The Holy Bible - भजन संहिता (Psalms)

भजन संहिता (Psalms)

Chapter 1

1. क्या ही धन्य है वह पुरूष जो दुष्टोंकी युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियोंके मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालोंकी मण्डली में बैठता है! 
2. परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। 
3. वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियोंके किनारे लगाया गया है। और अपक्की ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिथे जो कुछ वह पुरूष करे वह सफल होता है।। 
4. दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। 
5. इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियोंकी मण्डली में ठहरेंगे; 
6. क्योंकि यहोवा धर्मियोंका मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टोंका मार्ग नाश हो जाएगा।।

Chapter 2

1. जाति जाति के लोग क्योंहुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्योंसोच रहे हैं? 
2. यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरूद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि 
3. आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सिक्कों अपके ऊपर से उतार फेंके।। 
4. वह जो स्वर्ग में विराजमान है, हंसेगा, प्रभु उनको ठट्ठोंमें उड़ाएगा। 
5. तब वह उन से क्रोध करके बातें करेगा, और क्रोध में कहकर उन्हें घबरा देगा, कि 
6. मैं तो अपके ठहराए हुए राजा को अपके पवित्रा पर्वत सिरयोन की राजगद्दी पर बैठा चुका हूं। 
7. मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्रा है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ। 
8. मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगोंको तेरी सम्पत्ति होने के लिथे, और दूर दूर के देशोंको तेरी निज भूमि बनने के लिथे दे दूंगा। 
9. तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा। तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।। 
10. इसलिथे अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपकेश ग्रहण करो। 
11. डरते हुए यहोवा की उपासना करो, और कांपके हुए मगन हो। 
12. पुत्रा को चूमो ऐसा न हो कि वह क्रोध करे, और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ; क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है।। धन्य है वे जिनका भरोसा उस पर है।।

Chapter 3

1. हे यहोवा मेरे सतानेवाले कितने बढ़ गए हैं! वह जो मेरे विरूद्ध उठते हैं बहुत हैं। 
2. बहुत से मेरे प्राण के विषय में कहते हैं, कि उसका बचाव परमेश्वर की आरे से नहीं हो सकता। 
3. परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारोंओर मेरी ढ़ाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला है। 
4. मैं ऊंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूं, और वह अपके पवित्रा पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है। 
5. मैं लेटकर सो गया; फिर जाग उठा, क्योंकि यहोवा मुझे सम्हालता है। 
6. मैं उन दस हजार मनुष्योंसे नहीं डरता, जो मेरे विरूद्ध चारोंओर पांति बान्धे खड़े हैं।। 
7. उठ, हे यहोवा! हे मेरे परमेश्वर मुझे बचा ले! क्योंकि तू ने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ोंपर मारा है और तू ने दुष्टोंके दांत तोड़ डाले हैं।। 
8. उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है; हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा पर हो।।

Chapter 4

1. हे मेरे धर्ममय परमेश्वर, जब मैं पुकारूं तब तू मुझे उत्तर दे; जब मैं सकेती में पड़ा तब तू ने मुझे विस्तार दिया। मुझ पर अनुग्रह कर और मेरी प्रार्थना सुन ले।। 
2. हे मनुष्योंके पुत्रों, कब तक मेरी महिमा के बदले अनादर होता रहेगा? तुम कब तक व्यर्थ बातोंसे प्रीति रखोगे और झूठी युक्ति की खोज में रहोगे? 
3. यह जान रखो कि यहोवा ने भक्त को अपके लिथे अलग कर रखा है; जब मैं यहोवा को पुकारूंगा तब वह सुन लेगा।। 
4. कांपके रहो और पाप मत करो; अपके अपके बिछौने पर मन ही मन सोचो और चुपचाप रहो। 
5. धर्म के बलिदान चढ़ाओ, और यहोवा पर भरोसा रखो।। 
6. बहुत से हैं जो कहते हैं, कि कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? हे यहोवा तू अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका! 
7. तू ने मेरे मन में उस से कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, जो उनको अन्न और दाखमधु की बढ़ती से होती थी। 
8. मैं शान्ति से लेट जाऊंगा और सो जाऊंगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।।

Chapter 5

1. हे यहोवा, मेरे वचनोंपर कान लगा; मेरे ध्यान करने की ओर मन लगा। 
2. हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्वर, मेरी दोहाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूं। 
3. हे यहोवा, भोर को मेरी वाणी तुझे सुनाई देगी, मैं भोर को प्रार्थना करके तेरी बाट जोहूंगा। 
4. क्योंकि तू ऐसा ईश्वर नहीं जो दुष्टता से प्रसन्न हो; बुराई तेरे साथ नहीं रह सकती। 
5. घमंडी तेरे सम्मुख खड़े होने न पांएगे; तुझे सब अनर्थकारियोंसे घृणा है। 
6. तू उनको जो झूठ बोलते हैं नाश करेगा; यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है। 
7. परन्तु मैं तो तेरी अपार करूणा के कारण तेरे भवन में आऊंगा, मैं तेरा भय मानकर तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा। 
8. हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण अपके धर्म के मार्ग में मेरी अगुवाई कर; मेरे आगे आगे अपके सीधे मार्ग को दिखा। 
9. क्योंकि उनके मुंह में कोई सच्चाई नहीं; उनके मन में निरी दुष्टता है। उनका गला खुली हुई कब्र है, वे अपक्की जीभ से चिकनी चुपड़ी बातें करते हैं। 
10. हे परमेश्वर तू उनको दोषी ठहरा; वे अपक्की ही युक्तियोंसे आप ही गिर जाएं; उनको उनके अपराधोंकी अधिकाई के कारण निकाल बाहर कर, क्योंकि उन्होंने तुझ से बलवा किया है।। 
11. परन्तु जितने तुझ पर भरोसा रखते हैं वे सब आनन्द करें, वे सर्वदा ऊंचे स्वर से गाते रहें; क्योंकि तू उनकी रक्षा करता है, और जो तेरे नाम के प्रेमी हैं तुझ में प्रफुल्लित हों। 
12. क्योंकि तू धर्मी को आशिष देगा; हे यहोवा, तू उसको अपके अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा।।

Chapter 6

1. हे यहोवा, तू मुझे अपके क्रोध में न डांट, और न झुंझलाहट में मुझे ताड़ना दे। 
2. हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं कुम्हला गया हूं; हे यहोवा, मुझे चंगा कर, क्योंकि मेरी हडि्डयोंमें बेचैनी है। 
3. मेरा प्राण भी बहुत खेदित है। और तू, हे यहोवा, कब तक? 
4. लौट आ, हे यहोवा, और मेरे प्राण बचा अपक्की करूणा के निमित्त मेरा उद्धार कर। 
5. क्योंकि मृत्यु के बाद तेरा स्मरण नहीं होता; अधोलोक में कौन तेरा धन्यवाद करेगा? 
6. मैं कराहते कराहते थक गया; मैं अपक्की खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। 
7. मेरी आंखें शोक से बैठी जाती हैं, और मेरे सब सतानेवालोंके कारण वे धुन्धला गई हैं।। 
8. हे सब अनर्थकारियो मेरे पास से दूर हो; क्योंकि यहोवा ने मेरे रोने का शब्द सुन लिया है। 
9. यहोवा ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है; यहोवा मेरी प्रार्थना को ग्रहण भी करेगा। 
10. मेरे सब शत्रु लज्जित होंगे और बहुत घबराएंगे; वे लौट जाएंगे, और एकाएक लज्जित होंगे।।

Chapter 7

1. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरा भरोसा तुझ पर है; सब पीछा करनेवालोंसे मुझे बचा और छुटकारा दे, 
2. ऐसा न हो कि वे मुझ को सिंह की नाई फाड़कर टुकड़े टुकड़े कर डालें; और कोई मेरा छुड़ानेवाला न हो।। 
3. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, यदि मैं ने यह किया हो, यदि मेरे हाथोंसे कुटिल काम हुआ हो, 
4. यदि मैं ने अपके मेल रखनेवालोंसे भलाई के बदले बुराई की हो, (वरन मैं ने उसको जो अकारण मेरा बैरी था बचाया है) 
5. तो शत्रु मेरे प्राण का पीछा करके मुझे आ पकड़े, वरन मेरे प्राण को भूमि पर रौंदे, और मेरी महिमा को मिट्टी में मिला दे।। 
6. हे यहोवा क्रोध करके उठ; मेरे क्रोधभरे सतानेवाले के विरूद्ध तू खड़ा हो जा; मेरे लिथे जाग! तू ने न्याय की आज्ञा तो दे दी है। 
7. देश देश के लोगोंकी मण्डली तेरे चारोंओर हो; और तू उनके ऊपर से होकर ऊंचे स्थानोंपर लौट जा। 
8. यहोवा समाज समाज का न्याय करता है; यहोवा मेरे धर्म और खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे।। 
9. भला हो कि दुष्टोंकी बुराई का अन्त हो जाए, परन्तु धर्म को तू स्थिर कर; क्योंकि धर्मी परमेश्वर मन और मर्म का ज्ञाता है। 
10. मेरी ढाल परमेश्वर के हाथ में है, वह सीधे मनवालोंको बचाता है।। 
11. परमेश्वर धर्मी और न्यायी है, वरन ऐसा ईश्वर है जो प्रति दिन क्रोध करता है।। 
12. यदि मनुष्य न फिरे तो वह अपक्की तलवार पर सान चढ़ाएगा; वह अपना धनुष चढ़ाकर तीर सन्धान चुका है। 
13. और उस मनुष्य के लिथे उस ने मृत्यु के हथियार तैयार कर लिए हैं: वह अपके तीरोंको अग्निबाण बनाता है। 
14. देख दुष्ट को अनर्थ काम की पीड़ाएं हो रही हैं, उसको उत्पात का गर्भ है, और उस से झूठ उत्पन्न हुआ। उस ने गड़हा खोदकर उसे गहिरा किया, 
15. और जो खाई उस ने बनाई थी उस में वह आप ही गिरा। 
16. उसका उत्पात पलट कर उसी के सिर पर पकेगा; और उसका उपद्रव उसी के माथे पर पकेगा।। 
17. मैं यहोवा के धर्म के अनुसार उसका धन्यवाद करूंगा, और परमप्रधान यहोवा के नाम का भजन गाऊंगा।।

Chapter 8

1. हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना विभव स्वर्ग पर दिखाया है। 
2. तू ने अपके बैरियोंके कारण बच्चोंऔर दूध पिउवोंके द्वारा सामर्थ्य की नेव डाली है, ताकि तू शत्रु और पलटा लेनेवालोंको रोक रखे। 
3. जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथोंका कार्य है, और चंद्रमा और तरागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; 
4. तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? 
5. क्योंकि तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। 
6. तू ने उसे अपके हाथोंके कार्योंपर प्रभुता दी है; तू ने उसके पांव तले सब कुछ कर दिया है। 
7. सब भेड़- बकरी और गाय- बैल और जितने वनपशु हैं, 
8. आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव- जन्तु समुद्रोंमें चलते फिरते हैं। 
9. हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।।

Chapter 9

1. हे यहोवा परमेश्वर मैं अपके पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मोंका वर्णन करूंगा। 
2. मैं तेरे कारण आनन्दित और प्रफुल्लित होऊंगा, हे परमप्रधान, मैं तेरे नाम का भजन गाऊंगा।। 
3. जब मेरे शत्रु पीछे हटते हैं, तो वे तेरे साम्हने से ठोकर खाकर नाश होते हैं। 
4. क्योंकि तू ने मेरा न्याय और मुक मा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया। 
5. तू ने अन्यजातियोंको झिड़का और दुष्ट को नाश किया है; तू ने उनका नाम अनन्तकाल के लिथे मिटा दिया है। 
6. शत्रु जो है, वह मर गए, वे अनन्तकाल के लिथे उजड़ गए हैं; और जिन नगरोंको तू ने ढा दिया, उनका नाम वा निशान भी मिट गया है। 
7. परन्तु यहोवा सदैव सिंहासन पर विराजमान है, उस ने अपना सिंहासन न्याय के लिथे सिद्ध किया है; 
8. और वह आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा, वह देश देश के लोगोंका मुक मा खराई से निपटाएगा।। 
9. यहोवा पिसे हुओं के लिथे ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिथे भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा। 
10. और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपके खोजियोंको त्याग नहीं दिया।। 
11. यहोवा जो सिरयोन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! जाति जाति के लोगोंके बीच में उसके महाकर्मोंका प्रचार करो! 
12. क्योंकि खून का पलटा लेनेवाला उनको स्मरण करता है; वह दीन लोगोंकी दोहाई को भूलता।। 
13. हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर। तू जो मुझे मृत्यु के फाटकोंके पास से उठाता है, मेरे दु:ख को देख जो मेरे बैरी मुझे दे रहे हैं; 
14. ताकि मैं सिरयोन के फाटकोंके पास तेरे सब गुणोंका वर्णन करूं, और तेरे किए हुए उद्धार से मगन होऊं।। 
15. अन्य जातिवालोंने जो गड़हा खोदा था, उसी में वे आप गिर पके; जो जाल उन्होंने लगाया था, उस में उन्हीं का पांव फंस गया। 
16. यहोवा ने अपके को प्रगट किया, उस ने न्याय किया है; दुष्ट अपके किए हुए कामोंमें फंस जाता है। 
17. दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, तथा वे सब जातियां भी जा परमेश्वर को भूल जाती है। 
18. क्योंकि दरिद्र लोग अनन्तकाल तक बिसरे हुए न रहेंगे, और न तो नम्र लोगोंकी आशा सर्वदा के लिथे नाश होगी। 
19. उठ, हे परमेश्वर, मनुष्य प्रबल न होने पाए! जातियोंका न्याय तेरे सम्मुख किया जाए। 
20. हे परमेश्वर, उनको भय दिला! जातियां अपके को मनुष्यमात्रा ही जानें।

Chapter 10

1. हे यहोवा तू क्योंदूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्योंछिपा रहता है? 
2. दुष्टोंके अहंकार के कारण दी मनुष्य खदेड़े जाते हैं; वे अपक्की ही निकाली हुई युक्तियोंमें फंस जाएं।। 
3. क्योंकि दुष्ट अपक्की अभिलाषा पर घमण्ड करता है, और लोभी परमेश्वर को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है।। 
4. दुष्ट अपके अभिमान के कारण कहता है कि वह लेखा नहीं लेने का; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।। 
5. वह अपके मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; तेरे न्याय के विचार ऐसे ऊंचे पर होते हैं, कि उसकी दृष्टि वहां तक नहीं पहुंचक्की; जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुंकारता है। 
6. वह अपके मन में कहता है कि मैं कभी टलने का नहीं: मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दु:ख से बचा रहूंगा।। 
7. उसका मुंह शाप और छल और अन्धेर से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुंह में हैं। 
8. वह गांवोंके घतोंमें बैठा करता है, और गुप्त स्थानोंमें निर्दोष को घात करता है, उसकी आंखे लाचार की घात में लगी रहती है। 
9. जैसा सिंह अपक्की झाड़ी में वैसा ही वह भी छिपकर घात में बैठा करता है; वह दीन को पकड़ने के लिथे घात लगाए रहता है, 
10. वह दीन को अपके जाल में फंसाकर घसीट लाता है, तब उसे पकड़ लेता है। 
11. वह झुक जाता है और वह दबक कर बैठता है; और लाचार लोग उसके महाबली हाथोंसे पटके जाते हैं। 
12. वह अपके मन में सोचता है, कि ईश्वर भूल गया, वह अपना मुंह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।। 
13. उठ, हे यहोवा; हे ईश्वर, अपना हाथ बढ़ा; और दीनोंको न भूल। 
14. परमेश्वर को दुष्ट क्योंतुच्छ जानता है, और अपके मन में कहता है कि तू लेखा न लेगा? 
15. तू ने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और कलपाने पर दुष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपके हाथ में रखे; लाचार अपके को तेरे हाथ में सौंपता है; अनाथोंका तू ही सहाथक रहा है। दुष्ट की भुजा को तोड़ डाल; 
16. यहोवा अनन्तकाल के लिथे महाराज है; उसके देश में से अन्यजाति लोग नाश हो गए हैं।। 
17. हे यहोवा, तू ने नम्र लोगोंकी अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन तैयार करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा 
18. कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है फिर भय दिखाने न पाए।।

Chapter 11

1. मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; तुम क्योंकि मेरे प्राण से कहते हो कि पक्षी की नाई अपके पहाड़ पर उड़ जा? 
2. क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपना तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालोंपर अन्धिक्कारने में तीर चलाएं। 
3. यदि नेवें ढ़ा दी जाएं तो धर्मी क्या कर सकता है? 
4. परमेश्वर अपके पवित्रा भवन में है; परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जांचक्की हैं।
5. यहोवा धर्मीं को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपक्की आत्मा में घृणा करता है। 
6. वह दुष्टोंपर फन्दे बरसाएगा; आग और गन्धक और प्रचण्ड लूह उनके कटोरोंमें बांट दी जाएंगी। 
7. क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामोंसे प्रसन्न रहता है; धर्मीजन उसका दर्शन पाएंगे।।

Chapter 12

1. हे परमेश्वर बचा ले, क्योंकि एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्योंमें से विश्वासयोग्य लाग मर मिटे हैं। 
2. उन में से प्रत्थेक अपके पड़ोसी से झूठी बातें कहता है; वे चापलूसी के ओठोंसे दो रंगी बातें करते हैं।। 
3. प्रभु सब चापलूस ओठोंको और उस जीभ को जिस से बड़ा बोल निकलता है काट डालेगा। 
4. वे कहते हैं कि हम अपक्की जीभ ही से जीतेंगे, हमारे ओंठ हमारे ही वश में हैं; हमार प्रभु कौन है? 
5. दी लोगोंके लुट जाने, और दरिद्रोंके कराहने के कारण, परमेश्वर कहता है, अब मैं उठूंगा, जिस पर वे फुंकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूंगा। 
6. परमेश्वर का वचन पवित्रा है, उस चान्दि के समान जो भट्टी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार निर्मल की गई हो।। 
7. तू ही हे परमेश्वर उनकी रक्षा करेगा, उनको इस काल के लोगोंसे सर्वदा के लिथे बचाए रखेगा। 
8. जब मनुष्योंमें नीचपन का आदर होता है, तब दुष्ट लोग चारोंओर अकड़ते फिरते हैं।।

Chapter 13

1. हे परमेश्वर तू कब तक? क्या सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझ से छिपाए रहेगा? 
2. मैं कब तक अपके मन ही मन में युक्तियां करता रहूं, और दिन भर अपके हृदय में दुखित रहा करूं, कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा? 
3. हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखोंमें ज्योति आने दे, नहीं तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी; 
4. ऐसा न हो कि मेरा शत्रु कहे, कि मैं उस पर प्रबल हो गया; और ऐसा न हो कि जब मैं डगमगाने लगूं तो मेरे शत्रु मगन हों।। 
5. परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। 
6. मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उस ने मेरी भलाई की है।।

Chapter 14

1. मूर्ख ने अपके मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्होंने घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं। 
2. परमेश्वर ने स्वर्ग में से मनुष्योंपर दृष्टि की है, कि देखे कि कोई बुद्धिमान, कोई परमेश्वर का खोजी है या नहीं। 
3. वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं। 
4. क्या किसी अनर्थकारी को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, जो मेरे लोगोंको ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 
5. वहां उन पर भय छा गया, क्योंकि परमेश्वर धर्मी लोगोंके बीच में निरन्तर रहता है। 
6. तुम तो दीन की युक्ति की हंसी उड़ाते हो इसलिथे कि यहोवा उसका शरणस्थान है। 
7. भला हो कि इस्राएल का उद्धार सिरयोन से प्रगट होता! जब यहोवा अपक्की प्रजा को दासत्व से लौटा ले आएगा, तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।।

Chapter 15

1. हे परमेश्वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्रा पर्वत पर कौन बसने पाएगा? 
2. वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है; 
3. जो अपक्की जीभ से निन्दा नहीं करता, और न अपके मित्रा की बुराई करता, और न अपके पड़ोसी की निन्दा सुनता है; 
4. वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, और जो यहोवा के डरवैयोंका आदर करता है, जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठाना पके; 
5. जो अपना रूपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिथे घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।।

Chapter 16

1. हे ईश्वर मेरी रक्षा कर, क्योंकि मैं तेरा ही शरणागत हूं। 
2. मैं ने परमेश्वर से कहा है, कि तू ही मेरा प्रभु है; तेरे सिवाए मेरी भलाई कहीं नहीं। 
3. पृथ्वी पर जो पवित्रा लोग हैं, वे ही आदर के योग्य हैं, और उन्हीं से मैं प्रसन्न हूं। 
4. जो पराए देवता के पीछे भागते हैं उनका दु:ख बढ़ जाएगा; मैं उनके लोहूवाले तपावन नहीं तपाऊंगा और उनका नाम अपके ओठोंसे नहीं लूंगा।। 
5. यहोवा मेरा भाग और मेरे कटोरे का हिस्सा है; मेरे बांट को तू स्थिर रखता है। 
6. मेरे लिथे माप की डोरी मनभावने स्थान में पड़ी, और मेरा भाग मनभावना है।। 
7. मैं यहोवा को धन्य कहता हूं, क्योंकि उस ने मुझे सम्मत्ति दी है; वरन मेरा मन भी रात में मुझे शिक्षा देता है। 
8. मैं ने यहोवा को निरन्तर अपके सम्मुख रखा है : इसलिथे कि वह मेरे दहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊंगा।। 
9. इस कारण मेरा हृदय आनन्दित और मेरी आत्मा मगन हुई; मेरा शरीर भी चैन से रहेगा। 
10. क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपके पवित्रा भक्त को सड़ने देगा।। 
11. तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।।

Chapter 17

1. हे यहोवा परमेश्वर सच्चाई के वचन सुन, मेरी पुकार की ओर ध्यान दे। मेरी प्रार्थना की ओर जो निष्कपट मुंह से निकलती है कान लगा। 
2. मेरे मुक में का निर्णय तेरे सम्मुख हो! तेरी आंखें न्याय पर लगी रहें! 
3. तू ने मेरे हृदय को जांचा है; तू ने रात को मेरी देखभाल की, तू ने मुझे परखा परन्तु कुछ भी खोटापन नहीं पाया; मैं ने ठान लिया है कि मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकलेगी। 
4. मानवी कामोंमें मैं तेरे मुंह के वचन के द्वारा क्रूरोंकी सी चाल से अपके को बचाए रहा। 
5. मेरे पांव तेरे पथोंमें स्थिर रहे, फिसले नहीं।। 
6. हे ईश्वर, मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, क्योंकि तू मुझे उत्तर देगा। अपना कान मेरी ओर लगाकर मेरी बिनती सुन ले। 
7. तू जो अपके दहिने हाथ के द्वारा अपके शरणगतोंको उनके विरोधियोंसे बचाता है, अपक्की अद्भुत करूणा दिखा। 
8. अपके आंखो की पुतली की नाई सुरक्षित रख; अपके पंखोंके तले मुझे छिपा रख, 
9. उन दुष्टोंसे जो मुझ पर अत्याचार करते हैं, मेरे प्राण के शत्रुओं से जो मुझे घेरे हुए हैं।। 
10. उन्होंने अपके हृदयोंको कठोर किया है; उनके मुंह से घमंड की बातें निकलती हैं। 
11. उन्होंने पग पग पर हमको घेरा है; वे हमको भूमि पर पटक देने के लिथे घात लगाए हुए हैं। 
12. वह उस सिंह की नाई है जो अपके शिकार की लालसा करता है, और जवान सिंह की नाई घात लगाने के स्थानोंमें बैठा रहता है।। 
13. उठ, हे यहोवा उसका सामना कर और उसे पटक दे! अपक्की तलवार के बल से मेरे प्राण को दुष्ट से बचा ले। 
14. अपना हाथ बढ़ाकर हे यहोवा, मुझे मनुष्योंसे बचा, अर्थात् संसारी मनुष्योंसे जिनका भाग इसी जीवन में है, और जिनका पेट तू अपके भण्डार से भरता है। वे बालबच्चोंसे सन्तुष्ट हैं; और शेष सम्पति अपके बच्चोंके लिथे छोड़ जाते हैं।। 
15. परन्तु मैं तो धर्मी होकर तेरे मुख का दर्शन करूंगा जब मैं जानूंगा तब तेरे स्वरूप से सन्तुष्ट हूंगा।।

Chapter 18

1. हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं। 
2. यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढ़ाल और मेरी मुक्ति का गढ़ है। 
3. मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा; इस प्रकार मैं अपके शत्रुओं से बचाया जाऊंगा।। 
4. मृत्यु की रस्सिक्कों मैं चारो ओर से घिर गया हूं, और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; 
5. पाताल की रस्सियां मेरे चारो ओर थीं, और मृत्यु के फन्दे मुझ पर आए थे। 
6. अपके संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपके परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपके मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानोंमें पड़ी।। 
7. तब पृथ्वी हिल गई, और कांप उठी और पहाड़ोंकी नेवे कंपित होकर हिल गई क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। 
8. उसके नथनोंसे धुआं निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोएले दहक उठे। 
9. और वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; और उसके पांवोंतले घोर अन्धकार था। 
10. और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, वरन पवन के पंखोंपर सवारी करके वेग से उड़ा। 
11. उस ने अन्धिक्कारने को अपके छिपके का स्थान और अपके चारोंओर मेघोंके अन्धकार और आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। 
12. उसकी उपस्थिति की झलक से उसकी काली घटाएं फट गई; ओले और अंगारे। 
13. तब यहोवा आकाश में गरजा, और परमप्रधान ने अपक्की वाणी सुनाई, ओले ओर अंगारे।। 
14. उस ने अपके तीर चला चलाकर उनको तितर बितर किया; वरन बिजलियां गिरा गिराकर उनको परास्त किया। 
15. तब जल के नाले देख पके, और जगत की नेवें प्रगट हुई, यह तो यहोवा तेरी डांट से, और तेरे नथनोंकी सांस की झोंक से हुआ।। 
16. उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थांम लिया, और गहिरे जल में से खींच लिया। 
17. उस ने मेरे बलवन्त शत्रु से, और उन से जो मुझ से घृणा करते थे मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। 
18. मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पके। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। 
19. और उस ने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुंचाया, उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था। 
20. यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; और मेरे हाथोंकी शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 
21. क्योंकि मैं यहोवा के मार्गोंपर चलता रहा, और दुष्टता के कारण अपके परमेश्वर से दूर न हुआ। 
22. क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे और मैं ने उसकी विधियोंको न त्यागा। 
23. और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, और अधर्म से अपके को बचाए रहा। 
24. यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, और मेरे हाथोंकी उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।। 
25. दयावन्त के साथ तू अपके को दयावन्त दिखाता; और खरे पुरूष के साथ तू अपके को खरा दिखाता है। 
26. शुद्ध के साथ तू अपके को शुद्ध दिखाता, और टेढ़े के साथ तू तिर्छा बनता है। 
27. क्योंकि तू दी लोगोंको तो बचाता है; परन्तु घमण्ड भरी आंखोंको नीची करता है। 
28. हां, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अन्धिक्कारने को उजियाला कर देता है। 
29. क्योंकि तेरी सहाथता से मैं सेना पर धावा करता हूं; और अपके परमेश्वर की सहाथता से शहरपनाह को लांघ जाता हूं। 
30. ईश्वर का मार्ग सच्चाई; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपके सब शरणागतोंकी ढाल है।। 
31. यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 
32. यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है, और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। 
33. वही मेरे पैरोंको हरिणियोंके पैरोंके समान बनाता है, और मुझे मेरे ऊंचे स्थानोंपर खड़ा करता है। 
34. वह मेरे हाथोंको युद्ध करना सिखाता है, इसलिथे मेरी बाहोंसे पीतल का धनुष झुक जाता है। 
35. तू ने मुझ को अपके बचाव की ढाल दी है, तू अपके दहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और मेरी नम्रता ने महत्व दिया है। 
36. तू ने मेरे पैरोंके लिथे स्थान चौड़ा कर दिया, और मेरे पैर नहीं फिसले। 
37. मैं अपके शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूंगा; और जब तब उनका अन्त न करूं तब तक न लौटूंगा। 
38. मैं उन्हें ऐसा बेधूंगा कि वे उठ न सकेंगे; वे मेरे पांवोंके नीचे गिर पकेंगे। 
39. क्योंकि तू ने युद्ध के लिथे मेरी कमर में शक्ति का पटुका बान्धा है; और मेरे विरोधियोंको मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। 
40. तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी, ताकि मैं उनको काट डालूं जो मुझ से द्वेष रखते हैं। 
41. उन्होंने दोहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई भी बचानेवाला न मिला, उन्होंने यहोवा की भी दोहाई दी, परन्तु उस ने भी उनको उत्तर न दिया। 
42. तब मैं ने उनको कूट कूटकर पवन से उड़ाई हुई धूलि के समान कर दिया; मैं ने उनको गली कूचोंकी कीचड़ के समान निकाल फेंका।। 
43. तू ने मुझे प्रजा के झगड़ोंसे भी छुड़ाया; तू ने मुझे अन्यजातियोंका प्रधान बनाया है; जिन लोगोंको मैं जानता भी न था वे मेरे अधीन हो गथे। 
44. मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; परदेशी मेरे वश में हो जाएंगे। 
45. परदेशी मुर्झा जाएंगे, और अपके किलोंमें से थरथराते हुए निकलेंगे।। 
46. यहोवा परमेश्वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो। 
47. धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर! जिस ने देश देश के लोगोंको मेरे वंश में कर दिया है; 
48. और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; तू मुझ को मेरे विरोधियोंसे ऊंचा करता, और उपद्रवी पुरूष से बचाता है।। 
49. इस कारण मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 
50. वह अपके ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपके अभिषिक्त दाऊद पर और उसके वंश पर युगानुयुग करूणा करता रहेगा।।

Chapter 19

1. आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। 
2. दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। 
3. न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। 
4. उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उस ने सूरर्य के लिथे एक मण्डप खड़ा किया है, 
5. जो दुल्हे के समान अपके महल से निकलता है। वह शूरवीर की नाई अपक्की दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है। 
6. वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सबको पहुंचक्की है।। 
7. यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगोंको बुद्धिमान बना देते हैं; 
8. यहोवा के उपकेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखोंमें ज्योति ले आती है; 
9. यहोवा का भय पवित्रा है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। 
10. वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकनेवाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं। 
11. और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है। 
12. अपक्की भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापोंसे तू मुझे पवित्रा कर। 
13. तू अपके दास को ढिठाई के पापोंसे भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधोंसे बचा रहूंगा।। 
14. मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!

