गिनती (Numbers)
Chapter 1
1. इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकल जाने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहिले दिन को, यहोवा ने सीनै के जंगल में मिलापवाले तम्बू में, मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, एक एक पुरूष की गिनती नाम ले लेकर करना;
3. जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के हों, और जो युद्ध करने के योग्य हों, उन सभोंको उनके दलोंके अनुसार तू और हारून गिन ले।
4. और तुम्हारे साय एक एक गोत्र का एक एक पुरूष भी हो जो अपके पितरोंके घराने का मुख्य पुरूष हो।
5. तुम्हारे उन सायियोंके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से शदेऊर का पुत्र एलीसूर;
6. शिमोन के गोत्र में से सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल;
7. यहूदा के गोत्र में से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन;
8. इस्साकार के गोत्र में से सूआ का पुत्र नतनेल;
9. जबूलून के गोत्र में से हेलोन का पुत्र एलीआब;
10. यूसुफवंशियोंमें से थे हैं, अर्यात् एर्पैम के गोत्र में से अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा, ओर मनश्शे के गोत्र में से पदासूर का पुत्र गम्लीएल;
11. बिन्यामीन के गोत्र में से गिदोनी का पुत्र अबीदान;
12. दान के गोत्र में से अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर;
13. आशेर के गोत्र में से ओक्रान का पुत्र पक्कीएल;
14. गाद के गोत्र में से दूएल का पुत्र एल्यासाप;
15. नप्ताली के गोत्र में से एनाम का पुत्र अहीरा।
16. मण्डली में से जो पुरूष अपके अपके पितरोंके गोत्रोंके प्रधान होकर बुलाए गए वे थे ही हैं, और थे इस्त्राएलियोंके हजारोंमें मुख्य पुरूष थे।
17. और जिन पुरूषोंके नाम ऊपर लिखे हैं उनको साय लेकर,
18. मूसा और हारून ने दूसरे महीने के पहिले दिन सारी मण्डली इकट्ठी की, तब इस्त्राएलियोंने अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्यावालोंके नामोंकी गिनती करवा के अपक्की अपक्की वंशावली लिखवाई;
19. जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी यी उसी के अनुसार उस ने सीनै के जंगल में उनकी गणना की।।
20. और इस्त्राएल के पहिलौठे रूबेन के वंश ने जितने पुरूष अपके कुल और अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
21. और रूबेन के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार थे।।
22. और शिमोन के वंश के लोग जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे, और जो युद्ध करने के योग्य थे वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
23. और शिमोन के गोत्र के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ थे।।
24. और गाद के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
25. और गाद के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ थे।।
26. और यहूदा के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
27. और यहूदा के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ थे।।
28. और इस्साकार के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
29. और इस्साकार के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ थे।।
30. और जबूलून वे वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
31. और जबूलून के गोत्र के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ थे।।
32. और यूसुफ के वंश में से एप्रैम के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
33. और एप्रैम गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार थे।।
34. और मनश्शे के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
35. और मनश्शे के गोत्र के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ थे।।
36. और बिन्यामीन के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
37. और बिन्यामीन के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ थे।।
38. और दान के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे अपके अपके नाम से गिने गए:
39. और दान के गोत्र के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ थे।।
40. और आशेर के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उससे अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
41. और आशेर के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े एकतालीस हजार थे।।
42. और नप्ताली के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
43. और नप्ताली के गोत्र के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ थे।।
44. इस प्रकार मूसा और हारून और इस्त्राएल के बारह प्रधानोंने, जो अपके अपके पितरोंके घराने के प्रधान थे, उन सभोंको गिन लिया और उनकी गिनती यही यी।
45. सो जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के होने के कारण युद्ध करने के योग्य थे वे अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
46. और वे सब गिने हुए पुरूष मिलाकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।।
47. इन में लेवीय अपके पितरोंके गोत्र के अनुसार नहीं गिने गए।
48. क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा या,
49. कि लेवीय गोत्र की गिनती इस्त्राएलियोंके संग न करना;
50. परन्तु तू लेवियोंको साझी के तम्बू पर, और उसके कुल सामान पर, निदान जो कुछ उस से सम्बन्ध रखता है उस पर अधिक्कारनेी नियुक्त करना; और कुल सामान सहित निवास को वे ही उठाया करें, और वे ही उस में सेवा टहल भी किया करें, और तम्बू के आसपास वे ही अपके डेरे डाला करें।
51. और जब जब निवास का कूच हो तब तब लेवीय उसको गिरा दें, और जब जब निवास को खड़ा करना हो तब तब लेवीय उसको खड़ा किया करें; और यदि कोई दूसरा समीप आए तो वह मार डाला जाए।
52. और इस्त्राएली अपना अपना डेरा अपक्की अपक्की छावनी में और अपके अपके फण्डे के पास खड़ा किया करें;
53. पर लेवीय अपके डेरे साझी के तम्बू ही की चारोंओर खड़े किया करें, कहीं ऐसा न हो कि इस्त्राएलियोंकी मण्डली पर कोप भड़के; और लेवीय साझी के तम्बू की रझा किया करें।
54. जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं इस्त्राएलियोंने उन्हीं के अनुसार किया।।
Chapter 2
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू की चारोंओर और उसके साम्हने अपके अपके फण्डे और अपके अपके पितरोंके घराने के निशान के समीप अपके डेरे खड़े करें।
3. और जो अपके पूर्व दिशा की ओर जहां सूर्योदय होता है अपके अपके दलोंके अनुसार डेरे खड़े किया करें वे ही यहूदा की छावनीवाले फण्उे के लोग होंगे, और उनका प्रधान अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन होगा,
4. और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ हैं।
5. उनके समीप जो डेरे खड़े किया करें वे इस्साकार के गोत्र के हों, और उनका प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल होगा,
6. और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ हैं।
7. इनके पास जबूलून के गोत्रवाले रहेंगे, और उनका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब होगा,
8. और उनके दल के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ हैं।
9. इस रीति से यहूदा की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख छियासी हजार चार सौ हैं। पहिले थे ही कूच किया करें।।
10. दक्खिन अलंग पर रूबेन की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर होगा,
11. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार हैं।
12. उनके पास जो डेरे खड़े किया करें वे शिमोन के गोत्र के होंगे, और उनका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल होगा,
13. और उनके दल के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ हैं।
14. फिर गाद के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान रूएल का पुत्र एल्यासाप होगा,
15. और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ हैं।
16. रूबेन की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख एक हजार साढ़े चार सौ हैं। दूसरा कूच इनका हो।
17. उनके पीछे और सब छावनियोंके बीचोंबीच लेवियोंकी छावनी समेत मिलापवाले तम्बू का कूच हुआ करे; जिस क्रम से वे डेरे खड़े करें उसी क्रम से वे अपके अपके स्यान पर अपके अपके फण्डे के पास पास चलें।।
18. पच्छिम अलंग पर एप्रैम की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा होगा,
19. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार हैं।
20. उनके समीप मनश्शे के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल होगा,
21. और उनके दल के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ हैं।
22. फिर बिन्यामीन के गोत्र में रहें, और उनका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान होगा,
23. और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ हैं।
24. एप्रैम की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख आठ हजार एक सौ पुरूष हैं। तीसरा कूच इनका हो।
25. उत्तर अलंग पर दान की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर होगा,
26. और उनके दल के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ हैं।
27. और उनके पास जो डेरे खड़े करें वे आशेर के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल होगा,
28. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े इकतालीस हजार हैं।
29. फिर नप्ताली के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा होगा,
30. और उनके दल के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ हैं।
31. और दान की छावनी में जितने गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख सात हजार छ: सौ हैं। थे अपके अपके फण्डे के पास पास होकर सब से पीछे कूच करें।
32. इस्त्राएलियोंमें से जो अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार गिने गए वे थे ही हैं; और सब छावनियोंके जितने पुरूष अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।
33. परन्तु यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी भी उसके अनुसार लेवीय तो इस्त्राएलियोंमें गिने नहीं गए।
34. और जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी इस्त्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार, अपके अपके फण्डे के पास डेरे खड़े करते और कूच भी करते थे।।
Chapter 3
1. जिस समय यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से बातें की उस समय हारून और मूसा की यह वंशावली यी।
2. हारून के पुत्रोंके नाम थे हैं: नादाब जो उसका जेठा या, और अबीहू, एलीआजार और ईतामार;
3. हारून के पुत्र, जो अभिषिक्त याजक थे, और उनका संस्कार याजक का काम करने के लिथे हुआ या उनके नाम थे ही हैं।
4. नादाब और अबीहू जिस समय सीनै के जंगल में यहोवा के सम्मुख ऊपक्की आग ले गए उसी समय यहोवा के साम्हने मर गए थे; और वे पुत्रहीन भी थे। एलीआजर और ईतामार अपके पिता हारून के साम्हने याजक का काम करते रहे।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. लेवी गोत्रवालोंको समीप ले आकर हारून याजक के साम्हने खड़ा कर, कि वे उसकी सेवा टहल करें।
7. और जो कुछ उसकी ओर से और सारी मण्डली की ओर से उन्हें सौंपा जाए उसकी रझा वे मिलापवाले तम्बू के सामहने करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें;
8. वे मिलापवाले तम्बू के कुल सामान की और इस्त्राएलियोंकी सौंपी हुई वस्तुओं की भी रझा करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें।
9. और तू लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंको सौंप दे; और वे इस्त्राएलियोंकी ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों।
10. और हारून और उसके पुत्रोंको याजक के पद पर नियुक्त कर, और वे अपके याजकपद की रझा किया करें; और यदि अन्य मनुष्य समीप आए, तो वह मार डाला जाए।।
11. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
12. सुन इस्त्राएली स्त्रियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती मैं इस्त्राएलियोंमें से लेवियोंको ले लेता हूं; सो लेवीय मेरे ही हों।
13. सब पहिलौठे मेरे हैं; क्योंकि जिस दिन मैं ने मिस्र देश में के सब पहिलौठोंको मारा, उसी दिन मैं ने क्या मनुष्य क्या पशु इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको अपके लिथे पवित्र ठहराया; इसलिथे वे मेरे ही ठहरेंगे; मैं यहोवा हूं।।
14. फिर यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,
15. लेवियोंमें से जितने पुरूष एक महीने वा उस से अधिक अवस्या के होंउनको उनके पितरोंके घरानोंऔर उनके कुलोंके अनुसार गिन ले।
16. यह आज्ञा पाकर मूसा ने यहोवा के कहे के अनुसार उनको गिन लिया।
17. लेवी के पुत्रोंके नाम थे हैं, अर्यात् गेर्शोन, कहात, और मरारी।
18. और गेर्शोन के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् लिब्नी और शिमी।
19. कहात के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल।
20. और मरारी के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् महली और मूशी। थे लेवियोंके कुल अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार हैं।।
21. गेर्शोन से लिब्नियोंऔर शिमियोंके कुल चले; गेर्शोनवंशियोंके कुल थे ही हैं।
22. इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उन सभोंकी गिनती साढ़े सात हजार यी।
23. गेर्शोनवाले कुल निवास के पीछे पच्छिम की ओर अपके डेरे डाला करें;
24. और गेर्शोनियोंके मूलपुरूष से घराने का प्रधान लाएल का पुत्र एल्यासाप हो।
25. और मिलापवाले तम्बू की जो वस्तुएं गेर्शोनवंशियोंको सौंपी जाएं वे थे हों, अर्यात् निवास और तम्बू, और उसका ओहार, और मिलापवाले तम्बू से द्वार का पर्दा,
26. और जो आंगन निवास और वेदी की चारोंओर है उसके पर्दे, और उसके द्वार का पर्दा, और सब डोरियां जो उस में काम आती हैं।।
27. फिर कहात से अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों, और उज्जीएलियोंके कुल चले; कहातियोंके कुल थे ही हैं।
28. उन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उनकी गिनती आठ हजार छ: सौ यी। वे पवित्र स्यान की रझा के उत्तरदायी थे।
29. कहातियोंके कुल निवास की उस अलंग पर अपके डेरे डाला करें जो दक्खिन की ओर है;
30. और कहातवाले कुलोंसे मूलपुरूष के घराने का प्रधान उज्जीएल का पुत्र एलीसापान हो।
31. और जो वस्तुएं उनको सौंपी जाएं वे सन्दूक, मेज़, दीवट, वेदियां, और पवित्रस्यान का वह सामान जिस से सेवा टहल होती है, और पर्दा; निदान पवित्रस्यान में काम में आनेवाला सारा सामान हो।
32. और लेवियोंके प्रधानोंका प्रधान हारून याजक का पुत्र एलीआजार हो, और जो लोग पवित्रस्यान की सौंपी हुई वस्तुओं की रझा करेंगे उन पर वही मुखिया ठहरे।।
33. फिर मरारी से महलियोंऔर मूशियोंके कुल चले; मरारी के कुल थे ही हैं।
34. इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उन सभोंकी गिनती छ: हजार दो सौ यी।
35. और मरारी के कुलोंके मूलपुरूष के घराने का प्रधान अबीहैल का पुत्र सूरीएल हो; थे लोग निवास के उत्तर की ओर अपके डेरे खड़े करें।
36. और जो वस्तुएं मरारीवंशियोंको सौंपी जाएं कि वे उनकी रझा करें, वे निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां, और सारा सामान; निदान जो कुछ उसके बरतने में काम आए;
37. और चारोंओर के आंगन के खम्भे, और उनकी कुसिर्यां, खूंटे और डोरियां हों।
38. और जो मिलापवाले तम्बू के साम्हने, अर्यात् निवास के साम्हने, पूरब की ओर जहां से सूर्योदय होता है, अपके डेरे डाला करें, वे मूसा और हारून और उसके पुत्रोंके डेरे हों, और पवित्रस्यान की रखवाली इस्त्राएलियोंके बदले वे ही किया करें, और दूसरा जो कोई उसके समीप आए वह मार डाला जाए।
39. यहोवा की इस आज्ञा को पाकर एक महीने की वा उस से अधिक अवस्यावाले जितने लेवीय पुरूषोंको मूसा और हारून ने उनके कुलोंके अनुसार गिन लिया, वे सब के सब बाईस हजार थे।।
40. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएलियोंके जितने पहिलौठे पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक है, उन सभोंको नाम ले लेकर गिन ले।
41. और मेरे लिथे इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और इस्त्राएलियोंके पशुओं के सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; मैं यहोवा हूं।
42. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको गिन लिया।
43. और सब पहिलौठे पुरूष जिनकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उनके नामोंकी गिनती बाईस हजार दो सौ तिहत्तर यी।।
44. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
45. इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और उनके पशुओं की सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; और लेवीय मेरे ही हों; मैं यहोवा हूं।
46. और इस्त्राएलियोंके पहिलौठोंमे से जो दो सौ तिहत्तर गिनती में लेवियोंसे अधिक हैं, उनके छुड़ाने के लिथे,
47. पुरूष पीछे पांच शेकेल ले; वे पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से हों, अर्यात् बीस गेरा का शेकेल हो।
48. और जो रूपया उन अधिक पहिलौठोंकी छुडौती का होगा उसे हारून और उसके पुत्रोंको दे देना।
49. और जो इस्त्राएली पहिलौठे लेवियोंके द्वारा छुड़ाए हुओं से अधिक थे उनके हाथ से मूसा ने छुड़ौती का रूपया लिया।
50. और एक हजार तीन सौ पैंसठ शैकेल रूपया पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से वसूल हुआ।
51. और यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने छुड़ाए हुओं का रूपया हारून और उसके पुत्रोंको दे दिया।।
Chapter 4
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. लेवियोंमें से कहातियोंकी, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, गिनती करो,
3. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावालोंकी सेना में, जितने मिलापवाले तम्बू में कामकाज करने को भरती हैं।
4. और मिलापवाले तम्बू में परमपवित्र वस्तुओं के विषय कहातियोंका यह काम होगा,
5. अर्यात् जब जब छावनी का कूच हो तब तब हारून और उसके पुत्र भीतर आकर, बीचवाले पर्दे को उतार के उस से साझीपत्र के सन्दूक को ढंाप दें;
6. तब वे उस पर सूइसोंकी खालोंका ओहार डालें, और उसके ऊपर सम्पूर्ण नीले रंग का कपड़ा डालें, और सन्दूक में डण्डोंको लगाएं।
7. फिर भेंटवाली रोटी की मेज़ पर नीला कपड़ा बिछाकर उस पर परातों, धूपदानों, करवों, और उंडेलने के कटोरोंको रखें; और नित्य की रोटी भी उस पर हो;
8. तब वे उन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसको सुइसोंकी खालोंके ओहार से ढ़ापे, और मेज़ के डण्डोंको लगा दें।
9. फिर वे नीले रंग का कपड़ा लेकर दीपकों, गलतराशों, और गुलदानोंसमेत उजियाला देनेवाले दीवट को, और उसके सब तेल के पात्रोंको जिन से उसकी सेवा टहल होती है ढांपे;
10. तब वे सारे सामान समेत दीवट को सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें।
11. फिर वे सोने की वेदी पर एक नीला कपड़ा बिछाकर उसको सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें।
12. तब वे सेवा टहल के सारे सामान को लेकर, जिस से पवित्रस्यान में सेवा टहल होली है, नीले कपके के भीतर रखकर सूइसोंकी खालोंके ओहार से ढांपे, और डण्डे पर धर दें।
13. फिर वे वेदी पर से सब राख उठाकर वेदी पर बैंजनी रंग का कपड़ा बिछाएं;
14. तब जिस सामान से वेदी पर की सेवा टहल होती है वह सब, अर्यात् उसके करछे, कांटे, फावडिय़ां, और कटोरे आदि, वेदी का सारा सामान उस पर रखें; और उसके ऊपर सूइसोंकी खालोंका ओहार बिछाकर वेदी में डण्डोंको लगाएं।
15. और जब हारून और उसके पुत्र छावनी के कूच के समय पवित्रस्यान और उसके सारे सामान को ढंाप चुकें, तब उसके बाद कहाती उसके उठाने के लिथे आएं, पर किसी पवित्र वस्तु को न छुएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं। कहातियोंके उठाने के लिथे मिलापवाले तम्बू की थे ही वस्तुएं हैं।
16. और जो वस्तुएं हारून याजक के पुत्र एलीजार को रझा के लिथे सौंपी जाएं वे थे हैं, अर्यात् उजियाला देने के लिथे तेल, और सुगन्धित धूप, और नित्य अन्नबलि, और अभिषेक का तेल, और सारे निवास, और उस में की सब वस्तुएं, और पवित्रस्यान और उसके कुल समान।।
17. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
18. कहातियोंके कुलोंके गोत्रियोंको लेवियोंमें से नाश न होने देना;
19. उसके साय ऐसा करो, कि जब वे परमपवित्र वस्तुओं के समीप आएं तब न मरें परन्तु जीवित रहें; अर्यात् हारून और उसके पुत्र भीतर आकर एक एक के लिथे उसकी सेवकाई और उसका भार ठहरा दें,
20. और वे पवित्र वस्तुओं के देखने को झण भर के लिथे भी भीतर आने न पाएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं।।
21. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
22. गेर्शोनियोंकी भी गिनती उनके पितरोंके घरानोंऔर कुलोंके अनुसार कर;
23. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने को सेना में भरती होंउन सभोंको गिन ले।
24. सेवा करने और भार उठाने में गेर्शोनियोंके कुलवालोंकी यह सेवकाई हो;
25. अर्यात् वे निवास के पटों, और मिलापवाले तम्बू और उसके ओहार, और इसके ऊपरवाले सूइसोंकी खालोंके ओहार, और मिलापवाले तम्बू के द्वार के पर्दे,
26. और निवास, और वेदी की चारोंओर के आंगन के पर्दों, और आंगन के द्वार के पर्दे, और उनकी डोरियों, और उन में बरतने के सारे सामान, इन सभोंको वे उठाया करें; और इन वस्तुओं से जितना काम होता है वह सब भी उनकी सेवकाई में आए।
27. और गेर्शोनियोंके वंश की सारी सेवकाई हारून और उसके पुत्रोंके कहने से हुआ करे, अर्यात् जो कुछ उनको उठाना, और जो जो सेवकाई उनको करनी हो, उनका सारा भार तुम ही उन्हें सौपा करो।
28. मिलापवाले तम्बू में गेर्शोनियोंके कुलोंकी यही सेवकाई ठहरे; और उन पर हारून याजक का पुत्र ईतामार अधिक्कारने रखे।।
29. फिर मरारियोंको भी तू उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लें;
30. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवा करने को सेना में भरती हों, उन सभोंको गिन ले।
31. और मिलापवाले तम्बू में की जिन वस्तुओं के उठाने की सेवकाई उनको मिले वे थे हों, अर्यात् निवास के तख्ते, बेड़े, खम्भे, और कुसिर्यां,
32. और चारोंओर आंगन के खम्भे, और इनकी कुसिर्यां, खूंटे, डोरियां, और भांति भांति के बरतने का सारा सामान; और जो जो सामान ढ़ोने के लिथे उनको सौपा जाए उस में से एक एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन दो।
33. मरारियोंके कुलोंकी सारी सेवकाई जो उन्हें मिलापवाले तम्बू के विषय करनी होगी वह यही है; वह हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में रहे।।
34. तब मूसा और हारून और मण्डली के प्रधानोंने कहातियोंके वंश को, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार,
35. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की अवस्या के, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, उन सभोंको गिन लिया;
36. और जो अपके अपके कुल के अनुसार गिने गए वे दो हजार साढ़े सात सौ थे।
37. कहातियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने वाले गिने गए वे इतने ही थे; जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी यी उसी के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।।
38. और गेर्शोनियोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
39. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे,
40. उनकी गिनती उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार दो हजार छ: सौ तीस यी।
41. गेर्शोनियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए वे इतने ही थे; यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।।
42. फिर मरारियोंके कुलोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
43. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे,
44. उनकी गिनती उनके कुलोंके अनुसार तीन हजार दो सौ यी।
45. मरारियोंके कुलोंमें से जिनको मूसा और हारून ने, यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा के द्वारा मिली यी, गिन लिया वे इतने ही थे।।
46. लेवियोंमें से जिनको मूसा और हारून और इस्त्राएली प्रधानोंने उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लिया,
47. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने का बोफ उठाने का काम करने को हाजिर होने वाले थे,
48. उन सभोंकी गिनती आठ हजार पांच सौ अस्सी यी।
49. थे अपक्की अपक्की सेवा और बोफ ढ़ोने के अनुसार यहोवा के कहने पर गए। जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार वे गिने गए।।
Chapter 5
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि वे सब कोढिय़ोंको, और जितनोंके प्रमेह हो, और जितने लोय के कारण अशुद्ध हों, उन सभोंको छावनी से निकाल दें;
3. ऐसोंको चाहे पुरूष होंचाहे स्त्री छावनी से निकालकर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूं, उनके कारण अशुद्ध हो जाए।
4. और इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया, अर्यात् ऐसे लोगोंको छावनी से निकालकर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा को विश्वासघात करे, और वह प्राणी दोषी हो,
7. तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरे मूल में पांचवां अंश बढ़ाकर अपके दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो।
8. परन्तु यदि उस मनुष्य का कोई कुटुम्बी न हो जिसे दोष का बदला भर दिया जाए, तो उस दोष का जो बदला यहोवा को भर दिया जाए वह याजक का हो, और वह उस प्रायश्चित्तवाले मेढ़े से अधिक हो जिस से उसके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए।
9. और जितनी पवित्र की हुई वस्तुएं इस्त्राएली उठाई हुई भेंट करके याजक के पास लाएं, वे उसी की हों;
10. सब मनुष्योंकी पवित्र की हुई वस्तुएं उसी की ठहरें; कोई जो कुछ याजक को दे वह उसका ठहरे।।
11. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
12. इस्त्राएलियोंसे कह, कि यदि किसी मनुष्य की स्त्री कुचाल चलकर उसका विश्वासघात करे,
13. और कोई पुरूष उसके साय कुकर्म करे, परन्तु यह बात उसके पति से छिपी हो और खुली न हो, और वह अशुद्ध हो गई, परन्तु न तो उसके विरूद्ध कोई साझी हो, और न कुकर्म करते पकड़ी गई हो;
14. और उसके पति के मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपके स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; वा उसके मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो;
15. तो वह पुरूष अपक्की स्त्री को याजक के पास ले जाए, और उसके लिथे एपा का दसवां अंश जव का मैदा चढ़ावा करके ले आए; परन्तु उस पर तेल न डाले, न लोबान रखे, क्योंकि वह जलनवाला और स्मरण दिलानेवाला, अर्यात् अधर्म का स्मरण करानेवाला अन्नबलि होगा।
16. तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी करे;
17. और याजक मिट्टी के पात्र में पवित्र जल ले, और निवासस्यान की भूमि पर की धूलि में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे।
18. तब याजक उस स्त्री को यहोवा के साम्हने खड़ी करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथोंपर धर दे। और अपके हाथ में याजक कडुवा जल लिथे रहे जो शाप लगाने का कारण होगा।
19. तब याजक स्त्री को शपय धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरूष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कडुवे जल के गुण से जो शाप का कारण होता है बची रहे।
20. पर यदि तू अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरूष ने तुझ से प्रसंग किया हो,
21. (और याजक उसे शाप देनेवाली शपय धराकर कहे,) यहोवा तेरी जांघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए, और लोग तेरा नाम लेकर शाप और धिक्कार दिया करें;
22. अर्यात् वह जल जो शाप का कारण होता है तेरी अंतडिय़ोंमें जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जांघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन।
23. तब याजक शाप के थे शब्द पुस्तक में लिखकर उस कडुवे जल से मिटाके,
24. उस स्त्री को वह कडुवा जल पिलाए जो शाप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा।
25. और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुंचाए;
26. और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्यात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए।
27. और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपके पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो शाप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जांघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगोंके बीच स्रापित होगा।
28. पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गभिर्णी हो सकेगी।
29. जलन की व्यवस्या यही है, चाहे कोई स्त्री अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो,
30. चाहे पुरूष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ी कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्या पूरी करे।
31. तब पुरूष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपके अधर्म का बोफ आप उठाएगी।।
Chapter 6
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री नाज़ीर की मन्नत, अर्यात् अपके को यहोवा के लिथे न्यारा करने की विशेष मन्नत माने,
3. तब वह दाखमधु आदि मदिरा से न्यारा रहे; वह न दाखमधु का, न और मदिरा का सिरका पीए, और न दाख का कुछ रस भी पीए, वरन दाख न खाए, चाहे हरी हो चाहे सूखी।
4. जितने दिन यह न्यारा रहे उतने दिन तक वह बीज से ले छिलके तक, जो कुछ दाखलता से उत्पन्न होता है, उस में से कुछ न खाए।
5. फिर जितने दिन उस ने न्यारे रहने की मन्नत मानी हो उतने दिन तक वह अपके सिर पर छुरा न फिराए; और जब तक वे दिन पूरे न होंजिन में वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे तब तक वह पवित्र ठहरेगा, और अपके सिर के बालोंको बढ़ाए रहे।
6. जितने दिन वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे उतने दिन तक किसी लोय के पास न जाए।
7. चाहे उसका पिता, वा माता, वा भाई, वा बहिन भी मरे, तौभी वह उनके कारण अशुद्ध न हो; क्योंकि अपके परमेश्वर के लिथे न्यारा रहने का चिन्ह उसके सिर पर होगा।
8. अपके न्यारे रहने के सारे दिनोंमें वह यहोवा के लिथे पवित्र ठहरा रहे।
9. और यदि कोई उसके पास अचानक मर जाए, और उसके न्यारे रहने का जो चिन्ह उसके सिर पर होगा वह अशुद्ध हो जाए, तो वह शुद्ध होने के दिन, अर्यात् सातवें दिन अपके सिर मुंड़ाए।
10. और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास ले जाए,
11. और याजक एक को पापबलि, और दूसरे को होमबलि करके उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, क्योंकि वह लोय के कारण पापी ठहरा है। और याजक उसी दिन उसका सिर फिर पवित्र करे,
12. और वह अपके न्यारे रहने के दिनोंको फिर यहोवा के लिथे न्यारे ठहराए, और एक वर्ष का एक भेड़ का बच्चा दोषबलि करके ले आए; और जो दिन इस से पहिले बीत गए होंवे व्यर्य गिने जाए, क्योंकि उसके न्यारे रहने का चिन्ह अशुद्ध हो गया।।
13. फिर जब नाज़ीर के न्यारे रहने के दिन पूरे हों, उस समय के लिथे उसकी यह व्यवस्या है; अर्यात् वह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुंचाया जाए,
14. और वह यहोवा के लिथे होमबलि करके एक वर्ष का एक निर्दोष भेड़ का बच्चा पापबलि करके, और एक वर्ष की एक निर्दोष भेड़ की बच्ची, और मेलबलि के लिथे एक निर्दोष मेढ़ा,
15. और अखमीरी रोटियोंकी एक टोकरी, अर्यात् तेल से सने हुए मैदे के फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी पपडिय़ां, और उन बलियोंके अन्नबलि और अर्घ; थे सब चढ़ावे समीप ले जाए।
16. इन सब को याजक यहोवा के साम्हने पहुंचाकर उसके पापबलि और होमबलि को चढ़ाए,
17. और अखमीरी रोटी की टोकरी समेत मेढ़े को यहोवा के लिथे मेलबलि करके, और उस मेलबलि के अन्नबलि और अर्घ को भी चढ़ाए।
18. तब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर अपके बालोंको उस आग पर डाल दे जो मेलबलि के नीचे होगी।
19. फिर जब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मुण्डा चुके तब याजक मेढ़े को पकाया हुआ कन्धा, और टोकरी में से एक अखमीरी रोटी, और एक अखमीरी पपक्की लेकर नाज़ीर के हाथोंपर धर दे,
20. और याजक इनको हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाए; हिलाई हुई छाती और उठाई हुई जांघ समेत थे भी याजक के लिथे पवित्र ठहरें; इसके बाद वह नाज़ीर दाखमधु पी सकेगा।
21. नाज़ीर की मन्नत की, और जो चढ़ावा उसको अपके न्यारे होने के कारण यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा उसकी भी यही व्यवस्या है। जो चढ़ावा वह अपक्की पूंजी के अनुसार चढ़ा सके, उस से अधिक जैसी मन्नत उस ने मानी हो, वैसे ही अपके न्यारे रहने की व्यवस्या के अनुसार उसे करना होगा।।
22. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
23. हारून और उसके पुत्रोंसे कह, कि तुम इस्त्राएलियोंको इन वचनोंसे आशीर्वाद दिया करना कि,
24. यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रझा करे:
25. यहोवा तुझ पर अपके मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे:
26. यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शांति दे।
27. इस रीति से मेरे नाम को इस्त्राएलियोंपर रखें, और मैं उन्हें आशीष दिया करूंगा।।
Chapter 7
1. फिर जब मूसा ने निवास को खड़ा किया, और सारे सामान समेत उसका अभिषेक करके उसको पवित्र किया, और सारे सामान समेत वेदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र किया,
2. तब इस्त्राएल के प्रधान जो अपके अपके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष, और गोत्रोंके भी प्रधान होकर गिनती लेने के काम पर नियुक्त थे,
3. वे यहोवा के साम्हने भेंट ले आए, और उनकी भेंट छ: छाई हुई गाडिय़ां और बारह बैल थे, अर्यात् दो दो प्रधान की ओर से एक एक गाड़ी, और एक एक प्रधान की ओर से एक एक बैल; इन्हें वे निवास के साम्हने यहोवा के समीप ले गए।
4. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
5. उन वस्तुओं को तू उन से ले ले, कि मिलापवाले तम्बू के बरतन में काम आएं, सो तू उन्हें लेवियोंके एक एक कुल की विशेष सेवकाई के अनुसार उनको बांट दे।
6. सो मूसा ने वे सब गाडिय़ां और बैल लेकर लेवियोंको दे दिथे।
7. गेर्शोनियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने दो गाडिय़ां और चार बैल दिए;
8. और मरारियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने चार गाडिय़ां और आठ बैल दिए; थे सब हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में किए गए।
9. और कहातियोंको उस ने कुछ न दिया, क्योंकि उनके लिथे पवित्र वस्तुओं की यह सेवकाई यी कि वह उसे अपके कन्धोंपर उठा लिया करें।।
10. फिर जब वेदी का अभिषेक हुआ तब प्रधान उसके संस्कार की भेंट वेदी के आगे समीप ले जाने लगे।
11. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वेदी के संस्कार के लिथे प्रधान लोग अपक्की अपक्की भेंट अपके अपके नियत दिन पर चढ़ाएं।।
12. सो जो पुरूष पहिले दिन अपक्की भेंट ले गया वह यहूदा गोत्रवाले अम्मीनादाब का पुत्र महशोन या;
13. उसकी भेंट यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
14. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
15. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
16. पापबलि के लिथे एक बकरा;
17. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीनादाब के पुत्र महशोन की यही भेंट यी।।
18. और दूसरे दिन इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल भेंट ले आया;
19. वह यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
20. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
21. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
22. पापबलि के लिथे एक बकरा;
23. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूआर के पुत्र नतनेल की यहीं भेंट यी।।
24. और तीसरे दिन जबूलूनियोंका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब यह भेंट ले आया,
25. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
26. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
27. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
28. पापबलि के लिथे एक बकरा;
29. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। हेलोन के पुत्र एलीआब की यहीं भेंट यी।।
30. और चौथे दिन रूबेनियोंका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर यह भेंट ले आया,
31. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
32. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
33. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
34. पापबलि के लिथे एक बकरा;
35. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। शदेऊर के पुत्र एलीसूर की यहीं भेंट यी।।
36. और पांचवें दिन शिमोनियोंका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल यह भेंट ले आया,
37. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
38. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
39. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
40. पापबलि के लिथे एक बकरा;
41. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पंाच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूरीशद्दै के पुत्र शलूमीएल की यही भेंट यी।।
42. और छठवें दिन गादियोंका प्रधान दूएल का पुत्र एल्यासाप यह भेंट ले आया,
43. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
44. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
45. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
46. पापबलि के लिथे एक बकरा;
47. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। दूएल के पुत्र एल्यासाप की यहीं भेंट यी।।
48. और सातवें दिन एप्रैमियोंका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा यह भेंट ले आया,
49. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
50. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
51. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
52. पापबलि के लिथे एक बकरा;
53. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीहूद के पुत्र एलीशामा की यहीं भेंट यी।।
54. और आठवें दिन मनश्शेइयोंका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल यह भेंट ले आया,
55. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सो तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
56. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
57. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
58. पापबलि के लिथे एक बकरा;
59. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेडी के बच्चे। पदासूर के पुत्र गम्लीएल की यहीं भेंट यी।।
60. और नवें दिन बिन्यामीनियोंका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान यह भेंट ले आया,
61. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
62. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
63. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
64. पापबलि के लिथे एक बकरा;
65. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। गिदोनी के पुत्र अबीदान की यही भेंट यी।।
66. और दसवें दिन दानियोंका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर यह भेंट ले आया,
67. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
68. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
69. होमबलि के लिथे बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
70. पापबलि के लिथे एक बकरा;
71. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीशद्दै के पुत्र अहीएजेर की यही भेंट यी।।
72. और ग्यारहवें दिन आशेरियोंका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल यह भेंट ले आया।
73. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
74. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का धूपदान;
75. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
76. पापबलि के लिथे एक बकरा;
77. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। ओक्रान के पुत्र पक्कीएल की यहीं भेंट यी।।
78. और बारहवें दिन नप्तालियोंका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा यह भेंट ले आया,
79. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
80. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
81. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
82. पापबलि के लिथे एक बकरा;
83. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। एनान के पुत्र अहीरा की यही भेंट यी।।
84. वेदी के अभिषेक के समय इस्त्राएल के प्रधानोंकी ओर से उसके संस्कार की भेंट यही हुई, अर्यात् चांदी के बारह परात, चांदी के बारह कटोरे, और सोने के बारह धूपदान।
85. एक एक चांदी का परात एक सौ तीस शेकेल का, और एक एक चांदी का कटोरा सत्तर शेकेल का या; और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से थे सब चांदी के पात्र दो हजार चार सौ शेकेल के थे।
86. फिर धूप से भरे हुए सोने के बारह धूपदान जो पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से दस दस शेकेल के थे, वे सब धूपदान एक सौ बीस शेकेल सोने के थे।
87. फिर होमबलि के लिथे सब मिलाकर बारह बछड़े, बारह मेढ़े, और एक एक वर्ष के बारह भेड़ी के बच्चे, अपके अपके अन्नबलि सहित थे; फिर पापबलि के सब बकरे बारह थे;
88. और मेलबलि के लिथे सब मिला कर चौबीस बैल, और साठ मेढ़े, और साठ बकरे, और एक एक वर्ष के साठ भेड़ी के बच्चे थे। वेदी के अभिषेक होने के बाद उसके संस्कार की भेंट यही हुई।
89. और जब मूसा यहोवा से बातें करने को मिलापवाले तम्बू में गया, तब उस ने प्रायश्चित्त के ढकने पर से, जो साझीपत्र के सन्दूक के ऊपर या, दोनोंकरूबोंके मध्य में से उसकी आवाज सुनी जो उस से बातें कर रहा या; और उस ने ( यहोवा ) उस से बातें की।।
Chapter 8
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. हारून को समझाकर यह कह, कि जब जब तू दीपकोंको बारे तब तब सातोंदीपक का प्रकाश दीवट के साम्हने हो।
3. निदान हारून ने वैसा ही किया, अर्यात् जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार उस ने दीपकोंको बारा, कि वे दीवट के साम्हने उजियाला दे।
4. और दीवट की बनावट यह यी, अर्यात् यह पाए से लेकर फूलोंतक गढ़े हुए सोने का बनाया गया या; जो नमूना यहोवा ने मूसा को दिखलाया या उसी के अनुसार उस ने दीवट को बनाया।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. इस्त्राएलियोंके मध्य में से लेवियोंको अलग लेकर शुद्ध कर।
7. उन्हें शुद्ध करने के लिथे तू ऐसा कर, कि पावन करने वाला जल उन पर छिड़क दे, फिर वे सर्वांग मुण्डन कराएं, और वस्त्र धोएं, और वे अपके को स्वचछ करें।
8. तब वे तेल से सने हुए मैदे के अन्नबलि समेत एक बछड़ा ले लें, और तू पापबलि के लिथे एक दूसरा बछड़ा लेना।
9. और तू लेवियोंको मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप पहुंचाना, और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली को इकट्ठा करना।
10. तब तू लेवियोंको यहोवा के आगे समीप ले आना, और इस्त्राएली अपके अपके हाथ उन पर रखें,
11. तब हारून लेवियोंको यहोवा के साम्हने इस्त्राएलियोंकी ओर से हिलाई हुई भेंट करके अर्पण करे, कि वे यहोवा की सेवा करनेवाले ठहरें।
12. और लेवीय अपके अपके हाथ उन बछड़ोंके सिरोंपर रखें; तब तू लेवियोंके लिथे प्रायश्चित्त करने को एक बछड़ा पापबलि और दूसरा होमबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाना।
13. और लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंके सम्मुख खड़ा करना, और उनको हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा को अपर्ण करना।
14. और उन्हें इस्त्राएलियोंमें से अलग करना, सो वे मेरे ही ठहरेंगे।
15. और जब तू लेवियोंको शुद्ध करके हिलाई हुई भेंट के लिथे अर्पण कर चुके, उसके बाद वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी सेवा टहल करने के लिथे अन्दर आया करें।
16. क्योंकि वे इस्त्राएलियोंमे से मुझे पूरी रीति से अर्पण किए हुए हैं; मै ने उनको सब इस्त्राएलियोंमें से एक एक स्त्री के पहिलौठे की सन्ती अपना कर लिया है।
17. इस्त्राएलियोंके पहिलौठे, चाहे मनुष्य के होंचाहे पशु के, सब मेरे हैं; क्योंकि मैं ने उन्हें उस समय अपके लिथे पवित्र ठहराया जब मैं ने मिस्र देश के सब पहिलौठोंको मार डाला।
18. और मैं ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंके बदले लेवियोंको लिया है।
19. उन्हे लेकर मै ने हारून और उसके पुत्रोंको इस्त्राएलियोंमें से दान करके दे दिया है, कि वे मिलापवाले तम्बू में इस्त्राएलियोंके निमित्त सेवकाई और प्रायश्चित्त किया करें, कहीं ऐसा न हो कि जब इस्त्राएली पवित्रस्यान के समीप आएं तब उन पर कोई महाविपत्ति आ पके।
20. लेवियोंके विषय यहोवा की यह आज्ञा पाकर मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली ने उनके साय ठीक वैसा ही किया।
21. लेवियोंने तो अपके को पाप से पावन किया, और अपके वोंको धो डाला; और हारून ने उन्हें यहोवा के साम्हने हिलाई हुई भेंट के निमित्त अर्पण किया, और उन्हें शुद्ध करने को उनके लिथे प्रायश्चित्त भी किया।
22. और उसके बाद लेवीय हारून और उसके पुत्रोंके साम्हने मिलापवाले तम्बू में अपक्की अपक्की सेवकाई करने को गए; और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को लेवियोंके विषय में दी यी उसी के अनुसार वे उन से व्यवहार करने लगे।।
23. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
24. जो लेवियोंको करना है वह यह है, कि पच्चक्कीस वर्ष की अवस्या से लेकर उस से अधिक आयु में वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी काम करने के लिथे भीतर उपस्यित हुआ करें;
25. और जब पचास वर्ष के होंतो फिर उस सेवा के लिथे न आए और न काम करें;
26. परन्तु वे अपके भाई बन्धुओं के साय मिलापवाले तम्बू के पास रझा का काम किया करें, और किसी प्रकार की सेवकाई न करें। लेवियोंको जो जो काम सौंपे जाएं उनके विषय तू उन से ऐसा ही करना।।
Chapter 9
1. इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के दूसरे वर्ष के पहिले महीने में यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,
2. इस्त्राएली फसह नाम पर्ब्ब को उसके नियत समय पर माना करें।
3. अर्यात् इसी महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय तुम लोग उसे सब विधियोंऔर नियमोंके अनुसार मानना।
4. तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फसह मानने के लिथे कह दिया।
5. और उन्होंने पहले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय सीनै के जंगल में फसह को माना; और जो जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियोंने किया।
6. परन्तु कितने लोग किसी मनुष्य की लोय के द्वारा अशुद्ध होने के कारण उस दिन फसह को न मान सके; वे उसी दिन मूसा और हारून के समीप जाकर मूसा से कहने लगे,
7. हम लोग एक मनुष्य की लोय के कारण अशुद्ध हैं; परन्तु हम क्योंरूके रहें, और इस्त्राएलियोंके संग यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर क्योंन चढ़ाएं?
