करूब और खजूर के पेड़ ऐसे हुदे हुए थे कि दो दो करूबोंके बीच एक एक खजूर का पेड़ या; और करूबोंके दो दो मुख थे।
19. इस प्रकार से एक एक खजूर की एक ओर मनुष्य का मुख बनाया हुआ या, और दूसरी ओर जवान सिंह का मुख बनाया हुआ या। इसी रीति सारे भवन के चारोंओर बना या।
20. भूमि से लेकर द्वार के ऊपर तक करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, मन्दिर की भीत इसी भांति बनी हुई यी।
21. भवन के द्वारोंके खम्भे चौपहल थे, और पवित्रस्यान के साम्हने का रूप मन्दिर का सा या।
22. वेदी काठ की बनी यी, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ, ओर लम्बाई दो हाथ की यी; और उसके कोने और उसका सारा पाट और अलंगें भी काठ की यीं। और उस ने मुुफ से कहा, यह तो यहोवा के सम्मुख की मेज़ है।
23. और मन्दिर और पवित्रस्यान के द्वारोंके दो दो किवाड़ थे।
24. और हर एक किवाड़ में दो दो मुड़नेवाले पल्ले थे, हर एक किवाड़ के लिथे दो दो पल्ले।
25. और जैसे मन्दिर की भीतोंमें करूब और खजूर के पेड़ खुदे हुए थे, वैसे ही उसके किवाड़ोंमें भी थे, और ओसारे की बाहरी ओर लकड़ी की मोटी मोटी धरनें यीं।
26. और ओसारे के दोनोंओर फिलमिलीदार खिड़कियां यीं और खजूर के पेड़ खुदे थे; और भवन की बाहरी कोठरियां और मोटी मोटी धरनें भी यीं।
Chapter 42
1. फिर वह मुझे बाहरी आंगन में उत्तर की ओर ले गया, और मुझे उन दो कोठरियोंके पास लाया जो भवन के आंगन के साम्हने और उसकी उत्तर ओर यीं।
2. सौ हाथ की दूरी पर उत्तरी द्वार या, और चौड़ाई पचास हाथ की यी।
3. भीतरी आंगन के बीस हाथ साम्हने और बाहरी आंगन के फर्श के साम्हने तीनोंमहलोंमें छज्जे थे।
4. और कोठरियोंके साम्हने भीतर की ओर जानेवाला दस हाथ चौड़ा एक मार्ग या; और हाथ भर का एक और मार्ग या; और कोठरियोंके द्वार उत्तर ओर थे।
5. और उपरली कोठरियां छोटी यीं, अर्यात् छज्जोंके कारण वे निचक्की और बिचक्की कोठरियोंसे छोटी यीं।
6. क्योंकि वे सिमहली यीं, और आंगनोंके समान उनके खम्भे न थे; इस कारण उपरली कोठरियां निचक्की और बिचक्की कोठरियोंसे छोटी यीं।
7. और जो भीत कोठरियोंके बाहर उनके पास पास यी अर्यात् कोठरियोंके साम्हने बाहरी आंगन की ओर यी, उसकी लम्बाई पचास हाथ की यी।
8. क्योंकि बाहरी आंगन की कोठरियां पचास हाथ लम्बी यीं, और मन्दिर के साम्हने की अलंग सौ हाथ की यी।
9. और इन कोठरियोंके नीचे पूर्व की ओर मार्ग या, जहां लोग बाहरी आंगन से इन में जाते थे।
10. आंगन की भीत की चौड़ाई में पूर्व की ओर अलग स्यान और भवन दोनोंके साम्हने कोठरियां यीं।
11. और उनके साम्हने का मार्ग उत्तरी कोठरियोंके मार्ग सा य; उनकी लम्बाई-चौड़ाई बराबर यी और निकास और ढंग उनके द्वार के से थे।
12. और दक्खिनी कोठरियोंके द्वारोंके अनुसार मार्ग के सिक्के पर द्वार या, अर्यात् पूर्व की ओर की भीत के साम्हने, जहां से लोग उन में प्रवेश करते थे।
13. फिर उस ने मुझ से कहा, थे उत्तरी और दक्खिनी कोठरियां जो आंगन के साम्हने हें, वे ही पवित्र कोठरियां हैं, जिन में यहोवा के समीप जानेवाले याजक परमपवित्र वस्तुएं खाया करेंगे; वे परमपवित्र वस्तुएं, और अन्नबलि, और पापबलि, और दोषबलि, वहीं रखेंगे; क्योंकि वह स्यान पवित्र हे।
14. जब जब याजक लोग भीतर जाएंगे, तब तब निकलने के समय वे पवित्रस्यान से बाहरी आंगन में योंही न निकलेंगे, अर्यात् वे पहिले अपक्की सेवा टहल के वस्त्र पवित्रस्यान में रख देंगे; क्योंकि थे कोठरियां पवित्र हैं। तब वे और वस्त्र पहिनकर साधारण लोगोंके स्यान में जाएंगे।
15. जब वह भीतरी भवन को माप चुका, तब मुझे पूर्व दिशा के फाटक के मार्ग से बाहर ले जाकर बाहर का स्यान चारोंओर मापके लगा।
16. उस ने पूवीं अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
17. तब उस ने उत्तरी अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
18. तब उस ने दक्खिनी अलंग को मापके के बांस से मापकर पांच सौ बांस का पाया।
19. और पच्छिमी अलंग को मुड़कर उस ने मापके के बांस से मापकर उसे पांच सौ बांस का पाया।
20. उस ने उस स्यान की चारोंअलंगें मापीं, और उसकी चारोंओर एक भीत यी, वह पांच सौ बांस लम्बी और पांच सौ बांस चौड़ी यी, और इसलिथे बनी यी कि पवित्र और सर्वसाधारण को अलग अलग करे।