Chapter 20

1. संकट के दिन यहोवा तेरी सुन ले! याकूब के परमेश्वर का नाम तुझे ऊंचे स्थान पर नियुक्त करे! 
2. वह पवित्रास्थान से तेरी सहाथता करे, और सिरयोन से तुझे सम्भाल ले! 
3. वह तेरे सब अन्नबलियोंको स्मरण करे, और तेरे होमबलि को ग्रहण करे। 
4. वह तेरे मन की इच्छा को पूरी करे, और तेरी सारी युक्ति को सुफल करे! 
5. तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊंचे स्वर से हर्षित होकर गाएंगे, और अपके परमेश्वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे। यहोवा तुझे मुंह मांगा बरदान दे् 
6. अब मैं जान गया कि यहोवा अपके अभिषिक्त का उद्धार करता है; वह अपके दहिने हाथ के उद्धार करनेवाले पराक्रम से अपके पवित्रा स्वर्ग पर से सुनकर उसे उत्तर देगा। 
7. किसी को रथोंको, और किसी को घोड़ोंका भरोसा है, परन्तु हम तो अपके परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे। 
8. वे तो झुक गए और गिर पके परन्तु हम उठे और सीधे खड़े हैं।। 
9. हे यहोवा, बचा ले; जिस दिन हम पुकारें तो महाराजा हमें उत्तर दे।।

Chapter 21

1. हे यहोवा तेरी सामर्थ्य से राजा आनन्दित होगा; और तेरे किए हुए उद्धार से वह अति मगन होगा। 
2. तू ने उसके मनोरथ को पूरा किया है, और उसके मुंह की बिनती को तू ने अस्वीकार नहीं किया। 
3. क्योंकि तू उत्तम आशीषें देता हुआ उस से मिलता है और तू उसके सिर पर कुन्दन का मुकुट पहिनाता है। 
4. उस ने तुझ से जीवन मांगा, ओर तू ने जीवनदान दिया; तू ने उसको युगानुयुग का जीवन दिया है। 
5. तेरे उद्धार के कारण उसकी महिमा अधिक है; तू उसको विभव और ऐश्वर्य से आभूषित कर देता है। 
6. क्योंकि तू ने उसको सर्वदा के लिथे आशीषित किया है; तू अपके सम्मुख उसको हर्ष और आनन्द से भर देता है। 
7. क्योंकि राजा का भरोसा यहोवा के ऊपर है; और परमप्रधान की करूणा से वह कभी नहीं टलने का।। 
8. तेरा हाथ तेरे सब शत्रुओं को ढूंढ़ निकालेगा, तेरा दहिना हाथ तेरे सब बैरियोंका पता लगा लेगा। 
9. तू अपके मुख के सम्मुख उन्हें जलते हुए भट्टे की नाई जलाएगा। यहोवा अपके क्रोध में उन्हें निगल जाएगा, और आग उनको भस्म कर डालेगी। 
10. तू उनके फलोंको पृथ्वी पर से, और उनके वंश को मनुष्योंमें से नष्ट करेगा। 
11. क्योंकि उन्होंने तेरी हाति ठानी है, उन्होंने ऐसी युक्ति निकाली है जिसे वे पूरी न कर सकेंगे। 
12. क्योंकि तू अपना धुनष उनके विरूद्ध चढ़ाएगा, और वे पीठ दिखाकर भागेंगे।। 
13. हे यहोवा, अपक्की सामर्थ्य में महान हो! और हम गा गाकर तेरे पराक्रम का भजन सुनाएंगे।।

Chapter 22

1. हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्योंछोड़ दिया? तू मेरी पुकार से और मेरी सहाथत करने से क्योंदूर रहता है? मेरा उद्धार कहां है? 
2. हे मेरे परमेश्वर, मैं दिन को पुकारता हूं परन्तु तू उत्तर नहीं देता; और रात को भी मैं चुप नहीं रहता। 
3. परन्तु हे तू जो इस्राएल की स्तुति के सिहांसन पर विराजमान है, तू तो पवित्रा है। 
4. हमारे पुरखा तुझी पर भरोसा रखते थे; वे भरोसा रखते थे, और तू उन्हें छुड़ाता था। 
5. उन्होंने तेरी दोहाई दी और तू ने उनको छुड़ाया वे तुझी पर भरोसा रखते थे और कभी लज्जित न हुए।। 
6. परन्तु मैं तो कीड़ा हूं, मनुष्य नहीं; मनुष्योंमें मेरी नामधराई है, और लोगोंमें मेरा अपमान होता है। 
7. वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं, और ओंठ बिचकाते और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, 
8. कि अपके को यहोवा के वश में कर दे वही उसको छुड़ाए, वह उसको उबारे क्योंकि वह उस से प्रसन्न है। 
9. परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला; जब मैं दूधपिउवा बच्च था, तब ही से तू ने मुझे भरोसा रखना सिखलाया। 
10. मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया, माता के गर्भ ही से तू मेरा ईश्वर है। 
11. मुझ से दूर न हो क्योंकि संकट निकट है, और कोई सहाथक नहीं। 
12. बहुत से सांढ़ोंने मुझे घेर लिया है, बाशान के बलवन्त सांढ़ मेरे चारोंओर मुझे घेरे हुए है। 
13. वह फाड़ने और गरजनेवाले सिंह की नाईं मुझ पर अपना मुंह पसारे हुए है।। 
14. मैं जल की नाईं बह गया, और मेरी सब हडि्डयोंके जोड़ उखड़ गए: मेरा हृदय मोम हो गया, वह मेरी देह के भीतर पिघल गया। 
15. मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया; और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। 
16. क्योंकि कुत्तोंने मुझे घेर लिया है; कुकर्मियोंकी मण्डली मेरी चरोंओर मुझे घेरे हुए है; वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं। 
17. मैं अपक्की सब हडि्डयां गिन सकता हूं; वे मुझे देखते और निहारते हैं; 
18. वे मेरे वस्त्रा आपस में बांटते हैं, और मेरे पहिरावे पर चिट्ठी डालते हैं। 
19. परन्तु हे यहोवा तू दूर न रह! हे मेरे सहाथक, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 
20. मेरे प्राण को तलवार से बचा, मेरे प्राण को कुत्ते के पंजे से बचा ले! 
21. मुझे सिंह के मुंह से बचा, हां, जंगती सांढ़ोंके सींगो में से तू ने मुझे बचा लिया है।। 
22. मैं अपन भाइयोंके साम्हने तेरे नाम का प्रचार करूंगा; सभा के बीच में तेरी प्रशंसा करूंगा। 
23. हे यहोवा के डरवैयोंउसकी स्तुति करो! हे याकूब के वंश, तुम उसका भय मानो! 
24. क्योंकि उस ने दु:खी को तुच्छ नहीं जाना और न उस से घृणा करता है, ओर न उस से अपना मुख छिपाता है; पर जब उस ने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली।।
25. बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है; मैं अपके प्रण को उस से भय रखनेवालोंके साम्हने पूरा करूंगा 
26. नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे; जो यहोवा के खोजी हैं, वे उसकी स्तुति करेंगे। तुम्हारे प्राण सर्वदा जीवित रहें! 
27. पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंके लोग उसको स्मरण करेंगे और उसकी ओर फिरेंगे; और जाति जाति के सब कुल तेरे साम्हने दण्डवत् करेंगे। 
28. क्योंकि राज्य यहोवा की का है, और सब जातियोंपर वही प्रभुता करता है।। 
29. पृथ्वी के सब हृष्टपुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे; वह सब जितने मिट्टी में मिल जाते हैं और अपना अपना प्राण नहीं बचा सकते, वे सब उसी के साम्हने घुटने टेकेंगे। 
30. एक वंश उसकी सेवा करेगा; दूसरा पीढ़ी से प्रभु का वर्णन किया जाएगा। 
31. वह आएंगे और उसके धर्म के कामोंको एक वंश पर जो उत्पन्न होगा यह कहकर प्रगट करेंगे कि उस ने ऐसे ऐसे अद्भुत काम किए।।

Chapter 23

1. यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी। 
2. वह मुझे हरी हरी चराइयोंमें बैठाता है; वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है; 
3. वह मेरे जी में जी ले आता है। धर्म के मार्गो में वह अपके नाम के निमित्त अगुवाई करता है। 
4. चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।। 
5. तू मेरे सतानेवालोंके साम्हने मेरे लिथे मेज बिछाता है; तू ने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा कटोरा उमण्ड रहा है। 
6. निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूंगा।।

Chapter 24

1. पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है; जगत और उस में निवास करनेवाले भी। 
2. क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रोंके ऊपर दृढ़ करके रखी, और महानदोंके ऊपर स्थिर किया है।। 
3. यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रास्थान में कौन खड़ा हो सकता है? 
4. जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिस ने अपके मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है। 
5. वह यहोवा की ओर से आशीष पाएगा, और अपके उद्धार करनेवाले परमेश्वर की ओर से धर्मी ठहरेगा। 
6. ऐसे ही लोग उसके खोजी है, वे तेरे दर्शन के खोजी याकूबवंशी हैं।। 
7. हे फाटकों, अपके सिर ऊंचे करो। हे सनातन के द्वारों, ऊंचे हो जाओ। क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा। 
8. वह प्रतापी राजा कौन है? परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी है, परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है! 
9. हे फाटकों, अपके सिर ऊंचे करो हे सनातन के द्वारोंतुम भी खुल जाओ! क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा! 
10. वह प्रतापी राजा कौन है? सेनाओं का यहोवा, वही प्रतापी राजा है।।

Chapter 25

1. हे यहोवा मैं अपके मन को तेरी ओर उठाता हूं। 
2. हे मेरे परमेश्वर, मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है, मुझे लज्जित होने न दे; मेरे शत्रु मुझ पर जयजयकार करने न पाएं। 
3. वरन जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे।। 
4. हे यहोवा अपके मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। 
5. मुझे अपके सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्वार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जाहता रहता हूं। 
6. हे यहोवा अपक्की दया और करूणा के कामोंको स्मरण कर; क्योंकि वे तो अनन्तकाल से होते आए हैं। 
7. हे यहोवा अपक्की भलाई के कारण मेरी जवानी के पापोंऔर मेरे अपराधोंको स्मरण न कर; अपक्की करूणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।। 
8. यहोवा भला और सीधा है; इसलिथे वह पापियोंको अपना मार्ग दिखलाएगा। 
9. वह नम्र लोगोंको न्याय की शिक्षा देता, हां वह नम्र लोगोंको अपना मार्ग दिखलाएगा। 
10. जो यहोवा की वाचा और चितौनियोंको मानते हैं, उनके लिथे उसके सब मार्ग करूणा और सच्चाई हैं।। 
11. हे यहोवा अपके नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।। 
12. वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है? यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न होता है चलाएगा। 
13. वह कुशल से टिका रहेगा, और उसका वंश पृथ्वी पर अधिक्कारनेी होगा। 
14. यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उस से डरते हैं, और वह अपक्की वाचा उन पर प्रगट करेगा। 
15. मेरी आंखे सदैव यहोवा पर टकटकी लगाए रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पांवोंको जाल में से छुड़ाएगा।। 
16. हे यहोवा मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मैं अकेला और दीन हूं। 
17. मेरे हृदय का क्लेश बढ़ गया है, तू मुझ को मेरे दु:खोंसे छुड़ा ले। 
18. तू मेरे दु:ख और कष्ट पर दृष्टि कर, और मेरे सब पापोंको क्षमा कर।। 
19. मेरे शत्रुओं को देख कि वे कैसे बढ़ गए हैं, और मुझ से बड़ा बैर रखते हैं। 
20. मेरे प्राण की रक्षा कर, और मुझे छुड़ा; मुझे लज्जित न होने दे, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं। 
21. खराई और सीधाई मुझे सुरक्षित रखें, क्योंकि मुझे तेरे ही आशा है।। 
22. हे परमेश्वर इस्राएल को उसके सारे संकटोंसे छुड़ा ले।।

Chapter 26

1. हे यहोवा, मेरा न्याय कर, क्योंकि मैं खराई से चलता रहा हूं, और मेरा भरोसा यहोवा पर अटल बना है। 
2. हे यहोवा, मुझ को जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख। 
3. क्योंकि तेरी करूणा तो मेरी आंखोंके साम्हने है, और मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलता रहा हूं।। 
4. मैं निकम्मी चाल चलनेवालोंके संग नहीं बैठा, और न मैं कपटियोंके साथ कहीं जाऊंगा; 
5. मैं कुकर्मियोंकी संगति से घृणा रखता हूं, और दुष्टोंके संग न बैठूंगा।। 
6. मैं अपके हाथोंको निर्दोषता के जल से धोऊंगा, तब हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूंगा, 
7. ताकि मेरा धन्यवाद ऊंचे शब्द से करूं, 
8. और तेरे सब आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करूं।। हे यहोवा, मैं तेरे धाम से तेरी महिमा के निवासस्थान से प्रीति रखता हूं। 
9. मेरे प्राण को पापियोंके साथ, और मेरे जीवन को हत्यारोंके साथ न मिला। 
10. वे तो ओछापन करने में लगे रहते हैं, और उनका दहिना हाथ घूस से भरा रहता है।। 
11. परन्तु मैं तो खराई से चलता रहूंगा। तू मुझे छुड़ा ले, और मुझ पर अनुग्रह कर। 
12. मेरे पांव चौरस स्थान में स्थिर है; सभाओं में मैं यहोवा को धन्य कहा करूंगा।।

Chapter 27

1. यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? 
2. जब कुकर्मियोंने जो मुझे सताते और मुझी से बैर रखते थे, मुझे खा डालने के लिथे मुझ पर चढ़ाई की, तब वे ही ठोकर खाकर गिर पकें।। 
3. चाहे सेना भी मेरे विरूद्ध छावनी डाले, तौभी मैं न डरूंगा; चाहे मेरे विरूद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बान्धे निशिजित रहूंगा।। 
4. एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।। 
5. क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपके मण्डप में छिपा रखेगा; अपके तम्बू के गुप्तस्थान में वह मुझे छिपा लेगा, और चट्टान पर चढ़ाएगा। 
6. अब मेरा सिर मेरे चारोंओर के शत्रुओं से ऊंचा होगा; और मैं यहोवा के तम्बू में जयजयकार के साथ बलिदान चढ़ाऊंगा; और उसका भजन गाऊंगा।। 
7. हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूं, तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे। 
8. तू ने कहा है, कि मेरे दर्शन के खोजी हो। इसलिथे मेरा मन तुझ से कहता है, कि हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूंगा। 
9. अपना मुख मुझ से न छिपा।। अपके दास को क्रोध करके न हटा, तू मेरा सहाथक बना है। हे मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे! 
10. मेरे माता पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।। 
11. हे यहोवा, अपके मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियोंके कारण मुण् को चौरस रास्ते पर ले चल। 
12. मुझ को मेरे सतानेवालोंकी इच्छा पर न छोड़, क्योंकि झूठे साक्षी जो उपद्रव करने की धुन में हैं मेरे विरूद्ध उठे हैं।। 
13. यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितोंकी पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा, तो मैं मूच्छित हो जाता। 
14. यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!

Chapter 28

1. हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूंगा; हे मेरी चट्टान, मेरी सुनी अनसुनी न कर, ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से मैं कब्र में पके हुओं के समान हो जाऊं जो पाताल में चले जाते हैं। 
2. जब मैं तेरी दोहाई दूं, और तेरे पवित्रास्थान की भीतरी कोठरी की ओर अपके हाथ उठाऊं, तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले। 
3. उन दुष्टोंऔर अनर्थकारियोंके संग मुझे न घसीट; जो अपके पड़ोसिक्कों बातें तो मेल की बोलते हैं परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं। 
4. उनके कामोंके और उनकी करनी की बुराई के अनुसार उन से बर्ताव कर, उनके हाथोंके काम के अनुसार उन्हें बदला दे; उनके कामोंका पलटा उन्हें दे। 
5. वे यहोवा के कामोंपर और उसके हाथोंके कामोंपर ध्यान नहीं करते, इसलिथे वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगा।। 
6. यहोवा धन्य है; क्योंकि उस ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है। 
7. यहोवा मेरा बल और मेरी ढ़ाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहाथता मिली है; इसलिथे मेरा हृदय प्रफुल्लित है; और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूंगा। 
8. यहोवा उनका बल है, वह अपके अभिषिक्त के लिथे उद्धार का दृढ़ गढ़ है। 
9. हे यहोवा अपक्की प्रजा का उद्धार कर, और अपके निज भाग के लोगोंको आशीष दे; और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह।।

Chapter 29

1. हे परमेश्वर के पुत्रोंयहोवा का, हां यहोवा की का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ को सराहो। 
2. यहोवा के नाम की महिमा करो; पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत् करो। 
3. यहोवा की वाणी मेघोंके ऊपर सुन पड़ती है; प्रतामी ईश्वर गरजता है, यहोवा घने मेघोंके ऊपर रहता है। 
4. यहोवा की वाणी शक्तिशाली है, यहोवा की वाणी प्रतापमय है। 
5. यहोवा की वाणी देवदारोंको तोड़ डालती है; यहोवा लबानोन के देवदारोंको भी तोड़ डालता है। 
6. वह उन्हें बछड़े की नाई और लबानोन और शिर्योन को जंगली बछड़े के समान उछालता है।। 
7. यहोवा की वाणी आग की लपटोंको चीरती है। 
8. यहोवा की वाणी वन को हिला देती है, यहोवा कादेश के वन को भी कंपाता है।। 
9. यहोवा की वाणी से हरिणियोंका गर्भपात हो जाता है। और अरण्य में पतझड़ होती है; और उसके मन्दिर में सब कोई महिमा ही महिमा बोलता रहता है।। 
10. जलप्रलय के समय यहोवा विराजमान था; और यहोवा सर्वदा के लिथे राजा होकर विराजमान रहता है। 
11. यहोवा अपक्की प्रजा को बल देगा; यहोवा अपक्की प्रजा को शान्ति की आशीष देगा।।

Chapter 30

1. हे यहोवा मैं तुझे सराहूंगा, क्योंकि तू ने मुझे खींचकर निकाला है, और मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया। 
2. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी और तू ने मुझे चंगा किया है। 
3. हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है।। 
4. हे यहोवा के भक्तों, उसका भजन गाओ, और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो। 
5. क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है। कदाचित् रात को रोना पके, परन्तु सबेरे आनन्द पहुंचेगा।। 
6. मैं ने तो चैन के समय कहा था, कि मैं कभी नहीं टलने का। 
7. हे यहोवा अपक्की प्रसन्नता से तू ने मेरे पहाड़ को दृढ़ और स्थिर किया था; जब तू ने अपना मुख फेर लिया तब मैं घबरा गया।। 
8. हे यहोवा मैं ने तुझी को पुकारा; और यहोवा से गिड़गिड़ाकर यह बिनती की, कि 
9. जब मैं कब्र में चला जाऊंगा तब मेरे लोहू से क्या लाभ होगा? क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? क्या वह तेरी सच्चाई का प्रचार कर सकती है? 
10. हे यहोवा, सुन, मुझ पर अनुग्रह कर; हे यहोवा, तू मेरा सहाथक हो।। 
11. तू ने मेरे लिथे विलाप को नृत्य में बदल डाला, तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है; 
12. ताकि मेरी आत्मा तेरा भजन गाती रहे और कभी चुप न हो। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा।।

Chapter 31

1. हे यहोवा मेरा भरोसा तुझ पर है; मुझे कभी लज्जित होना न पके; तू अपके धर्मी होने के कारण मुझै छुड़ा ले! 
2. अपना कान मेरी ओर लगाकर तुरन्त मुझे छुड़ा ले! 
3. क्योंकि तू ने मेरे लिथे चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिथे अपके नाम के निमित्त मेरी अगुवाई कर, और मुझे आगे ले चल। 
4. जो जाल उन्होंने मेरे लिथे बिछाया है उस से तू मुझ को छुड़ा ले, क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। 
5. मैं अपक्की आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं; हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है।। 
6. जो व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, उन से मैं घृणा करता हूं; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। 
7. मैं तेरी करूणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है, 
8. और तू ने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; तू ने मेरे पांवोंको चौड़े स्थान में खड़ा किया है।। 
9. हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। 
10. मेरा जीवन शोक के मारे और मेरी अवस्था कराहते कराहते घट चक्की है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रह, ओर मेरी हडि्डयां घुल गई।। 
11. अपके सब विरोधियोंके कारण मेरे पड़ोसियोंमें मेरी नामधराई हुई है, अपके जानपहिचानवालोंके लिथे डर का कारण हूं; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझ से दूर भाग जाते हैं। 
12. मैं मृतक की नाई लोगोंके मन से बिसर गया; मैं टूटे बासन के समान हो गया हूं। 
13. मैं ने बहुतोंके मुंह से अपना अपवाद सुना, चारोंओर भय ही भय है! जब उन्होंने मेरे विरूद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की।। 
14. परन्तु हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्वर है। 
15. मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सतानेवालोंके हाथ से छुड़ा। 
16. अपके दास पर अपके मुंह का प्रकाश चमका; अपक्की करूणा से मेरा उद्धार कर।। 
17. हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे क्योंकि मैं ने तुझ को पुकारा है; दुष्ट लज्जित होंऔर वे पाताल में चुपचाप पके रहें। 
18. जो अंहकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, उनके झूठ बोलनेवाले मुंह बन्द किए जाएं।। 
19. आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपके डरवैयोंके लिथे रख छोड़ी है, और अपके शरणागतोंके लिथे मनुष्योंके साम्हने प्रगट भी की है! 
20. तू उन्हें दर्शन देने के गुप्तस्थान में मनुष्योंकी बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उनको अपके मण्डप में झगड़े- रगड़े से छिपा रखेगा।। 
21. यहोवा धन्य है, क्योंकि उस ने मुझे गढ़वाले नगर में रखकर मुझ पर अद्धभुत करूणा की है। 
22. मैं ने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की दृष्टि से दूर हो गया। तौभी जब मैं ने तेरी दोहाई दी, तब तू ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया।। 
23. हे यहोवा के सब भक्तोंउस से प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगोंकी तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है। 
24. हे यहोवा पर आशा रखनेवालोंहियाव बान्धोंऔर तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें!

Chapter 32

1. क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ापा गया हो। 
2. क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।। 
3. जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई। 
4. क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।। 
5. जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपके अपराधोंको मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।। 
6. इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी। 
7. तू मेरे छिपके का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारोंओर से छुटकारे के गीतोंसे घेर लेगा।। 
8. मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा। 
9. तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं अपके के।। 
10. दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा। 
11. हे धर्मियोंयहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालोंआनन्द से जयजयकार करो!

Chapter 33

1. हे धर्मियोंयहोवा के कारण जयजयकार करो् क्योंकि धर्मी लोगोंको स्तुति करनी सोहती है। 
2. वीणा बजा बजाकर यहोवा का धन्यवाद करो, दस तारवाली सारंगी बजा बजाकर उसका भजन गाओ। 
3. उसके लिथे नया गीत गाओ, जयजयकार के साथ भली भांति बजाओ।। 
4. क्योंकि यहोवा का वचन सीधा है; और उसका सब काम सच्चाई से होता है। 
5. वह धर्म और न्याय से प्रीति रखता है; यहोवा की करूणा से पृथ्वी भरपूर है।। 
6. आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, और उसके सारे गण उसके मुंह ही श्वास से बने। 
7. वह समुद्र का जल ढेर की नाई इकट्ठा करता; वह गहिरे सागर को अपके भण्डार में रखता है।। 
8. सारी पृथ्वी के लोग यहोवा से डरें, जगत के सब निवासी उसका भय मानें! 
9. क्योंकि जब उस ने कहा, तब हो गया; जब उस ने आज्ञा दी, तब वास्तव में वैसा ही हो गया।। 
10. यहोवा अन्यअन्यजाथियो की युक्ति को व्यर्थ कर देता है; वह देश देश के लोगोंकी कल्पनाओं को निष्फल करता है। 
11. यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहेगी, उसके मन की कल्पनाएं पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी। 
12. क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और वह समाज जिसे उस ने अपना निज भाग होने के लिथे चुन लिया हो! 
13. यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्योंको निहारता है; 
14. अपके निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहनेवालोंको देखता है, 
15. वही जो उन सभोंके हृदयोंको गढ़ता, और उनके सब कामोंका विचार करता है। 
16. कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके; वीर अपक्की बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता। 
17. बच निकलने के लिथे घोड़ा व्यर्थ है, वह अपके बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता है।। 
18. देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयोंपर और उन पर जो उसकी करूणा की आशा रखते हैं बनी रहती है, 
19. कि वह उनके प्राण को मृत्यु से बचाए, और अकाल के समय उनको जीवित रखे।। 
20. हम यहोवा का आसरा देखते आए हैं; वह हमारा सहाथक और हमारी ढाल ठहरा है। 
21. हमारा हृदय उसके कारण आनन्दित होगा, क्योंकि हम ने उसके पवित्रा नाम का भरोसा रखा है। 
22. हे यहोवा जैसी तुझ पर हमारी आशा है, वैसी ही तेरी करूणा भी हम पर हो।।

Chapter 34

1. मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी। 
2. मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा; नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे। 
3. मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें। 
4. मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। 
5. जिन्होंने उसकी ओर दृष्टि की उन्होंने ज्योति पाई; और उनका मुंह कभी काला न होने पाया। 
6. इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टोंसे छुड़ा लिया।। 
7. यहोवा के डरवैयोंके चारोंओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है। 
8. परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरूष जो उसकी शरण लेता है। 
9. हे यहोवा के पवित्रा लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयोंको किसी बात की घटी नहीं होती! 
10. जवान सिक्कों तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियोंको किसी भली वस्तु की घटी न होवेगी।। 
11. हे लड़कों, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा। 
12. वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे? 
13. अपक्की जीभ को बुराई से रोक रख, और अपके मुंह की चौकसी कर कि उस से छल की बात न निकले। 
14. बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ और उसी का पीछा कर।। 
15. यहोवा की आंखे धर्मियोंपर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उसकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। 
16. यहोवा बुराई करनेवालोंके विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। 
17. धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियोंसे छुड़ाता है। 
18. यहोवा टूटे मनवालोंके समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्वार करता है।। 
19. धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्त यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है। 
20. वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती। 
21. दुष्ट अपक्की बुराई के द्वारा मारा जाएगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे। 
22. यहोवा अपके दासोंका प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उन में से कोई भी दोषी न ठहरेगा।।

Chapter 35

1. हे यहोवा जो मेरे साथ मुक मा लड़ते हैं, उनके साथ तू भी मुक मा लड़; जो मुझ से युद्व करते हैं, उन से तू युद्व कर। 
2. ढाल और भाला लेकर मेरी सहाथता करने को खड़ा हो। 
3. बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालोंके साम्हने आकर उनको रोक; और मुझ से कह, कि मैं तेरा उद्वार हूं।। 
4. जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हाति की कल्पना करते हैं, वह पीछे हटाए जाएं और उनका मुंह काला हो! 
5. वे वायु से उड़ जानेवाली भूसी के समान हों, और यहोवा का दूत उन्हें हांकता जाए! 
6. उनका मार्ग अन्धिक्कारनेा और फिसलाहा हो, और यहोवा का दूत उनको खदेड़ता जाए।। 
7. क्योंकि अकारण उन्होंने मेरे लिथे अपना जाल गड़हे में बिछाया; अकारण ही उन्होंने मेरा प्राण लेने के लिथे गड़हा खोदा है। 
8. अचानक उन पर विपत्ति आ पके! और जो जाल उन्होंने बिछाया है उसी में वे आप ही फंसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पकें! 
9. परन्तु मैं यहोवा के कारण अपके मन में मगन होऊंगा, मैं उसके किए हुए उद्वार से हर्षित होऊंगा। 
10. मेरी हड्डी हड्डी कहेंगी, हे यहोवा तेरे तुल्य कौन है, जो दी को बड़े बड़े बलवन्तोंसे बचाता है, और लुटेरोंसे दीन दरिद्र लोगोंकी रक्षा करता है? 
11. झूठे साक्षी खड़े होते हैं; और जो बात मैं नहीं जानता, वही मुझ से पूछते हैं। 
12. वे मुझ से भलाई के बदले बुराई करते हैं; यहां तक कि मेरा प्राण ऊब जाता है। 
13. जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दु:ख उठाता रहा; और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया। 
14. मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिथे विलाप करता हो, वैसा ही मैं ने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया।। 
15. परन्तु जब मैं लंगड़ाने लगा तब वे लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरूद्व इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे; 
16. उन पाखण्डी भांड़ोंकी नाई जो पेट के लिथे उपहास करते हैं, वे भी मुझ पर दांत पीसते हैं।। 
17. हे प्रभु तू कब तक देखता रहेगा? इस विपत्ति से, जिस में उन्होंने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिक्कों मेरे प्राण को बचा ले! 
18. मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगोंके बीच में तेरी स्तुति करूंगा।। 
19. मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरूद्व आनन्द न करने पाएं, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में नैन से सैन न करने पांए। 
20. क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरूद्व छल की कल्पनाएं करते हैं। 
21. और उन्होंने मेरे विरूद्व मुंह पसारके कहा; आहा, आहा, हम ने अपक्की आंखोंसे देखा है! 
22. हे यहोवा, तू ने तो देखा है; चुप न रह! हे प्रभु, मुझ से दूर न रह! 
23. उठ, मेरे न्याय के लिथे जाग, हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे प्रभु, मेरे मुक मा निपटाने के लिथे आ! 
24. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपके धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; ओश्र उन्हें मेरे विरूद्व आनन्द करने न दे! 
25. वे मन में न कहने पाएं, कि आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई! वह यह न कहें कि हम उसे निगल गए हैं।। 
26. जो मेरी हाति से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरूद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं! 
27. जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपके दास के कुशल से प्रसन्न होता है! 
28. तब मेरे मुंह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी।।

Chapter 36

1. दुष्ट जन का अपराण मेरे हृदय के भीतर यह कहता है कि परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। 
2. वह अपके अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपके मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। 
3. उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; उस ने बुद्धि और भलाई के काम करने से हाथ उठाया है। 
4. वह अपके बिछौने पर पके पके अनर्थ की कल्पना करता है; वह अपके कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; बुराई से वह हाथ नहीं उठाता।। 
5. हे यहोवा तेरी करूणा स्वर्ग में है, तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंची है। 
6. तेरा धर्म ऊंचे पर्वतोंके समान है, तेरे नियम अथाह सागर ठहरे हैं; हे यहोवा तू मनुष्य और पशु दोनोंकी रक्षा करता है।। 
7. हे परमेश्वर तेरी करूणा, कैसी अनमोल है! मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। 
8. वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे, और तू अपक्की सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा। 
9. क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे।। 
10. अपके जाननेवालोंपर करूणा करता रह, और अपके धर्म के काम सीधे मनवालोंमें करता रह! 
11. अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, और न दुष्ट अपके हाथ के बल से मुझे भगाने पाए। 
12. वहां अनर्थकारी गिर पके हैं; वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे।।

Chapter 37

1. कुकर्मियोंके कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालोंके विषय डाह न कर! 
2. क्योंकि वे घास की नाई झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाई मुर्झा जाएंगे। 
3. यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। 
4. यहोवा को अपके सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथोंको मूरा करेगा।। 
5. अपके मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा। 
6. और वह तेरा धर्म ज्योति की नाई, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाई प्रगट करेगा।। 
7. यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्त्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह कुरी युक्तियोंको निकालता है! 
8. क्रोध से पके रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। 
9. क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे। 
10. थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भलीं भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। 
11. परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। 
12. दुष्ट धर्मी के विरूद्ध बुरी युक्ति निकालता है, और उस पर दांत पीसता है; 
13. परन्तु प्रभु उस पर हंसेगा, क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है।। 
14. दुष्ट लोग तलवार खींचे और धनुष बढ़ाए हुए हैं, ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, और सीधी चाल चलनेवालोंको वध करें। 
15. उनकी तलवारोंसे उन्हीं के हृदय छिदेंगे, और उनके धनुष तोड़े जाएंगे।। 
16. धर्मी को थोड़ा से माल दुष्टोंके बहुत से धन से उत्तम है। 
17. क्योंकि दुष्टोंकी भुजाएं तो तोड़ी जाएंगी; परन्तु यहोवा धर्मियोंको सम्भालता है।। 
18. यहोवा खरे लोगोंकी आयु की सुधि रखता है, और उनका भाग सदैव बना रहेगा। 
19. विपत्ति के समय, उनकी आशा न टूटेगी और न वे लज्जित होंगे, और अकाल के दिनोंमें वे तृप्त रहेंगे।। 
20. दुष्ट लोग नाश हो जाएंगे; और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास की नाई नाश होंगे, वे धूएं की नाई बिलाय जाएंगे।। 
21. दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परनतु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है; 
22. क्योंकि जो उस से आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, परन्तु जो उस से शापित होते हैं, वे नाश को जाएंगे।। 
23. मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है; 
24. चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थांभे रहता है।। 
25. मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। 
26. वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।। 
27. बुराई को छोड़ भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा। 
28. क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपके भक्तोंको न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है, परन्तु दुष्टोंका वंश काट डाला जाएगा। 
29. धर्मी लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।। 
30. धर्मी अपके मुंह से बुद्धि की बातें करता, और न्याय का वचन कहता है। 
31. उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है, उसके पैर नहीं फिसलते।। 
32. दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। और उसके मार डालने का यत्न करता है। 
33. यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, और जब उसका विचार किया जाए तब वह उसे दोषी न ठहराएगा।। 
34. यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिक्कारनेी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।। 
35. मैं ने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी और ऐसा फैलता हुए देखा, जैसा कोई हरा पेड़ अपके निज भूमि में फैलता है। 
36. परन्तु जब कोई उधर से गया तो देखा कि वह वहां है ही नहीं; और मैं ने भी उसे ढूंढ़ा, परन्तु कहीं न पाया।। 
37. खरे मनुष्य पर दृष्टि कर और धर्मी को देख, क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरूष का अन्तफल अच्छा है। 
38. परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएंगे; दुष्टोंका अन्तफल सर्वनाश है।। 
39. धर्मियोंकी मुक्ति यहोवा की ओर से होती है; संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है। 
40. और यहोवा उनकी सहाथता करके उनको बचाता है; वह उनको दुष्टोंसे छुड़ाकर उनका उद्वार करता है, इसलिथे कि उन्होंने उस में अपक्की शरण ली है।।

Chapter 38

1. हे यहोवा क्रोध में आकर मुझे झिड़क न दे, और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर! 
2. क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं, और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूं। 
3. तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी आरोग्यता नहीं; और मेरे पाप के कारण मेरी हडि्डयोंमें कुछ भी चैन नहीं। 
4. क्योंकि मेरे अधर्म के कामोंमें मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाई मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।। 
5. मेरी मूढ़ता के कारण से मेरे कोड़े खाने के घाव बसाते हैं और सड़ गए हैं। 
6. मैं बहुत दुखी हूं और झूक गया हूं; दिन भर मैं शौक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं। 
7. क्योंकि मेरी कमर में जलन है, और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं। 
8. मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूं; मैं अपके मन की घबराहट से कराहता हूं।। 
9. हे प्रभु मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। 
10. मेरा हृदय धड़कता है, मेरा बल घटता जाता है; और मेरी आंखोंकी ज्योति भी मुझ से जाती रही। 
11. मेरे मित्रा और मेरे संगी मेरी विपत्ति में अलग हो गए, और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए।। 
12. मेरे प्राण के ग्राहक मेरे लिथे जाल बिछाते हैं, और मेरी हाति के यत्न करनेवाले दुष्टता की बातें बोलते, और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं। 
13. परन्तु मैं बहिरे की नाई सुनता ही नहीं, और मैं गूंगे के समान मूंह नहीं खोलता। 
14. वरन मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूं जो कुछ नहीं सुनता, और जिसके मुंह से विवाद की कोई बात नहीं निकलती।। 
15. परन्तु हे यहोवा, मैं ने तुझ ही पर अपक्की आशा लगाई है; हे प्रभु, मेरे परमेश्वर, तू ही उत्तर देगा। 
16. क्योंकि मैं ने कहा, ऐसा न हो कि वे मुझ पर आनन्द करें; जो, जब मेरा पांव फिसल जाता है, तब मुझ पर अपक्की बड़ाई मारते हैं।। 
17. क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूं, और मेरा शोक निरन्तर मेरे साम्हने है। 
18. इसलिथे कि मैं तो अपके अधर्म को प्रगट करूंगा, और अपके पाप के कारण खेदित रहूंगा। 
19. परन्तु मेरे शत्रु फुर्तीले और सामर्थी हैं, और मेरे विरोधी बैरी बहुत हो गए हैं। 
20. जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं, वह भी मेरे भलाई के पीछे चलने के कारण मुझ से विरोध करते हैं।। 
21. हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे! हे मेरे परमेश्वर, मुझ से दूर न हो! 
22. हे यहोवा, हे मेरे उद्वारकर्त्ता, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर!

Chapter 39

1. मैं ने कहा, मैं अपक्की चालचलन में चौकसी करूंगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे साम्हने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुंह बन्द किए रहूंगा। 
2. मैं मौन धारण कर गूंगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई, 
3. मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपक्की जीभ से बोल उठा; 
4. हे यहोवा ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालुम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिस से मैं जान लूं कि कैसा अनित्य हूं! 
5. देख, तू ने मेरे आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्योंन होंतौभी व्यर्थ ठहरे हैं। 
6. सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा! 
7. और अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूं? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। 
8. मुझे मेरे सब अपराधोंके बन्धन से छुड़ा ले। मूढ़ मेरी निन्दा न करने पाए। 
9. मैं गूंगा बन गया और मुंह न खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है। 
10. तू ने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझ से दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूं। 
11. जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण दपट दपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सुन्दरता को पतिंगे की नाई नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।। 
12. हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दोहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शांत न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री की नाई रहता हूं, और अपके सब पुरखाओं के समान परदेशी हूं। 
13. आह! इस से पहिले कि मैं यहां से चला जाऊं और न रह जाऊं, मुझे बचा ले जिस से मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूं!

