रोमियो (Romans)
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और पे्ररित होने के लिथे बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिथे अलग किया गया है।
2. जिस की उस ने पहिले ही से अपके भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्र शास्त्र में।
3. अपके पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की यी, जो शरीर के भाव से तो दाद के वंश से उत्पन्न हुआ।
4. और पवित्रता की आत्क़ा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्य के साय परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।
5. जिस के द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली; कि उसके नाम के कारण सब जातियोंके लोग विश्वास करके उस की मानें।
6. जिन में से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिथे बुलाए गए हो।
7. उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिथे बुलाए गए हैं।। हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
8. पहिले मैं तुम सब के लिथे यीशु मसीह के द्वारा अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है।
9. परमेश्वर जिस की सेवा मैं अपक्की आत्क़ा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूं, वही मेरा गवाह है; कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्क़रण करता रहता हूं।
10. और नित्य अपक्की प्रार्यनाओं में बिनती करता हूं, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सुफल हो।
11. क्योंकि मै। तुम से मिलने की लालसा करता हूं, कि मैं तुम्हें कोई आत्क़िक बरदान दूं जिस से तुम स्यिर हो जाओ।
12. अर्यात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साय उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पां।
13. और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस से अनजान रहो, कि मैं ने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियोंमें फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रूका रहा।
14. मैं यूनानियोंऔर अन्यभाषियोंका और बुद्धिमानोंऔर निर्बुद्धियोंका कर्जदान हूं।
15. सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं।
16. क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिथे कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिथे, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिथे उद्धार के निमाि परमेश्वर की सामर्य है।
17. क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिथे प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।।
18. परमेश्वर का ोध तो उन लोगोंकी सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
19. इसलिथे कि परमश्ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनोंमें प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
20. क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्यात् उस की सनातन सामर्य, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामोंके द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूार हैं।
21. इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्य विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।
22. वे अपके आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।
23. और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पझियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।।
24. इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषोंके अुनसार अशुद्धता के लिथे छोड़ दिया, कि वे आपस में अपके शरीरोंका अनादर करें।
25. क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर फूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।।
26. इसलिथे परमश्ेवर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्त्रियोंने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला।
27. वैसे ही पुरूष भी स्त्रियोंके साय स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषोंने पुरूषोंके साय निर्लज्ज़ काम करके अपके भ्रम का ठीक फल पाया।।
28. और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिथे परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
29. सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और फगड़े, और छल, और ईर्षा से भरपूर हो गए, और चुगलखोर।
30. बदनाम करनेवाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरोंका अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातोंके बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा न माननेवाले।
31. निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मयारिहत और निर्दय हो गए।
32. वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले मुत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तौभी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं, बरन करनेवालोंसे प्रसन्न भी होते हैं।।
Chapter 2
1. सो हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्योंन हो; तू निरूार है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपके आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिथे कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।
2. और हम जातने हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3. और हे मनुष्य, तू जो ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर दोष लगाता है, और आप वे ही काम करता है; क्या यह समझता है, कि तू परमेश्वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा
4. क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन को तुच्छ जानता है और कया यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है
5. पर अपक्की कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके ोध के दिन के लिथे, जिस में परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपके निमाि ोध कमा रहा है।
6. वह हर एक को उसके कामोंके अनुसार बदला देगा।
7. जो सुकर्म में स्यिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में है, उन्हें अनन्त जीवन देगा।
8. पर जो विवादी हैं, और सत्य को नहीं मानते, बरन अधर्म को मानते हैं, उन पर ोध और कोप पकेगा।
9. और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है, पहिले यहूदी पर फिर यूनानी पर।
10. पर महिमा और आदर ओर कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहिले यहूदी को फिर यूनानी को।
11. क्योंकि परमेश्वर किसी का पझ नहीं करता।
12. इसलिथे कि जिन्होंने बिना व्यवस्या पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्या के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्या पाकर पाप किया, उन का दण्ड व्यवस्या के अनुसार होगा।
13. क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्या के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्या पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएंगे।
14. फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्या नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्या की बातोंपर चलते हैं, तो व्यवस्या उन के पास न होने पर भी वे अपके लिथे आप ही व्यवस्या हैं।
15. वे व्यवस्या की बातें अपके दयोंमें लिखी हुई दिखने हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है।
16. जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्योंकी गुप्त बातोंका न्याय करेगा।।
17. यदि तू यहूदी कहलाता है, और व्यवस्या पर भरोसा रखता है, और परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है।
18. और उस की इच्छा जानता और व्यवस्या की शिझा पाकर उाम उाम बातोंको प्रिय जानता है।
19. और अपके पर भरोसा रखता है, कि मैं अन्धोंका अगुवा, और अन्धकार में पके हुओं की ज्योति।
20. और बुद्धिहीनोंका सिखानेवाला, और बालकोंका उपकेशक हूं, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्या में है, मुझे मिला है।
21. सो क्या तू जो औरोंको सिखाता है, अपके आप को नहीं सिखाता क्या तू चोरी न करने का उपकेश देता है, आप ही चोरी करता है
22. तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है तू जो मूरतोंसे घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरोंको लूटता है।
23. तू जो व्यवस्या के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्या न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है
24. क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियोंमें परमेश्वर के नाम की निन्दा की जाती है जैसा लिखा भी है।
25. यदि तू व्यवस्या पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्या को न माने, तो तेरा खतना बिन खतना की दशा ठहरा।
26. सो यदि खतनारिहत मनुष्य व्यवस्या की विधियोंको माना करे, तो क्या उस की बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी
27. और जो मनुष्य जाति के कारण बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्या को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्या को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा
28. क्योंकि वह यहूदी नहीं, पर प्रगट में है, और देह में है।
29. पर यहूदी वही है, जो मन में है; और खतना वही है, जो दय का और आत्क़ा में है; न कि लेख का: ऐसे की प्रशंसा मनुष्योंकी ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है।।
Chapter 3
1. सो यहूदी की क्या बड़ाई, या खतने का क्या लाभ
2. हर प्रकार से बहुत कुछ। पहिले तो यह कि परमश्ेवर के वचन उन को सौंपे गए।
3. यदि कितने विश्वसघाती निकले भी तो क्या हुआ। क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्य ठहरेगी
4. कदापि नहीं, बरन परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य फूठा ठहरे, जैसा लिखा है, कि जिस से तू अपक्की बातोंमें धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए।
5. सो यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धामिर्कता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें क्या यह कि परमेश्वर जो ोध करता है अन्यायी है यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूं।
6. कदापि नहीं, नहीं तो परमेश्वर क्योंकर जगत का न्याय करेगा
7. यदि मेरे फूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उस को महिमा के लिथे अधिक करके प्रगट हुई, तो फिर क्योंपापी की नाई मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूं
8. और हम क्योंबुराई न करें, कि भलाई निकले जब हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कितने कहते हैं कि इन का यही कहना है: परन्तु ऐसोंका दोषी ठहराना ठीक है।।
9. तो फिर क्या हुआ क्या हम उन से अच्छे हैं कभी नहंी; क्योंकि हम यहूदियोंऔर यूनानियोंदोनोंपर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं।
10. जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
11. कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजनेवाला नहीं।
12. सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं।
13. उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हीं ने अपक्की जीभोंसे छल किया है: उन के होठोंमें सापोंका विष है।
14. और उन का मुंह श्रप और कड़वाहट से भरा है।
15. उन के पांव लोहू बहाने को र्फुतीले हैं।
16. उन के मार्गोंमें नाश और क्लेश है।
17. उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
18. उन की आंखोंके साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
19. हम जानते हैं, कि व्यवस्या जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्या के आधीन हैं: इसलिथे कि हर एक मुंह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
20. क्योंकि व्यवस्या के कामोंसे कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिथे कि व्यवस्या के द्वारा पाप की पहिचान होती है।
21. पर अब बिना व्यवस्या परमेश्वर की धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्या और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
22. अर्यात् परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालोंके लिथे है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
23. इसलिथे कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रिहत है।
24. परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
25. उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चाि ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपक्की सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपक्की धामिर्कता प्रगट करे।
26. बरन इसी समय उस की धामिर्कता प्रगट हो; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।
27. तो घमण्ड करना कहां रहा उस की तो जगह ही नहीं: कौन सी व्यवस्या के कारण से क्या कर्मोंकी व्यवस्या से नहीं, बरन विश्वास की व्यवस्या के कारण।
28. इसलिथे हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्या के कामोंके बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।
29. क्या परमेश्वर केवल यहूदियोंहीं का है क्या अन्यजातियोंका नहीं हां, अन्यजातियोंका भी है।
30. क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतनावालोंको विश्वास से और खतनारिहतोंको भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा।
31. तो क्या हम व्यवस्या को विश्वास के द्वारा व्यर्य ठहराते हैं कदापि नहीं; बरन व्यवस्या को स्यिर करते हैं।।
Chapter 4
1. सो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्या प्राप्त हुआ
2. क्योंकि यदि इब्राहीम कामोंसे धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं।
3. पवित्र शास्त्र क्या कहता है यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिथे धामिर्कता गिना गया।
4. काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु ह? समझा जाता है।
5. परन्तु जो काम नहीं करता बरन भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिथे धामिर्कता गिना जाता है।
6. जिसे परमेश्वर बिना कमोंके धर्मी ठहराता है, उसे दाद भी धन्य कहता है।
7. कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म झमा हुए, और जिन के पाप ढ़ापे गए।
8. धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।
9. तो यह धन्य कहना, क्या खतनावालोंही के लिथे है, या खतनारिहतोंके लिथे भी हम यह कहते हैं, कि इब्राहीम के लिथे उसका विश्वास धामिर्कता गिना गया।
10. तो वह क्योंकर गिना गया खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में।
11. और उस ने खतने का चिन्ह पाया, कि उस विश्वास की धामिर्कता पर छाप हो जाए, जो उस ने बिना खतने की दशा में रखा या: जिस से वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, और कि वे भी धर्मी ठहरें।
12. और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता इब्राहीम के उस विश्वास की लीक पर भी चलते हैं, जो उस ने बिन खतने की दशा में किया या।
13. क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न इब्राहीम को, न उसके वंश को व्यवस्या के द्वारा दी गई यी, परन्तु विश्वास की धामिर्कता के द्वारा मिली।
14. क्योंकि यदि व्यवस्यावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्य और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी।
15. व्यवस्या तो ोध उपजाती है और जहां व्यवस्या नहीं वहां उसका टालना भी नहीं।
16. इसी कारण वह विश्वास के द्वारा मिलती है, कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि प्रतिज्ञा सब वंश के लिथे दृढ़ हो, न कि केवल उसक लिथे जो व्यवस्यावाला है, बरन उन के लिथे भी जो इब्राहीम के समान विश्वासवाले हैं: वही तो हम सब का पिता है।
17. जैसा लिखा है, कि मैं ने तुझे बहुत सी जातियोंका पिता ठहराया है उस परमश्ेवर के साम्हने जिस पर उस ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं।
18. उस ने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिथे कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियोंका पिता हो।
19. और वह जो एक सौ वर्ष का या, अपके मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।
20. और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।
21. और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्यी है।
22. इस कारण, यह उसके लिथे धामिर्कता गिना गया।
23. और यह वचन, कि विश्वास उसके लिथे धामिर्कता गिया गया, न केवल उसी के लिथे लिखा गया।
24. बरन हमारे लिथे भी जिन के लिथे विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्यात् हमारे लिथे जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।
25. वह हमारे अपराधोंके लिथे पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिथे जिलाया भी गया।।
Chapter 5
1. से जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साय मेल रखें।
2. जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