Chapter 43
1. फिर वह मुझ को उस फाटक के पास ले गया जो पूर्वमुखी या।
2. तब इस्राएल के परमेश्वर का तेज पूर्व दिशा से आया; और उसकी वाणी बहुत से जल की घरघराहट सी हुई; और उसके तेज से पृय्वी प्रकाशित हुई।
3. और यह दर्शन उस दर्शन के तुल्य या, जो मैं ने उसे नगर के नाश करने को आते समय देखा या; और उस दर्शन के समान, जो मैं ने कबार नदी के तीर पर देखा या; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
4. तब यहोवा का तेज उस फाटक से होकर जो पूर्वमुखी या, भवन में आ गया।
5. तब आत्मा ने मुझे उठाकर भीतरी आंगन में पहुंचाया; और यहोवा का तेज भवन में भरा या।
6. तब मैं ने एक जन का शब्द सुना, जो भवन में से मुझ से बोल रहा या, और वह पुरुष मेरे पास खड़ा या।
7. उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, यहोवा की यह वाणी है, यह तो मेरे सिंहासन का स्यान और मेरे पांव रखने की जगह है, जहां मैं इस्राएल के बीच सदा वास किए रहूंगा। और न तो इस्राएल का घराना, और न उसके राजा अपके व्यभिचार से, वा उपके ऊंचे स्यानोंमें अपके राजाओं की लोयोंके द्वारा मेरा पवित्र नाम फिर अशुद्ध ठहराएंगे।
8. वे अपक्की डेवढ़ी मेरी डेवढ़ी के पास, और अपके द्वार के खम्भे मेरे द्वार के खम्भोंके निकट बनाते थे, और मेरे और उनके बीच केवल भीत ही यी, और उन्होंने अपके घिनौने कामोंसे मेरा पवित्र नाम अशुद्ध ठहराया या; इसलिथे मैं ने कोप करके उन्हें नाश किया।
9. अब वे अपना व्यभिचार और अपके राजाओं की लोथें मेरे सम्मुख से दूर कर दें, तब मैं उनके बीच सदा वास किए रहूंगा।
10. हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के घराने को इस भवन का नमूना दिखा कि वे अपके अधर्म के कामोंसे लज्जित होकर उस नमूने को मापें।
11. और यदि वे अपके सारे कामोंसे लज्जित हों, तो उन्हें इस भवन का आकार और स्वरूप, और इसके बाहर भीतर आने जाने के मार्ग, और इसके सब आकार और विधियां, और नियम बतलाना, और उनके साम्हने लिख रखना; जिस से वे इसका सब आकार और इसकी सब विधियां स्मरण करके उनके अनुसार करें।
12. भवन का नियम यह है कि पहाड़ की चोटी के चारोंओर का सम्पूर्ण भाग परमपवित्र है। देख भवन का नियम यही है।
13. और ऐसे हाथ के माप से जो साधारण हाथ से चौवा भर अधिक हो, वेदी की माप यह है, अर्यात् उसका आधार एक हाथ का, और उसकी चौड़ाई एक हाथ की, और उसके चारोंओर की छोर पर की पटरी एक चौवे की। और वेदी की ऊंचाई यह है:
14. भूमि पर धरे हुए आधार से लेकर निचक्की कुसीं तक दो हाथ की ऊंचाई रहे, और उसकी चा।ड़ाई हाथ भर की हो; और छोटी कुसीं से लेकर बड़ी कुसीं तक चार हाथ होंऔर उसकी चौड़ाई हाथ भर की हो;
15. और उपरला भाग चार हाथ ऊंचा हो; और वेदी पर जलाने के स्यान के चार सींग ऊपर की ओर निकले हों।
16. और वेदी पर जलाने का स्यान चौकोर अर्यात् बारह हाथ लम्बा और बारह हाथ चौड़ा हो।
17. और निचक्की कुसीं चौदह हाथ लम्बी और चौदह चौड़ी हो, और उसके चारोंओर की पटरी आधे हाथ की हो, और उसका आधर चारोंऔर हाथ भर का हो। उसकी सीढ़ी उसकी पूर्व ओर हो।
18. फिर उस ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस दिन हामबलि चढ़ाने और लोहू छिडकने के लिथे वेदी बनाई जाए, उस दिन की विधियां थे ठहरें:
19. अर्यात् लेवीय याजक लोग, जो सादोक की सन्तान हैं, और मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप रहते हैं, उन्हें तू पापबलि के लिथे एक बछड़ा देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
20. तब तू उसके लोहू में से कुछ लेकर वेदी के चारोंसींगोंऔर कुसीं के चारोंकोनोंऔर चारोंओर की पटरी पर लगाना; इस प्रकार से उसके लिथे प्रायश्चित्त करने के द्वारा उसको पवित्र करना।
21. तब पापबलि के बछड़े को लेकर, भवन के पवित्रस्यान के बाहर ठहराए हुए स्यान में जला देना।
22. और दूसरे दिन एक निदॉष बकरा पापबलि करके चढ़ाना; और जैसे बछड़े के द्वारा वेदी पवित्र की जाए, वैसे ही वह इस बकरे के द्वारा भी पवित्र की जाएगी।
23. जब तू उसे पवित्र कर चूके, तब एक निदॉष बछड़ा और एक निदॉष मेढ़ा चढ़ाना।