Chapter 40

1. मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा; और उस ने मेरी ओर झुककर मेरी दोहाई सुनी। 
2. उस ने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल की कीच में से उबारा, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरोंको दृढ़ किया है। 
3. और उस ने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है। बहुतेरे यह देखकर डरेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे।। 
4. क्या ही धन्य है वह पुरूष, जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियोंऔर मिथ्या की ओर मुड़नेवालोंकी ओर मुंह न फेरता हो। 
5. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिथे करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं की खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।। 
6. मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्न नहीं होता तू ने मेरे कान खोदकर खोले हैं। होमबलि और पापबलि तू ने नहीं चाहा। 
7. तब मैं ने कहा, देख, मैं आया हूं; क्योंकि पुस्तक में मेरे विषय ऐसा ही लिखा हुआ है। 
8. हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बनी है।। 
9. मैं ने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है; देख, मैं ने अपना मुंह बन्द नहीं किया हे यहोवा, तू इसे जानता है। 
10. मैं ने तेरा धर्म मन ही में नहीं रखा; मैं ने तेरी सच्चाई और तेरे किए हुए उधार की चर्चा की है; मैं ने तेरी करूणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी।। 
11. हे यहोवा, तू भी अपक्की बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले, तेरी करूणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे! 
12. क्योंकि मैं अनगिनत बुराइयोंसे घिरा हुआ हूं; मेरे अधर्म के कामोंने मुझे आ पकड़ा और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता; वे गिनती में मेरे सिर के बालोंसे भी अधिक हैं; इसलिथे मेरा हृदय टूट गया।। 
13. हे यहोवा, कृपा करके मुझे छुड़ा ले! हे यहोवा, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 
14. जो मेरे प्राण की खोज में हैं, वे सब लज्जित हों; और उनके मुंह काले होंऔर वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं जो मेरी हाति से प्रसन्न होते हैं। 
15. जो मुझ से आहा, आहा, कहते हैं, वे अपक्की लज्जा के मारे विस्मित हों।। 
16. परन्तु जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वह सब तेरे कारण हर्षित औश्र आनन्दित हों; जो तेरा किया हुआ उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, यहोवा की बड़ाई हो! 
17. मैं तो दीन और दरिद्र हूं, तौभी प्रभु मेरी चिन्ता करता है। तू मेरा सहाथक और छुड़ानेवाला है; हे मेरे परमेश्वर विलम्ब न कर।।

Chapter 41

1. क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। 
2. यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़। 
3. जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।। 
4. मैं ने कहा, हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर; मुझ को चंगा कर, क्योंकि मैं ने तो तेरे विरूद्ध पाप किया है! 
5. मेरे शत्रु यह कहकर मेरी बुराई करते हैं: वह कब मरेगा, और उसका नाम कब मिटेगा? 
6. और जब वह मुझ से मिलने को आता है, तब वह व्यर्थ बातें बकता है, जब कि उसका मन अपके अन्दर अधर्म की बातं! संचय करता है; और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है। 
7. मेरे सब बैरी मिलकर मेरे विरूद्ध कानाफूसी करते हैं; मे मेरे विरूद्ध होकर मेरी हानि की कल्पना करते हैं।। 
8. वे कहते हैं कि इसे तो कोई बुरा रोग लग गया है; अब जो यह पड़ा है, तो फिर कभी उठने का नहीं। 
9. मेरा परम मित्रा जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उस ने भी मेरे विरूद्ध लात उठाई है। 
10. परन्तु हे यहोवा, तु मुझ पर अनुग्रह करके मुझ को उठा ले कि मैं उनको बदला दूं! 
11. मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, इस से मैं ने जान लिया है कि तू मुझ से प्रसन्न है। 
12. और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, और सर्वदा के लिथे अपके सम्मुख स्थिर करता है।। 
13. इस्राएल का परमेश्वर यहोवा आदि से अनन्तकाल तक धन्य है आमीन, फिर आमीन।।

Chapter 42

1. जैसे हरिणी नदी के जल के लिथे हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिथे हांफता हूं। 
2. जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा? 
3. मेरे आंसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 
4. मैं भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। 
5. हे मेरे प्राण, तू क्योंगिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। 
6. हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिथे मैं यर्दन के पास के देश से और हर्मोन के पहाड़ोंऔर मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूं। 
7. तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगोंऔर लहरोंमें मैं डूब गया हूं। 
8. तौभी दिन को यहोवा अपक्की शक्ति और करूणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊंगा, और अपके जीवनदाता ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।। 
9. मैं ईश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूंगा, तू मुझे क्योंभूल गया? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे क्योंशोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं? 
10. मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं मानो उस में मेरी हडि्डयां चूर चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 
11. हे मेरे प्राण तू क्योंगिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।।

Chapter 43

1. हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुक मा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरूष से बचा। 
2. क्योंकि हे परमेश्वर, तू ही मेरी शरण है, तू ने क्योंमुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए क्योंफिरता रहूं? 
3. अपके प्रकाश और अपक्की सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें, वे ही मुझ को तेरे पवित्रा पर्वत पर और तेरे निवास स्थान में पहुंचाए! 
4. तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊंगा, उस ईश्वर के पास जो मेरे अति आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर मैं वीणा बजा बजाकर तेरा धन्यवाद करूंगा।। 
5. हे मेरे प्राण तू क्योंगिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।।

Chapter 44

1. हे परमेश्वर हम ने अपके कानोंसे सुना, हमारे बापदादोंने हम से वर्णन किया है, कि तू ने उनके दिनोंमें और प्राचीनकाल में क्या क्या काम किए हैं। 
2. तू ने अपके हाथ से जातियोंको निकाल दिया, और इनको बसाया; तू ने देश देश के लोगोंको दु:ख दिया, और इनको चारोंओर फैला दिया; 
3. क्योंकि वे न तो अपक्की तलवार के बल से इस देश के अधिक्कारनेी हुए, और न अपके बाहुबल से; परन्तु तेरे दहिने हाथ और तेरी भुजा और तेरे प्रसन्न मुख के कारण जयवन्त हुए; क्योंकि तू उनको चाहता था।। 
4. हे परमेश्वर, तू ही हमारा महाराजा है, तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है। 
5. तेरे सहारे से हम अपके द्रोहियोंको ढकेलकर गिरा देंगे; तेरे नाम के प्रताप से हम अपके विरोधियोंको रौंदेंगे। 
6. क्योंकि मैं अपके धनुष पर भरोसा न रखूंगा, और न अपक्की तलवार के बल से बचूगा। 
7. परन्तु तू ही ने हम को द्रोहियोंसे बचाया है, और हमारे बैरियोंको निराश और लज्जित किया है। 
8. हम परमेश्वर की बड़ाई दिन भर करते रहते हैं, और सदैव तेरे नाम का धन्यवाद करते रहेंगे।। 
9. तौभी तू ने अब हम को त्याग दिया और हमारा अनादर किया है, और हमारे दलोंके साथ आगे नहीं जाता। 
10. तू हम को शत्रु के साम्हने से हटा देता है, और हमारे बैरी मनमाने लूट मार करते हैं। 
11. तू ने हमें कसाई की भेडोंके समान कर दिया है, और हम को अन्य जातियोंमें तित्तर बित्तर किया है। 
12. तू अपक्की प्रजा को सेंतमेंत बेच डालता है, परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता।। 
13. तू हमारे पड़ोसिक्कों हमारी नामधराई कराता है, और हमारे चारोंओर से रहनेवाले हम से हंसी ठट्ठा करते हैं। 
14. तू हम को अन्यजातियोंके बीच में उपमा ठहराता है, और देश देश के लेग हमारे कारण सिर हिलाते हैं। दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है, 
15. और कलंक लगाने और निन्दा करनेवाले के बोल से, 
16. और शत्रु और बदला लेनेवालोंके कारण, बुरा- भला कहनेवालोंऔर निन्दा करनेवालोंके कारण। 
17. यह सब कुछ हम पर बीता तौभी हम तुझे नहीं भूले, न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है। 
18. हमारे मन न बहके, न हमारे पैर तरी बाट से मुड़े; 
19. तौभी तू ने हमें गीदड़ोंके स्थान में पीस डाला, और हम को घोर अन्धकार में छिपा दिया है।। 
20. यदि हम अपके परमेश्वर का नाम भूल जाते, वा किसी पराए देवता की ओर अपके हाथ फैलाते, 
21. तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातोंको जानता है। 
22. परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और उन भेड़ोंके समान समझे जाते हैं जो वध होने पर हैं।। 
23. हे प्रभु, जाग! तू क्योंसोता है? उठ! हम को सदा के लिथे त्याग न दे! 
24. तू क्योंअपना मुंह छिपा लेता है? और हमारा दु:ख और सताया जाना भूल जाता है? 
25. हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; हमारा पेट भूमि से सट गया है। 
26. हमारी सहाथता के लिथे उठ खड़ा हो! और अपक्की करूणा के निमित्त हम को छुड़ा ले।।

Chapter 45

1. मेरा हृदय एक सुन्दर विषय की उमंग से उमण्ड रहा है, जो बात मैं ने राजा के विषय रची है उसको सुनाता हूं; मेरी जीभ निपुण लेखक की लेखनी बनी है। 
2. तू मनुष्य की सन्तानोंमें परम सुन्दर है; तेरे ओठोंमें अनुग्रह भरा हुआ है; इसलिथे परमेश्वर ने तुझे सदा के लिथे आशीष दी है। 
3. हे वीर, तू अपक्की तलवार को जो तेरा विभव और प्रताप है अपक्की कटि पर बान्ध! 
4. सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपके ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए! 
5. तेरे तीर तो तेज हैं, तेरे साम्हने देश देश के लोग गिरेंगे; राजा के शत्रुओं के हृदय उन से छिदेंगे।। 
6. हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है। 
7. तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियोंसे अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है। 
8. तेरे सारे वस्त्रा, गन्धरस, अगर, और तेल से सुगन्धित हैं, तू हाथीदांत के मन्दिरोंमें तारवाले बाजोंके कारण आनन्दित हुआ है। 
9. तेरी प्रतिष्ठित स्त्रियोंमें राजकुमारियां भी हैं; तेरी दहिनी ओर पटरानी, ओपीर के कुन्दन से विभूषित खड़ी है।। 
10. हे राजकुमारी सुन, और कान लगाकर ध्यान दे; अपके लोगोंऔर अपके पिता के घर को भूल जा; 
11. और राजा तेरे रूप की चाह करेगा। क्योंकि वह तो तेरा प्रभु है, तू उसे दण्डवत् कर। 
12. सोर की राजकुमारी भी भेंट करने के लिथे उपस्थित होगी, प्रजा के धनवान लोग तुझे प्रसन्न करने का यत्न करेंगे।। 
13. राजकुमारी महल में अति शोभायमान है, उसके वस्त्रा में सुनहले बूटे कढ़े हुए हैं; 
14. वह बूटेदार वस्त्रा पहिने हुए राजा के पास पहुंचाई जाएगी। जो कुमारियां उसकी सहेलियां हैं, वे उसके पीछे पीछे चलती हुई तेरे पास पहुंचाई जाएंगी। 
15. वे आनन्दित और मगन होकर पहुंचाई जाएंगी, और वे राजा के महल में प्रवेश करेंगी।। 
16. तेरे पितरोंके स्थान पर तेरे पुत्रा होंगे; जिनको तू सारी पृथ्वी पर हाकिम ठहराएगा। 
17. मैं ऐसा करूंगा, कि तेरी नाम की चर्चा पीढ़ी से पीढ़ी तक होती रहेगी; इस कारण देश देश के लोग सदा सर्वदा तेरा धन्यवाद करते रहेंगे।।

Chapter 46

1. परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहाथक। 
2. इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं; 
3. चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठे।। 
4. एक नदी है जिसकी नहरोंसे परमेश्वर के नगर में अर्थात् परमप्रधान के पवित्रा निवास भवन में आनन्द होता है। 
5. परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहाथता करता है। 
6. जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई। 
7. सेनाओं का यहोवा हमारे संगे है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।। 
8. आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उस ने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है। 
9. वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयोंको मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथोंको आग में झोंक देता है! 
10. चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियोंमें महान् हूं, मैं पृथ्वी भर में महान् हूं! 
11. सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।।

Chapter 47

1. हे देश देश के सब लोगों, तालियोंबजाओ! ऊंचे शब्द से परमेश्वर के लिथे जयजयकार करो! 
2. क्योंकि यहोवा परमप्रधान और भययोग्य है, वह सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा है। 
3. वह देश के लोगोंको हमारे सम्मुख नीचा करता, और अन्यजातियोंको हमारे पांवोंके नीचे कर देता है। 
4. वह हमारे लिथे उत्तम भाग चुन लेगा, जो उसके प्रिय याकूब के घमण्ड का कारण है।। 
5. परमेश्वर जयजयकार सहित, यहोवा नरसिंगे के शब्द के साथ ऊपर गया है। 
6. परमेश्वर का भजन गाओ, भजन गाओ! हमारे महाराजा का भजन गाओ, भजन गाओ! 
7. क्योंकि परमेश्वर सारी पृथ्वी का महाराजा है; समझ बूझकर बुद्धि से भजन गाओ 
8. परमेश्वर जाति जाति पर राज्य करता है; परमेश्वर अपके पवित्रा सिंहासन पर विराजमान है। 
9. राज्य राज्य के रईस इब्राहीम के परमेश्वर की प्रजा होने के लिथे इकट्ठे हुए हैं। क्योंकि पृथ्वी की ढालें परमेश्वर के वश में हैं, वह तो शिरोमणि है!

Chapter 48

1. हमारे परमेश्वर के नगर में, और अपके पवित्रा पर्वत पर यहोवा महान् और अति स्तुति के योग्य है! 
2. सिरयोन पर्वत ऊंचाई में सुन्दर और सारी पृथ्वी के हर्ष का कारण है, राजाधिराज का नगर उत्तरीय सिक्के पर है। 
3. उसके महलोंमें परमेश्वर ऊंचा गढ़ माना गया है। 
4. क्योंकि देखो, राजा लोग इकट्ठे हुए, वे एक संग आगे बढ़ गए। 
5. उन्होंने आप ही देखा और देखते ही विस्मित हुए, वे घबराकर भाग गए। 
6. वहां कपकपी ने उनको आ पकड़ा, और जच्चा की सी पीड़ाएं उन्हें होने लगीं। 
7. तू पूर्वी वायु से तर्शीश के जहाजोंको तोड़ डालता है। 
8. सेनाओं के यहोवा के नगर में, अपके परमेश्वर के नगर में, जैसा हम ने सुना था, वैसा देखा भी है; परमेश्वर उसको सदा दृढ़ और स्थिर रखेगा।। 
9. हे परमेश्वर हम ने तेरे मन्दिर के भीतर तेरी करूणा पर ध्यान किया है। 
10. हे परमेश्वर तेरे नाम के योग्य तेरी स्तुति पृथ्वी की छोर तक होती है। तेरा दहिना हाथ धर्म से भरा है; 
11. तेरे न्याय के कामोंके कारण सिरयोन पर्वत आनन्द करे, और यहूदा के नगर की पुत्रियां मगन हों! 
12. सिरयोन के चारोंओर चलो, और उसकी परिक्रमा करो, उसके गुम्मटोंको गिन लो, 
13. उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके महलोंको ध्यान से देखो; जिस से कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगोंसे इस बात का वर्णन कर सको। 
14. क्योंकि वह परमेश्वर सदा सर्वदा हमारा परमेश्वर है, वह मृत्यु तक हमारी अगुवाई करेगा।।

Chapter 49

1. हे देश देश के सब लोगोंयह सुनो! हे संसार के सब निवासियों, कान लगाओ! 
2. क्या ऊंच, क्या नीच क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ! 
3. मेरे मुंह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी। 
4. मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊंगा, मैं वीणा बजाते हुए अपक्की गुप्त बात प्रकाशित करूंगा।। 
5. विपत्ति के दिनोंमें जब मैं अपके अड़ंगा मारनेवालोंकी बुराइयोंसे घिरूं, तब मैं क्योंडरूं? 
6. जो अपक्की सम्पत्ति पर भरोसा रखते, और अपके धन की बहुतायत पर फूलते हैं, 
7. उन में से कोई अपके भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है, 
8. (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)। 
9. कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे।। 
10. क्योंकि देखने में आता है, कि बुद्धिमान भी मरते हैं, और मूर्ख और पशु सरीखे मनुष्य भी दोनोंनाश होते हैं, और अपक्की सम्पत्ति औरोंके लिथे छोड़ जाते हैं। 
11. वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर सदा स्थिर रहेगा, और उनके निवास पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे; इसलिथे वे अपक्की अपक्की भूमि का नाम अपके अपके नाम पर रखते हैं। 
12. परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता, वह पशुओं के समान होता है, जो मर मिटते हैं।। 
13. उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है, तौभी उनके बाद लोग उनकी बातोंसे प्रसन्न होते हैं। 
14. वे अधोलोक की मानोंभेड़- बकरियां ठहराए गए हैं; मृत्यु उनका गड़ेरिया ठहरी; और बिहान को सीधे लोग उन पर प्रभुता करेंगे; और उनका सुन्दर रूप अधोलोक का कौर हो जाएगा और उनका कोई आधार न रहेगा। 
15. परन्तु परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक के वश से छुड़ा लेगा, क्योंकि वही मुझे ग्रहण कर अपनाएगा।। 
16. जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का विभव बढ़ जाए, तब तू भय न खाना। 
17. क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा; न उसका विभव उसके साथ कब्र में जाएगा। 
18. चाहे वह जीते जी अपके आप को धन्य कहता रहे, (जब तू अपक्की भलाई करता है, तब वे लोग तेरी प्रशंसा करते हैं) 
19. तौभी वह अपके पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, जो कभी उजियाला न देखेंगे। 
20. मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी होंपरन्तु यदि वे समझ नहीं रखते, तो वे पशुओं के समान हैं जो मर मिटते हैं।।

Chapter 50

1. ईश्वर परमेश्वर यहोवा ने कहा है, और उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक पृथ्वी के लोगोंको बुलाया है। 
2. सिरयोन से, जो परम सुन्दर है, परमेश्वर ने अपना तेज दिखाया है। 
3. हमारा परमेश्वर आएगा और चुपचाप न रहेगा, आग उसके आगे आगे भस्म करती जाएगी; और उसके चारोंओर बड़ी आंधी चलेगी। 
4. वह अपक्की प्रजा का न्याय करने के लिथे ऊपर से आकाश को और पृथ्वी को भी पुकारेगा: 
5. मेरे भक्तोंको मेरे पास इकट्ठा करो, जिन्होंने बलिदान चढ़ाकर मुझ से वाचा बान्धी है! 
6. और स्वर्ग उसके धर्मी होने का प्रचार करेगा क्योंकि परमेश्वर तो आप ही न्यायी है।। 
7. हे मेरी प्रजा, सुन, मैं बोलता हूं, और हे इस्राएल, मैं तेरे विषय साक्षी देता हूं। परमेश्वर तेरा परमेश्वर मैं ही हूं। 
8. मैं तुझ पर तेरे मेलबलियोंके विषय दोष नहीं लगाता, तेरे होमबलि तो नित्य मेरे लिथे चढ़ते हैं। 
9. मैं न तो तेरे घर से बैल न तेरे पशुशालोंसे बकरे ले लूंगा। 
10. क्योंकि वन के सारे जीवजन्तु और हजारोंपहाड़ोंके जानवर मेरे ही हैं। 
11. पहाड़ोंके सब पक्षियोंको मैं जानता हूं, और मैदान पर चलने फिरनेवाले जानवार मेरे ही हैं।। 
12. यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता; क्योंकि जगत् और जो कुछ उस में है वह मेरा है। 
13. क्या मैं बैल का मांस खाऊं, वा बकरोंका लोहू पीऊं? 
14. परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिथे अपक्की मन्नतें पूरी कर; 
15. और संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा।। 
16. परन्तु दुष्ट से परमेश्वर कहता है: तुझे मेरी विधियोंका वर्णन करने से क्या काम? तू मरी वाचा की चर्चा क्योंकरता है? 
17. तू तो शिक्षा से बैर करता, और मेरे वचनोंको तुच्छ जातना है। 
18. जब तू ने चोर को देखा, तब उसकी संगति से प्रसन्न हुआ; और परस्त्रीगामियोंके साथ भागी हुआ।। 
19. तू ने अपना मुंह बुराई करने के लिथे खोला, और तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है। 
20. तू बैठा हुआ अपके भाई के विरूद्ध बोलता; और अपके सगे भाई की चुगली खाता है। 
21. यह काम तू ने किया, और मैं चुप रहा; इसलिथे तू ने समझ लिया कि परमेश्वर बिलकुल मेरे साम्हने है। परन्तु मैं तुझे समझाऊंगा, और तेरी आंखोंके साम्हने सब कुछ अलग अलग दिखाऊंगा।। 
22. हे ईश्वर को भूलनेवालो यह बात भली भांति समझ लो, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें फाड़ डालूं, और कोई छुड़ानेवाला न हो! 
23. धन्यवाद के बलिदान का चढ़ानेवाला मेरी महिमा करता है; और जो अपना चरित्रा उत्तम रखता है उसको मैं परमेश्वर का किया हुआ उद्धार दिखाऊंगा!

Chapter 51

1. हे परमेश्वर, अपक्की करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपक्की बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधोंको मिटा दे। 
2. मुझे भलीं भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! 
3. मैं तो अपके अपराधोंकोंजानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। 
4. मैं ने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। 
5. देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपक्की माता के गर्भ में पड़ा।। 
6. देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है; और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा। 
7. जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्रा हो जाऊंगा; मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा। 
8. मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिस से जो हडि्डयां तू ने तोड़ डाली हैं वह मगन हो जाएं। 
9. अपना मुख मेरे पापोंकी ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामोंको मिटा डाल।। 
10. हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नथे सिक्के से उत्पन्न कर। 
11. मुझे अपके साम्हने से निकाल न दे, और अपके पवित्रा आत्मा को मुझ से अलग न कर। 
12. अपके किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।। 
13. जब मैं अपराधियोंको तेरा मार्ग सिखाऊंगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे। 
14. हे परमेश्वर, हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर, मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, तब मैं तेरे धर्म का जयजयकार करने पाऊंगा।। 
15. हे प्रभु, मेरा मुंह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूंगा। 
16. क्योकि तू मेलबलि में प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता। 
17. टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।। 
18. प्रसन्न होकर सिरयोन की भलाई कर, यरूशलेम की शहरपनाह को तू बना, 
19. तब तू धर्म के बलिदानोंसे अर्थात् सर्वांग पशुओं के होमबलि से प्रसन्न होगा; तब लोग तेरी वेदी पर बैल चढ़ाएंगे।।

Chapter 52

1. हे वीर, तू बुराई करने पर क्योंघमण्ड करता है? ईश्वर की करूणा तो अनन्त है। 
2. तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है; सारे धरे हुए अस्तुरे की नाईं वह छल का काम करती है। 
3. तू भलाई से बढ़कर बुराई में और अधर्म की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है। 
4. हे छली जीभ तू सब विनाश करनेवाली बातोंसे प्रसन्न रहती है।। 
5. हे ईश्वर तुझे सदा के लिथे नाश कर देगा; वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; और जीवतोंके लोक में तुझे उखाड़ डालेगा। 
6. तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएंगे, और यह कहकर उस पर हंसेंगे, कि 
7. देखो, यह वही पुरूष है जिस ने परमेश्वर को अपक्की शरण नहीं माना, परन्तु अपके धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, और अपके को दुष्टता में दृढ़ करता रहा!
8. परन्तु मैं तो परमेश्वर के भवन में हरे जलपाई के वृक्ष के समान हूं। मैं ने परमेश्वर की करूणा पर सदा सर्वदा के लिथे भरोसा रखा है। 
9. मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूंगा, क्योंकि तू ही ने यह काम किया है। मैं तेरे ही नाम की बाट जोहता रहूंगा, क्योंकि यह तेरे पवित्रा भक्तोंके साम्हने उत्तम है।।

Chapter 53

1. मूढ़ ने अपके मन में कहा है, कि कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्होंने कुटिलता के घिनौने काम किए हैं; कोई सुकर्मी नहीं।। 
2. परमेश्वर ने स्वर्ग पर से मनुष्योंके ऊपर दृष्टि की ताकि देखे कि कोई बुद्धि से चलनेवाला वा परमेश्वर को पूछनेवाला है कि नहीं।। 
3. वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं।। क्या उन सब अनर्थकारियोंको कुछ भी ज्ञान नहीं 
4. जो मेरे लोगोंको ऐसे खाते हैं जैसे रोटी और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 
5. वहां उन पर भय छा गया जहां भय का कोई कारण न था। क्योंकि यहोवा न उनकी हडि्डयोंको, जो तेरे विरूद्ध छावनी डाले पके थे, तितर बितर कर दिया; तू ने तो उन्हें लज्जित कर दिया इसलिथे कि परमेश्वर ने उनको निकम्मा ठहराया है।। 
6. भला होता कि इस्राएल का पूरा उद्धार सिरयोन से निकलता! जब परमेश्वर अपक्की प्रजा को बन्धुवाई से लौटा ले आएगा तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।।

Chapter 54

1. हे परमेश्वर अपके नाम के द्वारा मेरा उद्वार कर, और अपके पराक्रम से मेरा न्याय कर। 
2. हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन ले; मेरे मुंह के वचनोंकी ओर कान लगा।। 
3. क्योंकि परदेशी मेरे विरूद्व उठे हैं, और बलात्कारी मेरे प्राण के ग्राहक हुए हैं; उन्होंने परमेश्वर को अपके सम्मुख नहीं जाना।। 
4. देखो, परमेश्वर मेरा सहाथक है; प्रभु मेरे प्राण के सम्भालनेवालोंके संग है। 
5. वह मेरे द्रोहियोंकी बुराई को उन्हीं पर लौटा देगा; हे परमेश्वर, अपक्की सच्चाई के कारण उन्हें विनाश कर।। 
6. मैं तुझे स्वेच्छाबलि चढ़ाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा, क्योंकि यह उत्तम है। 
7. क्योंकि तू ने मुझे सब दुखोंसे छुड़ाया है, और मैं अपके शत्रुओं पर दृष्टि करके सन्तुष्ट हुआ हूं।।

Chapter 55

1. हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़! 
2. मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं। 
3. क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं।। 
4. मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 
5. भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। 
6. और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! 
7. देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता, 
8. मैं प्रचण्ड बयार और आन्धी के झोंके से बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता।। 
9. हे प्रभु, उनको सत्यानाश कर, और उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे; क्योंकि मैं ने नगर में उपद्रव और झगड़ा देखा है। 
10. रात दिन वे उसकी शहरपनाह पर चढ़कर चारोंओर घूमते हैं; और उसके भीतर दुष्टता और उत्पात होता है। 
11. उसके भीतर दुष्टता ने बसेरा डाला है; और अन्धेर, अत्याचार और छल उसके चौक से दूर नहीं होते।। 
12. जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, नहीं तो मैं उसको सह लेता; जो मेरे विरूद्व बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, नहीं तो मैं उस से छिप जाता। 
13. परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य मेरा परममित्रा और मेरी जान पहचान का था। 
14. हम दोनोंआपस में कैसी मीठी मीठी बातें करते थे; हम भीड़ के साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे। 
15. उनको मृत्यु अचानक आ दबाए; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं; क्योंकि उनके घर और मन दोनोंमें बुराइयां और उत्पात भरा है।। 
16. परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूंगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा। 
17. सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनोंपहर मैं दोहाई दूंगा और कराहता रहूंगा। और वह मेरा शब्द सुन लेगा। 
18. जो लड़ाई मेरे विरूद्व मची थी उस से उस ने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। उन्होंने तो बहुतोंको संग लेकर मेरा साम्हना किया था। 
19. ईश्वर जो आदि से विराजमान है यह सुनकर उनको उत्तर देगा। थे वे है जिन में कोई परिवर्तन नहीं और उन में परमेश्वर का भय है ही नहीं।। 
20. उस ने अपके मेल रखनेवालोंपर भी हाथ छोड़ा है, उस ने अपक्की वाचा को तोड़ दिया है। 
21. उसके मुंह की बातें तो मक्खन सी चिकनी थी परन्तु उसके मन में लड़ाई की बातें थीं; उसके वचन तेल से अधिक नरम तो थे परन्तु नंगी तलवारें थीं।। 
22. अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।। 
23. परन्तु हे परमेश्वर, तू उन लोगोंको विनाश के गड़हे में गिरा देगा; हत्यारे और छली मनुष्य अपक्की आधी आयु तक भी जीवित न रहेंगे। परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखे रहूंगा।।

Chapter 56

1. हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं। वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं। 
2. मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझ से लड़ते हैं वे बहुत हैं। 
3. जिस समय मुझे डल लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। 
4. परमेश्वर की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूंगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है? 
5. वे दिन भर मेरे वचनोंको, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैंद्ध उनकी सारी कल्पनाएं मेरी ही बुराई करने की होती है। 
6. वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं; वे मेरे कदमोंको देखते भालते हैं मानोंवे मेरे प्राणोंकी घात में ताक लगाए बैठें हों। 
7. क्या वे बुराई करके भी बच जाएंगे? हे परमेश्वर, अपके क्रोध से देश देश के लोगोंको गिरा दे! 
8. तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आंसुओं को अपक्की कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है? 
9. जब जिस समय मैं पुकारूंगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे। यह मैं जानता हूं, कि परमेश्वर मेरी ओर है। 
10. परमेश्वर की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, यहोवा की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा। 
11. मैं ने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 
12. हे परमेश्वर, तेरी मन्नतोंका भरा मुझ पर बना है; मैं तुझ को धन्यवाद बलि चढ़ाऊंगा। 
13. क्योंकि तू ने मुझ को मृत्यु से बचाया है; तू ने मेरे पैरोंको भी फिसलने से न बचाया, ताकि मैं ईश्वर के साम्हने जीवतोंके उजियाले में चलूं फिरूं?

Chapter 57

1. हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं; और जब तक थे आपत्तियां निकल न जाएं, तब तक मैं तेरे पंखोंके तले शरण लिए रहूंगा। 
2. मैं परम प्रधान परमेश्वर को पुकारूंगा, ईश्वर को जो मेरे लिथे सब कुछ सिद्ध करता है। 
3. ईश्वर स्वर्ग से भेजकर मुझे बचा लेगा, जब मेरा निगलनेवाला निन्दा कर रहा हो। परमेश्वर अपक्की करूणा और सच्चाई प्रगट करेगा।। 
4. मेरा प्राण सिंहोंके बीच में है, मुझे जलते हुओं के बीच में लेटना पड़ता है, अर्थात् ऐसे मनुष्योंके बीच में जिन के दांत बर्छी और तीर हैं, और जिनकी जीभ तेज तलवार है।। 
5. हे परमेश्वर तू स्वर्ग के ऊपर अति महान और तेजोमय है, तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! 
6. उन्होंने मेरे पैरोंके लिथे जाल लगाया है; मेरा प्राण ढला जाता है। उन्होंने मेरे आगे गड़हा खोदा, परन्तु आप ही उस में गिर पके।। 
7. हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है, मेरा मन स्थिर है; मैं गाऊंगा वरन भजन कीर्तन करूंगा। 
8. हे मेरी आत्मा जाग जा! हे सारंगी और वीणा जाग जाओ। मैं भी पौ फटते ही जाग उठूंगा। 
9. हे प्रभु, मैं देश के लोगोंके बीच तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं राज्य राज्य के लोगोंके बीच में तेरा भजन गाऊंगा। 
10. क्योंकि तेरी करूणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंचक्की है।। 
11. हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर अति महान है! तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए!

