यूहन्ना (John)
Chapter 1
1. आदि में वचन या, और वचन परमेश्वर के साय या, और वचन परमेश्वर या।
2. यही आदि में परमेश्वर के साय या।
3. सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
4. उस में जीवन या; और वह जीवन मुनष्योंकी ज्योति यी।
5. और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
6. एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्यित हुआ जिस का नाम यूहन्ना या।
7. यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।
8. वह आप तो वह ज्योति न या, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिथे आया या।
9. सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली यी।
10. वह जगत में या, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना।
11. वह अपके घर में आया और उसके अपनोंने उसे ग्रहण नहीं किया।
12. परन्तु जितनोंने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिक्कारने दिया, अर्यात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
13. वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14. और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।
15. यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, कि यह वही है, जिस का मैं ने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझ से बढ़कर है क्योंकि वह मुझ से पहिले या।
16. क्योंकि उस की परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्यात् अनुग्रह पर अनुग्रह।
17. इसलिथे कि व्यवस्या तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।
18. परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।।
19. यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियोंने यरूशलेम से याजकोंऔर लेवीयोंको उस से यह पूछने के लिथे भेजा, कि तू कौन है
20. तो उस ने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया परन्तु मान लिया कि मैं मसीह नहीं हूं।
21. तब उन्होंने उस से पूछा, तो फिर कौन है क्या तू एलिय्याह है उस ने कहा, मैं नहीं हूं: तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है उस ने उत्तर दिया, कि नहीं।
22. तब उन्होंने उस से पूछा, फिर तू है कौन ताकि हम अपके भेजनेवालोंको उत्तर दें; तू अपके विषय में क्या कहता है
23. उस ने कहा, मैं जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूं कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो।
24. थे फरीसियोंकी ओर से भेजे गए थे।
25. उन्होंने उस से यह प्रश्न पूछा, कि यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्क़ा क्योंदेता है
26. यूहन्ना ने उन को उत्तर दिया, कि मैं तो जल से बपतिस्क़ा देता हूं; परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते।
27. अर्यात् मेरे बाद आनेवाला है, जिस की जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं।
28. थे बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहां यूहन्ना बपतिस्क़ा देता या।
29. दूसरे दिन उस ने यीशु को अपक्की ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।
30. यह वही है, जिस के विषय में मैं ने कहा या, कि एक पुरूष मेरे पीछे आता है, जो मुझ से श्र्ेष्ठ है, क्योंकि वह मुझ से पहिले या।
31. और मैं तो उसे पहिचानता न या, परन्तु इसलिथे मैं जल से बपतिस्क़ा देता हुआ आया, कि वह इस्त्राएल पर प्रगट हो जाए।
32. और यूहन्ना ने यह गवाही दी, कि मैं ने आत्क़ा को कबूतर की नाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया।
33. और मैं तो उसे पहिचानता न या, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्क़ा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्क़ा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्क़ा से बपतिस्क़ा देनेवाला है।
34. और मैं ने देखा, और गवाही दी है, कि यही परमेश्वर का पुत्र है।।
35. दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलोंमें से दो जन खड़े हुए थे।
36. और उस ने यीशु पर जो जा रहा या दृष्टि करके कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।
37. तब वे दोनोंचेले उस की सुनकर यीशु के पीछे हो लिए।
38. यीशु ने फिरकर और उन को पीछे आते देखकर उन से कहा, तुम किस की खोज में हो उन्होंने उस से कहा, हे रब्बी, अर्यात् (हे गुरू) तू कहां रहता है उस ने उन से कहा, चलो, तो देख लोगे।
39. तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्यान देखा, और उस दिन उसी के साय रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग या।
40. उन दोनोंमें से जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक तो शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास या।
41. उस ने पहिले अपके सगे भाईं शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को खि्रस्तस अर्यात् मसीह मिल गया।
42. वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, कि तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू केफा, अर्यात् पतरस कहलाएगा।।
43. ूदूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा; और फिलप्पुस से मिलकर कहा, मेरे पीछे हो ले।
44. फिलप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी या।
45. फिलप्पुस ने नतनएल से मिलकर उस से कहा, कि जिस का वर्णन मूसा ने व्यवस्या में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हम को मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।
46. नतनएल ने उस से कहा, क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है फिलप्पुस ने उस से कहा, चलकर देख ले।
47. यीशु ने नतनएल को अपक्की ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, देखो, यह सचमुच इस्त्राएली है: इस में कपट नहीं।
48. नतनएल ने उस से कहा, तू मुझे कहां से जानता है यीशु ने उस को उत्तर दिया; उस से पहिले कि फिलप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले या, तब मैं ने तुझे देखा या।
49. नतनएल ने उस को उत्तर दिया, कि हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है; तू इस्त्राएल का महाराजा है।
50. यीशु ने उस को उत्तर दिया;
51. मैं ने जो तुझ से कहा, कि में ने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसी लिथे विश्वास करता है तू इस से बड़े बड़े काम देखेगा।
Chapter 2
1. फिर उस से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतोंको मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।।
2. फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का ब्याह या, और यीशु की माता भी वहां यी।
3. और यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे।
4. जब दाखरस घट गया, तो यीशु की माता ने उस से कहा, कि उन के पास दाखरस नहीं रहा।
5. यीशु ने उस से कहा, हे महिला मुझे तुझ से क्या काम अभी मेरा समय नहीं आया।
6. उस की माता ने सेवकोंसे कहा, जो कुद वह तुम से कहे, वही करना।
7. वहां यहूदियोंके शुद्ध करने की रीति के अनुसार पत्यर के छ: मटके धरे थे, जि में दो दो, तीन तीन मन समाता या।
8. यीशु ने उन से कहा, अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।