24. तू उन्हें यहोवा के साम्हने ले आना, और याजक लोग उन पर लोन डालकर उन्हें यहोवा को होमबलि करके चढ़ाएं।
25. सात दिन तक नू प्रति दिन पापबलि के लिथे एक बकरा तैयार करना, और निदॉष बछड़ा और भेड़ोंमें से निदॉष मेढ़ा भी तैयार किया जाए।
26. सात दिन तक याजक लोग वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करके उसे शुद्ध करते रहें; इसी भांति उसका संस्कार हो।
27. और जब वे दिन समाप्त हों, तब आठवें दिन के बाद से याजक लोग तुम्हारे होमबलि और मेलबलि वेदी पर चढ़ाया करें; तब मैं तुम से प्रसन्न हूंगा, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 44
1. फिर वह मुझे पवित्रस्यान के उस बाहरी फाटक के पास लौटा ले गया, जो पूर्वमुखी है; और वह बन्द या।
2. तब यहोवा ने मुझ से कहा, यह फाटक बन्द रहे और खेला न जाए; कोई इस से होकर भीतर जाने न पाए; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस से होकर भीतर आया है; इस कारण यह बन्द रहे।
3. केवल प्रधान ही, प्रधान होने के कारण, मेरे साम्हने भोजन करने को वहां बैठेगा; वह फाटक के ओसारे से होकर भीतर जाए, और इसी से होकर निकले।
4. फिर वह उत्तरी फाटक के पास होकर मुझे भवन के साम्हने ले गया; तब मैं ने देश कि यहोवा का भवन यहोवा के तेज से भर गया है; और मैं मुंह के बल गिर पड़ा।
5. तब यहोवा ने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान, ध्यान देकर अपक्की आंखोंसे देख, और जो कुछ मैं तुझ से अपके भवन की सब विधियोंऔर नियमोंके विषय में कहूं, वह सब अपके कानोंसे सुन; और भवन के पैठाव और पवित्रस्यान के सब निकासोंपर ध्यान दे।
6. और उन बलवाइयोंअर्यात् इस्राएल के घराने से कहना, परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने, अपके सब घृणित कामोंसे अब हाथ उठा।
7. जब तुम मेरा भोजन अर्यात् चक्कीं और लोहू चढ़ाते थे, तब तुम बिराने लोगोंको जो मन और तन दोनोंके खतनाहीन थे, मेरे पवित्रस्यान में आने देते थे कि वे मेरा भवन अपवित्र करें; और उन्होंने मेरी वाचा को तोड़ दिया जिस से तुम्हारे सब घृणित काम बढ़ गए।
8. और तूम ने मेरी पवित्र वस्तुओं की रझा न की, परन्तु तुम ने अपके ही मन से अन्य लोगोंको मेरे पवित्रस्यान में मेरी वस्तुओं की रझा करनेवाले ठहराया।
9. इसलिथे परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि इस्राएलियोंके बीच जितने अन्य लोग हों, जो मन और तन दोनोंके खतनाहीन हैं, उन में से कोई मेरे पवित्रस्यान में न आने पाए।
10. परन्तु लेवीय लोग जो उस समय मुझ से दूर हो गए थे, जब इस्राएली लोग मुझे छोड़कर अपक्की मूरतोंके पीछे भटक गए थे, वे अपके अधर्म का भार उठाएंगे।
11. परन्तु वे मेरे पवित्रस्यान में टहलुए होकर भवन के फाटकोंका पहरा देनेवाले और भवन के टहलुग रहें; वे होमबलि और मेलबलि के पशु लोगोंके लिथे वध करें, और उनकी सेवा टहल करने को उनके साम्हने खड़े हुआ करें।
12. क्योंकि इस्राएल के घराने की सेवा टहल वे उनकी मूरतोंके साम्हने करते थे, और उनके ठोकर खाने और अधर्म में फंसने का कारण हो गए थे; इस कारण मैं ने उनके विषय में शपय खाई है कि वे अपके अधर्म का भार उठाएं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
13. वे मेरे समीप न आएं, और न मेरे लिथे याजक का काम करें; और न मेरी किसी पवित्र पस्तु, वा किसी परमपवित्र वसतु को छूने पाएं; वे अपक्की लज्जा का और जो घृणित काम उन्होंने किए, उनका भी भार उठाएं। तौभी मैं उन्हें भवन में की सौंपी हुई वस्तुओं का रझक ठहराऊंगा;
14. उस में सेवा का जितना काम हो, और जो कुछ उस में करना हो, उसके करनेवाले वे ही हों
15. फिर लेवीय याजक जो सादोक की सन्तान हैं, और जिन्होंने उस समय मेरे पवित्रस्यान की रझा की जब इस्राएली मेरे पास से भटक गए थे, वे मेरी सेवा टहल करने को मेरे समीप आया करें, और मुझे चक्कीं और लोहू चढ़ाने को मेरे सम्मुख खड़े हुआ करें, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. वे मेरे पवित्रस्यान में आया करें, और मेरी मेज़ के पास मेरी सेवा टहल करने को आएं और मेरी वस्तुओं की रझा करें।