8. मूसा ने उन से कहा, ठहरे रहो, मै सुन लूं कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देता है।
9. यहोवा ने मूसा से कहा,
10. इस्त्राएलियोंसे कह, कि चाहे तुम लोग चाहे तुम्हारे वंश में से कोई भी किसी लोय के कारण अशुद्ध हो, वा दूर की यात्रा पर हो, तौभी वह यहोवा के लिथे फसह को माने।
11. वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय मानें; और फसह के बलिपशु के मांस को अखमीरी रोटी और कडुए सागपात के साय खाएं।
12. और उस में से कुछ भी बिहान तक न रख छोड़े, और न उसकी कोई हड्डी तोड़े; वे उस पर्ब्ब को फसह की सारी विधियोंके अनुसार मानें।
13. परन्तु जो मनुष्य शुद्ध हो और यात्रा पर न हो, परन्तु फसह के पर्ब्ब को न माने, वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए, उस मनुष्य को यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर न ले आने के कारण अपके पाप का बोफ उठाना पकेगा।
14. और यदि कोई परदेशी तुम्हारे साय रहकर चाहे कि यहोवा के लिथे फसह माने, तो वह उसी विधि और नियम के अनुसार उसको माने; देशी और परदेशी दोनोंके लिथे तुम्हारी एक ही विधि हो।।
15. जिस दिन निवास जो साझी का तम्बू भी कहलाता है खड़ा किया गया, उस दिन बादल उस पर छा गया; और सन्ध्या को वह निवास पर आग सा दिखाई दिया और भोर तक दिखाई देता रहा।
16. और नित्य ऐसा ही हुआ करता या; अर्यात् दिन को बादल छाया रहता, और रात को आग दिखाई देती यी।
17. और जब जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता तब इस्त्राएली प्रस्यान करते थे; और जिस स्यान पर बादल ठहर जाता वहीं इस्त्राएली अपके डेरे खड़े करते थे।
18. यहोवा की आज्ञा से इस्त्राएली कूच करते थे, और यहोवा ही की आज्ञा से वे डेरे खड़े भी करते थे; और जितने दिन तक वह बादल निवास पर ठहरा रहता उतने दिन तक वे डेरे डाले पके रहते थे।
19. और जब जब बादल बहुत दिन निवास पर छाया रहता तब इस्त्राएली यहोवा की आज्ञा मानते, और प्रस्यान नहीं करते थे।
20. और कभी कभी वह बादल योड़े ही दिन तक निवास पर रहता, और तब भी वे यहोवा की आज्ञा से डेरे डाले पके रहते थे और फिर यहोवा की आज्ञा ही से प्रस्यान करते थे।
21. और कभी कभी बादल केवल सन्ध्या से भोर तक रहता; और जब वह भोर को उठ जाता या तब वे प्रस्यान करते थे, और यदि वह रात दिन बराबर रहता तो जब बादल उठ जाता तब ही वे प्रस्यान करते थे।
22. वह बादल चाहे दो दिन, चाहे एक महीना, चाहे वर्ष भर, जब तक निवास पर ठहरा रहता तब तक इस्त्राएली अपके डेरोंमें रहते और प्रस्यान नहीं करते थे; परन्तु जब वह उठ जाता तब वे प्रस्यान करते थे।
23. यहोवा की आज्ञा से वे अपके डेरें खड़े करते, और यहोवा ही की आज्ञा से वे प्रस्यान करते थे; जो आज्ञा यहोवा मूसा के द्वारा देता या उसको वे माना करते थे।।
Chapter 10
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. चांदी की दो तुरहियां गढ़के बनाई जाएं; तू उनको मण्डली के बुलाने, और छावनियोंके प्रस्यान करने में काम में लाना।
3. और जब वे दोनोंफंूकी जाएं, तब सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए।
4. और यदि एक ही तुरही फूंकी जाए, तो प्रधान लोग जो इस्त्राएल के हजारोंके मुख्य पुरूष हैं तेरे पास इकट्ठे हो जाएं।
5. जब तुम लोग सांस बान्धकर फूंको, तो पूरब दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो।
6. और जब तुम दूसरी बेर सांस बान्धकर फूंको, तब दक्खिन दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो। उनके प्रस्यान करने के लिथे वे सांस बान्धकर फूंकें।
7. और जब लोगोंको इकट्ठा करके सभा करनी हो तब भी फूंकना परन्तु सांस बान्धकर नहीं।
8. और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे उन तुरहियोंको फूंका करें। यह बात तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी के लिथे सर्वदा की विधि रहे।
9. और जब तुम अपके देश में किसी सतानेवाले बैरी से लड़ने को निकलो, तब तुरहियोंको सांस बान्धकर फूंकना, तब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को तुम्हारा स्मरण आएगा, और तुम अपके शत्रुओं से बचाए जाओगे।
10. और अपके आनन्द के दिन में, और अपके नियत पर्ब्बोंमें, और महीनोंके आदि में, अपके होमबलियोंऔर मेलबलियोंके साय उन तुरहियोंको फूंकना; इस से तुम्हारे परमेश्वर को तुम्हारा स्मरण आएगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
11. और दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साझी के निवास पर से उठ गया,
12. तब इस्त्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्यान करके निकले; और बादल पारान नाम जंगल में ठहर गया।
13. उनका प्रस्यान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी आरम्भ हुआ।
14. और सब से पहले तो यहूदियोंकी छावनी के फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे दल बान्धकर चले; और उन का सेनापति अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन या।
15. और इस्साकारियोंके गोत्र का सेनापति सूआर का पुत्र नतनेल या।
16. और जबूलूनियोंके गोत्र का सेनापति हेलोन का पुत्र एलीआब या।
17. तब निवास उतारा गया, और गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने जो निवास को उठाते थे प्रस्यान किया।
18. फिर रूबेन की छावनी फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्र एलीशूर या।
19. और शिमोनियोंके गोत्र का सेनापति सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल या।
20. और गादियोंके गोत्र का सेनापति दूएल का पुत्र एल्यासाप या।
21. तब कहातियोंने पवित्र वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्यान किया, और उनके पहुंचने तक गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने निवास को खड़ा कर दिया।
22. फिर एप्रैमियोंकी छावनी के फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा या।
23. और मनश्शेइयोंके गोत्र को सेनापति पदासूर का पुत्र गम्लीएल या।
24. और बिन्यामीनियोंके गोत्र का सेनापति गिदोनी का पुत्र अबीदान या।
25. फिर दानियोंकी छावनी जो सब छावनियोंके पीछे यी, उसके फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे भी दल बना कर चले; और उनका सेनापति अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर या।
26. और आशेरियोंके गोत्र का सेनापति ओक्रान का पुत्र पक्कीएल या।
27. और नप्तालियोंके गोत्र का सेनापति एनान का पुत्र अहीरा या।
28. इस्त्राएली इसी प्रकार अपके अपके दलोंके अनुसार प्रस्यान करते, और आगे बढ़ा करते थे।
29. और मूसा ने अपके ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्र होबाब से कहा, हम लोग उस स्यान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, कि मैं उसे तुम को दूंगा; सो तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्त्राएल के विषय में भला ही कहा है।
30. होबाब ने उसे उत्तर दिया, कि मैं नहीं जाऊंगा; मैं अपके देश और कुटुम्बियोंमें लौट जाऊंगा।
31. फिर मूसा ने कहा, हम को न छोड़, क्योंकि जंगल में कहां कहां डेरा खड़ा करना चाहिथे, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिथे आंखोंका काम देना।
32. और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे।।
33. फिर इस्त्राएलियोंने यहोवा के पर्वत से प्रस्यान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनोंदिनोंके मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिथे विश्रम का स्यान ढूंढ़ता हुआ उनके आगे आगे चलता रहा।
34. और जब वे छावनी के स्यान से प्रस्यान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता या।
35. और जब जब सन्दूक का प्रस्यान होता या तब तब मूसा यह कहा करता या, कि हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तित्तर बित्तर हो जाएं, और तेरे बैरी तेरे साम्हने से भाग जाएं।
36. और जब जब वह ठहर जाता या तब तब मूसा कहा करता या, कि हे यहोवा, हजारोंफार इस्त्राएलियोंमें लौटकर आ जा।।
Chapter 11
1. फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी।
2. तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्यना की, तब वह आग बुफ गई,
3. और उस स्यान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी यी।।
4. फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साय यी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा।
5. हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी;
6. परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।
7. मन्ना तो धनिथे के समान या, और उसका रंग रूप मोती का सा या।
8. लोग इधर उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा या।
9. और रात को छावनी में ओस पड़ती यी तब उसके साय मन्ना भी गिरता या।
10. और मूसा ने सब घरानोंके आदमियोंको अपके अपके डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ।
11. तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपके दास से यह बुरा व्यवहार क्योंकरता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगोंका भार मुझ पर डाला है?
12. क्या थे सब लोग मेरे ही कोख में पके थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपक्की गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगोंको अपक्की गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपय तू ने उनके पूर्वजोंसे खाई है?
13. मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगोंको दूं? थे तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे।
14. मैं अकेला इन सब लोगोंका भार नहीं सम्भाल सकता, कयोंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है।
15. और जो तुझे मेरे साय यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपक्की दुर्दशा न देखने पाऊं।।
16. यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियोंमें से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साय यहां खड़े हों।
17. तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ लेकर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगोंका भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पकेगा।
18. और लोगोंसे कह, कल के लिथे अपके को पवित्र करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना।
19. फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं,
20. परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नयनोंसे निकलने न लगे और तुम को उस से घृणा न हो जाए, कयोंकि तुम लोगोंने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मिस्र से क्योंनिकल आए?
21. फिर मूसा ने कहा, जिन लोगोंके बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे।
22. क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिथे मारे जाए, कि उनको मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिथे इकट्ठी की जाएं, कि उनको मांस मिले?
23. यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।
24. तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगोंको यहोवा की बातें कह सुनाई; और उनके पुरनियोंमें से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारोंओर खड़े किए।
25. तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उस ने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में यी उस में से लेकर उन सत्तर पुरनियोंमें समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की।
26. परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद या, उन में भी आत्मा आई; थे भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिथे गथे थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे।
27. तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं।
28. तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरोंमें से या, उस ने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।
29. मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभोंमें समवा देता!
30. तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियोंसमेत छावनी में चला गया।
31. तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारोंओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए।
32. और लोगोंने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरोंको बटोरते रहे; जिस ने कम से कम बटोरा उस ने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारोंओर फैला दिया।
33. मांस उनके मुंह ही में या, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।
34. और उस स्यान का नाम किब्रोयत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगोंने कामुकता की यी उनको वहां मिट्टी दी गई।
35. फिर इस्त्राएली किब्रोयत्तावा से प्रस्यान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे।।
Chapter 12
1. मूसा ने तो एक कूशी स्त्री के साय ब्याह कर लिया या। सो मरियम और हारून उसकी उस ब्याहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे;
2. उन्होंने कहा, क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साय बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं? उनकी यह बात यहोवा ने सुनी।
3. मूसा तो पृय्वी भर के रहने वाले मनुष्योंसे बहुत अधिक नम्र स्वभाव का या।
4. सो यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मरियम से कहा, तुम तीनोंमिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ। तब वे तीनोंनिकल आए।
5. तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा होकर हारून और मरियम को बुलाया; सो वे दोनोंउसके पास निकल आए।
6. तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपके आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा।
7. परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानोंमे विश्वास योग्य है।
8. उस से मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यझ होकर बातें करता हूं; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। सो तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्योंनहीं डरे?
9. तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया;
10. तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है।
11. तब हारून मूसा से कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हम दोनोंने जो मूर्खता की वरन पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे।
12. और मरियम को उस मरे हुए के समान न रहने दे, जिसकी देह अपक्की मां के पेट से निकलते ही अधगली हो।
13. सो मूसा ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, हे ईश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर।
14. यहोवा ने मूसा से कहा, यदि उसका पिता उसके मुंह पर यूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? सो वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए।
15. सो मरियम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मरियम फिर आने न पाई तब तक लोगोंने प्रस्यान न किया।
16. उसके बाद उन्होंने हसेरोत से प्रस्यान करके पारान नाम जंगल में अपके डेरे खड़े किए।।
Chapter 13
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियोंको देता हूं उसका भेद लेने के लिथे पुरूषोंको भेज; वे उनके पितरोंके प्रति गोत्र का एक प्रधान पुरूष हों।
3. यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषोंको पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियोंके प्रधान थे।
4. उनके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से जककूर का पुत्र शम्मू;
5. शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात;
6. यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब;
7. इस्साकार के गोत्र में से योसेप का पुत्र यिगाल;
8. एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे;
9. बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती;
10. जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल;
11. यूसुफ वंशियोंमें, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी;
12. दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल;
13. आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर;
14. नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी;
15. गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल।
16. जिन पुरूषोंको मूसा ने देश का भेद लेने के लिथे भेजा या उनके नाम थे ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम उस ने यहोशू रखा।
17. उन को कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, इधर से, अर्यात् दझिण देश होकर जाओ,
18. और पहाड़ी देश में जाकर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उस में बसे हुए लोगोंको भी देखो कि वे बलवान् हैं वा निर्बल, योड़े हैं वा बहुत,
19. और जिस देश में वे बसे हुए हैं सो कैसा है, अच्छा वा बुरा, और वे कैसी कैसी बस्तियोंमें बसे हुए हैं, और तम्बुओं में रहते हैं वा गढ़ वा किलोंमें रहते हैं,
20. और वह देश कैसा है, उपजाऊ है वा बंजर है, और उस में वृझ हैं वा नहीं। और तुम हियाव बान्धे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना। वह समय पहली पक्की दाखोंका या।
21. सो वे चल दिए, और सीन नाम जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया।
22. सो वे दझिण देश होकर चले, और हेब्रोन तक गए; वहां अहीमन, शेशै, और तल्मै नाम अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन तो मिस्र के सोअन से सात वर्ष पहिले बसाया गया या।
23. तब वे एशकोल नाम नाले तक गए, और वहां से एक डाली दाखोंके गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उस एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारोंऔर अंजीरोंमें से भी कुछ कुछ ले आए।
24. इस्त्राएली वहां से जो दाखोंका गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्यान का नाम एशकोल नाला रखा गया।
25. चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद लेकर लौट आए।
26. और पारान जंगल के कादेश नाम स्यान में मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के पास पहुंचे; और उनको और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उनको दिखाए।
27. उन्होंने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, कि जिस देश में तू ने हम को भेजा या उस में हम गए; उस में सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है।
28. परन्तु उस देश के निवासी बलवान् हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हम ने वहां अनाकवंशियोंको भी देखा।
29. दझिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं।
30. पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगोंको चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।
31. पर जो पुरूष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, उन लोगोंपर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।
32. और उन्होंने इस्त्राएलियोंके साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया या यह कहकर निन्दा भी की, कि वह देश जिसका भेद लेने को हम गथे थे ऐसा है, जो अपके निवासिक्कों निगल जाता है; और जितने पुरूष हम ने उस में देखे वे सब के सब बड़े डील डौल के हैं।
33. फिर हम ने वहां नपीलोंको, अर्यात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियोंको देखा; और हम अपक्की दृष्टि में तो उनके साम्हने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।।
Chapter 14
1. तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे।
2. और सब इस्त्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उस ने कहने लगी, कि भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! वा इस जंगल ही में मर जाते!
3. और यहोवा हम को उस देश में ले जाकर क्योंतलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चलें जाएंगे; क्या हमारे लिथे अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएं?
4. फिर वे आपस में कहने लगे, आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मिस्र को लौट चलें।
5. तब मूसा और हारून इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के साम्हने मुंह के बल गिरे।
6. और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब, जो देश के भेद लेनेवालोंमें से थे, अपके अपके वस्त्र फाड़कर,
7. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कहने लगे, कि जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है।
8. यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमे दे देगा।
9. केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरूद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगोंसे डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।
10. तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पत्यरवाह करो। तब यहोवा का तेज सब इस्त्राएलियोंपर प्रकाशमान हुआ।।
11. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्चर्यकर्म देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे?
12. मैं उन्हें मरी से मारूंगा, और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूंगा, और तुझ से एक जाति उपजाऊंगा जो उन से बड़ी और बलवन्त होगी।
13. मूसा ने यहोवा से कहा, तब तो मिस्री जिनके मध्य में से तू अपक्की सामर्य्य दिखाकर उन लोगोंको निकाल ले आया है यह सुनेंगे,
14. और इस देश के निवासिक्कों कहेंगे। उन्होंने तो यह सुना है, कि तू जो यहोवा है इन लोगोंके मध्य में रहता है; और प्रत्यझ दिखाई देता है, और तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और तू दिन को बादल के खम्भे में, और रात को अग्नि के खम्भे में होकर इनके आगे आगे चला करता है।
15. इसलिथे यदि तू इन लोगोंको एक ही बार में मार डाले, तो जिन जातियोंने तेरी कीत्तिर् सुनी है वे कहेंगी,
16. कि यहोवा उन लोगोंको उस देश में जिसे उस ने उन्हें देने की शपय खाई यी पहुंचा न सका, इस कारण उस ने उन्हें जंगल में घात कर डाला है।
17. सो अब प्रभु की सामर्य्य की महिमा तेरे इस कहने के अनुसार हो,
18. कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करूणामय है, और अधर्म और अपराध का झमा करनेवाला है, परन्तु वह दोषी को किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराएगा, और पूर्वजोंके अधर्म का दण्ड उनके बेटों, और पोतों, और परपोतोंको देता है।
19. अब इन लोगोंके अधर्म को अपक्की बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से लेकर यहां तक झमा करता रहा है वैसे ही अब भी झमा कर दे।
20. यहोवा ने कहा, तेरी बिनती के अनुसार मैं झमा करता हूं;
21. परन्तु मेरे जीवन की शपय सचमुच सारी पृय्वी यहोवा की महिमा से परिपूर्ण हो जाएगी;
22. उन सब लोगोंने जिन्होंने मेरी महिमा मिस्र देश में और जंगल में देखी, और मेरे किए हुए आश्चर्यकर्मोंको देखने पर भी दस बार मेरी पक्कीझा की, और मेरी बातें नहीं मानी,
23. इसलिथे जिस देश के विषय मैं ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाई, उसको वे कभी देखने न पाएंगे; अर्यात् जितनोंने मेरा अपमान किया है उन में से कोई भी उसे देखने न पाएगा।
24. परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालिब के साय और ही आत्मा है, और उस ने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिस में वह हो आया है पहुंचाऊंगा, और उसका वंश उस देश का अधिक्कारनेी होगा।
25. अमालेकी और कनानी लोग तराई में रहते हैं, सो कल तुम घूमकर प्रस्यान करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल में जाओ।।
26. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
27. यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं? इस्त्राएली जो मुझ पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, उनका यह बुड़बुड़ाना मैं ने तो सुना है।
28. सो उन से कह, कि यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की शपय जो बातें तुम ने मेरे सुनते कही हैं, नि:सन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साय व्यवहार करूंगा।
29. तुम्हारी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्या के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे,
30. उस में से यपुन्ने के पुत्र कालिब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपय खाई है कि तुम को उस में बसाऊंगा।
31. परन्तु तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय तुम ने कहा है, कि थे लूट में चले जाएंगे, उनको मैं उस देश में पहुंचा दूंगा; और वे उस देश को जान लेंगे जिस को तुम ने तुच्छ जाना है।
32. परन्तु तुम लोगोंकी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी।
33. और जब तक तुम्हारी लोथें जंगल में न गल जाएं तक तक, अर्यात् चालीस वर्ष तक, तुम्हारे बालबच्चे जंगल में तुम्हारे व्यभिचार का फल भोगते हुए चरवाही करते रहेंगे।
34. जितने दिन तुम उस देश का भेद लेते रहे, अर्यात् चालीस दिन उनकी गिनती के अनुसार, दिन पीछे उस वर्ष, अर्यात् चालीस वर्ष तक तुम अपके अधर्म का दण्ड उठाए रहोगे, तब तुम जान लोगे कि मेरा विरोध क्या है।
35. मैं यहोवा यह कह चुका हूं, कि इस बुरी मण्डली के लोग जो मेरे विरूद्ध इकट्ठे हुए हैं उसी जंगल में मर मिटेंगे; और नि:सन्देह ऐसा ही करूंगा भी।
36. तब जिन पुरूषोंको मूसा ने उस देश के भेद लेने के लिथे भेजा या, और उन्होंने लौटकर उस देश की नामधराई करके सारी मण्डली को कुड़कुड़ाने के लिथे उभारा या,
37. उस देश की वे नामधराई करनेवाले पुरूष यहोवा के मारने से उसके साम्हने मर गथे।
38. परन्तु देश के भेद लेनेवाले पुरूषोंमें से नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब दोनोंजीवित रहे।
39. तब मूसा ने थे बातें सब इस्त्राएलियोंको कह सुनाई और वे बहुत विलाप करने लगे।
40. और वे बिहान को सवेरे उठकर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम ने पाप किया है; परन्तु अब तैयार हैं, और उस स्यान को जाएंगे जिसके विषय यहोवा ने वचन दिया या।
41. तब मूसा ने कहा, तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्योंकरते हो? यह सुफल न होगा।
42. यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ो, नहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे।
43. वहां तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, सो तुम तलवार से मारे जाओगे; तुम यहोवा को छोड़कर फिर गए हो, इसलिथे वह तुम्हारे संग नहीं रहेगा।
44. परन्तु वे ढिठाई करके पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक, और मूसा, छावनी से न हटे।
45. अब अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।।
Chapter 15
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम अपके निवास के देश में पहुंचों, जो मैं तुम्हे देता हूं,
3. और यहोवा के लिथे क्या होमबलि, क्या मेलबलि, कोई हव्य चढ़ावो, चाहे वह विशेष मन्नत पूरी करने का हो चाहे स्वेच्छाबलि का हो, चाहे तुम्हारे नियत समयोंमें का हो, या वह चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरियोंमें का हो, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो;
4. तब उस होमबलि वा मेलबलि के संग भेड़ के बच्चे पीछे यहोवा के लिथे चौयाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना,
5. और चौयाई हिन दाखमधु अर्घ करके देना।
6. और मेढ़े पीछे तिहाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना;
7. और उसका अर्घ यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला तिहाई दिन दाखमधु देना।
8. और जब तू यहोवा को होमबलि वा किसी विशेष मन्नत पूरी करने के लिथे बलि वा मेलबलि करके बछड़ा चढ़ाए,
9. तब बछड़े का चढ़ानेवाला उसके संग आध हिन तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाए।
10. और उसका अर्घ आध हिन दाखमधु चढ़ाए, वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य होगा।
11. एक एक बछड़े, वा मेढ़े, वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी के बच्चे के साय इसी रीति चढ़ावा चढ़ाया जाए।
12. तुम्हारे बलिपशुओं की जितनी गिनती हो, उसी गिनती के अनुसार एक एक के साय ऐसा ही किया करना।
13. जितने देशी होंवे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाते समय थे काम इसी रीति से किया करें।
14. और यदि कोई परदेशी तुम्हारे संग रहता हो, वा तुम्हारी किसी पीढ़ी में तुम्हारे बीच कोई रहनेवाला हो, और वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाना चाहे, तो जिस प्रकार तुम करोगे उसी प्रकार वह भी करे।
15. मण्डली के लिथे, अर्यात् तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशी दोनोंके लिथे एक ही विधि हो; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह सदा की विधि ठहरे, कि जैसे तुम हो वैसे ही परदेशी भी यहोवा के लिथे ठहरता है।
16. तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशियोंके लिथे एक ही व्यवस्या और एक ही नियम है।।
17. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
18. इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, कि जब तुम उस देश में पहुंचो जहां मैं तुम को लिथे जाता हूं,
19. और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो।
20. अपके पहिले गूंधे हुए आटे की एक पपक्की उठाई हुई भेंट करके यहोवा के लिथे चढ़ाना; जैसे तुम खलिहान में से उठाई हुई भेंट चढ़ाओगे वैसे ही उसको भी उठाया करना।
21. अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके पहिले गूंधे हुए आटे में से यहोवा को उठाई हुई भेंट दिया करना।।
22. फिर जब तुम इन सब आज्ञाओं में से जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया है किसी का उल्लंघन भूल से करो,
23. अर्यात् जिस दिन से यहोवा आज्ञा देने लगा, और आगे की तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में उस दिन से उस ने जितनी आज्ञाएं मूसा के द्वारा दी हैं,
24. उस में यदि भूल से किया हुआ पाप मण्डली के बिना जाने हुआ हो, तो सारी मण्डली यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला होमबलि करके एक बछड़ा, और उसके संग नियम के अनुसार उसका अन्नबलि और अर्घ चढ़ाए, और पापबलि करके एक बकरा चढ़ाए।
25. जब याजक इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के लिथे प्रायश्चित्त करे, और उनकी झमा की जाएगी; क्योंकि उनका पाप भूल से हुआ, और उन्होंने अपक्की भूल के लिथे अपना चढ़ावा, अर्यात् यहोवा के लिथे हव्य और अपना पापबलि उसके साम्हने चढ़ाया।
26. सो इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली का, और उसके बीच रहनेवाले परदेशी का भी, वह पाप झमा किया जाएगा, क्योंकि वह सब लोगोंके अनजान में हुआ।
27. फिर यदि कोई प्राणी भूल से पाप करे, तो वह एक वर्ष की एक बकरी पापबलि करके चढ़ाए।
28. और याजक भूल से पाप करनेवाले प्राणी के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; सो इस प्रायश्चित्त के कारण उसका वह पाप झमा किया जाएगा।
29. जो कोई भूल से कुछ करे, चाहे वह परदेशी होकर रहता हो, सब के लिथे तुम्हारी एक ही व्यवस्या हो।
30. परन्तु क्या देशी क्या परदेशी, जो प्राणी ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।
31. वह जो यहोवा का वचन तुच्छ जानता है, और उसकी आज्ञा का टालनेवाला है, इसलिथे वह प्राणी निश्चय नाश किया जाए; उसका अधर्म उसी के सिर पकेगा।।
32. जब इस्त्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनोंएक मनुष्य विश्रम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला।
33. और जिनको वह लकड़ी बीनता हुआ मिला, वे उसको मूसा और हारून, और सारी मण्डली के पास ले गए।
34. उन्होंने उसको हवालात में रखा, क्योंकि ऐसे मनुष्य से क्या करना चाहिथे वह प्रकट नहीं किया गया या।
35. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पत्यरवाह करें।
36. सो जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी उसी के अनुसार सारी मण्डली के लोगोंने उसको छावनी से बाहर ले जाकर पत्यरवाह किया, और वह मर गया।
37. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
38. इस्त्राएलियोंसे कह, कि अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके वोंके कोर पर फालर लगाया करना, और एक एक कोर की फालर पर एक नीला फीता लगाया करना;
39. और वह तुम्हारे लिथे ऐसी फालर ठहरे, जिस से जब जब तुम उसे देखो तब तब यहोवा की सारी आज्ञाएं तुम हो स्मरण आ जाएं; और तुम उनका पालन करो, और तुम अपके अपके मन और अपक्की अपक्की दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो।
40. परन्तु तुम यहोवा की सब आज्ञाओं को स्मरण करके उनका पालन करो, और अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र बनो।
41. मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हे मिस्र देश से निकाल ले आया कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
Chapter 16
1. कोरह जो लेवी का परपोता, कहात का पोता, और यिसहार का पुत्र या, वह एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम, और पेलेत के पुत्र ओन,
2. इन तीनोंरूबेनियोंसे मिलकर मण्डली के अढ़ाई सौ प्रधान, जो सभासद और नामी थे, उनको संग लिया;
3. और वे मूसा और हारून के विरूद्ध उठ खड़े हुए, और उन से कहने लगे, तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिथे तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्योंबन बैठे हो?
4. यह सुनकर मूसा अपके मुंह के बल गिरा;
5. फिर उस ने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, कि बिहान को यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपके समीप बुला लेगा; जिसको वह आप चुन लेगा उसी को अपके समीप बुला भी लेगा।
6. इसलिथे, हे कोरह, तुम अपक्की सारी मण्डली समेत यह करो, अर्यात् अपना अपना धूपदान ठीक करो;
7. और कल उन में आग रखकर यहोवा के साम्हने धूप देना, तब जिसको यहोवा चुन ले वही पवित्र ठहरेगा। हे लेवियों, तुम भी बड़ी बड़ी बातें करते हो, अब बस करो।
8. फिर मूसा ने कोरह से कहा, हे लेवियों, सुनो,
9. क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है, कि इस्त्राएल के परमेश्वर ने तुम को इस्त्राएल की मण्डली से अलग करके अपके निवास की सेवकाई करने, और मण्डली के साम्हने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिथे अपके समीप बुला लिया है;
10. और तुझे और तेरे सब लेवी भाइयोंको भी अपके समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद के भी खोजी हो?
11. और इसी कारण तू ने अपक्की सारी मण्डली को यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी किया है; हारून कौन है कि तुम उस पर बुड़बुड़ाते हो?
12. फिर मूसा ने एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम को बुलवा भेजा; और उन्होंने कहा, हम तेरे पास नहीं आएंगे।
13. क्या यह एक छोटी बात है, कि तू हम को ऐसे देश से जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती है इसलिथे निकाल लाया है, कि हमें जंगल में मार डाले, फिर क्या तू हमारे ऊपर प्रधान भी बनकर अधिक्कारने जताता है?
14. फिर तू हमें ऐसे देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं नहीं पहुंचाया, और न हमें खेतोंऔर दाख की बारियोंके अधिक्कारनेी किया। क्या तू इन लोगोंकी आंखोंमें धूलि डालेगा? हम तो नहीं आएंगे।
15. तब मूसा का कोप बहुत भड़क उठा, और उस ने यहोवा से कहा, उन लोगोंकी भेंट की ओर दृष्टि न कर। मैं ने तो उन से एक गदहा भी नहीं लिया, और न उन में से किसी की हानि की है।
16. तब मूसा ने कोरह से कहा, कल तू अपक्की सारी मण्डली को साय लेकर हारून के साय यहोवा के साम्हने हाजिर होना;
17. और तुम सब अपना अपना धूपदान लेकर उन में धूप देना, फिर अपना अपना धूपदान जो सब समेत अढ़ाई सौ होंगे यहोवा के साम्हने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना अपना धूपदान ले जाना।
18. सो उन्होंने अपना अपना धूपदान लेकर और उन में आग रखकर उन पर धूप डाला; और मूसा और हारून के साय मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़े हुए।
19. और कोरह ने सारी मण्डली को उनके विरूद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया। तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।।
20. तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
21. उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ। कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं।
22. तब वे मुंह के बल गिरके कहने लगे, हे ईश्वर, हे सब प्राणियोंके आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरूष के पाप के कारण तेरा क्रोध सारी मण्डली पर होगा?
23. यहोवा ने मूसा से कहा,
24. मण्डली के लोगोंसे कह, कि कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट जाओ।
25. तब मूसा उठकर दातान और अबीराम के पास गया; और इस्त्राएलियोंके वृद्ध लोग उसके पीछे पीछे गए।
26. और उस ने मण्डली के लोगोंसे कहा, तुम उन दुष्ट मनुष्योंके डेरोंके पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छूओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापोंमें फंसकर मिट जाओ।
27. यह सुन वे कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट गए; परन्तु दातान और अबीराम निकलकर अपक्की पत्नियों, बेंटों, और बालबच्चोंसमेत अपके अपके डेरे के द्वार पर खड़े हुए।
28. तब मूसा ने कहा, इस से तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूं, क्योंकि मैं ने अपक्की इच्छा से कुछ नहीं किया।
29. यदि उन मनुष्योंकी मृत्यु और सब मनुष्योंके समान हो, और उनका दण्ड सब मनुष्योंके समान हो, तब जानोंकि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूं।
30. परन्तु यदि यहोवा अपक्की अनोखी शक्ति प्रकट करे, और पृय्वी अपना मुंह पसारकर उनको, और उनका सब कुछ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पकें, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्योंने यहोवा का अपमान किया है।
31. वह थे सब बातें कह ही चुका या, कि भूमि उन लोगोंके पांव के नीचे फट गई;
32. और पृय्वी ने अपना मुंह खोल दिया और उनका और उनका घरद्वार का सामान, और कोरह के सब मनुष्योंऔर उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया।
33. और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पके; और पृय्वी ने उनको ढंाप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए।
34. और जितने इस्त्राएली उनके चारोंओर थे वे उनका चिल्लाना सुन यह कहते हुए भागे, कि कहीं पृय्वी हम को भी निगल न ले!
35. तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन अढ़ाई सौ धूप चढ़ानेवालोंको भस्म कर डाला।।
36. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
37. हारून याजक के पुत्र एलीआजार से कह, कि उन धूपदानोंको आग में से उठा ले; और आग के अंगारोंको उधर ही छितरा दे, क्योंकि वे पवित्र हैं।
38. जिन्होंने पाप करके अपके ही प्राणोंकी हानि की है, उनके धूपदानोंके पत्तर पीट पीटकर बनाए जाएं जिस से कि वह वेदी के मढ़ने के काम आवे; क्योंकि उन्होंने यहोवा के साम्हने रखा या; इस से वे पवित्र हैं। इस प्रकार वह इस्त्राएलियोंके लिथे एक निशान ठहरेगा।
39. सो एलीआजर याजक ने उन पीतल के धूपदानोंको, जिन में उन जले हुए मनुष्योंने धूप चढ़ाया या, लेकर उनके पत्तर पीटकर वेदी के मढ़ने के लिथे बनवा दिए,
40. कि इस्त्राएलियोंको इस बात का स्मरण रहे कि कोई दूसरा, जो हारून के वंश का न हो, यहोवा के साम्हने धूप चढ़ाने को समीप न जाए, ऐसा न हो कि वह भी कोरह और उसकी मण्डली के समान नष्ट हो जाए, जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा उसको आज्ञा दी यी।।
41. दूसरे दिन इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, कि यहोवा की प्रजा को तुम ने मार डाला है।
42. और जब मण्डली के लोग मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हो रहे थे, तब उन्होंने मिलापवाले तम्बू की ओर दृष्टि की; और देखा, कि बादल ने उसे छा लिया है, और यहोवा का तेज दिखाई दे रहा है।
43. तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू के साम्हने आए,
44. तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
45. तुम उस मण्डली के लोगोंके बीच से हट जाओ, कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। तब वे मुंह के बल गिरे।
46. और मूसा ने हारून से कहा, धूपदान को लेकर उस में वेदी पर से आग रखकर उस पर धूप डाल, मण्डली के पास फुरती से जाकर उसके लिथे प्रायश्चित्त कर; क्योंकि यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का है, और मरी फैलने लगी है।
47. मूसा की आज्ञा के अनुसार हारून धूपदान लेकर मण्डली के बीच में दौड़ा गया; और यह देखकर कि लोगोंमें मरी फैलने लगी है, उस ने धूप जलाकर लोगोंके लिथे प्रायश्चित्त किया।
48. और वह मुर्दोंऔर जीवित के मध्य में खड़ा हुआ; तब मरी यम गई।
49. और जो कोरह के संग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हजार सात सौ थे।
50. तब हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया, और मरी यम गई।।
Chapter 17
1. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे बातें करके उन के पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, उनके सब प्रधानोंके पास से एक एक छड़ी ले; और उन बारह छडिय़ोंमें से एक एक पर एक एक के मूल पुरूष का नाम लिख,
3. और लेवियोंकी छड़ी पर हारून का नाम लिख। क्योंकि इस्त्राएलियोंके पूर्वजोंके घरानोंके एक एक मुख्य पुरूष की एक एक छड़ी होगी।
4. और उन छडिय़ोंको मिलापवाले तम्बू में साझीपत्र के आगे, जहां मैं तुम लोगोंसे मिला करता हूं, रख दे।
5. और जिस पुरूष को मैं चुनूंगा उसकी छड़ी में कलियां फूट निकलेंगी; और इस्त्राएली जो तुम पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपके ऊपर से दूर करूंगा।
6. सो मूसा ने इस्त्राएलियोंसे यह बात कही; और उनके सब प्रधानोंने अपके अपके लिथे, अपके अपके पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, एक एक छड़ी उसे दी, सो बारह छडिय़ां हुई; और उन की छडिय़ोंमें हारून की भी छड़ी यी।
7. उन छडिय़ोंको मूसा ने साझीपत्र के तम्बू में यहोवा के साम्हने रख दिया।
8. दूसरे दिन मूसा साझीपत्र के तम्बू में गया; तो क्या देखा, कि हारून की छड़ी जो लेवी के घराने के लिथे यी उस में कलियां फूट निकली, अर्यात् उस में कलियां लगीं, और फूल भी फूले, और पके बादाम भी लगे हैं।
9. सो मूसा उन सब छडिय़ोंको यहोवा के साम्हने से निकालकर सब इस्त्राएलियोंके पास ले गया; और उन्होंने अपक्की अपक्की छड़ी पहिचानकर ले ली।
10. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून की छड़ी को साझीपत्र के साम्हने फिर धर दे, कि यह उन दंगा करनेवालो के लिथे एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरूद्ध होता रहता है भविष्य में रोक रखे, ऐसा न हो कि वे मर जाएं।
11. और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।।
12. तब इस्त्राएली मूसा से कहने लगे, देख, हमारे प्राण निकला चाहते हैं, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते हैं।
13. जो कोई यहोवा के निवास के समीप जाता है वह मारा जाता है। तो क्या हम सब के सब मर ही जाएंगे।।
Chapter 18
1. फिर यहोवा ने हारून से कहा, कि पवित्रस्यान के अधर्म का भार तुझ पर, और तेरे पुत्रोंऔर तेरे पिता के घराने पर होगा; और तुम्हारा याजक कर्म के अधर्म का भार भी तेरे पुत्रोंपर होगा।
2. और लेवी का गोत्र, अर्यात् तेरे मूलपुरूष के गोत्रवाले जो तेरे भाई हैं, उनको भी अपके साय ले आया कर, और वे तुझ से मिल जाएं, और तेरी सेवा टहल किया करें, परन्तु साझीपत्र के तम्बू के साम्हने तू और तेरे पुत्र ही आया करें।
3. जो तुझे सौंपा गया है उसकी और सारे तम्बू की भी वे रझा किया करें; परन्तु पवित्रस्यान के पात्रोंके और वेदी के समीप न आएं, ऐसा न हो कि वे और तुम लोग भी मर जाओ।
4. सो वे तुझ से मिल जाएं, और मिलापवाले तम्बू की सारी सेवकाई की वस्तुओं की रझा किया करें; परन्तु जो तेरे कुल का न हो वह तुम लोगोंके समीप न आने पाए।
5. और पवित्रस्यान और वेदी की रखवाली तुम ही किया करो, जिस से इस्त्राएलियोंपर फिर कोप न भड़के।
6. परन्तु मैं ने आप तुम्हारे लेवी भाइयोंको इस्त्राएलियोंके बीच से अलग कर लिया है, और वे मिलापवाले तम्बू की सेवा करने के लिथे तुम को और यहोवा को सौंप दिथे गए हैं।
7. पर वेदी की और बीचवाले पर्दे के भीतर की बातोंकी सेवकाई के लिथे तू और तेरे पुत्र अपके याजकपद की रझा करना, और तुम ही सेवा किया करना; क्योंकि मैं तुम्हें याजकपद की सेवकाई दान करता हूं; और जो तेरे कुल का न हो वह यदि समीप आए तो मार डाला जाए।।
8. फिर यहोवा ने हारून से कहा, सुन, मै आप तुझ को उठाई हुई भेंट सौंप देता हूं, अर्यात् इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुएं; जितनी होंउन्हें मैं तेरा अभिषेक वाला भाग ठहराकर तुझे और तेरे पुत्रोंको सदा का हक करके दे देता हूं।
9. जो परमपवित्र वस्तुएं आग में होम न ही जाएंगी वे तेरी ही ठहरें, अर्यात् इस्त्राएलियोंके सब चढ़ावोंमें से उनके सब अन्नबलि, सब पापबलि, और सब दोषबलि, जो वे मुझ को दें, वह तेरे और तेरे पुत्रोंके लिथे परमपवित्र ठहरें।
10. उनको परमपवित्र वस्तु जानकर खाया करना; उनको हर एक पुरूष खा सकता है; वे तेरे लिथे पवित्र हैं।
11. फिर थे वस्तुएं भी तेरी ठहरें, अर्यात् जितनी भेंट इस्त्राएली हिलाने के लिथे दें, उनको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवह उन्हें खा सकेंगे।
12. फिर उत्तम से उत्तम नया दाखमधु, और गेहूं, अर्यात् इनकी पहली उपज जो वे यहोवा को दें, वह मैं तुझ को देता हूं।
13. उनके देश के सब प्रकार की पहली उपज, जो वे यहोवा के लिथे ले आएं, वह तेरी ही ठहरे; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवे उन्हें खा सकेंगें।
14. इस्त्राएलियोंमें जो कुछ अर्पण किया जाए वह भी तेरा ही ठहरे।
15. सब प्राणियोंमें से जितने अपक्की अपक्की मां के पहिलौठे हों, जिन्हें लोग यहोवा के लिथे चढ़ाएं, चाहे मनुष्य के चाहे पशु के पहिलौठे हों, वे सब तेरे ही ठहरें; परन्तु मनुष्योंऔर अशुद्ध पशुओं के पहिलौठोंको दाम लेकर छोड़ देना।
16. और जिन्हें छुड़ाना हो, जब वे महीने भर के होंतब उनके लिथे अपके ठहराए हुए मोल के अनुसार, अर्यात् पवित्रस्यान के बीस गेरा के शेकेल के हिसाब से पांच शेकेल लेके उन्हें छोड़ना।
17. पर गाय, वा भेड़ी, वा बकरी के पहिलौठे को न छोड़ना; वे तो पवित्र हैं। उनके लोहू को वेदी पर छिड़क देना, और उनकी चरबी को हव्य करके जलाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो;
18. परन्तु उनका मांस तेरा ठहरे, और हिलाई हुई छाती, और दहिनी जांघ भी तेरा ही ठहरे।
19. पवित्र वस्तुओं की जितनी भेंटें इस्त्राएली यहोवा को दें, उन सभोंको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं: यह तो तेरे और तेरे वंश के लिथे यहोवा की सदा के लिथे नमक की अटल वाचा है।
20. फिर यहोवा ने हारून से कहा, इस्त्राएलियोंके देश में तेरा कोई भाग न होगा, और न उनके बीच तेरा कोई अंश होगा; उनके बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।।
21. फिर मिलापवाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले मैं उनको इस्त्राएलियोंका सब दशमांश उनका निज भाग कर देता हूं।
22. और भविष्य में इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू के समीप न आएं, ऐसा न हो कि उनके सिर पर पाप लगे, और वे मर जाएं।
23. परन्तु लेवी मिलापवाले तम्बू की सेवा किया करें, और उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें; यह तुम्हारी पीढ़ीयोंमें सदा की विधि ठहरे; और इस्त्राएलियोंके बीच उनका कोई निज भाग न होगा।
24. क्योंकि इस्त्राएली जो दशमांश यहोवा को उठाई हुई भेंट करके देंगे, उसे मैं लेवियोंको निज भाग करके देता हूं, इसीलिथे मैं ने उनके विषय में कहा है, कि इस्त्राएलियोंके बीच कोई भाग उनको न मिले।
25. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
26. तू लेवियोंसे कह, कि जब जब तुम इस्त्राएलियोंके हाथ से वह दशमांश लो जिसे यहोवा तुम को तुम्हारा निज भाग करके उन से दिलाता है, तब तब उस में से यहोवा के लिथे एक उठाई हुई भेंट करके दशमांश का दशमांश देना।
27. और तुम्हारी उठाई हुई भेंट तुम्हारे हित के लिथे ऐसी गिनी जाएगी जैसा खलिहान में का अन्न, वा रसकुण्ड में का दाखरस गिना जाता है।
28. इस रीति तुम भी अपके सब दशमांशोंमें से, जो इस्त्राएलियोंकी ओर से पाओगे, यहोवा को एक उठाई हुई भेंट देना; और यहोवा की यह उठाई हुई भेंट हारून याजक को दिया करना।
29. जितने दान तुम पाओ उन में से हर एक का उत्तम से उत्तम भाग, जो पवित्र ठहरा है, सो उसे यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट करके पूरी पूरी देना।
30. इसलिथे तू लेवियोंसे कह, कि जब तुम उस में का उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो, तब यह तुम्हारे लिथे खलिहान में के अन्न, और रसकुण्ड के रस के तुल्य गिना जाएगा;
31. और उसको तुम अपके घरानोंसमेत सब स्यानोंमें खा सकते हो, क्योंकि मिलापवाले तम्बू की जो सेवा तुम करोगे उसका बदला यही ठहरा है।
32. और जब तुम उसका उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो तब उसके कारण तुम को पाप न लगेगा। परन्तु इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं को अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ।।
Chapter 19
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा देता है वह यह है; कि तू इस्त्राएलियोंसे कह, कि मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिस में कोई भी दोष न हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो।
3. तब एलीआजर याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए, और कोई उसको उसके सम्हने बलिदान करे;
4. तब एलीआजर याजक अपक्की उंगली से उसका कुछ लोहू लेकर मिलापवाले तम्बू के साम्हने की ओर सात बार छिड़क दे।
5. तब कोई उस बछिया को खाल, मांस, लोहू, और गोबर समेत उसके साम्हने जलाए;
6. और याजक देवदारू की लकड़ी, जूफा, और लाल रंग का कपड़ा लेकर उस आग में जिस में बछिया जलती हो डाल दे।
7. तब वह अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, इसके बाद छावनी में तो आए, परन्तु सांफ तक अशुद्ध रहे।
8. और जो मनुष्य उसको जलाए वह भी जल से अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
9. फिर कोई शुद्ध पुरूष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्यान में रख छोड़े; और वह राख इस्त्राएलियोंकी मण्डली के लिथे अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के लिथे रखी रहे; वह तो पापबलि है।
10. और जो मनुष्य बछिया की राख बटोरे वह अपके वस्त्र धोए, और सांफ तक अशुद्ध रहे। और यह इस्त्राएलियोंके लिथे, और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी सदा की विधि ठहरे।
11. जो किसी मनुष्य की लोय छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे;
12. ऐसा मनुष्य तीसरे दिन उस जल से पाप छुड़ाकर अपके को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन आप को पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध ठहरेगा।
13. जो कोई किसी मनुष्य की लोय छूकर पाप छुड़ाकर अपके को पावन न करे, वह यहोवा के निवासस्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी इस्त्राएल में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उस में बची रहेगी।
14. यदि कोई मनुष्य डेरे में मर जाए तो व्यवस्या यह यह है, कि जितने उस डेरे में रहें, वा उस में जाएं, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहें।
15. और हर एक खुला हुआ पात्र, जिस पर कोई ढकना लगा न हो, वह अशुद्ध ठहरे।
16. और जो कोई मैदान में तलवार से मारे हुए को, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए को, वा मनुष्य की हड्डी को, वा किसी कब्र को छूए, तो सात दिन तक अशुद्ध रहे।
17. अशुद्ध मनुष्य के लिथे जलाए हुए पापबलि की राख में से कुछ लेकर पात्र में डालकर उस पर सोते का जल डाला जाए;
18. तब कोई शुद्ध मनुष्य जूफा लेकर उस जल में डुबाकर जल को उस डेरे पर, और जितने पात्र और मनुष्य उस में हों, उन पर छिड़के, और हड्डी के, वा मारे हुए के, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए के, वा कब्र के छूनेवाले पर छिड़क दे;
19. वह शुद्ध पुरूष तीसरे दिन और सातवें दिन उस अशुद्ध मनुष्य पर छिड़के; और सातवें दिन वह उसके पाप छुड़ाकर उसको पावन करे, तब वह अपके वोंको धोकर और जल से स्नान करके सांफ को शुद्ध ठहरे।
20. और जो कोई अशुद्ध होकर अपके पाप छुड़ाकर अपके को पावन न कराए, वह प्राणी यहोवा के पवित्र स्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण से वह अशुद्ध ठहरेगा।
21. और यह उनके लिथे सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपके वोंको धोए; और जिस जन से अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छू जाए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे।
22. और जो कुछ वह अशुद्ध मनुष्य छूए वह भी अशुद्ध ठहरे; और जो प्राणी उस वस्तु को छूए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे।।
Chapter 20
1. पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई।
2. वहां मण्डली के लोगोंके लिथे पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हुए।
3. और लोग यह कहकर मूसा से फगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए!