9. वे ले गए, जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया या, और नहीं जानता या, कि वह कहां से आया हे, (परन्तु जिन सेवकोंने पानी निकाला या, वे जानते थे) तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उस से कहा।
10. हर एक मनुष्य पहिले अच्छा दाखरस देता है और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तू ने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।
11. यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहिला चिन्ह दिखाकर अपक्की महिमा प्रगट की और उसके चेलोंने उस पर विश्वास किया।।
12. इस के बाद वह और उस की माता और उसके भाई और उसके चेले कफरनहूम को गए और वहां कुछ दिन रहे।।
13. यहूदियोंका फसह का पर्ब्ब निकट या और यीशु यरूशलेम को गया।
14. और उस ने मन्दिर में बैल और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालोंओर सर्राफोंको बैठे हुए पाया।
15. और रस्सियोंका कोड़ा बनाकर, सब भेड़ोंऔर बैलोंको मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफोंके पैसे बियरा दिए, और पीढ़ोंको उलट दिया।
16. और कबूतर बेचनेवालोंसे कहा; इन्हें यहां से ले जाओ: मेरे पिता के भवन को व्योपार का घर मत बनाओ।
17. तब उसके चेलोंको स्क़रण आया कि लिखा है, ?तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी।
18. इस पर यहूदियोंने उस से कहा, तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हे
19. यीशु ने उन को उत्तर दिया; कि इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा।
20. यहूदियोंने कहा; इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हें, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा
21. परन्तु उस ने अपक्की देह के मन्दिर के विषय में कहा या।
22. सो जब वह मुर्दोंमें से जी उठा तो उसके चेलोंको स्क़रण आया, कि उस ने यह कहा या; और उन्होंने पवित्र शास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा या, प्रतीति की।।
23. जब वह यरूशलेम में फसह के समय पर्ब्ब में या, तो बहुतोंने उन चिन्होंको जो वह दिखाता या देखकर उसके नाम पर विश्वास किया।
24. परन्तु यीशु ने अपके आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता या।
25. और उसे प्रयोजन न या, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता या, कि मनुष्य के मन में क्या है
Chapter 3
1. फरीसियोंमें से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य या, जो यहूदियोंका सरदार या।
2. उस ने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर अया है; क्योंकि कोई इन चिन्होंको जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साय न हो, तो नहीं दिखा सकता।
3. यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नथे सिक्के से न जन्क़ें तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
4. नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्क़ ले सकता है
5. यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्क़ा से न जन्क़े तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
6. क्योंकि जो शरीर से जन्क़ा है, वह शरीर है; और जो आत्क़ा से जन्क़ा है, वह आत्क़ा है।
7. अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नथे सिक्के से जन्क़ लेना अवश्य है।
8. हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है जो कोई आत्क़ा से जन्क़ा है वह ऐसा ही है।
9. नीकुदेमुस ने उस को उत्तर दिया; कि थे बातें क्योंकर हो सकती हैं
10. यह सुनकर यीशु ने उस से कहा; तू इस्त्राएलियोंका गुरू हो कर भी क्या इन बातोंको नहीं समझता।
11. मैं तुझ से सच सच कहता हूं कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हम ने देखा है उस की गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते।
12. जब मैं ने तुम से पृय्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूं, तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे
13. और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्यात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।
14. और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
15. ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए।।
16. क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
17. परमेश्वर ने अपके पुत्र को जगत में इसलिथे नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिथे कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
18. जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहरा चुका; इसलिथे कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
19. और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्योंने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे।
20. क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामोंपर दोष लगाया जाए।
21. परन्तु जो सच्चाई पर चलता हैख् वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।
22. इस के बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहां उन के सायर रहकर बपतिस्क़ा देने लगा।
23. और यूहन्ना भी शालेम् के निकट ऐनोन में बपतिस्क़ा देता या। क्योंकि वहां बहुत जल या और लोग आकर बपतिस्क़ा लेते थे।
24. क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया या।
25. वहां यूहन्ना के चेलोंका किसी यहूदी के साय शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ।
26. और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साय या, और जिस की तू ने गवाही दी है देख, वह बपतिस्क़ा देता है, और सब उसके पास आते हैं।
27. यूहन्ना ने उत्तर दिया, जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता।
28. तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैं ने कहा, मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूं।
29. जिस की दुलहिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उस की सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हिर्षत होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है।
30. अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं।।
31. जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृय्वी से आता है वह पृय्वी का है; और पृय्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है।
32. जो कुछ उस ने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उस की गवाही ग्रहण नहीं करता।
33. जिस ने उस की गवाही ग्रहण कर ली उस ने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है।
34. क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्क़ा नाप नापकर नहीं देता।
35. पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उस ने सब वस्तुएं उसके हाथ में दे दी हैं।
36. जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।।
Chapter 4
1. फिर जब प्रभु को मालूम हुआ, कि फरीसियोंने सुना है, कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता, और उन्हें बपतिस्क़ा देता है।
2. (यद्यपि यीशु आप नहीं बरन उसके चेले बपतिस्क़ा देते थे)।