Chapter 58

1. हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? और हे मनुष्यवंशियोंक्या तुम सीधाई से न्याय करते हो? 
2. नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो।। 
3. दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बालते हुए भटक जाते हैं। 
4. उन में सर्प का सा विष है; वे उस नाम के समान हें, जो सुनना नहीं चाहता; 
5. और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्योंन मंत्रा पढ़े, तौभी उसकी नहीं सुनता।। 
6. हे परमेश्वर, उनके मुंह में से दांतोंको तोड़ दे; हे यहोवा उन जवान सिंहोंकी दाढ़ोंको उखाड़ डाल! 
7. वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएं; जब वे अपके तीर चढ़ाएं, तब तीर मानोंदो टुकड़े हो जाएं। 
8. वे घोंघे के समान हो जाएं जो घुलकर नाश हो जाता है, और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिस ने सूरज को देखा ही नहीं। 
9. उस से पहिले कि तुम्हारी हांबियोंमें कांटोंकी आंच लगे, हरे व जले, दोनोंको वह बवंडर से उड़ा ले जाएगा।। 
10. धर्मी ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; वह अपके पांव दुष्ट के लोहू में धोएगा।। 
11. तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिथे फल है; निश्चय परमेश्वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है।।

Chapter 59

1. हे मेरे परमेश्वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, मुझे ऊंचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियोंसे बचा, 
2. मुझ को बुराई करनेवालोंके हाथ से बचा, और हत्यारोंसे मेरा उद्वार कर।। 
3. क्योंकि देख, वे मेरी घात में लगे हैं; हे यहोवा, मेरा कोई दोष वा पाप नहीं है, तौभी बलवन्त लोग मेरे विरूद्ध इकट्ठे होते हैं। 
4. वह मुझ निर्दोष पर दौड़े दौड़कर लड़ने को तैयार हो जाते हैं।। मुझ से मिलने के लिथे जाग उठ, और यह देख! 
5. हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर सब अन्यजातिवालोंको दण्ड देने के लिथे जाग; किसी विश्वासघाती अत्याचारी पर अनुग्रह न कर।। 
6. वे लागे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राते हैं, और नगर के चारोंओर घूमते हैं। देख वे डकारते हैं, 
7. उनके मुंह के भीतर तलवारें हैं, क्योंकि वे कहते हैं, कौन सुनता है? 
8. परन्तु हे यहोवा, तू उन पर हंसेगा; तू सब अन्य जातियोंको ठट्ठां में उड़ाएगा। 
9. हे मेरे बल, मुझे तेरी ही आस होगी; क्योंकि परमेश्वर मेरा ऊंचा गढ़ है।। 
10. परमेश्वर करूणा करता हुआ मुझ से मिलेगा; परमेश्वर मेरे द्रोहियोंके विषय मेरी इच्छा पूरी कर देगा।। 
11. उन्हें घात न कर, न हो कि मेरी प्रजा भूल जाए; हे प्रभु, हे हमारी ढाल! अपक्की शक्ति के उन्हें तितर बितर कर, उन्हें दबा दे। 
12. वह अपके मुंह के पाप, और ओठोंके वचन, और शाप देने, और झूठ बोलने के कारण, अभिमान में फंसे हुए पकड़े जाएं। 
13. जलजलाहट में आकर उनका अन्त कर, उनका अन्त कर दे ताकि वे नष्ट हो जाएं तब लोग जानेंगे कि परमेश्वर याकूब पर, वरन पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करता है।। 
14. वे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राएं, और नगर के चारोंओर घूमें। 
15. वे टुकड़े के लिथे मारे मारे फिरें, और तृप्त न होन पर रात भर वहीं ठहरे रहें।। 
16. परन्तु मैं तेरी सामर्थ्य का यश गाऊंगा, और भोर को तेरी करूणा का जय जयकार करूंगा। क्योंकि तू मेरा ऊंचा गढ़ है, और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है। 
17. हे मेरे बल, मैं तेरा भजन गाऊंगा, क्योंकि हे परमेश्वर, तू मेरा ऊंचा गढ़ और मेरा करूणामय परमेश्वर है।।

Chapter 60

1. हे परमेश्वर तू ने हम को त्याग दिया, और हम को तोड़ डाला है; तू क्रोधित हुआ; फिर हम को ज्योंका त्योंकर दे। 
2. तू ने भूमि को कंपाया और फाड़ डाला है; उसके दरारोंको भर दे, क्योंकि वह डगमगा रही है। 
3. तू ने अपक्की प्रजा को कठिन दु:ख भुगताया; तू ने हमें लड़खड़ा देनेवाला दाखमधु पिलाया है।। 
4. तू ने अपके डरवैयोंको झण्डा दिया है, कि वह सच्चाई के कारण फहराया जाए। 
5. तू अपके दहिने हाथ से बचा, और हमारी सुन ले कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं।। 
6. परमेश्वर पवित्राता के साथ बोला है मैं प्रफुल्लित हूंगा; मैं शकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 
7. गिलाद मेरा है; मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप, यहूदा मेरा राजदण्ड है। 
8. मोआब मेरे धोने का पात्रा है; मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंबा; हे पलिश्तीन मेरे ही कारण जयजयकार कर।। 
9. मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? एदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की है? 
10. हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को त्याग नही दिया? हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ नहीं जाता। 
11. द्रोही के विरूद्ध हमारी सहाथता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ होता है। 
12. परमेश्वर की सहाथता से हम वीरता दिखाएंगे, क्योंकि हमारे द्रोहियोंको वही रौंदेगा।।

Chapter 61

1. हे परमेश्वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर घ्यान दे। 
2. मूर्छा खाते समय मैं पृथ्वी की छोर से भी तुझे पुकारूंगा, जो चट्टान मेरे लिथे ऊंची है, उस पर मुझ को ले चला; 
3. क्योंकि तू मेरा शरणस्थान है, और शत्रु से बचने के लिथे ऊंचा गढ़ है।। 
4. मै तेरे तम्बू में युगानुयुग बना रहूंगा। 
5. क्योंकि हे परमेश्वर, तू ने मेरी मन्नतें सुनीं, जो तेरे नाम के डरवैथे हैं, उनका सा भाग तू ने मुझे दिया है।। 
6. तू राजा की आयु को बहुत बढ़ाएगा; उसके वर्ष पीढ़ी पीढ़ी के बराबर होंगे। 
7. वह परमेश्वर के सम्मुख सदा बना रहेगा; तू अपक्की करूणा और सच्चाई को उसकी रक्षा के लिथे ठहरा रख। 
8. और मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपक्की मन्नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।।

Chapter 62

1. सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेरश्वर की ओर मन लगाए हूं; मेरा उद्धार उसी से होता है। 
2. सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; मैं बहुत न डिगूंगा।। 
3. तुम कब तक एक पुरूष पर धावा करते रहोगे, कि सब मिलकर उसका घात करो? वह तो झुकी हुई भीत वा गिरते हुए बाड़े के समान है। 
4. सचमुच वे उसको, उसके ऊंचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; वे झूठ से प्रसन्न रहते हैं। मुंह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं।। 
5. हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है। 
6. सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; इसलिथे मैं न डिगूंगा। 
7. मेरा उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है। 
8. हे लोगो, हर समय उस पर भरोसा रखो; उस से अपके अपके मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है। 
9. सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तौल में वे हलके निकलते हैं; वे सब के सब सांस से भी हलके हैं। 
10. अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो, और लूट पाट करने पर मत फूलो; चाहे धन सम्पति बढ़े, तौभी उस पर मन न लगाना।। 
11. परमेश्वर ने एक बार कहा है; और दो बार मैं ने यह सुना है: कि सामर्थ्य परमेश्वर का है। 
12. और हे प्रभु, करूणा भी तेरी है। क्योंकि तू एक एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है।।

Chapter 63

1. हे परमेश्वर, तू मेरा ईश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूंढूंगा; सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है। 
2. इस प्रकार से मैं ने पवित्रास्थान में तुझ पर दृष्टि की, कि तेरी सामर्थ्य और महिमा को देखूं। 
3. क्योंकि तेरी करूणा जीवन से भी उत्तम है मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। 
4. इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपके हाथ उठाऊंगा।। 
5. मेरा जीव मानो चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगा, और मैं जयजयकार करके तेरी स्तुति करूंगा। 
6. जब मैं बिछौने पर पड़ा तेरा स्मरण करूंगा, तब रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूंगा; 
7. क्योंकि तू मेरा सहाथक बना है, इसलिथे मैं तेरे पंखोंकी छाया में जयजयकार करूंगा। 
8. मेरा मन तेरे पीछे पीछे लगा चलता है; और मुझे तो तू अपके दहिने हाथ से थाम रखता है।। 
9. परन्तु जो मेरे प्राण के खोजी हैं, वे पृथ्वी के नीचे स्थानोंमें जा पकेंगे; 
10. वे तलवार से मारे जाएंगे, और गीदड़ोंका आहार हो जाएंगे। 
11. परन्तु राजा परमेश्वर के कारण आनन्दित होगा; जो कोई ईश्वर की शपथ खाए, वह बड़ाई करने पाएगा; परन्तु झूठ बोलनेवालोंका मुंह बन्द किया जाएगा।।

Chapter 64

1. हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। 
2. कुकर्मियोंकी गोष्ठी से, और अनर्थकारियोंके हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। 
3. उन्होंने अपक्की जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपके कड़वे बचनोंके तीरोंको चढ़ाया है; 
4. ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं। 
5. वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा? 
6. वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं! 
7. परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे। 
8. वे अपके ही वचनोंके कारण ठोकर खाकर गिर पकेंगे; जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपके अपके सिर हिलाएंगे 
9. तब सारे लोग डर जाएंगे; और परमेश्वर के कामोंका बखान करंगे, और उसके कार्यक्रम को भली भांति समझेंगे।। 
10. धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे।।

Chapter 65

1. हे परमेश्वर, सिरयोन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिथे मन्नतें पूरी की जाएंगी। 
2. हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे। 
3. अर्धम के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; हमारे अपराधोंको तू ढांप देगा। 
4. क्या ही धन्य है वह; जिसको तू चुनकर अपके समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनोंमें बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्रा मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थोंसे तृप्त होंगे।। 
5. हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हे पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंके और दूर के समुद्र पर के रहनेवालोंके आधार, तू धर्म से किए हुए भयानक कामोंके द्वारा हमारा मुंह मांगा वर देगा; 
6. तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपक्की सामर्थ्य के पर्वतोंको स्थिर करता है; 
7. तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगो का महाशब्द, और देश देश के लोगोंका कोलाहल शन्त करता है; 
8. इसलिथे दूर दूर देशोंके रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनोंसे जयजयकार कराता है।। 
9. तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता हैं, तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्वर की नहर जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्योंके लिथे अन्न को तैयार करता है। 
10. तू रेघारियोंको भली भांति सींचता है, और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है। 
11. अपक्की भलाई से भरे हुए वर्ष पर तू ने मानो मुकुट धर दिया है; तेरे मार्गोंमें उत्तम उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। 
12. वे जंगल की चराइयोंमें पाए जाते हैं; और पहाड़ियां हर्ष का फेंटा बान्धे हुए है।। 
13. चराइयां भेड़- बकरियोंसे भरी हुई हैं; और तराइयां अन्न से ढंपी हुई हैं, वे जयजयकार करतीं और गाती भी हैं।।

Chapter 66

1. हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्वर के लिथे जयजयकार करो; 
2. उसके नाम की महिमा का भजन गाओ; उसकी स्तुति करते हुए, उसकी महिमा करो। 
3. परमेश्वर से कहो, कि तेरे काम क्या ही भयानक हैं! तेरी महासामर्थ्य के कारण तेरे शत्रु तेरी चापलूसी करेंगे। 
4. सारी पृथ्वी के लोग तुझे दण्डवत् करेंगे, और तेरा भजन गाएंगे; वे तेरे नाम का भजन गाएंगे।। 
5. आओ परमेश्वर के कामोंको दखो; वह अपके कार्योंके कारण मनुष्योंको भययोग्य देख पड़ता है। 
6. उस ने समुद्र को सूखी भूमि कर डाला; वे महानद में से पांव पावं पार उतरे। वहां हम उसके कारण आनन्दित हुए, 
7. जो पराक्रम से सर्वदा प्रभुता करता है, और अपक्की आंखोंसे जाति जाति को ताकता है। हठीले अपके सिर न उठाएं।। 
8. हे देश देश के लोगो, हमारे परमेश्वर को धन्य कहो, और उसकी स्तुति में राग उठाओ, 
9. जो हम को जीवित रखता है; और हमारे पांव को टलने नहीं देता। 
10. क्योंकि हे परमेश्वर तू ने हम को जांचा; तू ने हमें चान्दी की नाईं ताया था। 
11. तू ने हम को जाल में फंसाया; और हमारी कटि पर भारी बोझ बान्धा था; 
12. तू ने घुड़चढ़ोंको हमारे सिरोंके ऊपर से चलाया, हम आग और जल से होकर गए; परन्तु तू ने हम को उबार के सुख से भर दिया है।। 
13. मैं होमबलि लेकर तेरे भवन में आंऊंगा मैं उन मन्नतोंको तेरे लिथे पूरी करूंगा, 
14. जो मैं ने मुंह खोलकर मानीं, और संकट के समय कही थीं। 
15. मैं तुझे मोटे पशुओं के होमबलि, मेंढ़ोंकी चर्बी के धूप समेत चढ़ऊंगा; मैं बकरोंसमेत बैल चढ़ाऊंगा।। 
16. हे परमेश्वर के सब डरवैयोंआकर सुनो, मैं बताऊंगा कि उस ने मेरे लिथे क्या क्या किया है। 
17. मैं ने उसको पुकारा, और उसी का गुणानुवाद मुझ से हुआ। 
18. यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता। 
19. परन्तु परमेश्वर ने तो सुना है; उस ने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है।। 
20. धन्य है परमेश्वर, जिस ने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपक्की करूणा दूर कर दी है!

Chapter 67

1. परमेश्वर हम पर अनुग्रह करे और हम को आशीष दे; वह हम पर अपके मुख को प्रकाश चमकाए 
2. जिस से तेरी गति प्थ्वी पर, और तेरा किया हुआ उद्वार सारी जातियोंमें जाना जाए। 
3. हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 
4. राज्य राज्य के लोग आनन्द करें, और जयजयकार करें, क्योंकि तू देश देश के लोंगोंका न्याय धर्म से करेगा, और पृथ्वी के राज्य राज्य के लोगोंकी अगुवाई करेगा।। 
5. हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 
6. भूमि ने अपक्की उपज दी है, परमेश्वर जो हमारा परमेश्वर है, उस ने हमें आशीष दी है। 
7. परमेश्वर हम को आशीष देगा; और पृथ्वी के दूर दूर देशोंके सब लोग उसका भय मानेंगे।।

Chapter 68

1. परमेश्वर उठे, उसके शत्रु तित्तर बितर हों; और उसके बैरी उसके साम्हने से भाग जाएं। 
2. जैसे धुआं उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; जैसे मोम आग की आंच से पिघल जाता है, वैसे ही दुष्ट लोग परमेश्वर की उपस्थिति से नाश हों। 
3. परन्तु धर्मी आनन्दित हों; वे परमेश्वर के साम्हने प्रफुल्लित हों; वे आनन्द से मगन हों! 
4. परमेश्वर का गीत गाओ, उसके नाम का भजन गाओ; जो निर्जल देशोंमें सवार होकर चलता है, उसके लिथे सड़क बनाओ; उसका नाम याह है, इसलिथे तुम उसके साम्हने प्रफुल्लित हो! 
5. परमेश्वर अपके पवित्रा धाम में, अनाथोंका पिता और विधवाओं का न्यायी है। 
6. परमेश्वर अनाथोंका घर बसाता है; और बन्धुओं को छुड़ाकर भाग्यवान करता है; परन्तु हठीलोंको सूखी भूमि पर रहना पड़ता है।। 
7. हे परमेश्वर, जब तू अपक्की प्रजा के आगे आगे चलता था, जब तू निर्जल भूमि में सेना समेत चला, 
8. तब पृथ्वी कांप उठी, और आकाश भी परमेश्वर के साम्हने टपकने लगा, उधर सीनै पर्वत परमेश्वर, हां इस्राएल के परमेश्वर के साम्हने कांप उठा। 
9. हे परमेश्वर, तू ने बहुत से वरदान बरसाए; तेरा निज भाग तो बहुत सूखा था, परन्तू तू ने उसको हरा भरा किया है; 
10. तेरा झुण्ड उस में बसने लगा; हे परमेश्वर तू ने अपक्की भलाई से दीन जन के लिथे तैयारी की है। 
11. प्रभु आज्ञा देता है, तब शुभ समाचार सुनानेवालियोंकी बड़ी सेना हो जाती है। 
12. अपक्की अपक्की सेना समेत राजा भागे चले जाते हैं, और गृहस्थिन लूट को बांट लेती है। 
13. क्या तुम भेड़शालोंके बीच लेट जाओगे? और ऐसी कबूतरी के समान होगे जिसके पंख चान्दी से और जिसके पर पीले सोने से मढ़े हुए हों? 
14. जब सर्वशक्तिमान ने उस में राजाओं को तित्तर बितर किया, तब मानो सल्मोन पर्वत पर हिम पड़ा।। 
15. बाशान का पहाड़ परमेश्वर का पहाड़ है; बाशान का पहाड़ बहुत शिखरवाला पहाड़ है। 
16. परन्तु हे शिखरवाले पहाड़ों, तुम क्योंउस पर्वत को घूरते हो, जिसे परमेश्वर ने अपके वास के लिथे चाहा है, और जहां यहोवा सदा वास किए रहेगा? 
17. परमेश्वर के रथ बीस हजार, वरन हजारोंहजार हैं; प्रभु उनके बीच में है, जैसे वह सीनै पवित्रास्थान में है। 
18. तू ऊंचे पर चढ़ा, तू लोगोंको बन्धुवाई में ले गया; तू ने मनुष्योंसे, वरन हठीले मनुष्योंसे भी भेंटें लीं, जिस से याह परमेश्वर उन में वास करे।। 
19. धन्य है प्रभु, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है; वही हमारा उद्धारकर्ता ईश्वर है। 
20. वही हमारे लिथे बचानेवाला ईश्वर ठहरा; यहोवा प्रभु मृत्यु से भी बचाता है।। 
21. निश्चय परमेश्वर अपके शत्रुओं के सिर पर, और जो अधर्म के र्माग पर चलता रहता है, उसके बाल भरे चोंडें पर मार मार के उसे चूर करेगा। 
22. प्रभु ने कहा है, कि मैं उन्हें बाशान से निकाल लाऊंगा, मैं उनको गहिरे सागर के तल से भी फेर ले आऊंगा, 
23. कि तू अपके पांव को लोहू में डुबोए, और तेरे शत्रु तेरे कुत्तोंका भाग ठहरें।। 
24. हे परमशॆवर तेरी गति देखी गई, मेरे ईश्वर, मेरे राजा की गति पवित्रास्थान में दिखाई दी है; 
25. गानेवाले आगे आगे और तारवाले बाजोंके बजानेवाले पीछे पीछे गए, चारोंओर कुमारियां डफ बजाती थीं। 
26. सभाओं में परमेश्वर का, हे इस्राएल के सोते से निकले हुए लोगों, प्रभु का धन्यवाद करो। 
27. वहां उनको अध्यक्ष छोटा बिन्यामीन है, वहां यहूदा के हाकिम अपके अनुचरोंसमेत हैं, वहां जबूलून और नप्ताली के भी हाकिम हैं।। 
28. तेरे परमेश्वर ने आज्ञा दी, कि तुझे सामर्थ्य मिले; हे परमेश्वर जो कुछ तू ने हमारे लिथे किया है, उसे दृढ़ कर। 
29. तेरे मन्दिर के कारण जो यरूशलेम में हैं, राजा तेरे लिथे भेंट ले आएंगे। 
30. नरकटोंमें रहनेवाले बनैले पशुओं को, सांड़ोंके झुण्ड को और देश देश के बछड़ोंको झिड़क दे। वे चान्दी के टुकड़े लिथे हुए प्रणाम करेंगे; जो लोगे युद्ध से प्रसन्न रहते हैं, उनको उस ने तितर बितर किया है। 
31. मि से रईस आएंगे; कूशी अपके हाथोंको परमेश्वर की ओर फुर्ती से फैलाएंगे।। 
32. हे पृथ्वी पर के राज्य राज्य के लोगोंपरमेश्वर का गीत गाओ; प्रभु का भजन गाओ, 
33. जो सब से ऊंचे सनातन स्वर्ग में सवार होकर चलता है; देखो वह अपक्की वाणी सुनाता है, वह गम्भीर वाणी शक्तिशाली है। 
34. परमशॆवर की सामर्थ्य की स्तुति करो, उसका प्रताप इस्राएल पर छाया हुआ है, और उसकी सामर्थ्य आकाशमण्डल में है। 
35. हे परमेश्वर, तू अपके पवित्रास्थानोंमें भययोग्य है, इस्राएल का ईश्वर ही अपक्की प्रजा को सामर्थ्य और शक्ति का देनेवाला है। परमेश्वर धन्य है।।

Chapter 69

1. हे परमेश्वर, मेरा उद्धार कर, मैं जल में डूबा जाता हूं। 
2. मैं बड़े दलदल में धसा जाता हूं, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते; मैं गहिरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूं। 
3. मैं पुकारते पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है; अपके परमेश्वर की बाट जोहते जोहते, मेरी आंखे रह गई हैं।। 
4. जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालोंसे अधिक हैं; मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, इसलिथे जो मैं ने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा है। 
5. हे परमेश्वर, तू तो मेरी मूढ़ता को जानता है, और मेरे दोष तुझ से छिपे नहीं हैं।। 
6. हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, उनकी आशा मेरे कारण न टूटे; हे इस्राएल के परमेश्वर, जो तुझे ढूंढते हैं उनका मुंह मेरे कारण काला न हो। 
7. तेरे ही कारण मेरी निन्दा हुई है, और मेरा मुंह लज्जा से ढंपा है। 
8. मैं अपके भाइयोंके साम्हने अजनबी हुआ, और अपके सगे भाइयोंकी दृष्टि में परदेशी ठहरा हूं।। 
9. क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ, और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। 
10. जब मैं रोकर और उपवास करके दु:ख उठाता था, तब उस से भी मेरी नामधराई ही हुई। 
11. और जब मैं टाट का वस्त्रा पहिने था, तब मेरा दृष्टान्त उन में चलता था। 
12. फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं, और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। 
13. परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है; हे परमेश्वर अपक्की करूणा की बहुतायात से, और बचाने की अपक्की सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। 
14. मुझ को दलदल में से उबार, कि मैं धंस न जाऊं; मैं अपके बैरियोंसे, और गहिरे जल में से बच जाऊं। 
15. मैं धारा में डूब न जाऊं, और न मैं गहिरे जल में डूब मरूं, और न पाताल का मुंह मेरे ऊपर बन्द हो।। 
16. हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करूणा उत्तम है; अपक्की दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। 
17. अपके दास से अपना मुंह न मोड़; क्योंकि मैं संकट में हूं, फुर्ती से मेरी सुन ले। 
18. मेरे निकट आकर मुझे छुड़ा ले, मेरे शत्रुओं से मुझ को छुटकारा दे।। 
19. मेरी नामधराई और लज्जा और अनादर को तू जानता है: मेरे सब द्रोही तेरे साम्हने हैं। 
20. मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूं। मैं ने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, परन्तु किसी को न पाया, और शान्ति देनेवाले ढूंढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। 
21. और लोगोंने मेरे खाने के लिथे इन्द्रायन दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिथे मुझे सिरका पिलाया।। 
22. उनको भोजन उनके लिथे फन्दा हो जाए; और उनके सुख के समय जाल बन जाए। 
23. उनकी आंखोंपर अन्धेरा छा जाए, ताकि वे देख न सकें; और तू उनकी कटि को निरन्तर कंपाता रह। 
24. उनके ऊपर अपना रोष भड़का, और तेरे क्रोध की आंच उनको लगे। 
25. उनकी छावनी उजड़ जाए, उनके डेरोंमें कोई न रहे। 
26. क्योंकि जिसको तू ने मारा, वे उसके पीछे पके हैं, और जिनको तू ने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। 
27. उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें। 
28. उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए, और धर्मियोंके संग लिखा न जाए।। 
29. परन्तु मैं तो दु:खी और पीड़ित हूं, इसलिथे हे परमेश्वर तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊंचे स्थान पर बैठा। 
30. मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूंगा, और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूंगा। 
31. यह यहोवा को बैल से अधिक, वरन सींग और खुरवाले बैल से भी अधिक भाएगा। 
32. नम्र लोग इसे देखकर आनन्दित होंगे, हे परमेश्वर के खोजियोंतुम्हारा मन हरा हो जाए। 
33. क्योंकि यहोवा दरिद्रोंकी ओर कान लगाता है, और अपके लोगोंको जो बन्धुए हैं तुच्छ नही जानता।। 
34. स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें, और समुद्र अपके सब जीव जन्तुओं समेत उसकी स्तुति करे। 
35. क्योंकि परमेश्वर सिरयोन का उद्धार करेगा, और यहूदा के नगरोंको फिर बसाएगा; और लोग फिर वहां बसकर उसके अधिक्कारनेी हो जाएंगे। 
36. उसके दासोंको वंश उसको अपके भाग में पाएगा, और उसके नाम के प्रेमी उस में वास करेंगे।।

Chapter 70

1. हे परमेश्वर मुझे छुड़ाने के लिथे, हे यहोवा मेरी सहाथता करने के लिथे फुर्ती कर! 
2. जो मेरे प्राण के खोजी हैं, उनकी आशा टूटे, और मुंह काला हो जाए! जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं, वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं। 
3. जो कहते हैं, आहा, आहा, वे अपक्की लज्जा के मारे उलटे फेरे जाएं।। 
4. जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वे सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों! और जो तेरा उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, कि परमेश्वर की बड़ाई हो। 
5. मैं तो दीन और दरिद्र हूं; हे परमेश्वर मेरे लिथे फुर्ती कर! तू मेरा सहाथक और छुड़ानेवाला है; हे यहोवा विलम्ब न कर!

Chapter 71

1. हे यहोवा मैं तेरा शरणागत हूं; मेरी आशा कभी टूटने न पाए! 
2. तू तो धर्मी है, मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर; मेरी ओर कान लगा, और मेरा उद्धार कर! 
3. मेरे लिथे सनातन काल की चट्टान का धाम बन, जिस में मैं नित्य जा सकूं; तू ने मेरे उद्धार की आज्ञा तो दी है, क्योंकि तू मेरी चट्टान और मेरा गढ़ ठहरा है।। 
4. हे मेरे परमेश्वर दुष्ट के, और कुटिल और क्रूर मनुष्य के हाथ से मेरी रक्षा कर। 
5. क्योंकि हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं; बचपन से मेरा आधार तू है। 
6. मैं गर्भ से निकलते ही, तुझ से सम्भाला गया; मुझे मां की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिथे मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूंगा।। 
7. मैं बहुतोंके लिथे चमत्कार बना हूं; परन्तु तू मेरा दृढ़ शरणस्थान है। 
8. मेरे मुंह से तेरे गुणानुवाद, और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन बहुत हुआ करे। 
9. बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे। 
10. क्योंकि मेरे शत्रु मेरे विषय बातें करते हैं, और जो मेरे प्राण की ताक में हैं, वे आपस में यह सम्मति करते हैं, कि 
11. परमेश्वर ने उसको छोड़ दिया है; उसका पीछा करके उसे पकड़ लो, क्योंकि उसका कोई छुड़ानेवाला नहीं।। 
12. हे परमेश्वर, मुझ से दूर न रह; हे मेरे परमेश्वर, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 
13. जो मेरे प्राण के विरोधी हैं, उनकी आशा टूटे और उनका अन्त हो जाए; जो मेरी हानि के अभिलाषी हैं, वे नामधराई और अनादर में गड़ जाएं। 
14. मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा। 
15. मैं अपके मुंह से तेरे धर्म का, और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन दिन भर करता रहूंगा, परन्तु उनका पूरा ब्योरा जाना भी नहीं जाता। 
16. मैं प्रभु यहोवा के पराक्रम के कामोंका वर्णन करता हुआ आऊंगा, मैं केवल तेरे ही धर्म की चर्चा किया करूंगा।। 
17. हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मोंका प्रचार करता आया हूं। 
18. इसलिथे हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगोंको तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालोंको तेरा पराक्रम सुनाऊं। 
19. और हे परमेश्वर, तेरा धर्म अति महान है।। तू जिस ने महाकार्य किए हैं, हे परमेवर तेरे तुल्य कौन है? 
20. तू ने तो हम को बहुत से कठिन कष्ट दिखाए हैं परन्तु अब तू फिर से हम को जिलाएगा; और पृथ्वी के गहिरे गड़हे में से उबार लेगा। 
21. तू मेरी बड़ाई को बढ़ाएगा, और फिरकर मुझे शान्ति देगा।। 
22. हे मेरे परमेश्वर, मैं भी तेरी सच्चाई को धन्यवाद सारंगी बजाकर गाऊंगा; हे इस्राएल के पवित्रा मैं वीणा बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 
23. जब मैं तेरा भजन गाऊंगा, तब अपके मुंह से और अपके प्राण से भी जो तू ने बचा लिया है, जयजयकार करूंगा। 
24. और मैं तेरे धर्म की चर्चा दिन भर करता रहूंगा; क्योंकि जो मेरी हानि के अभिलाषी थे, उनकी आशा टूट गई और मुंह काले हो गए हैं।।

Chapter 72

1. हे परमेश्वर, राजा को अपना नियम बता, राजपुत्रा को अपना धर्म सिखला! 
2. वह तेरी प्रजा का न्याय धर्म से, और तेरे दी लोगोंका न्याय ठीक ठीक चुकाएगा। 
3. पहाडोंऔर पहाड़ियोंसे प्रजा के लिथे, धर्म के द्वारा शान्ति मिला करेगी 
4. वह प्रजा के दीन लोगोंका न्याय करेगा, और दरिद्र लोगोंको बचाएगा; और अन्धेर करनेवालोंको चूर करेगा।। 
5. जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे तब तक लोग पीढ़ी- पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे। 
6. वह घास की खूंटी पर बरसनेवाले मेंह, और भूमि सींचनेवाली झाड़ियोंके समान होगा। 
7. उसके दिनोंमें धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी।। 
8. वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। 
9. उसके साम्हने जंगल के रहनेवाले घुटने टेकेंगे, और उसके शत्रु मिट्टी चाटेंगे। 
10. तर्शीश और द्वीप द्वीप के राजा भेंट ले आएंगे, शेबा और सबा दोनोंके राजा द्रव्य पहुंचाएंगे। 
11. सब राजा उसको दण्डवत् करेंगे, जाति जाति के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 
12. क्योंकि वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दु:खी और असहाथ मनुष्य का उद्धार करेगा। 
13. वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रोंके प्राणो को बचाएगा। 
14. वह उनके प्राणोंको अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।। 
15. वह तो जीवित रहेगा और शेबा के सोने में से उसको दिया जाएगा। लोग उसके लिथे नित्य प्रार्थना करेंगे; और दिन भर उसको धन्य कहते हरेंगे। 
16. देश में पहाड़ोंकी चोटियोंपर बहुत से अन्न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारूओं की नाईं झूमेंगी; और नगर के लोग घास की नाई लहलहाएंगे। 
17. उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपके को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियां उसको भाग्यवान कहेंगी।। 
18. धन्य है, यहोवा परमेश्वर जो इस्राएल का परमेश्वर है; आश्चर्य कर्म केवल वही करता है। 
19. उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।। 
20. यिशै के पुत्रा दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई।।

Chapter 73

1. सचमुच इस्त्राएल के लिथे अर्थात् शुद्ध मनवालोंके लिथे परमेश्वर भला है। 
2. मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे। 
3. क्योंकि जब मैं दुष्टोंका कुशल देखता था, तब उन घमण्डियोंके विषय डाह करता था।। 
4. क्योंकि उनकी मृत्यु में बेधनाएं नहीं होतीं, परन्तु उनका बल अटूट रहता है। 
5. उनको दूसरे मनुष्योंकी नाईं कष्ट नहीं होता; और और मनुष्योंके समान उन पर विपत्ति नहीं पड़ती। 
6. इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; उनका ओढ़ना उपद्रव है। 
7. उनकी आंखें चर्बीं से झलकती हैं, उनके मन की भवनाएं उमण्डती हैं। 
8. वे ठट्ठा मारते हैं, और दुष्टता से अन्धेर की बात बोलते हैं; 
9. वे डींग मारते हैं। वे मानोंस्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं, और वे पृथ्वी में बोलते फिरते हैं।। 
10. तौभी उसकी प्रजा इधर लौट आएगी, और उनको भरे हुए प्याले का जल मिलेगा। 
11. फिर वे कहते हैं, ईश्वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है? 
12. देखो, थे तो दुष्ट लोग हैं; तौभी सदा सुभागी रहकर, धन सम्पत्ति बटोरते रहते हैं। 
13. निश्चय, मैं ने अपके हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपके हाथोंको निर्दोषता में धोया है; 
14. क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूं और प्रति भोर को मेरी ताड़ना होती आई है।। 
15. यदि मैं ने कहा होता कि मैं ऐसा ही कहूंगा, तो देख मैं तेरे लड़कोंकी सन्तान के साथ क्रूरता का व्यवहार करता, 
16. जब मैं सोचने लगा कि इसे मैं कैसे समझूं, तो यह मेरी दृष्टि में अति कठिन समस्या थी, 
17. जब तक कि मैं ने ईश्वर के पवित्रा स्थान में जाकर उन लोगोंके परिणाम को न सोचा। 
18. निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानोंमें रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है। 
19. अहा, वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते घबराते नाश हो गए हैं। 
20. जैसे जागनेहारा स्वप्न को तुच्छ जानता है, वैसे ही हे प्रभु जब तू उठेगा, तब उनको छाया से समझकर तुच्छ जानेगा।। 
21. मेरा मन तो चिड़चिड़ा हो गया, मेरा अन्त:करण छिद गया था, 
22. मैं तो पशु सरीखा था, और समझता न था, मैं तेरे संग रहकर भी, पशु बन गया था। 
23. तौभी मैं निरन्तर तेरे संग ही था; तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। 
24. तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपके पास रखेगा। 
25. स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। 
26. मेरे हृदय और मन दोनोंतो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिथे मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।। 
27. जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे; जो कोई तेरे विरूद्ध व्यभिचार करता है, उसको तू विनाश करता है। 
28. परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिथे भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, जिस से मैं तेरे सब कामोंको वर्णन करूं।।

Chapter 74

1. हे परमेश्वर, तू ने हमें क्योंसदा के लिथे छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआं तेरी चराई की भेंड़ोंके विरूद्ध क्योंउठ रहा है? 
2. अपक्की मण्डली को जिसे तू ने प्राचीनकाल में मोल लिया था, और अपके निज भाग का गोत्रा होने के लिथे छुड़ा लिया था, और इस सिरयोन पर्वत को भी, जिस पर तू ने वास किया था, स्मारण कर! 
3. अपके डग सनातन की खंडहर की ओर बढ़ा; अर्थात् उन सब बुराइयोंकी ओर जो शत्राृ ने पवित्रास्थान में किए हैं।। 
4. तेरे द्रोही तेरे सभास्थान के बीच गरजते रहे हैं; उन्होंने अपक्की ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। वे उन मनुष्योंके समान थे 
5. जो घने वन के पेड़ोंपर कुल्हाड़े चलाते हैं। 
6. और अब वे उस भवन की नक्काशी को, कुल्हाडियोंऔर हथौड़ोंसे बिलकुल तोड़े डालते हैं। 
7. उन्होंने तेरे पवित्रास्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। 
8. उन्होंने मन में कहा है कि हम इनको एकदक दबा दें; उन्होंने इस देश में ईश्वर के सब सभास्थानोंकोंफूंक दिया है।। 
9. हम को हमारे निशान नहीं देख पड़ते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी। 
10. हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा? 
11. तू अपना दहिना हाथ क्योंरोके रहता है? उसे अपके पांजर से निकाल कर उनका अन्त कर दे।। 
12. परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है। 
13. तू ने अपक्की शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; तू ने जल में मगरमच्छोंके सिक्कों फोड़ दिया। 
14. तू ने तो लिव्यातानोंके सिर टुकड़े टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए। 
15. तू ने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, तू ने तो बारहमासी नदियोंको सुखा डाला। 
16. दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है। 
17. तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानोंको ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनोंतू ने ठहराए हैं।। 
18. हे यहोवा स्मरण कर, कि शत्रु ने नामधराई ही है, और मूढ़ लोगोंने तेरे नाम की निन्दा की है। 
19. अपक्की पिण्डुकी के प्राण को वनपशु के वश में न कर; अपके दी जनोंको सदा के लिथे न भूल 
20. अपक्की वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अन्धेरे स्थान अत्याचार के घरोंसे भरपूर हैं। 
21. पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पके; दीन दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएं।। 
22. हे परमेश्वर उठ, अपना मुक मा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूढ़ से दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर। 
23. अपके द्रोहियोंका बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियोंको कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है।

Chapter 75

1. हे परमेश्वर हम तेरा धन्यवाद करते, हम तेरा नाम धन्यवाद करते हैं; क्योंकि तेरा नाम प्रगट हुआ है, तेरे आश्चर्यकर्मोंका वर्णन हो रहा है।। 
2. जब ठीक समय आएगा तब मैं आप ही ठीक ठीक न्याय करूंगा। 
3. पृथ्वी अपके सब रहनेवालोंसमेत गल रही है, मैं ने उसके खम्भोंको स्थिर कर दिया है। 
4. मैं ने घमंडियोंसे कहा, घमंड मत करो, और दुष्टोंसे, कि सींग ऊंचा मत करो; 
5. अपना सींग बहुत ऊंचा मत करो, न सिर उठाकर ढिठाई की बात बोलो।। 
6. क्योंकि बढ़ती न तो पूरब से न पच्छिम से, और न जंगल की ओर से आती है; 
7. परन्तु परमेश्वर ही न्यायी है, वह एक को घटाता और दूसरे को बढ़ाता है। 
8. यहोवा के हाथ में एक कटोरा है, जिस में का दाखमधु झागवाला है; उस में मसाला मिला है, और वह उस में से उंडेलता है, निश्चय उसकी तलछट तक पृथ्वी के सब दृष्ट लोग पी जाएंगे।। 
9. परन्तु मैं तो सदा प्रचार करता रहूंगा, मैं याकूब के परमेश्वर का भजन गांऊगा। 
10. दुष्टोंके सब सींगोंको मैं काट डालूंगा, परन्तु धर्मी के सींग ऊंचे किए जाएंगे।