4. और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्योंले आए हो, कि हम अपके पशुओं समेत यहां मर जाए?
5. और तुम ने हम को मिस्र से क्योंनिकालकर इस बुरे स्यान में पहुंचाया है? यहां तो बीच, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है।
6. तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपके मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया।
7. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
8. उस लाठी को ले, और तू अपके भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिथे जल निकाल कर मण्डली के लोगोंऔर उनके पशुओं को पिला।
9. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया।
10. और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उस से कह, हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिथे जल निकालना होगा?
11. तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपके पशुओं समेत पीने लगे।
12. परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियोंकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिथे तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है।
13. उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियोंने यहोवा से फगड़ा किया या, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।।
14. फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास दूत भेजे, कि तेरा भाई इस्त्राएल योंकहता है, कि हम पर जो जो क्लेश पके हैं वह तू जानता होगा;
15. अर्यात् यह कि हमारे पुरखा मिस्र में गए थे, और हम मिस्र में बहुत दिन रहे; और मिस्त्र्ियोंने हमारे पुरखाओं के साय और हमारे साय भी बुरा बर्ताव किया;
16. परन्तु जब हम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने हमारी सुनी, और एक दूत को भेजकर हमें मिस्र से निकाल ले आया है; सो अब हम कादेश नगर में हैं जो तेरे सिवाने ही पर है।
17. सो हमें अपके देश में से होकर जाने दे। हम किसी खेत वा दाख की बारी से होकर न चलेंगे, और कूओं का पानी न पीएंगे; सड़क-सड़क होकर चले जाएंगे, और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं, तब तक न दहिने न बाएं मुड़ेंगे।
18. परन्तु एदोमियोंने उसके पास कहला भेजा, कि तू मेरे देश में से होकर मत जा, नहीं तो मैं तलवार लिथे हुए तेरा साम्हना करने को निकलूंगा।
19. इस्त्राएलियोंने उसके पास फिर कहला भेजा, कि हम सड़क ही सड़क चलेंगे, और यदि हम और हमारे पशु तेरा पानी पीएं, तो उसका दाम देंगे, हम को और कुछ नहीं, केवल पांव पांव चलकर निकल जाने दे।
20. परन्तु उस ने कहा, तू आने न पाएगा। और एदोम बड़ी सेना लेकर भुजबल से उसका साम्हना करने को निकल आया।
21. इस प्रकार एदोम ने इस्त्राएल को अपके देश के भीतर से होकर जाने देने से इन्कार किया; इसलिथे इस्त्राएल उसकी ओर से मुड़ गए।।
22. तब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली कादेश से कूच करके होर नाम पहाड़ के पास आ गई।
23. और एदोम देश के सिवाने पर होर पहाड़ में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
24. हारून अपके लोगोंमें जा मिलेगा; क्योंकि तुम दोनो ने जो मरीबा नाम सोते पर मेरा कहना छोड़कर मुझ से बलवा किया है, इस कारण वह उस देश में जाने न पाएगा जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है।
25. सो तू हारून और उसके पुत्र एलीआजर को होर पहाड़ पर ले चल;
26. और हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिना; तब हारून वहीं मरकर अपके लोगोंमे जा मिलेगा।
27. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; वे सारी मण्डली के देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए।
28. तब मूसा ने हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिनाए और हारून वहीं पहाड़ की चोटी पर मर गया। तब मूसा और एलीआजर पहाड़ पर से उतर आए।
29. और जब इस्त्राएल की सारी मण्डली ने देखा कि हारून का प्राण छूट गया है, तब इस्त्राएल के सब घराने के लोग उसके लिथे तीस दिन तक रोते रहे।।
Chapter 21
1. तब अराद का कनानी राजा, जो दक्खिन देश में रहता या, यह सुनकर, कि जिस मार्ग से वे भेदिथे आए थे उसी मार्ग से अब इस्त्राएली आ रहे हैं, इस्त्राएल से लड़ा, और उन में से कितनोंको बन्धुआ कर लिया।
2. तब इस्त्राएलियोंने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, कि यदि तू सचमुच उन लोगोंको हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरोंको सत्यनाश कर देंगे।
3. इस्त्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियोंको उनके वश में कर दिया; सो उन्होंने उनके नगरोंसमेत उनको भी सत्यानाश किया; इस से उस स्यान का नाम होर्मा रखा गया।।
4. फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगोंका मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया।
5. सो वे परमेश्वर के विरूद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिथे क्योंले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।
6. सो यहोवा ने उन लोगोंमें तेज विषवाले सांप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए।
7. तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरूद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्यना कर, कि वह सांपोंको हम से दूर करे। तब मूसा ने उनके लिथे प्रार्यना की।
8. यहोवा ने मूसा से कहा एक तेज विषवाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।
9. सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया।
10. फिर इस्त्राएलियोंने कूच करके ओबोत में डेरे डाले।
11. और ओबोत से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें डेरे डाले, जो पूरब की ओर मोआब के साम्हने के जंगल में है।
12. वंहा से कूच करके उन्होंने जेरेद नाम नाले में डेरे डाले।
13. वहां से कूच करके उन्होंने अर्नोन नदी, जो जंगल में बहती और एमोरियोंके देश से निकलती है, उसकी परली ओर डेरे खड़े किए; क्योंकि अर्नोन मोआबियोंऔर एमोरियोंके बीच होकर मोआब देश का सिवाना ठहरा है।
14. इस कारण यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक में इस प्रकार लिखा है, कि सूपा में बाहेब, और अर्नोन के नाले,
15. और उन नालोंकी ढलान जो आर नाम नगर की ओर है, और जो मोआब के सिवाने पर है।
16. फिर वहां से कूच करके वे बैर तक गए; वहां वही कूआं है जिसके विषय में यहोवा ने मूसा से कहा या, कि उन लोगोंको इकट्ठा कर, और मैं उन्हे पानी दूंगा।।
17. उस समय इस्त्राएल ने यह गीत गया, कि हे कूएं, उबल आ, उस कूएं के विषय में गाओ!
18. जिसको हाकिमोंने खोदा, और इस्त्राएल के रईसोंने अपके सोंटोंऔर लाठियोंसे खोद लिया।।
19. फिर वे जंगल से मत्ताना को, और मत्ताना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामोत को,
20. और बामोत से कूच करके उस तराई तक जो मोआब के मैदान में है, और पिसगा के उस सिक्के तक भी जो यशीमोन की ओर फुका है पहुंच गए।।
21. तब इस्त्राएल ने एमोरियोंके राजा सीहोन के पास दूतोंसे यह कहला भेजा,
22. कि हमें अपके देश में होकर जाने दे; हम मुड़कर किसी खेत वा दाख की बारी में तो न जाएंगे; न किसी कूएं का पानी पीएंगे; और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं तब तक सड़क ही से चले जाएंगे।
23. तौभी सीहोन ने इस्त्राएल को अपके देश से होकर जाने न दिया; वरन अपक्की सारी सेना को इकट्ठा करके इस्त्राएल का साम्हना करने को जंगल में निकल आया, और यहस को आकर उन से लड़ा।
24. तब इस्त्राएलियोंने उस को तलवार से मार लिया, और अर्नोन से यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियोंका सिवाना या, उसके देश के अधिक्कारनेी हो गए; अम्मोनियोंका सिवाना तो दृढ़ या।
25. सो इस्त्राएल ने एमोरियोंके सब नगरोंको ले लिया, और उन में, अर्यात् हेशबोन और उसके आस पास के नगरोंमें रहने लगे।
26. हेशबोन एमोरियोंके राजा सीहोन का नगर या; उस ने मोआब के अगले राजा से लड़के उसका सारा देश अर्नोन तक उसके हाथ से छीन लिया या।
27. इस कारण गूढ़ बात के कहनेवाले कहते हैं, कि हेशबोन में आओ, सीहोन का नगर बसे, और दृढ़ किया जाए।
28. क्योंकि हेशबोन से आग, अर्यात् सीहोन के नगर से लौ निकली; जिस से मोआब देश का आर नगर, और अर्नोन के ऊंचे स्यानोंके स्वामी भस्म हुए।
29. हे मोआब, तुझ पर हाथ! कमोश देवता की प्रजा नाश हुई, उस ने अपके बेटोंको भगेडू, और अपक्की बेटियोंको एमोरी राजा सीहोन की दासी कर दिया।
30. हम ने उन्हें गिरा दिया है, हेशबोन दीबोन तक नष्ट हो गया है, और हम ने नोपह और मेदबा तक भी उजाड़ दिया है।।
31. सो इस्त्राएल एमोरियोंके देश में रहने लगा।
32. तब मूसा ने याजेर नगर का भेद लेने को भेजा; और उन्होंने उसके गांवोंको लिया, और वहां के एमोरियोंको उस देश से निकाल दिया।
33. तब वे मुड़के बाशान के मार्ग से जाने लगे; और बाशान के राजा ओग न उनका साम्हना किया, अर्यात् लड़ने को अपक्की सारी सेना समेत एद्रेई में निकल आया।
34. तब यहोवा ने मूसा से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूं; और जैसा तू ने एमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन के साय किया है, वैसा ही उसके साय भी करना।
35. तब उन्होंने उसको, और उसके पुत्रोंऔर सारी प्रजा को यहां तक मारा कि उसका कोई भी न बचा; और वे उसके देश के अधिक्कारनेी को गए।
Chapter 22
1. तब इस्त्राएलियोंने कूच करके यरीहो के पास यरदन नदी के इस पार मोआब के अराबा में डेरे खड़े किए।।
2. और सिप्पोर के पुत्र बालाक ने देखा कि इस्त्राएल ने एमोरियोंसे क्या क्या किया है।
3. इसलिथे मोआब यह जानकर, कि इस्त्राएली बहुत हैं, उन लोगोंसे अत्यन्त डर गया; यहां तक कि मोआब इस्त्राएलियोंके कारण अत्यन्त व्याकुल हुआ।
4. तब मोआबियोंने मिद्यानी पुरनियोंसे कहा, अब वह दल हमारे चारोंओर के सब लोगोंको चट कर जाएगा, जिस तरह बैल खेत की हरी घास को चट कर जाता है। उस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआब का राजा या;
5. और इस ने पतोर नगर को, जो महानद के तट पर बोर के पुत्र बिलाम के जातिभाइयोंकी भूमि यी, वहां बिलाम के पास दूत भेजे, कि वे यह कहकर उसे बुला लाएं, कि सुन एक दल मिस्र से निकल आया है, और भूमि उन से ढक गई है, और अब वे मेरे साम्हने ही आकर बस गए हैं।
6. इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे, क्योंकि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इनको अपके देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूं कि जिसको तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिसको तू शाप देता है वह स्रापित होता है।
7. तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिथे भावी कहने की दझिणा लेकर चले, और बिलाम के पास पहुंचकर बालाक की बातें कह सुनाईं।
8. उस ने उन से कहा, आज रात को यहां टिको, और जो बात यहोवा मुझ से कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूंगा; तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहां ठहर गए।
9. तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, कि तेरे यहां थे पुरूष कौन हैं?
10. बिलाम ने परमेश्वर से कहा सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है,
11. कि सुन, जो दल मिस्र से निकल आया है उस से भूमि ढंप गई है; इसलिथे आकर मेरे लिथे उन्हें शाप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उनको बरबस निकाल सकूंगा।
12. परमेश्वर ने बिलाम से कहा, तू इनके संग मत जा; उन लोगोंको शाप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं।
13. भोर को बिलाम ने उठकर बालाक के हाकिमोंसे कहा, तुम अपके देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साय जाने की आज्ञा नहीं देता।
14. तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जाकर कहा, कि बिलाम ने हमारे साय आने से नाह किया है।
15. इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहिलोंसे प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे।
16. उन्होंने बिलाम के पास आकर कहा, कि सिप्पोर का पुत्र बालाक योंकहता है, कि मेरे पास आने से किसी कारण नाह न कर;
17. क्योंकि मैं निश्चय तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे वही मैं करूंगा; इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे।
18. बिलाम ने बालाक के कर्मचारियोंको उत्तर दिया, कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे दे, तौभी मैं अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को पलट नहीं सकता, कि उसे घटाकर वा बढ़ाकर मानूं।
19. इसलिथे अब तुम लोग आज रात को यहीं टिके रहो, ताकि मैं जान लूं, कि यहोवा मुझ से और क्या कहता है।
20. और परमेश्वर ने रात को बिलाम के पास आकर कहा, यदि वे पुरूष तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उठकर उनके संग जा; परन्तु जो बात मैं तुझ से कहूं उसी के अनुसार करना।
21. तब बिलाम भोर को उठा, और अपक्की गदही पर काठी बान्धकर मोआबी हाकिमोंके संग चल पड़ा।
22. और उसके जाने के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा, और यहोवा का दूत उसका विरोध करने के लिथे मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह तो अपक्की गदही पर सवार होकर जा रहा या, और उसके संग उसके दो सेवक भी थे।
23. और उस गदही को यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब गदही मार्ग छोड़कर खेत में चक्की गई; तब बिलाम ने गदही को मारा, कि वह मार्ग पर फिर आ जाए।
24. तब यहोवा का दूत दाख की बारियोंके बीच की गली में, जिसके दोनोंओर बारी की दीवार यी, खड़ा हुआ।
25. यहोवा के दूत को देखकर गदही दीवार से ऐसी सट गई, कि बिलाम का पांव दीवार से दब गया; तब उस ने उसको फिर मारा।
26. तब यहोवा का दूत आगे बढ़कर एक सकेत स्यान पर खड़ा हुआ, जहां न तो दहिनी ओर हटने की जगह यी और न बाईं ओर।
27. वहां यहोवा के दूत को देखकर गदही बिलाम को लिथे दिथे बैठ गई; फिर तो बिलाम का कोप भड़क उठा, और उस ने गदही को लाठी से मारा।
28. तब यहोवा ने गदही का मुंह खोल दिया, और वह बिलाम से कहने लगी, मैं ने तेरा क्या किया है, कि तू ने मुझे तीन बार मारा?
29. बिलाम ने गदही से कहा, यह कि तू ने मुझ से नटखटी की। यदि मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं तुझे अभी मार डालता।
30. गदही ने बिलाम से कहा क्या मैं तेरी वही गदही नहीं जिस पर तू जन्म से आज तक चढ़ता आया है? क्या मैं तुझ से कभी ऐसा करती यी? वह बोला, नहीं।
31. तब यहोवा ने बिलाम की आंखे खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह फुक गया, और मुंह के बल गिरके दण्डवत की।
32. यहोवा के दूत ने उस से कहा, तू ने अपक्की गदही को तीन बार क्योंमारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूं, इसलिथे कि तू मेरे साम्हने उलटी चाल चलता है;
33. और यह गदही मुझे देखकर मेरे साम्हने से तीन बार हट गई। जो वह मेरे साम्हने से हट न जाती, तो नि:सन्देह मैं अब तक तुझ को मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता।
34. तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता या कि तू मेरा साम्हना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिथे अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूं।
35. यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, इन पुरूषोंके संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूंगा। तब बिलाम बालाक के हाकिमोंके संग चला गया।
36. यह सुनकर, कि बिलाम आ रहा है, बालाक उस से भेंट करने के लिथे मोआब के उस नगर तक जो उस देश के अर्नोनवाले सिवाने पर है गया।
37. बालाक ने बिलाम से कहा, क्या मैं ने बड़ी आशा से तुझे नहीं बुलवा भेजा या? फिर तू मेरे पास क्योंनहीं चला आया? क्या मैं इस योग्य नहीं कि सचमुच तेरी उचित प्रतिष्ठा कर सकता?
38. बिलाम ने बालाक से कहा, देख मैं तेरे पास आया तो हूं! परन्तु अब क्या मैं कुछ कर सकता हूं? जो बात परमेश्वर मेरे मुंह में डालेगा वही बात मैं कहूंगा।
39. तब बिलाम बालाक के संग संग चला, और वे किर्ययूसोत तक आए।
40. और बालाक ने बैल और भेड़-बकरियोंको बलि किया, और बिलाम और उसके साय के हाकिमोंके पास भेजा।
41. बिहान को बालाक बिलाम को बालू के ऊंचे स्यानोंपर चढ़ा ले गया, और वहां से उसको सब इस्त्राएली लोग दिखाई पके।।
Chapter 23
1. तब बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और इसी स्यान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।
2. तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
3. फिर बिलाम ने बालाक से कहा, तू अपके होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूं; सम्भव है कि यहोवा मुझ से भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रकाश करेगा वही मैं तुझ को बताऊंगा। तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया।
4. और परमेश्वर बिलाम से मिला; और बिलाम ने उस से कहा, मैं ने सात वेदियां तैयार की हैं, और प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है।
5. यहोवा ने बिलाम के मुंह में एक बाल डालीं, और कहा, बालाक के पास लौट जो, और योंकहना।
6. और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है, कि वह सारे मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है।
7. तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, बालाक ने मुझे आराम से, अर्यात् मोआब के राजा ने मुझे पूरब के पहाड़ोंसे बुलवा भेजा: आ, मेरे लिथे याकूब को शाप दे, आ, इस्त्राएल को धमकी दे!
8. परन्तु जिन्हें ईश्वर ने नहीं शाप दिया उन्हें मैं क्योंशाप दूं? और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूं?
9. चट्टानोंकी चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाडिय़ोंपर से मैं उनको देखता हूं; वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी, और अन्यजातियोंसे अलग गिनी जाएगी!
10. याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है, वा इस्त्राएल की चौयाई की गिनती कौन ले सकता है? सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धमिर्योंकी सी, और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो!
11. तब बालाक ने बिलाम से कहा, तू ने मुझ से क्या किया है?
12. उस ने कहा, जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिथे?
13. बालाक ने उस से कहा, मेरे संग दूसरे स्यान पर चल, जहां से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभोंको तो नहीं, केवल बाहरवालोंको देख सकेगा; वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे।
14. तब वह उसको सोपीम नाम मैदान में पिसगा के सिक्के पर ले गया, और वहां सात वेदियां बनवाकर प्रत्थेक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
15. तब बिलाम ने बालाक से कहा, अपके होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूं।
16. और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उस ने उसके मुंह में एक बात डाली, और कहा, कि बालाक के पास लौट जा, और योंकहना।
17. और वह उसके पास गया, और क्या देखता है, कि वह मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, कि यहोवा ने क्या कहा है?
18. तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्र, मेरी बात पर कान लगा:
19. ईश्वर मनुष्य नहीं, कि फूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपक्की इच्छा बदले। क्या जो कुछ उस ने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उस पूरा न करे?
20. देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैं ने पाई है: वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता।
21. उस ने याकूब में अनर्य नहीं पाया; और न इस्त्राएल में अन्याय देखा है। उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है, और उन में राजा की सी ललकार होती है।
22. उनको मिस्र में से ईश्वर ही निकाले लिथे आ रहा है, वह तो बैनेले सांड के समान बल रखता है।
23. निश्चय कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता, और इस्त्राएल पर भावी कहना कोई अर्य नहीं रखता; परन्तु याकूब और इस्त्राएल के विषय अब यह कहा जाएगा, कि ईश्वर ने क्या ही विचित्र काम किया है!
24. सुन, वह दल सिंहनी की नाई उठेगा, और सिंह की नाई खड़ा होगा; वह जब तक अहेर को न खा ले, और मरे हुओं के लोहू को न पी ले, तब तक न लेटेगा।।
25. तब बालाक ने बिलाम से कहा, उनको न तो शाप देना, और न आशीष देना।
26. बिलाम ने बालाक से कहा, क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा, कि जो कुछ यहोवा मुझ से कहेगा, वही मुझे करना पकेगा?
27. बालाक ने बिलाम से कहा चल, मैं तुझ को एक और स्यान पर ले चलता हूं; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे।
28. तब बालाक बिलाम को पोर के सिक्के पर, जहां से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया।
29. और बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और यहां सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।
30. बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।।
Chapter 24
1. यह देखकर, कि यहोवा इस्त्राएल को आशीष ही दिलाना चाहता है, बिलाम पहिले की नाई शकुन देखने को न गया, परन्तु अपना मुंह जंगल की ओर कर लिया।
2. और बिलाम ने आंखे उठाई, और इस्त्राएलियोंको अपके गोत्र गोत्र के अनुसार बसे हुए देखा। और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा।
3. तब उसने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखें बन्द यीं उसी की यह वाणी है,
4. ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, जो दण्डवत में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि
5. हे याकूब, तेरे डेरे, और हे इस्त्राएल, तेरे निवासस्यान क्या ही मनभावने हैं!
6. वे तो नालोंवा घाटियोंकी नाई, और नदी के तट की वाटिकाओं के समान ऐसे फैले हुए हैं, जैसे कि यहोवा के लगाए हुए अगर के वृझ, और जल के निकट के देवदारू।
7. और उसके डोलोंसे जल उमण्डा करेगा, और उसका बीच बहुतेरे जलभरे खेतोंमें पकेगा, और उसका राजा अगाग से भी महान होगा, और उसका राज्य बढ़ता ही जाएगा।
8. उसको मिस्र में से ईश्वर की निकाले लिथे आ रहा है; वह तो बनैले सांड़ के सामान बल रखता है, जाति जाति के लोग जो उसके द्रोही है उनको वह खा जाथेगा, और उनकी हड्डियोंको टुकड़े टुकड़े करेगा, और अपके तीरोंसे उनको बेधेगा।
9. वह दबका बैठा है, वह सिंह वा सिंहनी की नाई लेट गया है; अब उसको कौन छेड़े? जो कोई तुझे आशीर्वाद दे सो आशीष पाए, और जो कोई तुझे शाप दे वह स्रापित हो।।
10. तब बालाक का कोप बिलाम पर भड़क उठा; और उस ने हाथ पर हाथ पटककर बिलाम से कहा, मैं ने तुझे अपके शत्रुओं के शाप देने के लिथे बुलवाया, परन्तु तू ने तीन बार उन्हें आशीर्वाद ही आशीर्वाद दिया है।
11. इसलिथे अब तू अपके स्यान पर भाग जा; मैं ने तो सोचा या कि तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, परन्तु अब यहोवा ने तुझे प्रतिष्ठा पाने से रोक रखा है।
12. बिलाम ने बालाक से कहा, जो दूत तू ने मेरे पास भेजे थे, क्या मैं ने उन से भी न कहा या,
13. कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे, तौभी मैं यहोवा की आज्ञा तोड़कर अपके मन से न तो भला कर सकता हूं और न बुरा; जो कुछ यहोवा कहेगा वही मैं कहूंगा?
14. अब सुन, मैं अपके लोगोंके पास लौट कर जाता हूं; परन्तु पहिले मैं तुझे चिता देता हूं कि अन्त के दिनोंमें वे लोग तेरी प्रजा से क्या क्या करेंगे।
15. फिर वह अपक्की गूढ़ बात आरम्भ करके कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखे बन्द यी उसी की यह वाणी है,
16. ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, और परमप्रधान के ज्ञान का जाननेवाला, जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि
17. मै उसको देखूंगा तो सही, परन्तु अभी नहीं; मैं उसको निहारूंगा तो सही, परन्तु समीप होके नहीं: याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्त्राएल में से एक राज दण्ड उठेगा; जो मोआब की अलंगोंको चूर कर देगा, जो सब दंगा करनेवालोंको गिरा देगा।
18. तब एदोम और सेईर भी, जो उसके शत्रु हैं, दोनोंउसके वश में पकेंगे, और इस्त्राएल वीरता दिखाता जाएगा।
19. और याकूब ही में से एक अधिपति आवेगा जो प्रभुता करेगा, और नगर में से बचे हुओं को भी सत्यानाश करेगा।।
20. फिर उस ने अमालेक पर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, अमालेक अन्यजातियोंमें श्रेष्ट तो या, परन्तु उसका अन्त विनाश ही है।।
21. फिर उस ने केनियोंपर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, तेरा निवासस्यान अति दृढ़ तो है, और तेरा बसेरा चट्टान पर तो है;
22. तौभी केन उजड़ जाएगा। और अन्त में अश्शूर् तुझे बन्धुआई में ले आएगा।।
23. फिर उस ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हाथ जब ईश्वर यह करेगा तब कौन जीवित बचेगा?
24. तौभी कित्तियोंके पास से जहाजवाले आकर अश्शूर् को और एबेर को भी दु:ख देंगे; और अन्त में उसका भी विनाश हो जाएगा।।
25. तब बिलाम चल दिया, और अपके स्यान पर लौट गया; और बालाक ने भी अपना मार्ग लिया।।
Chapter 25
1. इस्त्राएली शित्तीम में रहते थे, और लोग मोआबी लड़कियोंके संग कुकर्म करने लगे।
2. और जब उन स्त्रीयोंने उन लोगोंको अपके देवताओं के यज्ञोंमें नेवता दिया, तब वे लोग खाकर उनके देवताओं को दण्डवत् करने लगे।
3. योंइस्त्राएली बालपोर देवता को पूजने लगे। तब यहोवा का कोप इस्त्राएल पर भड़क उठा;
4. और यहोवा ने मूसा से कहा, प्रजा के सब प्रधानोंको पकड़कर यहोवा के लिथे धूप में लटका दे, जिस से मेरा भड़का हुआ कोप इस्त्राएल के ऊपर से दूर हो जाए।
5. तब मूसा ने इस्त्राएली न्यायियोंसे कहा, तुम्हारे जो जो आदमी बालपोर के संग मिल गए हैं उन्हें घात करो।।
6. और जब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही यी, तो एक इस्त्राएली पुरूष मूसा और सब लोगोंकी आंखोंके सामने एक मिद्यानी स्त्री को अपके साय अपके भाइयोंके पास ले आया।
7. इसे देखकर एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून याजक का पोता या, उस ने मण्डली में से उठकर हाथ में एक बरछी ली,
8. और उस इस्त्राएली पुरूष के डेरे में जाने के बाद वह भी भीतर गया, और उस पुरूष और उस स्त्री दोनोंके पेट में बरछी बेध दी। इस पर इस्त्राएलियोंमें जो मरी फैल गई यी वह यम गई।
9. और मरी से चौबीस हजार मनुष्य मर गए।।
10. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
11. हारून याजक का पोता एलीआजर का पुत्र पीनहास, जिसे इस्त्राएलियोंके बीच मेरी सी जलन उठी, उस ने मेरी जलजलाहट को उन पर से यहां तक दूर किया है, कि मैं ने जलकर उनका अन्त नहीं कर डाला।
12. इसलिथे तू कह दे, कि मैं उस से शांति की वाचा बान्धता हूं;
13. और वह उसके लिथे, और उसके बाद उसके वंश के लिथे, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्योंकि उसे अपके परमेश्वर के लिथे जलन उठी, और उस ने इस्त्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित्त किया।
14. जो इस्त्राएली पुरूष मिद्यानी स्त्री के संग मारा गया, उसका नाम जिम्री या, वह साल का पुत्र और शिमोनियोंमें से अपके पितरोंके घराने का प्रधान या।
15. और जो मिद्यानी स्त्री मारी गई उसका नाम कोजबी या, वह सूर की बेटी यी, जो मिद्यानी पितरोंके एक घराने के लोगोंका प्रधान या।।
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
17. मिद्यानियोंको सता, और उन्हें मार;
18. क्योंकि पोर के विषय और कोजबी के विषय वे तुम को छल करके सताते हैं। कोजबी तो एक मिद्यानी प्रधान की बेटी और मिद्यानियोंकी जाति बहिन यी, और मरी के दिन में पोर के मामले में मारी गई।।
Chapter 26
1. फिर यहोवा ने मूसा और एलीआजर नाम हारून याजक के पुत्र से कहा,
2. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली में जितने बीस वर्ष के, वा उस से अधिक अवस्या के होने से इस्त्राएलियोंके बीच युद्ध करने के योग्य हैं, उनके पितरोंके घरानोंके अनुसार उन सभोंकी गिनती करो।
3. सो मूसा और एलीआजर याजक ने यरीहो के पास यरदन नदी के तीर पर मोआब के अराबा में उन से समझाके कहा,
4. बीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्या के लोगोंकी गिनती लो, जैसे कि यहोवा ने मूसा और इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकले आने के समय आज्ञा दी यी।।
5. रूबेन जो इस्त्राएल का जेठा या; उसके थे पुत्र थे; अर्यात् हनोक, जिस से हनोकियोंका कुल चला; और पल्लू, जिस से पल्लूइयोंका कुल चला;
6. हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और कर्मी, जिस से कमिर्योंका कुल चला।
7. रूबेनवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे तैतालीस हजार सात सौ तीस पुरूष थे।
8. और पल्लू का पुत्र एलीआब या।
9. और पल्लू का पुत्र नमूएल, दातान, और अबीराम थे। थे वही दातान और अबीराम हैं जो सभासद थे; और जिस समय कोरह की मण्डली ने यहोवा से फगड़ा किया या, उस समय उस मण्डली में मिलकर वे भी मूसा और हारून से फगड़े थे;
10. और जब उन अढ़ाई सौ मनुष्योंके आग में भस्म हो जाने से वह मण्डली मिट गई, उसी समय पृय्वी ने मुंह खोलकर कोरह समेत इनको भी निगल लिया; और वे एक दृष्टान्त ठहरे।
11. परन्तु कोरह के पुत्र तो नहीं मरे थे।
12. शिमोन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् नमूएल, जिस से नमूएलियोंका कुल चला; और यामीन, जिस से यामीनियोंका कुल चला;
13. और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला; और शाऊल, जिस से शाऊलियोंका कुल चला।
14. शिमोनवाले कुल थे ही थे; इन में से बाईस हजार दो सौ पुरूष गिने गए।।
15. और गाद के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सपोन, जिस से सपोनियोंका कुल चला; और हाग्गी, जिस से हाग्गियोंका कुल चला; और शूनी, जिस से शूनियोंका कुल चला; और ओजनी, जिस से ओजनियोंका कुल चला;
16. और एरी, जिस से एरियोंका कुल चला; और अरोद, जिस से अरोदियोंका कुल चला;
17. और अरेली, जिस से अरेलियोंका कुल चला।
18. गाद के वंश के कुल थे ही थे; इन में से साढ़े चालीस हजार पुरूष गिने गए।।
19. और यहूदा के एक और ओनान नाम पुत्र तो हुए, परन्तु वे कनान देश में मर गए।
20. और यहूदा के जिन पुत्रोंसे उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शेला, जिस से शेलियोंका कुल चला; और पेरेस जिस से पेरेसियोंका कुल चला; और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला।
21. और पेरेस के पुत्र थे थे; अर्यात् हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और हामूल, जिस से हामूलियोंका कुल चला।
22. यहूदियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े छिहत्तर हजार पुरूष गिने गए।।
23. और इस्साकार के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् तोला, जिस से तोलियोंका कुल चला; और पुव्वा, जिस से पुव्वियोंका कुल चला;
24. और याशूब, जिस से याशूबियोंका कुल चला; और शिम्रोन, जिस से शिम्रोनियोंका कुल चला।
25. इस्साकारियोंके कुल थे ही थे; इन में से चौसठ हजार तीन सौ पुरूष गिने गए।।
26. और जबूलून के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सेरेद जिस से सेरेदियोंका कुल चला; और एलोन, जिस से एलोनियोंका कुल चला; और यहलेल, जिस से यहलेलियोंका कुल चला।
27. जबूलूनियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े साठ हजार पुरूष गिने गए।।
28. और यूसुफ के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे मनश्शे और एप्रैम थे।
29. मनश्शे के पुत्र थे थे; अर्यात् माकीर, जिस से माकीरियोंका कुल चला; और माकीर से गिलाद उत्पन्न हुआ; और गिलाद से गिलादियोंका कुल चला।
30. गिलाद के तो पुत्र थे थे; अर्यात् ईएजेर, जिस से ईएजेरियोंका कुल चला;
31. और हेलेक, जिस से हेलेकियोंका कुल चला और अस्त्रीएल, जिस से अस्त्रीएलियोंका कुल चला; और शेकेम, जिस से शेकेमियोंका कुल चला; और शमीदा, जिस से शमीदियोंका कुल चला;
32. और हेपेर, जिस से हेपेरियोंका कुल चला;
33. और हेपेर के पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, केवल बेटियां हुई; इन बेटियोंके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं।
34. मनश्शेवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे बावन हजार सात सौ पुरूष थे।।
35. और एप्रैम के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शूतेलह, जिस से शूतेलहियोंका कुल चला; और बेकेर, जिस से बेकेरियोंका कुल चला; और तहन जिस से तहनियोंका कुल चला।
36. और शूतेलह के यह पुत्र हुआ; अर्यात् एरान, जिस से एरानियोंका कुल चला।
37. एप्रैमियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े बत्तीस हजार पुरूष गिने गए। अपके कुलोंके अनुसार यूसुफ के वंश के लोग थे ही थे।।
38. और बिन्यामीन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् बेला जिस से लेवियोंका कुल चला; और अशबेल, जिस से अशबेलियोंका कुल चला; और अहीराम, जिस से अहीरामियोंका कुल चला;
39. और शपूपास, जिस से शपूपामियोंका कुल चला; और हूपाम, जिस से हूपामियोंका कुल चला।
40. और बेला के पुत्र अर्द और नामान थे; और अर्द से तो अदिर्योंको कुल, और नामान से नामानियोंका कुल चला।
41. अपके कुलोंके अनुसार बिन्यामीनी थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार छ: सौ पुरूष थे।।
42. और दान का पुत्र जिस से उनका कुल निकला यह या; अर्यात् शूहाम, जिस से शूहामियोंका कुल चला। और दान का कुल यही या।
43. और शूहामियोंमें से जो गिने गए उनके कुल में चौसठ हजार चार सौ पुरूष थे।।
44. और आशेर के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यिम्ना, जिस से यिम्नियोंका कुल चला; यिश्र्ी, जिस से यिश्र्ियोंका कुल चला; और बरीआ, जिस से बरीइयोंका कुल चला।
45. फिर बरीआ के थे पुत्र हुए; अर्यात् हेबेर, जिस से हेबेरियोंका कुल चला; और मल्कीएल, जिस से मल्कीएलियोंका कुल चला।
46. और आशेर की बेटी का नाम सेरह है।
47. आशेरियोंके कुल थे ही थे; इन में से तिर्पन हजार चार सौ पुरूष गिने गए।।
48. और नप्ताली के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यहसेल, जिस से यहसेलियोंका कुल चला; और गूनी, जिस से गूनियोंका कुल चला;
49. थेसेर, जिस से थेसेरियोंका कुल चला; और शिल्लेम, जिस से शिल्लेमियोंका कुल चला।
50. अपके कुलोंके अनुसार नप्ताली के कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार चार सौ पुरूष थे।।
51. सब इस्त्राएलियोंमें से जो गिने गए थे वे थे ही थे; अर्यात् छ: लाख एक हजार सात सौ तीस पुरूष थे।।
52. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
53. इनको, इनकी गिनती के अनुसार, वह भूमि इनका भाग होने के लिथे बांट दी जाए।
54. अर्यात् जिस कुल से अधिक होंउनको अधिक भाग, और जिस में कम होंउनको कम भाग देना; प्रत्थेक गोत्र को उसका भाग उसके गिने हुए लोगोंके अनुसार दिया जाए।
55. तौभी देश चिट्ठी डालकर बांटा जाए; इस्त्राएलियोंके पितरोंके एक एक गोत्र का नाम, जैसे जैसे निकले वैसे वैसे वे अपना अपना भाग पाएं।
56. चाहे बहुतोंका भाग हो चाहे योड़ोंका हो, जो जो भाग बांटे जाएं वह चिट्ठी डालकर बांटे जाए।।
57. फिर लेवियोंमें से जो अपके कुलोंके अनुसार गिने गए वे थे हैं; अर्यात् गेर्शोनियोंसे निकला हुआ गेर्शोनियोंका कुल; कहात से निकला हुआ कहातियोंका कुल; और मरारी से निकला हुआ मरारियोंका कुल।
58. लेवियोंके कुल थे हैं; अर्यात् लिब्नियोंका, हेब्रानियोंका, महलियोंका, मूशियोंका, और कोरहियोंका कुल। और कहात से अम्राम उत्पन्न हुआ।
59. और अम्राम की पत्नी का नाम योकेबेद है, वह लेवी के वंश की यी जो लेवी के वंश में मिस्र देश में उत्पन्न हुई यी; और वह अम्राम से हारून और मूसा और उनकी बहिन मरियम को भी जनी।
60. और हारून से नादाब, अबीहू, एलीआजर, और ईतामार उत्पन्न हुए।
61. नादाब और अबीहू तो उस समय मर गए थे, जब वे यहोवा के साम्हने ऊपक्की आग ले गए थे।
62. सब लेवियोंमें से जो गिने गथे, अर्यात् जितने पुरूष एक महीने के वा उस से अधिक अवस्या के थे, वे तेईस हजार थे; वे इस्त्राएलियोंके बीच इसलिथे नहीं गिने गए, क्योंकि उनको देश का कोई भाग नहीं दिया गया या।।
63. मूसा और एलीआजर याजक जिन्होंने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्त्राएलियोंको गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे।
64. परन्तु जिन इस्त्राएलियोंको मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना या, उन में से एक पुरूष इस समय के गिने हुओं में न या।
65. क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा या, कि वे निश्चय जंगल में मर जाएंगे, इसलिथे यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उन में से एक भी पुरूष नहीं बचा।।
Chapter 27
1. तब यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें से सलोफाद, जो हेपेर का पुत्र, और गिलाद का पोता, और मनश्शे के पुत्र माकीर का परपोता या, उसकी बेटियां जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं वे पास आईं।
2. और वे मूसा और एलीआजर याजक और प्रधानोंऔर सारी मण्डली के साम्हने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ी होकर कहने लगीं,
3. हमारा पिता जंगल में मर गया; परन्तु वह उस मण्डली में का न या जो कोरह की मण्डली के संग होकर यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी हुई यी, वह अपके ही पाप के कारण मरा; और उसके कोई पुत्र न या।
4. तो हमारे पिता का नाम उसके कुल में से पुत्र न होने के कारण क्योंमिट जाए? हमारे चाचाओं के बीच हमें भी कुछ भूमि निज भाग करके दे।
5. उनकी यह बिनती मूसा ने यहोवा को सुनाई।
6. यहोवा ने मूसा से कहा,
7. सलोफाद की बेटियां ठीक कहती हैं; इसलिथे तू उनके चाचाओं के बीच उनको भी अवश्य ही कुछ भूमि निज भाग करके दे, अर्यात् उनके पिता का भाग उनके हाथ सौंप दे।
8. और इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि यदि कोई मनुष्य निपुत्र मर जाए, तो उसका भाग उसकी बेटी के हाथ सौंपना।
9. और यदि उसके कोई बेटी भी न हो, तो उसका भाग उसके भाइयोंको देना।
10. और यदि उसके भाई भी न हों, तो उसका भाग चाचाओं को देना।
11. और यदि उसके चाचा भी न हों, तो उसके कुल में से उसका जो कुटुम्बी सब से समीप हो उसको उसका भाग देना, कि वह उसका अधिक्कारनेी हो। इस्त्राएलियोंके लिथे यह न्याय की विधि ठहरेगी, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।।
12. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस अबारीम नाम पर्वत के ऊपर चढ़के उस देश को देख ले जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है।
13. और जब तू उसको देख लेगा, तब अपके भाई हारून की नाई तू भी अपके लोगोंमे जा मिलेगा,
14. क्योंकि सीन नाम जंगल में तुम दोनोंने मण्डली के फगड़ने के समय मेरी आज्ञा को तोड़कर मुझ से बलवा किया, और मुझे सोते के पास उनकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया। ( यह मरीबा नाम सोता है जो सीन नाम जंगल के कादेश में है )
15. मूसा ने यहोवा से कहा,
16. यहोवा, जो सारे प्राणियोंकी आत्माओं का परमेश्वर है, वह इस मण्डली के लोगोंके ऊपर किसी पुरूष को नियुक्त कर दे,
17. जो उसके साम्हने आया जाया करे, और उनका निकालने और पैठानेवाला हो; जिस से यहोवा की मण्डली बिना चरवाहे की भेड़ बकरियोंके समान न रहे।
18. यहोवा ने मूसा से कहा, तू नून के पुत्र यहोशू को लेकर उस पर हाथ रख; वह तो ऐसा पुरूष है जिस में मेरा आत्मा बसा है;
19. और उसको एलीआजर याजक के और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके उनके साम्हने उसे आज्ञा दे।
20. और अपक्की महिमा में से कुछ उसे दे, जिस से इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली उसकी माना करे।
21. और वह एलीआजर याजक के साम्हने खड़ा हुआ करे, और एलीआजर उसके लिथे यहोवा से ऊरीम की आज्ञा पूछा करे; और वह इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली समेत उसके कहने से जाया करे, और उसी के कहने से लौट भी आया करे।
22. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने यहोशू को लेकर, एलीआजर याजक और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके,
23. उस पर हाथ रखे, और उसको आज्ञा दी जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा या।।
Chapter 28
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा सुना कि मेरा चढ़ावा, अर्यात् मुझे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला मेरा हव्यरूपी भोजन, तुम लोग मेरे लिथे उनके नियत समयोंपर चढ़ाने के लिथे स्मरण रखना।
3. और तू उन से कह, कि जो जो तुम्हें यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा वे थे हैं; अर्यात् नित्य होमबलि के लिथे एक एक वर्ष के दो निर्दोष भेड़ी के बच्चे प्रतिदिन चढ़ाया करे।
4. एक बच्चे को भोर को और दूसरे को गोधूलि के समय चढ़ाना;
5. और भेड़ के बच्चे के पीछे एक चौयाई हीन कूटके निकाले हुए तेल से सने हुए एपा के दसवें अंश मैदे का अन्नबलि चढ़ाना।
6. यह नित्य होमबलि है, जो सीनै पर्वत पर यहोवा का सुखदायक सुगन्धवाला हव्य होने के लिथे ठहराया गया।
7. और उसका अर्घ प्रति एक भेड़ के बच्चे के संग एक चौयाई हीन हो; मदिरा का यह अर्घ यहोवा के लिथे पवित्रस्यान में देना।
8. और दूसरे बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना; अन्नबलि और अर्घ समेत भोर के होमबलि की नाई उसे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य करके चढ़ाना।।
9. फिर विश्रमदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिथे तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना।
10. नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्थेक विश्रमदिन का यही होमबलि ठहरा है।।
11. फिर अपके महीनोंके आरम्भ में प्रतिमास यहोवा के लिथे होमबलि चढ़ाना; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के निर्दोष भेड़ के सात बच्चे;
12. और बछड़े पीछे तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा, और उस एक मेढ़े के साय तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा;
13. और प्रत्थेक भेड़ के बच्चे के पीछे तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा, उन सभोंको अन्नबलि करके चढ़ाना; वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे होमबलि और यहोवा के लिथे हव्य ठहरेगा।
14. और उनके साय थे अर्घ हों; अर्यात् बछड़े पीछे आध हीन, मेढ़े के साय तिहाई हीन, और भेड़ के बच्चे पीछे चौयाई हीन दाखमधु दिया जाए; वर्ष के सब महीनोंमें से प्रति एक महीने का यही होमबलि ठहरे।
15. और एक बकरा पापबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाया जाए; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।।
16. फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसह हुआ करे।
17. और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को पर्ब्ब लगा करे; सात दिन तक अखमीरी रोटी खाई जाए।