3. केवल यही नहीं, बरन हम क्लेशोंमें भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज।
4. ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है।
5. और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्क़ा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
6. क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनोंके लिथे मरा।
7. किसी धर्मी जन के लिथे कोई मरे, यह तो र्दुलभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिथे कोई मरने का भी हियाव करे।
8. परन्तु परमेश्वर हम पर अपके प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिथे मरा।
9. सो जब कि हम, अब उसके लोहूं के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा ोध से क्योंन बचेंगे
10. क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साय हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्योंन पाएंगे
11. और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड भी करते हैं।।
12. इसलिथे जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्योंमें फैल गई, इसलिथे कि सब ने पाप किया।
13. क्योंकि व्यवस्या के दिए जाने तक पाप जगत में तो या, परन्तु जहां व्यवस्या नहीं, वहां पाप गिना नहीं जाता।
14. तौभी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगोंपर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम के अपराध की नाईं जो उस आनेवाले का चिन्ह है, पाप न किया।
15. पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के बरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्यात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागोंपर अवश्य ही अधिकाई से हुआ।
16. और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुअ, परन्तु बहुतेरे अपराधोंसे ऐसा बरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे।
17. क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कराण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूमी बरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्यात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।
18. इसलिथे जैसा एक अपराध सब मनुष्योंके लिथे दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वेसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्योंके लिथे जीवन के निमाि धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ।
19. क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।
20. और व्यवस्या बीच में आ गई, कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहां पाप बहुत हुआ, वहां अनुग्रह उस से भी कहीं अधिक हुआ।
21. कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिथे धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।।
Chapter 6
1. सो हम क्या कहें क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो
2. कदापि नहीं, हम जब पाप के लिथे मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिनाएं
3. क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनोंने मसीह यीशु का बपतिस्क़ा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्क़ा लिया
4. सो उस मृत्यु का बपतिस्क़ा पाने से हम उसके साय गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।
5. क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साय जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।
6. क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साय ूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्य हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें।
7. क्योंकि जो मर गया, वह पाप से छूटकर धर्मी ठहरा।
8. सो यदि हम मसीह के साय मर गए, तो हमारा विश्वास यह है, कि उसके साय जीएंगे भी।
9. क्योंकि यह जानते हैं, कि मसीह मरे हुओं में से जी उठकर फिर मरने का नहीं, उस पर फिर मृत्यु की प्रभुता नहीं होने की।
10. क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिथे एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्वर के लिथे जीवित है।
11. ऐसे ही तुम भी अपके आप को पाप के लिथे तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिथे मसीह यीशु में जीवित समझो।
12. इसलिथे पाप तुम्हारे मरनहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के अधीन रहो।
13. और न अपके अंगो को अधर्म के हिययार होने के लिथे पाप को सौंपो, पर अपके आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमश्ेवर को सौंपो, और अपके अंगो को धर्म के हिययार होने के लिथे परमेश्वर को सौंपो।
14. और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्या के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हो।।
15. तो क्या हुआ क्या हम इसलिथे पाप करें, कि हम व्यवस्या के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हैं कदापि नहीं।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिथे तुम अपके आप को दासोंकी नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है
17. परन्तु परमश्ेवर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपकेश के माननेवाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे।
18. और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए।
19. मैं तुम्हारी शारीरिक र्दुबलता के कारण मनुष्योंकी रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपके अंगो को कुकर्म के लिथे अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा या, वैसे ही अब अपके अंगोंको पवित्रता के लिथे धर्म के दास करके सौंप दो।
20. जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे।
21. सो जिन बातोंसे अब तुम लज्ज़ित होते हो, उन से उस समय तुम क्या फल पाते थे
22. क्योंकि उन का अन्त तो मृत्यु है परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।
23. क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का बरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।।
Chapter 7
1. हे भाइयो, क्या तुम नहीं जातने मैं व्यवस्या के जाननेवालोंसे कहता हूं, कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तक तक उस पर व्यवस्या की प्रभूता रहती है
2. क्योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्या के अनुसार अपके पति के जीते जी उस से बन्धी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्या से छूट गई।
3. सो यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्या से छूट गई, यहां तक कि यदि किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
4. सो हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्या के लिथे मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिथे फल लाएं।
5. क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापोंकी अभिलाषाथें जो व्यवस्या के द्वारा यी, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिथे हमारे अंगोंमें काम करती यीं।
6. परन्तु जिस के बन्धन में हम थे उसके लिथे मर कर, अब व्यवस्या से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, बरन आत्क़ा की नई रीति पर सेवा करते हैं।।
7. तो हम क्या कहें क्या व्यवस्या पाप है कदापि नहीं! बरन बिना व्यवस्या के मैं पाप को नहीं पहिचानता: व्यवस्या यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।
8. परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया, क्योंकि बिना व्यवस्या के पाप मुर्दा है।
9. मैं तो व्यवस्या बिना पहिले जीवित या, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया।
10. और वही आज्ञा जो जीवन के लिथे यी; मेरे लिथे मृत्यु का कारण ठहरी।
11. क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझै बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला।
12. इसलिथे व्यवस्या पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है।
13. तो क्या वह जो अच्छी यी, मेरे लिथे मृत्यु ठहरी कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिथे मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे।
14. क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्या तो आत्क़िक है, परन्तु मैं शरीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूं।
15. और जो मैं करता हूं, उस को नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं।
16. और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूं, तो मैं मान लेता हूं, कि व्यवस्या भली है।
17. तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, बरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है।
18. क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्यात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
19. क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं।
20. परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।
21. सो मैं यह व्यवस्या पाता हूं, कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है।
22. क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्या से बहुत प्रसन्न रहता हूं।
23. परन्तु मुझे अपके अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्या दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्या से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्या के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगोंमें है।
24. मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा
25. मैं अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्या का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्या का सेवन करता हूं।।
Chapter 8
1. सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्क़ा के अनुसार चलते हैं।
2. क्योंकि जीवन की आत्क़ा की व्यवस्या ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्या से स्वतंत्र कर दिया।
3. क्योंकि जो काम व्यवस्या शरीर के कारण र्दुबल होकर न कर सकी, उस को परमेश्वर ने किया, अर्यात् अपके ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिथे भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।
4. इसलिथे कि व्यवस्या की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्क़ा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए।
5. क्योंकि शरीरिक व्यक्ति शरीर की बातोंपर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्क़िक आत्क़ा की बातोंपर मन लगाते हैं।
6. शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्क़ा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है।
7. क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्या के अधीन है, और न हो सकता है।
8. और जो शारीरिक दशा में है, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।
9. परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्क़ा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्क़िक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्क़ा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
10. और यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्क़ा धर्म के कारण जीवित है।
11. और यदि उसी का आत्क़ा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहोंको भी अपके आत्क़ा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
12. सो हे भाइयो, हम शरीर के कर्जदान नहीं, ताकि शरीर के अनुसार दिन काटें।
13. क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्क़ा से देह की यािओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे।
14. इसलिथे कि जितने लोग परमेश्वर के आत्क़ा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं।
15. क्योंकि तुम को दासत्व की आत्क़ा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्क़ा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।
16. आत्क़ा आप ही हमारी आत्क़ा के साय गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
17. और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साय दुख उठाएं कि उसके साय महिमा भी पाएं।।
18. क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।
19. ैक्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रोंके प्रगट होने की बाट जोह रही है।
20. क्योंकि सृष्टि अपक्की इच्छा से नहीं पर आधीन करनेवाले की ओर से व्यर्यता के आधीन इस आशा से की गई।
21. कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानोंकी महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
22. क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पक्की है।
23. और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्क़ा का पहिला फल है, आप ही अपके में कहरते हैं; और लेपालक होने की, अर्यात् अपक्की देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।
24. आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही क्योकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्या करेगा
25. परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जाहते भी हैं।।
26. इसी रीति से आत्क़ा भी हमारी र्दुबलता में सहाथता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्यना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्क़ा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिथे बिनती करता है।
27. और मनोंका जांचनेवाला जानता है, कि आत्क़ा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगोंके लिथे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।
28. और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिथे सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्यात् उन्हीं के लिथे जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
29. क्योंकि जिन्हें उस ने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में होंताकि वह बहुत भाइयोंमें पहिलौठा ठहरे।
30. फिर जिन्हें उन से पहिले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।।
31. सो हम इन बातोंके विषय में क्या कहें यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है
32. जिस ने अपके निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिथे दे दिया: वह उसके साय हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा
33. परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है।
34. फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा मसीह वह है जो मर गया बरन मुर्दोंमें से जी भी उठा, और परमेश्वर की दिहती ओर है, और हमारे लिथे निवेदन भी करता है।
35. कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार
36. जैसा लिखा है, कि तेरे लिथे हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेंडोंकी नाई गिने गए हैं।
37. परन्तु इन सब बातोंमें हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।
38. क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्य, न ंचाई,
39. न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।।
Chapter 9
1. मैं मसीह में सच कहता हूं, फूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्क़ा में गवाही देता है।
2. कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है।
3. क्योंकि मैं यहां तक चाहता या, कि अपके भाईयों, के लिथे जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से शापित हो जाता।
4. वे इस्त्राएली हैं; और लेपालकपन का ह? और महिमा और वाचाएं और व्यवस्या और उपासना और प्रतिज्ञाएं उन्हीं की हैं।
5. पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ, जो सब के पर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन।
6. परन्तु यह नहीं, कि परमेश्वर का वचन टल गया, इसलिथे कि जो इस्त्राएल के वंश हैं, वे सब इस्त्राएली नहीं।
7. और न इब्राहीम के वंश होने के कारण सब उस की सन्तान ठहरे, परन्तु लिखा है कि इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।
8. अर्यात् शरीर की सन्तान परमेश्वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं।
9. क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है, कि मैं इस समय के अनुसार आंगा, और सारा के पुत्र होगा।
10. और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्यात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती यी।
11. और अभी तक न तो बालक जन्क़े थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया या कि उस ने कहा, कि जेठा छुटके का दास होगा।
12. इसलिथे कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मोंके कारण नहीं, परन्तु बुलानेवाले पर बनी रहे।
13. जैसा लिखा है, कि मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसौ को अप्रिय जाना।।
14. सो हम क्या कहें क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है कदापि नहीं!