Chapter 76

1. परमेश्वर यहूदा में जाना गया है, उसका नाम इस्राएल में महान हुआ है। 
2. और उसका मण्डप शालेम में, और उसका धाम सिरयोन में है। 
3. वहां उस ने चमचमाते तीरोंको, और ढाल ओर तलवार को तोड़कर, निदान लड़ाई ही को तोड़ डाला है।। 
4. हे परमेश्वर तू तो ज्योतिमय है; तू अहेर से भरे हुए पहाड़ोंसे अधिक उत्तम और महान है। 
5. दृढ़ मनवाले लुट गए, और भरी नींद में पके हैं; 
6. और शूरवीरोंमें से किसी का हाथ न चला। हे याकूब के परमेश्वर, तेरी घुड़की से, रथोंसमेत घोड़े भारी नींद में पके हैं। 
7. केवल तू ही भययोग्य है; और जब तू क्रोध करने लगे, तब तेरे साम्हने कौन खड़ा रह सकेगा? 
8. तू ने स्वर्ग से निर्णय सुनाया है; पृथ्वी उस समय सुनकर डर गई, और चुप रही, 
9. जब परमेश्वर न्याय करने को, और पृथ्वी के सब नम्र लोगोंका उद्धार करने को उठा।। 
10. निश्चय मनुष्य की जलजलाहट तेरी स्तुति का कारण हो जाएगी, और जो जलजलाहट रह जाए, उसको तू रोकेगा। 
11. अपके परमेश्वर यहोवा की मन्नत मानो, और पूरी भी करो; वह जो भय के योग्य है, उसके आस पास के सब उसके लिथे भेंट ले आएं। 
12. वह तो प्रधानोंका अभिमान मिटा देगा; वह पृथ्वी के राजाओं को भययोग्य जान पड़ता है।।

Chapter 77

1. मैं परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दूंगा, मैं परमेश्वर की दोहाई दूंगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा। 
2. संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा; रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, मुझ में शांति आई ही नहीं। 
3. मैं परमेश्वर का स्मरण कर करके कहरता हूं; मैं चिन्ता करते करते मूर्छित हो चला हूं। (सेला) 
4. तू मुझे झपक्की लगने नहीं देता; मैं ऐसा घबराया हूं कि मेरे मुंह से बात नहीं निकलती।। 
5. मैं प्राचीनकाल के दिनोंको, और युग युग के वर्षोंको सोचा है। 
6. मैं रात के समय अपके गीत को स्मरण करता; और मन में ध्यान करता हूं, और मन में भली भांति विचार करता हूं: 
7. क्या प्रभु युग युग के लिथे छोड़ देगा; और फिर कभी प्रसन्न न होगा? 
8. क्या उसकी करूणा सदा के लिथे जाती रही? क्या उसका वचन पीढ़ी पीढ़ी के लिथे निष्फल हो गया है? 
9. क्या ईश्वर अनुग्रह करना भूल गया? क्या उस ने क्रोध करके अपक्की सब दया को रोक रखा है? (सेला) 
10. मैने कहा यह तो मेरी दुर्बलता ही है, परन्तु मैं परमप्रधान के दहिने हाथ के वर्षोंको विचारता हूं।। 
11. मैं याह के बड़े कामोंकी चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामोंको स्मरण करूंगा। 
12. मैं तेरे सब कामोंपर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामोंको सोचूंगा। 
13. हे परमेश्वर तेरी गति पवित्राता की है। कौन सा देवता परमेश्वर के तुल्य बड़ा है? 
14. अद्भुत काम करनेवाला ईश्वर तू ही है, तू ने अपके देश देश के लोगोंपर अपक्की शक्ति प्रगट की है। 
15. तू ने अपके भुजबल से अपक्की प्रजा, याकूब और यूसुफ के वंश को छुड़ा लिया है।। (सेला) 
16. हे परमेश्वर समुद्र ने तुझे देखा, समुद्र तुझे देखकर ड़र गया, गहिरा सागर भी कांप उठा। 
17. मेघोंसे बड़ी वर्षा हुई; आकाश से शब्द हुआ; फिर तेरे तीर इधर उधर चले। 
18. बवणडर में तेरे गरजने का शब्द सुन पड़ा था; जगत बिजली से प्रकाशित हुआ; पृथ्वी कांपी और हिल गई। 
19. तेरे मार्ग समुद्र में है, और तेरा रास्ता गहिरे जल में हुआ; और तेरे पांवोंके चिन्ह मालम नहीं होते। 
20. तू ने मूसा और हारून के द्धारा, अपक्की प्रजा की अगुवाई भेड़ोंकी सी की।।

Chapter 78

1. हे मेरे लागो, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनोंकी ओर कान लगाओ! 
2. मैं अपना मूंह नीतिवचन कहने के लिथे खोलूंगा; मैं प्राचीकाल की गुप्त बातें कहूंगा, 
3. जिन बातोंको हम ने सुना, ओर जान लिया, और हमारे बाप दादोंने हम से वर्णन किया है। 
4. उन्हे हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगें, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगोंसे, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ और आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करेंगें।। 
5. उस ने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्त्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उस ने हमारे पितरोंको आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपके अपके लड़केवालोंको बताना; 
6. कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात जो लड़केवाले उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपके अपके लड़केवालोंसे इनका बखान करने में उद्यत हों, जिस से वे परमेश्वर का आस्त्रा रखें, 
7. और ईश्वर के बड़े कामोंको भूल न जाएं, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें; 
8. और अपके पितरोंके समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा ईश्वर की ओर सच्ची रही।। 
9. एप्रेमयोंने तो शस्त्राधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युठ्ठ के समय पीठ दिखा दी। 
10. उन्हो ने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इनकार किया। 
11. उन्हो ने उसके बड़े कामोंको और जो आश्चर्यकर्म उस ने उनके साम्हने किए थे, उनको भुला दिया। 
12. उस ने तो उनके बापदादोंके सम्मुख मिस्त्रा देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे। 
13. उस ने समुद्र को दो भाग करके उन्हे पार कर दिया, और जल को ढ़ेर की नाई खड़ा कर दिया। 
14. और उस ने दिन को बादल के खम्भोंसे और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्धारा उनकी अगुवाई की। 
15. वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहिरे जलाशयोंसे मनमाने पिलाता था। 
16. उस ने चट्टान से भी धाराएं निकालीं और नदियोंका सा जल बहाथा।। 
17. तौभी वे फिर उसके विरूद्ध अघिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरूद्ध उठते रहे। 
18. और अपक्की चाह के अनुसार भोजन मांगकर मन ही मन ईश्वर की पक्कीक्षा की। 
19. वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले, और कहने लगे, क्या ईश्वर जंगल में मेज लगा सकता है? 
20. उस ने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएं उमण्ड़ चक्की, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपक्की प्रजा के लिथे मांस भी तैयार कर सकता? 
21. यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के बीच आग लगी, और इस्त्राएल के विरूद्ध क्रोध भड़का; 
22. इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उठ्ठार करने की शक्ति पर भरोसा किया। 
23. तौभी उस ने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के ठ्ठारोंको खोला; 
24. और उनके लिथे खाने को मान बरसाया, और उन्हे स्वर्ग का अन्न दिया। 
25. उनको शूरवीरोंकी सी रोटी मिली; उस ने उनको मनमाना भोजन दिया। 
26. उस ने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपक्की शक्ति से दक्खिनी बहाई; 
27. और उनके लिथे मांस धूलि की नाई बहुत बरसाया, और समुद्र के बालू के समान अनगिनित पक्षी भेजे; 
28. और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासोंके चारोंओर गिराए। 
29. और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उस ने उनकी कामना पूरी की। 
30. उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुंह ही में था, 
31. कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उस ने उनके हष्टपुष्टोंको घात किया, और इस्त्राएल के जवानोंको गिरा दिया।। 
32. इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मोंकी प्रतीति न की। 
33. तब उस ने उनके दिनोंको व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षोंको धबराहट में कटवाया। 
34. जब जब वह उन्हे घात करने लगता, तब तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर ईश्वर को यत्न से खोजते थे। 
35. और उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान ईश्वर हमारा छुड़ानेवाला है। 
36. तौभी उन्होंने उस से चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले। 
37. क्योंकि उनका ह्यदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। 
38. परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढांपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपके क्रोध को ठण्डा करता है, और अपक्की जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता। 
39. उसको स्मरण हुआ कि थे नाशमान हैं, थे वायु के समान हैं जो चक्की जाती और लौट नहीं आती। 
40. उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! 
41. वे बारबार ईश्वर की पक्कीक्षा करते थे, और इस्त्राएल के पवित्रा को खेदित करते थे। 
42. उन्होने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; 
43. कि उस ने क्योंकर अपके चिन्ह मिस्त्रा में, और अपके चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे। 
44. उस ने तो मिस्त्रियोंकी नहरोंको लोहू बना डाला, और वे अपक्की नदियोंका जल पी न सके। 
45. उस ने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हे काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया। 
46. उस ने उनकी भूमि की उपज कीड़ोंको, और उनकी खेतीबारी टिड्डयोंको खिला दी थी। 
47. उस ने उनकी दाखलताओं को ओेलोंसे, और उनके गूलर के पेड़ोंको बड़े बड़े पत्थ्र बरसाकर नाश किया। 
48. उस ने उनके पशुओं को ओलोंसे, और उनके ढोरोंको बिजलियोंसे मिटा दिया। 
49. उस ने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हे संकट में डाला, और दुखदाई दूतोंका दल भेजा। 
50. उस ने अपके क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणोंको मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया। 
51. उस ने मिस्त्रा के सब पहिलौठोंको मारा, जो हाम के डेरोंमें पौरूष के पहिले फल थे; 
52. परन्तु अपक्की प्रजा को भेड़- बकरियोंकी नाई पयान कराया, और जंगल में उनकी अगुवाई पशुओं के झुण्ड की सी की। 
53. तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए। 
54. और उस ने उनको अपके पवित्रा देश के सिवाने तक, इसी पहाड़ी देश में पहुंचाया, जो उस ने अपके दहिने हाथ से प्राप्त किया था। 
55. उस ने उनके साम्हने से अन्यजातियोंको भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप मापकर बांट दिया; और इस्त्राएल के गोत्रोंको उनके डेरोंमें बसाया।। 
56. तौभी उन्होने परमप्रधान परमेश्वर की पक्कीक्षा की और उस से बलवा किया, और उसकी चितौनियोंको न माना, 
57. और मुड़कर अपके पुरखाओं की नाई विश्वासघात किया; उन्होंने निकम्मे धनुष की नाई धोखा दिया। 
58. क्योंकि उन्होंने ऊंचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मुर्तियोंके द्वारा उस में जलन उपजाई। 
59. परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उस ने इस्त्राएल को बिलकुल तज दिया। 
60. उस ने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बु को जो उस ने मनुष्योंके बीच खडा किया था, त्याग दिया, 
61. और अपक्की सामर्थ को बन्धुआई में जाने दिया, और अपक्की शोभा को द्रोही के वश में कर दिया। 
62. उस ने अपक्की प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपके निज भाग के लोगोंपर रोष से भर गया। 
63. उन के जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियोंके विवाह के गीत न गाए गए। 
64. उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएं रोने न पाई। 
65. तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो। 
66. और उस ने अपके द्रोहियोंको मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।। 
67. फिर उस ने यूसुफ के तप्बु को तज दिया; और एप्रैम के गोत्रा को न चुना; 
68. परन्तु यहूदा ही के गोत्रा को, और अपके प्रिय सिरयोन पर्वत को चुन लिया। 
69. उस ने अपके पवित्रास्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उस ने सदा के लिथे डाली है। 
70. फिर उसने अपके दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया; 
71. वह उसको बच्चेवाली भेड़ोंके पीछे पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात उसके निज भाग इस्त्राएल की चरवाही करे। 
72. तब उस ने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपके हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई की।।

Chapter 79

1. हे परमेश्वर अन्यजातियां तेरे निज भग में घुस आई; उन्होंने तेेरे पवित्रा मन्दिर को अशुठ्ठ किया; और यरूशलेम को खंडहर कर दिया है। 
2. उन्होंने तेरे दासोंकी लोथोंको आकाश के पक्षियोंका आहार कर दिया, और तेरे भक्तोंका मांस वनपशुओें को खिला दिया है। 
3. उन्होंने उनका लोहू यरूशलेम के चारोंओर जल की नाई बहाथा, और उनको मिट्टी देनेवाला कोई न था। 
4. पड़ोसियोंके बीच हमारी नामधराई हुई; चारोंओर के रहनेवाले हम पर हंसते, और ठट्ठा करते हैं।। 
5. हे यहोवा, तू कब तक लगातार क्रोध करता रहेगा? तुझ में आग की सी जलन कब तक भड़कती रहेगी? 
6. जो जातियां तुझ को नहीं जानती, और जिन राज्योंके लोग तुझ से प्रार्थना नहीं करते, उन्ही पर अपक्की सब जलजलाहट भड़का! 
7. क्योंकि उन्होंने याकूब को निगल लिया, और उसके वासस्थान को उजाड़ दिया है। 
8. हमारी हानि के लिथे हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामोंको स्मरण न कर; तेरी दया हम पर शीघ्र हो, क्योंकि हम बड़ी दुर्दशा में पके हैं। 
9. हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर, अपके नाम की महिमा के निमित हमारी सहाथता कर; और अपके नाम के निमित हम को छुड़ाकर हमारे पापोंको ढांप दे। 
10. अनयजातियां क्योंकहने पाएं कि उनका परमेश्वर कहां रहा? अन्यजातियोंके बीच तेरे दासोंके खून का पलटा लेना हमारे देखते उन्हें मालूम हो जाए।। 
11. बन्धुओं का कराहना तेरे कान तक पहुंचे; घात होनेवालोंको अपके भुजबल के द्वारा बचा। 
12. और हे प्रभु, हमारे पड़ोसियोंने जो तेरी निन्दा की है, उसका सातगुणा बदला उनको दे! 
13. तब हम जो तेरी प्रजा और तेरी चराई की भेड़ें हैं, तेरा धन्यवाद सदा करते रहेंगे; और पीढ़ी से पीढ़ी तक तेरा गुणानुवाद करते रहेंगें।।

Chapter 80

1. हे इस्त्राएल के चरवाहे, तू जो यूसुफ की अगुवाई भेड़ोंकी सी करता है, कान लगा! तू जो करूबोंपर विराजमान है, अपना तेज दिखा! 
2. एप्रैम, बिन्यामीन, और मनश्शे के साम्हने अपना पराक्रम दिखाकर, हमारा उठ्ठार करने को आ! 
3. हे परमेश्वर, हम को ज्योंके त्योंकर दे; और अपके मुख का प्रकाश चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा! 
4. हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू कब तक अपक्की प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा? 
5. तू ने आंसुओं को उनका आहार कर दिया, और मटके भर भरके उन्हें आंसु पिलाए हैं। 
6. तू हमें हमारे पड़ोसियोंके झगड़ने का कारण कर देता है; और हमारे शत्रु मनमाने ठट्ठा करते हैं।। 
7. हे सेनाओं के परमेश्वर, हम को ज्योंके त्योंकर दे; और अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा।। 
8. तू मि से एक दाखलता ले आया; और अन्यजातियोंको निकालकर उसे लगा दिया। 
9. तू ने उसके लिथे स्थान तैयार किया है; और उस ने जड़ पकड़ी और फैलकर देश को भर दिया। 
10. उसकी छाया पहाड़ोंपर फैल गई, और उसकी डालियां ईश्वर के देवदारोंके समान हुई; 
11. उसकी शाखाएं समुद्र तक बढ़ गई, और उसके अंकुर महानद तक फैल गए। 
12. फिर तू ने उसके बाड़ोंको क्योंगिरा दिया, कि सब बटोही उसके फलोंको तोड़ते है? 
13. वनसूअर उसको नाश किए डालता है, और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं।। 
14. हे सेनाओं के परमेश्वर, फिर आ! स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले, 
15. थे पौधा तू ने अपके दहिने हाथ से लगाया, और जो लता की शाखा तू ने अपके लिथे दृढ़ की है। 
16. वह जल गई, वह कट गई है; तेरी घुड़की से वे नाश होते हैं। 
17. तेरे दहिने हाथ के सम्भाले हुअ पुरूष पर तेरा हाथ रखा रहे, उस आदमी पर, जिसे तू ने अपके लिथे दृढ़ किया है। 
18. तब हम लोग तुझ से न मुड़ेंगे: तू हम को जिला, और हम तुझ से प्रार्थना कर सकेंगे। 
19. हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हम को ज्योंका त्योंकर दे! और अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा!

Chapter 81

1. परमेश्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओ; याकूब के परमेश्वर का जयजयकार करो! 
2. भजन उठाओ, डफ और मधुर बजनेवाली वीणा और सारंगी को ले आओ। 
3. नथे चाँद के दिन, और पूणमासी को हमारे पर्व के दिन नरसिंगा फुको। 
4. क्योंकि यह इस्त्राएल के लिथे विधि, और याकूब के परमेश्वर का ठहराया हुआ नियम है। 
5. इसको उस ने यूसुफ में चितौनी की रीति पर उस समय चलाया, जब वह मिस्त्र देश के विरूद्ध चला।। वहां मैं ने एक अनजानी भाषा सुनी; 
6. मैं ने उनके कन्धोंपर से बोझ को उतार दिया; उनका टोकरी ढोना छुट गया। 
7. तू ने संकट में पड़कर पुकारा, तब मैं ने तुझे छुड़ाया; बादल गरजने के गुप्त स्थान में से मैं ने तेरी सुनी, और मरीबा नाम सोते के पास तेरी पक्कीक्षा की। (सेला) 
8. हे मेरी प्रजा, सुन, मैं तुझे चिता देता हूं! हे इस्त्राएल भला हो कि तू मेरी सुने! 
9. तेरे बीच में पराया ईश्वर न हो; और न तू किसी पराए देवता को दणडवत् करना! 
10. तेरा परमेश्वर यहोवा मैं हूं, जो तुझे मिस्त्र देश से निकाल लाया है। तू अपना मुंह पसार, मैं उसे भर दूंगा।। 
11. परन्तु मेरी प्रजा ने मेरी न सुनी; इस्त्राएल ने मुझ को न चाहा। 
12. इसलिथे मैं ने उसको उसके मन के हठ पर छोड़ दिया, कि वह अपक्की ही युक्तियोंके अनुसार चले। 
13. यदि मेरी प्रजा मेरी सुने, यदि इस्त्राएल मेरे मार्गोंपर चले, 
14. तो क्षण भर में उनके शत्रुओं को दबाऊं, और अपना हाथ उनके द्रोहयोंके विरूद्ध चलाऊं। 
15. यहोवा के बैरी तो उस के वश में हो जाते, और वे सदाकाल बने रहते हैं। 
16. और वह उनको उत्तम से उत्तम गेहूं खिलाता, और मैं चट्टान में के मधु से उनको तृप्त करूं।।

Chapter 82

1. परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है; वह ईश्वरोंके बीच में न्याय करता है। 
2. तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टोंका पक्ष लेते रहोगे? 
3. कंगाल और अनाथोंका न्याय चुकाओ, दीन दरिद्र का विचार धर्म से करो। 
4. कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टोंके हाथ से उन्हें छुड़ाओ।। 
5. वे न तो कुछ समझते और न कुछ बूझते हैं, परन्तु अन्धेरे में चलते फिरते रहते हैं; पृथ्वी की पूरी नीव हिल जाती है।। 
6. मैं ने कहा था कि तुम ईश्वर हो, और सब के सब परमप्रधान के पुत्रा हो; 
7. तौभी तुम मनुष्योंकी नाई मरोगे, और किसी प्रधान के समान गिर जाओगे।। 
8. हे परमेश्वर उठ, पृथ्वी का न्याय कर; क्योंकि तू ही सब जातियोंको अपके भाग में लेगा!

Chapter 83

1. हे परमेश्वर मौन न रह; हे ईश्वर चुप न रह, और न शांत रह! 
2. क्योंकि देख तेरे शत्रु धूम मचा रहे हैं; और तेरे बैरियोंने सिर उठाया है। 
3. वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते, और तेरे रक्षित लोगोंके विरूद्ध युक्तियां निकालते हैं। 
4. उन्होंने कहा, आओ, हम उनको ऐसा नाश करें कि राज्य भी मिट जाए; और इस्त्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे। 
5. उन्होंने एक मन होकर युक्ति निकाली है, और तेरे ही विरूद्ध वाचा बान्धी है। 
6. थे तो एदोम के तम्बूवाले और इश्माइली, मोआबी और हुग्री, 
7. गबाली, अम्मोनी, अमालेकी, और सोर समेत पलिश्ती हैं। 
8. इनके संग अश्शूरी भी मिल गए हैं; उन से भी लोतवंशियोंको सहारा मिला है। 
9. इन से ऐसा कर जैसा मिद्यानियोंसे, और कीशोन नाले में सीसरा और याबीन से किया था, जो एन्दोर में नाश हुए, 
10. और भूमि के लिथे खाद बन गए। 
11. इनके रईसोंको ओरेब और जाएब सरीखे, और इनके सब प्रधानोंको जेबह और सल्मुन्ना के समान कर दे, 
12. जिन्होंने कहा था, कि हम परमेश्वर की चराइयोंके अधिक्कारनेी आप ही हो जाएं।। 
13. हे मेरे परमेश्वर इनको बवन्डर की धूलि, वा पवन से उड़ाए हुए भूसे के समान कर दे। 
14. उस आग की नाई जो वन को भस्म करती है, और उस लौ की नाई जो पहाड़ोंको जला देती है, 
15. तू इन्हे अपक्की आंधी से भाग दे, और अपके बवन्डर से घबरा दे! 
16. इनके मुंह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा थे तेरे नाम को ढूंढ़ें। 
17. थे सदा के लिथे लज्जित और घबराए रहें इनके मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए, 
18. जिस से यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।।

Chapter 84

1. हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! 
2. मेरा प्राण यहोवा के आंगनोंकी अभिलाषा करते करते मूर्र्छित हो चला; मेरा तन मन दोंनो जीवते ईश्वर को पुकार रहे।। 
3. हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियोंमे गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिस में वह अपके बच्चे रखे। 
4. क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे।। 
5. क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिनको सिरयोन की सड़क की सुधि रहती है। 
6. वें रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतोंका स्थान बनाते हैं; फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। 
7. वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिरयोन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा।। 
8. हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्वर, कान लगा! 
9. हे परमेश्वर, हे हमारी ढ़ाल, दृष्टि कर; और अपके अभिषिक्ति का मुख देख! 
10. क्योंकि तेरे आंगनोंमें का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टोंके डेरोंमें वास करने से अपके परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। 
11. क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा। 
12. हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!

Chapter 85

1. हे यहोवा, तू अपके देश पर प्रसन्न हुआ, याकूब को बन्धुआई से लौटा ले आया है। 
2. तू ने अपक्की प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है; और उसके सब पापोंको ढांप दिया है। 
3. तू ने अपके रोष को शान्त किया है; और अपके भड़के हुए कोप को दूर किया है।। 
4. हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर हम को फेर, और अपना क्रोध हम पर से दूर कर! 
5. क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा? 
6. क्या तू हम को फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे? 
7. हे यहोवा अपक्की करूणा हमें दिखा, और तू हमारा उठ्ठार कर।। 
8. मैं कान लगाए रहूंगा, कि ईश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपक्की प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिरके मूर्खता न करने लगें। 
9. निश्चय उसके डरवैयोंके उठ्ठार का समय निकट है, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा।। 
10. करूणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया हैं। 
11. पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है। 
12. फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपक्की उपज देगी। 
13. धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवोंके चिन्होंको हमारे लिथे मार्ग बनाएगा।।

Chapter 86

1. हे यहोवा कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूं। 
2. मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूं; तू मेरा परमेश्वर है, इसलिथे अपके दास का, जिसका भरोसा तुझ पर है, उठ्ठार कर। 
3. हे प्रभु मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूं। 
4. अपके दास के मन को आनन्दित कर, क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं। 
5. क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभोंके लिथे तू अति करूणामय है। 
6. हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। 
7. संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूंगा, क्योंकि तू मेरी सुन लेगा।। 
8. हे प्रभु देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और ने किसी के काम तेरे कामोंके बराबर हैं। 
9. हे प्रभु जितनी जातियोंको तू ने बनाया है, सब आकर तेरे साम्हने दणडवत् करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी। 
10. क्योंकि तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है। 
11. हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं। 
12. हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपके सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा। 
13. क्योंकि तेरी करूणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।। 
14. हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरूद्ध उठे हैं, और बलात्कारियोंका समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते। 
15. परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 
16. मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; अपके दास को तू शक्ति दे, और अपक्की दासी के पुत्रा का उठ्ठार कर।। 
17. मुझे भलाई का कोई लक्षण दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहाथता की और मुझे शान्ति दी है।।

Chapter 87

1. उसकी नेव पवित्रा पर्वतोंमें है; 
2. और यहोवा सिरयोन के फाटकोंको याकूब के सारे निवासोंसे बढ़कर प्रीति रखता है। 
3. हे परमेश्वर के नगर, तेरे विषय महिमा की बातें कही गई हैं। 
4. मैं अपके जान- पहचानवालोंसे रहब और बाबेल की भी चर्चा करूंगा; पलिश्त, सोर और कूश को देखो, यह वहां उत्पन्न हुआ था। 
5. और सिरयोन के विषय में यह कहा जाएगा, कि अमुक अमुक मनुष्य उस में उत्पन्न हुआ था; और परमप्रधान आप ही उसको स्थिर रखेगा। 
6. यहोेवा जब देश देश के लोगोंके नाम लिखकर गिन लेगा, तब यह कहेगा, कि यह वहां उत्पन्न हुआ था।। 
7. गवैथे और नृतक दोनोंकहेंगे कि हमारे सब सोते तुझी में पाए जाते हैं।।

Chapter 88

1. हे मेरे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर यहोवा, मैं दिन को और रात को तेरे आगे चिल्लाता आया हूं। 
2. मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचे, मेरे चिल्लाने की ओर कान लगा! 
3. क्योंकि मेरा प्राण क्लेश में भरा हुआ है, और मेरा प्राण अधोलोक के निकट पहुंचा है। 
4. मैं कबर में पड़नेवालोंमें गिना गया हूं; मैं बलहीन पुरूष के समान हो गया हूं। 
5. मैं मुर्दोंके बीच छोड़ा गया हूं, और जो घात होकर कबर में पके हैं, जिनको तू फिर स्मरण नहीं करता और वे तेरी सहाथता रहित हैं, उनके समान मैं हो गया हूं। 
6. तू ने मुझे गड़हे के तल ही में, अन्धेरे और गहिरे स्थान में रखा है। 
7. तेरी जलजलाहट मुझी पर बनी हुई है, और तू ने अपके सब तरंगोंसे मुझे दु:ख दिया है; 
8. तू ने मेरे पहिचानवालोंको मुझ से दूर किया है; और मुझ को उनकी दृष्टि में घिनौना किया है। मैं बन्दी हूं और निकल नही सकता; 
9. दु:ख भोगते भोगते मेरी आंखे धुन्धला गई। हे यहोवा मैं लगातार तुझे पुकारता और अपके हाथ तेरी ओर फैलाता आया हूं। 
10. क्या तू मुर्दोंके लिथे अदभुत् काम करेगा? क्या मरे लोग उठकर तेरा धन्यवाद करेंगे? 
11. क्या कबर में तेरी करूणा का, और विनाश की दशा में तेरी सच्चाई का वर्णन किया जाएगा? 
12. क्या तेरे अदभुत् काम अन्धकार में, वा तेरा धर्म विश्वासघात की दशा में जाना जाएगा? 
13. परन्तु हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; और भोर को मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचेगी। 
14. हे यहोवा, तू मुझ को क्योंछोड़ता है? तू अपना मुख मुझ से क्योंछिपाता रहता है? 
15. मैं बचपन ही से दु:खी वरन अधमुआ हूं, तुझ से भय खाते मैं अति व्याकुल हो गया हूं। 
16. तेरा क्रोध मुझ पर पड़ा है; उस भय से मैं मिट गया हूं। 
17. वह दिन भर जल की नाई मुझे घेरे रहता है; वह मेरे चारोंओर दिखाई देता है। 
18. तू ने मित्रा और भाईबन्धु दोनोंको मुझ से दूर किया है; और मेरे जान- पहिचानवालोंको अन्धकार में डाल दिया है।।

Chapter 89

1. मैं यहोवा की सारी करूणा के विषय सदा गाता रहूंगा; मैं तेरी सच्चाई पीढ़ी पीढ़ी तक जताता रहूंगा। 
2. क्योंकि मैं ने कहा है, तेरी करूणा सदा बनी रहेगी, तू स्वर्ग में अपक्की सच्चाई को स्थिर रखेगा। 
3. मैं ने अपके चुने हुए से वाचा बान्धी है, मैं ने अपके दास दाऊद से शपथ खाई है, 
4. कि मैं तेरे वंश को सदा स्थिर रखूंगा; और तेरी राजगद्दी को पीढ़ी पीढ़ी तक बनाए रखूंगा। 
5. हे यहोवा, स्वर्ग में तेरे अद्भुत काम की, और पवित्रोंकी सभा में तेरी सच्चाई की प्रशंसा होगी। 
6. क्योंकि आकाशमण्डल में यहोवा के तुल्य कौन ठहरेगा? बलवन्तोंके पुत्रोंमें से कौन है जिसके साथ यहोवा की उपमा दी जाएगी? 
7. ईश्वर पवित्रोंकी गोष्ठी में अत्यन्त प्रतिष्ठा के योग्य, और अपके चारोंओर सब रहनेवालोंसे अधिक भययोग्य है। 
8. हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे याह, तेरे तुल्य कौन सामर्थी है? तेरी सच्चाई तो तेरे चारोंओर है! 
9. समुद्र के गर्व को तू ही तोड़ता है; जब उसके तरंग उठते हैं, तब तू उनको शान्त कर देता है। 
10. तू ने रहब को घात किए हुए के समान कुचल डाला, और अपके शत्रुओं को अपके बाहुबल से तितर बितर किया है। 
11. आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; जगत और जो कुछ उस में है, उसे तू ही ने स्थिर किया है। 
12. उत्तर और दक्खिन को तू ही ने सिरजा; ताबोर और हेर्मोन तेरे नाम का जयजयकार करते हैं। 
13. तेरी भुजा बलवन्त है; तेरा हाथ शक्तिमान और तेरा दहिना हाथ प्रबल है। 
14. तेरे सिंहासन का मूल, धर्म और न्याय है; करूणा और सच्चाई तेरे आगे आगे चलती है। 
15. क्या ही धन्य है वह समाज जो आनन्द के ललकार को पहिचानता है; हे हयोवा वे लोग मेरे मुख के प्रकाश में चलते हैं, 
16. वे तेरे नाम के हेतु दिन भर मगन रहते हैं, और तेरे धर्म के कारण महान हो जाते हैं। 
17. क्योंकि तू उनके बल की शोभा है, और अपक्की प्रसन्नता से हमारे सींग को ऊंचा करेगा। 
18. क्योंकि हमारी ढाल यहोवा की ओर से है हमारा राजा इस्राएल के पवित्रा की ओर से है।। 
19. एक समय तू ने अपके भक्त को दर्शन देकर बातें की; और कहा, मैं ने सहाथता करने का भार एक वीर पर रखा है, और प्रजा में से एक को चुनकर बढ़ाया है। 
20. मैं ने अपके दास दाऊद को लेकर, अपके पवित्रा तेल से उसका अभिषेक किया है। 
21. मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, और मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी। 
22. शत्रु उसको तंग करने न पाएगा, और न कुटिल जल उसको दु:ख देने पाएगा। 
23. मैं उसके द्रोहियोंको उसके साम्हने से नाश करूंगा, और उसके बैरियोंपर विपत्ति डालूंगा। 
24. परन्तु मेरी सच्चाई और करूणा उस पर बनी रहेंगी, और मेरे नाम के द्वारा उसका सींग ऊंचा हो जाएगा। 
25. मैं समुद्र को उसके हाथ के नीचे और महानदोंको उसके दहिने हाथ के नीचे कर दूंगा। 
26. वह मुझे पुकारके कहेगा, कि तू मेरा पिता है, मेरा ईश्वर और मेरे बचने की चट्टान है। 
27. फिर मैं उसको अपना पहिलौठा, और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा। 
28. मैं अपक्की करूणा उस पर सदा बनाए रहूंगा, और मेरी वाचा उसके लिथे अटल रहेगी। 
29. मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूंगा, और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी। 
30. यदि उसके वंश के लोग मेरी व्यवस्था को छोड़ें और मेरे नियमोंके अनुसार न चलें, 
31. यदि वे मेरी विधियोंका उल्लंघन करें, और मेरी आज्ञाओं को न मानें, 
32. तो मैं उनके अपराध का दण्ड सोंटें से, और उनके अधर्म का दण्ड कोड़ोंसे दूंगा। 
33. परन्तु मैं अपक्की करूणा उस पर से हटाऊंगा, और न सच्चाई त्यागकर झूठा ठहरूंगा। 
34. मैं अपक्की वाचा न तोडूंगा, और जो मेरे मुंह से निकल चुका है, उसे न बदलूंगा। 
35. एक बार मैं अपक्की पवित्राता की शपथ खा चुका हूं; मैं दाऊद को कभी धोखा न दूंगा। 
36. उसका वंश सर्वदा रहेगा, और उसकी राजगद्दी सूर्य की नाई मेरे सम्मुख ठहरी रहेगी। 
37. वह चन्द्रमा की नाईं, और आकाशमण्डल के विश्वासयोग्य साक्षी की नाई सदा बना रहेगा। 
38. तौभी तू ने अपके अभिषिक्त को छोड़ा और उसे तज दिया, और उस पर अति क्रोध किया है। 
39. तू अपके दास के साथ की वाचा से घिनाया, और उसके मुकुट को भूमि पर गिराकर अशुद्ध किया है। 
40. तू ने उसके सब बाड़ोंको तेड़ डाला है, और उसके गढ़ोंको उजाड़ दिया है। 
41. सब बटोही उसको लूट लेते हैं, और उसके पड़ोसिक्कों उसकी नामधराई होती है। 
42. तू ने उसके द्रोहियोंको प्रबल किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया है। 
43. फिर तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और युद्ध में उसके पांव जमने नहीं देता। 
44. तू ने उसका तेज हर लिया है और उसके सिंहासन को भूमि पर पटक दिया है। 
45. तू ने उसकी जवानी को घटाया, और उसको लज्जा से ढांप दिया है।। 
46. हे यहोवा तू कब तक लगातार मूंह फेरे रहेगा, तेरी जलजलाहट कब तक आग की नाईं भड़की रहेगी।। 
47. मेरा स्मरण कर, कि मैं कैसा अनित्य हूं, तू ने सब मनुष्योंको क्योंव्यर्थ सिरजा है? 
48. कौन पुरूष सदा अमर रहेगा? क्या कोई अपके प्राण को अधोलोक से बचा सकता है? 
49. हे प्रभु तेरी प्राचीनकाल की करूणा कहां रही, जिसके विषय में तू ने अपक्की सच्चाई की शपथ दाऊद से खाई थी? 
50. हे प्रभु अपके दासोंकी नामधराई की सुधि कर; मैं तो सब सामर्थी जातियोंका बोझ लिए रहता हूं। 
51. तेरे उन शत्रुओं ने तो हे यहोवा तेरे अभिषिक्त के पीछे पड़कर उसकी नामधराई की है।। 
52. यहोवा सर्वदा धन्य रहेगा! आमीन फिर आमीन।।