18. पहिले दिन पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न किया जाए;
19. उस में तुम यहोवा के लिथे हव्य, अर्यात् होमबलि चढ़ाना; सो दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे हों; थे सब निर्दोष हों;
20. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश और मेढ़े के सात एपा का दो दसवां अंश मैदा हो।
21. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से प्रति एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश चढ़ाना।
22. और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
23. भोर का होमबलि जो नित्य होमबलि ठहरा है, उसके अलावा इनको चढ़ाना।
24. इस रीति से तुम उन सातोंदिनोंमें भी हव्य का भोजन चढ़ाना, जो यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हो; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।
25. और सातवें दिन भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।।
26. फिर पहिली उपज के दिन में, जब तुम अपके अठवारे नाम पर्ब्ब में यहोवा के लिथे नया अन्नबलि चढ़ाओगे, तब भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और परिश्र्म का कोई काम न करना।
27. और एक होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे;
28. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के संग एपा का दो दसवां अंश,
29. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
30. और एक बकरा भी चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
31. थे सब निर्दोष हों; और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा इसको भी चढ़ाना।।
Chapter 29
1. फिर सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना। वह तुम्हारे लिथे जयजयकार का नरसिंगा फूंकने का दिन ठहरा है;
2. तुम होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे;
3. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का दो दसवां अंश,
4. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
5. और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
6. इन सभोंसे अधिक नए चांद का होमबलि और उसका अन्नबलि, और नित्य होमबलि और उसका अन्नबलि, और उन सभोंके अर्घ भी उनके नियम के अनुसार सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे यहोवा के हव्य करके चढ़ाना।।
7. फिर उसी सातवें महीने के दसवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; तुम अपके अपके प्राण को दु:ख देना, और किसी प्रकार का कामकाज न करना;
8. और यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध देने को होमबलि; अर्यात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे चढ़ाना; फिर थे सब निर्दोष हों;
9. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के साय एपा का दो दसवां अंश,
10. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
11. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे सब प्रायश्चित्त के पापबलि और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि के, और उन सभोंके अर्धो के अलावा चढ़ाया जाए।।
12. फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस में परिश्र्म का कोई काम न करना, और सात दिन तक यहोवा के लिथे पर्ब्ब मानना;
13. तुम होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; अर्यात् तेरह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह भेड़ के बच्चे; थे सब निर्दोष हों;
14. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् तेरहोंबछड़ोंमें से एक एक बछड़े के पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और दोनोंमेढ़ोंमें से एक एक मेढ़े के पीछे एपा का दो दसवां अंश,
15. और चौदहोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
16. और पापबलि के लिथे एक बकरा चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
17. फिर दूसरे दिन बारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
18. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।।
19. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
20. फिर तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
21. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
22. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
23. और फिर चौथे दिन दस बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
24. बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
25. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
26. फिर पांचवें दिन नौ बछड़े, दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
27. और बछड़ों, मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
28. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
29. फिर छठवें दिन आठ बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
30. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना।
31. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
32. फिर सातवें दिन सात बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना।
33. और बछड़ोंऔर मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना।
34. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
35. फिर आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना,
36. और उस में होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; वह एक बछड़े, और एक मेढ़े, और एक एक वर्ष के सात निर्दोंष भेड़ के बच्चोंका हो;
37. बछड़े, और मेढ़े, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
38. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
39. अपक्की मन्नतोंऔर स्वेच्छाबलियोंके अलावा, अपके अपके नियत समयोंमें, थे ही होमबलि, अन्नबलि, अर्घ, और मेलबलि, यहोवा के लिथे चढ़ाना।
40. यह सारी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी जो उस ने इस्त्राएलियोंको सुनाई।।
Chapter 30
1. फिर मूसा ने इस्त्राएली गोत्रोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंसे कहा, यहोवा ने यह आज्ञा दी है,
2. कि जब कोई पुरूष यहोवा की मन्नत माने, वा अपके आप को वाचा से बान्धने के लिथे शपय खाए, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुंह से निकला हो उसके अनुसार वह करे।
3. और जब कोई स्त्री अपक्की कुंवारी अवस्या में, अपके पिता के घर से रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने, वा अपके को वाचा से बान्धे,
4. तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत वा उसका वह वचन सुनकर, जिस से उसने अपके आप को बान्धा हो, उस से कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह भी स्यिर रहे।
5. परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको बरजे, तो उसकी मन्नतें वा और प्रकार के बन्धन, जिन से उस ने अपके आप को बान्धा हो, उन में से एक भी स्यिर न रहे, और यहोवा यह जान कर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप झमा करेगा।
6. फिर यदि वह पति के अधीन हो और मन्नत माने, वा बिना सोच विचार किए ऐसा कुछ कहे जिस से वह बन्धन में पके,
7. और यदि उसका पति सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी मन्नतें स्यिर रहें, और जिन बन्धनोंसे उस ने अपके आप को बान्धा हो वह भी स्यिर रहें।
8. परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उस ने मानी है, और जो बात बिना सोच विचार किए कहने से उस ने अपके आप को वाचा से बान्धा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप झमा करेगा।
9. फिर विधवा वा त्यागी हुई स्त्री की मन्नत, वा किसी प्रकार की वाचा का बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, तो वह स्यिर ही रहे।
10. फिर यदि कोई स्त्री अपके पति के घर में रहते मन्नत माने, वा शपय खाकर अपके आप को बान्धे,
11. और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह स्यिर रहे।
12. परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुंह से अपके बन्धन के विषय निकला हो, उस में से एक बात भी स्यिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिथे यहोवा उस स्त्री का वह पाप झमा करेगा।
13. कोई भी मन्नत वा शपय क्योंन हो, जिस से उस स्त्री ने अपके जीव को दु:ख देने की वाचा बान्धी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े;
14. अर्यात् यदि उसका पति दिन प्रति दिन उस से कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनोंको जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उस ने उनको दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उस ने कुछ नहीं कहा।
15. और यदि वह उन्हें सुनकर पीछे तोड़ दे, तो अपक्की स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा।
16. पति पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर मे रहती हुई कुंवारी बेटी के बीच, जिन विधियोंकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे थे ही हैं।।
Chapter 31
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. मिद्यानियोंसे इस्त्राएलियोंका पलटा ले; बाद को तू अपके लोगोंमें जा मिलेगा।
3. तब मूसा ने लोगोंसे कहा, अपके में से पुरूषोंको युद्ध के लिथे हयियार बन्धाओ, कि वे मिद्यानियोंपर चढ़के उन से यहोवा का पलटा ले।
4. इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूषोंको युद्ध करने के लिथे भेजो।
5. तब इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूष चुने गथे, अर्यात् युद्ध के लिथे हयियार-बन्द बारह हजार पुरूष।
6. प्रत्थेक गोत्र में से उन हजार हजार पुरूषोंको, और एलीआजर याजक के पुत्र पीनहास को, मूसा ने युद्ध करने के लिथे भेजा, और उसके हाथ में पवित्रस्यान के पात्र और वे तुरहियां यीं जो सांस बान्ध बान्ध कर फूंकी जाती यीं।
7. और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, उसके अनुसार उन्होंने मिद्यानियोंसे युद्ध करके सब पुरूषोंको घात किया।
8. और दूसरे जूफे हुओं को छोड़ उन्होंने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिद्यान के पांचोंराजाओं को घात किया; और बोर के पुत्र बिलाम को भी उन्होंने तलवार से घात किया।
9. और इस्त्राएलियोंने मिद्यानी स्त्रियोंको बालबच्चोंसमेत बन्धुआई में कर लिया; और उनके गाय-बैल, भेड़-बकरी, और उनकी सारी सम्पत्ति को लूट लिया।
10. और उनके निवास के सब नगरों, और सब छावनियोंको फूंक दिया;
11. तब वे, क्या मनुष्य क्या पशु, सब बन्धुओं और सारी लूट-पाट को लेकर
12. यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर, मोआब के अराबा में, छावनी के निकट, मूसा और एलीआजर याजक और इस्त्राएलियोंकी मण्डली के पास आए।।
13. तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के सब प्रधान छावनी के बाहर उनका स्वागत करने को निकले।
14. और मूसा सहस्त्रपति-शतपति आदि, सेनापतियोंसे, जो युद्ध करके लौटे आते थे क्रोधित होकर कहने लगा,
15. क्या तुम ने सब स्त्रियोंको जीवित छोड़ दिया?
16. देखे, बिलाम की सम्मति से, पोर के विषय में इस्त्राएलियोंसे यहोवा का विश्वासघात इन्हीं ने कराया, और यहोवा की मण्डली में मरी फैली।
17. सो अब बालबच्चोंमें से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियोंने पुरूष का मुंह देखा हो उन सभोंको घात करो।
18. परन्तु जितनी लड़कियोंने पुरूष का मुंह न देखा हो उन सभोंको तुम अपके लिथे जीवित रखो।
19. और तुम लोग सात दिन तक छावनी के बाहर रहो, और तुम में से जितनोंने किसी प्राणी को घात किया, और जितनोंने किसी मरे हुए को छूआ हो, वे सब अपके अपके बन्धुओं समेत तीसरे और सातवें दिनोंमें अपके अपके को पाप छुड़ाकर पावन करें।
20. और सब वों, और चमड़े की बनी हुई सब वस्तुओं, और बकरी के बालोंकी और लकड़ी की बनी हुई सब वस्तुओं को पावन कर लो।
21. तब एलीआजर याजक ने सेना के उन पुरूषोंसे जो युद्ध करने गए थे कहा, व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी है वह यह है,
22. कि सोना, चांदी, पीतल, लोहा, रांगा, और सीसा,
23. जो कुछ आग में ठहर सके उसको आग में डालो, तब वह शुद्ध ठहरेगा; तौभी वह अशुद्धता छुड़ानेवाले जल के द्वारा पावन किया जाए; परन्तु जो कुछ आग में न ठहर सके उसे जल में डुबाओ।
24. और सातवें दिन अपके वस्त्रोंको धोना, तब तुम शुद्ध ठहरोगे; और तब छावनी में आना।।
25. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
26. एलीआजर याजक और मण्डली के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको साय लेकर तू लूट के मनुष्योंऔर पशुओं की गिनती कर;
27. तब उनको आधा आधा करके एक भाग उन सिपाहियोंको जो युद्ध करने को गए थे, और दूसरा भाग मण्डली को दे।
28. फिर जो सिपाही युद्ध करने को गए थे, उनके आधे में से यहोवा के लिथे, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां
29. पांच सौ के पीछे एक को मानकर ले ले; और यहोवा की भेंट करके एलीआजर याजक को दे दे।
30. फिर इस्त्राएलियोंके आधे में से, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां, क्या किसी प्रकार का पशु हो, पचास के पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दे।
31. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी मूसा और एलीआजर याजक ने किया।
32. और जो वस्तुएं सेना के पुरूषोंने अपके अपके लिथे लूट ली यीं उन से अधिक की लूट यह यी; अर्यात् छ: लाख पचहत्तर हजार भेड़-बकरियां,
33. बहत्तर हजार गाय बैल,
34. इकसठ हजार गदहे,
35. और मनुष्योंमें से जिन स्त्रियोंने पुरूष का मुंह नहीं देखा या वह सब बत्तीस हजार यीं।
36. और इसका आधा, अर्यात् उनका भाग जो युद्ध करने को गए थे, उस में भेड़बकरियां तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार,
37. जिस में से पौने सात सौ भेड़-बकरियां यहोवा का कर ठहरीं।
38. और गाय-बैल छत्तीस हजार, जिन में से बहत्तर यहोवा का कर ठहरे।
39. और गदहे साढ़े तीस हजार, जिन में से इकसठ यहोवा का कर ठहरे।
40. और मनुष्य सोलह हजार जिन में से बत्तीस प्राणी यहोवा का कर ठहरे।
41. इस कर को जो यहोवा की भेंट यी मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार एलीआजर याजक को दिया।
42. और इस्त्राएलियोंकी मण्डली का आधा
43. तीन लाख साढ़े सैंतिस हजार भेड़-बकरियां
44. छत्तीस हजार गाय-बैल,
45. साढ़े तीस हजार गदहे,
46. और सोलह हजार मनुष्य हुए।
47. इस आधे में से, जिसे मूसा ने युद्ध करनेवाले पुरूषोंके पास से अलग किया या, यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने, क्या मनुष्य क्या पशु, पचास पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दिया।
48. तब सहस्त्रपति-शतपति आदि, जो सरदार सेना के हजारोंके ऊपर नियुक्त थे, वे मूसा के पास आकर कहने लगे,
49. जो सिपाही हमारे अधीन थे उनकी तेरे दासोंने गिनती ली, और उन में से एक भी नहीं घटा।
50. इसलिथे पायजेब, कड़े, मुंदरियां, बालियां, बाजूबन्द, सोने के जो गहने, जिस ने पाया है, उनको हम यहोवा के साम्हने अपके प्राणोंके निमित्त प्रायश्चित्त करने को यहोवा की भेंट करके ले आए हैं।
51. तब मूसा और एलीआजर याजक ने उन से वे सब सोने के नक्काशीदार गहने ले लिए।
52. और सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंने जो भेंट का सोना यहोवा की भेंट करके दिया वह सब का सब सोलह हजार साढ़े सात सौ शेकेल का या।
53. ( योद्धाओं ने तो अपके अपके लिथे लूट ले ली यी। )
54. यह सोना मूसा और एलीआजर याजक ने सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंसे लेकर मिलापवाले तम्बू में पहुंचा दिया, कि इस्त्राएलियोंके लिथे यहोवा के साम्हने स्म्रण दिलानेवाली वस्तु ठहरे।।
Chapter 32
1. रूबेनियोंऔर गादियोंके पास बहुत जानवर थे। जब उन्होंने याजेर और गिलाद देशोंको देखकर विचार किया, कि वह ढ़ोरोंके योग्य देश है,
2. तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के प्रधानोंके पास जाकर कहने लगे,
3. अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन नगरोंका देश
4. जिस पर यहोवा ने इस्त्राएल की मण्डली को विजय दिलवाई है, वह ढोरोंके योग्य है; और तेरे दासोंके पास ढोर हैं।
5. फिर उन्होंने कहा, यदि तेरा अनुग्रह तेरे दासोंपर हो, तो यह देश तेरे दासोंको मिले कि उनकी निज भूमि हो; हमें यरदन पार न ले चल।
6. मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंसे कहा, जब तुम्हारे भाई युद्ध करने को जाएंगे तब क्या तुम यहां बैठे रहोगे?
7. और इस्त्राएलियोंसे भी उस पार के देश जाने के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया है तुम क्योंअस्वीकार करवाते हो?
8. जब मैं ने तुम्हारे बापदादोंको कादेशबर्ने से कनान देश देखने के लिथे भेजा, तब उन्होंने भी ऐसा ही किया या।
9. अर्यात् जब उन्होंने एशकोल नाम नाले तक पहुंचकर देश को देखा, तब इस्त्राएलियोंसे उस देश के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया या अस्वीकार करा दिया।
10. इसलिथे उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपय खाई कि,
11. नि:सन्देह जो मनुष्य मिस्र से निकल आए हैं उन में से, जितने बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्या के हैं, वे उस देश को देखने न पाएंगे, जिसके देने की शपय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिथे;
12. परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्र कालेब, और नून का पुत्र यहोशू, थे दोनोंजो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिथे हैं थे तो उसे देखने पाएंगे।
13. सो यहोवा का कोप इस्त्राएलियोंपर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगोंका अन्त न हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया या, तब तक अर्यात् चालीस वर्ष तक वह जंगल में मारे मारे फिराता रहा।
14. और सुनो, तुम लोग उन पापियोंके बच्चे होकर इसी लिथे अपके बाप-दादोंके स्यान पर प्रकट हुए हो, कि इस्त्राएल के विरूद्ध यहोवा से भड़के हुए कोप को और भड़काओ!
15. यदि तुम उसके पीछे चलने से फिर जाओ, तो वह फिर हम सभोंको जंगल में छोड़ देगा; इस प्रकार तुम इन सारे लोगोंका नाश कराओगे।
16. तब उन्होंने मूसा के और निकट आकर कहा, हम अपके ढ़ोरोंके लिथे यहीं भेड़शाले बनाएंगे, और अपके बालबच्चोंके लिथे यहीं नगर बसाएंगे,
17. परन्तु आप इस्त्राएलियोंके आगे आगे हयियार बन्द तब तक चलेंगे, जब तक उनको उनके स्यान में न पहुंचा दे; परन्तु हमारे बालबच्चे इस देश के निवासियोंके डर से गढ़वाले नगरोंमें रहेंगे।
18. परन्तु जब तक इस्त्राएली अपके अपके भाग के अधिक्कारनेी न होंतब तक हम अपके घरोंको न लौटेंगे।
19. हम उनके साय यरदन पार वा कहीं आगे अपना भाग न लेंगे, क्योंकि हमारा भाग यरदन के इसी पार पूरब की ओर मिला है।
20. तब मूसा ने उन से कहा, यदि तुम ऐसा करो, अर्यात् यदि तुम यहोवा के आगे आगे युद्ध करने को हयियार बान्धो।
21. और हर एक हयियार-बन्द यरदन के पार तब तक चले, जब तक यहोवा अपके आगे से अपके शत्रुओं को न निकाले
22. और देश यहोवा के वश में न आए; तो उसके पीछे तुम यहां लौटोगे, और यहोवा के और इस्त्राएल के विषय निर्दोष ठहरोगे; और यह देश यहोवा के प्रति तुम्हारी निज भूमि ठहरेगा।
23. और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा।
24. तुम अपके बालबच्चोंके लिथे नगर बसाओ, और अपक्की भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाओ; और जो तुम्हारे मुंह से निकला है वही करो।
25. तब गादियोंऔर रूबेनियोंने मूसा से कहा, अपके प्रभु की आज्ञा के अनुसार तेरे दास करेंगे।
26. हमारे बालबच्चे, स्त्रियां, भेड़-बकरी आदि, सब पशु तो यहीं गिलाद के नगरोंमें रहेंगे;
27. परन्तु अपके प्रभु के कहे के अनुसार तेरे दास सब के सब युद्ध के लिथे हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे लड़ने को पार जाएंगे।
28. तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्त्राएलियोंके गोत्रोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको यह आज्ञा दी,
29. कि यदि सब गादी और रूबेनी पुरूष युद्ध के लिथे हयियार-बन्द तुम्हारे संग यरदन पार जाएं, और देश तुम्हारे वश में आ जाए, तो गिलाद देश उनकी निज भूमि होने को उन्हें देना।
30. परन्तु यदि वे तुम्हारे संग हयियार-बन्द पार न जाएं, तो उनकी निज भूमि तुम्हारे बीच कनान देश में ठहरे।
31. तब गादी और रूबेनी बोल उठे, यहोवा ने जैसा तेरे दासोंसे कहलाया है वैसा ही हम करेंगे।
32. हम हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे उस पार कनान देश में जाएंगे, परन्तु हमारी निज भूमि यरदन के इसी पार रहे।।
33. तब मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंको, और यूसुफ के पुत्र मनश्शे के आधे गोत्रियोंको एमोरियोंके राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग, दोनोंके राज्योंका देश, नगरों, और उनके आसपास की भूमि समेत दे दिया।
34. तब गादियोंने दीबोन, अतारोत, अरोएर,
35. अत्रौत, शोपान, याजेर, योगबहा,
36. बेतनिम्रा, और बेयारान नाम नगरोंको दृढ़ किया, और उन में भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाए।
37. और रूबेनियोंने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम को,
38. फिर नबो और बालमोन के नाम बदलकर उनको, और सिबमा को दृढ़ किया; और उन्होंने अपके दृढ़ किए हुए नगरोंके और और नाम रखे।
39. और मनश्शे के पुत्र माकीर के वंशवालोंने गिलाद देश में जाकर उसे ले लिया, और जो एमोरी उस में रहते थे उनको निकाल दिया।
40. तब मूसा ने मनश्शे के पुत्र माकीर के वंश को गिलाद दे दिया, और वे उस में रहने लगे।
41. और मनश्शेई याईर ने जाकर गिलाद की कितनी बस्तियां ले लीं, और उनके नाम हव्वोत्याईर रखे।
42. और नोबह ने जाकर गांवोंसमेत कनात को ले लिया, और उसका नाम अपके नाम पर नोबह रखा।।
Chapter 33
1. जब से इस्त्राएली मूसा और हारून की अगुवाई से दल बान्धकर मिस्र देश से निकले, तब से उनके थे पड़ाव हुए।
2. मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावोंके अनुसार लिख दिए; और वे थे हैं।
3. पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने रामसेस से कूच किया; फसह के दूसरे दिन इस्त्राएली सब मिस्रियोंके देखते बेखटके निकल गए,
4. जब कि मिस्री अपके सब पहिलौठोंको मिट्टी दे रहे थे जिन्हें यहोवा ने मारा या; और उस ने उनके देवताओं को भी दण्ड दिया या।
5. इस्त्राएलियोंने रामसेस से कूच करे सुक्कोत में डेरे डाले।
6. और सुक्कोत से कूच करके एताम में, जो जंगल के छोर पर हैं, डेरे डाले।
7. और एताम से कूच करके वे पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बालसपोन के साम्हने है; और मिगदोल के साम्हने डेरे खड़े किए।
8. तब वे पीहहीरोत के साम्हने से कूच कर समुद्र के बीच होकर जंगल में गए, और एताम नाम जंगल में तीन दिन का मार्ग चलकर मारा में डेरे डाले।
9. फिर मारा से कूच करके वे एलीम को गए, और एलीम में जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृझ मिले, और उन्होंने वहां डेरे खड़े किए।
10. तब उन्होंने एलीम से कूच करे लाल समुद्र के तीर पर डेरे खड़े किए।
11. और लाल समुद्र से कूच करके सीन नाम जंगल में डेरे खड़े किए।
12. फिर सीन नाम जंगल से कूच करके उन्होंने दोपका में डेरा किया।
13. और दोपका से कूच करके आलूश में डेरा किया।
14. और आलूश से कूच करके रपीदीम में डेरा किया, और वहां उन लोगोंको पीने का पानी न मिला।
15. फिर उन्होंने रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में डेरे डाले।
16. और सीनै के जंगल से कूच करके किब्रोयत्तावा में डेरा किया।
17. और किब्रोयत्तावा से कूच करे हसेरोत में डेरे डाले।
18. और हसेरोत से कूच करके रित्मा में डेरे डाले।
19. फिर उन्होंने रित्मा से कूच करके रिम्मोनपेरेस में डेरे खड़े किए।
20. और रिम्मोनपेरेस से कूच करके लिब्ना में डेरे खड़े किए।
21. और लिब्ना से कूच करके रिस्सा में डेरे खड़े किए।
22. और रिस्सा से कूच करके कहेलाता में डेरा किया।
23. और कहेलाता से कूच करके शेपेर पर्वत के पास डेरा किया।
24. फिर उन्होंने शेपेर पर्वत से कूच करके हरादा में डेरा किया।
25. और हरादा से कूच करके मखेलोत में डेरा किया।
26. और मखेलोत से कूच करके तहत में डेरे खड़े किए।
27. और तहत से कूच करके तेरह में डेरे डाले।
28. और तेरह से कूच करके मित्का में डेरे डाले।
29. फिर मित्का से कूच करके उन्होंने हशमोना में डेरे डाले।
30. और हशमोना से कूच करके मोसेरोत मे डेरे खड़े किए।
31. और मोसेरोत से कूच करके याकानियोंके बीच डेरा किया।
32. और याकानियोंके बीच से कूच करके होर्हग्गिदगाद में डेरा किया।
33. और होर्हग्गिदगाद से कूच करके योतबाता में डेरा किया।
34. और योतबाता से कूच करके अब्रोना में डेरे खड़े किए।
35. और अब्रोना से कूच करके एस्योनगेबेर में डेरे खड़े किए।
36. और एस्योनगेबेर के कूच करके उन्होंने सीन नाम जंगल के कादेश में डेरा किया।
37. फिर कादेश से कूच करके होर पर्वत के पास, जो एदोम देश के सिवाने पर है, डेरे डाले।
38. वहां इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के चालीसवें वर्ष के पांचवें महीने के पहिले दिन को हारून याजक यहोवा की आज्ञा पाकर होर पर्वत पर चढ़ा, और वहां मर गया।
39. और जब हारून होर पर्वत पर मर गया तब वह एक सौ तेईस वर्ष का या।
40. और अरात का कनानी राजा, जो कनान देश के दक्खिन भाग में रहता या, उस ने इस्त्राएलियोंके आने का समाचार पाया।
41. तब इस्त्राएलियोंने होर पर्वत से कूच करके सलमोना में डेरे डाले।
42. और सलमोना से कूच करके पूनोन में डेरे डाले।
43. और पूनोन से कूच करके ओबोस में डेरे डाले।
44. और ओबोस से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें जो मोआब के सिवाने पर हैं, डेरे डाले।
45. तब उन डीहोंसे कूच करके उन्होंने दीबोनगाद में डेरा किया।
46. और दीबोनगाद से कूच करके अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया।
47. और अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया।
48. फिर अबारीम पहाड़ोंसे कूच करके मोआब के अराबा में, यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर डेरा किया।
49. और वे मोआब के अराबा में वेत्यशीमोत से लेकर आबेलशित्तीम तक यरदन के तीर तीर डेरे डाले।।
50. फिर मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, यहोवा ने मूसा से कहा,
51. इस्त्राएलियोंको समझाकर कह, जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो
52. तब उस देश के निवासिक्कों उनके देश से निकाल देना; और उनके सब नक्काशे पत्यरोंको और ढली हुई मूतिर्योंको नाश करना, और उनके सब पूजा के ऊंचे स्यानोंको ढा देना।
53. और उस देश को अपके अधिक्कारने में लेकर उस में निवास करना, क्योंकि मैं ने वह देश तुम्हीं को दिया है कि तुम उसके अधिक्कारनेी हो।
54. और तुम उस देश को चिट्ठी डालकर अपके कुलोंके अनुसार बांट लेना; अर्यात् जो कुल अधिकवाले हैं उन्हें अधिक, और जो योड़ेवाले हैं उनको योड़ा भाग देना; जिस कुल की चिट्ठी जिस स्यान के लिथे निकले वही उसका भाग ठहरे; अपके पितरोंके गोत्रोंके अनुसार अपना अपना भाग लेना।
55. परन्तु यदि तुम उस देश के निवासिक्कों अपके आगे से न निकालोगे, तो उन में से जिनको तुम उस में रहने दोगे वे मानो तुम्हारी आंखोंमें कांटे और तुम्हारे पांजरोंमें कीलें ठहरेंगे, और वे उस देश में जहां तुम बसोगे तुम्हें संकट में डालेंगे।
56. और उन से जैसा बर्ताव करने की मनसा मैं ने की है वैसा ही तुम से करूंगा।
Chapter 34
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा दे, कि जो देश तुम्हारा भाग होगा वह तो चारोंओर से सिवाने तक का कनान देश है, इसलिथे जब तुम कनान देश मे पहुंचों,
3. तब तुम्हारा दक्खिनी प्रान्त सीन नाम जंगल से ले एदोम देश के किनारे किनारे होता हुआ चला जाए, और तुम्हारा दक्खिनी सिवाना खारे ताल के सिक्के पर आरम्भ होकर पश्चिम की ओर चले;
4. वहां से तुम्हारा सिवाना अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिन की ओर पहुंचकर मुड़े, और सीन तक आए, और कादेशबर्ने की दक्खिन की ओर निकले, और हसरद्दार तक बढ़के अस्मोन तक पहुंचे;
5. फिर वह सिवाना अस्मोन से घूमकर मिस्र के नाले तक पहुंचे, और उसका अन्त समुद्र का तट ठहरे।
6. फिर पच्छिमी सिवाना महासमुद्र हो; तुम्हारा पच्छिमी सिवाना यही ठहरे।
7. और तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यह हो, अर्यात् तुम महासमुद्र से ले होर पर्वत तक सिवाना बन्धाना;
8. और होर पर्वत से हामात की घाटी तक सिवाना बान्धना, और वह सदाद पर निकले;
9. फिर वह सिवाना जिप्रोन तक पहुंचे, और हसरेनान पर निकले; तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यही ठहरे।
10. फिर अपना पूरबी सिवाना हसरेनान से शपाम तक बान्धना;
11. और वह सिवाना शपाम से रिबला तक, जो ऐन की पूर्व की ओर है, नीचे को उतरते उतरते किन्नेरेत नाम ताल के पूर्व से लग जाए;
12. और वह सिवाना यरदन तक उतरके खारे ताल के तट पर निकले। तुम्हारे देश के चारोंसिवाने थे ही ठहरें।
13. तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फिर कहा, जिस देश के तुम चिट्ठी डालकर अधिक्कारनेी होगे, और यहोवा ने उसे साढ़े नौ गोत्र के लोगोंको देने की आज्ञा दी है, वह यही है;
14. परन्तु रूबेनियोंऔर गादियोंके गोत्र तो अपके अपके पितरोंके कुलोंके अनुसार अपना अपना भाग पा चुके हैं, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग भी अपना भाग पा चुके हैं;
15. अर्यात् उन अढ़ाई गोत्रोंके लोग यरीहो के पास की यरदन के पार पूर्व दिशा में, जहां सूर्योदय होता है, अपना अपना भाग पा चुके हैं।।
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
17. कि जो पुरूष तुम लोगोंके लिथे उस देश को बांटेंगे उनके नाम थे हैं; अर्यात् एलीआजर याजक और नून का पुत्र यहोशू।
18. और देश को बांटने के लिथे एक एक गोत्र का एक एक प्रधान ठहराना।
19. और इन पुरूषोंके नाम थे हैं; अर्यात् यहूदागोत्री यपुन्ने का पुत्र कालेब,
20. शिमोनगोत्री अम्मीहूद का पुत्र शमुएल,
21. बिन्यामीनगोत्री किसलोन का पुत्र एलीदाद,
22. दानियोंके गोत्र का प्रधान योग्ली का पुत्र बुक्की,
23. यूसुफियोंमें से मनश्शेइयोंके गोत्र का प्रधान एपोद का पुत्र हन्नीएल,
24. और एप्रैमियोंके गोत्र का प्रधान शिम्तान का पुत्र कमूएल,
25. जबूलूनियोंके गोत्र का प्रधान पर्नाक का पुत्र एलीसापान,
26. इस्साकारियोंके गोत्र का प्रधान अज्जान का पुत्र पलतीएल,
27. आशेरियोंके गोत्र का प्रधान शलोमी का पुत्र अहीहूद,
28. और नप्तालियोंके गोत्र का प्रधान अम्मीहूद का पुत्र पदहेल।
29. जिन पुरूषोंको यहोवा ने कनान देश को इस्त्राएलियोंके लिथे बांटने की आज्ञा दी वे थे ही हैं।।
Chapter 35
1. फिर यहोवा ने, मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि तुम अपके अपके निज भाग की भूमि में से लेवियोंको रहने के लिथे नगर देना; और नगरोंके चारोंओर की चराइयां भी उनको देना।
3. नगर तो उनके रहने के लिथे, और चराइयां उनके गाय-बैल और भेड़-बकरी आदि, उनके सब पशुओं के लिथे होंगी।
4. और नगरोंकी चराइयां, जिन्हें तुम लेवियोंको दोगे, वह एक एक नगर की शहरपनाह से बाहर चारोंओर एक एक हजार हाथ तक की हों।
5. और नगर के बाहर पूर्व, दक्खिन, पच्छिम, और उत्तर अलंग, दो दो हजार हाथ इस रीति से नापना कि नगर बीचोंबीच हो; लेवियोंके एक एक नगर की चराई इतनी ही भूमि की हो।
6. और जो नगर तुम लेवियोंको दोगे उन में से छ: शरणनगर हों, जिन्हें तुम को खूनी के भागने के लिथे ठहराना होगा, और उन से अधिक बयालीस नगर और भी देना।
7. जितने नगर तुम लेवियोंको दोगे वे सब अड़तालीस हों, और उनके साय चराइयां देना।
8. और जो नगर तुम इस्त्राएलियोंकी निज भूमि में से दो, वे जिनके बहुत नगर होंउन से योड़े लेकर देना; सब अपके अपके नगरोंमें से लेवियोंको अपके ही अपके भाग के अनुसार दें।।
9. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
10. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो,
11. तक ऐसे नगर ठहराना जो तुम्हारे लिथे शरणनगर हों, कि जो कोई किसी को भूल से मारके खूनी ठहरा हो वह वहां भाग जाए।
12. वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेनेवाले से शरण लेने के काम आएंगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिथे मण्डली के साम्हने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए।
13. और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छ: हों।
14. तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें।
15. थे छहोंनगर इस्त्राएलियोंके और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी शरणस्यान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए।
16. परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हयियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
17. और यदि कोई ऐसा पत्यर हाथ में लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
18. वा कोई हाथ में ऐसी लकड़ी लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
19. लोहू का पलटा लेनेवाला आप की उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले।
20. और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, वा घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए,
21. वा शत्रुता से उसको अपके हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिस ने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लोहू का पलटा लेनेवाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले।
22. परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, वा बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे,
23. वा ऐसा कोई पत्यर लेकर, जिस से कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो;
24. तो मण्डली मारनेवाले और लोहू का पलटा लेनेवाले के बीच इन नियमोंके अनुसार न्याय करे;
25. और मण्डली उस खूनी को लोहू के पलटा लेनेवाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहां वह पहिले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्र तेल से अभिषेक किया हुआ महाथाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे।
26. परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्यान के सिवाने से जिस में वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए,
27. और लोहू का पलटा लेनेवाला उसको शरणस्यान के सिवाने के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लोहू बहाने का दोषी न ठहरे।
28. क्योंकि खूनी को महाथाजक की मृत्यु तक शरणस्यान में रहना चाहिथे; और महाथाजक के मरने के पश्चात् वह अपक्की निज भूमि को लौट सकेगा।
29. तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सब रहने के स्यानोंमें न्याय की यह विधि होगी।
30. और जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले वह साझियोंके कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साझी की साझी से कोई न मार डाला जाए।
31. और जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना न लेना; वह अवश्य मार डाला जाए।
32. और जो किसी शरणस्यान में भागा हो उसके लिथे भी इस मतलब से जुरमाना न लेना, कि वह याजक के मरने से पहिले फिर अपके देश मे रहने को लौटने पाएं।
33. इसलिथे जिस देश में तुम रहोगे उसको अशुद्ध न करना; खून से तो देश अशुद्ध हो जाता है, और जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लोहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित्त हो सकता है।
34. जिस देश में तुम निवास करोगे उसके बीच मै रहूंगा, उसको अशुद्ध न करना; मैं यहोवा तो इस्त्राएलियोंके बीच रहता हूं।।
Chapter 36
1. फिर यूसुफियोंके कुलोंमें से गिलाद, जो माकीर का पुत्र और मनश्शे का पोता या, उसके वंश के कुल के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूष मूसा के समीप जाकर उस प्रधानोंके साम्हने, जो इस्त्राएलियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे, कहने लगे,
2. यहोवा ने हमारे प्रभु को आज्ञा दी यी, कि इस्त्राएलियोंको चिट्ठी डालकर देश बांट देना; और फिर यहोवा की यह भी आज्ञा हमारे प्रभु को मिली, कि हमारे सगोत्री सलोफाद का भाग उसकी बेटियोंको देना।
3. तो यदि वे इस्त्राएलियोंके और किसी गोत्र के पुरूषोंसे ब्याही जाएं, तो उनका भाग हमारे पितरोंके भाग से छूट जाएगा, और जिस गोत्र में से ब्याही जाएं उसी गोत्र के भाग में मिल जाएगा; तब हमारा भाग घट जाएगा।
4. और जब इस्त्राएलियोंकी जुबली होगी, तब जिस गोत्र में वे ब्याही जाएं उसके भाग में उनका भाग पक्की रीति से मिल जाएगा; और वह हमारे पितरोंके गोत्र के भाग से सदा के लिथे छूट जाएगा।
5. तब यहोवा से आज्ञा पाकर मूसा ने इस्त्राएलियोंसे कहा, यूसुफियोंके गोत्री ठीक कहते हैं।
6. सलोफाद की बेटियोंके विषय में यहोवा ने यह आज्ञा दी है, कि जो वर जिसकी दृष्टि में अच्छा लगे वह उसी से ब्याही जाए; परन्तु वे अपके मूलपुरूष ही के गोत्र के कुल में ब्याही जाएं।
7. और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र का भाग दूसरे के गोत्र के भाग में ने मिलने पाए; इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के गोत्र के भाग पर बने रहें।
8. और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र में किसी की बेटी हो जो भाग पानेवाली हो, वह अपके ही मूलपुरूष के गोत्र के किसी पुरूष से ब्याही जाए, इसलिथे कि इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के भाग के अधिक्कारनेी रहें।
9. किसी गोत्र का भाग दूसरे गोत्र के भाग में मिलने न पाएं; इस्त्राएलियोंके एक एक गोत्र के लोग अपके अपके भाग पर बने रहें।
10. यहोवा की आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी सलोफाद की बेटियोंने किया।
11. अर्यात् महला, तिर्सा, होग्ला, मिलका, और नोआ, जो सलोफाद की बेटियां यी, उन्होंने अपके चचेरे भाइयोंसे ब्याह किया।
12. वे यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें ब्याही गई, और उनका भाग उनके मूलपुरूष के कुल के गोत्र के अधिक्कारने में बना रहा।।
13. जो आज्ञाएं और नियम यहोवा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर मूसा के द्वारा इस्त्राएलियोंको दिए वे थे ही हैं।।
Chapter 1
1. इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकल जाने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहिले दिन को, यहोवा ने सीनै के जंगल में मिलापवाले तम्बू में, मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, एक एक पुरूष की गिनती नाम ले लेकर करना;
3. जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के हों, और जो युद्ध करने के योग्य हों, उन सभोंको उनके दलोंके अनुसार तू और हारून गिन ले।
4. और तुम्हारे साय एक एक गोत्र का एक एक पुरूष भी हो जो अपके पितरोंके घराने का मुख्य पुरूष हो।
5. तुम्हारे उन सायियोंके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से शदेऊर का पुत्र एलीसूर;
6. शिमोन के गोत्र में से सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल;
7. यहूदा के गोत्र में से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन;
8. इस्साकार के गोत्र में से सूआ का पुत्र नतनेल;
9. जबूलून के गोत्र में से हेलोन का पुत्र एलीआब;
10. यूसुफवंशियोंमें से थे हैं, अर्यात् एर्पैम के गोत्र में से अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा, ओर मनश्शे के गोत्र में से पदासूर का पुत्र गम्लीएल;
11. बिन्यामीन के गोत्र में से गिदोनी का पुत्र अबीदान;
12. दान के गोत्र में से अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर;
13. आशेर के गोत्र में से ओक्रान का पुत्र पक्कीएल;
14. गाद के गोत्र में से दूएल का पुत्र एल्यासाप;
15. नप्ताली के गोत्र में से एनाम का पुत्र अहीरा।
16. मण्डली में से जो पुरूष अपके अपके पितरोंके गोत्रोंके प्रधान होकर बुलाए गए वे थे ही हैं, और थे इस्त्राएलियोंके हजारोंमें मुख्य पुरूष थे।
17. और जिन पुरूषोंके नाम ऊपर लिखे हैं उनको साय लेकर,
18. मूसा और हारून ने दूसरे महीने के पहिले दिन सारी मण्डली इकट्ठी की, तब इस्त्राएलियोंने अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्यावालोंके नामोंकी गिनती करवा के अपक्की अपक्की वंशावली लिखवाई;
19. जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी यी उसी के अनुसार उस ने सीनै के जंगल में उनकी गणना की।।
20. और इस्त्राएल के पहिलौठे रूबेन के वंश ने जितने पुरूष अपके कुल और अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
21. और रूबेन के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार थे।।
22. और शिमोन के वंश के लोग जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे, और जो युद्ध करने के योग्य थे वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
23. और शिमोन के गोत्र के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ थे।।
24. और गाद के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
25. और गाद के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ थे।।
26. और यहूदा के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
27. और यहूदा के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ थे।।
28. और इस्साकार के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
29. और इस्साकार के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ थे।।
30. और जबूलून वे वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
31. और जबूलून के गोत्र के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ थे।।
32. और यूसुफ के वंश में से एप्रैम के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
33. और एप्रैम गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार थे।।
34. और मनश्शे के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
35. और मनश्शे के गोत्र के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ थे।।
36. और बिन्यामीन के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
37. और बिन्यामीन के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ थे।।
38. और दान के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे अपके अपके नाम से गिने गए:
39. और दान के गोत्र के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ थे।।
40. और आशेर के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उससे अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
41. और आशेर के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े एकतालीस हजार थे।।
42. और नप्ताली के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए:
43. और नप्ताली के गोत्र के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ थे।।