3. तब यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया।
4. और उस को सामरिया से होकर जाना अवश्य या।
5. सो वह सूखार नाम सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है, जिस याकूब ने अपके पुत्र यूसुफ को दिया या।
6. और याकूब का कूआं भी वहीं या; सो यीशु मार्ग का यका हुआ उस कूएं पर योंही बैठ गया, और यह बात छठे घण्टे के लगभग हुई।
7. इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई: यीशु ने उस से कहा, मुझे पानी पिला।
8. क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे।
9. उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्योंमांगता है (क्योंकि यहूदी सामरियोंके साय किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते)।
10. यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के बरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है; मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।
11. स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहा से आया
12. क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआं दिया; और आपक्की अपके सन्तान, और अपके ढारोंसमेत उस में से पीया
13. यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर पियासा होगा।
14. परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक पियासा न होगा: बरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिथे उमड़ता रहेगा।
15. सी ने उस से कहा, हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊं और न जल भरने को इतनी दूर आऊं।
16. यीशु ने उस से कहा, जा, अपके पति को यहां बुला ला।
17. स्त्री ने उत्तर दिया, कि मैं बिना पति की हूं: यीशु ने उस से कहा, तू ठीक कहती है कि मैं बिना पति की हूं।
18. क्योंकि तू पांच पति कर चुकी है, और जिस के पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है।
19. स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे ज्ञात होता है कि तू भविष्यद्वक्ता है।
20. हमारे बापदादोंने उसी पहाड़ पर भजन किया: और तुम कहते हो कि वह जगह जहां भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।
21. यीशु ने उस से कहा, हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में।
22. तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियोंमें से है।
23. परन्तु वह समय आता है, बरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्क़ा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपके लिथे ऐसे ही भजन करनेवालोंको ढूंढ़ता है।
24. परमेश्वर आत्क़ा है, और अवश्य है कि उसके भजन करनेवाले आत्क़ा और सच्चाई से भजन करें।
25. स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।
26. यीशु ने उस से कहा, मैं जो तुझ से बोल रहा हूं, वही हूं।।
27. इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; तौभी किसी ने न कहा, कि तू क्या चाहता है या किस लिथे उस से बातें करता है।
28. तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चक्की गई, और लोगोंसे कहने लगी।
29. आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है
30. सो वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे।
31. इतने में उसके चेले यीशु से यह बिनती करने लगे, कि हे रब्बी, कुछ खा ले।
32. परन्तु उस ने उन से कहा, मेरे पास खाने के लिथे ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।
33. तब चेलोंने आपस में कहा, क्या कोई उसके लिथे कुछ खाने को लाया है
34. यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह है, कि अपके भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।
35. क्या तुम नहीं कहते, कि कटनी होने में अब भी चार महीने पके हैं देखो, मैं तुम से कहता हूं, अपक्की आंखे उठाकर खेतोंपर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिथे पक चुके हैं।
36. और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिथे फल बटोरता है; ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनोंमिलकर आनन्द करें।
37. क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है कि बानेवाला और है और काटनेवाला और।
38. मैं ने तुम्हें वह खेत काटने के लिथे भेजा, जिस में तुम ने परिश्र्म नहीं किया: औरोंने परिश्र्म किया और तुम उन के परिश्र्म के फल में भागी हुए।।
39. और उस नगर के बहुत सामरियोंने उस स्त्री के कहने से, जिस ने यह गवाही दी यी, कि उस ने सब कुछ जो मैं ने किया है, मुझे बता दिया, विश्वास किया।
40. तब जब थे सामरी उसके पास आए, तो उस से बिनती करने लगे, कि हमारे यहां रह: सो वह वहां दो दिन तक रहा।
41. और उसके वचन के कारण और भी बहुतेरोंने विश्वास किया।
42. और उस स्त्री से कहा, अब हम तेरे कहने की से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हम ने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।।
43. फिर उन दो दिनोंके बाद वह वहां से कूच करके गलील को गया।
44. क्योंकि यीशु ने आप ही साझी दी, कि भविष्यद्वक्ता अपके देश में आदर नहीं पाता।
45. जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साय उस से मिले; क्योंकि जितने काम उस ने यरूशलेम में पर्ब्ब के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा या, क्योंकि वे भी पर्ब्ब में गए थे।।
46. तब वह फिर गलील के काना में आया, जहां उस ने पानी को दाख रस बनाया या: और राजा का कर्मचारी या जिस का पुत्र कफरनहूम में बीमार या।
47. वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उस से बिनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर या।
48. यीशु ने उस से कहा, जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।
49. राजा के कर्मचारी ने उस से कहा; हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने के पहिले चल।
50. यीशु ने उस से कहा, जा, तेरा पुत्र जीवित है: उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात की प्रतीति की, और चला गया।
51. वह मार्ग में जा रहा या, कि उसके दास उस से आ मिले और कहने लगे कि तेरा लड़का जीवित है।
52. उस न उन से पूछा कि किस घड़ी वह अच्दा होने लगा उन्होंने उस से कहा, कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।
53. तब पिता जान गया, कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उस से कहा, तेरा पुत्र जीवित है, और उस ने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया।
54. यह दूसरा आश्चर्यकर्म या, जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।।
Chapter 5
1. इन बातोंके पीछे यहूदियोंका एक पर्ब्ब हुआ और यीशु यरूशलेम को गया।।
2. यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है, और उसके पांच ओसारे हैंं।
3. इन में बहुत से बीमार, अन्धे, लंगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पके रहते थे।
4. (क्योंकि नियुक्ति समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहिले उतरता वह चंगा हो जाता या चाहे उसकी कोई बीमारी क्योंन हो।)
5. वहां एक मनुष्य या, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा या।
6. यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और जानकर कि वह बहुत दिनोंसे इस दशा में पड़ा है, उस से पूछा, क्या तू चंगा होना चाहता है
7. उस बीमार ने उस को उत्तर दिया, कि हे प्रभु, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुंचते पहुंचते दूसरा मुझ से पहिले उतर पड़ता है।
8. यीशु ने उस से कहा, उठ, अपक्की खाट उठाकर चल फिर।
9. वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपक्की खाट उठाकर चलने फिरने लगा।
10. वह सब्त का दिन या। इसलिथे यहूदी उस से, जो चंगा हुआ या, कहने लगे, कि आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित्त नहीं।
11. उस ने उन्हें उत्तर दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझ से कहा, अपक्की खाट उठाकर चल फिर।
12. उन्होंने उस से पूछा वह कौन मनुष्य है जिस ने तुझ से कहा, खाट उठाकर चल फिर
13. परन्तु जो चंगा हो गया या, वह नहीं जानता या वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहां से हट गया या।
14. इन बातोंके बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उस न उस से कहा, देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इस से कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पके।
15. उस मनुष्य ने जाकर यहूदियोंसे कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है।
16. इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे ऐसे काम सब्त के दिन करता या।
17. इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।
18. इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपके आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता या।।
19. इस पर यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामोंको वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।
20. क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इन से भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो।
21. क्योकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है उन्हें जिलाता है।
22. और पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।
23. इसलिथे कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें: जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।
24. मैं तुम से सच सच कहता हूं, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25. मैं तुम से सच सच कहता हूं, वह समय आता है, और अब है, जिस में मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएंगे।
26. क्योंकि जिस रीति से पिता अपके आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उस ने पुत्र को भी यह अधिक्कारने दिया है कि अपके आप में जीवन रखे।
27. बरन उसे न्याय करने का भी अधिक्कारने दिया है, इसलिथे कि वह मनुष्य का पुत्र है।
28. इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रोंमें हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।
29. जिन्होंने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्यान के लिथे जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है वे दंड के पुनरूत्यान के लिथे जी उठेंगे।
30. मैं अपके आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूं, वैसा न्याय करता हूं, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपक्की इच्छा नहीं, परन्तु अपके भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूं।
31. यदि मैं आप ही अपक्की गवाही दूं; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं।
32. एक और है जो मेरी गवाही देता है वह सच्ची है।
33. तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उस ने सच्चाई की गवाही दी है।
34. परन्तु मैं अपके विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता; तौभी मैं थे बातें इसलिथे कहता हूं, कि तुम्हें उद्धार मिले।
35. वह जो जलता और चमकता हुआ दीपक या; और तुम्हें कुछ देर तक उस की ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा।
36. परन्तु मेरे पास जो गवाही है वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्यात् यही काम जो मैं करता हूं, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।
37. और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।
38. और उसके वचन को मन में स्यिर नहीं रखते क्योंकि जिसे उस ने भेजा उस की प्रतीति नहीं करते।
39. तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।
40. फिर भी तुम जीवन पाने के लिथे मेरे पास आना नहीं चाहते।
41. मैं मनुष्योंसे आदर नहीं चाहता।
42. परन्तु मैं तुम्हें जानता हूं, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं।
43. मैं अपके पिता के नाम से आया हूं, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपके ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे।
44. तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो अद्वैत परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किसी प्रकार विश्वास कर सकते हो
45. यह न समझो, कि मैं पिता के साम्हने तुम पर दोष लगाऊंगा: तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्यात् मूसा जिस पर तुम ने भरोसा रखा है।
46. क्योंकि यदि तुम मूसा की प्रतीति करते, तो मेरी भी प्रतीति करते, इसलिथे कि उस ने मेरे विषय में लिखा है।
47. परन्तु यदि तुम उस की लिखी हुई बातोंकी प्रतीति नहीं करते, तो मेरी बातोंकी क्योंकर प्रतीति करोगे।।
Chapter 6
1. इन बातोंके बाद यीशु गलील की फील अर्यात् तिबिरियास की फील के पास गया।
2. और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली कयोंकि जो आश्चर्य कर्म वह बीमारोंपर दिखाता या वे उन को देखते थे।
3. तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपके चेलोंके साय वहां बैठा।
4. और यहूदियोंके फसह के पर्ब्ब निकट या।
5. तब यीशु ने अपक्की आंखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपके पास आते देखा, और फिलप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिथे कहां से रोटी मोल लाएं
6. परन्तु उस ने यह बात उसे परखने के लिथे कही; क्योंकि वह आप जानता या कि मैं क्या करूंगा।
7. फिलप्पुस ने उस को उत्तर दिया, कि दो सौ दीनार की रोटी उन के लिथे पूरी भी न होंगी कि उन में से हर एक को योड़ी योड़ी मिल जाए।
8. उसके चेलोंमें से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उस से कहा।
9. यहां एक लड़का है जिस के पास जव की पांच रोटी और दो मछिलयां हैं परन्तु इतने लोगोंके लिथे वे क्या हैं।
10. यीशु ने कहा, कि लोगोंको बैठा दो। उस जगह बहुत घास यी: तब वे लोग जो गिनती में लगभग पांच हजार के थे, बैठ गए:
11. तब यीशु ने रोटियां लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालोंको बांट दी: और वैसे ही मछिलयोंमें से जितनी वे चाहते थे बांट दिया।
12. जब वे खाकर तृप्त हो गए तो उस ने अपके चेलोंसे कहा, कि बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।
13. सो उन्होंने बटोरा, और जव की पांच रोटियोंके टुकड़े जो खानेवालोंसे बच रहे थे उन की बारह टोकिरयां भरीं।
14. तब जो आश्चर्य कर्म उस ने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला या निश्चय यही है।
15. यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिथे आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16. फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले फील के किनारे गए।
17. और नाव पर चढ़कर फील के पार कफरनहूम को जाने लगे: उस समय अन्धेरा हो गया या, और यीशु अभी तक उन के पास नहीं आया या।
18. और आन्धी के कारण फील में लहरे उठने लगीं।
19. सो जब वे खेते खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को फील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए।
20. परन्तु उस ने उन से कहा, कि मैं हूं; डरो मत।
21. सो वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिथे तैयार हुए और तुरन्त वह नाव के स्यान पर जा पहुंची जहां वह जाते थे।
22. दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो फील के पार खड़ी यी, यह देखा, कि यहां एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न यी, और यीशु अपके चेलोंके साय उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले चले गए थे।
23. (तौभी और छोटी नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आई, जहां उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई यी।)
24. सो जब भीड़ ने देखा, कि यहां न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी छोटी नावोंपर चढ़ के यीशु को ढूंढ़ते हुए कफरनहूम को पहुंचे।
25. और फील के पार उस से मिलकर कहा, हे रब्बी, तू यहां कब आया
26. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिथे नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिथे कि तुम रोटियां खाकर तृप्त हुए।
27. नाशमान भोजन के लिथे परिश्र्म न करो, परन्तु उस भोजन के लिथे जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्यात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।
28. उन्होंने उस से कहा, परमेश्वर के कार्य्य करने के लिथे हम क्या करें
29. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो।
30. तब उन्होंने उस से कहा, फिर तू कौन का चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें, तू कौन सा काम दिखाता है
31. हमारे बापदादोंने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है; कि उस ने उन्हें खाने के लिथे स्वर्ग से रोटी दी।
32. यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है।
33. क्योकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।
34. तब उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।
35. यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी पियासा न होगा।
36. परन्तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तोभी विश्वास नहीं करते।
37. जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूंगा।
38. क्योंकि मैं अपक्की इच्छा नहीं, बरन अपके भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिथे स्वर्ग से उतरा हूं।
39. और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उस ने मुझे दिया है, उस में से मैं कुछ न खोऊं परन्तु उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊं।
40. क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
41. सो यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिथे कि उस ने कहा या; कि जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूं।
42. और उन्होंने कहा; क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिस के माता पिता को हम जानते हैं तो वह क्योंकर कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूं।
43. यीशु ने उन को उत्तर दिया, कि आपस में मत कुड़कुड़ाओ।
44. कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
45. भविष्यद्वक्ताओं के लेखोंमें यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।
46. यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है।
47. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।
48. जीवन की रोटी मैं हूं।
49. तुम्हारे बापदादोंने जंगल में मन्ना खाया और मर गए।
50. यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे।
51. जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिथे दूंगा, वह मेरा मांस है।
52. इस पर यहूदी यह कहकर आपस में फगड़ने लगे, कि यह मनुष्य क्योंकर हमें अपना मांस खाने को दे सकता है
53. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
54. जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता हे, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा।
55. क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लोहू वास्तव में पीन की वस्तु है।
56. जो मेरा मांस खाता और मेरा लोहू पीता है, वह मुझ में स्यिर बना रहता है, और मैं उस में।
57. जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूं वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा।
58. जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, बापदादोंके समान नहीं कि खाया, और मर गए: जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।
59. थे बातें उस ने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपकेश देते समय कहीं।
60. इसलिथे उसके चेलोंमें से बहुतोंने यह सुनकर कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है
61. यीशु ने अपके मन में यह जान कर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उन से पूछा, क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है
62. और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहां वह पहिले या, वहां ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा
63. आत्क़ा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्क़ा है, और जीवन भी हैं।
64. परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते: क्योंकि यीशु तो पहिले ही से जानता या कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं और कौन मुझे पकड़वाएगा।
65. और उस ने कहा, इसी लिथे मैं ने तुम से कहा या कि जब तक किसी को पिता की ओर यह बरदान न दिया जाए तक तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।
66. इस पर उसके चेलोंमें से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साय न चले।
67. तब यीशु ने उन बारहोंसे कहा, क्या तुम भी चले जाना चाहते हो
68. शमौन पतरस ने उस को उत्तर दिया, कि हे प्रभु हम किस के पास जाएं अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।
69. और हम ने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।
70. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, क्या मैं ने तुम बारहोंको नहीं चुन लिया तौभी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।
71. यह उस ने शमौन इस्किरयोती के पुत्र यहूदाह के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहोंमें से या, उसे पकड़वाने को या।।
Chapter 7
1. इन बातोंके बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिथे वह यहूदिया में फिरना न चाहता या।