15. क्योंकि वह मूसा से कहता है, मैं जिस किसी पर दया करना चाहूं, उस पर दया करूंगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूं उसी पर कृपा करूंगा।
16. सो यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात है।
17. क्योंकि पवित्र शास्त्र में फिरौन से कहा गया, कि मैं ने तुझे इसी लिथे खड़ा किया है, कि तुझ में अपक्की सामर्य दिखां, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृय्वी पर हो।
18. सो वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है।
19. सो तू मुझ से कहेगा, वह फिर क्योंदोष लगाता है कौन उस की इच्छा का साम्हना करता हैं
20. हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है कि तू ने मुझे ऐसा क्योंबनाया है
21. क्या कुम्हार को मिी पर अधिक्कारने नहीं, कि एक ही लौंदे मे से, एक बरतन आदर के लिथे, और दूसरे को अनादर के लिथे बनाए तो इस में कौन सी अचम्भे की बात है
22. कि परमेश्वर ने अपना ोध दिखाने और अपक्की सामर्य प्रगट करने की इच्छा से ोध के बरतनोंकी, जो विनाश के लिथे तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही।
23. और दया के बरतनोंपर जिन्हें उस ने महिमा के लिथे पहिले से तैयार किया, अपके महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की
24. अर्यात् हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियोंमें से बरन अन्यजातियोंमें से भी बुलाया।
25. जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न यी, उन्हें मैं अपक्की प्रजा कहूंगा, और जो प्रिया न यी, उसे प्रिया कहूंगा।
26. और ऐसा होगा कि जिस जगह में उन से यह कहा गया या, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्वर की सन्तान कहलाएंगे।
27. और यशायाह इस्त्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, कि चाहे इस्त्राएल की सन्तानोंकी गिनती समुद्र के बालू के बारबर हो, तौभी उन में से योड़े ही बचेंगे।
28. क्योंकि प्रभु अपना वचन पृय्वी पर पूरा करके, धामिर्कता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।
29. जैसा यशायाह ने पहिले भी कहा या, कि यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिथे कुछ वंश न छोड़ता, तो हम सदोम की नाईं हो जाते, और अमोरा के सरीखे ठहरते।।
30. सो हम क्या कहें यह कि अन्यजातियोंने जो धामिर्कता की खोज नहीं करते थे, धामिर्कता प्राप्त की अर्यात् उस धामिर्कता को जो विश्वास से है।
31. परन्तु इस्त्राएली; जो धर्म की व्यवस्या की खोज करते हुए उस व्यवस्या तक नहीं पहुंचे।
32. किस लिथे इसलिथे कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानोंकर्मोंसे उस की खोज करते थे: उन्होंने उस ठोकर के पत्यर पर ठोकर खाई।
33. जैसा लिखा है; देखो मैं सियोन में एक ठेस लगने का पत्यर, और ठोकर खाने की चटान रखता हूं; और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्ज़ित न होगा।।
Chapter 10
1. हे भाइयो, मेरे मन की अभिलाषा और उन के लिथे परमेश्वर से मेरी प्रार्यना है, कि वे उद्धार पाएं।
2. क्योंकि मैं उन की गवाही देता हूं, कि उन को परमेश्वर के लिथे धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साय नहीं।
3. क्योकिं वे परमेश्वर की धामिर्कता से अनजान होकर, और अपक्की धामिर्कता स्यापन करने का यत्न करके, परमेश्वर की धामिर्कता के आधीन न हुए।
4. क्योंकि हर एक विश्वास करनेवाले के लिथे धामिर्कता के निमाि मसीह व्यवस्या का अन्त है।
5. क्योंकि मूसा ने यह लिखा है, कि जो मनुष्य उस धामिर्कता पर जो व्यवस्या से है, चलता है, वह इसी कारण जीवित रहेगा।
6. परन्तु जो धामिर्कता विश्वास से है, वह योंकहती है, कि तू अपके मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा अर्यात् मसीह को उतार लाने के लिथे!
7. या गहिराव में कौन उतरेगा अर्यात् मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर पर लाने के लिथे!
8. परन्तु क्या कहती है यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं।
9. कि यदि तू अपके मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपके मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।
10. क्योंकि धामिर्कता के लिथे मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिथे मुंह से अंगीकार किया जाता है।
11. क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्ज़ित न होगा।
12. यहूदियोंऔर यूनानियोंमें कुछ भेद नहीं, इसलिथे कि वह सब का प्रभु है; और अपके सब नाम लेनेवालोंके लिथे उदार है।
13. क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।
14. फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें
15. और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातोंका सुसमाचार सुनाते हैं।
16. परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया: यशायाह कहता है, कि हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार की प्रतीति की है
17. सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।
18. परन्तु मैं कहता हूं, क्या उन्होंने नहीं सुना सुना तो सही क्योंकि लिखा है कि उन के स्वर सारी पृय्वी पर, और उन के वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।
19. फिर मैं कहता हूं। क्या इस्त्राएली नहीं जानते थे पहिले तो मूसा कहता है, कि मैं उन के द्वारा जो जाति नहीं, तुम्हारे मन में जलन उपजांगा, मैं एक मूढ़ जाति के द्वारा तुम्हें रिस दिलांगा।
20. फिर यशायाह बड़े हियाव के साय कहता है, कि जो मुझे नहीं ढूंढ़ते थे, उन्होंने मुझे पा लिया: और जो मुझे पूछते भी न थे, उन पर मैं प्रगट हो गया।
21. परन्तु इस्त्राएल के विषय में वह यह कहता है कि मैं सारे दिन अपके हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली प्रजा की ओर पसारे रहा।।
Chapter 11
1. इसलिथे मैं कहता हूं, क्या परमेश्वर ने अपक्की प्रजा को त्याग दिया कदापि नहीं; मैं भी तो इस्त्राएली हूं: इब्राहीम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूं।
2. परमेश्वर ने अपक्की उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उस ने पहिले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र शास्त्र एलियाह की कया में क्या कहता है; कि वह इस्त्राएल के विरोध में परमेश्वर से बिनती करता है।
3. कि हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को घात किया, और तेरी वेदियोंको ढ़ा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूं, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।
4. परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उार मिला कि मैं ने अपके लिथे सात हजार पुरूषोंको रख छोड़ा है जिन्होंने बाअल के आग घुटने नहीं टेके हैं।
5. सो इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कितने लोग बाकी हैं।
6. यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मोंसे नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा।
7. सो परिणाम क्या हुआ यह कि इस्त्राएली जिस की खोज में हैं, वह उन को नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं।
8. जैसा लिखा है, कि परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक भारी नींद में डाल रखा है और ऐसी आंखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।
9. और दाद कहता है; उन का भोजन उन के लिथे जाल, और फन्दा, और ठोकर, और दण्ड का कारण हो जाए।
10. उन की आंखोंपर अन्धेरा छा जाए ताकि न देखें, और तू सदा उन की पीठ को फुकाए रख।
11. सो मैं कहता हूं क्या उन्होंने इसलिथे ठोकर खाई, कि गिर पकें कदापि नहीं: परन्तु उन के गिरने के कारण अन्यजानियोंको उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो।
12. सो यदि उन का गिरना जगत के लिथे धन और उन की घटी अन्यजातियोंके लिथे सम्पाि का कारण हुआ, तो उन की भरपूरी से कितना न होगा।।
13. मैं तुम अन्यजातियोंसे यह बातें कहता हूं: जब कि मैं अन्याजातियोंके लिथे प्रेरित हूं, तो मैं अपक्की सेवा की बड़ाई करता हूं।
14. ताकि किसी रीति से मैं अपके कुटुम्बियोंसे जलन करवाकर उन में से कई एक का उद्धार करां।
15. क्योंकि जब कि उन का त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उन का ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा
16. जब भेंट का पहिला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गुंधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियां भी ऐसी ही हैं।
17. और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई, और तू जंगली जलपाई होकर उन में साटा गया, और जलपाई की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है।
18. तो डालियोंपर घमण्ड न करना: और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।
19. फिर तू कहेगा डालियां इसलिथे तोड़ी गई, कि मैं साटा जां।
20. भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिथे अभिमानी न हो, परन्तु भय कर।
21. क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियां न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा।
22. इसलिथे परमेश्वर की कृपा और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर कृपा, यदि तू उस में बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा।
23. और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएंगे क्योंकि परमश्ेवर उन्हें फिर साट सकता है।
24. क्योंकि यदि तू उस जलपाई से, जो स्वभाव से जंगली है काटा गया और स्वभाव के विरूद्ध अच्छी जलपाई में साटा गया तो थे जो स्वाभाविक डालियां हैं, अपके ही जलपाई में साटे क्योंन जाएंगे।
25. हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपके आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिथे मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियां पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।
26. और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है, कि छुड़ानेवाला सियोन से आएगा, और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।
27. और उन के साय मेरी यही वाचा होगी, जब कि मैं उन के पापोंको दूर कर दूंगा।
28. वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे बैरी हैं, परन्तु चुन लिथे जाने के भाव से बापदादोंके प्यारे हैं।
29. क्योंकि परमेश्वर अपके बरदानोंसे, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।
30. क्योंकि जैसे तुम ने पहिले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उन के आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई।
31. वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इस से उन पर भी दया हो।
32. ैक्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे।।
33. आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अयाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!
34. प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना या उसका मंत्री कौन हुआ
35. या किस ने पहिले उसे कुछ दिया है जिस का बदला उसे दिया जाए।
36. क्योंकि उस की ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिथे सब कुछ है: उस की महिमा युगानुयुग होती रहे: आमीन।।
Chapter 12
1. इसलिथे हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्क़रण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपके शरीरो कोंजीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्क़िक सेवा है।
2. और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नथे हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।।
3. क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपके आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साय अपके को समझे।
4. क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगोंका एक ही सा काम नहीं।
5. वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
6. और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न बरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
7. यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
8. जो उपकेशक हो, वह उपकेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
9. प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई मे लगे रहो।
10. भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
11. प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्क़िक उन्क़ाद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।
12. आशा मे आनन्दित रहो; क्लेश मे स्यिर रहो; प्रार्यना मे नित्य लगे रहो।
13. पवित्र लोगोंको जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहाथता करो; पहुनाई करने मे लगे रहो।
14. अपके सतानेवालोंको आशीष दो; आशीष दो स्त्राप न दो।
15. आनन्द करनेवालोंके साय आनन्द करो; और रोनेवालोंके साय रोओ।
16. आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनोंके साय संगति रखो; अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान न हो।
17. बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगोंके निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो।
18. जहां तक हो सके, तुम अपके भरसक सब मनुष्योंके साय मेल मिलाप रखो।
19. हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु ोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।
20. परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारोंका ढेर लगाएगा।
21. बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।।
Chapter 13
1. हर एक व्यक्ति प्रधान अधिक्कारनेियोंके अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिक्कारने ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर स न हो; और जो अधिक्कारने हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।
2. इस से जो कोई अधिक्कारने का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करनेवाले दण्ड पाएंगे।
3. क्योंकि हाकिम अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिथे डर का कारण हैं; सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी;
4. क्योंकि वह तेरी भलाई के लिथे परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योकि वह तलवार व्यर्य लिथे हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है; कि उसके ोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे।
5. इसलिथे अधीन रहना न केवल उस ोध से परन्तु डर से अवश्य है, वरन विवेक भी यही गवाही देता है।
6. इसलिथे कर भी दो, क्योंकि परमश्ेवर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।
7. इसलिथे हर एक का ह? चुकाया करो, जिस कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिस से डरना चाहिए, उस से डरो; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।।
8. आपस के प्रेम से छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदान न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्या पूरी की है।
9. क्योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना; चोरी न करना; लालच न करना; और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपके पड़ोसी से अपके समान प्र्रेम रख।
10. प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिथे प्रेम रखना व्यवस्या को पूरा करना है।।