17. और जब वे भीतरी आंगन के फाटकोंसे होकर जाया करें, तब सन के वस्त्र पहिने हुए जाएं, और जब वे भीतरी आंगन के फाटकोंमें वा उसके भीतर सेवा टहल करते हों, तब कुछ ऊन के वस्त्र न पहिनें।
18. वे सिर पर सन की सुन्दर टोपियां पहिनें और कमर में सन की जांघिया बान्धें हों; किसी ऐसे कपके से वे कमर न बांधें जिस से पक्कीना होता है।
19. और जब वे बाहरी आंगन में लोगोंके पास निकलें, तब जो वस्त्र पहिने हुए वे सेवा टहल करते थे, उन्हें उतारकर और पवित्र कोठरियोंमें रखकर दूसरे वस्त्र पहिनें, जिस से लोग उनके वस्त्रें के कारण पवित्र न ठहरें।
20. और न तो वे सिर मुण्डाएं, और न बाल लम्बे होने दें; वे केवल अपके बाल कटाएं।
21. और भीतरी आंगन में जाने के समय कोई याजक दाखमधु न पीए।
22. वे विधवा वा छोड़ी हुई सत्री को ब्याह न लें; केवल इस्राएल के घराने के पंश में से कुंवारी वा ऐसी विधवा बयाह लें जो किसी याजक की स्त्री हुई हो।
23. वे मेरी प्रजा को पवित्र अपवित्र का भेद सिखाया करें, और शुद्ध अशुद्ध का अन्तर बताया करें।
24. और जब कोई मुक़द्दमा हो तब न्याय करने को भी वे ही बैठें, और मेरे नियमोंके अनुसार न्याय करें। मेरे सब नियत पबॉं के विषय भी वे मेरी व्यवस्या और विधियां पालन करें, और मेरे विश्रमदिनोंको पवित्र मानें।
25. वे किसी मनुष्य की लोय के पास न जाएं कि अशुद्ध हो जाएं; केवल माता-पिता, बेटे-बेटी; भाई, और ऐसी बहिन की लोय के कारण जिसका विवाह न हुआ हो वे अपके को अशुद्ध कर सकते हैं।
26. और जब वे अशुद्ध हो जाएं, तब उनके लिथे सात दिन गिने जाएं और तब वे शुद्ध ठहरें,
27. और जिस दिन वे पवित्रस्यान अर्यात् भीतरी आंगन में सेवा टहल करने को फिर प्रवेश करें, उस निद अपके लिथे पापबलि चढ़ाएं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी हे।
28. और उनका एक ही निज भाग होगा, अर्यात् उनका भाग मैं ही हूँ; तुम उन्हें इस्राएल के बीच कुछ ऐसी भूमि न देना जो उनकी निज हो; उनकी निज भूमि मैं ही हूँ।
29. वे अन्नबलि, पापबलि और दोषबलि खाया करें; और इस्राएल में जो वस्तु अर्पण की जाए, वह उनको मिला करे।
30. और सब प्रकार की सब से पहिली उपज और सब प्रकार की उठाई हुई वस्तु जो तुम उठाकर चढ़ाओ, याजकोंको मिला करे; और नथे अन्न का पहिला गूंधा हुआ आटा भी याजक को दिया करना, जिस से तुम लोगोंके घर में आशीष हो।
31. जो कुछ अपके आप मरे वा फाड़ा गया हो, चाहे पक्की हो या पशु उसका मांस याजक न खाए।
Chapter 45
1. जब तुम चिट्ठी डालकर देश को बांटो, तब देश में से एक भाग पवित्र जानकर यहोवा को अर्पण करना; उसकी लम्बाई पच्चीस हजार बांस की और चौड़ाई दस हजार बांस की हो; वह भाग अपके चारोंओर के सिवाने तक पवित्र ठहरे।
2. उस में से पवित्रस्यान के लिथे पांच सौ बांस लम्बी और पांच सौ बांस चौड़ी चौकोनी भूमि हो, और उसकी चारोंओर पचास पचास हाथ चौड़ी भूमि छूटी पक्की रहे।
3. उस पवित्र भाग में तुम पच्चीस हाजार बांस लम्बी और दस हजार बांस चौड़ी भूमि को मापना, और उसी में पवित्रस्यान बनाना, जो परमपवित्र ठहरे।
4. जो याजक पवित्रस्यन की सेवा टहल करें और यहोवा की सेवा टहल करने को समीप आएं, वह उन्हीं के लिथे हो; वहां उनके घरोंके लिथे स्यान हो और पवित्रस्यान के लिथे पवित्र ठहरे।
5. फिर पच्चीस हजार बांस लम्बा, और दस हजार बांस चौड़ा एक भाग, भवन की सेवा टहल करनेवाले लेवियोंकी बीस कोठरियोंके लिथे हो।
6. फिर नगर के लिथे, अर्पण किए हुए पवित्र भाग के पास, तुम पांच हजार बांस चौड़ी और पच्चीस हाजार बांस लम्बी, विशेष भूमि ठहराना; वह इस्राएल के सारे घराने के लिथे हो।
7. और प्रधान का निज भाग पवित्र अर्पण किए हुए भाग और नगर की विशेष भूमि की दोनोंओर अर्यात् दोनो की पश्चिम और पूर्व दिशाओं में दोनोंभागोंके साम्हने हों; और उसकी लम्बाई पश्चिम से लेकर पूर्व तक उन दो भागोंमें से किसी भी एक के तुल्य हो।
8. इस्राएल के देश में प्रधान की यही निज भूमि हो। और मेरे ठहराए हुए प्रधान मेरी प्रजा पर फिर अन्धेर न करें; परन्तु इस्राएल के घराने को उसके गोत्रोंके अनुसार देश मिले।
9. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के प्रधनो ! बस करो, उपद्रव और उत्पात को दूर करो, और न्याय और धर्म के काम किया करो; मेरी प्रजा के लोगोंको निकाल देना छोड़ दो, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
10. तुम्हारे पास सच्चा तराजू, सच्चा एपा, और सच्चा बत रहे।
11. एपा और बत दोनोंएक ही नाप के हों, अर्यात् दोनोंमें होमेर का दसवां अंश समाए; दोनोंकी नाप होमेर के हिसाब से हो।
12. और शेकेल बीस गेरा का हो; और तुम्हारा माना बीस, पच्चीस, या पन्द्रह शेकेल का हो।
13. तुम्हारी उठाई हुई भेंट यह हो, अर्यात् गेहूं के होमेर से एपा का छठवां अंश, और जव के होमेर में से एपा का छठवां अंश देना।
14. और तेल का नियत अंश कोर में से बत का दसवां अंश हो; कोर तो दस बत अर्यात् एक होमेर के तुल्य है, क्योंकि होमेर दस बत का होता है।
15. और इस्राएल की उत्तम उत्तम चराइयोंसे दो दो सौ भेड़बकरियोंमें से एक भेड़ वा बकरी दी जाए। थे सब वस्तुएं अन्नबलि, होमबलि और मेलबलि के लिथे दी जाएं जिस से उनके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
16. इस्राएल के प्रधान के लिथे देश के सब लोग यह भेंट दें।
17. पवॉं, नथे चांद के दिनों, विश्रमदिनोंऔर इस्राएल के घराने के सब नियत समयोंमें होमबलि, अन्नबलि, और अर्ध देना प्रधान ही का काम हो। इस्राएल के घराने के लिथे प्रायश्चित्त करने को वह पापबलि, अन्नबलि, होमबलि, और मेलबलि तैयार करे।
18. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, पहिले महीने के पहले दिन को तू एक निदॉष बछड़ा लेकर पवित्रस्यान को पवित्र करता।
19. इस पापबलि के लोहू में से याजक कुछ लेकर भवन के चौखट के खम्भों, और वेदी की कुसीं के चारोंकोनों, और भीतरी आंगन के फाटक के खम्भोंपर लगाए।
20. फिर महीने के सातवें दिन को सब भूल में पके हुओं और भोलोंके लिथे भी योंही करना; इसी प्रकार से भवन के लिथे प्रायश्चित्त करना।
21. पहिले महीने के चौदहवें दिन को तुम्हारा फसह हुआ करे, वह सात दिन का पर्व हो और उस में अखमीरी रोटी खई जाए।
22. उस दिन प्रधान अपके और प्रजा के सब लोगोंके निमित्त एक बछड़ा पापबलि के लिथे तैयार करे।
23. और पर्व के सातोंदिन वह यहोवा के लिथे होमबलि तैयार करे, अर्यात् हर एक दिन सात सात निदॉष बछड़े और सात सात निदॉष मेढ़े और प्रति दिन एक एक बकरा पापबलि के लिथे तैयार करे।
24. और हर एक बछड़े और मेढ़े के साय वह एपा भर अन्नबलि, और एपा पीछे हीन भर तेल तैयार करे।
25. सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से लेकर सात दिन तक अर्यात् पर्व के दिनोंमें वह पापबलि, होमबलि, अन्नबलि, और तेल इसी विधि के अनुसार किया करे।
Chapter 46
1. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, भीतरी आंगन का पूर्वमुखी फाटक काम काज के छहोंदिन बन्द रहे, परन्तु विश्रमदिन को खुला रहे। और नथे चांद के दिन भी खुला रहे।
2. प्रधान बाहर से फाटक के ओसारे के मार्ग से आकर फाटक के एक खम्भे के पास खड़ा हो जाए, और याजक उसका होमबलि और मेलबलि तैयार करें; और वह फाटक की डेवढ़ी पर दण्डवत् करे; तब वह बाहर जाए, और फाटक सांफ से पहिले बन्द न किया जाए।
3. और लोग विश्रम और नथे चांद के दिनोंमें उस फाटक के द्वार में यहोवा के साम्हने दण्डवत् करें।
4. और विश्रमदिन में जो होमबलि प्रधान यहोवा के लिथे चढ़ाए, वह भेड़ के छ: निदॉष बच्चे और एक निदॉष मेढ़े का हो।
5. और अन्नबलि यह हो, अर्यात् मेढ़े के साय एपा भर अन्न और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न और एपा पीछे हीन भर तेल।
6. और नथे चांद के दिन वह एक निदॉष बछड़ा और भेड़ के छ: बच्चे और एक मेढ़ा चढ़ाए; थे सब निदॉष हों।
7. और बछड़े और मेढ़े दोनोंके साय वह एक एक एपा अन्नबलि तैयार करे, और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न, और एपा पीछे हीन भर तेल।
8. और जब प्रधान भीतर जाए तब वह फाटक के ओसारे से होकर जाए, और उसी मार्ग से निकल जाए।
9. जब साधारण लोग नियत समयोंमें यहोवा के साम्हने दण्डवत् करने आएं, तब जो उत्तरी फाटक से होकर दण्डवत् करने को भीतर आए, वह दक्खिनी फाटक से होकर निकले, और जो दक्खिनी फाटक से होकर भीतर आए, वह उत्तरी फाटक से होकर निकले, अर्यात् जो जिस फाटक से भीतर आया हो, वह उसी फाटक से न लौटे, अपके साम्हने ही निकल जाए।