44. इस प्रकार मूसा और हारून और इस्त्राएल के बारह प्रधानोंने, जो अपके अपके पितरोंके घराने के प्रधान थे, उन सभोंको गिन लिया और उनकी गिनती यही यी।
45. सो जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के होने के कारण युद्ध करने के योग्य थे वे अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
46. और वे सब गिने हुए पुरूष मिलाकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।।
47. इन में लेवीय अपके पितरोंके गोत्र के अनुसार नहीं गिने गए।
48. क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा या,
49. कि लेवीय गोत्र की गिनती इस्त्राएलियोंके संग न करना;
50. परन्तु तू लेवियोंको साझी के तम्बू पर, और उसके कुल सामान पर, निदान जो कुछ उस से सम्बन्ध रखता है उस पर अधिक्कारनेी नियुक्त करना; और कुल सामान सहित निवास को वे ही उठाया करें, और वे ही उस में सेवा टहल भी किया करें, और तम्बू के आसपास वे ही अपके डेरे डाला करें।
51. और जब जब निवास का कूच हो तब तब लेवीय उसको गिरा दें, और जब जब निवास को खड़ा करना हो तब तब लेवीय उसको खड़ा किया करें; और यदि कोई दूसरा समीप आए तो वह मार डाला जाए।
52. और इस्त्राएली अपना अपना डेरा अपक्की अपक्की छावनी में और अपके अपके फण्डे के पास खड़ा किया करें;
53. पर लेवीय अपके डेरे साझी के तम्बू ही की चारोंओर खड़े किया करें, कहीं ऐसा न हो कि इस्त्राएलियोंकी मण्डली पर कोप भड़के; और लेवीय साझी के तम्बू की रझा किया करें।
54. जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं इस्त्राएलियोंने उन्हीं के अनुसार किया।।
Chapter 2
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू की चारोंओर और उसके साम्हने अपके अपके फण्डे और अपके अपके पितरोंके घराने के निशान के समीप अपके डेरे खड़े करें।
3. और जो अपके पूर्व दिशा की ओर जहां सूर्योदय होता है अपके अपके दलोंके अनुसार डेरे खड़े किया करें वे ही यहूदा की छावनीवाले फण्उे के लोग होंगे, और उनका प्रधान अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन होगा,
4. और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ हैं।
5. उनके समीप जो डेरे खड़े किया करें वे इस्साकार के गोत्र के हों, और उनका प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल होगा,
6. और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ हैं।
7. इनके पास जबूलून के गोत्रवाले रहेंगे, और उनका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब होगा,
8. और उनके दल के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ हैं।
9. इस रीति से यहूदा की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख छियासी हजार चार सौ हैं। पहिले थे ही कूच किया करें।।
10. दक्खिन अलंग पर रूबेन की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर होगा,
11. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार हैं।
12. उनके पास जो डेरे खड़े किया करें वे शिमोन के गोत्र के होंगे, और उनका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल होगा,
13. और उनके दल के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ हैं।
14. फिर गाद के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान रूएल का पुत्र एल्यासाप होगा,
15. और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ हैं।
16. रूबेन की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख एक हजार साढ़े चार सौ हैं। दूसरा कूच इनका हो।
17. उनके पीछे और सब छावनियोंके बीचोंबीच लेवियोंकी छावनी समेत मिलापवाले तम्बू का कूच हुआ करे; जिस क्रम से वे डेरे खड़े करें उसी क्रम से वे अपके अपके स्यान पर अपके अपके फण्डे के पास पास चलें।।
18. पच्छिम अलंग पर एप्रैम की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा होगा,
19. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार हैं।
20. उनके समीप मनश्शे के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल होगा,
21. और उनके दल के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ हैं।
22. फिर बिन्यामीन के गोत्र में रहें, और उनका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान होगा,
23. और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ हैं।
24. एप्रैम की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख आठ हजार एक सौ पुरूष हैं। तीसरा कूच इनका हो।
25. उत्तर अलंग पर दान की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर होगा,
26. और उनके दल के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ हैं।
27. और उनके पास जो डेरे खड़े करें वे आशेर के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल होगा,
28. और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े इकतालीस हजार हैं।
29. फिर नप्ताली के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा होगा,
30. और उनके दल के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ हैं।
31. और दान की छावनी में जितने गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख सात हजार छ: सौ हैं। थे अपके अपके फण्डे के पास पास होकर सब से पीछे कूच करें।
32. इस्त्राएलियोंमें से जो अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार गिने गए वे थे ही हैं; और सब छावनियोंके जितने पुरूष अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।
33. परन्तु यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी भी उसके अनुसार लेवीय तो इस्त्राएलियोंमें गिने नहीं गए।
34. और जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी इस्त्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार, अपके अपके फण्डे के पास डेरे खड़े करते और कूच भी करते थे।।
Chapter 3
1. जिस समय यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से बातें की उस समय हारून और मूसा की यह वंशावली यी।
2. हारून के पुत्रोंके नाम थे हैं: नादाब जो उसका जेठा या, और अबीहू, एलीआजार और ईतामार;
3. हारून के पुत्र, जो अभिषिक्त याजक थे, और उनका संस्कार याजक का काम करने के लिथे हुआ या उनके नाम थे ही हैं।
4. नादाब और अबीहू जिस समय सीनै के जंगल में यहोवा के सम्मुख ऊपक्की आग ले गए उसी समय यहोवा के साम्हने मर गए थे; और वे पुत्रहीन भी थे। एलीआजर और ईतामार अपके पिता हारून के साम्हने याजक का काम करते रहे।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. लेवी गोत्रवालोंको समीप ले आकर हारून याजक के साम्हने खड़ा कर, कि वे उसकी सेवा टहल करें।
7. और जो कुछ उसकी ओर से और सारी मण्डली की ओर से उन्हें सौंपा जाए उसकी रझा वे मिलापवाले तम्बू के सामहने करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें;
8. वे मिलापवाले तम्बू के कुल सामान की और इस्त्राएलियोंकी सौंपी हुई वस्तुओं की भी रझा करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें।
9. और तू लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंको सौंप दे; और वे इस्त्राएलियोंकी ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों।
10. और हारून और उसके पुत्रोंको याजक के पद पर नियुक्त कर, और वे अपके याजकपद की रझा किया करें; और यदि अन्य मनुष्य समीप आए, तो वह मार डाला जाए।।
11. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
12. सुन इस्त्राएली स्त्रियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती मैं इस्त्राएलियोंमें से लेवियोंको ले लेता हूं; सो लेवीय मेरे ही हों।
13. सब पहिलौठे मेरे हैं; क्योंकि जिस दिन मैं ने मिस्र देश में के सब पहिलौठोंको मारा, उसी दिन मैं ने क्या मनुष्य क्या पशु इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको अपके लिथे पवित्र ठहराया; इसलिथे वे मेरे ही ठहरेंगे; मैं यहोवा हूं।।
14. फिर यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,
15. लेवियोंमें से जितने पुरूष एक महीने वा उस से अधिक अवस्या के होंउनको उनके पितरोंके घरानोंऔर उनके कुलोंके अनुसार गिन ले।
16. यह आज्ञा पाकर मूसा ने यहोवा के कहे के अनुसार उनको गिन लिया।
17. लेवी के पुत्रोंके नाम थे हैं, अर्यात् गेर्शोन, कहात, और मरारी।
18. और गेर्शोन के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् लिब्नी और शिमी।
19. कहात के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल।
20. और मरारी के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् महली और मूशी। थे लेवियोंके कुल अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार हैं।।
21. गेर्शोन से लिब्नियोंऔर शिमियोंके कुल चले; गेर्शोनवंशियोंके कुल थे ही हैं।
22. इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उन सभोंकी गिनती साढ़े सात हजार यी।
23. गेर्शोनवाले कुल निवास के पीछे पच्छिम की ओर अपके डेरे डाला करें;
24. और गेर्शोनियोंके मूलपुरूष से घराने का प्रधान लाएल का पुत्र एल्यासाप हो।
25. और मिलापवाले तम्बू की जो वस्तुएं गेर्शोनवंशियोंको सौंपी जाएं वे थे हों, अर्यात् निवास और तम्बू, और उसका ओहार, और मिलापवाले तम्बू से द्वार का पर्दा,
26. और जो आंगन निवास और वेदी की चारोंओर है उसके पर्दे, और उसके द्वार का पर्दा, और सब डोरियां जो उस में काम आती हैं।।
27. फिर कहात से अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों, और उज्जीएलियोंके कुल चले; कहातियोंके कुल थे ही हैं।
28. उन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उनकी गिनती आठ हजार छ: सौ यी। वे पवित्र स्यान की रझा के उत्तरदायी थे।
29. कहातियोंके कुल निवास की उस अलंग पर अपके डेरे डाला करें जो दक्खिन की ओर है;
30. और कहातवाले कुलोंसे मूलपुरूष के घराने का प्रधान उज्जीएल का पुत्र एलीसापान हो।
31. और जो वस्तुएं उनको सौंपी जाएं वे सन्दूक, मेज़, दीवट, वेदियां, और पवित्रस्यान का वह सामान जिस से सेवा टहल होती है, और पर्दा; निदान पवित्रस्यान में काम में आनेवाला सारा सामान हो।
32. और लेवियोंके प्रधानोंका प्रधान हारून याजक का पुत्र एलीआजार हो, और जो लोग पवित्रस्यान की सौंपी हुई वस्तुओं की रझा करेंगे उन पर वही मुखिया ठहरे।।
33. फिर मरारी से महलियोंऔर मूशियोंके कुल चले; मरारी के कुल थे ही हैं।
34. इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उन सभोंकी गिनती छ: हजार दो सौ यी।
35. और मरारी के कुलोंके मूलपुरूष के घराने का प्रधान अबीहैल का पुत्र सूरीएल हो; थे लोग निवास के उत्तर की ओर अपके डेरे खड़े करें।
36. और जो वस्तुएं मरारीवंशियोंको सौंपी जाएं कि वे उनकी रझा करें, वे निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां, और सारा सामान; निदान जो कुछ उसके बरतने में काम आए;
37. और चारोंओर के आंगन के खम्भे, और उनकी कुसिर्यां, खूंटे और डोरियां हों।
38. और जो मिलापवाले तम्बू के साम्हने, अर्यात् निवास के साम्हने, पूरब की ओर जहां से सूर्योदय होता है, अपके डेरे डाला करें, वे मूसा और हारून और उसके पुत्रोंके डेरे हों, और पवित्रस्यान की रखवाली इस्त्राएलियोंके बदले वे ही किया करें, और दूसरा जो कोई उसके समीप आए वह मार डाला जाए।
39. यहोवा की इस आज्ञा को पाकर एक महीने की वा उस से अधिक अवस्यावाले जितने लेवीय पुरूषोंको मूसा और हारून ने उनके कुलोंके अनुसार गिन लिया, वे सब के सब बाईस हजार थे।।
40. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएलियोंके जितने पहिलौठे पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक है, उन सभोंको नाम ले लेकर गिन ले।
41. और मेरे लिथे इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और इस्त्राएलियोंके पशुओं के सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; मैं यहोवा हूं।
42. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको गिन लिया।
43. और सब पहिलौठे पुरूष जिनकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उनके नामोंकी गिनती बाईस हजार दो सौ तिहत्तर यी।।
44. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
45. इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और उनके पशुओं की सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; और लेवीय मेरे ही हों; मैं यहोवा हूं।
46. और इस्त्राएलियोंके पहिलौठोंमे से जो दो सौ तिहत्तर गिनती में लेवियोंसे अधिक हैं, उनके छुड़ाने के लिथे,
47. पुरूष पीछे पांच शेकेल ले; वे पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से हों, अर्यात् बीस गेरा का शेकेल हो।
48. और जो रूपया उन अधिक पहिलौठोंकी छुडौती का होगा उसे हारून और उसके पुत्रोंको दे देना।
49. और जो इस्त्राएली पहिलौठे लेवियोंके द्वारा छुड़ाए हुओं से अधिक थे उनके हाथ से मूसा ने छुड़ौती का रूपया लिया।
50. और एक हजार तीन सौ पैंसठ शैकेल रूपया पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से वसूल हुआ।
51. और यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने छुड़ाए हुओं का रूपया हारून और उसके पुत्रोंको दे दिया।।
Chapter 4
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. लेवियोंमें से कहातियोंकी, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, गिनती करो,
3. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावालोंकी सेना में, जितने मिलापवाले तम्बू में कामकाज करने को भरती हैं।
4. और मिलापवाले तम्बू में परमपवित्र वस्तुओं के विषय कहातियोंका यह काम होगा,
5. अर्यात् जब जब छावनी का कूच हो तब तब हारून और उसके पुत्र भीतर आकर, बीचवाले पर्दे को उतार के उस से साझीपत्र के सन्दूक को ढंाप दें;
6. तब वे उस पर सूइसोंकी खालोंका ओहार डालें, और उसके ऊपर सम्पूर्ण नीले रंग का कपड़ा डालें, और सन्दूक में डण्डोंको लगाएं।
7. फिर भेंटवाली रोटी की मेज़ पर नीला कपड़ा बिछाकर उस पर परातों, धूपदानों, करवों, और उंडेलने के कटोरोंको रखें; और नित्य की रोटी भी उस पर हो;
8. तब वे उन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसको सुइसोंकी खालोंके ओहार से ढ़ापे, और मेज़ के डण्डोंको लगा दें।
9. फिर वे नीले रंग का कपड़ा लेकर दीपकों, गलतराशों, और गुलदानोंसमेत उजियाला देनेवाले दीवट को, और उसके सब तेल के पात्रोंको जिन से उसकी सेवा टहल होती है ढांपे;
10. तब वे सारे सामान समेत दीवट को सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें।
11. फिर वे सोने की वेदी पर एक नीला कपड़ा बिछाकर उसको सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें।
12. तब वे सेवा टहल के सारे सामान को लेकर, जिस से पवित्रस्यान में सेवा टहल होली है, नीले कपके के भीतर रखकर सूइसोंकी खालोंके ओहार से ढांपे, और डण्डे पर धर दें।
13. फिर वे वेदी पर से सब राख उठाकर वेदी पर बैंजनी रंग का कपड़ा बिछाएं;
14. तब जिस सामान से वेदी पर की सेवा टहल होती है वह सब, अर्यात् उसके करछे, कांटे, फावडिय़ां, और कटोरे आदि, वेदी का सारा सामान उस पर रखें; और उसके ऊपर सूइसोंकी खालोंका ओहार बिछाकर वेदी में डण्डोंको लगाएं।
15. और जब हारून और उसके पुत्र छावनी के कूच के समय पवित्रस्यान और उसके सारे सामान को ढंाप चुकें, तब उसके बाद कहाती उसके उठाने के लिथे आएं, पर किसी पवित्र वस्तु को न छुएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं। कहातियोंके उठाने के लिथे मिलापवाले तम्बू की थे ही वस्तुएं हैं।
16. और जो वस्तुएं हारून याजक के पुत्र एलीजार को रझा के लिथे सौंपी जाएं वे थे हैं, अर्यात् उजियाला देने के लिथे तेल, और सुगन्धित धूप, और नित्य अन्नबलि, और अभिषेक का तेल, और सारे निवास, और उस में की सब वस्तुएं, और पवित्रस्यान और उसके कुल समान।।
17. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
18. कहातियोंके कुलोंके गोत्रियोंको लेवियोंमें से नाश न होने देना;
19. उसके साय ऐसा करो, कि जब वे परमपवित्र वस्तुओं के समीप आएं तब न मरें परन्तु जीवित रहें; अर्यात् हारून और उसके पुत्र भीतर आकर एक एक के लिथे उसकी सेवकाई और उसका भार ठहरा दें,
20. और वे पवित्र वस्तुओं के देखने को झण भर के लिथे भी भीतर आने न पाएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं।।
21. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
22. गेर्शोनियोंकी भी गिनती उनके पितरोंके घरानोंऔर कुलोंके अनुसार कर;
23. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने को सेना में भरती होंउन सभोंको गिन ले।
24. सेवा करने और भार उठाने में गेर्शोनियोंके कुलवालोंकी यह सेवकाई हो;
25. अर्यात् वे निवास के पटों, और मिलापवाले तम्बू और उसके ओहार, और इसके ऊपरवाले सूइसोंकी खालोंके ओहार, और मिलापवाले तम्बू के द्वार के पर्दे,
26. और निवास, और वेदी की चारोंओर के आंगन के पर्दों, और आंगन के द्वार के पर्दे, और उनकी डोरियों, और उन में बरतने के सारे सामान, इन सभोंको वे उठाया करें; और इन वस्तुओं से जितना काम होता है वह सब भी उनकी सेवकाई में आए।
27. और गेर्शोनियोंके वंश की सारी सेवकाई हारून और उसके पुत्रोंके कहने से हुआ करे, अर्यात् जो कुछ उनको उठाना, और जो जो सेवकाई उनको करनी हो, उनका सारा भार तुम ही उन्हें सौपा करो।
28. मिलापवाले तम्बू में गेर्शोनियोंके कुलोंकी यही सेवकाई ठहरे; और उन पर हारून याजक का पुत्र ईतामार अधिक्कारने रखे।।
29. फिर मरारियोंको भी तू उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लें;
30. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवा करने को सेना में भरती हों, उन सभोंको गिन ले।
31. और मिलापवाले तम्बू में की जिन वस्तुओं के उठाने की सेवकाई उनको मिले वे थे हों, अर्यात् निवास के तख्ते, बेड़े, खम्भे, और कुसिर्यां,
32. और चारोंओर आंगन के खम्भे, और इनकी कुसिर्यां, खूंटे, डोरियां, और भांति भांति के बरतने का सारा सामान; और जो जो सामान ढ़ोने के लिथे उनको सौपा जाए उस में से एक एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन दो।
33. मरारियोंके कुलोंकी सारी सेवकाई जो उन्हें मिलापवाले तम्बू के विषय करनी होगी वह यही है; वह हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में रहे।।
34. तब मूसा और हारून और मण्डली के प्रधानोंने कहातियोंके वंश को, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार,
35. तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की अवस्या के, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, उन सभोंको गिन लिया;
36. और जो अपके अपके कुल के अनुसार गिने गए वे दो हजार साढ़े सात सौ थे।
37. कहातियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने वाले गिने गए वे इतने ही थे; जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी यी उसी के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।।
38. और गेर्शोनियोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
39. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे,
40. उनकी गिनती उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार दो हजार छ: सौ तीस यी।
41. गेर्शोनियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए वे इतने ही थे; यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।।
42. फिर मरारियोंके कुलोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए,
43. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे,
44. उनकी गिनती उनके कुलोंके अनुसार तीन हजार दो सौ यी।
45. मरारियोंके कुलोंमें से जिनको मूसा और हारून ने, यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा के द्वारा मिली यी, गिन लिया वे इतने ही थे।।
46. लेवियोंमें से जिनको मूसा और हारून और इस्त्राएली प्रधानोंने उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लिया,
47. अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने का बोफ उठाने का काम करने को हाजिर होने वाले थे,
48. उन सभोंकी गिनती आठ हजार पांच सौ अस्सी यी।
49. थे अपक्की अपक्की सेवा और बोफ ढ़ोने के अनुसार यहोवा के कहने पर गए। जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार वे गिने गए।।
Chapter 5
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि वे सब कोढिय़ोंको, और जितनोंके प्रमेह हो, और जितने लोय के कारण अशुद्ध हों, उन सभोंको छावनी से निकाल दें;
3. ऐसोंको चाहे पुरूष होंचाहे स्त्री छावनी से निकालकर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूं, उनके कारण अशुद्ध हो जाए।
4. और इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया, अर्यात् ऐसे लोगोंको छावनी से निकालकर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा को विश्वासघात करे, और वह प्राणी दोषी हो,
7. तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरे मूल में पांचवां अंश बढ़ाकर अपके दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो।
8. परन्तु यदि उस मनुष्य का कोई कुटुम्बी न हो जिसे दोष का बदला भर दिया जाए, तो उस दोष का जो बदला यहोवा को भर दिया जाए वह याजक का हो, और वह उस प्रायश्चित्तवाले मेढ़े से अधिक हो जिस से उसके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए।
9. और जितनी पवित्र की हुई वस्तुएं इस्त्राएली उठाई हुई भेंट करके याजक के पास लाएं, वे उसी की हों;
10. सब मनुष्योंकी पवित्र की हुई वस्तुएं उसी की ठहरें; कोई जो कुछ याजक को दे वह उसका ठहरे।।
11. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
12. इस्त्राएलियोंसे कह, कि यदि किसी मनुष्य की स्त्री कुचाल चलकर उसका विश्वासघात करे,
13. और कोई पुरूष उसके साय कुकर्म करे, परन्तु यह बात उसके पति से छिपी हो और खुली न हो, और वह अशुद्ध हो गई, परन्तु न तो उसके विरूद्ध कोई साझी हो, और न कुकर्म करते पकड़ी गई हो;
14. और उसके पति के मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपके स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; वा उसके मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो;
15. तो वह पुरूष अपक्की स्त्री को याजक के पास ले जाए, और उसके लिथे एपा का दसवां अंश जव का मैदा चढ़ावा करके ले आए; परन्तु उस पर तेल न डाले, न लोबान रखे, क्योंकि वह जलनवाला और स्मरण दिलानेवाला, अर्यात् अधर्म का स्मरण करानेवाला अन्नबलि होगा।
16. तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी करे;
17. और याजक मिट्टी के पात्र में पवित्र जल ले, और निवासस्यान की भूमि पर की धूलि में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे।
18. तब याजक उस स्त्री को यहोवा के साम्हने खड़ी करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथोंपर धर दे। और अपके हाथ में याजक कडुवा जल लिथे रहे जो शाप लगाने का कारण होगा।
19. तब याजक स्त्री को शपय धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरूष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कडुवे जल के गुण से जो शाप का कारण होता है बची रहे।
20. पर यदि तू अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरूष ने तुझ से प्रसंग किया हो,
21. (और याजक उसे शाप देनेवाली शपय धराकर कहे,) यहोवा तेरी जांघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए, और लोग तेरा नाम लेकर शाप और धिक्कार दिया करें;
22. अर्यात् वह जल जो शाप का कारण होता है तेरी अंतडिय़ोंमें जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जांघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन।
23. तब याजक शाप के थे शब्द पुस्तक में लिखकर उस कडुवे जल से मिटाके,
24. उस स्त्री को वह कडुवा जल पिलाए जो शाप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा।
25. और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुंचाए;
26. और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्यात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए।
27. और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपके पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो शाप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जांघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगोंके बीच स्रापित होगा।
28. पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गभिर्णी हो सकेगी।
29. जलन की व्यवस्या यही है, चाहे कोई स्त्री अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो,
30. चाहे पुरूष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ी कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्या पूरी करे।
31. तब पुरूष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपके अधर्म का बोफ आप उठाएगी।।
Chapter 6
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री नाज़ीर की मन्नत, अर्यात् अपके को यहोवा के लिथे न्यारा करने की विशेष मन्नत माने,
3. तब वह दाखमधु आदि मदिरा से न्यारा रहे; वह न दाखमधु का, न और मदिरा का सिरका पीए, और न दाख का कुछ रस भी पीए, वरन दाख न खाए, चाहे हरी हो चाहे सूखी।
4. जितने दिन यह न्यारा रहे उतने दिन तक वह बीज से ले छिलके तक, जो कुछ दाखलता से उत्पन्न होता है, उस में से कुछ न खाए।
5. फिर जितने दिन उस ने न्यारे रहने की मन्नत मानी हो उतने दिन तक वह अपके सिर पर छुरा न फिराए; और जब तक वे दिन पूरे न होंजिन में वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे तब तक वह पवित्र ठहरेगा, और अपके सिर के बालोंको बढ़ाए रहे।
6. जितने दिन वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे उतने दिन तक किसी लोय के पास न जाए।
7. चाहे उसका पिता, वा माता, वा भाई, वा बहिन भी मरे, तौभी वह उनके कारण अशुद्ध न हो; क्योंकि अपके परमेश्वर के लिथे न्यारा रहने का चिन्ह उसके सिर पर होगा।
8. अपके न्यारे रहने के सारे दिनोंमें वह यहोवा के लिथे पवित्र ठहरा रहे।
9. और यदि कोई उसके पास अचानक मर जाए, और उसके न्यारे रहने का जो चिन्ह उसके सिर पर होगा वह अशुद्ध हो जाए, तो वह शुद्ध होने के दिन, अर्यात् सातवें दिन अपके सिर मुंड़ाए।
10. और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास ले जाए,
11. और याजक एक को पापबलि, और दूसरे को होमबलि करके उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, क्योंकि वह लोय के कारण पापी ठहरा है। और याजक उसी दिन उसका सिर फिर पवित्र करे,
12. और वह अपके न्यारे रहने के दिनोंको फिर यहोवा के लिथे न्यारे ठहराए, और एक वर्ष का एक भेड़ का बच्चा दोषबलि करके ले आए; और जो दिन इस से पहिले बीत गए होंवे व्यर्य गिने जाए, क्योंकि उसके न्यारे रहने का चिन्ह अशुद्ध हो गया।।
13. फिर जब नाज़ीर के न्यारे रहने के दिन पूरे हों, उस समय के लिथे उसकी यह व्यवस्या है; अर्यात् वह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुंचाया जाए,
14. और वह यहोवा के लिथे होमबलि करके एक वर्ष का एक निर्दोष भेड़ का बच्चा पापबलि करके, और एक वर्ष की एक निर्दोष भेड़ की बच्ची, और मेलबलि के लिथे एक निर्दोष मेढ़ा,
15. और अखमीरी रोटियोंकी एक टोकरी, अर्यात् तेल से सने हुए मैदे के फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी पपडिय़ां, और उन बलियोंके अन्नबलि और अर्घ; थे सब चढ़ावे समीप ले जाए।
16. इन सब को याजक यहोवा के साम्हने पहुंचाकर उसके पापबलि और होमबलि को चढ़ाए,
17. और अखमीरी रोटी की टोकरी समेत मेढ़े को यहोवा के लिथे मेलबलि करके, और उस मेलबलि के अन्नबलि और अर्घ को भी चढ़ाए।
18. तब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर अपके बालोंको उस आग पर डाल दे जो मेलबलि के नीचे होगी।
19. फिर जब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मुण्डा चुके तब याजक मेढ़े को पकाया हुआ कन्धा, और टोकरी में से एक अखमीरी रोटी, और एक अखमीरी पपक्की लेकर नाज़ीर के हाथोंपर धर दे,
20. और याजक इनको हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाए; हिलाई हुई छाती और उठाई हुई जांघ समेत थे भी याजक के लिथे पवित्र ठहरें; इसके बाद वह नाज़ीर दाखमधु पी सकेगा।
21. नाज़ीर की मन्नत की, और जो चढ़ावा उसको अपके न्यारे होने के कारण यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा उसकी भी यही व्यवस्या है। जो चढ़ावा वह अपक्की पूंजी के अनुसार चढ़ा सके, उस से अधिक जैसी मन्नत उस ने मानी हो, वैसे ही अपके न्यारे रहने की व्यवस्या के अनुसार उसे करना होगा।।
22. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
23. हारून और उसके पुत्रोंसे कह, कि तुम इस्त्राएलियोंको इन वचनोंसे आशीर्वाद दिया करना कि,
24. यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रझा करे:
25. यहोवा तुझ पर अपके मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे:
26. यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शांति दे।
27. इस रीति से मेरे नाम को इस्त्राएलियोंपर रखें, और मैं उन्हें आशीष दिया करूंगा।।
Chapter 7
1. फिर जब मूसा ने निवास को खड़ा किया, और सारे सामान समेत उसका अभिषेक करके उसको पवित्र किया, और सारे सामान समेत वेदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र किया,
2. तब इस्त्राएल के प्रधान जो अपके अपके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष, और गोत्रोंके भी प्रधान होकर गिनती लेने के काम पर नियुक्त थे,
3. वे यहोवा के साम्हने भेंट ले आए, और उनकी भेंट छ: छाई हुई गाडिय़ां और बारह बैल थे, अर्यात् दो दो प्रधान की ओर से एक एक गाड़ी, और एक एक प्रधान की ओर से एक एक बैल; इन्हें वे निवास के साम्हने यहोवा के समीप ले गए।
4. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
5. उन वस्तुओं को तू उन से ले ले, कि मिलापवाले तम्बू के बरतन में काम आएं, सो तू उन्हें लेवियोंके एक एक कुल की विशेष सेवकाई के अनुसार उनको बांट दे।
6. सो मूसा ने वे सब गाडिय़ां और बैल लेकर लेवियोंको दे दिथे।
7. गेर्शोनियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने दो गाडिय़ां और चार बैल दिए;
8. और मरारियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने चार गाडिय़ां और आठ बैल दिए; थे सब हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में किए गए।
9. और कहातियोंको उस ने कुछ न दिया, क्योंकि उनके लिथे पवित्र वस्तुओं की यह सेवकाई यी कि वह उसे अपके कन्धोंपर उठा लिया करें।।
10. फिर जब वेदी का अभिषेक हुआ तब प्रधान उसके संस्कार की भेंट वेदी के आगे समीप ले जाने लगे।
11. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वेदी के संस्कार के लिथे प्रधान लोग अपक्की अपक्की भेंट अपके अपके नियत दिन पर चढ़ाएं।।
12. सो जो पुरूष पहिले दिन अपक्की भेंट ले गया वह यहूदा गोत्रवाले अम्मीनादाब का पुत्र महशोन या;
13. उसकी भेंट यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
14. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
15. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
16. पापबलि के लिथे एक बकरा;
17. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीनादाब के पुत्र महशोन की यही भेंट यी।।
18. और दूसरे दिन इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल भेंट ले आया;
19. वह यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
20. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
21. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
22. पापबलि के लिथे एक बकरा;
23. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूआर के पुत्र नतनेल की यहीं भेंट यी।।
24. और तीसरे दिन जबूलूनियोंका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब यह भेंट ले आया,
25. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
26. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
27. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
28. पापबलि के लिथे एक बकरा;
29. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। हेलोन के पुत्र एलीआब की यहीं भेंट यी।।
30. और चौथे दिन रूबेनियोंका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर यह भेंट ले आया,
31. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
32. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
33. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
34. पापबलि के लिथे एक बकरा;
35. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। शदेऊर के पुत्र एलीसूर की यहीं भेंट यी।।
36. और पांचवें दिन शिमोनियोंका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल यह भेंट ले आया,
37. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
38. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
39. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
40. पापबलि के लिथे एक बकरा;
41. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पंाच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूरीशद्दै के पुत्र शलूमीएल की यही भेंट यी।।
42. और छठवें दिन गादियोंका प्रधान दूएल का पुत्र एल्यासाप यह भेंट ले आया,
43. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
44. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
45. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
46. पापबलि के लिथे एक बकरा;
47. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। दूएल के पुत्र एल्यासाप की यहीं भेंट यी।।
48. और सातवें दिन एप्रैमियोंका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा यह भेंट ले आया,
49. अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
50. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
51. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
52. पापबलि के लिथे एक बकरा;
53. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीहूद के पुत्र एलीशामा की यहीं भेंट यी।।
54. और आठवें दिन मनश्शेइयोंका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल यह भेंट ले आया,
55. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सो तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
56. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
57. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
58. पापबलि के लिथे एक बकरा;
59. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेडी के बच्चे। पदासूर के पुत्र गम्लीएल की यहीं भेंट यी।।
60. और नवें दिन बिन्यामीनियोंका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान यह भेंट ले आया,
61. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
62. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
63. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
64. पापबलि के लिथे एक बकरा;
65. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। गिदोनी के पुत्र अबीदान की यही भेंट यी।।
66. और दसवें दिन दानियोंका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर यह भेंट ले आया,
67. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
68. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
69. होमबलि के लिथे बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
70. पापबलि के लिथे एक बकरा;
71. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीशद्दै के पुत्र अहीएजेर की यही भेंट यी।।
72. और ग्यारहवें दिन आशेरियोंका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल यह भेंट ले आया।
73. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
74. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का धूपदान;
75. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
76. पापबलि के लिथे एक बकरा;
77. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। ओक्रान के पुत्र पक्कीएल की यहीं भेंट यी।।
78. और बारहवें दिन नप्तालियोंका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा यह भेंट ले आया,
79. अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;
80. फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;
81. होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;
82. पापबलि के लिथे एक बकरा;
83. और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। एनान के पुत्र अहीरा की यही भेंट यी।।
84. वेदी के अभिषेक के समय इस्त्राएल के प्रधानोंकी ओर से उसके संस्कार की भेंट यही हुई, अर्यात् चांदी के बारह परात, चांदी के बारह कटोरे, और सोने के बारह धूपदान।
85. एक एक चांदी का परात एक सौ तीस शेकेल का, और एक एक चांदी का कटोरा सत्तर शेकेल का या; और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से थे सब चांदी के पात्र दो हजार चार सौ शेकेल के थे।
86. फिर धूप से भरे हुए सोने के बारह धूपदान जो पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से दस दस शेकेल के थे, वे सब धूपदान एक सौ बीस शेकेल सोने के थे।
87. फिर होमबलि के लिथे सब मिलाकर बारह बछड़े, बारह मेढ़े, और एक एक वर्ष के बारह भेड़ी के बच्चे, अपके अपके अन्नबलि सहित थे; फिर पापबलि के सब बकरे बारह थे;
88. और मेलबलि के लिथे सब मिला कर चौबीस बैल, और साठ मेढ़े, और साठ बकरे, और एक एक वर्ष के साठ भेड़ी के बच्चे थे। वेदी के अभिषेक होने के बाद उसके संस्कार की भेंट यही हुई।
89. और जब मूसा यहोवा से बातें करने को मिलापवाले तम्बू में गया, तब उस ने प्रायश्चित्त के ढकने पर से, जो साझीपत्र के सन्दूक के ऊपर या, दोनोंकरूबोंके मध्य में से उसकी आवाज सुनी जो उस से बातें कर रहा या; और उस ने ( यहोवा ) उस से बातें की।।
Chapter 8
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. हारून को समझाकर यह कह, कि जब जब तू दीपकोंको बारे तब तब सातोंदीपक का प्रकाश दीवट के साम्हने हो।
3. निदान हारून ने वैसा ही किया, अर्यात् जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार उस ने दीपकोंको बारा, कि वे दीवट के साम्हने उजियाला दे।
4. और दीवट की बनावट यह यी, अर्यात् यह पाए से लेकर फूलोंतक गढ़े हुए सोने का बनाया गया या; जो नमूना यहोवा ने मूसा को दिखलाया या उसी के अनुसार उस ने दीवट को बनाया।।
5. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
6. इस्त्राएलियोंके मध्य में से लेवियोंको अलग लेकर शुद्ध कर।
7. उन्हें शुद्ध करने के लिथे तू ऐसा कर, कि पावन करने वाला जल उन पर छिड़क दे, फिर वे सर्वांग मुण्डन कराएं, और वस्त्र धोएं, और वे अपके को स्वचछ करें।
8. तब वे तेल से सने हुए मैदे के अन्नबलि समेत एक बछड़ा ले लें, और तू पापबलि के लिथे एक दूसरा बछड़ा लेना।
9. और तू लेवियोंको मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप पहुंचाना, और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली को इकट्ठा करना।
10. तब तू लेवियोंको यहोवा के आगे समीप ले आना, और इस्त्राएली अपके अपके हाथ उन पर रखें,
11. तब हारून लेवियोंको यहोवा के साम्हने इस्त्राएलियोंकी ओर से हिलाई हुई भेंट करके अर्पण करे, कि वे यहोवा की सेवा करनेवाले ठहरें।
12. और लेवीय अपके अपके हाथ उन बछड़ोंके सिरोंपर रखें; तब तू लेवियोंके लिथे प्रायश्चित्त करने को एक बछड़ा पापबलि और दूसरा होमबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाना।
13. और लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंके सम्मुख खड़ा करना, और उनको हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा को अपर्ण करना।
14. और उन्हें इस्त्राएलियोंमें से अलग करना, सो वे मेरे ही ठहरेंगे।
15. और जब तू लेवियोंको शुद्ध करके हिलाई हुई भेंट के लिथे अर्पण कर चुके, उसके बाद वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी सेवा टहल करने के लिथे अन्दर आया करें।
16. क्योंकि वे इस्त्राएलियोंमे से मुझे पूरी रीति से अर्पण किए हुए हैं; मै ने उनको सब इस्त्राएलियोंमें से एक एक स्त्री के पहिलौठे की सन्ती अपना कर लिया है।
17. इस्त्राएलियोंके पहिलौठे, चाहे मनुष्य के होंचाहे पशु के, सब मेरे हैं; क्योंकि मैं ने उन्हें उस समय अपके लिथे पवित्र ठहराया जब मैं ने मिस्र देश के सब पहिलौठोंको मार डाला।
18. और मैं ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंके बदले लेवियोंको लिया है।
19. उन्हे लेकर मै ने हारून और उसके पुत्रोंको इस्त्राएलियोंमें से दान करके दे दिया है, कि वे मिलापवाले तम्बू में इस्त्राएलियोंके निमित्त सेवकाई और प्रायश्चित्त किया करें, कहीं ऐसा न हो कि जब इस्त्राएली पवित्रस्यान के समीप आएं तब उन पर कोई महाविपत्ति आ पके।
20. लेवियोंके विषय यहोवा की यह आज्ञा पाकर मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली ने उनके साय ठीक वैसा ही किया।
21. लेवियोंने तो अपके को पाप से पावन किया, और अपके वोंको धो डाला; और हारून ने उन्हें यहोवा के साम्हने हिलाई हुई भेंट के निमित्त अर्पण किया, और उन्हें शुद्ध करने को उनके लिथे प्रायश्चित्त भी किया।
22. और उसके बाद लेवीय हारून और उसके पुत्रोंके साम्हने मिलापवाले तम्बू में अपक्की अपक्की सेवकाई करने को गए; और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को लेवियोंके विषय में दी यी उसी के अनुसार वे उन से व्यवहार करने लगे।।
23. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
24. जो लेवियोंको करना है वह यह है, कि पच्चक्कीस वर्ष की अवस्या से लेकर उस से अधिक आयु में वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी काम करने के लिथे भीतर उपस्यित हुआ करें;
25. और जब पचास वर्ष के होंतो फिर उस सेवा के लिथे न आए और न काम करें;
26. परन्तु वे अपके भाई बन्धुओं के साय मिलापवाले तम्बू के पास रझा का काम किया करें, और किसी प्रकार की सेवकाई न करें। लेवियोंको जो जो काम सौंपे जाएं उनके विषय तू उन से ऐसा ही करना।।
Chapter 9
1. इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के दूसरे वर्ष के पहिले महीने में यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,
2. इस्त्राएली फसह नाम पर्ब्ब को उसके नियत समय पर माना करें।
3. अर्यात् इसी महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय तुम लोग उसे सब विधियोंऔर नियमोंके अनुसार मानना।
4. तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फसह मानने के लिथे कह दिया।
5. और उन्होंने पहले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय सीनै के जंगल में फसह को माना; और जो जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियोंने किया।
6. परन्तु कितने लोग किसी मनुष्य की लोय के द्वारा अशुद्ध होने के कारण उस दिन फसह को न मान सके; वे उसी दिन मूसा और हारून के समीप जाकर मूसा से कहने लगे,
7. हम लोग एक मनुष्य की लोय के कारण अशुद्ध हैं; परन्तु हम क्योंरूके रहें, और इस्त्राएलियोंके संग यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर क्योंन चढ़ाएं?