11. और समय को पहिचान कर ऐसा ही करो, इसलिथे कि अब तुम्हारे लिथे नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुंची है, क्योंकिं जिस समय हम ने विश्वास किया या, उस समय के विचार से अब हमारा उद्धार निकट है।
12. रात बहुत बीन गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिथे हम अन्धकार के कामोंको तज कर ज्योति के हिययार बान्ध लें।
13. जैसा दिन को सोहता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें; न कि लीला ीड़ा, और पिय?ड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न फगड़े और डाह में।
14. बरन प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर
Chapter 14
1. जो विश्वास के निर्बल है, उसे अपक्की संगति में ले लो; परन्तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिथे नहीं।
2. क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।
3. और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है।
4. तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है उसक स्यिर रहता या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, बरन वह स्यिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्यिर रख सकता है।
5. कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपके ही मन में निश्चय कर ले।
6. जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिथे मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिथे खाता है, क्योंकि परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जा नहीं खाता, वह प्रभु के लिथे नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
7. क्योंकि हम में से न तो कोई पअने लिथे जीता है, और न कोई अपके लिथे मरता है।
8. क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिथे जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिथे मरते हैं; सो हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।
9. क्योंकि मसीह इसी लिथे मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनोंका प्रभु हो।
10. तू अपके भाई पर क्योंदोष लगाता है या तू फिर क्योंअपके भाई को तुच्छ जानता है हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
11. क्योंकि लिखा है, कि प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे साम्हने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगा।
12. सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।।
13. सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपके भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
14. मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपके आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उस को अशुद्ध समझता है, उसके लिथे अशुद्ध है।
15. यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता: जिस के लिथे मसीह मरा उस को तू अपके भोजन के द्वारा नाश न कर।
16. अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए।
17. क्योंकि परमश्ेवर का राज्या खानापीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;
18. जो पवित्रआत्क़ा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्योंमें ग्रहणयोग्य ठहरता है।
19. इसलिथे हम उन बातोंका प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
20. भोजन के लिथे परमेश्वर का काम न बिगाड़: सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिथे बुरा है, जिस को उसके भोजन करने से ठोकर लगती है।
21. भला तो यह है, कि तू न मांस खाए, और न दाख रस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिस से तेरा भाई ठोकर खाए।
22. तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के साम्हने अपके ही मन में रख: धन्य है वह, जो उस बात में, जिस वह ठीक समझता है, अपके आप को दोषी नहीं ठहराता ।
23. परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह निश्चय धारणा से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।।
Chapter 15
1. निदान हम बलवानोंको चाहिए, कि निर्बलोंकी निर्बलताओं को सहें; न कि अपके आप को प्रसन्न करें।
2. हम में से हर एक अपके पड़ोसी को उस की भलाई के लिथे सुधारने के निमाि प्रसन्न करे।
3. क्योंकि मसीह ने अपके आप को प्रसन्न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, कि तेरे निन्दकोंकी निन्दा मुझ पर आ पड़ी।
4. जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिझा के लिथे लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।
5. और धीरज, और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हें यह बरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो।
6. ताकि तुम एक मन औश्र् एक मुंह होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह कि पिता परमेश्वर की बड़ाई करो।
7. इसलिथे, जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिथे तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
8. मैं कहता हूं, कि जो प्रतिज्ञाएं बापदादोंको दी गई यीं, उन्हें दृढ़ करने के लिथे मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिथे खतना किए हुए लोगोंका सेवक बना।
9. और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई करें, जैसा लिखा है, कि इसलिथे मैं जाति जाति में तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम के भजन गांगा।
10. फिर कहा है, हे जाति जाति के सब लोगों, उस की प्रजा के साय आनन्द करो।
11. और फिर हे जाति जाति के सब लागो, प्रभु की स्तुति करो; और हे राज्य राज्य के सब लोगो; उसे सराहो।
12. और फिर यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियोंका हाकिम होने के लिथे एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।
13. सो परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्रआत्क़ा की सामर्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।।
14. हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूं, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो।
15. तौभी मैं ने कहीं कहीं याद दिलाने के लिथे तुम्हें जो बहुत हियाव करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है।
16. कि मैं अन्याजातियोंके लिथे मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाई करूं; जिस से अन्यजातियोंका मानोंचढ़ाया जाना, पवित्र आत्क़ा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
17. सो उन बातोंके विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूं।
18. क्योंकि उन बातोंको छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का हियाव नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियोंकी अधीनता के लिथे वचन, और कर्म।
19. और चिन्होंऔर अदभुत् कामोंकी सामर्य से, और पवित्र आत्क़ा की सामर्य से मेरे ही द्वारा किए : यहां तक कि मैं ने यरूशलेम से लेकर चारोंओर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का पूरा पूरा प्रचार किया।
20. पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनां; ऐसा न हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
21. परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
22. इसी लिथे मैं तुम्हारे पास आने से बार बार रूका रहा।
23. परन्तु अब मुझे इन देशोंमें और जगह नहीं रही, और बहुत वर्षोंसे मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
24. इसलिथे जब इसपानिया को जांगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जांगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूं, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुंचा दो।
25. परन्तु अभी तो पवित्र लोगोंकी सेवा करने के लिथे यरूशलेम को जाता हूं।
26. क्योंकि मकिदुनिया और अखया के लोगोंको यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगोंके कंगालोंके लिथे कुछ चन्दा करें।
27. अच्छा तो लगा, परन्तु वे उन के कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उन की आत्क़िक बातोंमें भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातोंमें उन की सेवा करें।
28. सो मैं यह काम पूरा करके और उन को यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जांगा।
29. और मैं जानता हूं, कि जब मैं तुम्हारे पास आंगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साय आंगा।।
30. और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्क़ा के प्रेम का स्क़रण दिला कर, तुम से बिनती करता हूं, कि मेरे लिथे परमेश्वर से प्रार्यना करने में मेरे साय मिलकर लौलीन रहो।
31. कि मैं यहूदिया के अविश्वासिक्कों बचा रहूं, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिथे है, पवित्र लोगोंको भाए।
32. और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साय आकर तुम्हारे साय विश्रम पां।
33. शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साय रहे। आमीन।।
Chapter 16
1. मैं तुम से फीबे की, जो हमारी बहिन और किंखिया की कलीसिया की सेविका है, बिनती करता हूं।
2. कि तुम जैसा कि पवित्र लोगोंको चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उस को तुम से प्रयोजन हो, उस की सहाथता करो; क्योंकि वह भी बहुतोंकी बरन मेरी भी उपकारिणी हुई है।।
3. प्रिसका और अक्विला को भी यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार।
4. उन्होंने मेरे प्राण के लिथे अपना सिर दे रखा या और केवल मैं ही नहीं, बरन अन्यजातियोंकी सारी कलीसियाएं भी उन का धन्यवाद करती हैं।
5. और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उन के घर में है। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिथे आसिया का पहिला फल है, नमस्कार।
6. मरियम को जिस ने तुम्हारे लिथे बहुत परिश्र्म किया, नमस्कार।
7. अन्द्रुनीकुस और यूनियास को जो मेरे कुटम्बी हैं, और मेरे साय कैद हुए थे, और प्रेरितोंमें नामी हैं, और मुझ से पहिले मसीह में हुए थे, नमस्कार।
8. अम्पलियातुस को, जो प्रभु में मेरा प्रिय है, नमस्कार।
9. उरबानुस को, जो मसीह में हमारा सहकर्मी है, और मेरे प्रिय इस्तखुस को नमस्कार।
10. अपिल्लेस को जो मसीह में खरा निकला, नमस्कार। अरिस्तुबुलुस के घराने को नमस्कार।
11. मेरे कुटुम्बी हेरोदियोन को नमस्कार। नरिकयुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उन को नमस्कार।
12. त्रूफैना और त्रूफोसा को जो प्रभु में परिश्र्म करती हैं, नमस्कार। प्रिया पिरिसस को जिस ने प्रभु में बहुत परिश्र्म किया, नमस्कार।
13. रूफुस को जो प्रभु में चुना हुआ है, और उस की माता को जो मेरी भी है, दोनोंको नमस्कार।
14. असुतिुस और फिलगोन और हिमस ओर पत्रुबास और हिमांस और उन के साय के भाइयोंको नमस्कार।
15. फिलुलुगुस और यूलिया और नेर्युस और उस की बहिन, और उलुम्पास और उन के साय के सब पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो: तुम को मसीह की सारी कलीसियाओं की ओर से नमस्कार।।
16. आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो तुम को मसीह की सारी कलीस्यािओं की ओर से नमस्कार।
17. अब हे भाइयो, मैं तुम से बिनती करता हूं, कि जो लोग उस शिझा के विपक्कीत जो तुम ने पाई है, फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उन से दूर रहो।
18. क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपके पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुमड़ी बातोंसे सीधे सादे मन के लोगोंको बहका देते हैं।
19. तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगोंमें फैल गई है; इसलिथे मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूं; परन्तु मैं यह चाहता हूं, कि तुम भलाई के लिथे बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिथे भोले बने रहो।
20. शान्ति का परमेश्वर शैतान को तुम्हारे पांवोंसे शीघ्र कुचलवा देगा।। हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
21. तीमुयियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियोंका, तुम को नमस्कार।
22. मुझ पत्री के लिखनेवाले तिरितयुस का प्रभु में तुम को नमस्कार।
23. गयुस का जो मेरी और कलीसिया का पहुनाई करनेवाला है उसका तुम्हें नमस्कार:
24. इरास्तुस जो नगर का भण्डारी है, और भाई क्वारतुस का, तुम को नमस्कार।।
25. अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्यात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्यिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा।
26. परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकोंके द्वारा सब जातियोंको बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएं।
27. उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और पे्ररित होने के लिथे बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिथे अलग किया गया है।
2. जिस की उस ने पहिले ही से अपके भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्र शास्त्र में।
3. अपके पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की यी, जो शरीर के भाव से तो दाद के वंश से उत्पन्न हुआ।
4. और पवित्रता की आत्क़ा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्य के साय परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।
5. जिस के द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली; कि उसके नाम के कारण सब जातियोंके लोग विश्वास करके उस की मानें।
6. जिन में से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिथे बुलाए गए हो।
7. उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिथे बुलाए गए हैं।। हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
8. पहिले मैं तुम सब के लिथे यीशु मसीह के द्वारा अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है।
9. परमेश्वर जिस की सेवा मैं अपक्की आत्क़ा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूं, वही मेरा गवाह है; कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्क़रण करता रहता हूं।
10. और नित्य अपक्की प्रार्यनाओं में बिनती करता हूं, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सुफल हो।
11. क्योंकि मै। तुम से मिलने की लालसा करता हूं, कि मैं तुम्हें कोई आत्क़िक बरदान दूं जिस से तुम स्यिर हो जाओ।
12. अर्यात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साय उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पां।
13. और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस से अनजान रहो, कि मैं ने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियोंमें फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रूका रहा।
14. मैं यूनानियोंऔर अन्यभाषियोंका और बुद्धिमानोंऔर निर्बुद्धियोंका कर्जदान हूं।
15. सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं।
16. क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिथे कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिथे, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिथे उद्धार के निमाि परमेश्वर की सामर्य है।
17. क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिथे प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।।
18. परमेश्वर का ोध तो उन लोगोंकी सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
19. इसलिथे कि परमश्ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनोंमें प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