10. और जब वे भीतर आएं तब प्रधान उनके बीच होकर आएं, और जब वे निकलें, तब वे एक साय निकलें।
11. और पवॉं और अन्य नियत समयोंका अन्नबलि बछड़े पीछे एपा भर, और मेढ़े पीछे एपा भर का हो; और भेड़ के बच्चोंके साय ययाशक्ति अन्न और एपा पीछे हीन भर तेल।
12. फिर जब प्रधान होमबलि वा मेलबलि को स्वेच्छा बलि करके यहोवा के लिथे तैयार करे, तब पूर्वमुखी फाटक उनके लिथे खोला जाए, और वह अपना होमबलि वा मेलबलि वैसे ही तैयार करे जैसे वह विश्रमदिन को करता है; तब वह निकले, और उसके निकलने के पीछे फाटक बन्द किया जाए।
13. और प्रति दिन तू वर्ष भर का एक निदॉष भेड़ का बच्चा यहोवा के होमबलि के लिथे तैयार करना, यह प्रति भोर को तैयार किया जाए।
14. और प्रति भोर को उसके साय एक अन्नबलि तैयार करना, अर्यात् एपा का छठवां अंश और मैदा में मिलाने के लिथे हीन भर तेल की तिहाई यहोवा के लिथे सदा का अन्नबलि नित्य विधि के अनुसार चढ़ाया जाए।
15. भेड़ का बच्चा, अन्नबलि और तेल, प्रति भोर को नित्य होमबलि करके चढ़ाया जाए।
16. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, यदि प्रधान अपके किसी पुत्र को कुछ दे, तो वह उसका भाग होकर उसके पोतोंको भी मिले; भाग के नियम के अनुसार वह उनका भी निज घन ठहरे।
17. परन्तु यदि वह अपके भाग में से अपके किसी कर्मचारी को कुछ दे, तो छुट्टी के वर्ष तक तो वह उसका बना रहे, परन्तु उसके बाद प्रधान को लैटा दिया जाए; और उसका निज भाग ही उसके पुत्रोंको मिले।
18. और प्रजा का ऐसा कोई भाग प्रधान न ले, जो अन्धेर से उनकी निज भूमि से छीना हो; अपके पुत्रोंको वह अपक्की ही निज भूमि में से भाग दे; ऐसा न हो कि मेरी प्रजा के लोग अपक्की अपक्की निज भूमि से तितर-बितर हो जाएं।
19. फिर वह मुझे फाटक की एक अलंग में द्वार से होकर याजकोंकी उत्तरमुखी पवित्र कोठरियोंमें ले गया; वहां पश्चिम ओर के कोने में एक स्यान या।
20. तब उस ने मुझ से कहा, यह वह स्यान है जिस में याजक लोग दोषबलि और पापबलि के मांस को पकाएं और अन्नबलि को पकाएं, ऐसा न हो कि उन्हें बाहरी आंगन में ले जाने से साधारण लोग पवित्र ठहरें।
21. तब उस ने मुझे बाहरी आंगन में ले जाकर उस आंगन के चारोंकोनोंमें फिराया, और आंगन के हर एक कोने में एक एक ओट बना या,
22. अर्यात् आंगन के चारोंकोनोंमें चालीस हाथ लम्बे और तीस हाथ चौड़े ओट थे; चारोंकोनोंके ओटोंकी एक ही माप यी।
23. और भीतर चारोंओर भीत यी, और भीतोंके नीचे पकाने के चूल्हे बने हुए थे।
24. तब उस ने मुझ से कहा, पकाने के घर, जहां भवन के टहलुए लोगोंके बलिदानोंको पकाएं, वे थे ही हैं।
Chapter 47
1. फिर वह मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले गया; और भवन की डेवढ़ी के नीचे से एक सोता निकलकर पूर्व ओर बह रहा या। भवन का द्वार तो पूर्वमुखी या, और सोता भवन के पूर्व और वेदी के दक्खिन, नीचे से निकलता या।
2. तब वह मुझे उत्तर के फाटक से होकर बाहर ले गया, और बाहर बाहर से घुमाकर बाहरी अर्यात् पूर्वमुखी फाटक के पास पहुंचा दिया; और दक्खिनी अलंग से जल पक्कीजकर वह रहा या।
3. जब वह पुरुष हाथ में मापके की डोरी लिए हुए पूर्व ओर निकला, तब उस ने भवन से लेकर, हजार हाथ तक उस सोते को मापा, और मुझे जल में से चलाया, और जल टखनोंतक या।
4. उस ने फिर हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल घुटनोंतक या, फिर ओर हजार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल कमर तक या।
5. तब फिर उस ने एक हजार हाथ मापे, और ऐसी नदी हो गई जिसके पार मैं न जा सका, क्योंकि जल बढ़कर तैरने के योग्य या; अर्यात् ऐसी नदी यी जिसके पार कोई न जा सकता या।
6. तब उस ने मुझ से पूछा, हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है? फिर उस ने मुझे नदी के तीर लौटाकर पहुंचा दिया।
7. लौटकर मैं ने क्या देखा, कि नदी के दोनोंतीरोंपर बहुत से वृझ हैं।
8. तब उस ने मुझ से कहा, यह सोता पूवीं देश की ओर बह रहा है, और अराबा में उतरकर ताल की ओर बहेगा; और यह भवन से निकला हुआ सीधा ताल में मिल जाएगा; और उसका जल मीठा हो जाएगा।