Chapter 90

1. हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिथे धाम बना है। 
2. इस से पहिले कि पहाड़ उत्पन्न हुए, वा तू ने पृथ्वी और जगत की रचना की, वरन अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्वर है।। 
3. तू मनुष्य को लौटाकर चूर करता है, और कहता है, कि हे आदमियों, लौट आओ! 
4. क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, जैसा कल का दिन जो बीत गया, वा रात का एक पहर।। 
5. तू मनुष्योंको धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। 
6. वह भोर को फूलती और बढ़ती है, और सांझ तक काटकर मुर्झा जाती है।। 
7. क्योंकि हम तेरे क्रोध से नाश हुए हैं; और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं। 
8. तू ने हमारे अधर्म के कामोंसे अपके सम्मुख, और हमारे छिपे हुए पापोंको अपके मुख की ज्योति में रखा है।। 
9. क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, हम अपके वर्ष शब्द की नाई बिताते हैं। 
10. हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष के भी हो जाएं, तौभी उनका घमण्ड केवल नष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। 
11. तेरे क्रोध की शक्ति को और तेरे भय के योग्य रोष को कौन समझता है? 
12. हम को अपके दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।। 
13. हे यहोवा लौट आ! कब तक? और अपके दासोंपर तरस खा! 
14. भोर को हमें अपक्की करूणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें। 
15. जितने दिन तू ने हमें दु:ख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हम को आनन्द दे। 
16. तेरी काम तेरे दासोंको, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो। 
17. और हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथोंका काम हमारे लिथे दृढ़ कर, हमारे हाथोंके काम को दृढ़ कर।।

Chapter 91

1. जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। 
2. मैं यहोवा के विषय कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा। 
3. वह तो मुझे बहेलिथे के जाल से, और महामारी से बचाएगा; 
4. वह तुझे अपके पंखोंकी आड़ में ले लेगा, और तू उसके पैरोंके नीचे शरण पाएगा; उसकी सच्चाई तेरे लिथे ढाल और झिलम ठहरेगी। 
5. तू न रात के भय से डरेगा, और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, 
6. न उस मरी से जो अन्धेरे में फैलती है, और न उस महारोग से जो दिन दुपहरी में उजाड़ता है।। 
7. तेरे निकट हजार, और तेरी दहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; परन्तु वह तेरे पास न आएगा। 
8. परनतु तू अपक्की आंखोंकी दृष्टि करेगा और दुष्टोंके अन्त को देखेगा।। 
9. हे यहोवा, तू मेरा शरणस्थान ठहरा है। तू ने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है, 
10. इसलिथे कोई विपत्ति तुझ पर न पकेगी, न कोई दु:ख तेरे डेरे के निकट आएगा।। 
11. क्योंकि वह अपके दूतोंको तेरे निमित्त आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें। 
12. वे तुझ को हाथोंहाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पांवोंमें पत्थर से ठेस लगे। 
13. तू सिंह और नाग को कुचलेगा, तू जवान सिंह और अजगर को लताड़ेगा। 
14. उस ने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिथे मैं उसको छुड़ाऊंगा; मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा, क्योंकि उस ने मेरे नाम को जान लिया है। 
15. जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा। 
16. मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूंगा, और अपके किए हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा।।

Chapter 92

1. यहोवा का धन्यवाद करना भला है, हे परमप्रधान, तेरे नाम का भजन गाना; 
2. प्रात:काल को तेरी करूणा, और प्रति रात तेरी सच्चाई का प्रचार करना, 
3. दस तारवाले बाजे और सारंगी पर, और वीणा पर गम्भीर स्वर से गाना भला है। 
4. क्योंकि, हे यहोवा, तू ने मुझ को अपके काम से आनन्दित किया है; और मैं तेरे हाथोंके कामोंके कारण जयजयकार करूंगा।। 
5. हे यहोवा, तेरे काम क्या ही बड़े है! तेरी कल्पनाएं बहुत गम्भीर है! 
6. पशु समान मनुष्य इसको नहीं समझता, और मूर्ख इसका विचार नहीं करता: 
7. कि दुष्ट जो घास की नाईं फूलते- फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिथे होता है, कि वे सर्वदा के लिथे नाश हो जाएं, 
8. परन्तु हे यहोवा, तू सदा विराजमान रहेगा। 
9. क्योंकि थे यहोवा, तेरे शत्रु, हां तेरे शत्रु नाश होंगे; सब अनर्थकारी तितर बितर होंगे।। 
10. परन्तु मेरा सींग तू ने जंगली सांढ़ का सा ऊंचा किया है; मैं टटके तेल से चुपड़ा गया हूं। 
11. और मैं अपके द्रोहियोंपर दृष्टि करके, और उन कुकर्मियोंका हाल मेरे विरूद्ध उठे थे, सुनकर सन्तुष्ट हुआ हूं।। 
12. धर्मी लोग खजूर की नाई फूले फलेंगे, और लबानोन के देवदार की नाई बढ़ते रहेंगे। 
13. वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, हमारे परमेश्वर के आंगनोंमें फूले फलेंगे। 
14. वे पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे, 
15. जिस से यह प्रगट हो, कि यहोवा सीधा है; वह मेरी चट्टान है, और उस में कुटिलता कुछ भी नहीं।।

Chapter 93

1. यहोवा राजा है; उस ने माहात्म्य का पहिरावा पहिना है; यहोवा पहिरावा पहिने हुए, और सामर्थ्य का फेटा बान्धे है। इस कारण जगत स्थिर है, वह नहीं टलने का। 
2. हे यहोवा, तेरी राजगद्दी अनादिकाल से स्थिर है, तू सर्वदा से है।। 
3. हे यहोवा, महानदोंका कोलाहल हो रहा है, महानदोंका बड़ा शब्द हो रहा है, महानद गरजते हैं। 
4. महासागर के शब्द से, और समुद्र की महातरंगोंसे, विराजमान यहोवा अधिक महान है।। 
5. तेरी चितौनियां अति विश्वासयोग्य हैं; हे यहोवा तेरे भवन को युग युग पवित्राता ही शोभा देती है।।

Chapter 94

1. हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, अपना तेज दिखा! 
2. हे पृथ्वी के न्यायी उठ; और घमण्ड़ियोंको बदला दे! 
3. हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे? 
4. वे बकते और ढ़िठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं। 
5. हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दु:ख देते हैं। 
6. वे विधवा और परदेशी का घात करते, और बपमूओं को मार डालते हैं; 
7. और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।। 
8. तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खोंतुम कब तक बुद्धिमान हो जाओगे? 
9. जिस ने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिस ने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता? 
10. जो जाति जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न समझाएगा? 
11. यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।। 
12. हे यहा, क्या ही धन्य है वह पुरूष जिसको तू ताड़ना देता है, और अपक्की व्यवस्था सिखाता है, 
13. क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनोंमें उस समय तक चैन देता रहता है, जब तक दुष्टोंके लिथे गड़हा नहीं खोदा जाता। 
14. क्योंकि यहोवा अपक्की प्रजा को न तजेगा, वह अपके निज भाग को न छोड़ेगा; 
15. परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा, और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे पीछे हो लेंगे।। 
16. कुकर्मियोंके विरूद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? मेरी ओर से अनर्थकारियोंका कौन साम्हना करेगा? 
17. यदि यहोवा मेरा सहाथक न होता, तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता। 
18. जब मैं ने कहा, कि मेरा पांव फिसलने लगा है, तब हे यहोवा, तेरी करूणा ने मुझे थाम लिया। 
19. जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। 
20. क्या तेरे और दुष्टोंके सिंसाहन के बीच सन्धि होगी, जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं? 
21. वे धर्मी का प्राण लेने को दल बान्धते हैं, और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं। 
22. परन्तु यहोवा मेरा गढ़, और मेरा परमेश्वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है। 
23. और उस ने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है, और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सन्यानाश करेगा; हमारा परमेश्वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा।।

Chapter 95

1. आओ हम यहोवा के लिथे ऊंचे स्वर से गाएं, अपके उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें! 
2. हम धन्यवाद करते हुए उसके सम्मुख आएं, और भजन गाते हुए उसका जयजयकार करें! 
3. क्योंकि यहोवा महान ईश्वर है, और सब देवताओं के ऊपर महान राजा है। 
4. पृथ्वी के गहिरे स्थान उसी के हाथ में हैं; और पहाड़ोंकी चोटियां भी उसी की हैं। 
5. समुद्र उसका है, और उसी ने उसको बनाया, और स्थल भी उसी के हाथ का रख है।। 
6. आओ हम झुककर दण्डवत् करें, और अपके कर्ता यहोवा के साम्हने घुटने टेकें! 
7. क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है, और हम उसकी चराई की प्रजा, और उसके हाथ की भेड़ें हैं।। भला होता, कि आज तुम उसकी बात सुनते! 
8. अपना अपना हृदय ऐसा कठोर मत करो, जैसा मरीबा में, वा मस्सा के दिन जंगल में हुआ था, 
9. जब तुम्हारे पुरखाओं ने मुझे परखा, उन्होंने मुझ को जांचा और मेरे काम को भी देखा। 
10. चालीस वर्ष तक मैं उस पीढ़ी के लोगोंसे रूठा रहा, और मैं ने कहा, थे तो भरमनेवाले मन के हैं, और इन्होंने मेरे मार्गोंको नहीं पहिचाना। 
11. इस कारण मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई कि थे मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएंगे।।

Chapter 96

1. यहोवा के लिथे एक नया गीत गाओ, हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा के लिथे गाओ! 
2. यहोवा के लिथे गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो। 
3. अन्य जातियोंमें उसकी महिमा का, और देश देश के लोगोंमें उसके आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करो। 
4. क्योंकि यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है; वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 
5. क्योंकि देश देश के सब देवता तो मूरतें ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 
6. उसके चारोंऔर विभव और ऐश्वर्य है; उसके पवित्रास्थान में सामर्थ्य और शोभा है। 
7. हे देश देश के कुलों, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो! 
8. यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है; भेंट लेकर उसके आंगनोंमें आओ! 
9. पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत करो; हे सारी पृथ्वी के लोगोंउसके साम्हने कांपके रहो! 
10. जाति जाति में कहो, यहोवा राजा हुआ है! और जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं; वह देश देश के लोगोंका न्याय सीधाई से करेगा।। 
11. आकाश आनन्द करे, और पृथ्वी मगन हो; समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; 
12. मैदान और जो कुछ उस में है, वह प्रफुल्लित हो; उसी समय वन के सारे वृक्ष जयजयकार करेंगे। 
13. यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह आनेवाला है। वह पृथ्वी का न्याय करने को आने वाला है, वह धर्म से जगत का, और सच्चाई से देश देश के लोगोंका न्याय करेगा।।

Chapter 97

1. यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; और द्वीप जो बहुतेरे हैं, वह भी आनन्द करें! 
2. बादल और अन्धकार उसके चारोंओर हैं; उसके सिंहासन का मूल धर्म और न्याय है। 
3. उसके आगे आगे आग चलती हुइ उसके द्रोहियोंको चारोंओर भस्म करती है। 
4. उसकी बिजलियोंसे जगल प्रकाशित हुआ, पृथ्वी देखकर थरथरा गई है! 
5. पहाड़ यहोवा के साम्हने, मोम की नाई पिघल गए, अर्थात् सारी पृथ्वी के परमेश्वर के साम्हने।। 
6. आकाश ने उसके धर्म की साक्षी दी; और देश देश के सब लोगोंने उसकी महिमा देखी है। 
7. जितने खुदी हुई मूत्तियोंकी उपासना करते और मूरतोंपर फूलते हैं, वे लज्जित हों; हे सब देवताओं तुम उसी को दण्डवत् करो। 
8. सिरयोन सुनकर आनन्दित हुई, और यहूदा की बेटियां मगन हुई; हे यहोवा, यह तेरे नियमोंके कारण हुआ। 
9. क्योंकि हे यहोवा, तू सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है; तू सारे देवताओं से अधिक महान ठहरा है। 
10. हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो; वह अपके भक्तोंके प्राणो की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टोंके हाथ से बचाना है। 
11. धर्मी के लिथे ज्योति, और सीधे मनवालोंके लिथे आनन्द बोया गया है। 
12. हे धर्मियोंयहोवा के कारण आनन्दित हो; और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो!

Chapter 98

1. यहोवा के लिथे एक नया गीत गाओ, क्योंकि उस ने आश्चर्यकर्म किए है! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिथे उद्धार किया है! 
2. यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, उस ने अन्यजातियोंकी दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है। 
3. उस ने इस्राएल के घराने पर की अपक्की करूणा और सच्चाई की सुधि ली, और पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है।। 
4. हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा का जयजयकार करो; उत्साहपूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! 
5. वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओं। 
6. तुरहियां और नरसिंगे फूंक फूंककर यहोवा राजा का जयजयकार करो।। 
7. समुद्र औश्र उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! 
8. नदियां तालियां बजाएं; पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। 
9. यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगोंका न्याय करेगा।।

Chapter 99

1. यहोवा राजा हुआ है; देश देश के लोग कांप उठें! वह करूबोंपर विराजमान है; पृथ्वी डोल उठे! 
2. यहोवा सिरयोन में महान है; और वह देश देश के लोगोंके ऊपर प्रधान है। 
3. वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! वह तो पवित्रा है। 
4. राजा की सामर्थ्य न्याय से मेल रखती है, तू ही ने सीधाई को स्थापित किया; न्याय और धर्म को याकूब में तू ही ने चालू किया है। 
5. हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो; और उसके चरणोंकी चौकी के साम्हने दण्डवत् करो! वह पवित्रा है! 
6. उसके याजकोंमें मूसा और हारून, और उसके प्रार्थना करनेवालोंमें से शमूएल यहोवा को पुकारते थे, और वह उनकी सुन लेता था। 
7. वह बादल के खम्भे में होकर उन से बातें करता था; और वे उसी चितौनियोंऔर उसकी दी हुई विधियोंपर चलते थे।। 
8. हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू उनकी सुन लेता था; तू उनके कामोंका पलटा तो लेता था तौभी उनके लिथे क्षमा करनेवाला ईश्वर था। 
9. हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो, और उसके पवित्रा पर्वत पर दण्डवत् करो; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा पवित्रा है!

Chapter 100

1. हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा का जयजयकार करो! 
2. आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ! 
3. निश्चय जानो, कि यहोवा की परमेश्वर है। उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।। 
4. उसके फाटकोंसे धन्यवाद, और उसके आंगनोंमें स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! 
5. क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिथे, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।।

Chapter 101

1. मैं करूणा और न्याय के विषय गाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरा ही भजन गाऊंगा। 
2. मैं बुद्धिमानी से खरे मार्ग में चलूंगा। तू मेरे पास कब आएगा! मैं अपके घर में मन की खराई के साथ अपक्की चाल चलूंगा; 
3. मैं किसी आछे काम पर चित्त न लगाऊंगा।। मैं कुमार्ग पर चलनेवालोंके काम से घिन रखता हूं; ऐसे काम में मैं न लगूंगा। 
4. टेढ़ा स्वभाव मुझ से दूर रहेगा; मैं बुराई को जानूंगा भी नहीं।। 
5. जो छिपकर अपके पड़ोसी की चुगली खाए, उसको मैं सत्यानाश करूंगा; जिसकी आंखें चढ़ी होंऔर जिसका मन घमण्डी है, उसकी मैं न सहूंगा।। 
6. मेरी आंखें देश के विश्वासयोग्य लोगोंपर लगी रहेंगी कि वे मेरे संग रहें; जो खरे मार्ग पर चलता है वही मेरा टहलुआ होगा।। 
7. जो छल करता है वह मेरे घर के भीतर न रहने पाएगा; जो झूठ बोलता है वह मेरे साम्हने बना न रहेगा।। 
8. भोर ही भोर को मैं देश के सब दुष्टोंको सत्यानाश किया करूंगा, इसलिथे कि यहोवा के नगर के सब अनर्थकारियोंको नाश करूं।।

Chapter 102

1. हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे! 
2. मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूं, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले! 
3. क्योंकि मेरे दिन धुएं की नाईं उड़े जाते हैं, और मेरी हडि्डयां लुकटी के समान जल गई हैं। 
4. मेरा मन झुलसी हुई घास की नाईं सूख गया है; और मैं अपक्की रोटी खाना भूल जाता हूं। 
5. कहरते कहरते मेरा चमड़ा हडि्डयोंमें सट गया है। 
6. मैं जंगल के धनेश के समान हो गया हूं, मैं उजड़े स्थानोंके उल्लू के समान बन गया हूं। 
7. मैं पड़ा पड़ा जागता रहता हूं और गौरे के समान हो गया हूं जो छत के ऊपर अकेला बैठता है। 
8. मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, जो मेरे विराध की धुन में बावले हो रहे हैं, वे मेरा नाम लेकर शपथ खाते हैं। 
9. क्योंकि मैं ने रोटी की नाईं राख खाईं और आंसू मिलाकर पानी पीता हूं। 
10. यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, क्योंकि तू ने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है। 
11. मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं आप घास की नाईं सूख चला हूं।। 
12. परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। 
13. तू उठकर सिरयोन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का ठहराया हुअ समय आ पहुंचा है। 
14. क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरोंको चाहते हैं, और उसकी धूलि पर तरस खाते हैं। 
15. इसलिथे अन्यजातियां यहोवा के नाम का भय मानेंगी, और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे। 
16. क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को फिर बसाया है, और वह अपक्की महिमा के साथ दिखाई देता है; 
17. वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता। 
18. यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिथे लिखी जाएगी, और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही याह की स्तुति करेगी। 
19. क्योंकि यहोवा ने अपके ऊंचे और पवित्रा स्थान से दृष्टि करके स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है, 
20. ताकि बन्धुओं का कराहना सुने, और घात होनवालोंके बन्धन खोले; 
21. और सिरयोन में यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए, और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाए; 
22. यह उस समय होगा जब देश देश, और राज्य राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठे होंगे।। 
23. उस ने मुझे जीवन यात्रा में दु:ख देकर, मेरे बल और आयु को घटाया। 
24. मैं ने कहा, हे मेरे ईश्वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, मेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे! 
25. आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और आकाश तेरे हाथोंका बनाया हुआ है। 
26. वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपके के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्रा की नाई बदलेगा, और वह तो बदल जाएगा; 
27. परन्तु तू वहीं है, और तेरे वर्षोंका अन्त नहीं होने का। 
28. तेरे दासोंकी सन्तान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे साम्हने स्थिर रहेगा।।

Chapter 103

1. हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्रा नाम को धन्य कहे! 
2. हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना। 
3. वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता, और तेरे सब रोगोंको चंगा करता है, 
4. वही तो तेरे प्राण को नाश होने से बचा लेता है, और तेरे सिर पर करूणा और दया का मुकुट बान्धता है, 
5. वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थोंसे तृप्त करता है, जिस से तेरी जवानी उकाब की नाईं नई हो जाती है।। 
6. यहोवा सब पिसे हुओं के लिथे धर्म और न्याय के काम करता है। 
7. उस ने मूसा को अपक्की गति, और इस्राएलियोंपर अपके काम प्रगट किए। 
8. यहोवा दयालु और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 
9. वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिथे भड़का रहेगा। 
10. उस ने हमारे पापोंके अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामोंके अनुसार हम को बदला दिया है। 
11. जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयोंके ऊपर प्रबल है। 
12. उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधोंको हम से उतनी ही दूर कर दिया है। 
13. जैसे पिता अपके बालकोंपर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपके डरवैयोंपर दया करता है। 
14. क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है।। 
15. मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल की नाईं फूलता है, 
16. जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपके स्थान में फिर मिलता है। 
17. परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयोंपर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती- पोतोंपर भी प्रगट होता रहता है, 
18. अर्थात् उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपकेशोंको स्मरण करके उन पर चलते हैं।। 
19. यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। 
20. हे यहोवा के दूतों, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! 
21. हे यहोवा की सारी सेनाओं, हे उसके टहलुओं, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! 
22. हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य के सब स्थानोंमें उसको धन्य कहो। हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!

Chapter 104

1. हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्वर्य का वस्त्रा पहिने हुए है, 
2. जो उजियाले को चादर की नाई ओढ़े रहता है, और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है, 
3. जो अपक्की अटारियोंकी कड़ियां जल में धरता है, और मेघोंको अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखोंपर चलता है, 
4. जो पवनोंको अपके दूत, और धधकती आग को अपके टहलुए बनाता है।। 
5. तू ने पृथ्वी को उसकी नीव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए। 
6. तू ने उसको गहिरे सागर से ढांप दिया है जैसे वस्त्रा से; जल पहाड़ोंके ऊपर ठहर गया। 
7. तेरी घुड़की से वह भाग गया; तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया। 
8. वह पहाड़ोंपर चढ़ गया, और तराईयोंके मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तू ने उसके लिथे तैयार किया था। 
9. तू ने एक सिवाना ठहराया जिसको वह नहीं लांघ सकता है, और न फिरकर स्थल को ढांप सकता है।। 
10. तू नालोंमें सोतोंको बहाता है; वे पहाड़ोंके बीच से बहते हैं, 
11. उन से मैदान के सब जीव- जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपक्की प्यास बुझा लेते हैं। 
12. उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियोंके बीच में से बोलते हैं। 
13. तू अपक्की अटारियोंमें से पहाड़ोंको सींचता है तेरे कामोंके फल से पृथ्वी तृप्त रहती है।। 
14. तू पशुओं के लिथे घास, और मनुष्योंके काम के लिथे अन्नादि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन- वस्तुएं उत्पन्न करता है, 
15. और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिस से वह सम्भल जाता है। 
16. यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं। 
17. उन में चिड़ियां अपके घोंसले बनाती हैं; लगलग का बसेरा सनौवर के वृक्षोंमें होता है। 
18. ऊंचे पहाड़ जंगली बकरोंके लिथे हैं; और चट्टानें शापानोंके शरणस्थान हैं। 
19. उस ने नियत समयोंके लिथे चन्द्रमा को बनाया है; सूर्य अपके अस्त होने का समय जानता है। 
20. तू अन्धकार करता है, तब रात हो जाती है; जिस में वन के सब जीव जन्तु घूमते फिरते हैं। 
21. जवान सिंह अहेर के लिथे गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार मांगते हैं। 
22. सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपक्की मांदोंमें जा बैठते हैं। 
23. तब मनुष्य अपके काम के लिथे और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिथे निकलता है। 
24. हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। 
25. इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचक्की जीव- जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पके हैं। 
26. उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिब्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिथे बनाया है।। 
27. इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे। 
28. तू उन्हें देता हे, वे चुन लेते हैं; तू अपक्की मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थोंसे तृप्त होते हैं। 
29. तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी सांस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। 
30. फिर तू अपक्की ओर से सांस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है।। 
31. यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, यहोवा अपके कामोंसे आन्दित होवे! 
32. उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी कांप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ोंसे धुआं निकलता है। 
33. मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा तब तक अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा। 
34. मेरा ध्यान करना, उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो याहेवा के कारण आनन्दित रहूंगा। 
35. पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएं, और दुष्ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो!

Chapter 105

1. यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो, देश देश के लोगोंमें उसके कामोंका प्रचार करो! 
2. उसके लिथे गीत गाओ, उसके लिथे भजन गाओ, उसके सब आश्चर्यकर्मोंपर ध्यान करो! 
3. उसके पवित्रा नाम की बढ़ाई करो; यहोवा के खोजियोंका हृदय आनन्दित हो! 
4. यहोवा और उसकी सामर्थ को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो! 
5. उसके किए हु आश्चर्यकर्म स्मरण करो, उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो! 
6. हे उसके दास इब्राहीम के वंश, हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो! 
7. वही हमारा परमेश्वर यहोवा है; पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं। 
8. वह अपक्की वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढ़ीयोंके लिथे ठहराया है; 
9. वही वाचा जो उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसके विषय में उस ने इसहाक से शपथ खाई, 
10. और उसी को उस ने याकूब के लिथे विधि करके, और इस्राएल के लिथे यह कहकर सदा की वाचा करके दृढ़ किया, 
11. कि मैं कनान देश को तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा।। 
12. उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े, और उस देश में परदेशी थे। 
13. वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे; 
14. परन्तु उस ने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, 
15. कि मेरे अभिषिक्तोंको मत छुओं, और न मेरे नबियोंकी हानि करो! 
16. फिर उस ने उस देश में अकाल भेजा, और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया। 
17. उस ने यूसुफ नाम एक पुरूष को उन से पहिले भेजा था, जो दास होने के लिथे बेचा गया था। 
18. लोंगोंने उसके पैरोंमें बेड़ियां डालकर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलोंसे जकड़ा गया; 
19. जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा। 
20. तब राजा के दूत भेजकर उसे निकलवा लिया, और देश देश के लोगोंके स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए; 
21. उस ने उसको अपके भवन का प्रधान और अपक्की पूरी सम्पत्ति का अधिक्कारनेी ठहराया, 
22. कि वह उसके हाकिमोंको अपक्की इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियोंको ज्ञान सिखाए।। 
23. फिर इस्राएल मि में आया; और याकूब हाम के देश में पकेदशी रहा। 
24. तब उस ने अपक्की प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके द्रोहियो से अधिक बलवन्त किया। 
25. उस ने मिस्त्रियोंके मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासोंसे छल करने लगे।। 
26. उस ने अपके दास मूसा को, और अपके चुने हुए हारून को भेजा। 
27. उन्होंने उनके बीच उसकी ओर से भांति भांति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए। 
28. उस ने अन्धकार कर दिया, और अन्धिक्कारनेा हो गया; और उन्होंने उसकी बातोंको न टाला। 
29. उस ने मिस्त्रियोंके जल को लोहू कर डाला, और मछलियोंको मार डाला। 
30. मेंढक उनकी भूमि में वरन उनके राजा की कोठरियोंमें भी भर गए। 
31. उस ने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियां आ गईं। 
32. उस ने उनके लिथे जलवृष्टि की सन्ती ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई। 
33. और उस ने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षोंको वरन उनके देश के सब पेड़ोंको तोड़ डाला। 
34. उस ने आज्ञा दी तब अनगिनत टिडि्डयां, और कीड़े आए, 
35. और उन्होंने उनके देश के सब अन्नादि को खा डाला; औश्र उनकी भूमि के सब फलोंको चट कर गए। 
36. उस ने उनके देश के सब पहिलौठोंको, उनके पौरूष के सब पहिले फल को नाश किया।। 
37. तब वह अपके गोत्रियोंको सोना चांदी दिलाकर निकाल लाया, और उन में से कोई निर्बल न था। 
38. उनके जाने से मिस्त्रि आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उन में समा गया था। 
39. उस ने छाया के लिथे बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिथे आग प्रगट की। 
40. उन्होंने मांगा तब उस ने बटेरें पहुंचाई, और उनको स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया। 
41. उस ने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी। 
42. क्योंकि उस ने अपके पवित्रा वचन और अपके दास इब्राहीम को स्मरण किया।। 
43. वह अपक्की प्रजा को हर्षित करके और अपके चुने हुओं से जयजयकार करोके निकाल लाया। 
44. और उनको अन्यजातियोंके देश दिए; और वे और लोगोंके श्रम के फल के अधिक्कारनेी किए गए, 
45. कि वे उसकी विधियोंको मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। याह की स्तुति करो!

Chapter 106

1. याह की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 
2. यहोवा के पराक्रम के कामोंका वर्णन कौन कर सकता है, न उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता? 
3. क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते, और हर समय धर्म के काम करते हैं! 
4. हे यहोवा, अपक्की प्रजा पर की प्रसन्नता के अनुसार मुझे स्मरण कर, मेरे उद्धार के लिथे मेरी सुधि ले, 
5. कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूं, और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित हो जाऊं; और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊं।। 
6. हम ने तो अपके पुरखाओं की नाईं पाप किया है; हम ने कुटिलता की, हम ने दुष्टता की है! 
7. मि में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मोंपर मन नहीं लगाया, न तेरी अपार करूणा को स्मरण रखा; उन्होंने समुद्र के तीर पर, अर्थात् लाल समुद्र के तीर पर बलवा किया। 
8. तौभी उस ने अपके नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, जिस से वह अपके पराक्रम को प्रगट करे। 
9. तब उस ने लाल समुद्र को घुड़का और वह सूख गया; और वह उन्हें गहिरे जल के बीच से मानोंजंगल में से निकाल ले गया। 
10. उस ने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा, और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया। 
11. और उनके द्रोही जल में डूब गए; उन में से एक भी न बचा। 
12. तब उनहोंने उसके वचनोंका विश्वास किया; और उसकी स्तुति गाने लगे।। 
13. परन्तु वे झट उसके कामोंको भूल गए; और उसकी युक्ति के लिथे न ठहरे। 
14. उन्होंने जंगल में अति लालसा की और निर्जल स्थान में ईश्वर की पक्कीक्षा की। 
15. तब उस ने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया, परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया।। 
16. उन्होंने छावनी में मूसा के, और यहोवा के पवित्रा जन हारून के विषय में डाह की, 
17. भूमि फट कर दातान को निगल गई, और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया। 
18. और उनके झुण्ड में आग भड़क उठी; और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए।। 
19. उन्होंने होरब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूत्ति को दण्डवत् की। 
20. योंउन्होंने अपक्की महिमा अर्थात् ईश्वर को घास खानेवाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला। 
21. वे अपके उद्धारकर्ता ईश्वर को भूल गए, जिस ने मि में बड़े बड़े काम किए थे। 
22. उस ने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे। 
23. इसलिथे उस ने कहा, कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिथे खड़ा न होता ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूं।। 
24. उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना, और उसके वचन की प्रतीति न की। 
25. वे अपके तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, और यहोवा का कहा न माना। 
26. तब उस ने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इनको जंगल में नाश करूंगा, 
27. और इनके वंश को अन्यजातियोंके सम्मुख गिरा दूंगा, और देश देश में तितर बितर करूंगा।। 
28. वे पोरवाले बाल देवता को पूजने लगे और मुर्दोंको चढ़ाए हुए पशुओं का मांस खाने लगे। 
29. योंउन्होंने अपके कामोंसे उसको क्रोध दिलाया और मरी उन में फूट पड़ी। 
30. तब पीहास ने उठकर न्यायदण्ड दिया, जिस से मरी थम गई। 
31. और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिथे धर्म गिना गया।। 
32. उन्होंने मरीबा के सोते के पास भी यहोवा का क्रोध भड़काया, और उनके कारण मूसा की हानि हुई; 
33. क्योंकि उन्होंने उसकी आत्मा से बलवा किया, तब मूसा बिन सोचे बोल उठा। 
34. जिन लोगोंके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी, उनको उन्होंने सत्यानाश न किया, 
35. वरन उन्हीं जातियोंसे हिलमिल गए और उनके व्यवहारोंको सीख लिया; 
36. और उनकी मूत्तियोंकी पूजा करने लगे, और वे उनके लिथे फन्दा बन गई। 
37. वरन उन्होंने अपके बेटे- बेटियोंको पिशाचोंके लिथे बलिदान किया; 
38. और अपके निर्दोष बेटे- बेटियोंका लोहू बहाथा जिन्हें उन्होंने कनान की मूत्तियोंपर बलि किया, इसलिथे देश खून से अपवित्रा हो गया। 
39. और वे आप अपके कामोंके द्वारा अशुद्ध हो गए, और अपके कार्योंके द्वारा व्यभिचारी भी बन गए।। 
40. तब यहोवा का क्रोध अपक्की प्रजा पर भड़का, और उसको अपके निज भाग से घृणा आई; 
41. तब उस ने उनको अन्यजातियोंके वश में कर दिया, और उनके बैरियो ने उन पर प्रभुता की। 
42. उनके शत्रुओं ने उन पर अन्धेर किया, और वे उनके हाथ तले दब गए। 
43. बारम्बार उस ने उन्हें छुड़ाया, परन्तु वे उसके विरूद्ध युक्ति करते गए, और अपके अधर्म के कारण दबते गए। 
44. तौभी जब जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, तब तब उस ने उनके संकट पर दृष्टि की! 
45. और उनके हित अपक्की वाचा को स्मरण करके अपक्की अपार करूणा के अनुसार तरस खाया, 
46. औश्र जो उन्हें बन्धुए करके ले गए थे उन सब से उन पर दया कराई।। 
47. हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारा उद्धार कर, और हमें अन्यजातियोंमें से इकट्ठा कर ले, कि हम तेरे पवित्रा नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में बड़ाई करें।। 
48. इस्राएल का परमेश्वर यहोवा अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है! और सारी प्रजा कहे आमीन! याह की स्तुति करो।।