20. क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्यात् उस की सनातन सामर्य, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामोंके द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूार हैं।
21. इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्य विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।
22. वे अपके आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।
23. और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पझियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।।
24. इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषोंके अुनसार अशुद्धता के लिथे छोड़ दिया, कि वे आपस में अपके शरीरोंका अनादर करें।
25. क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर फूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।।
26. इसलिथे परमश्ेवर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्त्रियोंने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला।
27. वैसे ही पुरूष भी स्त्रियोंके साय स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषोंने पुरूषोंके साय निर्लज्ज़ काम करके अपके भ्रम का ठीक फल पाया।।
28. और जब उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिथे परमेश्वर ने भी उन्हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
29. सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और फगड़े, और छल, और ईर्षा से भरपूर हो गए, और चुगलखोर।
30. बदनाम करनेवाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरोंका अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातोंके बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा न माननेवाले।
31. निर्बुद्धि, विश्वासघाती, मयारिहत और निर्दय हो गए।
32. वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले मुत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तौभी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं, बरन करनेवालोंसे प्रसन्न भी होते हैं।।
Chapter 2
1. सो हे दोष लगानेवाले, तू कोई क्योंन हो; तू निरूार है! क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी बात में अपके आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिथे कि तू जो दोष लगाता है, आप ही वही काम करता है।
2. और हम जातने हैं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर परमेश्वर की ओर से ठीक ठीक दण्ड की आज्ञा होती है।
3. और हे मनुष्य, तू जो ऐसे ऐसे काम करनेवालोंपर दोष लगाता है, और आप वे ही काम करता है; क्या यह समझता है, कि तू परमेश्वर की दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा
4. क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरजरूपी धन को तुच्छ जानता है और कया यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है
5. पर अपक्की कठोरता और हठीले मन के अनुसार उसके ोध के दिन के लिथे, जिस में परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रगट होगा, अपके निमाि ोध कमा रहा है।
6. वह हर एक को उसके कामोंके अनुसार बदला देगा।
7. जो सुकर्म में स्यिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में है, उन्हें अनन्त जीवन देगा।
8. पर जो विवादी हैं, और सत्य को नहीं मानते, बरन अधर्म को मानते हैं, उन पर ोध और कोप पकेगा।
9. और क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है, पहिले यहूदी पर फिर यूनानी पर।
10. पर महिमा और आदर ओर कल्याण हर एक को मिलेगा, जो भला करता है, पहिले यहूदी को फिर यूनानी को।
11. क्योंकि परमेश्वर किसी का पझ नहीं करता।
12. इसलिथे कि जिन्होंने बिना व्यवस्या पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्या के नाश भी होंगे, और जिन्होंने व्यवस्या पाकर पाप किया, उन का दण्ड व्यवस्या के अनुसार होगा।
13. क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्या के सुननेवाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्या पर चलनेवाले धर्मी ठहराए जाएंगे।
14. फिर जब अन्यजाति लोग जिन के पास व्यवस्या नहीं, स्वभाव ही से व्यवस्या की बातोंपर चलते हैं, तो व्यवस्या उन के पास न होने पर भी वे अपके लिथे आप ही व्यवस्या हैं।
15. वे व्यवस्या की बातें अपके दयोंमें लिखी हुई दिखने हैं और उन के विवेक भी गवाही देते हैं, और उन की चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है।
16. जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्योंकी गुप्त बातोंका न्याय करेगा।।
17. यदि तू यहूदी कहलाता है, और व्यवस्या पर भरोसा रखता है, और परमेश्वर के विषय में घमण्ड करता है।
18. और उस की इच्छा जानता और व्यवस्या की शिझा पाकर उाम उाम बातोंको प्रिय जानता है।
19. और अपके पर भरोसा रखता है, कि मैं अन्धोंका अगुवा, और अन्धकार में पके हुओं की ज्योति।
20. और बुद्धिहीनोंका सिखानेवाला, और बालकोंका उपकेशक हूं, और ज्ञान, और सत्य का नमूना, जो व्यवस्या में है, मुझे मिला है।
21. सो क्या तू जो औरोंको सिखाता है, अपके आप को नहीं सिखाता क्या तू चोरी न करने का उपकेश देता है, आप ही चोरी करता है
22. तू जो कहता है, व्यभिचार न करना, क्या आप ही व्यभिचार करता है तू जो मूरतोंसे घृणा करता है, क्या आप ही मन्दिरोंको लूटता है।
23. तू जो व्यवस्या के विषय में घमण्ड करता है, क्या व्यवस्या न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है
24. क्योंकि तुम्हारे कारण अन्यजातियोंमें परमेश्वर के नाम की निन्दा की जाती है जैसा लिखा भी है।
25. यदि तू व्यवस्या पर चले, तो खतने से लाभ तो है, परन्तु यदि तू व्यवस्या को न माने, तो तेरा खतना बिन खतना की दशा ठहरा।
26. सो यदि खतनारिहत मनुष्य व्यवस्या की विधियोंको माना करे, तो क्या उस की बिन खतना की दशा खतने के बराबर न गिनी जाएगी
27. और जो मनुष्य जाति के कारण बिन खतना रहा यदि वह व्यवस्या को पूरा करे, तो क्या तुझे जो लेख पाने और खतना किए जाने पर भी व्यवस्या को माना नहीं करता है, दोषी न ठहराएगा
28. क्योंकि वह यहूदी नहीं, पर प्रगट में है, और देह में है।
29. पर यहूदी वही है, जो मन में है; और खतना वही है, जो दय का और आत्क़ा में है; न कि लेख का: ऐसे की प्रशंसा मनुष्योंकी ओर से नहीं, परन्तु परमेश्वर की ओर से होती है।।
Chapter 3
1. सो यहूदी की क्या बड़ाई, या खतने का क्या लाभ
2. हर प्रकार से बहुत कुछ। पहिले तो यह कि परमश्ेवर के वचन उन को सौंपे गए।
3. यदि कितने विश्वसघाती निकले भी तो क्या हुआ। क्या उनके विश्वासघाती होने से परमेश्वर की सच्चाई व्यर्य ठहरेगी
4. कदापि नहीं, बरन परमेश्वर सच्चा और हर एक मनुष्य फूठा ठहरे, जैसा लिखा है, कि जिस से तू अपक्की बातोंमें धर्मी ठहरे और न्याय करते समय तू जय पाए।
5. सो यदि हमारा अधर्म परमेश्वर की धामिर्कता ठहरा देता है, तो हम क्या कहें क्या यह कि परमेश्वर जो ोध करता है अन्यायी है यह तो मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूं।
6. कदापि नहीं, नहीं तो परमेश्वर क्योंकर जगत का न्याय करेगा
7. यदि मेरे फूठ के कारण परमेश्वर की सच्चाई उस को महिमा के लिथे अधिक करके प्रगट हुई, तो फिर क्योंपापी की नाई मैं दण्ड के योग्य ठहराया जाता हूं
8. और हम क्योंबुराई न करें, कि भलाई निकले जब हम पर यही दोष लगाया भी जाता है, और कितने कहते हैं कि इन का यही कहना है: परन्तु ऐसोंका दोषी ठहराना ठीक है।।
9. तो फिर क्या हुआ क्या हम उन से अच्छे हैं कभी नहंी; क्योंकि हम यहूदियोंऔर यूनानियोंदोनोंपर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं।
10. जैसा लिखा है, कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
11. कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजनेवाला नहीं।
12. सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं।
13. उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हीं ने अपक्की जीभोंसे छल किया है: उन के होठोंमें सापोंका विष है।
14. और उन का मुंह श्रप और कड़वाहट से भरा है।
15. उन के पांव लोहू बहाने को र्फुतीले हैं।
16. उन के मार्गोंमें नाश और क्लेश है।
17. उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
18. उन की आंखोंके साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
19. हम जानते हैं, कि व्यवस्या जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्या के आधीन हैं: इसलिथे कि हर एक मुंह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
20. क्योंकि व्यवस्या के कामोंसे कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिथे कि व्यवस्या के द्वारा पाप की पहिचान होती है।
21. पर अब बिना व्यवस्या परमेश्वर की धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्या और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
22. अर्यात् परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालोंके लिथे है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
23. इसलिथे कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रिहत है।
24. परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
25. उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चाि ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपक्की सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपक्की धामिर्कता प्रगट करे।
26. बरन इसी समय उस की धामिर्कता प्रगट हो; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।
27. तो घमण्ड करना कहां रहा उस की तो जगह ही नहीं: कौन सी व्यवस्या के कारण से क्या कर्मोंकी व्यवस्या से नहीं, बरन विश्वास की व्यवस्या के कारण।
28. इसलिथे हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्या के कामोंके बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।
29. क्या परमेश्वर केवल यहूदियोंहीं का है क्या अन्यजातियोंका नहीं हां, अन्यजातियोंका भी है।
30. क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतनावालोंको विश्वास से और खतनारिहतोंको भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा।
31. तो क्या हम व्यवस्या को विश्वास के द्वारा व्यर्य ठहराते हैं कदापि नहीं; बरन व्यवस्या को स्यिर करते हैं।।
Chapter 4
1. सो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्या प्राप्त हुआ
2. क्योंकि यदि इब्राहीम कामोंसे धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं।
3. पवित्र शास्त्र क्या कहता है यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिथे धामिर्कता गिना गया।
4. काम करनेवाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु ह? समझा जाता है।
5. परन्तु जो काम नहीं करता बरन भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिथे धामिर्कता गिना जाता है।
6. जिसे परमेश्वर बिना कमोंके धर्मी ठहराता है, उसे दाद भी धन्य कहता है।
7. कि धन्य वे हैं, जिन के अधर्म झमा हुए, और जिन के पाप ढ़ापे गए।
8. धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।
9. तो यह धन्य कहना, क्या खतनावालोंही के लिथे है, या खतनारिहतोंके लिथे भी हम यह कहते हैं, कि इब्राहीम के लिथे उसका विश्वास धामिर्कता गिना गया।
10. तो वह क्योंकर गिना गया खतने की दशा में या बिना खतने की दशा में खतने की दशा में नहीं परन्तु बिना खतने की दशा में।
11. और उस ने खतने का चिन्ह पाया, कि उस विश्वास की धामिर्कता पर छाप हो जाए, जो उस ने बिना खतने की दशा में रखा या: जिस से वह उन सब का पिता ठहरे, जो बिना खतने की दशा में विश्वास करते हैं, और कि वे भी धर्मी ठहरें।
12. और उन खतना किए हुओं का पिता हो, जो न केवल खतना किए हुए हैं, परन्तु हमारे पिता इब्राहीम के उस विश्वास की लीक पर भी चलते हैं, जो उस ने बिन खतने की दशा में किया या।
13. क्योंकि यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न इब्राहीम को, न उसके वंश को व्यवस्या के द्वारा दी गई यी, परन्तु विश्वास की धामिर्कता के द्वारा मिली।
14. क्योंकि यदि व्यवस्यावाले वारिस हैं, तो विश्वास व्यर्य और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी।
15. व्यवस्या तो ोध उपजाती है और जहां व्यवस्या नहीं वहां उसका टालना भी नहीं।
16. इसी कारण वह विश्वास के द्वारा मिलती है, कि अनुग्रह की रीति पर हो, कि प्रतिज्ञा सब वंश के लिथे दृढ़ हो, न कि केवल उसक लिथे जो व्यवस्यावाला है, बरन उन के लिथे भी जो इब्राहीम के समान विश्वासवाले हैं: वही तो हम सब का पिता है।
17. जैसा लिखा है, कि मैं ने तुझे बहुत सी जातियोंका पिता ठहराया है उस परमश्ेवर के साम्हने जिस पर उस ने विश्वास किया और जो मरे हुओं को जिलाता है, और जो बातें हैं ही नहीं, उन का नाम ऐसा लेता है, कि मानो वे हैं।
18. उस ने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिथे कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियोंका पिता हो।
19. और वह जो एक सौ वर्ष का या, अपके मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।
20. और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।
21. और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्यी है।
22. इस कारण, यह उसके लिथे धामिर्कता गिना गया।
23. और यह वचन, कि विश्वास उसके लिथे धामिर्कता गिया गया, न केवल उसी के लिथे लिखा गया।
24. बरन हमारे लिथे भी जिन के लिथे विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्यात् हमारे लिथे जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।
25. वह हमारे अपराधोंके लिथे पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिथे जिलाया भी गया।।
Chapter 5
1. से जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साय मेल रखें।
2. जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।
3. केवल यही नहीं, बरन हम क्लेशोंमें भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज।
4. ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है।
5. और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्क़ा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
6. क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनोंके लिथे मरा।
7. किसी धर्मी जन के लिथे कोई मरे, यह तो र्दुलभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिथे कोई मरने का भी हियाव करे।
8. परन्तु परमेश्वर हम पर अपके प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिथे मरा।
9. सो जब कि हम, अब उसके लोहूं के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा ोध से क्योंन बचेंगे
10. क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साय हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्योंन पाएंगे
11. और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड भी करते हैं।।
12. इसलिथे जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्योंमें फैल गई, इसलिथे कि सब ने पाप किया।
13. क्योंकि व्यवस्या के दिए जाने तक पाप जगत में तो या, परन्तु जहां व्यवस्या नहीं, वहां पाप गिना नहीं जाता।
14. तौभी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगोंपर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम के अपराध की नाईं जो उस आनेवाले का चिन्ह है, पाप न किया।
15. पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के बरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्यात् यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागोंपर अवश्य ही अधिकाई से हुआ।