8. मूसा ने उन से कहा, ठहरे रहो, मै सुन लूं कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देता है।
9. यहोवा ने मूसा से कहा,
10. इस्त्राएलियोंसे कह, कि चाहे तुम लोग चाहे तुम्हारे वंश में से कोई भी किसी लोय के कारण अशुद्ध हो, वा दूर की यात्रा पर हो, तौभी वह यहोवा के लिथे फसह को माने।
11. वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय मानें; और फसह के बलिपशु के मांस को अखमीरी रोटी और कडुए सागपात के साय खाएं।
12. और उस में से कुछ भी बिहान तक न रख छोड़े, और न उसकी कोई हड्डी तोड़े; वे उस पर्ब्ब को फसह की सारी विधियोंके अनुसार मानें।
13. परन्तु जो मनुष्य शुद्ध हो और यात्रा पर न हो, परन्तु फसह के पर्ब्ब को न माने, वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए, उस मनुष्य को यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर न ले आने के कारण अपके पाप का बोफ उठाना पकेगा।
14. और यदि कोई परदेशी तुम्हारे साय रहकर चाहे कि यहोवा के लिथे फसह माने, तो वह उसी विधि और नियम के अनुसार उसको माने; देशी और परदेशी दोनोंके लिथे तुम्हारी एक ही विधि हो।।
15. जिस दिन निवास जो साझी का तम्बू भी कहलाता है खड़ा किया गया, उस दिन बादल उस पर छा गया; और सन्ध्या को वह निवास पर आग सा दिखाई दिया और भोर तक दिखाई देता रहा।
16. और नित्य ऐसा ही हुआ करता या; अर्यात् दिन को बादल छाया रहता, और रात को आग दिखाई देती यी।
17. और जब जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता तब इस्त्राएली प्रस्यान करते थे; और जिस स्यान पर बादल ठहर जाता वहीं इस्त्राएली अपके डेरे खड़े करते थे।
18. यहोवा की आज्ञा से इस्त्राएली कूच करते थे, और यहोवा ही की आज्ञा से वे डेरे खड़े भी करते थे; और जितने दिन तक वह बादल निवास पर ठहरा रहता उतने दिन तक वे डेरे डाले पके रहते थे।
19. और जब जब बादल बहुत दिन निवास पर छाया रहता तब इस्त्राएली यहोवा की आज्ञा मानते, और प्रस्यान नहीं करते थे।
20. और कभी कभी वह बादल योड़े ही दिन तक निवास पर रहता, और तब भी वे यहोवा की आज्ञा से डेरे डाले पके रहते थे और फिर यहोवा की आज्ञा ही से प्रस्यान करते थे।
21. और कभी कभी बादल केवल सन्ध्या से भोर तक रहता; और जब वह भोर को उठ जाता या तब वे प्रस्यान करते थे, और यदि वह रात दिन बराबर रहता तो जब बादल उठ जाता तब ही वे प्रस्यान करते थे।
22. वह बादल चाहे दो दिन, चाहे एक महीना, चाहे वर्ष भर, जब तक निवास पर ठहरा रहता तब तक इस्त्राएली अपके डेरोंमें रहते और प्रस्यान नहीं करते थे; परन्तु जब वह उठ जाता तब वे प्रस्यान करते थे।
23. यहोवा की आज्ञा से वे अपके डेरें खड़े करते, और यहोवा ही की आज्ञा से वे प्रस्यान करते थे; जो आज्ञा यहोवा मूसा के द्वारा देता या उसको वे माना करते थे।।
Chapter 10
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. चांदी की दो तुरहियां गढ़के बनाई जाएं; तू उनको मण्डली के बुलाने, और छावनियोंके प्रस्यान करने में काम में लाना।
3. और जब वे दोनोंफंूकी जाएं, तब सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए।
4. और यदि एक ही तुरही फूंकी जाए, तो प्रधान लोग जो इस्त्राएल के हजारोंके मुख्य पुरूष हैं तेरे पास इकट्ठे हो जाएं।
5. जब तुम लोग सांस बान्धकर फूंको, तो पूरब दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो।
6. और जब तुम दूसरी बेर सांस बान्धकर फूंको, तब दक्खिन दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो। उनके प्रस्यान करने के लिथे वे सांस बान्धकर फूंकें।
7. और जब लोगोंको इकट्ठा करके सभा करनी हो तब भी फूंकना परन्तु सांस बान्धकर नहीं।
8. और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे उन तुरहियोंको फूंका करें। यह बात तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी के लिथे सर्वदा की विधि रहे।
9. और जब तुम अपके देश में किसी सतानेवाले बैरी से लड़ने को निकलो, तब तुरहियोंको सांस बान्धकर फूंकना, तब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को तुम्हारा स्मरण आएगा, और तुम अपके शत्रुओं से बचाए जाओगे।
10. और अपके आनन्द के दिन में, और अपके नियत पर्ब्बोंमें, और महीनोंके आदि में, अपके होमबलियोंऔर मेलबलियोंके साय उन तुरहियोंको फूंकना; इस से तुम्हारे परमेश्वर को तुम्हारा स्मरण आएगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
11. और दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साझी के निवास पर से उठ गया,
12. तब इस्त्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्यान करके निकले; और बादल पारान नाम जंगल में ठहर गया।
13. उनका प्रस्यान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी आरम्भ हुआ।
14. और सब से पहले तो यहूदियोंकी छावनी के फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे दल बान्धकर चले; और उन का सेनापति अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन या।
15. और इस्साकारियोंके गोत्र का सेनापति सूआर का पुत्र नतनेल या।
16. और जबूलूनियोंके गोत्र का सेनापति हेलोन का पुत्र एलीआब या।
17. तब निवास उतारा गया, और गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने जो निवास को उठाते थे प्रस्यान किया।
18. फिर रूबेन की छावनी फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्र एलीशूर या।
19. और शिमोनियोंके गोत्र का सेनापति सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल या।
20. और गादियोंके गोत्र का सेनापति दूएल का पुत्र एल्यासाप या।
21. तब कहातियोंने पवित्र वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्यान किया, और उनके पहुंचने तक गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने निवास को खड़ा कर दिया।
22. फिर एप्रैमियोंकी छावनी के फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा या।
23. और मनश्शेइयोंके गोत्र को सेनापति पदासूर का पुत्र गम्लीएल या।
24. और बिन्यामीनियोंके गोत्र का सेनापति गिदोनी का पुत्र अबीदान या।
25. फिर दानियोंकी छावनी जो सब छावनियोंके पीछे यी, उसके फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे भी दल बना कर चले; और उनका सेनापति अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर या।
26. और आशेरियोंके गोत्र का सेनापति ओक्रान का पुत्र पक्कीएल या।
27. और नप्तालियोंके गोत्र का सेनापति एनान का पुत्र अहीरा या।
28. इस्त्राएली इसी प्रकार अपके अपके दलोंके अनुसार प्रस्यान करते, और आगे बढ़ा करते थे।
29. और मूसा ने अपके ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्र होबाब से कहा, हम लोग उस स्यान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, कि मैं उसे तुम को दूंगा; सो तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्त्राएल के विषय में भला ही कहा है।
30. होबाब ने उसे उत्तर दिया, कि मैं नहीं जाऊंगा; मैं अपके देश और कुटुम्बियोंमें लौट जाऊंगा।
31. फिर मूसा ने कहा, हम को न छोड़, क्योंकि जंगल में कहां कहां डेरा खड़ा करना चाहिथे, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिथे आंखोंका काम देना।
32. और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे।।
33. फिर इस्त्राएलियोंने यहोवा के पर्वत से प्रस्यान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनोंदिनोंके मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिथे विश्रम का स्यान ढूंढ़ता हुआ उनके आगे आगे चलता रहा।
34. और जब वे छावनी के स्यान से प्रस्यान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता या।
35. और जब जब सन्दूक का प्रस्यान होता या तब तब मूसा यह कहा करता या, कि हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तित्तर बित्तर हो जाएं, और तेरे बैरी तेरे साम्हने से भाग जाएं।
36. और जब जब वह ठहर जाता या तब तब मूसा कहा करता या, कि हे यहोवा, हजारोंफार इस्त्राएलियोंमें लौटकर आ जा।।
Chapter 11
1. फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी।
2. तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्यना की, तब वह आग बुफ गई,
3. और उस स्यान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी यी।।
4. फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साय यी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा।
5. हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी;
6. परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।
7. मन्ना तो धनिथे के समान या, और उसका रंग रूप मोती का सा या।
8. लोग इधर उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा या।
9. और रात को छावनी में ओस पड़ती यी तब उसके साय मन्ना भी गिरता या।
10. और मूसा ने सब घरानोंके आदमियोंको अपके अपके डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ।
11. तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपके दास से यह बुरा व्यवहार क्योंकरता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगोंका भार मुझ पर डाला है?
12. क्या थे सब लोग मेरे ही कोख में पके थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपक्की गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगोंको अपक्की गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपय तू ने उनके पूर्वजोंसे खाई है?
13. मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगोंको दूं? थे तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे।
14. मैं अकेला इन सब लोगोंका भार नहीं सम्भाल सकता, कयोंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है।
15. और जो तुझे मेरे साय यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपक्की दुर्दशा न देखने पाऊं।।
16. यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियोंमें से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साय यहां खड़े हों।
17. तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ लेकर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगोंका भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पकेगा।
18. और लोगोंसे कह, कल के लिथे अपके को पवित्र करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना।
19. फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं,
20. परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नयनोंसे निकलने न लगे और तुम को उस से घृणा न हो जाए, कयोंकि तुम लोगोंने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मिस्र से क्योंनिकल आए?
21. फिर मूसा ने कहा, जिन लोगोंके बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे।
22. क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिथे मारे जाए, कि उनको मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिथे इकट्ठी की जाएं, कि उनको मांस मिले?
23. यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।
24. तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगोंको यहोवा की बातें कह सुनाई; और उनके पुरनियोंमें से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारोंओर खड़े किए।
25. तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उस ने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में यी उस में से लेकर उन सत्तर पुरनियोंमें समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की।
26. परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद या, उन में भी आत्मा आई; थे भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिथे गथे थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे।
27. तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं।
28. तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरोंमें से या, उस ने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।
29. मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभोंमें समवा देता!
30. तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियोंसमेत छावनी में चला गया।
31. तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारोंओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए।
32. और लोगोंने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरोंको बटोरते रहे; जिस ने कम से कम बटोरा उस ने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारोंओर फैला दिया।
33. मांस उनके मुंह ही में या, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।
34. और उस स्यान का नाम किब्रोयत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगोंने कामुकता की यी उनको वहां मिट्टी दी गई।
35. फिर इस्त्राएली किब्रोयत्तावा से प्रस्यान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे।।
Chapter 12
1. मूसा ने तो एक कूशी स्त्री के साय ब्याह कर लिया या। सो मरियम और हारून उसकी उस ब्याहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे;
2. उन्होंने कहा, क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साय बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं? उनकी यह बात यहोवा ने सुनी।
3. मूसा तो पृय्वी भर के रहने वाले मनुष्योंसे बहुत अधिक नम्र स्वभाव का या।
4. सो यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मरियम से कहा, तुम तीनोंमिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ। तब वे तीनोंनिकल आए।
5. तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा होकर हारून और मरियम को बुलाया; सो वे दोनोंउसके पास निकल आए।
6. तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपके आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा।
7. परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानोंमे विश्वास योग्य है।
8. उस से मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यझ होकर बातें करता हूं; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। सो तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्योंनहीं डरे?
9. तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया;
10. तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है।
11. तब हारून मूसा से कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हम दोनोंने जो मूर्खता की वरन पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे।
12. और मरियम को उस मरे हुए के समान न रहने दे, जिसकी देह अपक्की मां के पेट से निकलते ही अधगली हो।
13. सो मूसा ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, हे ईश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर।
14. यहोवा ने मूसा से कहा, यदि उसका पिता उसके मुंह पर यूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? सो वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए।
15. सो मरियम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मरियम फिर आने न पाई तब तक लोगोंने प्रस्यान न किया।
16. उसके बाद उन्होंने हसेरोत से प्रस्यान करके पारान नाम जंगल में अपके डेरे खड़े किए।।
Chapter 13
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियोंको देता हूं उसका भेद लेने के लिथे पुरूषोंको भेज; वे उनके पितरोंके प्रति गोत्र का एक प्रधान पुरूष हों।
3. यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषोंको पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियोंके प्रधान थे।
4. उनके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से जककूर का पुत्र शम्मू;
5. शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात;
6. यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब;
7. इस्साकार के गोत्र में से योसेप का पुत्र यिगाल;
8. एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे;
9. बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती;
10. जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल;
11. यूसुफ वंशियोंमें, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी;
12. दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल;
13. आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर;
14. नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी;
15. गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल।
16. जिन पुरूषोंको मूसा ने देश का भेद लेने के लिथे भेजा या उनके नाम थे ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम उस ने यहोशू रखा।
17. उन को कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, इधर से, अर्यात् दझिण देश होकर जाओ,
18. और पहाड़ी देश में जाकर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उस में बसे हुए लोगोंको भी देखो कि वे बलवान् हैं वा निर्बल, योड़े हैं वा बहुत,
19. और जिस देश में वे बसे हुए हैं सो कैसा है, अच्छा वा बुरा, और वे कैसी कैसी बस्तियोंमें बसे हुए हैं, और तम्बुओं में रहते हैं वा गढ़ वा किलोंमें रहते हैं,
20. और वह देश कैसा है, उपजाऊ है वा बंजर है, और उस में वृझ हैं वा नहीं। और तुम हियाव बान्धे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना। वह समय पहली पक्की दाखोंका या।
21. सो वे चल दिए, और सीन नाम जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया।
22. सो वे दझिण देश होकर चले, और हेब्रोन तक गए; वहां अहीमन, शेशै, और तल्मै नाम अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन तो मिस्र के सोअन से सात वर्ष पहिले बसाया गया या।
23. तब वे एशकोल नाम नाले तक गए, और वहां से एक डाली दाखोंके गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उस एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारोंऔर अंजीरोंमें से भी कुछ कुछ ले आए।
24. इस्त्राएली वहां से जो दाखोंका गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्यान का नाम एशकोल नाला रखा गया।
25. चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद लेकर लौट आए।
26. और पारान जंगल के कादेश नाम स्यान में मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के पास पहुंचे; और उनको और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उनको दिखाए।
27. उन्होंने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, कि जिस देश में तू ने हम को भेजा या उस में हम गए; उस में सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है।
28. परन्तु उस देश के निवासी बलवान् हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हम ने वहां अनाकवंशियोंको भी देखा।
29. दझिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं।
30. पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगोंको चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।
31. पर जो पुरूष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, उन लोगोंपर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं।
32. और उन्होंने इस्त्राएलियोंके साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया या यह कहकर निन्दा भी की, कि वह देश जिसका भेद लेने को हम गथे थे ऐसा है, जो अपके निवासिक्कों निगल जाता है; और जितने पुरूष हम ने उस में देखे वे सब के सब बड़े डील डौल के हैं।
33. फिर हम ने वहां नपीलोंको, अर्यात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियोंको देखा; और हम अपक्की दृष्टि में तो उनके साम्हने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।।
Chapter 14
1. तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे।
2. और सब इस्त्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उस ने कहने लगी, कि भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! वा इस जंगल ही में मर जाते!
3. और यहोवा हम को उस देश में ले जाकर क्योंतलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चलें जाएंगे; क्या हमारे लिथे अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएं?
4. फिर वे आपस में कहने लगे, आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मिस्र को लौट चलें।
5. तब मूसा और हारून इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के साम्हने मुंह के बल गिरे।
6. और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब, जो देश के भेद लेनेवालोंमें से थे, अपके अपके वस्त्र फाड़कर,
7. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कहने लगे, कि जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है।
8. यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमे दे देगा।
9. केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरूद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगोंसे डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।
10. तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पत्यरवाह करो। तब यहोवा का तेज सब इस्त्राएलियोंपर प्रकाशमान हुआ।।
11. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्चर्यकर्म देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे?
12. मैं उन्हें मरी से मारूंगा, और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूंगा, और तुझ से एक जाति उपजाऊंगा जो उन से बड़ी और बलवन्त होगी।
13. मूसा ने यहोवा से कहा, तब तो मिस्री जिनके मध्य में से तू अपक्की सामर्य्य दिखाकर उन लोगोंको निकाल ले आया है यह सुनेंगे,
14. और इस देश के निवासिक्कों कहेंगे। उन्होंने तो यह सुना है, कि तू जो यहोवा है इन लोगोंके मध्य में रहता है; और प्रत्यझ दिखाई देता है, और तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और तू दिन को बादल के खम्भे में, और रात को अग्नि के खम्भे में होकर इनके आगे आगे चला करता है।
15. इसलिथे यदि तू इन लोगोंको एक ही बार में मार डाले, तो जिन जातियोंने तेरी कीत्तिर् सुनी है वे कहेंगी,
16. कि यहोवा उन लोगोंको उस देश में जिसे उस ने उन्हें देने की शपय खाई यी पहुंचा न सका, इस कारण उस ने उन्हें जंगल में घात कर डाला है।
17. सो अब प्रभु की सामर्य्य की महिमा तेरे इस कहने के अनुसार हो,
18. कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करूणामय है, और अधर्म और अपराध का झमा करनेवाला है, परन्तु वह दोषी को किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराएगा, और पूर्वजोंके अधर्म का दण्ड उनके बेटों, और पोतों, और परपोतोंको देता है।
19. अब इन लोगोंके अधर्म को अपक्की बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से लेकर यहां तक झमा करता रहा है वैसे ही अब भी झमा कर दे।
20. यहोवा ने कहा, तेरी बिनती के अनुसार मैं झमा करता हूं;
21. परन्तु मेरे जीवन की शपय सचमुच सारी पृय्वी यहोवा की महिमा से परिपूर्ण हो जाएगी;
22. उन सब लोगोंने जिन्होंने मेरी महिमा मिस्र देश में और जंगल में देखी, और मेरे किए हुए आश्चर्यकर्मोंको देखने पर भी दस बार मेरी पक्कीझा की, और मेरी बातें नहीं मानी,
23. इसलिथे जिस देश के विषय मैं ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाई, उसको वे कभी देखने न पाएंगे; अर्यात् जितनोंने मेरा अपमान किया है उन में से कोई भी उसे देखने न पाएगा।
24. परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालिब के साय और ही आत्मा है, और उस ने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिस में वह हो आया है पहुंचाऊंगा, और उसका वंश उस देश का अधिक्कारनेी होगा।
25. अमालेकी और कनानी लोग तराई में रहते हैं, सो कल तुम घूमकर प्रस्यान करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल में जाओ।।
26. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
27. यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं? इस्त्राएली जो मुझ पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, उनका यह बुड़बुड़ाना मैं ने तो सुना है।
28. सो उन से कह, कि यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की शपय जो बातें तुम ने मेरे सुनते कही हैं, नि:सन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साय व्यवहार करूंगा।
29. तुम्हारी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्या के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे,
30. उस में से यपुन्ने के पुत्र कालिब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपय खाई है कि तुम को उस में बसाऊंगा।
31. परन्तु तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय तुम ने कहा है, कि थे लूट में चले जाएंगे, उनको मैं उस देश में पहुंचा दूंगा; और वे उस देश को जान लेंगे जिस को तुम ने तुच्छ जाना है।
32. परन्तु तुम लोगोंकी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी।
33. और जब तक तुम्हारी लोथें जंगल में न गल जाएं तक तक, अर्यात् चालीस वर्ष तक, तुम्हारे बालबच्चे जंगल में तुम्हारे व्यभिचार का फल भोगते हुए चरवाही करते रहेंगे।
34. जितने दिन तुम उस देश का भेद लेते रहे, अर्यात् चालीस दिन उनकी गिनती के अनुसार, दिन पीछे उस वर्ष, अर्यात् चालीस वर्ष तक तुम अपके अधर्म का दण्ड उठाए रहोगे, तब तुम जान लोगे कि मेरा विरोध क्या है।
35. मैं यहोवा यह कह चुका हूं, कि इस बुरी मण्डली के लोग जो मेरे विरूद्ध इकट्ठे हुए हैं उसी जंगल में मर मिटेंगे; और नि:सन्देह ऐसा ही करूंगा भी।
36. तब जिन पुरूषोंको मूसा ने उस देश के भेद लेने के लिथे भेजा या, और उन्होंने लौटकर उस देश की नामधराई करके सारी मण्डली को कुड़कुड़ाने के लिथे उभारा या,
37. उस देश की वे नामधराई करनेवाले पुरूष यहोवा के मारने से उसके साम्हने मर गथे।
38. परन्तु देश के भेद लेनेवाले पुरूषोंमें से नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब दोनोंजीवित रहे।
39. तब मूसा ने थे बातें सब इस्त्राएलियोंको कह सुनाई और वे बहुत विलाप करने लगे।
40. और वे बिहान को सवेरे उठकर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम ने पाप किया है; परन्तु अब तैयार हैं, और उस स्यान को जाएंगे जिसके विषय यहोवा ने वचन दिया या।
41. तब मूसा ने कहा, तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्योंकरते हो? यह सुफल न होगा।
42. यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ो, नहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे।
43. वहां तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, सो तुम तलवार से मारे जाओगे; तुम यहोवा को छोड़कर फिर गए हो, इसलिथे वह तुम्हारे संग नहीं रहेगा।
44. परन्तु वे ढिठाई करके पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक, और मूसा, छावनी से न हटे।
45. अब अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।।
Chapter 15
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम अपके निवास के देश में पहुंचों, जो मैं तुम्हे देता हूं,
3. और यहोवा के लिथे क्या होमबलि, क्या मेलबलि, कोई हव्य चढ़ावो, चाहे वह विशेष मन्नत पूरी करने का हो चाहे स्वेच्छाबलि का हो, चाहे तुम्हारे नियत समयोंमें का हो, या वह चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरियोंमें का हो, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो;
4. तब उस होमबलि वा मेलबलि के संग भेड़ के बच्चे पीछे यहोवा के लिथे चौयाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना,
5. और चौयाई हिन दाखमधु अर्घ करके देना।
6. और मेढ़े पीछे तिहाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना;
7. और उसका अर्घ यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला तिहाई दिन दाखमधु देना।
8. और जब तू यहोवा को होमबलि वा किसी विशेष मन्नत पूरी करने के लिथे बलि वा मेलबलि करके बछड़ा चढ़ाए,
9. तब बछड़े का चढ़ानेवाला उसके संग आध हिन तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाए।
10. और उसका अर्घ आध हिन दाखमधु चढ़ाए, वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य होगा।
11. एक एक बछड़े, वा मेढ़े, वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी के बच्चे के साय इसी रीति चढ़ावा चढ़ाया जाए।
12. तुम्हारे बलिपशुओं की जितनी गिनती हो, उसी गिनती के अनुसार एक एक के साय ऐसा ही किया करना।
13. जितने देशी होंवे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाते समय थे काम इसी रीति से किया करें।
14. और यदि कोई परदेशी तुम्हारे संग रहता हो, वा तुम्हारी किसी पीढ़ी में तुम्हारे बीच कोई रहनेवाला हो, और वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाना चाहे, तो जिस प्रकार तुम करोगे उसी प्रकार वह भी करे।
15. मण्डली के लिथे, अर्यात् तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशी दोनोंके लिथे एक ही विधि हो; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह सदा की विधि ठहरे, कि जैसे तुम हो वैसे ही परदेशी भी यहोवा के लिथे ठहरता है।
16. तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशियोंके लिथे एक ही व्यवस्या और एक ही नियम है।।
17. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
18. इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, कि जब तुम उस देश में पहुंचो जहां मैं तुम को लिथे जाता हूं,
19. और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो।
20. अपके पहिले गूंधे हुए आटे की एक पपक्की उठाई हुई भेंट करके यहोवा के लिथे चढ़ाना; जैसे तुम खलिहान में से उठाई हुई भेंट चढ़ाओगे वैसे ही उसको भी उठाया करना।
21. अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके पहिले गूंधे हुए आटे में से यहोवा को उठाई हुई भेंट दिया करना।।
22. फिर जब तुम इन सब आज्ञाओं में से जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया है किसी का उल्लंघन भूल से करो,
23. अर्यात् जिस दिन से यहोवा आज्ञा देने लगा, और आगे की तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में उस दिन से उस ने जितनी आज्ञाएं मूसा के द्वारा दी हैं,
24. उस में यदि भूल से किया हुआ पाप मण्डली के बिना जाने हुआ हो, तो सारी मण्डली यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला होमबलि करके एक बछड़ा, और उसके संग नियम के अनुसार उसका अन्नबलि और अर्घ चढ़ाए, और पापबलि करके एक बकरा चढ़ाए।
25. जब याजक इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के लिथे प्रायश्चित्त करे, और उनकी झमा की जाएगी; क्योंकि उनका पाप भूल से हुआ, और उन्होंने अपक्की भूल के लिथे अपना चढ़ावा, अर्यात् यहोवा के लिथे हव्य और अपना पापबलि उसके साम्हने चढ़ाया।
26. सो इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली का, और उसके बीच रहनेवाले परदेशी का भी, वह पाप झमा किया जाएगा, क्योंकि वह सब लोगोंके अनजान में हुआ।
27. फिर यदि कोई प्राणी भूल से पाप करे, तो वह एक वर्ष की एक बकरी पापबलि करके चढ़ाए।
28. और याजक भूल से पाप करनेवाले प्राणी के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; सो इस प्रायश्चित्त के कारण उसका वह पाप झमा किया जाएगा।
29. जो कोई भूल से कुछ करे, चाहे वह परदेशी होकर रहता हो, सब के लिथे तुम्हारी एक ही व्यवस्या हो।
30. परन्तु क्या देशी क्या परदेशी, जो प्राणी ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।
31. वह जो यहोवा का वचन तुच्छ जानता है, और उसकी आज्ञा का टालनेवाला है, इसलिथे वह प्राणी निश्चय नाश किया जाए; उसका अधर्म उसी के सिर पकेगा।।
32. जब इस्त्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनोंएक मनुष्य विश्रम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला।
33. और जिनको वह लकड़ी बीनता हुआ मिला, वे उसको मूसा और हारून, और सारी मण्डली के पास ले गए।
34. उन्होंने उसको हवालात में रखा, क्योंकि ऐसे मनुष्य से क्या करना चाहिथे वह प्रकट नहीं किया गया या।
35. तब यहोवा ने मूसा से कहा, वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पत्यरवाह करें।
36. सो जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी उसी के अनुसार सारी मण्डली के लोगोंने उसको छावनी से बाहर ले जाकर पत्यरवाह किया, और वह मर गया।
37. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
38. इस्त्राएलियोंसे कह, कि अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके वोंके कोर पर फालर लगाया करना, और एक एक कोर की फालर पर एक नीला फीता लगाया करना;
39. और वह तुम्हारे लिथे ऐसी फालर ठहरे, जिस से जब जब तुम उसे देखो तब तब यहोवा की सारी आज्ञाएं तुम हो स्मरण आ जाएं; और तुम उनका पालन करो, और तुम अपके अपके मन और अपक्की अपक्की दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो।
40. परन्तु तुम यहोवा की सब आज्ञाओं को स्मरण करके उनका पालन करो, और अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र बनो।
41. मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हे मिस्र देश से निकाल ले आया कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
Chapter 16
1. कोरह जो लेवी का परपोता, कहात का पोता, और यिसहार का पुत्र या, वह एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम, और पेलेत के पुत्र ओन,
2. इन तीनोंरूबेनियोंसे मिलकर मण्डली के अढ़ाई सौ प्रधान, जो सभासद और नामी थे, उनको संग लिया;
3. और वे मूसा और हारून के विरूद्ध उठ खड़े हुए, और उन से कहने लगे, तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिथे तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्योंबन बैठे हो?
4. यह सुनकर मूसा अपके मुंह के बल गिरा;
5. फिर उस ने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, कि बिहान को यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपके समीप बुला लेगा; जिसको वह आप चुन लेगा उसी को अपके समीप बुला भी लेगा।
6. इसलिथे, हे कोरह, तुम अपक्की सारी मण्डली समेत यह करो, अर्यात् अपना अपना धूपदान ठीक करो;
7. और कल उन में आग रखकर यहोवा के साम्हने धूप देना, तब जिसको यहोवा चुन ले वही पवित्र ठहरेगा। हे लेवियों, तुम भी बड़ी बड़ी बातें करते हो, अब बस करो।
8. फिर मूसा ने कोरह से कहा, हे लेवियों, सुनो,
9. क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है, कि इस्त्राएल के परमेश्वर ने तुम को इस्त्राएल की मण्डली से अलग करके अपके निवास की सेवकाई करने, और मण्डली के साम्हने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिथे अपके समीप बुला लिया है;
10. और तुझे और तेरे सब लेवी भाइयोंको भी अपके समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद के भी खोजी हो?
11. और इसी कारण तू ने अपक्की सारी मण्डली को यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी किया है; हारून कौन है कि तुम उस पर बुड़बुड़ाते हो?
12. फिर मूसा ने एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम को बुलवा भेजा; और उन्होंने कहा, हम तेरे पास नहीं आएंगे।
13. क्या यह एक छोटी बात है, कि तू हम को ऐसे देश से जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती है इसलिथे निकाल लाया है, कि हमें जंगल में मार डाले, फिर क्या तू हमारे ऊपर प्रधान भी बनकर अधिक्कारने जताता है?
14. फिर तू हमें ऐसे देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं नहीं पहुंचाया, और न हमें खेतोंऔर दाख की बारियोंके अधिक्कारनेी किया। क्या तू इन लोगोंकी आंखोंमें धूलि डालेगा? हम तो नहीं आएंगे।
15. तब मूसा का कोप बहुत भड़क उठा, और उस ने यहोवा से कहा, उन लोगोंकी भेंट की ओर दृष्टि न कर। मैं ने तो उन से एक गदहा भी नहीं लिया, और न उन में से किसी की हानि की है।
16. तब मूसा ने कोरह से कहा, कल तू अपक्की सारी मण्डली को साय लेकर हारून के साय यहोवा के साम्हने हाजिर होना;
17. और तुम सब अपना अपना धूपदान लेकर उन में धूप देना, फिर अपना अपना धूपदान जो सब समेत अढ़ाई सौ होंगे यहोवा के साम्हने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना अपना धूपदान ले जाना।
18. सो उन्होंने अपना अपना धूपदान लेकर और उन में आग रखकर उन पर धूप डाला; और मूसा और हारून के साय मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़े हुए।
19. और कोरह ने सारी मण्डली को उनके विरूद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया। तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।।
20. तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
21. उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ। कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं।
22. तब वे मुंह के बल गिरके कहने लगे, हे ईश्वर, हे सब प्राणियोंके आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरूष के पाप के कारण तेरा क्रोध सारी मण्डली पर होगा?
23. यहोवा ने मूसा से कहा,
24. मण्डली के लोगोंसे कह, कि कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट जाओ।
25. तब मूसा उठकर दातान और अबीराम के पास गया; और इस्त्राएलियोंके वृद्ध लोग उसके पीछे पीछे गए।
26. और उस ने मण्डली के लोगोंसे कहा, तुम उन दुष्ट मनुष्योंके डेरोंके पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छूओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापोंमें फंसकर मिट जाओ।
27. यह सुन वे कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट गए; परन्तु दातान और अबीराम निकलकर अपक्की पत्नियों, बेंटों, और बालबच्चोंसमेत अपके अपके डेरे के द्वार पर खड़े हुए।
28. तब मूसा ने कहा, इस से तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूं, क्योंकि मैं ने अपक्की इच्छा से कुछ नहीं किया।
29. यदि उन मनुष्योंकी मृत्यु और सब मनुष्योंके समान हो, और उनका दण्ड सब मनुष्योंके समान हो, तब जानोंकि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूं।
30. परन्तु यदि यहोवा अपक्की अनोखी शक्ति प्रकट करे, और पृय्वी अपना मुंह पसारकर उनको, और उनका सब कुछ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पकें, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्योंने यहोवा का अपमान किया है।
31. वह थे सब बातें कह ही चुका या, कि भूमि उन लोगोंके पांव के नीचे फट गई;
32. और पृय्वी ने अपना मुंह खोल दिया और उनका और उनका घरद्वार का सामान, और कोरह के सब मनुष्योंऔर उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया।
33. और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पके; और पृय्वी ने उनको ढंाप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए।
34. और जितने इस्त्राएली उनके चारोंओर थे वे उनका चिल्लाना सुन यह कहते हुए भागे, कि कहीं पृय्वी हम को भी निगल न ले!
35. तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन अढ़ाई सौ धूप चढ़ानेवालोंको भस्म कर डाला।।
36. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
37. हारून याजक के पुत्र एलीआजार से कह, कि उन धूपदानोंको आग में से उठा ले; और आग के अंगारोंको उधर ही छितरा दे, क्योंकि वे पवित्र हैं।
38. जिन्होंने पाप करके अपके ही प्राणोंकी हानि की है, उनके धूपदानोंके पत्तर पीट पीटकर बनाए जाएं जिस से कि वह वेदी के मढ़ने के काम आवे; क्योंकि उन्होंने यहोवा के साम्हने रखा या; इस से वे पवित्र हैं। इस प्रकार वह इस्त्राएलियोंके लिथे एक निशान ठहरेगा।
39. सो एलीआजर याजक ने उन पीतल के धूपदानोंको, जिन में उन जले हुए मनुष्योंने धूप चढ़ाया या, लेकर उनके पत्तर पीटकर वेदी के मढ़ने के लिथे बनवा दिए,
40. कि इस्त्राएलियोंको इस बात का स्मरण रहे कि कोई दूसरा, जो हारून के वंश का न हो, यहोवा के साम्हने धूप चढ़ाने को समीप न जाए, ऐसा न हो कि वह भी कोरह और उसकी मण्डली के समान नष्ट हो जाए, जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा उसको आज्ञा दी यी।।
41. दूसरे दिन इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, कि यहोवा की प्रजा को तुम ने मार डाला है।
42. और जब मण्डली के लोग मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हो रहे थे, तब उन्होंने मिलापवाले तम्बू की ओर दृष्टि की; और देखा, कि बादल ने उसे छा लिया है, और यहोवा का तेज दिखाई दे रहा है।
43. तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू के साम्हने आए,
44. तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
45. तुम उस मण्डली के लोगोंके बीच से हट जाओ, कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। तब वे मुंह के बल गिरे।
46. और मूसा ने हारून से कहा, धूपदान को लेकर उस में वेदी पर से आग रखकर उस पर धूप डाल, मण्डली के पास फुरती से जाकर उसके लिथे प्रायश्चित्त कर; क्योंकि यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का है, और मरी फैलने लगी है।
47. मूसा की आज्ञा के अनुसार हारून धूपदान लेकर मण्डली के बीच में दौड़ा गया; और यह देखकर कि लोगोंमें मरी फैलने लगी है, उस ने धूप जलाकर लोगोंके लिथे प्रायश्चित्त किया।
48. और वह मुर्दोंऔर जीवित के मध्य में खड़ा हुआ; तब मरी यम गई।
49. और जो कोरह के संग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हजार सात सौ थे।
50. तब हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया, और मरी यम गई।।
Chapter 17
1. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे बातें करके उन के पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, उनके सब प्रधानोंके पास से एक एक छड़ी ले; और उन बारह छडिय़ोंमें से एक एक पर एक एक के मूल पुरूष का नाम लिख,
3. और लेवियोंकी छड़ी पर हारून का नाम लिख। क्योंकि इस्त्राएलियोंके पूर्वजोंके घरानोंके एक एक मुख्य पुरूष की एक एक छड़ी होगी।
4. और उन छडिय़ोंको मिलापवाले तम्बू में साझीपत्र के आगे, जहां मैं तुम लोगोंसे मिला करता हूं, रख दे।
5. और जिस पुरूष को मैं चुनूंगा उसकी छड़ी में कलियां फूट निकलेंगी; और इस्त्राएली जो तुम पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपके ऊपर से दूर करूंगा।
6. सो मूसा ने इस्त्राएलियोंसे यह बात कही; और उनके सब प्रधानोंने अपके अपके लिथे, अपके अपके पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, एक एक छड़ी उसे दी, सो बारह छडिय़ां हुई; और उन की छडिय़ोंमें हारून की भी छड़ी यी।
7. उन छडिय़ोंको मूसा ने साझीपत्र के तम्बू में यहोवा के साम्हने रख दिया।
8. दूसरे दिन मूसा साझीपत्र के तम्बू में गया; तो क्या देखा, कि हारून की छड़ी जो लेवी के घराने के लिथे यी उस में कलियां फूट निकली, अर्यात् उस में कलियां लगीं, और फूल भी फूले, और पके बादाम भी लगे हैं।
9. सो मूसा उन सब छडिय़ोंको यहोवा के साम्हने से निकालकर सब इस्त्राएलियोंके पास ले गया; और उन्होंने अपक्की अपक्की छड़ी पहिचानकर ले ली।
10. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून की छड़ी को साझीपत्र के साम्हने फिर धर दे, कि यह उन दंगा करनेवालो के लिथे एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरूद्ध होता रहता है भविष्य में रोक रखे, ऐसा न हो कि वे मर जाएं।
11. और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।।
12. तब इस्त्राएली मूसा से कहने लगे, देख, हमारे प्राण निकला चाहते हैं, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते हैं।
13. जो कोई यहोवा के निवास के समीप जाता है वह मारा जाता है। तो क्या हम सब के सब मर ही जाएंगे।।
Chapter 18
1. फिर यहोवा ने हारून से कहा, कि पवित्रस्यान के अधर्म का भार तुझ पर, और तेरे पुत्रोंऔर तेरे पिता के घराने पर होगा; और तुम्हारा याजक कर्म के अधर्म का भार भी तेरे पुत्रोंपर होगा।
2. और लेवी का गोत्र, अर्यात् तेरे मूलपुरूष के गोत्रवाले जो तेरे भाई हैं, उनको भी अपके साय ले आया कर, और वे तुझ से मिल जाएं, और तेरी सेवा टहल किया करें, परन्तु साझीपत्र के तम्बू के साम्हने तू और तेरे पुत्र ही आया करें।
3. जो तुझे सौंपा गया है उसकी और सारे तम्बू की भी वे रझा किया करें; परन्तु पवित्रस्यान के पात्रोंके और वेदी के समीप न आएं, ऐसा न हो कि वे और तुम लोग भी मर जाओ।
4. सो वे तुझ से मिल जाएं, और मिलापवाले तम्बू की सारी सेवकाई की वस्तुओं की रझा किया करें; परन्तु जो तेरे कुल का न हो वह तुम लोगोंके समीप न आने पाए।
5. और पवित्रस्यान और वेदी की रखवाली तुम ही किया करो, जिस से इस्त्राएलियोंपर फिर कोप न भड़के।
6. परन्तु मैं ने आप तुम्हारे लेवी भाइयोंको इस्त्राएलियोंके बीच से अलग कर लिया है, और वे मिलापवाले तम्बू की सेवा करने के लिथे तुम को और यहोवा को सौंप दिथे गए हैं।
7. पर वेदी की और बीचवाले पर्दे के भीतर की बातोंकी सेवकाई के लिथे तू और तेरे पुत्र अपके याजकपद की रझा करना, और तुम ही सेवा किया करना; क्योंकि मैं तुम्हें याजकपद की सेवकाई दान करता हूं; और जो तेरे कुल का न हो वह यदि समीप आए तो मार डाला जाए।।
8. फिर यहोवा ने हारून से कहा, सुन, मै आप तुझ को उठाई हुई भेंट सौंप देता हूं, अर्यात् इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुएं; जितनी होंउन्हें मैं तेरा अभिषेक वाला भाग ठहराकर तुझे और तेरे पुत्रोंको सदा का हक करके दे देता हूं।
9. जो परमपवित्र वस्तुएं आग में होम न ही जाएंगी वे तेरी ही ठहरें, अर्यात् इस्त्राएलियोंके सब चढ़ावोंमें से उनके सब अन्नबलि, सब पापबलि, और सब दोषबलि, जो वे मुझ को दें, वह तेरे और तेरे पुत्रोंके लिथे परमपवित्र ठहरें।
10. उनको परमपवित्र वस्तु जानकर खाया करना; उनको हर एक पुरूष खा सकता है; वे तेरे लिथे पवित्र हैं।
11. फिर थे वस्तुएं भी तेरी ठहरें, अर्यात् जितनी भेंट इस्त्राएली हिलाने के लिथे दें, उनको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवह उन्हें खा सकेंगे।
12. फिर उत्तम से उत्तम नया दाखमधु, और गेहूं, अर्यात् इनकी पहली उपज जो वे यहोवा को दें, वह मैं तुझ को देता हूं।
13. उनके देश के सब प्रकार की पहली उपज, जो वे यहोवा के लिथे ले आएं, वह तेरी ही ठहरे; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवे उन्हें खा सकेंगें।
14. इस्त्राएलियोंमें जो कुछ अर्पण किया जाए वह भी तेरा ही ठहरे।
15. सब प्राणियोंमें से जितने अपक्की अपक्की मां के पहिलौठे हों, जिन्हें लोग यहोवा के लिथे चढ़ाएं, चाहे मनुष्य के चाहे पशु के पहिलौठे हों, वे सब तेरे ही ठहरें; परन्तु मनुष्योंऔर अशुद्ध पशुओं के पहिलौठोंको दाम लेकर छोड़ देना।
16. और जिन्हें छुड़ाना हो, जब वे महीने भर के होंतब उनके लिथे अपके ठहराए हुए मोल के अनुसार, अर्यात् पवित्रस्यान के बीस गेरा के शेकेल के हिसाब से पांच शेकेल लेके उन्हें छोड़ना।
17. पर गाय, वा भेड़ी, वा बकरी के पहिलौठे को न छोड़ना; वे तो पवित्र हैं। उनके लोहू को वेदी पर छिड़क देना, और उनकी चरबी को हव्य करके जलाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो;
18. परन्तु उनका मांस तेरा ठहरे, और हिलाई हुई छाती, और दहिनी जांघ भी तेरा ही ठहरे।
19. पवित्र वस्तुओं की जितनी भेंटें इस्त्राएली यहोवा को दें, उन सभोंको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं: यह तो तेरे और तेरे वंश के लिथे यहोवा की सदा के लिथे नमक की अटल वाचा है।
20. फिर यहोवा ने हारून से कहा, इस्त्राएलियोंके देश में तेरा कोई भाग न होगा, और न उनके बीच तेरा कोई अंश होगा; उनके बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।।
21. फिर मिलापवाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले मैं उनको इस्त्राएलियोंका सब दशमांश उनका निज भाग कर देता हूं।
22. और भविष्य में इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू के समीप न आएं, ऐसा न हो कि उनके सिर पर पाप लगे, और वे मर जाएं।
23. परन्तु लेवी मिलापवाले तम्बू की सेवा किया करें, और उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें; यह तुम्हारी पीढ़ीयोंमें सदा की विधि ठहरे; और इस्त्राएलियोंके बीच उनका कोई निज भाग न होगा।
24. क्योंकि इस्त्राएली जो दशमांश यहोवा को उठाई हुई भेंट करके देंगे, उसे मैं लेवियोंको निज भाग करके देता हूं, इसीलिथे मैं ने उनके विषय में कहा है, कि इस्त्राएलियोंके बीच कोई भाग उनको न मिले।
25. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
26. तू लेवियोंसे कह, कि जब जब तुम इस्त्राएलियोंके हाथ से वह दशमांश लो जिसे यहोवा तुम को तुम्हारा निज भाग करके उन से दिलाता है, तब तब उस में से यहोवा के लिथे एक उठाई हुई भेंट करके दशमांश का दशमांश देना।
27. और तुम्हारी उठाई हुई भेंट तुम्हारे हित के लिथे ऐसी गिनी जाएगी जैसा खलिहान में का अन्न, वा रसकुण्ड में का दाखरस गिना जाता है।
28. इस रीति तुम भी अपके सब दशमांशोंमें से, जो इस्त्राएलियोंकी ओर से पाओगे, यहोवा को एक उठाई हुई भेंट देना; और यहोवा की यह उठाई हुई भेंट हारून याजक को दिया करना।
29. जितने दान तुम पाओ उन में से हर एक का उत्तम से उत्तम भाग, जो पवित्र ठहरा है, सो उसे यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट करके पूरी पूरी देना।
30. इसलिथे तू लेवियोंसे कह, कि जब तुम उस में का उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो, तब यह तुम्हारे लिथे खलिहान में के अन्न, और रसकुण्ड के रस के तुल्य गिना जाएगा;
31. और उसको तुम अपके घरानोंसमेत सब स्यानोंमें खा सकते हो, क्योंकि मिलापवाले तम्बू की जो सेवा तुम करोगे उसका बदला यही ठहरा है।
32. और जब तुम उसका उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो तब उसके कारण तुम को पाप न लगेगा। परन्तु इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं को अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ।।
Chapter 19
1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा देता है वह यह है; कि तू इस्त्राएलियोंसे कह, कि मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिस में कोई भी दोष न हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो।
3. तब एलीआजर याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए, और कोई उसको उसके सम्हने बलिदान करे;
4. तब एलीआजर याजक अपक्की उंगली से उसका कुछ लोहू लेकर मिलापवाले तम्बू के साम्हने की ओर सात बार छिड़क दे।
5. तब कोई उस बछिया को खाल, मांस, लोहू, और गोबर समेत उसके साम्हने जलाए;
6. और याजक देवदारू की लकड़ी, जूफा, और लाल रंग का कपड़ा लेकर उस आग में जिस में बछिया जलती हो डाल दे।
7. तब वह अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, इसके बाद छावनी में तो आए, परन्तु सांफ तक अशुद्ध रहे।
8. और जो मनुष्य उसको जलाए वह भी जल से अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
9. फिर कोई शुद्ध पुरूष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्यान में रख छोड़े; और वह राख इस्त्राएलियोंकी मण्डली के लिथे अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के लिथे रखी रहे; वह तो पापबलि है।
10. और जो मनुष्य बछिया की राख बटोरे वह अपके वस्त्र धोए, और सांफ तक अशुद्ध रहे। और यह इस्त्राएलियोंके लिथे, और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी सदा की विधि ठहरे।
11. जो किसी मनुष्य की लोय छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे;
12. ऐसा मनुष्य तीसरे दिन उस जल से पाप छुड़ाकर अपके को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन आप को पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध ठहरेगा।
13. जो कोई किसी मनुष्य की लोय छूकर पाप छुड़ाकर अपके को पावन न करे, वह यहोवा के निवासस्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी इस्त्राएल में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उस में बची रहेगी।
14. यदि कोई मनुष्य डेरे में मर जाए तो व्यवस्या यह यह है, कि जितने उस डेरे में रहें, वा उस में जाएं, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहें।
15. और हर एक खुला हुआ पात्र, जिस पर कोई ढकना लगा न हो, वह अशुद्ध ठहरे।
16. और जो कोई मैदान में तलवार से मारे हुए को, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए को, वा मनुष्य की हड्डी को, वा किसी कब्र को छूए, तो सात दिन तक अशुद्ध रहे।
17. अशुद्ध मनुष्य के लिथे जलाए हुए पापबलि की राख में से कुछ लेकर पात्र में डालकर उस पर सोते का जल डाला जाए;
18. तब कोई शुद्ध मनुष्य जूफा लेकर उस जल में डुबाकर जल को उस डेरे पर, और जितने पात्र और मनुष्य उस में हों, उन पर छिड़के, और हड्डी के, वा मारे हुए के, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए के, वा कब्र के छूनेवाले पर छिड़क दे;
19. वह शुद्ध पुरूष तीसरे दिन और सातवें दिन उस अशुद्ध मनुष्य पर छिड़के; और सातवें दिन वह उसके पाप छुड़ाकर उसको पावन करे, तब वह अपके वोंको धोकर और जल से स्नान करके सांफ को शुद्ध ठहरे।
20. और जो कोई अशुद्ध होकर अपके पाप छुड़ाकर अपके को पावन न कराए, वह प्राणी यहोवा के पवित्र स्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण से वह अशुद्ध ठहरेगा।
21. और यह उनके लिथे सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपके वोंको धोए; और जिस जन से अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छू जाए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे।
22. और जो कुछ वह अशुद्ध मनुष्य छूए वह भी अशुद्ध ठहरे; और जो प्राणी उस वस्तु को छूए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे।।
Chapter 20
1. पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई।
2. वहां मण्डली के लोगोंके लिथे पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हुए।
3. और लोग यह कहकर मूसा से फगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए!