9. और जहां जहां यह नदी बहे, वहां वहां सब प्रकार के बहुत अण्डे देनेवाले जीवजन्तु जीएंगे और मछलियां भी बहुत हो जाएंगी; क्योंकि इस सोते का जल वहां पहुंचा है, और ताल का जल मीठा हो जाएगा; और जहा कहीं यह नदी पहुंचेगी वहां सब जन्तु जीएंगे।
10. ताल के तीर पर मछवे खड़े रहेंगे, और एनगदी से लेकर ऐनेग्लैम तक वे जाल फैलाए जाएंगे, और उन्हें महासागर की सी भांति भांति की अनगिनित मछलियां मिलेंगी।
11. परन्तु ताल के पास जो दलदल ओर गड़हे हैं, उनका जल मीठा न होगा; वे खारे ही रहेंगे।
12. और नदी के दोनोंतीरोंपर भांति भांति के खाने योग्य फलदाई पृझ उपकेंगे, जिनके पत्ते न मुर्फाएंगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्र स्यान से तिकला है। उन में महीने महीने, नथे नथे फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, ओर पत्ते औषधि के काम आएंगे।
13. परमेश्वर यहोवा योंकहता है, जिस सिवाने के भीतर तुम को यह देश अपके बारहोंगोत्रोंके अनुसार बांटना पकेगा, वह यह है: यूसुफ को दो भाग मिलें।
14. और उसे तुम एक दूसरे के समान निज भाग में पाओगे, क्योंकि मैं ने शपय खाई कि उसे तुम्हारे पितरोंको दूंगा, सो यह देश तुम्हारा निज भाग ठहरेगा।
15. देश का सिवाना यह हो, अर्यात् उत्तर ओर का सिवाना महासागर से लेकर हेतलोन के पास से सदाद की घाटी तक पहुंचे,
16. और उस सिवाने के पास हमात बेरोता, और सिब्रैम जो दमिश्क ओर हमात के सिवानोंके बीच में है, और हसर्हत्तीकोन तक, जो हौरान के सिवाने पर है।
17. और यह सिवाना समुद्र से लेकर दमिश्क के सिवाने के पास के हसरेनोन तक महुंचे, और उसकी उत्तर ओर हमात हो। उत्तर का सिवाना यही हो।
18. और पूवीं सिवाना जिसकी एक ओर हौरान दमिश्क; और यरदन की ओर गिलाद और इस्राएल का देश हो; उत्तरी सिवाने से लेकर पूवीं ताल तक उसे मापना। पूवीं सिवाना तो यही हो।
19. और दक्खिनी सिवाना तामार से लेकर कादेश के मरीबोत नाम सोते तक अर्यात् मिस्र के नाले तक, और महासागर तक महुंचे। दक्खिनी सिवाना यही हो।
20. और पश्चिमीसिवाना दक्खिनी सिवाने से लेकर हमात की घाटी के साम्हने तक का महासागर हो। पच्छिमी सिवाना यही हो।
21. इस प्रकार देश को इस्राएल के गोत्रोंके अनुसार आपस में बांट लेना।
22. और इसको आपस में और उन परदेशियोंके साय बांट लेना, जो तुम्हारे बीच रहते हुए बालकोंको जन्माएं। वे तुम्हारी दृष्टि में देशी इस्राएलियोंकी नाई ठहरें, और तुम्हारे गोत्रोंके बीच अपना अपना भाग पाएं।
23. जो परदेशी जिस गोत्र के देश में रहता हो, उसको वहीं भाग देना, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
Chapter 48
1. गोत्रें के भाग थे हों; उत्तर सिवाने से लगा हुआ हेतलोन के मार्ग के पास से हमात की घाटी तक, और दमिश्क के सिवाने के पास के हमरेनान से उत्तर ओर हमात के पास तक एक भाग दान का हो; और उसके पूवीं और पश्चिमी सिवाने भी हों।
2. दान के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पश्चिम तक आशेर का एक भाग हो।
3. आशेर के सिवाने से लगा हुआ, पूर्व से पश्चिम तक नप्ताली का एक भाग हो।
4. तप्ताली के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पश्चिम तक मनश्शे का एक भाग।
5. मनश्शे के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक एप्रैम का एक भाग हो।
6. एप्रैम के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक रूबेन का एक भाग हो।
7. और रूबेन के सिवाने से लगा हुआ, पूर्व से पच्छिम तक यहूदा का एक भाग हो।
8. यहूदा के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक वह अर्पण किया हुआ भाग हो, जिसे तुम्हें अर्पण करना होगा, वह पच्चीस हजार बांस चौड़ा और पूर्व से पच्छिम तक किसी एक गोत्र के भाग के तुल्य लम्बा हो, और उसके बीच में पवित्रस्यान हो।
9. जो भाग तुम्हें यहोवा को अर्पण करना होगा, उसकी लम्बाई पच्चास हजार बांस और चौड़ाई दस हजार बांस की हो।
10. यह अर्पण किया हुआ पवित्र भाग याजकोंको मिले; वह उत्तर ओर पच्चीस हजार बांस लम्बा, पच्छिम ओर दस हजार बांस चौड़ा, पूर्व ओर दस हजार बांस चौड़ा और दक्खिन ओर पच्चीस हजार बांस लम्बा हो; और उसके बीचोबीच यहोवा का पवित्रस्यान हो।