16. और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुअ, परन्तु बहुतेरे अपराधोंसे ऐसा बरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे।
17. क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कराण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूमी बरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्यात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।
18. इसलिथे जैसा एक अपराध सब मनुष्योंके लिथे दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वेसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्योंके लिथे जीवन के निमाि धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ।
19. क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।
20. और व्यवस्या बीच में आ गई, कि अपराध बहुत हो, परन्तु जहां पाप बहुत हुआ, वहां अनुग्रह उस से भी कहीं अधिक हुआ।
21. कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिथे धर्मी ठहराते हुए राज्य करे।।
Chapter 6
1. सो हम क्या कहें क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो
2. कदापि नहीं, हम जब पाप के लिथे मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिनाएं
3. क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनोंने मसीह यीशु का बपतिस्क़ा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्क़ा लिया
4. सो उस मृत्यु का बपतिस्क़ा पाने से हम उसके साय गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।
5. क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साय जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।
6. क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साय ूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्य हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें।
7. क्योंकि जो मर गया, वह पाप से छूटकर धर्मी ठहरा।
8. सो यदि हम मसीह के साय मर गए, तो हमारा विश्वास यह है, कि उसके साय जीएंगे भी।
9. क्योंकि यह जानते हैं, कि मसीह मरे हुओं में से जी उठकर फिर मरने का नहीं, उस पर फिर मृत्यु की प्रभुता नहीं होने की।
10. क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिथे एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्वर के लिथे जीवित है।
11. ऐसे ही तुम भी अपके आप को पाप के लिथे तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिथे मसीह यीशु में जीवित समझो।
12. इसलिथे पाप तुम्हारे मरनहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के अधीन रहो।
13. और न अपके अंगो को अधर्म के हिययार होने के लिथे पाप को सौंपो, पर अपके आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमश्ेवर को सौंपो, और अपके अंगो को धर्म के हिययार होने के लिथे परमेश्वर को सौंपो।
14. और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्या के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हो।।
15. तो क्या हुआ क्या हम इसलिथे पाप करें, कि हम व्यवस्या के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हैं कदापि नहीं।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिथे तुम अपके आप को दासोंकी नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है
17. परन्तु परमश्ेवर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपकेश के माननेवाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे।
18. और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए।
19. मैं तुम्हारी शारीरिक र्दुबलता के कारण मनुष्योंकी रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपके अंगो को कुकर्म के लिथे अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा या, वैसे ही अब अपके अंगोंको पवित्रता के लिथे धर्म के दास करके सौंप दो।
20. जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे।
21. सो जिन बातोंसे अब तुम लज्ज़ित होते हो, उन से उस समय तुम क्या फल पाते थे
22. क्योंकि उन का अन्त तो मृत्यु है परन्तु अब पाप से स्वतंत्र होकर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।
23. क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का बरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है।।
Chapter 7
1. हे भाइयो, क्या तुम नहीं जातने मैं व्यवस्या के जाननेवालोंसे कहता हूं, कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तक तक उस पर व्यवस्या की प्रभूता रहती है
2. क्योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्या के अनुसार अपके पति के जीते जी उस से बन्धी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्या से छूट गई।
3. सो यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्या से छूट गई, यहां तक कि यदि किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
4. सो हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्या के लिथे मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिथे फल लाएं।
5. क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापोंकी अभिलाषाथें जो व्यवस्या के द्वारा यी, मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिथे हमारे अंगोंमें काम करती यीं।
6. परन्तु जिस के बन्धन में हम थे उसके लिथे मर कर, अब व्यवस्या से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, बरन आत्क़ा की नई रीति पर सेवा करते हैं।।
7. तो हम क्या कहें क्या व्यवस्या पाप है कदापि नहीं! बरन बिना व्यवस्या के मैं पाप को नहीं पहिचानता: व्यवस्या यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।
8. परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया, क्योंकि बिना व्यवस्या के पाप मुर्दा है।
9. मैं तो व्यवस्या बिना पहिले जीवित या, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया।
10. और वही आज्ञा जो जीवन के लिथे यी; मेरे लिथे मृत्यु का कारण ठहरी।
11. क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझै बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला।
12. इसलिथे व्यवस्या पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है।
13. तो क्या वह जो अच्छी यी, मेरे लिथे मृत्यु ठहरी कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिथे मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे।
14. क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्या तो आत्क़िक है, परन्तु मैं शरीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूं।
15. और जो मैं करता हूं, उस को नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं।
16. और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूं, तो मैं मान लेता हूं, कि व्यवस्या भली है।
17. तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, बरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है।
18. क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्यात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
19. क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं।
20. परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।
21. सो मैं यह व्यवस्या पाता हूं, कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है।
22. क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्या से बहुत प्रसन्न रहता हूं।
23. परन्तु मुझे अपके अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्या दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्या से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्या के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगोंमें है।
24. मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा
25. मैं अपके प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्या का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्या का सेवन करता हूं।।
Chapter 8
1. सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्क़ा के अनुसार चलते हैं।
2. क्योंकि जीवन की आत्क़ा की व्यवस्या ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्या से स्वतंत्र कर दिया।
3. क्योंकि जो काम व्यवस्या शरीर के कारण र्दुबल होकर न कर सकी, उस को परमेश्वर ने किया, अर्यात् अपके ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में, और पाप के बलिदान होने के लिथे भेजकर, शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।
4. इसलिथे कि व्यवस्या की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं बरन आत्क़ा के अनुसार चलते हैं, पूरी की जाए।
5. क्योंकि शरीरिक व्यक्ति शरीर की बातोंपर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्क़िक आत्क़ा की बातोंपर मन लगाते हैं।
6. शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्क़ा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है।
7. क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्या के अधीन है, और न हो सकता है।
8. और जो शारीरिक दशा में है, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।
9. परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्क़ा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्क़िक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्क़ा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
10. और यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्क़ा धर्म के कारण जीवित है।
11. और यदि उसी का आत्क़ा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहोंको भी अपके आत्क़ा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
12. सो हे भाइयो, हम शरीर के कर्जदान नहीं, ताकि शरीर के अनुसार दिन काटें।
13. क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे, तो मरोगे, यदि आत्क़ा से देह की यािओं को मारोगे, तो जीवित रहोगे।
14. इसलिथे कि जितने लोग परमेश्वर के आत्क़ा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं।
15. क्योंकि तुम को दासत्व की आत्क़ा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्क़ा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं।
16. आत्क़ा आप ही हमारी आत्क़ा के साय गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
17. और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साय दुख उठाएं कि उसके साय महिमा भी पाएं।।
18. क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होनेवाली है, कुछ भी नहीं हैं।
19. ैक्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रोंके प्रगट होने की बाट जोह रही है।
20. क्योंकि सृष्टि अपक्की इच्छा से नहीं पर आधीन करनेवाले की ओर से व्यर्यता के आधीन इस आशा से की गई।
21. कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानोंकी महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
22. क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पक्की है।
23. और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्क़ा का पहिला फल है, आप ही अपके में कहरते हैं; और लेपालक होने की, अर्यात् अपक्की देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।
24. आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही क्योकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्या करेगा
25. परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जाहते भी हैं।।
26. इसी रीति से आत्क़ा भी हमारी र्दुबलता में सहाथता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्यना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्क़ा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिथे बिनती करता है।
27. और मनोंका जांचनेवाला जानता है, कि आत्क़ा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगोंके लिथे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।
28. और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिथे सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्यात् उन्हीं के लिथे जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
29. क्योंकि जिन्हें उस ने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में होंताकि वह बहुत भाइयोंमें पहिलौठा ठहरे।
30. फिर जिन्हें उन से पहिले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।।
31. सो हम इन बातोंके विषय में क्या कहें यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है
32. जिस ने अपके निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिथे दे दिया: वह उसके साय हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा
33. परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है।
34. फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा मसीह वह है जो मर गया बरन मुर्दोंमें से जी भी उठा, और परमेश्वर की दिहती ओर है, और हमारे लिथे निवेदन भी करता है।
35. कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार
36. जैसा लिखा है, कि तेरे लिथे हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेंडोंकी नाई गिने गए हैं।
37. परन्तु इन सब बातोंमें हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।
38. क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्य, न ंचाई,
39. न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।।
Chapter 9
1. मैं मसीह में सच कहता हूं, फूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्क़ा में गवाही देता है।
2. कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है।
3. क्योंकि मैं यहां तक चाहता या, कि अपके भाईयों, के लिथे जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से शापित हो जाता।
4. वे इस्त्राएली हैं; और लेपालकपन का ह? और महिमा और वाचाएं और व्यवस्या और उपासना और प्रतिज्ञाएं उन्हीं की हैं।
5. पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ, जो सब के पर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन।
6. परन्तु यह नहीं, कि परमेश्वर का वचन टल गया, इसलिथे कि जो इस्त्राएल के वंश हैं, वे सब इस्त्राएली नहीं।
7. और न इब्राहीम के वंश होने के कारण सब उस की सन्तान ठहरे, परन्तु लिखा है कि इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।
8. अर्यात् शरीर की सन्तान परमेश्वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं।
9. क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है, कि मैं इस समय के अनुसार आंगा, और सारा के पुत्र होगा।
10. और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्यात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती यी।
11. और अभी तक न तो बालक जन्क़े थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया या कि उस ने कहा, कि जेठा छुटके का दास होगा।
12. इसलिथे कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मोंके कारण नहीं, परन्तु बुलानेवाले पर बनी रहे।
13. जैसा लिखा है, कि मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसौ को अप्रिय जाना।।
14. सो हम क्या कहें क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है कदापि नहीं!