2. और यहूदियोंका मण्डपोंका पर्ब्ब निकट या।
3. इसलिथे उसके भाइयोंने उस से कहा, यहां से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें।
4. क्योंकिं ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपके तई जगत पर प्रगट कर।
5. क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे।
6. तब यीशु ने उन से कहा, मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिथे सब समय है।
7. जगत तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूं, कि उसके काम बुरे हैं।
8. तुम पर्ब्ब में जाओ: मैं अभी इस पर्ब्ब में नहीं जाता; क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।
9. वह उन से थे बातें कहकर गलील ही में रह गया।।
10. परन्तु जब उसके भाई पर्ब्ब में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानोंगुप्त होकर गया।
11. तो यहूदी पर्ब्ब में उसे यह कहकर ढूंढ़ने लगे कि वह कहां है
12. और लोगोंमें उसके विषय चुपके चुपके बहुत सी बातें हुईं: कितने कहते थे; वह भला मनुष्य है: और कितने कहते थे; नहीं, वह लोगोंको भरमाता है।
13. तौभी यहूदियोंके भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता या।
14. और जब पर्ब्ब के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपकेश करने लगा।
15. तब यहूदियोंने अचम्भा करके कहा, कि इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई
16. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरा उपकेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।
17. यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपकेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपक्की ओर से कहता हूं।
18. जो अपक्की ओर से कुछ कहता है, वह अपक्की ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपके भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उस में अधर्म नहीं।
19. क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्या नहीं दी तौभी तुम में से काई व्यवस्या पर नहीं चलता। तुम क्योंमुझे मार डालना चाहते हो
20. लोगोंने उत्तर दिया; कि तुझ में दुष्टात्क़ा है; कौन तुझे मार डालना चाहता है
21. यीशु ने उन को उत्तर दिया, कि मैं ने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो।
22. इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है (यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु बाप-दादोंसे चक्की आई है), और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो।
23. जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्या की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्योंइसलिथे क्रोध करते हो, कि मैं ने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया।
24. मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ।।
25. तब कितने यरूशलेमी कहने लगे; क्या यह वह नहीं, जिस के मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है।
26. परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उस से कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारोंने सच सच जान लिया है; कि यही मसीह है।
27. इस को तो हम जानते हैं, कि यह कहां का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहां का है।
28. तब यीशु ने मन्दिर में उपकेश देते हुए पुकार के कहा, तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहां का हूं: मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उस को तुम नहीं जानते।
29. मैं उसे जानता हूं; क्योंकि मैं उस की ओर से हूं और उसी ने मुझे भेजा है।
30. इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तौभी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया या।
31. और भीड़ में से बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, कि मसीह जब आएगा, तो क्या इस से अधिक आश्चर्यकर्म दिखाएगा जो इस ने दिखाए
32. फरीसियोंने लोगोंको उसके विषय में थे बातें चुपके चुपके करते सुना; और महाथाजकोंऔर फरीसियोंने उसके पकड़ने को सिपाही भेजे।
33. इस पर यीशु ने कहा, मैं योड़ी देर तक और तुम्हारे साय हूं; तब अपके भेजनेवाले के पास चला जाऊंगा।
34. तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे और जहां मैं हूं, वहां तुम नहीं आ सकते।
35. यहूदियोंने आपस में कहा, यह कहां जाएगा, कि हम इसे न पाएंगे: क्या वह उन के पास जाएगा, जो यूनानियोंमें तित्तर बित्तर होकर रहते हैं, और यूनानियोंको भी उपकेश देगा
36. यह क्या बात है जो उस ने कही, कि तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहां मैं हूं, वहां तुम नहीं आ सकते
37. फिर पर्ब्ब के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई पियासा हो तो मेरे पास आकर पीए।
38. जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है उसके ह्रृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेगी।
39. उस ने यह वचन उस आत्क़ा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्क़ा अब तक न उतरा या; क्योंकि यीशु अब तक अपक्की महिमा को न पहुंचा या।
40. तब भीड़ में से किसी किसी ने थे बातें सुन कर कहा, सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।
41. औरोंने कहा; यह मसीह है, परन्तु किसी ने कहा; क्योंक्या मसीह गलील से आएगा
42. क्या पवित्र शास्त्र में नहीं आया, कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गांव से आएगा जहां दाऊद रहता या
43. सो उसके कारण लोगोंमें फूट पड़ी।
44. उन में से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला।।
45. तब सिपाही महाथाजकोंऔर फरीसियोंके पास आए, और उन्होंने उन से कहा, तुम उसे क्योंनहीं लाए
46. सिपाहियोंने उत्तर दिया, कि किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।
47. फरीसियोंने उन को उत्तर दिया, क्या तुम भी भरमाए गए हो
48. क्या सरदारोंया फरीसियोंमें से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है
49. परन्तु थे लोग जो व्यवस्या नहीं जानते, स्त्रापित हैं।
50. नीकुदेमुस ने, (जो पहिले उसके पास आया या और उन में से एक या), उन से कहा।
51. क्या हमारी व्यवस्या किसी व्यक्ति को जब तक पहिले उस की सुनकर जान न ले, कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है
52. उन्होंने उसे उत्तर दिया; क्या तू भी गलील का है ढूंढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।
53. तब सब कोई अपके अपके घर को गए।।
Chapter 8
1. परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया।
2. और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपकेश देने लगा।
3. तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई यी, और उस को बीच में खड़ी करके यीशु से कहा।
4. हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है।
5. व्यवस्या में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियोंकोंपत्यरवाह करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है
6. उन्होंने उस को परखने के लिथे यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिथे कोई बात पाएं, परन्तु यीशु फुककर उंगली से भूमि पर लिखने लगा।
7. जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तूुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले उसको पत्यर मारे।
8. और फिर फुककर भूमि पर उंगली से लिखने लगा।
9. परन्तु वे यह सुनकर बड़ोंसे लेकर छोटोंतक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई।
10. यीशु ने सीधे होकर उस से कहा, हे नारी, वे कहां गए क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी।
11. उसा ने कहा, हे प्रभु, किसी ने नहीं: यीशु ने कहा, मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।।
12. तब यीशु ने फिर लोगोंसे कहा, जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।
13. फरीसियोंने उस से कहा; तू अपक्की गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।
14. यीशु ने उन को उत्तर दिया; कि यदि मैं अपक्की गवाही आप देता हूं, तौभी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूं, कि मैं कहां से आया हूं और कहां को जाता हूं परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहां से आता हूं या कहां को जाता हूं।
15. तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता।
16. और यदि मैं न्याय करूं भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूं, और पिता है जिस ने मुझे भेजा।
17. और तुम्हारी व्यवस्या में भी लिखा है; कि दो जनोंकी गवाही मिलकर ठीक होती है।
18. एक तो मैं आप अपक्की गवाही देता हूं, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।
19. उन्होंने उस से कहा, तेरा पिता कहां है यीशु ने उत्तर दिया, कि न तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।
20. थे बातें उस ने मन्दिर में उपकेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया या।।
21. उस ने फिर उन से कहा, मैं जाता हूं और तुम मुझे ढूंढ़ोगे और अपके आप में मरोगे: जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते।
22. इस पर यहूदियोंने कहा, क्या वह अपके आप को मार डालेगा, जो कहता है; कि जहां मैं जाता हूं वहां तुम नहीं आ सकते
23. उस ने उन से कहा, तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूं; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं।
24. इसलिथे मैं ने तुम से कहा, कि तुम अपके पापोंमें मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूं, तो अपके पापोंमें मरोगे।
25. उन्होंने उस से कहा, तू कौन है यीशु ने उन से कहा, वही हूं जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूं।
26. तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैं ने उस से सुना हे, वही जगत से कहहा हूं।
27. वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है।
28. तब यीशु ने कहा, कि जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूं, और अपके आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही थे बातें कहता हूं।
29. और मेरा भेजनेवाला मेरे साय है; उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिस से वह प्रसन्न होता है।
30. वह थे बातें कह ही रहा या, कि बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया।।
31. तब यीशु ने उन यहूदियोंसे जिन्होंने उन की प्रतीति की यी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।
32. और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
33. उन्होंने उस को उत्तर दिया; कि हम तो इब्राहीम के वंश से हैं और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्योंकर कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे
34. यीशु ने उन को उत्तर दिया; मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है।
35. और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है।
36. सो यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।
37. मैं जानता हूं कि तुम इब्राहीम के वंश से हो; तौभी मेरा वचन तुम्हारे ह्रृदय में जगह नहीं पाता, इसलिथे तुम मुझे मार डालना चाहते हो।
38. मैं वही कहता हूं, जो अपके पिता के यहां देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुमने अपके पिता से सुना है।
39. उन्होंने उन को उत्तर दिया, कि हमारा पिता तो इब्राहीम है: यीशु ने उन से कहा; यदि तुम इब्राहीम के सन्तान होते, तो इब्राहीम के समान काम करते।
40. परन्तु अब तुम मुझ ऐसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो इब्राहीम ने नहीं किया या।
41. तुम अपके पिता के समान काम करते हो: उन्होंने उस से कहा, हम व्यभिचार से नहीं जन्क़े; हमारा एक पिता है अर्यात् परमेश्वर।
42. यीशु ने उन से कहा; यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझ से प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकल कर आया हूं; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा।
43. तुम मेरी बात क्योंनहीं समझते इसलिथे कि मेरा वचन सुन नहीं सकते।
44. तुम अपके पिता शैतान से हो, और अपके पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्यिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं: जब वह फूठ बोलता, तो अपके स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह फूठा है, बरन फूठ का पिता है।
45. परन्तु मैं जो सच बोलता हूं, इसीलिथे तुम मेरी प्रतीति नहीं करते।
46. तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है और यदि मैं सच बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्योंनहीं करते
47. जो परमेश्वर से होता हे, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिथे नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।
48. यह सुन यहूदियोंने उस से कहा; क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्क़ा है
49. यीशु ने उत्तर दिया, कि मुझ में दुष्टात्क़ा नहीं; परन्तु मैं अपके पिता का आदर करता हूं, और तुम मेरा निरादर करते हो।
50. परन्तु मैं अपक्की प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हां, एक तो है जो चाहता है, और न्याय करता है।
51. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा।
52. यहूदियोंने उस से कहा, कि अब हम ने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्क़ा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।
53. हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उस से बड़ा है और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपके आप को क्या ठहराता है।
54. यीशु ने उत्तर दिया; यदि मैं आप अपक्की महिमा करूं, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है।
55. और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूं; और यदि कहूं कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी नाईं फूठा ठहरूंगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूं।
56. तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन या; और उस ने देखा, और आनन्द किया।
57. यहूदियोंने उस से कहा, अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तू ने इब्राहीम को देखा है
58. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं; कि पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूं।