4. और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्योंले आए हो, कि हम अपके पशुओं समेत यहां मर जाए?
5. और तुम ने हम को मिस्र से क्योंनिकालकर इस बुरे स्यान में पहुंचाया है? यहां तो बीच, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है।
6. तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपके मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया।
7. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
8. उस लाठी को ले, और तू अपके भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिथे जल निकाल कर मण्डली के लोगोंऔर उनके पशुओं को पिला।
9. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया।
10. और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उस से कह, हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिथे जल निकालना होगा?
11. तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपके पशुओं समेत पीने लगे।
12. परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियोंकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिथे तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है।
13. उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियोंने यहोवा से फगड़ा किया या, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।।
14. फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास दूत भेजे, कि तेरा भाई इस्त्राएल योंकहता है, कि हम पर जो जो क्लेश पके हैं वह तू जानता होगा;
15. अर्यात् यह कि हमारे पुरखा मिस्र में गए थे, और हम मिस्र में बहुत दिन रहे; और मिस्त्र्ियोंने हमारे पुरखाओं के साय और हमारे साय भी बुरा बर्ताव किया;
16. परन्तु जब हम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने हमारी सुनी, और एक दूत को भेजकर हमें मिस्र से निकाल ले आया है; सो अब हम कादेश नगर में हैं जो तेरे सिवाने ही पर है।
17. सो हमें अपके देश में से होकर जाने दे। हम किसी खेत वा दाख की बारी से होकर न चलेंगे, और कूओं का पानी न पीएंगे; सड़क-सड़क होकर चले जाएंगे, और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं, तब तक न दहिने न बाएं मुड़ेंगे।
18. परन्तु एदोमियोंने उसके पास कहला भेजा, कि तू मेरे देश में से होकर मत जा, नहीं तो मैं तलवार लिथे हुए तेरा साम्हना करने को निकलूंगा।
19. इस्त्राएलियोंने उसके पास फिर कहला भेजा, कि हम सड़क ही सड़क चलेंगे, और यदि हम और हमारे पशु तेरा पानी पीएं, तो उसका दाम देंगे, हम को और कुछ नहीं, केवल पांव पांव चलकर निकल जाने दे।
20. परन्तु उस ने कहा, तू आने न पाएगा। और एदोम बड़ी सेना लेकर भुजबल से उसका साम्हना करने को निकल आया।
21. इस प्रकार एदोम ने इस्त्राएल को अपके देश के भीतर से होकर जाने देने से इन्कार किया; इसलिथे इस्त्राएल उसकी ओर से मुड़ गए।।
22. तब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली कादेश से कूच करके होर नाम पहाड़ के पास आ गई।
23. और एदोम देश के सिवाने पर होर पहाड़ में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
24. हारून अपके लोगोंमें जा मिलेगा; क्योंकि तुम दोनो ने जो मरीबा नाम सोते पर मेरा कहना छोड़कर मुझ से बलवा किया है, इस कारण वह उस देश में जाने न पाएगा जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है।
25. सो तू हारून और उसके पुत्र एलीआजर को होर पहाड़ पर ले चल;
26. और हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिना; तब हारून वहीं मरकर अपके लोगोंमे जा मिलेगा।
27. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; वे सारी मण्डली के देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए।
28. तब मूसा ने हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिनाए और हारून वहीं पहाड़ की चोटी पर मर गया। तब मूसा और एलीआजर पहाड़ पर से उतर आए।
29. और जब इस्त्राएल की सारी मण्डली ने देखा कि हारून का प्राण छूट गया है, तब इस्त्राएल के सब घराने के लोग उसके लिथे तीस दिन तक रोते रहे।।
Chapter 21
1. तब अराद का कनानी राजा, जो दक्खिन देश में रहता या, यह सुनकर, कि जिस मार्ग से वे भेदिथे आए थे उसी मार्ग से अब इस्त्राएली आ रहे हैं, इस्त्राएल से लड़ा, और उन में से कितनोंको बन्धुआ कर लिया।
2. तब इस्त्राएलियोंने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, कि यदि तू सचमुच उन लोगोंको हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरोंको सत्यनाश कर देंगे।
3. इस्त्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियोंको उनके वश में कर दिया; सो उन्होंने उनके नगरोंसमेत उनको भी सत्यानाश किया; इस से उस स्यान का नाम होर्मा रखा गया।।
4. फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगोंका मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया।
5. सो वे परमेश्वर के विरूद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिथे क्योंले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं।
6. सो यहोवा ने उन लोगोंमें तेज विषवाले सांप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए।
7. तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरूद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्यना कर, कि वह सांपोंको हम से दूर करे। तब मूसा ने उनके लिथे प्रार्यना की।
8. यहोवा ने मूसा से कहा एक तेज विषवाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।
9. सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया।
10. फिर इस्त्राएलियोंने कूच करके ओबोत में डेरे डाले।
11. और ओबोत से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें डेरे डाले, जो पूरब की ओर मोआब के साम्हने के जंगल में है।
12. वंहा से कूच करके उन्होंने जेरेद नाम नाले में डेरे डाले।
13. वहां से कूच करके उन्होंने अर्नोन नदी, जो जंगल में बहती और एमोरियोंके देश से निकलती है, उसकी परली ओर डेरे खड़े किए; क्योंकि अर्नोन मोआबियोंऔर एमोरियोंके बीच होकर मोआब देश का सिवाना ठहरा है।
14. इस कारण यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक में इस प्रकार लिखा है, कि सूपा में बाहेब, और अर्नोन के नाले,
15. और उन नालोंकी ढलान जो आर नाम नगर की ओर है, और जो मोआब के सिवाने पर है।
16. फिर वहां से कूच करके वे बैर तक गए; वहां वही कूआं है जिसके विषय में यहोवा ने मूसा से कहा या, कि उन लोगोंको इकट्ठा कर, और मैं उन्हे पानी दूंगा।।
17. उस समय इस्त्राएल ने यह गीत गया, कि हे कूएं, उबल आ, उस कूएं के विषय में गाओ!
18. जिसको हाकिमोंने खोदा, और इस्त्राएल के रईसोंने अपके सोंटोंऔर लाठियोंसे खोद लिया।।
19. फिर वे जंगल से मत्ताना को, और मत्ताना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामोत को,
20. और बामोत से कूच करके उस तराई तक जो मोआब के मैदान में है, और पिसगा के उस सिक्के तक भी जो यशीमोन की ओर फुका है पहुंच गए।।
21. तब इस्त्राएल ने एमोरियोंके राजा सीहोन के पास दूतोंसे यह कहला भेजा,
22. कि हमें अपके देश में होकर जाने दे; हम मुड़कर किसी खेत वा दाख की बारी में तो न जाएंगे; न किसी कूएं का पानी पीएंगे; और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं तब तक सड़क ही से चले जाएंगे।
23. तौभी सीहोन ने इस्त्राएल को अपके देश से होकर जाने न दिया; वरन अपक्की सारी सेना को इकट्ठा करके इस्त्राएल का साम्हना करने को जंगल में निकल आया, और यहस को आकर उन से लड़ा।
24. तब इस्त्राएलियोंने उस को तलवार से मार लिया, और अर्नोन से यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियोंका सिवाना या, उसके देश के अधिक्कारनेी हो गए; अम्मोनियोंका सिवाना तो दृढ़ या।
25. सो इस्त्राएल ने एमोरियोंके सब नगरोंको ले लिया, और उन में, अर्यात् हेशबोन और उसके आस पास के नगरोंमें रहने लगे।
26. हेशबोन एमोरियोंके राजा सीहोन का नगर या; उस ने मोआब के अगले राजा से लड़के उसका सारा देश अर्नोन तक उसके हाथ से छीन लिया या।
27. इस कारण गूढ़ बात के कहनेवाले कहते हैं, कि हेशबोन में आओ, सीहोन का नगर बसे, और दृढ़ किया जाए।
28. क्योंकि हेशबोन से आग, अर्यात् सीहोन के नगर से लौ निकली; जिस से मोआब देश का आर नगर, और अर्नोन के ऊंचे स्यानोंके स्वामी भस्म हुए।
29. हे मोआब, तुझ पर हाथ! कमोश देवता की प्रजा नाश हुई, उस ने अपके बेटोंको भगेडू, और अपक्की बेटियोंको एमोरी राजा सीहोन की दासी कर दिया।
30. हम ने उन्हें गिरा दिया है, हेशबोन दीबोन तक नष्ट हो गया है, और हम ने नोपह और मेदबा तक भी उजाड़ दिया है।।
31. सो इस्त्राएल एमोरियोंके देश में रहने लगा।
32. तब मूसा ने याजेर नगर का भेद लेने को भेजा; और उन्होंने उसके गांवोंको लिया, और वहां के एमोरियोंको उस देश से निकाल दिया।
33. तब वे मुड़के बाशान के मार्ग से जाने लगे; और बाशान के राजा ओग न उनका साम्हना किया, अर्यात् लड़ने को अपक्की सारी सेना समेत एद्रेई में निकल आया।
34. तब यहोवा ने मूसा से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूं; और जैसा तू ने एमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन के साय किया है, वैसा ही उसके साय भी करना।
35. तब उन्होंने उसको, और उसके पुत्रोंऔर सारी प्रजा को यहां तक मारा कि उसका कोई भी न बचा; और वे उसके देश के अधिक्कारनेी को गए।
Chapter 22
1. तब इस्त्राएलियोंने कूच करके यरीहो के पास यरदन नदी के इस पार मोआब के अराबा में डेरे खड़े किए।।
2. और सिप्पोर के पुत्र बालाक ने देखा कि इस्त्राएल ने एमोरियोंसे क्या क्या किया है।
3. इसलिथे मोआब यह जानकर, कि इस्त्राएली बहुत हैं, उन लोगोंसे अत्यन्त डर गया; यहां तक कि मोआब इस्त्राएलियोंके कारण अत्यन्त व्याकुल हुआ।
4. तब मोआबियोंने मिद्यानी पुरनियोंसे कहा, अब वह दल हमारे चारोंओर के सब लोगोंको चट कर जाएगा, जिस तरह बैल खेत की हरी घास को चट कर जाता है। उस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआब का राजा या;
5. और इस ने पतोर नगर को, जो महानद के तट पर बोर के पुत्र बिलाम के जातिभाइयोंकी भूमि यी, वहां बिलाम के पास दूत भेजे, कि वे यह कहकर उसे बुला लाएं, कि सुन एक दल मिस्र से निकल आया है, और भूमि उन से ढक गई है, और अब वे मेरे साम्हने ही आकर बस गए हैं।
6. इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे, क्योंकि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इनको अपके देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूं कि जिसको तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिसको तू शाप देता है वह स्रापित होता है।
7. तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिथे भावी कहने की दझिणा लेकर चले, और बिलाम के पास पहुंचकर बालाक की बातें कह सुनाईं।
8. उस ने उन से कहा, आज रात को यहां टिको, और जो बात यहोवा मुझ से कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूंगा; तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहां ठहर गए।
9. तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, कि तेरे यहां थे पुरूष कौन हैं?
10. बिलाम ने परमेश्वर से कहा सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है,
11. कि सुन, जो दल मिस्र से निकल आया है उस से भूमि ढंप गई है; इसलिथे आकर मेरे लिथे उन्हें शाप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उनको बरबस निकाल सकूंगा।
12. परमेश्वर ने बिलाम से कहा, तू इनके संग मत जा; उन लोगोंको शाप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं।
13. भोर को बिलाम ने उठकर बालाक के हाकिमोंसे कहा, तुम अपके देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साय जाने की आज्ञा नहीं देता।
14. तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जाकर कहा, कि बिलाम ने हमारे साय आने से नाह किया है।
15. इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहिलोंसे प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे।
16. उन्होंने बिलाम के पास आकर कहा, कि सिप्पोर का पुत्र बालाक योंकहता है, कि मेरे पास आने से किसी कारण नाह न कर;
17. क्योंकि मैं निश्चय तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे वही मैं करूंगा; इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे।
18. बिलाम ने बालाक के कर्मचारियोंको उत्तर दिया, कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे दे, तौभी मैं अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को पलट नहीं सकता, कि उसे घटाकर वा बढ़ाकर मानूं।
19. इसलिथे अब तुम लोग आज रात को यहीं टिके रहो, ताकि मैं जान लूं, कि यहोवा मुझ से और क्या कहता है।
20. और परमेश्वर ने रात को बिलाम के पास आकर कहा, यदि वे पुरूष तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उठकर उनके संग जा; परन्तु जो बात मैं तुझ से कहूं उसी के अनुसार करना।
21. तब बिलाम भोर को उठा, और अपक्की गदही पर काठी बान्धकर मोआबी हाकिमोंके संग चल पड़ा।
22. और उसके जाने के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा, और यहोवा का दूत उसका विरोध करने के लिथे मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह तो अपक्की गदही पर सवार होकर जा रहा या, और उसके संग उसके दो सेवक भी थे।
23. और उस गदही को यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब गदही मार्ग छोड़कर खेत में चक्की गई; तब बिलाम ने गदही को मारा, कि वह मार्ग पर फिर आ जाए।
24. तब यहोवा का दूत दाख की बारियोंके बीच की गली में, जिसके दोनोंओर बारी की दीवार यी, खड़ा हुआ।
25. यहोवा के दूत को देखकर गदही दीवार से ऐसी सट गई, कि बिलाम का पांव दीवार से दब गया; तब उस ने उसको फिर मारा।
26. तब यहोवा का दूत आगे बढ़कर एक सकेत स्यान पर खड़ा हुआ, जहां न तो दहिनी ओर हटने की जगह यी और न बाईं ओर।
27. वहां यहोवा के दूत को देखकर गदही बिलाम को लिथे दिथे बैठ गई; फिर तो बिलाम का कोप भड़क उठा, और उस ने गदही को लाठी से मारा।
28. तब यहोवा ने गदही का मुंह खोल दिया, और वह बिलाम से कहने लगी, मैं ने तेरा क्या किया है, कि तू ने मुझे तीन बार मारा?
29. बिलाम ने गदही से कहा, यह कि तू ने मुझ से नटखटी की। यदि मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं तुझे अभी मार डालता।
30. गदही ने बिलाम से कहा क्या मैं तेरी वही गदही नहीं जिस पर तू जन्म से आज तक चढ़ता आया है? क्या मैं तुझ से कभी ऐसा करती यी? वह बोला, नहीं।
31. तब यहोवा ने बिलाम की आंखे खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह फुक गया, और मुंह के बल गिरके दण्डवत की।
32. यहोवा के दूत ने उस से कहा, तू ने अपक्की गदही को तीन बार क्योंमारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूं, इसलिथे कि तू मेरे साम्हने उलटी चाल चलता है;
33. और यह गदही मुझे देखकर मेरे साम्हने से तीन बार हट गई। जो वह मेरे साम्हने से हट न जाती, तो नि:सन्देह मैं अब तक तुझ को मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता।
34. तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता या कि तू मेरा साम्हना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिथे अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूं।
35. यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, इन पुरूषोंके संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूंगा। तब बिलाम बालाक के हाकिमोंके संग चला गया।
36. यह सुनकर, कि बिलाम आ रहा है, बालाक उस से भेंट करने के लिथे मोआब के उस नगर तक जो उस देश के अर्नोनवाले सिवाने पर है गया।
37. बालाक ने बिलाम से कहा, क्या मैं ने बड़ी आशा से तुझे नहीं बुलवा भेजा या? फिर तू मेरे पास क्योंनहीं चला आया? क्या मैं इस योग्य नहीं कि सचमुच तेरी उचित प्रतिष्ठा कर सकता?
38. बिलाम ने बालाक से कहा, देख मैं तेरे पास आया तो हूं! परन्तु अब क्या मैं कुछ कर सकता हूं? जो बात परमेश्वर मेरे मुंह में डालेगा वही बात मैं कहूंगा।
39. तब बिलाम बालाक के संग संग चला, और वे किर्ययूसोत तक आए।
40. और बालाक ने बैल और भेड़-बकरियोंको बलि किया, और बिलाम और उसके साय के हाकिमोंके पास भेजा।
41. बिहान को बालाक बिलाम को बालू के ऊंचे स्यानोंपर चढ़ा ले गया, और वहां से उसको सब इस्त्राएली लोग दिखाई पके।।
Chapter 23
1. तब बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और इसी स्यान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।
2. तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
3. फिर बिलाम ने बालाक से कहा, तू अपके होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूं; सम्भव है कि यहोवा मुझ से भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रकाश करेगा वही मैं तुझ को बताऊंगा। तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया।
4. और परमेश्वर बिलाम से मिला; और बिलाम ने उस से कहा, मैं ने सात वेदियां तैयार की हैं, और प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है।
5. यहोवा ने बिलाम के मुंह में एक बाल डालीं, और कहा, बालाक के पास लौट जो, और योंकहना।
6. और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है, कि वह सारे मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है।
7. तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, बालाक ने मुझे आराम से, अर्यात् मोआब के राजा ने मुझे पूरब के पहाड़ोंसे बुलवा भेजा: आ, मेरे लिथे याकूब को शाप दे, आ, इस्त्राएल को धमकी दे!
8. परन्तु जिन्हें ईश्वर ने नहीं शाप दिया उन्हें मैं क्योंशाप दूं? और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूं?
9. चट्टानोंकी चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाडिय़ोंपर से मैं उनको देखता हूं; वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी, और अन्यजातियोंसे अलग गिनी जाएगी!
10. याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है, वा इस्त्राएल की चौयाई की गिनती कौन ले सकता है? सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धमिर्योंकी सी, और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो!
11. तब बालाक ने बिलाम से कहा, तू ने मुझ से क्या किया है?
12. उस ने कहा, जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिथे?
13. बालाक ने उस से कहा, मेरे संग दूसरे स्यान पर चल, जहां से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभोंको तो नहीं, केवल बाहरवालोंको देख सकेगा; वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे।
14. तब वह उसको सोपीम नाम मैदान में पिसगा के सिक्के पर ले गया, और वहां सात वेदियां बनवाकर प्रत्थेक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।
15. तब बिलाम ने बालाक से कहा, अपके होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूं।
16. और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उस ने उसके मुंह में एक बात डाली, और कहा, कि बालाक के पास लौट जा, और योंकहना।
17. और वह उसके पास गया, और क्या देखता है, कि वह मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, कि यहोवा ने क्या कहा है?
18. तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्र, मेरी बात पर कान लगा:
19. ईश्वर मनुष्य नहीं, कि फूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपक्की इच्छा बदले। क्या जो कुछ उस ने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उस पूरा न करे?
20. देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैं ने पाई है: वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता।
21. उस ने याकूब में अनर्य नहीं पाया; और न इस्त्राएल में अन्याय देखा है। उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है, और उन में राजा की सी ललकार होती है।
22. उनको मिस्र में से ईश्वर ही निकाले लिथे आ रहा है, वह तो बैनेले सांड के समान बल रखता है।
23. निश्चय कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता, और इस्त्राएल पर भावी कहना कोई अर्य नहीं रखता; परन्तु याकूब और इस्त्राएल के विषय अब यह कहा जाएगा, कि ईश्वर ने क्या ही विचित्र काम किया है!
24. सुन, वह दल सिंहनी की नाई उठेगा, और सिंह की नाई खड़ा होगा; वह जब तक अहेर को न खा ले, और मरे हुओं के लोहू को न पी ले, तब तक न लेटेगा।।
25. तब बालाक ने बिलाम से कहा, उनको न तो शाप देना, और न आशीष देना।
26. बिलाम ने बालाक से कहा, क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा, कि जो कुछ यहोवा मुझ से कहेगा, वही मुझे करना पकेगा?
27. बालाक ने बिलाम से कहा चल, मैं तुझ को एक और स्यान पर ले चलता हूं; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे।
28. तब बालाक बिलाम को पोर के सिक्के पर, जहां से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया।
29. और बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और यहां सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।
30. बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।।
Chapter 24
1. यह देखकर, कि यहोवा इस्त्राएल को आशीष ही दिलाना चाहता है, बिलाम पहिले की नाई शकुन देखने को न गया, परन्तु अपना मुंह जंगल की ओर कर लिया।
2. और बिलाम ने आंखे उठाई, और इस्त्राएलियोंको अपके गोत्र गोत्र के अनुसार बसे हुए देखा। और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा।
3. तब उसने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखें बन्द यीं उसी की यह वाणी है,
4. ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, जो दण्डवत में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि
5. हे याकूब, तेरे डेरे, और हे इस्त्राएल, तेरे निवासस्यान क्या ही मनभावने हैं!
6. वे तो नालोंवा घाटियोंकी नाई, और नदी के तट की वाटिकाओं के समान ऐसे फैले हुए हैं, जैसे कि यहोवा के लगाए हुए अगर के वृझ, और जल के निकट के देवदारू।
7. और उसके डोलोंसे जल उमण्डा करेगा, और उसका बीच बहुतेरे जलभरे खेतोंमें पकेगा, और उसका राजा अगाग से भी महान होगा, और उसका राज्य बढ़ता ही जाएगा।
8. उसको मिस्र में से ईश्वर की निकाले लिथे आ रहा है; वह तो बनैले सांड़ के सामान बल रखता है, जाति जाति के लोग जो उसके द्रोही है उनको वह खा जाथेगा, और उनकी हड्डियोंको टुकड़े टुकड़े करेगा, और अपके तीरोंसे उनको बेधेगा।
9. वह दबका बैठा है, वह सिंह वा सिंहनी की नाई लेट गया है; अब उसको कौन छेड़े? जो कोई तुझे आशीर्वाद दे सो आशीष पाए, और जो कोई तुझे शाप दे वह स्रापित हो।।
10. तब बालाक का कोप बिलाम पर भड़क उठा; और उस ने हाथ पर हाथ पटककर बिलाम से कहा, मैं ने तुझे अपके शत्रुओं के शाप देने के लिथे बुलवाया, परन्तु तू ने तीन बार उन्हें आशीर्वाद ही आशीर्वाद दिया है।
11. इसलिथे अब तू अपके स्यान पर भाग जा; मैं ने तो सोचा या कि तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, परन्तु अब यहोवा ने तुझे प्रतिष्ठा पाने से रोक रखा है।
12. बिलाम ने बालाक से कहा, जो दूत तू ने मेरे पास भेजे थे, क्या मैं ने उन से भी न कहा या,
13. कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे, तौभी मैं यहोवा की आज्ञा तोड़कर अपके मन से न तो भला कर सकता हूं और न बुरा; जो कुछ यहोवा कहेगा वही मैं कहूंगा?
14. अब सुन, मैं अपके लोगोंके पास लौट कर जाता हूं; परन्तु पहिले मैं तुझे चिता देता हूं कि अन्त के दिनोंमें वे लोग तेरी प्रजा से क्या क्या करेंगे।
15. फिर वह अपक्की गूढ़ बात आरम्भ करके कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखे बन्द यी उसी की यह वाणी है,
16. ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, और परमप्रधान के ज्ञान का जाननेवाला, जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि
17. मै उसको देखूंगा तो सही, परन्तु अभी नहीं; मैं उसको निहारूंगा तो सही, परन्तु समीप होके नहीं: याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्त्राएल में से एक राज दण्ड उठेगा; जो मोआब की अलंगोंको चूर कर देगा, जो सब दंगा करनेवालोंको गिरा देगा।
18. तब एदोम और सेईर भी, जो उसके शत्रु हैं, दोनोंउसके वश में पकेंगे, और इस्त्राएल वीरता दिखाता जाएगा।
19. और याकूब ही में से एक अधिपति आवेगा जो प्रभुता करेगा, और नगर में से बचे हुओं को भी सत्यानाश करेगा।।
20. फिर उस ने अमालेक पर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, अमालेक अन्यजातियोंमें श्रेष्ट तो या, परन्तु उसका अन्त विनाश ही है।।
21. फिर उस ने केनियोंपर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, तेरा निवासस्यान अति दृढ़ तो है, और तेरा बसेरा चट्टान पर तो है;
22. तौभी केन उजड़ जाएगा। और अन्त में अश्शूर् तुझे बन्धुआई में ले आएगा।।
23. फिर उस ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हाथ जब ईश्वर यह करेगा तब कौन जीवित बचेगा?
24. तौभी कित्तियोंके पास से जहाजवाले आकर अश्शूर् को और एबेर को भी दु:ख देंगे; और अन्त में उसका भी विनाश हो जाएगा।।
25. तब बिलाम चल दिया, और अपके स्यान पर लौट गया; और बालाक ने भी अपना मार्ग लिया।।
Chapter 25
1. इस्त्राएली शित्तीम में रहते थे, और लोग मोआबी लड़कियोंके संग कुकर्म करने लगे।
2. और जब उन स्त्रीयोंने उन लोगोंको अपके देवताओं के यज्ञोंमें नेवता दिया, तब वे लोग खाकर उनके देवताओं को दण्डवत् करने लगे।
3. योंइस्त्राएली बालपोर देवता को पूजने लगे। तब यहोवा का कोप इस्त्राएल पर भड़क उठा;
4. और यहोवा ने मूसा से कहा, प्रजा के सब प्रधानोंको पकड़कर यहोवा के लिथे धूप में लटका दे, जिस से मेरा भड़का हुआ कोप इस्त्राएल के ऊपर से दूर हो जाए।
5. तब मूसा ने इस्त्राएली न्यायियोंसे कहा, तुम्हारे जो जो आदमी बालपोर के संग मिल गए हैं उन्हें घात करो।।
6. और जब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही यी, तो एक इस्त्राएली पुरूष मूसा और सब लोगोंकी आंखोंके सामने एक मिद्यानी स्त्री को अपके साय अपके भाइयोंके पास ले आया।
7. इसे देखकर एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून याजक का पोता या, उस ने मण्डली में से उठकर हाथ में एक बरछी ली,
8. और उस इस्त्राएली पुरूष के डेरे में जाने के बाद वह भी भीतर गया, और उस पुरूष और उस स्त्री दोनोंके पेट में बरछी बेध दी। इस पर इस्त्राएलियोंमें जो मरी फैल गई यी वह यम गई।
9. और मरी से चौबीस हजार मनुष्य मर गए।।
10. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
11. हारून याजक का पोता एलीआजर का पुत्र पीनहास, जिसे इस्त्राएलियोंके बीच मेरी सी जलन उठी, उस ने मेरी जलजलाहट को उन पर से यहां तक दूर किया है, कि मैं ने जलकर उनका अन्त नहीं कर डाला।
12. इसलिथे तू कह दे, कि मैं उस से शांति की वाचा बान्धता हूं;
13. और वह उसके लिथे, और उसके बाद उसके वंश के लिथे, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्योंकि उसे अपके परमेश्वर के लिथे जलन उठी, और उस ने इस्त्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित्त किया।
14. जो इस्त्राएली पुरूष मिद्यानी स्त्री के संग मारा गया, उसका नाम जिम्री या, वह साल का पुत्र और शिमोनियोंमें से अपके पितरोंके घराने का प्रधान या।
15. और जो मिद्यानी स्त्री मारी गई उसका नाम कोजबी या, वह सूर की बेटी यी, जो मिद्यानी पितरोंके एक घराने के लोगोंका प्रधान या।।
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
17. मिद्यानियोंको सता, और उन्हें मार;
18. क्योंकि पोर के विषय और कोजबी के विषय वे तुम को छल करके सताते हैं। कोजबी तो एक मिद्यानी प्रधान की बेटी और मिद्यानियोंकी जाति बहिन यी, और मरी के दिन में पोर के मामले में मारी गई।।
Chapter 26
1. फिर यहोवा ने मूसा और एलीआजर नाम हारून याजक के पुत्र से कहा,
2. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली में जितने बीस वर्ष के, वा उस से अधिक अवस्या के होने से इस्त्राएलियोंके बीच युद्ध करने के योग्य हैं, उनके पितरोंके घरानोंके अनुसार उन सभोंकी गिनती करो।
3. सो मूसा और एलीआजर याजक ने यरीहो के पास यरदन नदी के तीर पर मोआब के अराबा में उन से समझाके कहा,
4. बीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्या के लोगोंकी गिनती लो, जैसे कि यहोवा ने मूसा और इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकले आने के समय आज्ञा दी यी।।
5. रूबेन जो इस्त्राएल का जेठा या; उसके थे पुत्र थे; अर्यात् हनोक, जिस से हनोकियोंका कुल चला; और पल्लू, जिस से पल्लूइयोंका कुल चला;
6. हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और कर्मी, जिस से कमिर्योंका कुल चला।
7. रूबेनवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे तैतालीस हजार सात सौ तीस पुरूष थे।
8. और पल्लू का पुत्र एलीआब या।
9. और पल्लू का पुत्र नमूएल, दातान, और अबीराम थे। थे वही दातान और अबीराम हैं जो सभासद थे; और जिस समय कोरह की मण्डली ने यहोवा से फगड़ा किया या, उस समय उस मण्डली में मिलकर वे भी मूसा और हारून से फगड़े थे;
10. और जब उन अढ़ाई सौ मनुष्योंके आग में भस्म हो जाने से वह मण्डली मिट गई, उसी समय पृय्वी ने मुंह खोलकर कोरह समेत इनको भी निगल लिया; और वे एक दृष्टान्त ठहरे।
11. परन्तु कोरह के पुत्र तो नहीं मरे थे।
12. शिमोन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् नमूएल, जिस से नमूएलियोंका कुल चला; और यामीन, जिस से यामीनियोंका कुल चला;
13. और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला; और शाऊल, जिस से शाऊलियोंका कुल चला।
14. शिमोनवाले कुल थे ही थे; इन में से बाईस हजार दो सौ पुरूष गिने गए।।
15. और गाद के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सपोन, जिस से सपोनियोंका कुल चला; और हाग्गी, जिस से हाग्गियोंका कुल चला; और शूनी, जिस से शूनियोंका कुल चला; और ओजनी, जिस से ओजनियोंका कुल चला;
16. और एरी, जिस से एरियोंका कुल चला; और अरोद, जिस से अरोदियोंका कुल चला;
17. और अरेली, जिस से अरेलियोंका कुल चला।
18. गाद के वंश के कुल थे ही थे; इन में से साढ़े चालीस हजार पुरूष गिने गए।।
19. और यहूदा के एक और ओनान नाम पुत्र तो हुए, परन्तु वे कनान देश में मर गए।
20. और यहूदा के जिन पुत्रोंसे उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शेला, जिस से शेलियोंका कुल चला; और पेरेस जिस से पेरेसियोंका कुल चला; और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला।
21. और पेरेस के पुत्र थे थे; अर्यात् हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और हामूल, जिस से हामूलियोंका कुल चला।
22. यहूदियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े छिहत्तर हजार पुरूष गिने गए।।
23. और इस्साकार के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् तोला, जिस से तोलियोंका कुल चला; और पुव्वा, जिस से पुव्वियोंका कुल चला;
24. और याशूब, जिस से याशूबियोंका कुल चला; और शिम्रोन, जिस से शिम्रोनियोंका कुल चला।
25. इस्साकारियोंके कुल थे ही थे; इन में से चौसठ हजार तीन सौ पुरूष गिने गए।।
26. और जबूलून के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सेरेद जिस से सेरेदियोंका कुल चला; और एलोन, जिस से एलोनियोंका कुल चला; और यहलेल, जिस से यहलेलियोंका कुल चला।
27. जबूलूनियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े साठ हजार पुरूष गिने गए।।
28. और यूसुफ के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे मनश्शे और एप्रैम थे।
29. मनश्शे के पुत्र थे थे; अर्यात् माकीर, जिस से माकीरियोंका कुल चला; और माकीर से गिलाद उत्पन्न हुआ; और गिलाद से गिलादियोंका कुल चला।
30. गिलाद के तो पुत्र थे थे; अर्यात् ईएजेर, जिस से ईएजेरियोंका कुल चला;
31. और हेलेक, जिस से हेलेकियोंका कुल चला और अस्त्रीएल, जिस से अस्त्रीएलियोंका कुल चला; और शेकेम, जिस से शेकेमियोंका कुल चला; और शमीदा, जिस से शमीदियोंका कुल चला;
32. और हेपेर, जिस से हेपेरियोंका कुल चला;
33. और हेपेर के पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, केवल बेटियां हुई; इन बेटियोंके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं।
34. मनश्शेवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे बावन हजार सात सौ पुरूष थे।।
35. और एप्रैम के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शूतेलह, जिस से शूतेलहियोंका कुल चला; और बेकेर, जिस से बेकेरियोंका कुल चला; और तहन जिस से तहनियोंका कुल चला।
36. और शूतेलह के यह पुत्र हुआ; अर्यात् एरान, जिस से एरानियोंका कुल चला।
37. एप्रैमियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े बत्तीस हजार पुरूष गिने गए। अपके कुलोंके अनुसार यूसुफ के वंश के लोग थे ही थे।।
38. और बिन्यामीन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् बेला जिस से लेवियोंका कुल चला; और अशबेल, जिस से अशबेलियोंका कुल चला; और अहीराम, जिस से अहीरामियोंका कुल चला;
39. और शपूपास, जिस से शपूपामियोंका कुल चला; और हूपाम, जिस से हूपामियोंका कुल चला।
40. और बेला के पुत्र अर्द और नामान थे; और अर्द से तो अदिर्योंको कुल, और नामान से नामानियोंका कुल चला।
41. अपके कुलोंके अनुसार बिन्यामीनी थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार छ: सौ पुरूष थे।।
42. और दान का पुत्र जिस से उनका कुल निकला यह या; अर्यात् शूहाम, जिस से शूहामियोंका कुल चला। और दान का कुल यही या।
43. और शूहामियोंमें से जो गिने गए उनके कुल में चौसठ हजार चार सौ पुरूष थे।।
44. और आशेर के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यिम्ना, जिस से यिम्नियोंका कुल चला; यिश्र्ी, जिस से यिश्र्ियोंका कुल चला; और बरीआ, जिस से बरीइयोंका कुल चला।
45. फिर बरीआ के थे पुत्र हुए; अर्यात् हेबेर, जिस से हेबेरियोंका कुल चला; और मल्कीएल, जिस से मल्कीएलियोंका कुल चला।
46. और आशेर की बेटी का नाम सेरह है।
47. आशेरियोंके कुल थे ही थे; इन में से तिर्पन हजार चार सौ पुरूष गिने गए।।
48. और नप्ताली के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यहसेल, जिस से यहसेलियोंका कुल चला; और गूनी, जिस से गूनियोंका कुल चला;
49. थेसेर, जिस से थेसेरियोंका कुल चला; और शिल्लेम, जिस से शिल्लेमियोंका कुल चला।
50. अपके कुलोंके अनुसार नप्ताली के कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार चार सौ पुरूष थे।।
51. सब इस्त्राएलियोंमें से जो गिने गए थे वे थे ही थे; अर्यात् छ: लाख एक हजार सात सौ तीस पुरूष थे।।
52. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
53. इनको, इनकी गिनती के अनुसार, वह भूमि इनका भाग होने के लिथे बांट दी जाए।
54. अर्यात् जिस कुल से अधिक होंउनको अधिक भाग, और जिस में कम होंउनको कम भाग देना; प्रत्थेक गोत्र को उसका भाग उसके गिने हुए लोगोंके अनुसार दिया जाए।
55. तौभी देश चिट्ठी डालकर बांटा जाए; इस्त्राएलियोंके पितरोंके एक एक गोत्र का नाम, जैसे जैसे निकले वैसे वैसे वे अपना अपना भाग पाएं।
56. चाहे बहुतोंका भाग हो चाहे योड़ोंका हो, जो जो भाग बांटे जाएं वह चिट्ठी डालकर बांटे जाए।।
57. फिर लेवियोंमें से जो अपके कुलोंके अनुसार गिने गए वे थे हैं; अर्यात् गेर्शोनियोंसे निकला हुआ गेर्शोनियोंका कुल; कहात से निकला हुआ कहातियोंका कुल; और मरारी से निकला हुआ मरारियोंका कुल।
58. लेवियोंके कुल थे हैं; अर्यात् लिब्नियोंका, हेब्रानियोंका, महलियोंका, मूशियोंका, और कोरहियोंका कुल। और कहात से अम्राम उत्पन्न हुआ।
59. और अम्राम की पत्नी का नाम योकेबेद है, वह लेवी के वंश की यी जो लेवी के वंश में मिस्र देश में उत्पन्न हुई यी; और वह अम्राम से हारून और मूसा और उनकी बहिन मरियम को भी जनी।
60. और हारून से नादाब, अबीहू, एलीआजर, और ईतामार उत्पन्न हुए।
61. नादाब और अबीहू तो उस समय मर गए थे, जब वे यहोवा के साम्हने ऊपक्की आग ले गए थे।
62. सब लेवियोंमें से जो गिने गथे, अर्यात् जितने पुरूष एक महीने के वा उस से अधिक अवस्या के थे, वे तेईस हजार थे; वे इस्त्राएलियोंके बीच इसलिथे नहीं गिने गए, क्योंकि उनको देश का कोई भाग नहीं दिया गया या।।
63. मूसा और एलीआजर याजक जिन्होंने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्त्राएलियोंको गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे।
64. परन्तु जिन इस्त्राएलियोंको मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना या, उन में से एक पुरूष इस समय के गिने हुओं में न या।
65. क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा या, कि वे निश्चय जंगल में मर जाएंगे, इसलिथे यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उन में से एक भी पुरूष नहीं बचा।।
Chapter 27
1. तब यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें से सलोफाद, जो हेपेर का पुत्र, और गिलाद का पोता, और मनश्शे के पुत्र माकीर का परपोता या, उसकी बेटियां जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं वे पास आईं।
2. और वे मूसा और एलीआजर याजक और प्रधानोंऔर सारी मण्डली के साम्हने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ी होकर कहने लगीं,
3. हमारा पिता जंगल में मर गया; परन्तु वह उस मण्डली में का न या जो कोरह की मण्डली के संग होकर यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी हुई यी, वह अपके ही पाप के कारण मरा; और उसके कोई पुत्र न या।
4. तो हमारे पिता का नाम उसके कुल में से पुत्र न होने के कारण क्योंमिट जाए? हमारे चाचाओं के बीच हमें भी कुछ भूमि निज भाग करके दे।
5. उनकी यह बिनती मूसा ने यहोवा को सुनाई।
6. यहोवा ने मूसा से कहा,
7. सलोफाद की बेटियां ठीक कहती हैं; इसलिथे तू उनके चाचाओं के बीच उनको भी अवश्य ही कुछ भूमि निज भाग करके दे, अर्यात् उनके पिता का भाग उनके हाथ सौंप दे।
8. और इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि यदि कोई मनुष्य निपुत्र मर जाए, तो उसका भाग उसकी बेटी के हाथ सौंपना।
9. और यदि उसके कोई बेटी भी न हो, तो उसका भाग उसके भाइयोंको देना।
10. और यदि उसके भाई भी न हों, तो उसका भाग चाचाओं को देना।
11. और यदि उसके चाचा भी न हों, तो उसके कुल में से उसका जो कुटुम्बी सब से समीप हो उसको उसका भाग देना, कि वह उसका अधिक्कारनेी हो। इस्त्राएलियोंके लिथे यह न्याय की विधि ठहरेगी, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।।
12. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस अबारीम नाम पर्वत के ऊपर चढ़के उस देश को देख ले जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है।
13. और जब तू उसको देख लेगा, तब अपके भाई हारून की नाई तू भी अपके लोगोंमे जा मिलेगा,
14. क्योंकि सीन नाम जंगल में तुम दोनोंने मण्डली के फगड़ने के समय मेरी आज्ञा को तोड़कर मुझ से बलवा किया, और मुझे सोते के पास उनकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया। ( यह मरीबा नाम सोता है जो सीन नाम जंगल के कादेश में है )
15. मूसा ने यहोवा से कहा,
16. यहोवा, जो सारे प्राणियोंकी आत्माओं का परमेश्वर है, वह इस मण्डली के लोगोंके ऊपर किसी पुरूष को नियुक्त कर दे,
17. जो उसके साम्हने आया जाया करे, और उनका निकालने और पैठानेवाला हो; जिस से यहोवा की मण्डली बिना चरवाहे की भेड़ बकरियोंके समान न रहे।
18. यहोवा ने मूसा से कहा, तू नून के पुत्र यहोशू को लेकर उस पर हाथ रख; वह तो ऐसा पुरूष है जिस में मेरा आत्मा बसा है;
19. और उसको एलीआजर याजक के और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके उनके साम्हने उसे आज्ञा दे।
20. और अपक्की महिमा में से कुछ उसे दे, जिस से इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली उसकी माना करे।
21. और वह एलीआजर याजक के साम्हने खड़ा हुआ करे, और एलीआजर उसके लिथे यहोवा से ऊरीम की आज्ञा पूछा करे; और वह इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली समेत उसके कहने से जाया करे, और उसी के कहने से लौट भी आया करे।
22. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने यहोशू को लेकर, एलीआजर याजक और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके,
23. उस पर हाथ रखे, और उसको आज्ञा दी जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा या।।
Chapter 28
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा सुना कि मेरा चढ़ावा, अर्यात् मुझे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला मेरा हव्यरूपी भोजन, तुम लोग मेरे लिथे उनके नियत समयोंपर चढ़ाने के लिथे स्मरण रखना।