15. क्योंकि वह मूसा से कहता है, मैं जिस किसी पर दया करना चाहूं, उस पर दया करूंगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूं उसी पर कृपा करूंगा।
16. सो यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात है।
17. क्योंकि पवित्र शास्त्र में फिरौन से कहा गया, कि मैं ने तुझे इसी लिथे खड़ा किया है, कि तुझ में अपक्की सामर्य दिखां, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृय्वी पर हो।
18. सो वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है।
19. सो तू मुझ से कहेगा, वह फिर क्योंदोष लगाता है कौन उस की इच्छा का साम्हना करता हैं
20. हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है कि तू ने मुझे ऐसा क्योंबनाया है
21. क्या कुम्हार को मिी पर अधिक्कारने नहीं, कि एक ही लौंदे मे से, एक बरतन आदर के लिथे, और दूसरे को अनादर के लिथे बनाए तो इस में कौन सी अचम्भे की बात है
22. कि परमेश्वर ने अपना ोध दिखाने और अपक्की सामर्य प्रगट करने की इच्छा से ोध के बरतनोंकी, जो विनाश के लिथे तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही।
23. और दया के बरतनोंपर जिन्हें उस ने महिमा के लिथे पहिले से तैयार किया, अपके महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की
24. अर्यात् हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियोंमें से बरन अन्यजातियोंमें से भी बुलाया।
25. जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न यी, उन्हें मैं अपक्की प्रजा कहूंगा, और जो प्रिया न यी, उसे प्रिया कहूंगा।
26. और ऐसा होगा कि जिस जगह में उन से यह कहा गया या, कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्वर की सन्तान कहलाएंगे।
27. और यशायाह इस्त्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, कि चाहे इस्त्राएल की सन्तानोंकी गिनती समुद्र के बालू के बारबर हो, तौभी उन में से योड़े ही बचेंगे।
28. क्योंकि प्रभु अपना वचन पृय्वी पर पूरा करके, धामिर्कता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।
29. जैसा यशायाह ने पहिले भी कहा या, कि यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिथे कुछ वंश न छोड़ता, तो हम सदोम की नाईं हो जाते, और अमोरा के सरीखे ठहरते।।
30. सो हम क्या कहें यह कि अन्यजातियोंने जो धामिर्कता की खोज नहीं करते थे, धामिर्कता प्राप्त की अर्यात् उस धामिर्कता को जो विश्वास से है।
31. परन्तु इस्त्राएली; जो धर्म की व्यवस्या की खोज करते हुए उस व्यवस्या तक नहीं पहुंचे।
32. किस लिथे इसलिथे कि वे विश्वास से नहीं, परन्तु मानोंकर्मोंसे उस की खोज करते थे: उन्होंने उस ठोकर के पत्यर पर ठोकर खाई।
33. जैसा लिखा है; देखो मैं सियोन में एक ठेस लगने का पत्यर, और ठोकर खाने की चटान रखता हूं; और जो उस पर विश्वास करेगा, वह लज्ज़ित न होगा।।
Chapter 10
1. हे भाइयो, मेरे मन की अभिलाषा और उन के लिथे परमेश्वर से मेरी प्रार्यना है, कि वे उद्धार पाएं।
2. क्योंकि मैं उन की गवाही देता हूं, कि उन को परमेश्वर के लिथे धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साय नहीं।
3. क्योकिं वे परमेश्वर की धामिर्कता से अनजान होकर, और अपक्की धामिर्कता स्यापन करने का यत्न करके, परमेश्वर की धामिर्कता के आधीन न हुए।
4. क्योंकि हर एक विश्वास करनेवाले के लिथे धामिर्कता के निमाि मसीह व्यवस्या का अन्त है।
5. क्योंकि मूसा ने यह लिखा है, कि जो मनुष्य उस धामिर्कता पर जो व्यवस्या से है, चलता है, वह इसी कारण जीवित रहेगा।
6. परन्तु जो धामिर्कता विश्वास से है, वह योंकहती है, कि तू अपके मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा अर्यात् मसीह को उतार लाने के लिथे!
7. या गहिराव में कौन उतरेगा अर्यात् मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर पर लाने के लिथे!
8. परन्तु क्या कहती है यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं।
9. कि यदि तू अपके मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपके मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।
10. क्योंकि धामिर्कता के लिथे मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिथे मुंह से अंगीकार किया जाता है।
11. क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्ज़ित न होगा।
12. यहूदियोंऔर यूनानियोंमें कुछ भेद नहीं, इसलिथे कि वह सब का प्रभु है; और अपके सब नाम लेनेवालोंके लिथे उदार है।
13. क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।
14. फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें
15. और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातोंका सुसमाचार सुनाते हैं।
16. परन्तु सब ने उस सुसमाचार पर कान न लगाया: यशायाह कहता है, कि हे प्रभु, किस ने हमारे समाचार की प्रतीति की है
17. सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।
18. परन्तु मैं कहता हूं, क्या उन्होंने नहीं सुना सुना तो सही क्योंकि लिखा है कि उन के स्वर सारी पृय्वी पर, और उन के वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।
19. फिर मैं कहता हूं। क्या इस्त्राएली नहीं जानते थे पहिले तो मूसा कहता है, कि मैं उन के द्वारा जो जाति नहीं, तुम्हारे मन में जलन उपजांगा, मैं एक मूढ़ जाति के द्वारा तुम्हें रिस दिलांगा।
20. फिर यशायाह बड़े हियाव के साय कहता है, कि जो मुझे नहीं ढूंढ़ते थे, उन्होंने मुझे पा लिया: और जो मुझे पूछते भी न थे, उन पर मैं प्रगट हो गया।
21. परन्तु इस्त्राएल के विषय में वह यह कहता है कि मैं सारे दिन अपके हाथ एक आज्ञा न माननेवाली और विवाद करनेवाली प्रजा की ओर पसारे रहा।।
Chapter 11
1. इसलिथे मैं कहता हूं, क्या परमेश्वर ने अपक्की प्रजा को त्याग दिया कदापि नहीं; मैं भी तो इस्त्राएली हूं: इब्राहीम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूं।
2. परमेश्वर ने अपक्की उस प्रजा को नहीं त्यागा, जिसे उस ने पहिले ही से जाना: क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र शास्त्र एलियाह की कया में क्या कहता है; कि वह इस्त्राएल के विरोध में परमेश्वर से बिनती करता है।
3. कि हे प्रभु, उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को घात किया, और तेरी वेदियोंको ढ़ा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूं, और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।
4. परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उार मिला कि मैं ने अपके लिथे सात हजार पुरूषोंको रख छोड़ा है जिन्होंने बाअल के आग घुटने नहीं टेके हैं।
5. सो इसी रीति से इस समय भी, अनुग्रह से चुने हुए कितने लोग बाकी हैं।
6. यदि यह अनुग्रह से हुआ है, तो फिर कर्मोंसे नहीं, नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा।
7. सो परिणाम क्या हुआ यह कि इस्त्राएली जिस की खोज में हैं, वह उन को नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं।
8. जैसा लिखा है, कि परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक भारी नींद में डाल रखा है और ऐसी आंखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।
9. और दाद कहता है; उन का भोजन उन के लिथे जाल, और फन्दा, और ठोकर, और दण्ड का कारण हो जाए।
10. उन की आंखोंपर अन्धेरा छा जाए ताकि न देखें, और तू सदा उन की पीठ को फुकाए रख।
11. सो मैं कहता हूं क्या उन्होंने इसलिथे ठोकर खाई, कि गिर पकें कदापि नहीं: परन्तु उन के गिरने के कारण अन्यजानियोंको उद्धार मिला, कि उन्हें जलन हो।
12. सो यदि उन का गिरना जगत के लिथे धन और उन की घटी अन्यजातियोंके लिथे सम्पाि का कारण हुआ, तो उन की भरपूरी से कितना न होगा।।
13. मैं तुम अन्यजातियोंसे यह बातें कहता हूं: जब कि मैं अन्याजातियोंके लिथे प्रेरित हूं, तो मैं अपक्की सेवा की बड़ाई करता हूं।
14. ताकि किसी रीति से मैं अपके कुटुम्बियोंसे जलन करवाकर उन में से कई एक का उद्धार करां।
15. क्योंकि जब कि उन का त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उन का ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा
16. जब भेंट का पहिला पेड़ा पवित्र ठहरा, तो पूरा गुंधा हुआ आटा भी पवित्र है: और जब जड़ पवित्र ठहरी, तो डालियां भी ऐसी ही हैं।
17. और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई, और तू जंगली जलपाई होकर उन में साटा गया, और जलपाई की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है।
18. तो डालियोंपर घमण्ड न करना: और यदि तू घमण्ड करे, तो जान रख, कि तू जड़ को नहीं, परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।
19. फिर तू कहेगा डालियां इसलिथे तोड़ी गई, कि मैं साटा जां।
20. भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई, परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिथे अभिमानी न हो, परन्तु भय कर।
21. क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियां न छोड़ी, तो तुझे भी न छोड़ेगा।
22. इसलिथे परमेश्वर की कृपा और कड़ाई को देख! जो गिर गए, उन पर कड़ाई, परन्तु तुझ पर कृपा, यदि तू उस में बना रहे, नहीं तो, तू भी काट डाला जाएगा।
23. और वे भी यदि अविश्वास में न रहें, तो साटे जाएंगे क्योंकि परमश्ेवर उन्हें फिर साट सकता है।
24. क्योंकि यदि तू उस जलपाई से, जो स्वभाव से जंगली है काटा गया और स्वभाव के विरूद्ध अच्छी जलपाई में साटा गया तो थे जो स्वाभाविक डालियां हैं, अपके ही जलपाई में साटे क्योंन जाएंगे।
25. हे भाइयों, कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपके आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिथे मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो, कि जब तक अन्यजातियां पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।
26. और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है, कि छुड़ानेवाला सियोन से आएगा, और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।
27. और उन के साय मेरी यही वाचा होगी, जब कि मैं उन के पापोंको दूर कर दूंगा।
28. वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे बैरी हैं, परन्तु चुन लिथे जाने के भाव से बापदादोंके प्यारे हैं।
29. क्योंकि परमेश्वर अपके बरदानोंसे, और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।
30. क्योंकि जैसे तुम ने पहिले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उन के आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई।
31. वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इस से उन पर भी दया हो।
32. ैक्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे।।
33. आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अयाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!