Chapter 107

1. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 
2. यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उस ने द्रोही के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, 
3. और उन्हें देश देश से पूरब- पश्चिम, उत्तर और दक्खिन से इकट्ठा किया है।। 
4. वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया; 
5. भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए। 
6. तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस ने उनको सकेती से छुड़ाया; 
7. और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिथे किसी नगर को जा पहुंचे। 
8. लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण, जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 
9. क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थोंसे तृप्त करता है।। 
10. जो अन्धिक्कारने और मृत्यु की छाया में बैठे, और दु:ख में पके और बेड़ियोंसे जकड़े हुए थे, 
11. इसलिथे कि वे ईश्वर के वचनोंके विरूद्ध चले, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। 
12. तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पके, और उनको कोई सहाथक न मिला। 
13. तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस न सकेती से उनका उद्धार किया; 
14. उस ने उनको अन्धिक्कारने और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनोंको तोड़ डाला। 
15. लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 
16. क्योंकि उस ने पीतल के फाटकोंको तोड़ा, और लोहे के बेण्डोंको टुकड़े टुकड़े किया।। 
17. मूढ़ अपक्की कुचाल, और अधर्म के कामोंके कारण अति दु:खित होते हैं। 
18. उनका जी सब भांति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुंचते हैं। 
19. तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और व सकेती से उनका उद्धार करता है; 
20. वह अपके वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड़हे में वे पके हैं, उस से निकालता है। 
21. लोग यहोवा की करूणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 
22. और वे धन्यवादबलि चढ़ाएं, और जयजयकार करते हुए, उसके कामोंका वर्णन करें।। 
23. जो लोग जहाजोंमें समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्योपार करते हैं; 
24. वे यहोवा के कामोंको, और उन आश्चर्यकर्मोंको जो वह गहिरे समुद्र में करता है, देखते हैं। 
25. क्योंकि वह आज्ञा देता है, वह प्रचण्ड बयार उठकर तरंगोंको उठाती है। 
26. वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; 
27. वे चक्कर खाते, और मतवाले की नाई लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। 
28. तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है। 
29. वह आंधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। 
30. तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दर स्थान में पहुंचा देता है। 
31. लोग यहोवा की करूणा के कारण, और वह उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें। 
32. और सभा में उसको सराहें, और पुरतियोंके बैठक में उसकी स्तुति करें।। 
33. वह नदियोंको जंगल बना डालता है, और जल के सोतोंको सूखी भूमि कर देता है। 
34. वह फलवन्त भूमि को नोनी करता है, यह वहां के रहनेवालोंकी दुष्टता के कारण होता है। 
35. वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। 
36. और वहां वह भूखोंको बसाता है, कि वे बसने के लिथे नगर तैयार करें; 
37. और खेती करें, और दाख की बारियां लगाएं, और भांति भांति के फल उपजा लें। 
38. और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता।। 
39. फिर अन्धेर, विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं। 
40. और वह हाकिमोंको अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; 
41. वह दरिद्रोंको दु:ख से छुड़ाकर ऊंचे पर रखता है, और उनको भेड़ोंके झुंड सा परिवार देता है। 
42. सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपके मुंह बन्द करते हैं। 
43. जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातोंपर ध्यान करेगा; और यहोवा की करूणा के कामोंपर ध्यान करेगा।।

Chapter 108

1. हे परमेश्वर, मेरा हृदय स्थ्रि है; मैं गाऊंगा, मैं अपक्की आत्मा से भी भजन गाऊंगा। 
2. हे सारंगी और वीणा जागो! मैं आप पौ फटते जाग उठूंगा! 
3. हे यहोवा, मैं देश देश के लोगोंके मध्य में तेरा धन्यवाद करूंगा, और राज्य राज्य के लोगोंके मध्य में तेरा भजन गाऊंगा। 
4. क्योंकि तेरी करूणा आकाश से भी ऊंची है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है।। 
5. हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर हो! और तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर हो! 
6. इसलिथे कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं, तू अपके दहिने हाथ से बचा ले और हमारी बिनती सुन ले! 
7. परमेश्वर ने अपक्की पवित्राता में होकर कहा है, मैं प्रफुल्लित होकर शेकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 
8. गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप है; यहूदा मेरा राजदण्ड है। 
9. मोआब मेरे धोने का पात्रा है, मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंगा, पलिश्त पर मैं जयजयकार करूंगा।। 
10. मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? ऐदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की हैं? 
11. हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को नहीं त्याग दिया, और हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ पयान नहीं करता। 
12. द्रोहियोंके विरूद्ध हमारी सहाथता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ है! 
13. परमेश्वर की सहाथता से हम वीरता दिखाएंगे, हमारे द्रोहियोंको वही रौंदेगा।।

Chapter 109

1. हे परमेश्वर तू जिसकी मैं स्तुति करता हूं, चुप न रह। 
2. क्योंकि दुष्ट और कपक्की मनुष्योंने मेरे विरूद्ध मुंह खोला है, वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। 
3. और उन्होंने बैर के वचनोंसे मुझे चारोंओर घेर लिया है, और व्यर्थ मुझ से लड़ते हैं। 
4. मेरे प्रेम के बदले में वे मुझ से विरोध करते हैं, परन्तु में तो प्रार्थना में लवलीन रहता हूं। 
5. उन्होंने भलाई के पलटे में मुझ से बुराई की और मेरे प्रेम के बदले मुझ से बैर किया है।। 
6. तू उसको किसी दुष्ट के अधिक्कारने में रख, और कोई विरोधी उसकी दहिनी ओर खड़ा रहे। 
7. जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए! 
8. उसके दिन थोड़े हों, और उसके पद को दूसरा ले! 
9. उसक लड़केबाले अनाथ हो जाएं और उसकी स्त्री विधवा हो जाए! 
10. और उसके लड़के मारे मारे फिरें, और भीख मांगा करे; उनको उनके उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े मांगना पके! 
11. महाजन फन्दा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले; और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें! 
12. कोई न हो जो उस पर करूणा करता रहे, और उसके अनाथ बालकोंपर कोई अनुग्रह न करे! 
13. उसका वंश नाश हो जाए, दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए! 
14. उसके पितरोंका अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, और उसकी माता का पाप न मिटे! 
15. वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, कि वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटा डाले! 
16. क्योंकि वह दुष्ट, कृपा करना भूल गया वरन दी और दरिद्र को सताता था और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालोंके पीछे पड़ा रहता था।। 
17. वह शाप देने में प्रीति रखता था, और शाप उस पर आ पड़ा; वह आशीर्वाद देने से प्रसन्न न होता था, सो आर्शीवाद उस से दूर रहा। 
18. वह शाप देना वस्त्रा की नाई पहिनता था, और वह उसके पेट में जल की नाई और उसकी हडि्डयोंमें तेल की नाई समा गया। 
19. वह उसके लिथे ओढ़ने का काम दे, और फेंटे की नाईं उसकी कटि में नित्य कसा रहे।। 
20. यहोवा की ओर से मेरे विरोधियोंको, और मेरे विरूद्ध बुरा कहनेवालोंको यही बदला मिले! 
21. परन्तु मुझ से हे यहोवा प्रभु, तू अपके नाम के निमित्त बर्ताव कर; तेरी करूणा तो बड़ी है, सो तू मुझे छुटकारा दे! 
22. क्योंकि मैं दी और दरिद्र हूं, और मेरा हृदय घायल हुआ है। 
23. मैं ढलती हुई छाया की नाई जाता रहा हूं; मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूं। 
24. उपवास करते करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूं। 
25. मेरी तो उन लोगोंसे नामधराई होती है; जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं।। 
26. हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहाथता कर! अपक्की करूणा के अनुसार मेरा उद्धार कर! 
27. जिस से वे जाने कि यह तेरा काम है, और हे यहोवा, तू ही ने यह किया है! 
28. वे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! 
29. मेरे विरोधियोंको अनादररूपी वस्त्रा पहिनाया जाए, और वे अपक्की लज्जा को कम्बल की नाईं ओढ़ें! 
30. मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूंगा, और बहुत लोगोंके बीच में उसकी स्तुति करूंगा। 
31. क्योंकि वह दरिद्र की दहिनी ओर खड़ा रहेगा, कि उसको घात करनेवाले न्यायियोंसे बचाए।।

Chapter 110

1. मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणोंकी चौकी न कर दूं।। 
2. तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिरयोन से बढ़ाएगा। तू अपके शत्रुओं के बीच में शासन कर। 
3. तेरी प्रजा के लोगर तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; तेरे जवान लोग पवित्राता से शोभायमान, और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं। 
4. यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, कि तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।। 
5. प्रभु तेरी दहिनी ओर होकर अपके क्रोध के दिन राजाओं को चूर कर देगा। 
6. वह जाति जाति में न्याय चुकाएगा, रणभूमि लोथोंसे भर जाएगी; वह लम्बे चौड़े देश के प्रधान को चूर चूर कर देगा। 
7. वह मार्ग में चलता हुआ नदी का जल पीएगा इस कारण वह सिर को ऊंचा करेगा।।

Chapter 111

1. याह की स्तुति करो। मैं सीधे लोगोंकी गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा। 
2. यहोवा के काम बड़े हैं, जितने उन से प्रसन्न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं। 
3. उसके काम का विभवमय और ऐश्वरर्यमय होते हैं, और उसका धन सदा तक बना रहेगा। 
4. उस ने अपके आश्चर्यकर्मोंका स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है। 
5. उस ने अपके डरवैयोंको आहार दिया है; वह अपक्की वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा। 
6. उस ने अपक्की प्रजा को अन्यजातियोंका भाग देने के लिथे, अपके कामोंका प्रताप दिखाया है। 
7. सच्चाई और न्याय उसके हाथोंके काम हैं; उसके सब उपकेश विश्वासयोग्य हैं, 
8. वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं। 
9. उस ने अपक्की प्रजा का उद्धार किया है; उस ने अपक्की वाचा को सदा के लिथे ठहराया है। उसका नाम पवित्रा और भययोग्य है। 
10. बुद्धि का मूल यहोवा का भय है; जितने उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उनकी बुद्धि अच्छी होती है। उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी।।

Chapter 112

1. याह की स्तुति करो। क्या ही धन्य है वह पुरूष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्न रहता है! 
2. उसका वंश पृथ्वी पर पराक्रमी होगा; सीधे लोगोंकी सन्तान आशीष पाएगी। 
3. उसके घर में धन सम्पत्ति रहती है; और उसका धर्म सदा बना रहेगा। 
4. सीधे लोगोंके लिथे अन्धकार के बीच में ज्योति उदय होती है; वह अनुग्रहकारी, दयावन्त और धर्मी होता है। 
5. जो पुरूष अनुग्रह करता और उधार देता है, उसका कल्याण होता है, वह न्याय में अपके मुक में को जीतेगा। 
6. वह तो सदा तक अटल रहेगा; धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। 
7. वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। 
8. उसका हृदय सम्भला हुआ है, इसलिथे वह न डरेगा, वरन अपके द्रोहियोंपर दृष्टि करके सन्तुष्ट होगा। 
9. उस ने उदारता से दरिद्रोंको दान दिया, उसका धर्म सदा बना रहेगा और उसका सींग महिमा के साथ ऊंचा किया जाएगा। 
10. दुष्ट उसे देखकर कुढेगा; वह दांत पीस- पीसकर गल जाएगा; दुष्टोंकी लालसा पूरी न होगी।।

Chapter 113

1. याह की स्तुति करो हे यहोवा के दासोंस्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो! 
2. यहोवा का नाम अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहा जाय! 
3. उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है। 
4. यहोवा सारी जातियोंके ऊपर महान है, और उसकी महिमा आकाश से भी ऊंची है।। 
5. हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है, 
6. और आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिथे झुकता है। 
7. वह कंगाल को मिट्टी पर से, और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊंचा करता है, 
8. कि उसको प्रधानोंके संग, अर्थात् अपक्की प्रजा के प्रधानोंके संग बैठाए। 
9. वह बांझ को घर में लड़कोंकी आनन्द करनेवाली माता बनाता है। याह की स्तुति करो!

Chapter 114

1. जब इस्राएल ने मि से, अर्थात् याकूब के घराने ने अन्य भाषावालोंके बीच में कूच किया, 
2. तब यहूदा यहोवा का पवित्रास्थान और इस्राएल उसके राज्य के लोग हो गए।। 
3. समुद्र देखकर भागा, यर्दन नदी उलटी बही। 
4. पहाड़ मेढ़ोंकी नाईं उछलने लगे, और पहाड़ियां भेड़- बकरियोंके बच्चोंकी नाईं उछलने लगीं।। 
5. हे समुद्र, तुझे क्या हुआ, कि तू भागा? और हे यर्दन तुझे क्या हुआ, कि तू उलठी बही? 
6. हे पहाड़ोंतुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़ोंकी नाईं, और हे पहाड़ियोंतुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़- बकरियोंके बच्चोंकी नाईं उछलीं? 
7. हे पृथ्वी प्रभु के साम्हने, हां याकूब के परमेश्वर के साम्हने थरथरा। 
8. वह चट्टान को जल का ताल, चकमक के पत्थर को जल का सोता बना डालता है।।

Chapter 115

1. हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपके ही नाम की महिमा, अपक्की करूणा और सच्चाई के निमित्त कर। 
2. जाति जाति के लोग क्योंकहने पांए, कि उनका परमेश्वर कहां रहा? 
3. हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में हैं; उस ने जो चाहा वही किया है। 
4. उन लोगोंकी मूरतें सोने चान्दी ही की तो हैं, वे मनुष्योंके हाथ की बनाई हुई हैं। 
5. उनक मुंह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; उनके आंखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकतीं। 
6. उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकतीं। 
7. उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं; और उनके कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। 
8. जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले हैं; और उन पर भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे।। 
9. हे इस्राएल यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहाथक और ढाल वही है। 
10. हे हारून के घराने यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहाथक और ढाल वही है। 
11. हे यहोवा के डरवैयो, यहोवा पर भरोसा रखो! तुम्हारा सहाथक और ढाल वही है।। 
12. यहोवा ने हम को स्मरण किया है; वह आशीष देगा; वह इस्राएल के घराने को आशीष देगा; वह हारून के घराने को आशीष देगा। 
13. क्या छोटे क्या बड़े जितने यहोवा के डरवैथे हैं, वह उन्हें आशीष देगा।। 
14. यहोवा तुम को और तुम्हारे लड़कोंको भी अधिक बढ़ाता जाए! 
15. यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, उसकी ओर से तुम अशीष पाए हो।। 
16. स्वर्ग तो यहोवा का है, परन्तु पृथ्वी उस ने मनुष्योंको दी है। 
17. मृतक जितने चुपचाप पके हैं, वे तो याह की स्तुति नहीं कर सकते, 
18. परन्तु हम लोग याह को अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। याह की स्तुति करो!

Chapter 116

1. मैं प्रेम रखता हूं, इसलिथे कि यहोवा ने मेरे गिड़गिड़ाने को सुना है। 
2. उस ने जो मेरी ओर कान लगाया है, इसलिथे मैं जीवन भर उसको पुकारा करूंगा। 
3. मृत्यु की रस्सियां मेरे चारोंओर थीं; मैं अधोलोक की सकेती में पड़ा था; मुझे संकट और शोक भोगना पड़ा। 
4. तब मैं ने यहोवा से प्रार्थना की, कि हे यहोवा बिनती सुनकर मेरे प्राण को बचा ले! 
5. यहोवा अनुग्रहकारी और धर्मी है; और हमारा परमेश्वर दया करनेवाला है। 
6. यहोवा भोलोंकी रक्षा करता है; जब मैं बलहीन हो गया था, उस ने मेरा उद्धार किया। 
7. हे मेरे प्राण तू अपके विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है।। 
8. तू ने तो मेरे प्राण को मृत्यु से, मेरी आंख को आंसू बहाने से, और मेरे पांव को ठोकर खाने से बचाया है। 
9. मैं जीवित रहते हुए, अपके को यहोवा के साम्हने जानकर नित चलता रहूंगा। 
10. मैं ने जो ऐसा कहा है, इसे विश्वास की कसौटी पर कस कर कहा है, कि मैं तो बहुत की दु:खित हुआ; 
11. मैं ने उतावली से कहा, कि सब मनुष्य झूठें हैं।। 
12. यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं? 
13. मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा, 
14. मैं यहोवा के लिथे अपक्की मन्नतें सभोंकी दृष्टि में प्रगट रूप में उसकी सारी प्रजा के साम्हने पूरी करूंगा। 
15. यहोवा के भक्तोंकी मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है। 
16. हे यहोवा, सुन, मैं तो तेरा दास हूं; मैं तेरा दास, और तेरी दासी का पुत्रा हूं। तू ने मेरे बन्धन खोल दिए हैं। 
17. मैं तुझ को धन्यवादबलि चढ़ाऊंगा, और यहोवा से प्रार्थना करूंगा। 
18. मैं यहोवा के लिथे अपक्की मन्नतें, प्रगट में उसकी सारी प्रजा के साम्हने 
19. यहोवा के भवन के आंगनोंमें, हे यरूशलेम, तेरे भीतर पूरी करूंगा। याह की स्तुति करो!

Chapter 117

1. हे जाति जाति के सब लोगोंयहोवा की स्तुति करो! हे राज्य राज्य के सब लोगो, उसकी प्रशंसा करो! 
2. क्योंकि उसकी करूणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है; और यहोवा की सच्चाई सदा की है याह की स्तुति करो!

Chapter 118

1. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 
2. इस्राएल कहे, उसकी करूणा सदा की है। 
3. हारून का घराना कहे, उसकी करूणा सदा की है। 
4. यहोवा के डरवैथे कहे, उसकी करूणा सदा की है। 
5. मैं ने सकेती में परमेश्वर को पुकारा, परमेश्वर ने मेरी सुनकर, मुझे चौड़े स्थान में पहुंचाया। 
6. यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 
7. यहोवा मेरी ओर मेरे सहाथकोंमें है; मैं अपके बैरियोंपर दृष्टि कर सन्तुष्ट हूंगा। 
8. यहोवा की शरण लेनी, मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है। 
9. यहोवा की शरण लेनी, प्रधानोंपर भी भरोसा रखने से उत्तम है।। 
10. सब जातियोंने मुझ को घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 
11. उन्होंने मुझ को घेर लिया है, नि:सन्देह घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 
12. उन्होंने मुझे मधुमक्खियोंकी नाईं घेर लिया है, परन्तु कांटोंकी आग की नाईं वे बुझ गए; यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 
13. तू ने मुझे बड़ा धक्का दिया तो था, कि मैं गिर पडूं परन्तु यहोवा ने मेरी सहाथता की। 
14. परमेश्वर मेरा बल और भजन का विषय है; वह मेरा उद्धार ठहरा है।। 
15. धर्मियोंके तम्बुओं में जयजयकार और उद्धार की ध्वनि हो रही है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है, 
16. यहोवा का दहिना हाथ महान हुआ है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है! 
17. मैं न मरूंगा वरन जीवित रहूंगा, और परमेश्वर परमेश्वर के कामोंका वर्णन करता रहूंगा। 
18. परमेश्वर ने मेरी बड़ी ताड़ना तो की है परन्तु मुझे मृत्यु के वश में नहीं किया।। 
19. मेरे लिथे धर्म के द्वार खोलो, मैं उन से प्रवेश करके याह का धन्यवाद करूंगा।। 
20. यहोवा का द्वार यही है, इस से धर्मी प्रवेश करने पाएंगे।। 
21. हे यहोवा मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, क्योंकि तू ने मेरी सुन ली है और मेरा उद्धार ठहर गया है। 
22. राजमिस्त्रियोंने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था वही कोने का सिरा हो गया है। 
23. यह तो यहोवा की ओर से हुआ है, यह हमारी दृष्टि में अद्भुत है। 
24. आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इस में मगन और आनन्दित हों। 
25. हे यहोवा, बिनती सुन, उद्धार कर! हे यहोवा, बिनती सुन, सफलता दे! 
26. धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! हम ने तुम को यहोवा के घर से आशीर्वाद दिया है। 
27. यहोवा ईश्वर है, और उस ने हम को प्रकाश दिया है। यज्ञपशु को वेदी के सींगोंसे रस्सिक्कों बान्धो! 
28. हे यहोवा, तू मेरा ईश्वर है, मैं तेरा धन्यवाद करूंगा; तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझ को सराहूंगा।। 
29. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा बनी रहेगी!

Chapter 119

1. क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! 
2. क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियोंको मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! 
3. फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गोंमें चलते हैं। 
4. तू ने अपके उपकेश इसलिथे दिए हैं, कि वे यत्न से माने जाएं। 
5. भला होता कि तेरी विधियोंके मानने के लिथे मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए! 
6. तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूंगा, और मेरी आशा न टूटेगी। 
7. जब मैं तेरे धर्ममय नियमोंको सीखूंगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा। 
8. मैं तेरी विधियोंको मानूंगा: मुझे पूरी रीति से न तज! 
9. जवान अपक्की चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। 
10. मैं पूरे मन से तेरी खोज मे लगा हूं; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! 
11. मैं ने तेरे वचन को अपके हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूं। 
12. हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपक्की विधियां सिखा! 
13. तेरे सब कहे हुए नियमोंका वर्णन, मैं ने अपके मुंह से किया है। 
14. मैं तेरी चितौनियोंके मार्ग से, मानोंसब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूं। 
15. मैं तेरे उपकेशोंपर ध्यान करूंगा, और तेरे मार्गोंकी ओर दृष्टि रखूंगा। 
16. मैं तेरी विधियोंसे सुख पाऊंगा; और तेरे वचन को न भूलूंगा।। 
17. अपके दास का उपकार कर, कि मैं जीवित रहूं, और तेरे वचन पर चलता रहूं। 
18. मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं। 
19. मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूं; अपक्की आज्ञाओं को मुझ से छिपाए न रख! 
20. मेरा मन तेरे नियमोंकी अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है। 
21. तू ने अभिमानियोंको, जो शापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटके हुए हैं। 
22. मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियोंको पकड़े हूं। 
23. हाकिम भी बैठे हुए आपास में मेरे विरूद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियोंपर ध्यान करता रहा। 
24. तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल और मेरे मन्त्री हैं।। 
25. मैं धूल में पड़ा हूं; तू अपके वचन के अनुसार मुझ को जिला! 
26. मैं ने अपक्की चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तू ने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपक्की विधियां सिखा! 
27. अपके उपकेशोंका मार्ग मुझे बता, तब मैं तेरे आश्यर्चकर्मोंपर ध्यान करूंगा। 
28. मेरा जीवन उदासी के मारे गल चला है; तू अपके वचन के अनुसार मुझे सम्भल! 
29. मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और करूणा करके अपक्की व्यवस्था मुझे दे। 
30. मैं ने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमोंकी ओर मैं चित्त लगाए रहता हूं। 
31. मैं तेरी चितौनियोंमें लवलीन हूं, हे यहोवा, मेरी आशा न तोड़! 
32. जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओ के मार्ग में दौडूंगा।। 
33. हे यहोवा, मुझे अपक्की विधियोंका मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा। 
34. मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा। 
35. अपक्की आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूं। 
36. मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपक्की चितौनियोंही की ओर फेर दे। 
37. मेरी आंखोंको व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपके मार्ग में मुझे जिला। 
38. तेरा वचन जो तेरे भय माननेवालोंके लिथे है, उसको अपके दास के निमित्त भी पूरा कर। 
39. जिस नामधराई से मैं डरता हूं, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं। 
40. देख, मैं तेरे उपकेशोंका अभिलाषी हूं; अपके धर्म के कारण मुझ को जिला। 
41. हे यहोवा, तेरी करूणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वचन के अनुसार, मुझ को भी मिले; 
42. तब मैं अपक्की नामधराई करनेवालोंको कुछ उत्तर दे सकूंगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है। 
43. मुझे अपके सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमोंपर है। 
44. तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूंगा; 
45. और मैं चोड़े स्थान में चला फिरा करूंगा, क्योंकि मैं ने तेरे उपकेशोंकी सुधि रखी है। 
46. और मैं तेरी चितौनियोंकी चर्चा राजाओं के साम्हने भी करूंगा, और संकोच न करूंगा; 
47. क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूं, और मैं उन से प्रीति रखता हूं। 
48. मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूं, हाथ फैलाऊंगा और तेरी विधियोंपर ध्यान करूंगा।। 
49. जो वचन तू ने अपके दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तू ने मुझे आशा दी है। 
50. मेरे दु:ख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। 
51. अभिमानियोंने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा। 
52. हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमोंको स्मरण करके शान्ति पाई है। 
53. जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं सन्ताप से जलता हूं। 
54. जहां मैं परदेशी होकर रहता हूं, वहां तेरी विधियां, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं। 
55. हे यहोवा, मैं ने रात को तेरा नाम स्मरण किया और तेरी व्यवस्था पर चला हूं। 
56. यह मुझ से इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपकेशोंको पकड़े हुए था।। 
57. यहोवा मेरा भाग है; मैं ने तेरे वचनोंके अनुसार चलने का निश्चय किया है। 
58. मैं ने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिथे अपके वचन के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर। 
59. मैं ने अपक्की चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियोंका मार्ग लिया। 
60. मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है। 
61. मैं दुष्टोंकी रस्सिक्कों बन्ध गया हूं, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला। 
62. तेरे धर्ममय नियमोंके कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूंगा। 
63. जितने तेरा भय मानते और तेरे उपकेशोंपर चलते हैं, उनका मैं संगी हूं। 
64. हे यहोवा, तेरी करूणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपक्की विधियां सिखा! 
65. हे यहोवा, तू ने अपके वचन के अनुसार अपके दास के संग भलाई की है। 
66. मुझे भली विवेक- शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है। 
67. उस से पहिले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूं। 
68. तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपक्की विधियां सिखा। 
69. अभिमानियोंने तो मेरे विरूद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपकेशोंको पूरे मन से पकड़े रहूंगा। 
70. उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूं। 
71. मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिथे भला ही हुआ है, जिस से मैं तेरी विधियोंको सीख सकूं। 
72. तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिथे हजारोंरूपयोंऔर मुहरोंसे भी उत्तम है।। 
73. तेरे हाथोंसे मैं बनाया और रचा गया हूं; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं। 
74. तेरे डरवैथे मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैं ने तेरे वचन पर आशा लगाई है। 
75. हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपके सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है। 
76. मुझे अपक्की करूणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपके दास को ऐसा ही वचन दिया है। 
77. तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूंगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 
78. अभिमानियोंकी आशा टूटे, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपकेशोंपर ध्यान करूंगा। 
79. जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियोंको समझ लेंगे। 
80. मेरा मन तेरी विधियोंके मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पके।। 
81. मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिथे बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है। 
82. मेरी आंखें तेरे वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गईं है; और मैं कहता हूं कि तू मुझे कब शान्ति देगा? 
83. क्योंकि मैं धूएं में की कुप्पी के समान हो गया हूं, तौभी तेरी विधियोंको नहीं भूला। 
84. तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पके हुओं को दण्ड कब देगा? 
85. अभिमानी जो तरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिथे गड़हे खोदे हैं। 
86. तेरी सब आज्ञाएं विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पके हैं; तू मेरी सहाथता कर! 
87. वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैं ने तेरे उपकेशोंको नहीं छोड़ा। 
88. अपक्की करूणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूंगा।। 
89. हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। 
90. तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तू ने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिथे वह बनी है। 91 वे आज के दिन तक तेरे नियमोंके अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है। 92 यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दु:ख के समय नाश हो जाता। 93 मैं तेरे उपकेशोंको कभी न भूलूंगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तू ने मुझे जिलाया है। 94 मैं तेरा ही हूं, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपकेशोंकी सुधि रखता हूं। 95 दुष्ट मेरा नाश करने के लिथे मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियोंपर ध्यान करता हूं। 96 जितनी बातें पूरी जान पड़ती हैं, उन सब को तो मैं ने अधूरी पाया है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा है।। 97 अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। 98 तू अपक्की आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपके शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। 99 मैं अपके सब शिक्षकोंसे भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियोंपर लगा है। 100 मैं पुरनियोंसे भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपकेशोंको पकड़े हुए हूं। 101 मैं ने अपके पांवोंको हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं। 102 मैं तेरे नियमोंसे नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है। 103 तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं! 104 तेरे उपकेशोंके कारण मैं समझदार हो जाता हूं, इसलिथे मैं सब मिथ्या मार्गोंसे बैर रखता हूं।। 105 तेरा वचन मेरे पांव के लिथे दीपक, और मेरे मार्ग के लिथे उजियाला है। 106 मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है कि मैं तेरे धर्मपय नियमोंके अनुसार चलूंगा। 107 मैं अत्यन्त दु:ख में पड़ा हूं; हे यहोवा, अपके वचन के अनुसार मुझे जिला। 108 हे यहोवा, मेरे वचनोंको स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, और अपके नियमोंको मुझे सिखा। 109 मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 110 दुष्टोंने मेरे लिथे फन्दा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपकेशोंके मार्ग से नहीं भटका। 111 मैं ने तेरी चितौनियोंको सदा के लिथे अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है। 112 मैं ने अपके मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियोंपर सदा चलता रहूं। 113 मैं दुचित्तोंसे तो बैर रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 114 तू मेरी आड़ और ढ़ाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है। 115 हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हो जाओ, कि मैं अपके परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूं। 116 हे यहोवा, अपके वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूं, और मेरी आशा को न तोड़! 117 मुझे थांभ रख, तब मैं बचा रहूंगा, और निरन्तर तेरी विधियोंकी ओर चित्त लगाए रहूंगा! 118 जितने तेरी विधियोंके मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है। 119 तू ने पृथ्वी के सब दुष्टोंको धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियोंमें प्रीति रखता हूं। 120 तेरे भय से मेरा शरीर कांप उठता है, और मैं तेरे नियमोंसे डरता हूं।। 121 मैं ने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अन्धेर करनेवालोंके हाथ में न छोड़। 122 अपके दास की भलाई के लिथे जामिन हो, ताकि अभिमानी मुझ पर अन्धेर न करने पांए। 123 मेरी आंखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गई हैं। 124 अपके दास के संग अपक्की करूणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपक्की विधियां मुझे सिखा। 125 मैं तेरा दास हूं, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियोंको समझूं। 126 वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगोंने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है। 127 इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूं। 128 इसी कारण मैं तेरे सब उपकेशोंको सब विषयोंमें ठीक जानता हूं; और सब मिथ्या मार्गोंसे बैर रखता हूं।। 129 तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपके जी से पकड़े हुए हूं। 130 तेरी बातोंके खुलने से प्राकाश होता है; उस से भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं। 131 मैं मुंह खोलकर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था। 132 जैसी तेरी रीति अपके नाम की प्रीति रखनेवालोंसे है, वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर। 133 मेरे पैरोंको अपके वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे। 134 मुझे मनुष्योंके अन्धेर से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपकेशोंको मानूंगा। 135 अपके दास पर अपके मुख का प्रकाश चमका दे, और अपक्की विधियां मुझे सिखा। 136 मेरी आंखोंसे जल की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।। 137 हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं। 138 तू ने अपक्की चितौनियोंको धर्म और पूरी सत्यता से कहा है। 139 मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूं, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनोंको भूल गए हैं। 140 तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिथे तेरा दास उस में प्रीति रखता है। 141 मैं छोटा और तुच्छ हूं, तौभी मैं तेरे उपकेशोंको नही भूलता। 142 तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है। 143 मैं संकट और सकेती में फंसा हूं, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूं। 144 तेरी चितौनियां सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूं।। 145 मैं ने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन लेना! मैं तेरी विधियोंको पकड़े रहूंगा। 146 मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियोंको माना करूंगा। 147 मैं ने पौ फटने से पहिले दोहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनोंपर थी। 148 मेरी आंखें रात के एक एक पहर से पहिले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूं। 149 अपक्की करूणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपक्की रीति के अनुसार मुझे जीवित कर। 150 जो दुष्टता में धुन लगाते हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। 151 हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएं सत्य हैं। 152 बहुत काल से मैं तेरी चितौनियोंको जानता हूं, कि तू ने उनकी नेव सदा के लिथे डाली है।। 153 मेरे दु:ख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 154 मेरा मुक मा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपके वचन के अनुसार मुझ को जिला। 155 दुष्टोंको उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियोंकी सुधि नहीं रखते। 156 हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिथे अपके नियमोंके अनुसार मुझे जिला। 157 मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियोंसे नहीं हटता। 158 मैं विश्वासघातियोंको देखकर उदास हुआ, क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते। 159 देख, मैं तेरे नियमोंसे कैसी प्रीति रखता हूं! हे यहोवा, अपक्की करूणा के अनुसार मुझ को जिला। 160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।। 161 हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पके हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनोंका भय मानता है। 162 जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूं। 163 झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 164 तेरे धर्ममय नियमोंके कारण मैं प्रतिदिन सात बेर तेरी स्तुति करता हूं। 165 तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालोंको बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती। 166 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूं; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूं। 167 मैं तेरी चितौनियोंको जी से मानता हूं, और उन से बहुत प्रीति रखता आया हूं। 168 मैं तेरे उपकेशोंऔर चितौनियोंको मानता आया हूं, क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है।। 169 हे यहोवा, मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे; तू अपके वचन के अनुसार मुझे समझ दे! 170 मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुंचे; तू अपके वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले। 171 मेरे मुंह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपक्की विधियां सिखाता है। 172 मैं तेरे वचन का गीत गाऊंगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएं धर्ममय हैं। 173 तेरा हाथ मेरी सहाथता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैं ने तेरे उपकेशोंको अपनाया है। 174 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूं, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 175 मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूंगा, तेरे नियमोंसे मेरी सहाथता हो। 176 मैं खोई हुई भेड़ की नाईं भटका हूं; तू अपके दास को ढूंढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।।

Chapter 120

1. संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उस ने मेरी सुन ली। 
2. हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुंह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।। 
3. हे छली जीभ, तुझ को क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए? 
4. वीर के नोकीले तीर और झाऊ के अंगारे! 
5. हाथ, हाथ, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है! 
6. बहुत काल से मुझ को मेल के बैरियोंके साथ बसना पड़ा है। 
7. मैं तो मेल चाहता हूं; परन्तु मेरे बोलते ही, वे लड़ना चाहते हैं!