3. और तू उन से कह, कि जो जो तुम्हें यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा वे थे हैं; अर्यात् नित्य होमबलि के लिथे एक एक वर्ष के दो निर्दोष भेड़ी के बच्चे प्रतिदिन चढ़ाया करे।
4. एक बच्चे को भोर को और दूसरे को गोधूलि के समय चढ़ाना;
5. और भेड़ के बच्चे के पीछे एक चौयाई हीन कूटके निकाले हुए तेल से सने हुए एपा के दसवें अंश मैदे का अन्नबलि चढ़ाना।
6. यह नित्य होमबलि है, जो सीनै पर्वत पर यहोवा का सुखदायक सुगन्धवाला हव्य होने के लिथे ठहराया गया।
7. और उसका अर्घ प्रति एक भेड़ के बच्चे के संग एक चौयाई हीन हो; मदिरा का यह अर्घ यहोवा के लिथे पवित्रस्यान में देना।
8. और दूसरे बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना; अन्नबलि और अर्घ समेत भोर के होमबलि की नाई उसे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य करके चढ़ाना।।
9. फिर विश्रमदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिथे तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना।
10. नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्थेक विश्रमदिन का यही होमबलि ठहरा है।।
11. फिर अपके महीनोंके आरम्भ में प्रतिमास यहोवा के लिथे होमबलि चढ़ाना; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के निर्दोष भेड़ के सात बच्चे;
12. और बछड़े पीछे तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा, और उस एक मेढ़े के साय तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा;
13. और प्रत्थेक भेड़ के बच्चे के पीछे तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा, उन सभोंको अन्नबलि करके चढ़ाना; वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे होमबलि और यहोवा के लिथे हव्य ठहरेगा।
14. और उनके साय थे अर्घ हों; अर्यात् बछड़े पीछे आध हीन, मेढ़े के साय तिहाई हीन, और भेड़ के बच्चे पीछे चौयाई हीन दाखमधु दिया जाए; वर्ष के सब महीनोंमें से प्रति एक महीने का यही होमबलि ठहरे।
15. और एक बकरा पापबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाया जाए; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।।
16. फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसह हुआ करे।
17. और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को पर्ब्ब लगा करे; सात दिन तक अखमीरी रोटी खाई जाए।
18. पहिले दिन पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न किया जाए;
19. उस में तुम यहोवा के लिथे हव्य, अर्यात् होमबलि चढ़ाना; सो दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे हों; थे सब निर्दोष हों;
20. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश और मेढ़े के सात एपा का दो दसवां अंश मैदा हो।
21. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से प्रति एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश चढ़ाना।
22. और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
23. भोर का होमबलि जो नित्य होमबलि ठहरा है, उसके अलावा इनको चढ़ाना।
24. इस रीति से तुम उन सातोंदिनोंमें भी हव्य का भोजन चढ़ाना, जो यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हो; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।
25. और सातवें दिन भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।।
26. फिर पहिली उपज के दिन में, जब तुम अपके अठवारे नाम पर्ब्ब में यहोवा के लिथे नया अन्नबलि चढ़ाओगे, तब भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और परिश्र्म का कोई काम न करना।
27. और एक होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे;
28. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के संग एपा का दो दसवां अंश,
29. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
30. और एक बकरा भी चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
31. थे सब निर्दोष हों; और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा इसको भी चढ़ाना।।
Chapter 29
1. फिर सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना। वह तुम्हारे लिथे जयजयकार का नरसिंगा फूंकने का दिन ठहरा है;
2. तुम होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे;
3. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का दो दसवां अंश,
4. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
5. और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो।
6. इन सभोंसे अधिक नए चांद का होमबलि और उसका अन्नबलि, और नित्य होमबलि और उसका अन्नबलि, और उन सभोंके अर्घ भी उनके नियम के अनुसार सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे यहोवा के हव्य करके चढ़ाना।।
7. फिर उसी सातवें महीने के दसवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; तुम अपके अपके प्राण को दु:ख देना, और किसी प्रकार का कामकाज न करना;
8. और यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध देने को होमबलि; अर्यात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे चढ़ाना; फिर थे सब निर्दोष हों;
9. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के साय एपा का दो दसवां अंश,
10. और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
11. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे सब प्रायश्चित्त के पापबलि और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि के, और उन सभोंके अर्धो के अलावा चढ़ाया जाए।।
12. फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस में परिश्र्म का कोई काम न करना, और सात दिन तक यहोवा के लिथे पर्ब्ब मानना;
13. तुम होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; अर्यात् तेरह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह भेड़ के बच्चे; थे सब निर्दोष हों;
14. और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् तेरहोंबछड़ोंमें से एक एक बछड़े के पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और दोनोंमेढ़ोंमें से एक एक मेढ़े के पीछे एपा का दो दसवां अंश,
15. और चौदहोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना।
16. और पापबलि के लिथे एक बकरा चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
17. फिर दूसरे दिन बारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
18. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।।
19. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
20. फिर तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
21. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
22. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
23. और फिर चौथे दिन दस बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
24. बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
25. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
26. फिर पांचवें दिन नौ बछड़े, दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
27. और बछड़ों, मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
28. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
29. फिर छठवें दिन आठ बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना;
30. और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना।
31. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
32. फिर सातवें दिन सात बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना।
33. और बछड़ोंऔर मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना।
34. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
35. फिर आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना,
36. और उस में होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; वह एक बछड़े, और एक मेढ़े, और एक एक वर्ष के सात निर्दोंष भेड़ के बच्चोंका हो;
37. बछड़े, और मेढ़े, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।
38. और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।।
39. अपक्की मन्नतोंऔर स्वेच्छाबलियोंके अलावा, अपके अपके नियत समयोंमें, थे ही होमबलि, अन्नबलि, अर्घ, और मेलबलि, यहोवा के लिथे चढ़ाना।
40. यह सारी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी जो उस ने इस्त्राएलियोंको सुनाई।।
Chapter 30
1. फिर मूसा ने इस्त्राएली गोत्रोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंसे कहा, यहोवा ने यह आज्ञा दी है,
2. कि जब कोई पुरूष यहोवा की मन्नत माने, वा अपके आप को वाचा से बान्धने के लिथे शपय खाए, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुंह से निकला हो उसके अनुसार वह करे।
3. और जब कोई स्त्री अपक्की कुंवारी अवस्या में, अपके पिता के घर से रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने, वा अपके को वाचा से बान्धे,
4. तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत वा उसका वह वचन सुनकर, जिस से उसने अपके आप को बान्धा हो, उस से कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह भी स्यिर रहे।
5. परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको बरजे, तो उसकी मन्नतें वा और प्रकार के बन्धन, जिन से उस ने अपके आप को बान्धा हो, उन में से एक भी स्यिर न रहे, और यहोवा यह जान कर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप झमा करेगा।
6. फिर यदि वह पति के अधीन हो और मन्नत माने, वा बिना सोच विचार किए ऐसा कुछ कहे जिस से वह बन्धन में पके,
7. और यदि उसका पति सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी मन्नतें स्यिर रहें, और जिन बन्धनोंसे उस ने अपके आप को बान्धा हो वह भी स्यिर रहें।
8. परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उस ने मानी है, और जो बात बिना सोच विचार किए कहने से उस ने अपके आप को वाचा से बान्धा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप झमा करेगा।
9. फिर विधवा वा त्यागी हुई स्त्री की मन्नत, वा किसी प्रकार की वाचा का बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, तो वह स्यिर ही रहे।
10. फिर यदि कोई स्त्री अपके पति के घर में रहते मन्नत माने, वा शपय खाकर अपके आप को बान्धे,
11. और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह स्यिर रहे।
12. परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुंह से अपके बन्धन के विषय निकला हो, उस में से एक बात भी स्यिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिथे यहोवा उस स्त्री का वह पाप झमा करेगा।
13. कोई भी मन्नत वा शपय क्योंन हो, जिस से उस स्त्री ने अपके जीव को दु:ख देने की वाचा बान्धी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े;
14. अर्यात् यदि उसका पति दिन प्रति दिन उस से कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनोंको जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उस ने उनको दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उस ने कुछ नहीं कहा।
15. और यदि वह उन्हें सुनकर पीछे तोड़ दे, तो अपक्की स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा।
16. पति पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर मे रहती हुई कुंवारी बेटी के बीच, जिन विधियोंकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे थे ही हैं।।
Chapter 31
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. मिद्यानियोंसे इस्त्राएलियोंका पलटा ले; बाद को तू अपके लोगोंमें जा मिलेगा।
3. तब मूसा ने लोगोंसे कहा, अपके में से पुरूषोंको युद्ध के लिथे हयियार बन्धाओ, कि वे मिद्यानियोंपर चढ़के उन से यहोवा का पलटा ले।
4. इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूषोंको युद्ध करने के लिथे भेजो।
5. तब इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूष चुने गथे, अर्यात् युद्ध के लिथे हयियार-बन्द बारह हजार पुरूष।
6. प्रत्थेक गोत्र में से उन हजार हजार पुरूषोंको, और एलीआजर याजक के पुत्र पीनहास को, मूसा ने युद्ध करने के लिथे भेजा, और उसके हाथ में पवित्रस्यान के पात्र और वे तुरहियां यीं जो सांस बान्ध बान्ध कर फूंकी जाती यीं।
7. और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, उसके अनुसार उन्होंने मिद्यानियोंसे युद्ध करके सब पुरूषोंको घात किया।
8. और दूसरे जूफे हुओं को छोड़ उन्होंने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिद्यान के पांचोंराजाओं को घात किया; और बोर के पुत्र बिलाम को भी उन्होंने तलवार से घात किया।
9. और इस्त्राएलियोंने मिद्यानी स्त्रियोंको बालबच्चोंसमेत बन्धुआई में कर लिया; और उनके गाय-बैल, भेड़-बकरी, और उनकी सारी सम्पत्ति को लूट लिया।
10. और उनके निवास के सब नगरों, और सब छावनियोंको फूंक दिया;
11. तब वे, क्या मनुष्य क्या पशु, सब बन्धुओं और सारी लूट-पाट को लेकर
12. यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर, मोआब के अराबा में, छावनी के निकट, मूसा और एलीआजर याजक और इस्त्राएलियोंकी मण्डली के पास आए।।
13. तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के सब प्रधान छावनी के बाहर उनका स्वागत करने को निकले।
14. और मूसा सहस्त्रपति-शतपति आदि, सेनापतियोंसे, जो युद्ध करके लौटे आते थे क्रोधित होकर कहने लगा,
15. क्या तुम ने सब स्त्रियोंको जीवित छोड़ दिया?
16. देखे, बिलाम की सम्मति से, पोर के विषय में इस्त्राएलियोंसे यहोवा का विश्वासघात इन्हीं ने कराया, और यहोवा की मण्डली में मरी फैली।
17. सो अब बालबच्चोंमें से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियोंने पुरूष का मुंह देखा हो उन सभोंको घात करो।
18. परन्तु जितनी लड़कियोंने पुरूष का मुंह न देखा हो उन सभोंको तुम अपके लिथे जीवित रखो।
19. और तुम लोग सात दिन तक छावनी के बाहर रहो, और तुम में से जितनोंने किसी प्राणी को घात किया, और जितनोंने किसी मरे हुए को छूआ हो, वे सब अपके अपके बन्धुओं समेत तीसरे और सातवें दिनोंमें अपके अपके को पाप छुड़ाकर पावन करें।
20. और सब वों, और चमड़े की बनी हुई सब वस्तुओं, और बकरी के बालोंकी और लकड़ी की बनी हुई सब वस्तुओं को पावन कर लो।
21. तब एलीआजर याजक ने सेना के उन पुरूषोंसे जो युद्ध करने गए थे कहा, व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी है वह यह है,
22. कि सोना, चांदी, पीतल, लोहा, रांगा, और सीसा,
23. जो कुछ आग में ठहर सके उसको आग में डालो, तब वह शुद्ध ठहरेगा; तौभी वह अशुद्धता छुड़ानेवाले जल के द्वारा पावन किया जाए; परन्तु जो कुछ आग में न ठहर सके उसे जल में डुबाओ।
24. और सातवें दिन अपके वस्त्रोंको धोना, तब तुम शुद्ध ठहरोगे; और तब छावनी में आना।।
25. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
26. एलीआजर याजक और मण्डली के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको साय लेकर तू लूट के मनुष्योंऔर पशुओं की गिनती कर;
27. तब उनको आधा आधा करके एक भाग उन सिपाहियोंको जो युद्ध करने को गए थे, और दूसरा भाग मण्डली को दे।
28. फिर जो सिपाही युद्ध करने को गए थे, उनके आधे में से यहोवा के लिथे, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां
29. पांच सौ के पीछे एक को मानकर ले ले; और यहोवा की भेंट करके एलीआजर याजक को दे दे।
30. फिर इस्त्राएलियोंके आधे में से, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां, क्या किसी प्रकार का पशु हो, पचास के पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दे।
31. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी मूसा और एलीआजर याजक ने किया।
32. और जो वस्तुएं सेना के पुरूषोंने अपके अपके लिथे लूट ली यीं उन से अधिक की लूट यह यी; अर्यात् छ: लाख पचहत्तर हजार भेड़-बकरियां,
33. बहत्तर हजार गाय बैल,
34. इकसठ हजार गदहे,
35. और मनुष्योंमें से जिन स्त्रियोंने पुरूष का मुंह नहीं देखा या वह सब बत्तीस हजार यीं।
36. और इसका आधा, अर्यात् उनका भाग जो युद्ध करने को गए थे, उस में भेड़बकरियां तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार,
37. जिस में से पौने सात सौ भेड़-बकरियां यहोवा का कर ठहरीं।
38. और गाय-बैल छत्तीस हजार, जिन में से बहत्तर यहोवा का कर ठहरे।
39. और गदहे साढ़े तीस हजार, जिन में से इकसठ यहोवा का कर ठहरे।
40. और मनुष्य सोलह हजार जिन में से बत्तीस प्राणी यहोवा का कर ठहरे।
41. इस कर को जो यहोवा की भेंट यी मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार एलीआजर याजक को दिया।
42. और इस्त्राएलियोंकी मण्डली का आधा
43. तीन लाख साढ़े सैंतिस हजार भेड़-बकरियां
44. छत्तीस हजार गाय-बैल,
45. साढ़े तीस हजार गदहे,
46. और सोलह हजार मनुष्य हुए।
47. इस आधे में से, जिसे मूसा ने युद्ध करनेवाले पुरूषोंके पास से अलग किया या, यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने, क्या मनुष्य क्या पशु, पचास पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दिया।
48. तब सहस्त्रपति-शतपति आदि, जो सरदार सेना के हजारोंके ऊपर नियुक्त थे, वे मूसा के पास आकर कहने लगे,
49. जो सिपाही हमारे अधीन थे उनकी तेरे दासोंने गिनती ली, और उन में से एक भी नहीं घटा।
50. इसलिथे पायजेब, कड़े, मुंदरियां, बालियां, बाजूबन्द, सोने के जो गहने, जिस ने पाया है, उनको हम यहोवा के साम्हने अपके प्राणोंके निमित्त प्रायश्चित्त करने को यहोवा की भेंट करके ले आए हैं।
51. तब मूसा और एलीआजर याजक ने उन से वे सब सोने के नक्काशीदार गहने ले लिए।
52. और सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंने जो भेंट का सोना यहोवा की भेंट करके दिया वह सब का सब सोलह हजार साढ़े सात सौ शेकेल का या।
53. ( योद्धाओं ने तो अपके अपके लिथे लूट ले ली यी। )
54. यह सोना मूसा और एलीआजर याजक ने सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंसे लेकर मिलापवाले तम्बू में पहुंचा दिया, कि इस्त्राएलियोंके लिथे यहोवा के साम्हने स्म्रण दिलानेवाली वस्तु ठहरे।।
Chapter 32
1. रूबेनियोंऔर गादियोंके पास बहुत जानवर थे। जब उन्होंने याजेर और गिलाद देशोंको देखकर विचार किया, कि वह ढ़ोरोंके योग्य देश है,
2. तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के प्रधानोंके पास जाकर कहने लगे,
3. अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन नगरोंका देश
4. जिस पर यहोवा ने इस्त्राएल की मण्डली को विजय दिलवाई है, वह ढोरोंके योग्य है; और तेरे दासोंके पास ढोर हैं।
5. फिर उन्होंने कहा, यदि तेरा अनुग्रह तेरे दासोंपर हो, तो यह देश तेरे दासोंको मिले कि उनकी निज भूमि हो; हमें यरदन पार न ले चल।
6. मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंसे कहा, जब तुम्हारे भाई युद्ध करने को जाएंगे तब क्या तुम यहां बैठे रहोगे?
7. और इस्त्राएलियोंसे भी उस पार के देश जाने के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया है तुम क्योंअस्वीकार करवाते हो?
8. जब मैं ने तुम्हारे बापदादोंको कादेशबर्ने से कनान देश देखने के लिथे भेजा, तब उन्होंने भी ऐसा ही किया या।
9. अर्यात् जब उन्होंने एशकोल नाम नाले तक पहुंचकर देश को देखा, तब इस्त्राएलियोंसे उस देश के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया या अस्वीकार करा दिया।
10. इसलिथे उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपय खाई कि,
11. नि:सन्देह जो मनुष्य मिस्र से निकल आए हैं उन में से, जितने बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्या के हैं, वे उस देश को देखने न पाएंगे, जिसके देने की शपय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिथे;
12. परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्र कालेब, और नून का पुत्र यहोशू, थे दोनोंजो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिथे हैं थे तो उसे देखने पाएंगे।
13. सो यहोवा का कोप इस्त्राएलियोंपर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगोंका अन्त न हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया या, तब तक अर्यात् चालीस वर्ष तक वह जंगल में मारे मारे फिराता रहा।
14. और सुनो, तुम लोग उन पापियोंके बच्चे होकर इसी लिथे अपके बाप-दादोंके स्यान पर प्रकट हुए हो, कि इस्त्राएल के विरूद्ध यहोवा से भड़के हुए कोप को और भड़काओ!
15. यदि तुम उसके पीछे चलने से फिर जाओ, तो वह फिर हम सभोंको जंगल में छोड़ देगा; इस प्रकार तुम इन सारे लोगोंका नाश कराओगे।
16. तब उन्होंने मूसा के और निकट आकर कहा, हम अपके ढ़ोरोंके लिथे यहीं भेड़शाले बनाएंगे, और अपके बालबच्चोंके लिथे यहीं नगर बसाएंगे,
17. परन्तु आप इस्त्राएलियोंके आगे आगे हयियार बन्द तब तक चलेंगे, जब तक उनको उनके स्यान में न पहुंचा दे; परन्तु हमारे बालबच्चे इस देश के निवासियोंके डर से गढ़वाले नगरोंमें रहेंगे।
18. परन्तु जब तक इस्त्राएली अपके अपके भाग के अधिक्कारनेी न होंतब तक हम अपके घरोंको न लौटेंगे।
19. हम उनके साय यरदन पार वा कहीं आगे अपना भाग न लेंगे, क्योंकि हमारा भाग यरदन के इसी पार पूरब की ओर मिला है।
20. तब मूसा ने उन से कहा, यदि तुम ऐसा करो, अर्यात् यदि तुम यहोवा के आगे आगे युद्ध करने को हयियार बान्धो।
21. और हर एक हयियार-बन्द यरदन के पार तब तक चले, जब तक यहोवा अपके आगे से अपके शत्रुओं को न निकाले
22. और देश यहोवा के वश में न आए; तो उसके पीछे तुम यहां लौटोगे, और यहोवा के और इस्त्राएल के विषय निर्दोष ठहरोगे; और यह देश यहोवा के प्रति तुम्हारी निज भूमि ठहरेगा।
23. और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा।
24. तुम अपके बालबच्चोंके लिथे नगर बसाओ, और अपक्की भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाओ; और जो तुम्हारे मुंह से निकला है वही करो।
25. तब गादियोंऔर रूबेनियोंने मूसा से कहा, अपके प्रभु की आज्ञा के अनुसार तेरे दास करेंगे।
26. हमारे बालबच्चे, स्त्रियां, भेड़-बकरी आदि, सब पशु तो यहीं गिलाद के नगरोंमें रहेंगे;
27. परन्तु अपके प्रभु के कहे के अनुसार तेरे दास सब के सब युद्ध के लिथे हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे लड़ने को पार जाएंगे।
28. तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्त्राएलियोंके गोत्रोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको यह आज्ञा दी,
29. कि यदि सब गादी और रूबेनी पुरूष युद्ध के लिथे हयियार-बन्द तुम्हारे संग यरदन पार जाएं, और देश तुम्हारे वश में आ जाए, तो गिलाद देश उनकी निज भूमि होने को उन्हें देना।
30. परन्तु यदि वे तुम्हारे संग हयियार-बन्द पार न जाएं, तो उनकी निज भूमि तुम्हारे बीच कनान देश में ठहरे।
31. तब गादी और रूबेनी बोल उठे, यहोवा ने जैसा तेरे दासोंसे कहलाया है वैसा ही हम करेंगे।
32. हम हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे उस पार कनान देश में जाएंगे, परन्तु हमारी निज भूमि यरदन के इसी पार रहे।।
33. तब मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंको, और यूसुफ के पुत्र मनश्शे के आधे गोत्रियोंको एमोरियोंके राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग, दोनोंके राज्योंका देश, नगरों, और उनके आसपास की भूमि समेत दे दिया।
34. तब गादियोंने दीबोन, अतारोत, अरोएर,
35. अत्रौत, शोपान, याजेर, योगबहा,
36. बेतनिम्रा, और बेयारान नाम नगरोंको दृढ़ किया, और उन में भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाए।
37. और रूबेनियोंने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम को,
38. फिर नबो और बालमोन के नाम बदलकर उनको, और सिबमा को दृढ़ किया; और उन्होंने अपके दृढ़ किए हुए नगरोंके और और नाम रखे।
39. और मनश्शे के पुत्र माकीर के वंशवालोंने गिलाद देश में जाकर उसे ले लिया, और जो एमोरी उस में रहते थे उनको निकाल दिया।
40. तब मूसा ने मनश्शे के पुत्र माकीर के वंश को गिलाद दे दिया, और वे उस में रहने लगे।
41. और मनश्शेई याईर ने जाकर गिलाद की कितनी बस्तियां ले लीं, और उनके नाम हव्वोत्याईर रखे।
42. और नोबह ने जाकर गांवोंसमेत कनात को ले लिया, और उसका नाम अपके नाम पर नोबह रखा।।
Chapter 33
1. जब से इस्त्राएली मूसा और हारून की अगुवाई से दल बान्धकर मिस्र देश से निकले, तब से उनके थे पड़ाव हुए।
2. मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावोंके अनुसार लिख दिए; और वे थे हैं।
3. पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने रामसेस से कूच किया; फसह के दूसरे दिन इस्त्राएली सब मिस्रियोंके देखते बेखटके निकल गए,
4. जब कि मिस्री अपके सब पहिलौठोंको मिट्टी दे रहे थे जिन्हें यहोवा ने मारा या; और उस ने उनके देवताओं को भी दण्ड दिया या।
5. इस्त्राएलियोंने रामसेस से कूच करे सुक्कोत में डेरे डाले।
6. और सुक्कोत से कूच करके एताम में, जो जंगल के छोर पर हैं, डेरे डाले।
7. और एताम से कूच करके वे पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बालसपोन के साम्हने है; और मिगदोल के साम्हने डेरे खड़े किए।
8. तब वे पीहहीरोत के साम्हने से कूच कर समुद्र के बीच होकर जंगल में गए, और एताम नाम जंगल में तीन दिन का मार्ग चलकर मारा में डेरे डाले।
9. फिर मारा से कूच करके वे एलीम को गए, और एलीम में जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृझ मिले, और उन्होंने वहां डेरे खड़े किए।
10. तब उन्होंने एलीम से कूच करे लाल समुद्र के तीर पर डेरे खड़े किए।
11. और लाल समुद्र से कूच करके सीन नाम जंगल में डेरे खड़े किए।
12. फिर सीन नाम जंगल से कूच करके उन्होंने दोपका में डेरा किया।
13. और दोपका से कूच करके आलूश में डेरा किया।
14. और आलूश से कूच करके रपीदीम में डेरा किया, और वहां उन लोगोंको पीने का पानी न मिला।
15. फिर उन्होंने रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में डेरे डाले।
16. और सीनै के जंगल से कूच करके किब्रोयत्तावा में डेरा किया।
17. और किब्रोयत्तावा से कूच करे हसेरोत में डेरे डाले।
18. और हसेरोत से कूच करके रित्मा में डेरे डाले।
19. फिर उन्होंने रित्मा से कूच करके रिम्मोनपेरेस में डेरे खड़े किए।
20. और रिम्मोनपेरेस से कूच करके लिब्ना में डेरे खड़े किए।
21. और लिब्ना से कूच करके रिस्सा में डेरे खड़े किए।
22. और रिस्सा से कूच करके कहेलाता में डेरा किया।
23. और कहेलाता से कूच करके शेपेर पर्वत के पास डेरा किया।
24. फिर उन्होंने शेपेर पर्वत से कूच करके हरादा में डेरा किया।
25. और हरादा से कूच करके मखेलोत में डेरा किया।
26. और मखेलोत से कूच करके तहत में डेरे खड़े किए।
27. और तहत से कूच करके तेरह में डेरे डाले।
28. और तेरह से कूच करके मित्का में डेरे डाले।
29. फिर मित्का से कूच करके उन्होंने हशमोना में डेरे डाले।
30. और हशमोना से कूच करके मोसेरोत मे डेरे खड़े किए।
31. और मोसेरोत से कूच करके याकानियोंके बीच डेरा किया।
32. और याकानियोंके बीच से कूच करके होर्हग्गिदगाद में डेरा किया।
33. और होर्हग्गिदगाद से कूच करके योतबाता में डेरा किया।
34. और योतबाता से कूच करके अब्रोना में डेरे खड़े किए।
35. और अब्रोना से कूच करके एस्योनगेबेर में डेरे खड़े किए।
36. और एस्योनगेबेर के कूच करके उन्होंने सीन नाम जंगल के कादेश में डेरा किया।
37. फिर कादेश से कूच करके होर पर्वत के पास, जो एदोम देश के सिवाने पर है, डेरे डाले।
38. वहां इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के चालीसवें वर्ष के पांचवें महीने के पहिले दिन को हारून याजक यहोवा की आज्ञा पाकर होर पर्वत पर चढ़ा, और वहां मर गया।
39. और जब हारून होर पर्वत पर मर गया तब वह एक सौ तेईस वर्ष का या।
40. और अरात का कनानी राजा, जो कनान देश के दक्खिन भाग में रहता या, उस ने इस्त्राएलियोंके आने का समाचार पाया।
41. तब इस्त्राएलियोंने होर पर्वत से कूच करके सलमोना में डेरे डाले।
42. और सलमोना से कूच करके पूनोन में डेरे डाले।
43. और पूनोन से कूच करके ओबोस में डेरे डाले।
44. और ओबोस से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें जो मोआब के सिवाने पर हैं, डेरे डाले।
45. तब उन डीहोंसे कूच करके उन्होंने दीबोनगाद में डेरा किया।
46. और दीबोनगाद से कूच करके अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया।
47. और अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया।
48. फिर अबारीम पहाड़ोंसे कूच करके मोआब के अराबा में, यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर डेरा किया।
49. और वे मोआब के अराबा में वेत्यशीमोत से लेकर आबेलशित्तीम तक यरदन के तीर तीर डेरे डाले।।
50. फिर मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, यहोवा ने मूसा से कहा,
51. इस्त्राएलियोंको समझाकर कह, जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो
52. तब उस देश के निवासिक्कों उनके देश से निकाल देना; और उनके सब नक्काशे पत्यरोंको और ढली हुई मूतिर्योंको नाश करना, और उनके सब पूजा के ऊंचे स्यानोंको ढा देना।
53. और उस देश को अपके अधिक्कारने में लेकर उस में निवास करना, क्योंकि मैं ने वह देश तुम्हीं को दिया है कि तुम उसके अधिक्कारनेी हो।
54. और तुम उस देश को चिट्ठी डालकर अपके कुलोंके अनुसार बांट लेना; अर्यात् जो कुल अधिकवाले हैं उन्हें अधिक, और जो योड़ेवाले हैं उनको योड़ा भाग देना; जिस कुल की चिट्ठी जिस स्यान के लिथे निकले वही उसका भाग ठहरे; अपके पितरोंके गोत्रोंके अनुसार अपना अपना भाग लेना।
55. परन्तु यदि तुम उस देश के निवासिक्कों अपके आगे से न निकालोगे, तो उन में से जिनको तुम उस में रहने दोगे वे मानो तुम्हारी आंखोंमें कांटे और तुम्हारे पांजरोंमें कीलें ठहरेंगे, और वे उस देश में जहां तुम बसोगे तुम्हें संकट में डालेंगे।
56. और उन से जैसा बर्ताव करने की मनसा मैं ने की है वैसा ही तुम से करूंगा।
Chapter 34
1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा दे, कि जो देश तुम्हारा भाग होगा वह तो चारोंओर से सिवाने तक का कनान देश है, इसलिथे जब तुम कनान देश मे पहुंचों,
3. तब तुम्हारा दक्खिनी प्रान्त सीन नाम जंगल से ले एदोम देश के किनारे किनारे होता हुआ चला जाए, और तुम्हारा दक्खिनी सिवाना खारे ताल के सिक्के पर आरम्भ होकर पश्चिम की ओर चले;
4. वहां से तुम्हारा सिवाना अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिन की ओर पहुंचकर मुड़े, और सीन तक आए, और कादेशबर्ने की दक्खिन की ओर निकले, और हसरद्दार तक बढ़के अस्मोन तक पहुंचे;
5. फिर वह सिवाना अस्मोन से घूमकर मिस्र के नाले तक पहुंचे, और उसका अन्त समुद्र का तट ठहरे।
6. फिर पच्छिमी सिवाना महासमुद्र हो; तुम्हारा पच्छिमी सिवाना यही ठहरे।
7. और तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यह हो, अर्यात् तुम महासमुद्र से ले होर पर्वत तक सिवाना बन्धाना;
8. और होर पर्वत से हामात की घाटी तक सिवाना बान्धना, और वह सदाद पर निकले;
9. फिर वह सिवाना जिप्रोन तक पहुंचे, और हसरेनान पर निकले; तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यही ठहरे।
10. फिर अपना पूरबी सिवाना हसरेनान से शपाम तक बान्धना;
11. और वह सिवाना शपाम से रिबला तक, जो ऐन की पूर्व की ओर है, नीचे को उतरते उतरते किन्नेरेत नाम ताल के पूर्व से लग जाए;
12. और वह सिवाना यरदन तक उतरके खारे ताल के तट पर निकले। तुम्हारे देश के चारोंसिवाने थे ही ठहरें।
13. तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फिर कहा, जिस देश के तुम चिट्ठी डालकर अधिक्कारनेी होगे, और यहोवा ने उसे साढ़े नौ गोत्र के लोगोंको देने की आज्ञा दी है, वह यही है;
14. परन्तु रूबेनियोंऔर गादियोंके गोत्र तो अपके अपके पितरोंके कुलोंके अनुसार अपना अपना भाग पा चुके हैं, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग भी अपना भाग पा चुके हैं;
15. अर्यात् उन अढ़ाई गोत्रोंके लोग यरीहो के पास की यरदन के पार पूर्व दिशा में, जहां सूर्योदय होता है, अपना अपना भाग पा चुके हैं।।
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
17. कि जो पुरूष तुम लोगोंके लिथे उस देश को बांटेंगे उनके नाम थे हैं; अर्यात् एलीआजर याजक और नून का पुत्र यहोशू।
18. और देश को बांटने के लिथे एक एक गोत्र का एक एक प्रधान ठहराना।
19. और इन पुरूषोंके नाम थे हैं; अर्यात् यहूदागोत्री यपुन्ने का पुत्र कालेब,
20. शिमोनगोत्री अम्मीहूद का पुत्र शमुएल,
21. बिन्यामीनगोत्री किसलोन का पुत्र एलीदाद,
22. दानियोंके गोत्र का प्रधान योग्ली का पुत्र बुक्की,
23. यूसुफियोंमें से मनश्शेइयोंके गोत्र का प्रधान एपोद का पुत्र हन्नीएल,
24. और एप्रैमियोंके गोत्र का प्रधान शिम्तान का पुत्र कमूएल,
25. जबूलूनियोंके गोत्र का प्रधान पर्नाक का पुत्र एलीसापान,
26. इस्साकारियोंके गोत्र का प्रधान अज्जान का पुत्र पलतीएल,
27. आशेरियोंके गोत्र का प्रधान शलोमी का पुत्र अहीहूद,
28. और नप्तालियोंके गोत्र का प्रधान अम्मीहूद का पुत्र पदहेल।
29. जिन पुरूषोंको यहोवा ने कनान देश को इस्त्राएलियोंके लिथे बांटने की आज्ञा दी वे थे ही हैं।।
Chapter 35
1. फिर यहोवा ने, मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि तुम अपके अपके निज भाग की भूमि में से लेवियोंको रहने के लिथे नगर देना; और नगरोंके चारोंओर की चराइयां भी उनको देना।
3. नगर तो उनके रहने के लिथे, और चराइयां उनके गाय-बैल और भेड़-बकरी आदि, उनके सब पशुओं के लिथे होंगी।
4. और नगरोंकी चराइयां, जिन्हें तुम लेवियोंको दोगे, वह एक एक नगर की शहरपनाह से बाहर चारोंओर एक एक हजार हाथ तक की हों।
5. और नगर के बाहर पूर्व, दक्खिन, पच्छिम, और उत्तर अलंग, दो दो हजार हाथ इस रीति से नापना कि नगर बीचोंबीच हो; लेवियोंके एक एक नगर की चराई इतनी ही भूमि की हो।
6. और जो नगर तुम लेवियोंको दोगे उन में से छ: शरणनगर हों, जिन्हें तुम को खूनी के भागने के लिथे ठहराना होगा, और उन से अधिक बयालीस नगर और भी देना।
7. जितने नगर तुम लेवियोंको दोगे वे सब अड़तालीस हों, और उनके साय चराइयां देना।
8. और जो नगर तुम इस्त्राएलियोंकी निज भूमि में से दो, वे जिनके बहुत नगर होंउन से योड़े लेकर देना; सब अपके अपके नगरोंमें से लेवियोंको अपके ही अपके भाग के अनुसार दें।।
9. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
10. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो,
11. तक ऐसे नगर ठहराना जो तुम्हारे लिथे शरणनगर हों, कि जो कोई किसी को भूल से मारके खूनी ठहरा हो वह वहां भाग जाए।
12. वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेनेवाले से शरण लेने के काम आएंगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिथे मण्डली के साम्हने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए।
13. और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छ: हों।
14. तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें।
15. थे छहोंनगर इस्त्राएलियोंके और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी शरणस्यान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए।
16. परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हयियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
17. और यदि कोई ऐसा पत्यर हाथ में लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
18. वा कोई हाथ में ऐसी लकड़ी लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।
19. लोहू का पलटा लेनेवाला आप की उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले।
20. और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, वा घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए,
21. वा शत्रुता से उसको अपके हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिस ने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लोहू का पलटा लेनेवाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले।
22. परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, वा बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे,
23. वा ऐसा कोई पत्यर लेकर, जिस से कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो;
24. तो मण्डली मारनेवाले और लोहू का पलटा लेनेवाले के बीच इन नियमोंके अनुसार न्याय करे;
25. और मण्डली उस खूनी को लोहू के पलटा लेनेवाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहां वह पहिले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्र तेल से अभिषेक किया हुआ महाथाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे।
26. परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्यान के सिवाने से जिस में वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए,
27. और लोहू का पलटा लेनेवाला उसको शरणस्यान के सिवाने के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लोहू बहाने का दोषी न ठहरे।
28. क्योंकि खूनी को महाथाजक की मृत्यु तक शरणस्यान में रहना चाहिथे; और महाथाजक के मरने के पश्चात् वह अपक्की निज भूमि को लौट सकेगा।
29. तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सब रहने के स्यानोंमें न्याय की यह विधि होगी।
30. और जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले वह साझियोंके कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साझी की साझी से कोई न मार डाला जाए।
31. और जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना न लेना; वह अवश्य मार डाला जाए।
32. और जो किसी शरणस्यान में भागा हो उसके लिथे भी इस मतलब से जुरमाना न लेना, कि वह याजक के मरने से पहिले फिर अपके देश मे रहने को लौटने पाएं।
33. इसलिथे जिस देश में तुम रहोगे उसको अशुद्ध न करना; खून से तो देश अशुद्ध हो जाता है, और जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लोहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित्त हो सकता है।
34. जिस देश में तुम निवास करोगे उसके बीच मै रहूंगा, उसको अशुद्ध न करना; मैं यहोवा तो इस्त्राएलियोंके बीच रहता हूं।।
Chapter 36
1. फिर यूसुफियोंके कुलोंमें से गिलाद, जो माकीर का पुत्र और मनश्शे का पोता या, उसके वंश के कुल के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूष मूसा के समीप जाकर उस प्रधानोंके साम्हने, जो इस्त्राएलियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे, कहने लगे,
2. यहोवा ने हमारे प्रभु को आज्ञा दी यी, कि इस्त्राएलियोंको चिट्ठी डालकर देश बांट देना; और फिर यहोवा की यह भी आज्ञा हमारे प्रभु को मिली, कि हमारे सगोत्री सलोफाद का भाग उसकी बेटियोंको देना।
3. तो यदि वे इस्त्राएलियोंके और किसी गोत्र के पुरूषोंसे ब्याही जाएं, तो उनका भाग हमारे पितरोंके भाग से छूट जाएगा, और जिस गोत्र में से ब्याही जाएं उसी गोत्र के भाग में मिल जाएगा; तब हमारा भाग घट जाएगा।
4. और जब इस्त्राएलियोंकी जुबली होगी, तब जिस गोत्र में वे ब्याही जाएं उसके भाग में उनका भाग पक्की रीति से मिल जाएगा; और वह हमारे पितरोंके गोत्र के भाग से सदा के लिथे छूट जाएगा।
5. तब यहोवा से आज्ञा पाकर मूसा ने इस्त्राएलियोंसे कहा, यूसुफियोंके गोत्री ठीक कहते हैं।
6. सलोफाद की बेटियोंके विषय में यहोवा ने यह आज्ञा दी है, कि जो वर जिसकी दृष्टि में अच्छा लगे वह उसी से ब्याही जाए; परन्तु वे अपके मूलपुरूष ही के गोत्र के कुल में ब्याही जाएं।
7. और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र का भाग दूसरे के गोत्र के भाग में ने मिलने पाए; इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के गोत्र के भाग पर बने रहें।
8. और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र में किसी की बेटी हो जो भाग पानेवाली हो, वह अपके ही मूलपुरूष के गोत्र के किसी पुरूष से ब्याही जाए, इसलिथे कि इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के भाग के अधिक्कारनेी रहें।
9. किसी गोत्र का भाग दूसरे गोत्र के भाग में मिलने न पाएं; इस्त्राएलियोंके एक एक गोत्र के लोग अपके अपके भाग पर बने रहें।
10. यहोवा की आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी सलोफाद की बेटियोंने किया।
11. अर्यात् महला, तिर्सा, होग्ला, मिलका, और नोआ, जो सलोफाद की बेटियां यी, उन्होंने अपके चचेरे भाइयोंसे ब्याह किया।
12. वे यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें ब्याही गई, और उनका भाग उनके मूलपुरूष के कुल के गोत्र के अधिक्कारने में बना रहा।।
13. जो आज्ञाएं और नियम यहोवा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर मूसा के द्वारा इस्त्राएलियोंको दिए वे थे ही हैं।।
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