34. प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना या उसका मंत्री कौन हुआ
35. या किस ने पहिले उसे कुछ दिया है जिस का बदला उसे दिया जाए।
36. क्योंकि उस की ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिथे सब कुछ है: उस की महिमा युगानुयुग होती रहे: आमीन।।
Chapter 12
1. इसलिथे हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्क़रण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपके शरीरो कोंजीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्क़िक सेवा है।
2. और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नथे हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।।
3. क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपके आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साय अपके को समझे।
4. क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगोंका एक ही सा काम नहीं।
5. वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
6. और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न बरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
7. यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
8. जो उपकेशक हो, वह उपकेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।
9. प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई मे लगे रहो।
10. भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
11. प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्क़िक उन्क़ाद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।
12. आशा मे आनन्दित रहो; क्लेश मे स्यिर रहो; प्रार्यना मे नित्य लगे रहो।
13. पवित्र लोगोंको जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहाथता करो; पहुनाई करने मे लगे रहो।
14. अपके सतानेवालोंको आशीष दो; आशीष दो स्त्राप न दो।
15. आनन्द करनेवालोंके साय आनन्द करो; और रोनेवालोंके साय रोओ।
16. आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनोंके साय संगति रखो; अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान न हो।
17. बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगोंके निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो।
18. जहां तक हो सके, तुम अपके भरसक सब मनुष्योंके साय मेल मिलाप रखो।
19. हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु ोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।
20. परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारोंका ढेर लगाएगा।
21. बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।।
Chapter 13
1. हर एक व्यक्ति प्रधान अधिक्कारनेियोंके अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिक्कारने ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर स न हो; और जो अधिक्कारने हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।
2. इस से जो कोई अधिक्कारने का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करनेवाले दण्ड पाएंगे।
3. क्योंकि हाकिम अच्छे काम के नहीं, परन्तु बुरे काम के लिथे डर का कारण हैं; सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी;
4. क्योंकि वह तेरी भलाई के लिथे परमेश्वर का सेवक है। परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योकि वह तलवार व्यर्य लिथे हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है; कि उसके ोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे।
5. इसलिथे अधीन रहना न केवल उस ोध से परन्तु डर से अवश्य है, वरन विवेक भी यही गवाही देता है।
6. इसलिथे कर भी दो, क्योंकि परमश्ेवर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।
7. इसलिथे हर एक का ह? चुकाया करो, जिस कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिस से डरना चाहिए, उस से डरो; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।।
8. आपस के प्रेम से छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदान न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्या पूरी की है।
9. क्योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना; चोरी न करना; लालच न करना; और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपके पड़ोसी से अपके समान प्र्रेम रख।
10. प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिथे प्रेम रखना व्यवस्या को पूरा करना है।।
11. और समय को पहिचान कर ऐसा ही करो, इसलिथे कि अब तुम्हारे लिथे नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुंची है, क्योंकिं जिस समय हम ने विश्वास किया या, उस समय के विचार से अब हमारा उद्धार निकट है।
12. रात बहुत बीन गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिथे हम अन्धकार के कामोंको तज कर ज्योति के हिययार बान्ध लें।
13. जैसा दिन को सोहता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें; न कि लीला ीड़ा, और पिय?ड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न फगड़े और डाह में।
14. बरन प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर
Chapter 14
1. जो विश्वास के निर्बल है, उसे अपक्की संगति में ले लो; परन्तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिथे नहीं।
2. क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।
3. और खानेवाला न-खानेवाले को तुच्छ न जाने, और न-खानेवाला खानेवाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है।
4. तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है उसक स्यिर रहता या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, बरन वह स्यिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्यिर रख सकता है।
5. कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है: हर एक अपके ही मन में निश्चय कर ले।
6. जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिथे मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिथे खाता है, क्योंकि परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जा नहीं खाता, वह प्रभु के लिथे नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
7. क्योंकि हम में से न तो कोई पअने लिथे जीता है, और न कोई अपके लिथे मरता है।
8. क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिथे जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिथे मरते हैं; सो हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं।
9. क्योंकि मसीह इसी लिथे मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनोंका प्रभु हो।
10. तू अपके भाई पर क्योंदोष लगाता है या तू फिर क्योंअपके भाई को तुच्छ जानता है हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
11. क्योंकि लिखा है, कि प्रभु कहता है, मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे साम्हने टिकेगा, और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगा।
12. सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।।
13. सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपके भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
14. मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है, कि कोई वस्तु अपके आप से अशुद्ध नहीं, परन्तु जो उस को अशुद्ध समझता है, उसके लिथे अशुद्ध है।
15. यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है, तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता: जिस के लिथे मसीह मरा उस को तू अपके भोजन के द्वारा नाश न कर।
16. अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए।
17. क्योंकि परमश्ेवर का राज्या खानापीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;
18. जो पवित्रआत्क़ा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्योंमें ग्रहणयोग्य ठहरता है।
19. इसलिथे हम उन बातोंका प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
20. भोजन के लिथे परमेश्वर का काम न बिगाड़: सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिथे बुरा है, जिस को उसके भोजन करने से ठोकर लगती है।
21. भला तो यह है, कि तू न मांस खाए, और न दाख रस पीए, न और कुछ ऐसा करे, जिस से तेरा भाई ठोकर खाए।
22. तेरा जो विश्वास हो, उसे परमेश्वर के साम्हने अपके ही मन में रख: धन्य है वह, जो उस बात में, जिस वह ठीक समझता है, अपके आप को दोषी नहीं ठहराता ।
23. परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह निश्चय धारणा से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।।
Chapter 15
1. निदान हम बलवानोंको चाहिए, कि निर्बलोंकी निर्बलताओं को सहें; न कि अपके आप को प्रसन्न करें।
2. हम में से हर एक अपके पड़ोसी को उस की भलाई के लिथे सुधारने के निमाि प्रसन्न करे।
3. क्योंकि मसीह ने अपके आप को प्रसन्न नहीं किया, पर जैसा लिखा है, कि तेरे निन्दकोंकी निन्दा मुझ पर आ पड़ी।
4. जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिझा के लिथे लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।
5. और धीरज, और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हें यह बरदान दे, कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो।
6. ताकि तुम एक मन औश्र् एक मुंह होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह कि पिता परमेश्वर की बड़ाई करो।
7. इसलिथे, जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिथे तुम्हें ग्रहण किया है, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
8. मैं कहता हूं, कि जो प्रतिज्ञाएं बापदादोंको दी गई यीं, उन्हें दृढ़ करने के लिथे मसीह, परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिथे खतना किए हुए लोगोंका सेवक बना।
9. और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई करें, जैसा लिखा है, कि इसलिथे मैं जाति जाति में तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम के भजन गांगा।
10. फिर कहा है, हे जाति जाति के सब लोगों, उस की प्रजा के साय आनन्द करो।
11. और फिर हे जाति जाति के सब लागो, प्रभु की स्तुति करो; और हे राज्य राज्य के सब लोगो; उसे सराहो।
12. और फिर यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियोंका हाकिम होने के लिथे एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।
13. सो परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्रआत्क़ा की सामर्य से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।।
14. हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूं, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो।
15. तौभी मैं ने कहीं कहीं याद दिलाने के लिथे तुम्हें जो बहुत हियाव करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ, जो परमेश्वर ने मुझे दिया है।
16. कि मैं अन्याजातियोंके लिथे मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाई करूं; जिस से अन्यजातियोंका मानोंचढ़ाया जाना, पवित्र आत्क़ा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
17. सो उन बातोंके विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूं।
18. क्योंकि उन बातोंको छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का हियाव नहीं, जो मसीह ने अन्यजातियोंकी अधीनता के लिथे वचन, और कर्म।
19. और चिन्होंऔर अदभुत् कामोंकी सामर्य से, और पवित्र आत्क़ा की सामर्य से मेरे ही द्वारा किए : यहां तक कि मैं ने यरूशलेम से लेकर चारोंओर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का पूरा पूरा प्रचार किया।
20. पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनां; ऐसा न हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
21. परन्तु जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा, वे ही देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे ही समझेंगे।।
22. इसी लिथे मैं तुम्हारे पास आने से बार बार रूका रहा।
23. परन्तु अब मुझे इन देशोंमें और जगह नहीं रही, और बहुत वर्षोंसे मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
24. इसलिथे जब इसपानिया को जांगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जांगा क्योंकि मुझे आशा है, कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूं, और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए, तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुंचा दो।
25. परन्तु अभी तो पवित्र लोगोंकी सेवा करने के लिथे यरूशलेम को जाता हूं।
26. क्योंकि मकिदुनिया और अखया के लोगोंको यह अच्छा लगा, कि यरूशलेम के पवित्र लोगोंके कंगालोंके लिथे कुछ चन्दा करें।
27. अच्छा तो लगा, परन्तु वे उन के कर्जदार भी हैं, क्योंकि यदि अन्यजाति उन की आत्क़िक बातोंमें भागी हुए, तो उन्हें भी उचित है, कि शारीरिक बातोंमें उन की सेवा करें।
28. सो मैं यह काम पूरा करके और उन को यह चन्दा सौंपकर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जांगा।
29. और मैं जानता हूं, कि जब मैं तुम्हारे पास आंगा, तो मसीह की पूरी आशीष के साय आंगा।।
30. और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्क़ा के प्रेम का स्क़रण दिला कर, तुम से बिनती करता हूं, कि मेरे लिथे परमेश्वर से प्रार्यना करने में मेरे साय मिलकर लौलीन रहो।
31. कि मैं यहूदिया के अविश्वासिक्कों बचा रहूं, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिथे है, पवित्र लोगोंको भाए।
32. और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साय आकर तुम्हारे साय विश्रम पां।
33. शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साय रहे। आमीन।।
Chapter 16
1. मैं तुम से फीबे की, जो हमारी बहिन और किंखिया की कलीसिया की सेविका है, बिनती करता हूं।
2. कि तुम जैसा कि पवित्र लोगोंको चाहिए, उसे प्रभु में ग्रहण करो; और जिस किसी बात में उस को तुम से प्रयोजन हो, उस की सहाथता करो; क्योंकि वह भी बहुतोंकी बरन मेरी भी उपकारिणी हुई है।।
3. प्रिसका और अक्विला को भी यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, नमस्कार।
4. उन्होंने मेरे प्राण के लिथे अपना सिर दे रखा या और केवल मैं ही नहीं, बरन अन्यजातियोंकी सारी कलीसियाएं भी उन का धन्यवाद करती हैं।
5. और उस कलीसिया को भी नमस्कार जो उन के घर में है। मेरे प्रिय इपैनितुस को जो मसीह के लिथे आसिया का पहिला फल है, नमस्कार।
6. मरियम को जिस ने तुम्हारे लिथे बहुत परिश्र्म किया, नमस्कार।
7. अन्द्रुनीकुस और यूनियास को जो मेरे कुटम्बी हैं, और मेरे साय कैद हुए थे, और प्रेरितोंमें नामी हैं, और मुझ से पहिले मसीह में हुए थे, नमस्कार।
8. अम्पलियातुस को, जो प्रभु में मेरा प्रिय है, नमस्कार।
9. उरबानुस को, जो मसीह में हमारा सहकर्मी है, और मेरे प्रिय इस्तखुस को नमस्कार।
10. अपिल्लेस को जो मसीह में खरा निकला, नमस्कार। अरिस्तुबुलुस के घराने को नमस्कार।
11. मेरे कुटुम्बी हेरोदियोन को नमस्कार। नरिकयुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उन को नमस्कार।
12. त्रूफैना और त्रूफोसा को जो प्रभु में परिश्र्म करती हैं, नमस्कार। प्रिया पिरिसस को जिस ने प्रभु में बहुत परिश्र्म किया, नमस्कार।
13. रूफुस को जो प्रभु में चुना हुआ है, और उस की माता को जो मेरी भी है, दोनोंको नमस्कार।
14. असुतिुस और फिलगोन और हिमस ओर पत्रुबास और हिमांस और उन के साय के भाइयोंको नमस्कार।
15. फिलुलुगुस और यूलिया और नेर्युस और उस की बहिन, और उलुम्पास और उन के साय के सब पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो: तुम को मसीह की सारी कलीसियाओं की ओर से नमस्कार।।
16. आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो तुम को मसीह की सारी कलीस्यािओं की ओर से नमस्कार।
17. अब हे भाइयो, मैं तुम से बिनती करता हूं, कि जो लोग उस शिझा के विपक्कीत जो तुम ने पाई है, फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उन से दूर रहो।
18. क्योंकि ऐसे लोग हमारे प्रभु मसीह की नहीं, परन्तु अपके पेट की सेवा करते है; और चिकनी चुमड़ी बातोंसे सीधे सादे मन के लोगोंको बहका देते हैं।
19. तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगोंमें फैल गई है; इसलिथे मैं तुम्हारे विषय में आनन्द करता हूं; परन्तु मैं यह चाहता हूं, कि तुम भलाई के लिथे बुद्धिमान, परन्तु बुराई के लिथे भोले बने रहो।
20. शान्ति का परमेश्वर शैतान को तुम्हारे पांवोंसे शीघ्र कुचलवा देगा।। हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
21. तीमुयियुस मेरे सहकर्मी का, और लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस मेरे कुटुम्बियोंका, तुम को नमस्कार।
22. मुझ पत्री के लिखनेवाले तिरितयुस का प्रभु में तुम को नमस्कार।
23. गयुस का जो मेरी और कलीसिया का पहुनाई करनेवाला है उसका तुम्हें नमस्कार:
24. इरास्तुस जो नगर का भण्डारी है, और भाई क्वारतुस का, तुम को नमस्कार।।
25. अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्यात् यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्यिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा।
26. परन्तु अब प्रगट होकर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकोंके द्वारा सब जातियोंको बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा माननेवाले हो जाएं।
27. उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन।।
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