Chapter 121

1. मैं अपक्की आंखें पर्वतोंकी ओर लगाऊंगा। मुझे सहाथता कहां से मिलेगी? 
2. मुझे सहाथता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।। 
3. वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघे। 
4. सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा।। 
5. यहोवा तेरा रक्षक है; यहोवा तेरी दहिनी ओर तेरी आड़ है। 
6. न तो दिन को धूप से, और न रात को चांदनी से तेरी कुछ हाति होगी।। 
7. यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; यह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। 
8. यहोवा तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा।।

Chapter 122

1. जब लोगोंने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ। 
2. हे यरूशलेम, तेरे फाटकोंके भीतर, हम खड़े हो गए हैं! 
3. हे यरूशलेम, तू ऐसे नगर के समान बना है, जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं। 
4. वहां याह के गोत्रा गोत्रा के लोग यहोवा के नाम का धन्यवाद करने को जाते हैं; यह इस्राएल के लिथे साक्षी है। 
5. वहां तो न्याय के सिंहासन, दाऊद के घराने के लिथे धरे हुए हैं।। 
6. यरूशलेम की शान्ति का वरदान मांगो, तेरे प्रेमी कुशल से रहें! 
7. तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति, और तेरे महलोंमें कुशल होवे! 
8. अपके भाइयोंऔर संगियोंके निमित्त, मैं कहूंगा कि तुझ में शान्ति होवे! 
9. अपके परमेश्वर यहोवा के भवन के निमित्त, मैं तेरी भलाई का यत्न करूंगा।।

Chapter 123

1. हे स्वर्ग में विराजमान मैं अपक्की आंखें तेरी ओर लगाता हूं! 
2. देख, जैसे दासोंकी आंखें अपके स्वामियोंके हाथ की ओर, और जैसे दासियोंकी आंखें अपक्की स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, वैसे ही हमारी आंखें हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, जब तक वह हम पर अनुग्रह न करे।। 
3. हम पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, हम पर अनुग्रह कर, क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं। 
4. हमारा जीव सुखी लोगोंके ठट्ठोंसे, और अहंकारियोंके अपमान से बहुत ही भर गया है।।

Chapter 124

1. इस्राएल यह कहे, कि यदि हमारी ओर यहोवा न होता, 
2. यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्योंने हम पर चढ़ाई की, 
3. तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते, जब उनका क्रोध हम पर भड़का था, 
4. हम उसी समय जल में डूब जाते और धारा में बह जाते; 
5. उमड़ते जल में हम उसी समय ही बह जाते।। 
6. धन्य है यहोवा, जिस ने हम को उनके दातोंतले जाने न दिया! 
7. हमार जीव पक्षी की नाईं चिड़ीमार के जाल से छूट गया; जाल फट गया, हम बच निकले! 
8. यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है, हमारी सहाथता उसी के नाम से होती है।

Chapter 125

1. जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे सिरयोन पर्वत के समान हैं, जो टलता नहीं, वरन सदा बना रहता है। 
2. जिस प्रकार यरूशलेम के चारोंओर पहाड़ हैं, उसी प्रकार यहोवा अपक्की प्रजा के चारोंओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा। 
3. क्योंकि दुष्टोंका राजदण्ड धर्मियोंके भाग पर बना न रहेगा, ऐसा न हो कि धर्मी अपके हाथ कुटिल काम की ओर बढ़ाएं।। 
4. हे यहोवा, भलोंका, और सीधे मनवालोंका भला कर! 
5. परन्तु जो मुड़कर टेढ़े मार्गोंमें चलते हैं, उनको यहोवा अनर्थकारियोंके संग निकाल देगा! इस्राएल को शान्ति मिले!

Chapter 126

1. जब यहोवा सिरयोन से लौअनेवालोंको लौटा ले आया, तब हम स्वप्त देखनेवाले से हो गए। 
2. तब हम आनन्द से हंसने और जयजयकार करने लगे; तब जाति जाति के बीच में कहा जाता था, कि यहोवा ने, इनके साथ बड़े बड़े काम किए हैं। 
3. यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किए हैं; और इस से हम आनन्दित हैं।। 
4. हे यहोवा, दक्खिन देश के नालोंकी नाईं, हमारे बन्धुओं को लौटा ले आ! 
5. जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। 
6. चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, परन्तु वह फिर पूलियां लिए जयजयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा।।

Chapter 127

1. यदि घर को यहोवा न बानाए, तो उसके बनानेवालोंको परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। 
2. तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिथे व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपके प्रियोंको योंही नींद दान करता है।। 
3. देखे, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है। 
4. जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं। 
5. क्या ही धन्य है वह पुरूष जिस ने अपके तर्कश को उन से भर लिया हो! वह फाटक के पास शत्रुओं से बातें करते संकोच न करेगा।।

Chapter 128

1. क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गोंपर चलता है! 
2. तू अपक्की कमाई को निश्चय खाने पाएगा; तू धन्य होगा, और तेरा भला ही होगा।। 
3. तेरे घर के भीतर तेरी स्त्री फलवन्त दाखलता सी होगी; तेरी मेज के चारोंओर तेरे बालक जलपाई के पौधे से होंगे। 
4. सुन, जो पुरूष यहोवा का भय मानता हो, वह ऐसी ही आशीष पाएगा।। 
5. यहोवा तुझे सिरयोन से आशीष देवे, और तू जीवन भर यरूशलेम का कुशल देखता रहे! 
6. वरन तू अपके नाती- पोतोंको भी देखने पाए! इस्राएल को शान्ति मिले!

Chapter 129

1. इस्राएल अब यह कहे, कि मेरे बचपन से लोग मुझे बार बार क्लेश देते आए हैं, 
2. मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए। 
3. हलवाहोंने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेखाएं कीं। 
4. यहोवा धर्मी है; उस ने दुष्टोंके फन्दोंको काट डाला है। 
5. जितने सिरयोन से बैर रखते हैं, उन सभोंकी आशा टूटे, ओर उनको पीछे हटना पके! 
6. वे छत पर की घास के समान हों, जो बढ़ने से पहिले सूख जाती है; 
7. जिस से कोई लवैया अपक्की मुट्ठी नहीं भरता, न पूलियोंका कोई बान्धनेवाला अपक्की अंकवार भर पाता है, 
8. और न आने जानेवाले यह कहते हैं, कि यहोवा की आशीष तुम पर होवे! हम तुम को यहोवा के नाम से आशीर्वाद देते हैं!

Chapter 130

1. हे यहोवा, मैं ने गहिरे स्थानोंमें से तुझ को पुकारा है! 
2. हे प्रभु, मेरी सुन! तेरे कान मेरे गिड़गिड़ाने की ओर ध्यान से लगे रहें! 
3. हे याह, यदि तू अधर्म के कामोंका लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? 
4. परन्तु तू क्षमा करनेवाला है? जिस से तेरा भय माना जाए। 
5. मैं यहोवा की बाट जोहता हूं, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूं, और मेरी आशा उसके वचन पर है; 
6. पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, हां, पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपके प्राणोंसे चाहता हूं।। 
7. इस्राएल यहोवा पर आशा लगाए रहे! क्योंकि यहोवा करूणा करनेवाला और पूरा छुटकारा देनेवाला है। 
8. इस्राएल को उसके सारे अधर्म के कामोंसे वही छुटकारा देगा।।

Chapter 131

1. हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; और जो बातें बड़ी और मेरे लिथे अधिक कठिन हैं, उन से मैं काम नहीं रखता। 
2. निश्चय मैं ने अपके मन को शान्त और चुप कर दिया है, जैसे दूध छुड़ाया हुआ लड़का अपक्की मां की गोद में रहता है, वैसे ही दूध छुड़ाए हुए लड़के के समान मेरा मन भी रहता है।। 
3. हे इस्राएल, अब से लेकर सदा सर्वदा यहोवा ही पर आशा लगाए रह!

Chapter 132

1. हे यहोवा, दाऊद के लिथे उसकी सारी दुर्दशा को स्मरण कर; 
2. उस ने यहोवा से शपथ खाई, और याकूब के सर्वशक्तिमान की मन्नत मानी है, 
3. कि निश्चय मैं उस समय तक अपके घर में प्रवेश न करूंगा, और ने अपके पलंग पर चढूंगा; 
4. न अपक्की आंखोंमें नींद, और न अपक्की पलकोंमें झपक्की आने दूंगा, 
5. जब तक मैं यहोवा के लिथे एक स्थान, अर्थात् याकूब के सर्वशक्तिमान के लिथे निवास स्थान न पाऊं।। 
6. देखो, हम ने एप्राता में इसकी चर्चा सुनी है, हम ने इसको वन के खेतोंमें पाया है। 
7. आओ, हम उसके निवास में प्रवेश करें, हम उसके चरणोंकी चौकी के आगे दण्डवत् करें! 
8. हे यहोवा, उठकर अपके विश्रामस्थान में अपक्की सामर्थ्य के सन्दूक समेत आ। 
9. तेरे याजक धर्म के वस्त्रा पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग जयजयकार करें। 
10. अपके दास दाऊद के लिथे अपके अभिषिक्त की प्रार्थना की अनसुनी न कर।। 
11. यहोवा ने दाऊद से सच्ची शपथ खाई है और वह उस से न मुकरेगा: कि मैं तेरी गद्दी पर तेरे एक निज पुत्रा को बैठाऊंगा। 
12. यदि तेरे वंश के लोग मेरी वाचा का पालन करें और जो चितौनी मैं उन्हें सिखाऊंगा, उस पर चलें, तो उनके वंश के लोग भी तेरी गद्दी पर युग युग बैठते चले जाएंगे। 
13. क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को अपनाया है, और उसे अपके निवास के लिथे चाहा है।। 
14. यह तो युग युग के लिथे मेरा विश्रामस्थान हैं; यहीं मैं रहूंगा, क्योंकि मैं ने इसका चाहा है। 
15. मैं इस में की भोजनवस्तुओं पर अति आशीष दूंगा; और इसके दरिद्रोंको रोटी से तृप्त करूंगा। 
16. इसके याजकोंको मैं उद्धार का वस्त्रा पहिनाऊंगा, और इसके भक्त लोग ऊंचे स्वर से जयजयकार करेंगे। 
17. वहां मैं दाऊद के एक सींग उगाऊंगा; मैं ने अपके अभिषिक्त के लिथे एक दीपक तैयार कर रखा है। 
18. मैं उसे शत्रुओं को तो लज्जा का वस्त्रा पहिनाऊंगा, परन्तु उसी के सिर पर उसका मुकुट शोभायमान रहेगा।।

Chapter 133

1. देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें! 
2. यह तो उस उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर बहकर, उसके वस्त्रा की छोर तक पहुंच गया। 
3. वह हेर्मोन् की उस ओस के समान है, जो सिरयोन के पहाड़ोंपर गिरती है! यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।।

Chapter 134

1. हे यहोवा के सब सेवको, सुनो, तुम जो रात रात को यहोवा के भवन में खड़े रहते हो, यहोवा को धन्य कहो। 
2. अपके हाथ पवित्रास्थान में उठाकर, यहोवा को धन्य कहो। 
3. यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, वह सिरयोन में से तुझे आशीष देवे।।

Chapter 135

1. याह की स्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो, हे यहोवा के सेवको तुम स्तुति करो, 
2. तुम जो यहोवा के भवन में, अर्थात् हमारे परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें खड़े रहते हो! 
3. याह की स्तुति करो, क्योंकि यहोवा भला है; उसके नाम का भजन गाओ, क्योंकि यह मनभाऊ है! 
4. याह ने तो याकूब को अपके लिथे चुना है, अर्थात् इस्राएल को अपके निज धन होने के लिथे चुन लिया है। 
5. मैं तो जानता हूं कि हमारा प्रभु यहोवा सब देवताओं से महान है। 
6. जो कुछ यहोवा ने चाहा उसे उस ने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और सब गहिरे स्थानोंमें किया है। 
7. वह पृथ्वी की छोर से कुहरे उठाता है, और वर्षा के लिथे बिजली बनाता है, और पवन को अपके भण्डार में से निकालता है। 
8. उस ने मि में क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठोंको मार डाला! 
9. हे मि , उस ने तेरे बीच में फिरौन और उसके सब कर्मचारियोंके बीच चिन्ह और चमत्कार किए। 
10. उस ने बहुत सी जातियां नाश की, और सामर्थी राजाओं को, 
11. अर्थात् एमोरियोंके राजा सीहोन को, और बाशान के राजा ओग को, और कनान के सब राजाओं को घात किया; 
12. और उनके देश को बांटकर, अपक्की प्रजा इस्राएल के भाग होने के लिथे दे दिया।। 
13. हे यहोवा, तेरा नाम सदा स्थिर है, हे यहोवा जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी- पीढ़ी बना रहेगा। 
14. यहोवा तो अपक्की प्रजा का न्याय चुकाएगा, और अपके दासोंकी दुर्दशा देखकर तरस खाएगा। 
15. अन्यजातियोंकी मूरतें सोना- चान्दी ही हैं, वे मनुष्योंकी बनाई हुई हैं। 
16. उनके मुंह तो रहता है, परन्तु वे बोल नहीं सकतीं, उनके आंखें तो रहती हैं, परन्तु वे देख नहीं सकतीं, 
17. उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं, न उनके कुछ भी सांस चलती है। 
18. जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले भी हैं; और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे! 
19. हे इस्राएल के घराने यहोवा को धन्य कह! हे हारून के घराने यहोवा को धन्य कह! 
20. हे लेवी के घराने यहोवा को धन्य कह! हे यहोवा के डरवैयो यहोवा को धन्य कहो! 
21. यहोवा जो यरूशलेम में वास करता है, उसे सिरयोन में धन्य कहा जावे! याह की स्तुति करो!

Chapter 136

1. यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है, और उसकी करूणा सदा की है। 
2. जो ईश्वरोंका परमेश्वर है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है। 
3. जो प्रभुओं का प्रभु है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है।। 
4. उसको छोड़कर कोई बड़े बड़े अशचर्यकर्म नहीं करता, उसकी करूणा सदा की है। 
5. उस ने अपक्की बुद्धि से आकाश बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 
6. उस ने पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया है, उसकी करूणा सदा की है। 
7. उस ने बड़ी बड़ी ज्योतियोंबनाईं, उसकी करूणा सदा की है। 
8. दिन पर प्रभुता करने के लिथे सूर्य को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 
9. और रात पर प्रभुता करने के लिथे चन्द्रमा और तारागण को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 
10. उस ने मिस्त्रियोंके पहिलौठोंको मारा, उसकी करूणा सदा की है।। 
11. और उनके बीच से इस्राएलियोंको निकाला, उसकी करूणा सदा की है। 
12. बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से निकाल लाया, उसकी करूणा सदा की है। 
13. उस ने लाल समुद्र को खण्ड खण्ड कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 
14. और इस्राएल को उसके बीच से पार कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 
15. और फिरौन को सेना समेत लाल समुद्र में डाल दिया, उसकी करूणा सदा की है। 
16. वह अपक्की प्रजा को जंगल में ले चला, उसकी करूणा सदा की है। 
17. उस ने बड़े बड़े राजा मारे, उसकी करूणा सदा की है। 
18. उस ने प्रतापी राजाओं को भी मारा, उसकी करूणा सदा की है। 
19. एमोरियोंके राजा सीहोन को, उसकी करूणा सदा की है। 
20. और बाशान के राजा ओग को घात किया, उसकी करूणा सदा की है। 
21. और उनके देश को भाग होने के लिथे, उसकी करूणा सदा की है। 
22. अपके दास इस्राएलियोंके भाग होने के लिथे दे दिया, उसकी करूणा सदा की है। 
23. उस ने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली, उसकी करूणा सदा की है। 
24. और हम को द्रोहियोंसे छुड़ाया है, उसकी करूणा सदा की है। 
25. वह सब प्राणियोंको आहार देता है, उसकी करूणा सदा की है। 
26. स्वर्ग के परमेश्वर का धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है।

Chapter 137

1. बाबुल की नहरोंके किनारे हम लोग बैठ गए, और सिरयोन को स्मरण करके रो पके! 
2. उसके बीच के मजनू वर्क्षोंपर हम ने अपक्की वीणाओं को टांग दिया; 
3. क्योंकि जो हम को बन्धुए करके ले गए थे, उन्होंने वहां हम से गीत गवाना चाहा, और हमारे रूलानेवलोंने हम से आनन्द चाहकर कहा, सिरयोन के गीतोंमें से हमारे लिथे कोई गीत गाओ! 
4. हम यहोवा के गीत को, पराए देश में क्योंकर गाएं? 
5. हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे भूल जाऊं, तो मेरा दहिना हाथ झूठा हो जाए! 
6. यदि मैं तुझे स्मरण न रखूं, यदि मैं यरूशलेम को अपके सब आनन्द से श्रेष्ठ न जानूं, तो मेरी जीभ तालू से चिपट जाए! 
7. हे यहोवा, यरूशलेम के दिन को एदोमियोंके विरूद्ध स्मरण कर, कि वे क्योंकर कहते थे, ढाओ! उसको नेव से ढा दो। 
8. हे बाबुल तू जो उजड़नेवाली है, क्या ही धन्य वह होगा, जो तुझ से ऐसा बर्ताव करेगा जैसा तू ने हम से किया है! 
9. क्या ही धन्य वह होगा, जो तेरे बच्चोंको पकड़कर, चट्टान पर पटक देगा!

Chapter 138

1. मैं पूरे मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; देवताओं के साम्हने भी मैं तेरा भजन गाऊंगा। 
2. मैं तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा, और तेरी करूणा और सच्चाई के कारण तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा; क्योंकि तू ने अपके वचन को अपके बड़े नाम से अधिक महत्व दिया है। 
3. जिस दिन मैं ने पुकारा, उसी दिन तू ने मेरी सुन ली, और मुझ में बल देकर हियाव बन्धाया।। 
4. हे यहोवा, पृथ्वी के सब राजा तेरा धन्यवाद करेंगे, क्योंकि उन्होंने तेरे वचन सुने हैं; 
5. और वे यहोवा की गति के विषय में गाएंगे, क्योंकि यहोवा की महिमा बड़ी है। 
6. यद्यपि यहोवा महान है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।। 
7. चाहे मैं संकट के बीच में रहूं तौभी तू मुझे जिलाएगा, तू मेरे क्रोधित शत्रुओं के विरूद्ध हाथ बढ़ाएगा, और अपके दहिने हाथ से मेरा उद्धार करेगा। 
8. यहोवा मेरे लिथे सब कुछ पूरा करेगा; हे यहोवा, तेरी करूणा सदा की है। तू अपके हाथोंके कार्योंको त्याग न दे।।

Chapter 139

1. हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।। 
2. तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारोंको दूर ही से समझ लेता है। 
3. मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। 
4. हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो। 
5. तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है। 
6. यह ज्ञान मेरे लिथे बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।। 
7. मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊं? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं? 
8. यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है! 
9. यदि मैं भोर की किरणोंपर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, 
10. तो वहां भी तू अपके हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपके दहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। 
11. यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारोंओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा, 
12. तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिथे अन्धिक्कारनेा और उजियाला दोनोंएक समान हैं।। 
13. मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा। 
14. मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिथे कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं। 
15. जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानोंमें रचा जाता था, तब मेरी हडि्डयां तुझ से छिपी न थीं। 
16. तेरी आंखोंने मेरे बेड़ौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे। 
17. और मेरे लिथे तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है।। 
18. यदि मैं उनको गिनता तो वे बालू के किनकोंसे भी अधिक ठहरते। जब मैं जाग उठता हूं, तब भी तेरे संग रहता हूं।। 
19. हे ईश्वर निश्चय तू दुष्ट को घात करेगा! हे हत्यारों, मुझ से दूर हो जाओ। 
20. क्योंकि वे तेरी चर्चा चतुराई से करते हैं; तेरे द्रोही तेरा नाम झूठी बात पर लेते हैं। 
21. हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियोंसे बैर न रखूं, और तेरे विरोधियोंसे रूठ न जाऊं? 
22. हां, मैं उन से पूर्ण बैर रखता हूं; मैं उनको अपना शत्रु समझता हूं। 
23. हे ईश्वर, मुझे जांचकर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! 
24. और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!

Chapter 140

1. हे यहोवा, मुझ को बुरे मनुष्य से बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, 
2. क्योंकि उन्होंने मन में बुरी कल्पनाएं की हैं; वे लगातार लड़ाइयां मचाते हैं। 
3. उनका बोलना सांप का काटना सा है, उनके मुंह में नाग का सा विष रहता है।। 
4. हे यहोवा, मुझे दुष्ट के हाथोंसे बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, क्योंकि उन्होंने मेरे पैरोंके उखाड़ने की युक्ति की है। 
5. घमण्डियोंने मेरे लिथे फन्दा और पासे लगाए, और पथ के किनारे जाल बिछाया है; उन्होंने मेरे लिथे फन्दे लगा रखे हैं।। 
6. हे यहोवा, मैं ने तुझ से कहा है कि तू मेरा ईश्वर है; हे यहोवा, मेरे गिड़गड़ाने की ओर कान लगा! 
7. हे यहोवा प्रभु, हे मेरे सामर्थी उद्धारकर्ता, तू ने युद्ध के दिन मेरे सिर की रक्षा की है। 
8. हे यहोवा दुष्ट की इच्छा को पूरी न होने दे, उसकी बुरी युक्ति को सफल न कर, नहीं तो वह घमण्ड करेगा।। 
9. मेरे घेरनेवालोंके सिर पर उन्हीं का विचारा हुआ उत्पात पके! 
10. उन पर अंगारे डाले जाएं! वे आग में गिरा दिए जाएं! और ऐसे गड़होंमें गिरें, कि वे फिर उठ न सकें! 
11. बकवादी पृथ्वी पर स्थिर नहीं होने का; उपद्रवी पुरूष को गिराने के लिथे बुराई उसका पीछा करेगी।। 
12. हे यहोवा, मुझे निश्चय है कि तू दीन जन का और दरिद्रोंका न्याय चुकाएगा। 
13. नि:सन्देह धर्मी तेरे नाम का धन्यवाद करने पाएंगे; सीधे लोग तेरे सम्मुख वास करेंगे।।

Chapter 141

1. हे यहोवा, मैं ने तुझे पुकारा है; मेरे लिथे फुर्ती कर! जब मैं तुझ को पुकारूं, तब मेरी ओर कान लगा! 
2. मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप, और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे! 
3. हे हयोवा, मेरे मुख का पहरा बैठा, मेरे हाठोंके द्वार पर रखवाली कर! 
4. मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे; मैं अनर्थकारी पुरूषोंके संग, दुष्ट कामोंमें न लगूं, और मै उनके स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं में से कुछ न खाऊं! 
5. धर्मी मुझ को मारे तो यह कुपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का लेत ठहरेगा; मेरा सिर उस से इन्कार न करेगा।। लोगोंके बुरे काम करने पर भी मैं प्रार्थना में लवलीन रहूंगा। 
6. जब उनके न्यायी चट्टान के पास गिराए गए, तब उन्होंने मेरे वचन सुन लिए; क्योंकि वे मधुर हैं। 
7. जैसे भूमि में हल चलने से ढेले फूटते हैं, वैसे ही हमारी हडि्डयां अधोलोक के मुंह पर छितराई हुई हैं।। 
8. परन्तु हे यहोवा, प्रभु, मेरी आंखे तेरी ही ओर लगी हैं; मैं तेरा शरणागत हूं; तू मेरे प्राण जाने न दे! 
9. मुझे उस फन्दे से, जो उन्होंने मेरे लिथे लगाया है, और अनर्थकारियोंके जाल से मेरी रक्षा कर! 
10. दुष्ट लोग अपके जालोंमें आप ही फंसें, और मैं बच निकलूं।।

Chapter 142

1. मैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं, 
2. मैं अपके शोक की बातें उस से खोलकर कहता, मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूं। 
3. जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिथे फन्दा लगाया। 
4. मैं ने दहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिथे शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।। 
5. हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते ही तू मेरा भाग है। 
6. मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पके हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं। 
7. मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारोंओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।।

Chapter 143

1. हे यहोवा मेरी प्रार्थना सुन; मेरे गिड़गिड़ाने की ओर कान लगा! तू जो सच्चा और धर्मी है, सो मेरी सुन ले, 
2. और अपके दास से मुक मा न चला! क्योंकि कोई प्राणी तेरी दृष्टि में निर्दोष नहीं ठहर सकता।। 
3. शत्रु तो मेरे प्राण का गाहक हुआ है; उस ने मुझे चूर करके मिट्टी में मिलाया है, और मुझे ढेर दिन के मरे हुओं के समान अन्धेरे स्थान में डाल दिया है। 
4. मेरी आत्मा भीतर से व्याकुल हो रही है मेरा मन विकल है।। 
5. मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्भुत कामोंपर ध्यान करता हूं, और तेरे काम को सोचता हूं। 
6. मैं तेरी ओर अपके हाथ फैलाए हूए हूं; सूखी भूमि की नाईं मैं तेरा प्यासा हूं।। 
7. हे यहोवा, फुर्ती करके मेरी सुन ले; क्योंकि मेरे प्राण निकलने ही पर हैं मुझ से अपना मुंह न छिपा, ऐसा न हो कि मैं कबर में पके हुओं के समान हो जाऊं। 
8. अपक्की करूणा की बात मुझे शीघ्र सुना, क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है। जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।। 
9. हे हयोवा, मुझे शत्रुओं से बचा ले; मैं तेरी ही आड़ में आ छिपा हूं। 
10. मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है! तेरा भला आत्मा मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले! 
11. हे यहोवा, मुझे अपके नाम के निमित्त जिला! तू जो धर्मी है, मुझ को संकट से छुड़ा ले! 
12. और करूणा करके मेरे शत्रुओं को सत्यानाश कर, और मेरे सब सतानेवालोंका नाश कर डाल, क्योंकि मैं तेरा दास हूं।।

Chapter 144

1. धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथोंको लड़ने, और युद्ध करने के लिथे तैयार करता है। 
2. वह मेरे लिथे करूणानिधान और गढ़, ऊंचा स्थान और छुड़ानेवाला है, वह मेरी ढ़ाल और शरणस्थान है, जो मेरी प्रजा को मेरे वश में कर देता है।। 
3. हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है, कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है? 
4. मनुष्य तो सांस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।। 
5. हे यहोवा, अपके स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! पहाड़ोंको छू तब उन से धुंआं उठेंगा! 
6. बिजली कड़काकर उनके तितर बितर कर दे, अपके तीर चलाकर उनको घबरा दे! 
7. अपके हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, अर्थात् परदेशियोंके वश से छुड़ा। 
8. उनके मुंह से तो व्यर्थ बातें निकलती हैं, और उनके दहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।। 
9. हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊंगा; मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 
10. तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपके दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है। 
11. तू मुझ को उबार और परदेशियोंके वश से छुड़ा ले, जिन के मुंह से व्यर्थ बातें निकलती हैं, और जिनका दहिना हाथ झूठ का दहिना हाथ है।। 
12. जब हमारे बेटे जवानी के समय पौधोंकी नाईं बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियां उन कोनेवाले पत्थरोंके समान हों, जो मन्दिर के पत्थरोंकी नाईं बनाए जाएं; 
13. जब हमारे खत्ते भरे रहें, और उन में भांति भांति का अन्न धरा जाए, और हमारी भेड़- बकरियोंहमारे मैदानोंमें हजारोंहजार बच्चे जनें; 
14. जब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; जब हमें न विध्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकोंमें रोना- पीटना हो, 
15. तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!

Chapter 145

1. हे मेरे परमेश्वर, हे राजा, मैं तुझे सराहूंगा, और तेरे नाम को सदा सर्वदा धन्य कहता रहूंगा। 
2. प्रति दिन मैं तुझ को धन्य कहा करूंगा, और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूंगा। 
3. यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी बड़ाई अगम है।। 
4. तेरे कामोंकी प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामोंका वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा। 
5. मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्चर्यकर्मोंपर ध्यान करूंगा। 
6. लोग तेरे भयानक कामोंकी शक्ति की चर्चा करेंगे, और मैं तेरे बड़े बड़े कामोंका वर्णन करूंगा। 
7. लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे, और तेरे धर्म का जयजयकार करेंगे।। 
8. यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करूणामय है। 
9. यहोवा सभोंके लिथे भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।। 
10. हे यहोवा, तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, और तेरे भक्त लाग तुझे धन्य कहा करेंगे! 
11. वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; 
12. कि वे आदमियोंपर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। 
13. तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता सब पीढ़ियोंतक बनी रहेगी।। 
14. यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है। 
15. सभोंकी आंखें तेरी ओर लगी रहती हैं, और तू उनको आहार समय पर देता है। 
16. तू अपक्की मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियोंको आहार से तृप्त करता है। 
17. यहोवा अपक्की सब गति में धर्मी और अपके सब कामोंमे करूणामय है। 
18. जिनते यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते हें; उन सभोंके वह निकट रहता है। 
19. वह अपके डरवैयोंकी इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है। 
20. यहोवा अपके सब प्रेमियोंकी तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टोंको सत्यानाश करता है।। 
21. मैं यहोवा की स्तुति करूंगा, और सारे प्राणी उसके पवित्रा नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें।।

Chapter 146

1. याह की स्तुति करो। हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! 
2. मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।। 
3. तुम प्रधानोंपर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। 
4. उसका भी प्राण निकलेगा, वही भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।। 
5. क्या ही धन्य वह है, जिसका सहाथक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है। 
6. वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब का कर्ता है; और वह अपना वचन सदा के लिथे पूरा करता रहेगा। 
7. वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है; और भूखोंको रोटी देता है।। यहोवा बन्धुओं को छुड़ाता है; 
8. यहोवा अन्धोंको आंखें देता है। यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है; यहोवा धर्मियोंसे प्रेम रखता है। 
9. यहोवा परदेशियोंकी रक्षा करता है; और अनाथोंऔर विधवा को तो सम्भालता है; परन्तु दुष्टोंके मार्ग को टेढ़ा मेढ़ा करता है।। 
10. हे सिरयोन, यहोवा सदा के लिथे, तेरा परमेश्वर पीढ़ी पीढ़ी राज्य करता रहेगा। याह की स्तुति करो!

Chapter 147

1. याह की स्तुति करो! क्योंकि अपके परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है; क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करनी मनभावनी है। 
2. यहोवा यरूशलेम को बसा रहा है; वह निकाले हुए इस्राएलियोंको इकट्ठा कर रहा है। 
3. वह खेदित मनवालोंको चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम- पट्टी बान्धता है। 
4. वह तारोंको गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है। 
5. हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है। 
6. यहोवा नम्र लोगोंको सम्भलता है, और दुष्टोंको भूमि पर गिरा देता है।। 
7. धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्वर का भजन गाओ। 
8. वह आकाश को मेघोंसे छा देता है, और पृथ्वी के लिथे मेंह की तैयारी करता है, और पहाड़ोंपर घास उगाता है। 
9. वह पशुओं को और कौवे के बच्चोंको जो पुकारते हैं, आहार देता है। 
10. न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, और न पुरूष के पैरोंसे प्रसन्न होता है; 
11. यहोवा अपके डरवैयोंही से प्रसन्न होता है, अर्थात् उन से जो उसकी करूणा की आशा लगाए रहते हैं।। 
12. हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! हे सिरयोन, अपके परमेश्वर की स्तुति कर! 
13. क्योंकि उस ने तेरे फाटकोंके खम्भोंको दृढ़ किया है; और तेरे लड़के बालोंको आशीष दी है। 
14. और तेरे सिवानोंमें शान्ति देता है, और तुझ को उत्तम से उत्तम गेहूं से तृप्त करता है। 
15. वह पृथ्वी पर अपक्की आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है। 
16. वह ऊन के समान हिम को गिराता है, और राख की नाईं पाला बिखेरता है। 
17. वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है? 
18. वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है। 
19. वह याकूब को अपना वचन, और इस्राएल को अपक्की विधियां और नियम बताता है। 
20. किसी और जाति से उस ने ऐसा बर्ताव नहीं किया; और उसके नियमोंको औरोंने नहीं जाता।। याह की स्तुति करो।

Chapter 148

1. याह की स्तुति करो! यहोवा की स्तुति स्वर्ग में से करो, उसकी स्तुति ऊंचे स्थानोंमें करो! 
2. हे उसके सब दूतों, उसकी स्तुति करो: हे उसकी सब सेना उसकी स्तुति कर! 
3. हे सूर्य और चन्द्रमा उसकी स्तुति करो, हे सब ज्योतिमय तारागण उसकी स्तुति करो! 
4. हे सब से ऊंचे आकाश, और हे आकाश के ऊपरवाले जल, तुम दोनोंउसकी स्तुति करो। 
5. वे यहोवा के नाम की स्तुति करें, क्योंकि उसी ने आज्ञा दी और थे सिरजे गए। 
6. और उस ने उनको सदा सर्वदा के लिथे स्थिर किया है; और ऐसी विधि ठहराई है, जो टलने की नहीं।। 
7. पृथ्वी में से यहोवा की स्तुति करो, हे मगरमच्छोंऔर गहिरे सागर, 
8. हे अग्नि और ओलो, हे हिम और कुहरे, हे उसका वचन माननेवाली प्रचण्ड बयार! 
9. हे पहाड़ोंऔर सब टीलो, हे फलदाई वृक्षोंऔर सब देवदारों! 
10. हे वन- पशुओं और सब घरैलू पशुओं, हे रेंगनेवाले जन्तुओं और हे पक्षियों! 
11. हे पृथ्वी के राजाओं, और राज्य राज्य के सब लोगों, हे हाकिमोंऔर पृथ्वी के सब न्यायियों! 
12. हे जवनोंऔर कुमारियों, हे पुरनियोंऔर बालकों! 
13. यहोवा के नाम की स्तुति करो, क्योंकि केवल उसकी का नाम महान है; उसका ऐश्वर्य पृथ्वी और आकाश के ऊपर है। 
14. और उस ने अपक्की प्रजा के लिथे एक सींग ऊंचा किया है; यह उसके सब भक्तोंके लिथे अर्थात् इस्राएलियोंके लिथे और उसके समीप रहनेवाली प्रजा के लिथे स्तुति करने का विषय है। याह की स्तुति करो।

Chapter 149

1. याह की स्तुति करो! यहोवा के लिथे नया गीत गाओ, भक्तोंकी सभा में उसकी स्तुति गाओ! 
2. इस्राएल अपके कर्त्ता के कारण आनन्दित को, सिरयोन के निवासी अपके राजा के कारण मगन हों! 
3. वे नाचते हुए उसके नाम की स्तुति करें, और डफ और वीणा बजाते हुए उसका भजन गाएं! 
4. क्योंकि यहोवा अपक्की प्रजा से प्रसन्न रहता है; वह नम्र लोगोंका उद्धार करके उन्हें शोभायमान करेगा। 
5. भक्त लोग महिमा के कारण प्रफुल्लित हों; और अपके बिछौनोंपर भी पके पके जयजयकार करें। 
6. उनके कण्ठ से ईश्वर की प्रशंसा हो, और उनके हाथोंमें दोधारी तलवारें रहें, 
7. कि वे अन्यजातियोंसे पलटा ले सकें; और राज्य राज्य के लोगोंको ताड़ना दें, 
8. और उनके राजाओं को सांकलोंसे, और उनके प्रतिष्ठित पुरूषोंको लोहे की बेड़ियोंसे जकड़ रखें, 
9. और उनको ठहराया हुआ दण्ड दें! उसके सब भक्तोंकी ऐसी ही प्रतिष्ठा होगी। याह की स्तुति करो।

Chapter 150

1. याह की स्तुति करो! ईश्वर के पवित्रास्थान में उसकी स्तुति करो; उसकी सामर्थ्य से भरे हुए आकाशमण्डल में उसी की स्तुति करो! 
2. उसके पराक्रम के कामोंके कारण उसकी स्तुति करो; उसकी अत्यन्त बड़ाई के अनुसार उसकी स्तुति करो! 
3. नरसिंगा फूंकते हुए उसकी स्तुति करो; सारंगी और वीणा बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 
4. डफ बजाते और नाचते हुए उसकी स्तुति करो; तारवाले बाजे और बांसुली बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 
5. ऊंचे शब्दवाली झांझ बाजाते हुए उसकी स्तुति करो; आनन्द के महाशब्दवाली झांझ बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 

6. जिते प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!
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