11. यह विशेष पवित्र भाग सादोक की सन्तान के उन याजकोंका हो जो मेरी आज्ञाओं को पालते रहे, और इस्राएलियोंके भटक जाने के समय लेवियोंकी नाई न भटके थे।
12. सो देश के अर्पण किए हुए भाग में से यह उनके लिथे अर्पण किया हुआ भाग, अर्यात््परमपवित्र देश ठहरे; और लेवियोंके सिवाने से लगा रहे।
13. और याजकोंके सिवाने से लगा हुआ लेवियोंका भाग हो, वह पच्चीस हजार बांस लम्बा और दस हजार बांस चौड़ा हो। सारी लम्बाई पच्चीस हजार बांस की और चोड़ाई दस हजार बांस की हो।
14. वे उस में से न तो कुछ बेजें, न दूसरी भूमि से बदलें; और न भूमि की पहिली उपज और किसी को दी जाए। क्योंकि वह यहोवा के लिथे पवित्र है।
15. और चौड़ाई के पच्चीस हजार बांस के साम्हने जो पांच हजार बचा रहेगा, वह नगर और बस्ती और चराई के लिथे साधारण भाग हो; और नगर उसके बीच में हो।
16. ओर नगर की यह माप हो, अर्यात् उत्तर, दक्खिन, पूर्व और पच्छिम ओर साढ़े चार चार हजार हाथ।
17. और नगर के पास उत्तर, दक्खिन, पूर्व, पच्छिम, चराइयां होंजो अढ़ाई अढ़ाई सौ बांस चौड़ी हों।
18. और अर्पण किए हुए पवित्र भाग के पास की लम्बाई में से जो कुछ बचे, अर्यात् पूर्व और पच्छिम दोनोंओर दस दस बांस जो अर्पण किए हुए भाग के पास हो, उसकी उपज नगर में परिश्र्म करनेवालोंके खाने के लिथे हो।
19. और इस्राएल के सारे गोत्रोंमें से जो तगर में परिश्र्म करें, वे उसकी खेती किया करें।
20. सारा अर्पण किया हुआ भाग पच्चीस हजार बांस लम्बा और पच्चीस हजार बांस चौड़ा हो; तुम्हें चौकोना पवित्र भाग अर्पण करना होगा जिस में नगर की विशेष भूमि हो।
21. और जो भाग रह जाए, वह प्रधान को मिले। पवित्र अर्पण किए हुए भाग की, और नगर की विशेष भूमि की दोनोंओर अर्यात् उनकी पूर्व और पच्छिम अलंगोंके पच्चीस पच्चीस हजार बांस की चौड़ाई के पास, जो ओर गोत्रोंके भागोंके पास रहे, वह प्रधान को मिले। और अर्पण किया हुआ पवित्र भाग और भवन का पवित्रस्यान उनके बीच में हो।
22. जो प्रधान का भाग होगा, वह लेवियोंके बीच और नगरोंकी विशेष भूमि हो। प्रधान का भाग यहूदा और बिन्यामीन के सिवाने के बीच में हो।
23. अन्य गोत्रें के भाग इस प्रकार हों: पूर्व से पच्छिम तक बिन्यामीन का एक भाग हो।
24. बिन्यामीन के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक शिमोन का एक भाग।
25. शिमोन के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक इस्साकार का एक भाग।
26. इस्साकार के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक जबूलून का एक भाग।
27. जबूलून के सिवाने से लगा हुआ पूर्व से पच्छिम तक गाद का एक भाग।
28. और गाद के सिवाने के पास दक्खिन ओर का सिवाना तामार से लेकर कादेश के मरीबोत नाम सोते तक, और मिस्र के नाले ओर महासागर तक पहुंचे।
29. जो देश तुम्हें इस्राएल के गोत्रोंको बांटना होगा वह यही है, और उनके भाग भी थे ही हैं, परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।
30. तगर के निकास थे हों, अर्यात् उत्तर की अलंग जिसकी लम्बाई साढ़े चार हजार बांस की हो।
31. उस में तीन फाटक हों, अर्यात् एक रूबेन का फाटक, एक यहूदा का फाटक, और एक लेवी का फाटक हो; क्योंकि नगर के फाटकोंके नाम इस्राएल के गोत्रोंके नामोंपर रखने होंगे।
32. और पूरब की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी जो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यात् एक यूसुफ का फाटक, एक बिन्यामीन का फाटक, और एक दान का फाटक हो।
33. और दक्खिन की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी हो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यात् एक शिमोन का फाटक, एक इस्साकार का फाटक, और एक जबूलून का फाटक हो।
34. और पश्चिम की अलंग साढ़े चार हजार बांस लम्बी हो, और उस में तीन फाटक हों; अर्यत् एक गाद का फाटक, एक आशेर का फाटक और नप्ताली का फाटक हो।
35. तगर की चारोंअलंगोंका घेरा अठारह हजार बांस का हो, और उस दिन से आगे को नगर का नाम “यहोवा शाम्मा” रहेगा।
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