59. तब उन्होंने उसे मारने के लिथे पत्यर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।।
Chapter 9
1. फिर जाते हुए उस ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्क़ का अन्धा या।
2. और उसके चेलोंने उस से पूछा, हे रब्बी, किस ने पाप किया या कि यह अन्धा जन्क़ा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने
3. यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया या, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिथे हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।
4. जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आनेवाली है जिस में कोई काम नहीं कर सकता।
5. जब तक मैं जंगल में हूं, तब तक जगत की ज्योति हूं।
6. यह कहकर उस ने भूमि पर यूका और उस यूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आंखोंपर लगाकर।
7. उस से कहा; जा शीलोह के कुण्ड में धो ले, (जिस का अर्य भेजा हुआ है) सो उस ने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया।
8. तब पड़ोसी और जिन्होंने पिहले उसे भीख मांगते देखा या, कहने लगे; क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख मांगा करता या
9. कितनोंने कहा, यह वही है: औरोंने कहा, नहीं; परन्तु उसके समान है: उस ने कहा, मैं वही हूं।
10. तब वे उस से पूछने लगे, तेरी आंखें क्योंकर खुल गई
11. उस ने उत्तर दिया, कि यीशु नाम एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आंखोंपर लगाकर मुझ से कहा, कि शीलोह में जाकर धो ले; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा।
12. उन्होंने उस से पूछा; वह कहां है उस ने कहा; मैं नहीं जानता।।
13. लोग उसे जो पहिले अन्धा या फरीसियोंके पास ले गए।
14. जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उस की आंखे खोली यी वह सब्त का दिन या।
15. फिर फरीसियोंने भी उस से पूछा; तेरी आंखें किस रीति से खुल गई उस न ेउन से कहा; उस ने मेरी आंखो पर मिट्टी लगाई, फिर मैं ने धो लिया, और अब देखता हूं।
16. इस पर कई फरीसी कहने लगे; यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता। औरोंने कहा, पापी मनुष्य क्योंकर ऐसे चिन्ह दिखा सकता है सो उन में फूट पड़ी।
17. उन्होंने उस अन्धे से फिर कहा, उस ने जो तेरी आंखे खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है उस ने कहा, यह भविष्यद्वक्ता है।
18. परन्तु यहूदियोंको विश्वास न हुआ कि यह अन्धा या और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिस की आंखे खुल गई यी, बुलाकर।
19. उन से न पूछा, कि क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्क़ा या फिर अब क्योंकर देखता है
20. उसके माता-पिता ने उत्तर दिया; हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्क़ा या।
21. परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उस की आंखे खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपके विषय में आप कह देगा।
22. थे बातें उसके माता-पिता ने इसलिथे कहीं क्योंकि वे यहूदियोंसे डरते थे; क्योकि यहूदी एका कर चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए।
23. इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, कि वह सयाना है; उसी से पूछ लो।
24. तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अन्धा या दूसरी बार बुलाकर उस से कहा, परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।
25. उस ने उत्तर दिया: मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं: मैं एक बात जानता हूं कि मैं अन्धा या और अब देखता हूं।
26. उन्होंने उस से फिर कहा, कि उस ने तेरे साय क्या किया और किस तेरह तेरी आंखें खोली
27. उस ने उन से कहा; मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने ने सुना; अब दूसरी बार क्योंसुनना चाहते हो क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो
28. तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं।
29. हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहां का है।
30. उस ने उन को उत्तर दिया; यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहां का है तौभी उस ने मेरी आंखें खोल दीं।
31. हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियोंकी नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है।
32. जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्क़ के अन्धे की आंखे खोली हों।
33. यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।
34. उन्होंने उस को उत्तर दिया, कि तू तो बिलकुल पापोंमें जन्क़ा है, तू हमें क्या सिखाता है और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।।
35. यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उसे भेंट हुई तो कहा, कि क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है
36. उस ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु; वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूं
37. यीशु ने उस से कहा, तू ने उसे देखा भी है; और जो तेरे साय बातें कर रहा है वही है।
38. उस ने कहा, हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं: और उसे दंडवत किया।
39. तब यीशु ने कहा, मैं इस जगत में न्याय के लिथे आया हूं, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएं।
40. जो फरीसी उसके साय थे, उन्होंने थे बातें सुन कर उस से कहा, क्या हम भी अन्धे हैं
41. यीशु ने उन से कहा, यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिथे तुम्हारा पाप बना रहता है।।
Chapter 10
1. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु और किसी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है।
2. परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है वह भेड़ोंका चरवाहा है।
3. उसके लिथे द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेंड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपक्की भेड़ोंको नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है।
4. और जब वह अपक्की सब भेड़ोंको बाहर निकाल चुकता है, तो उन के आगे आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसक शब्द पहचानती हैं।
5. परन्तु वे पराथे के पीछे नहीं जाएंगी, परन्तु उस से भागेंगी, क्योंकि वे परायोंका शब्द नहीं पहचानती।
6. यीशु ने उन से यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि थे क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।।
7. तब यीशु ने उन से फिर कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि भेड़ोंका द्वार मैं हूं।
8. जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ोंने उन की न सुनी।
9. द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा औश्र् भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा।
10. चोर किसी और काम के लिथे नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिथे आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।
11. अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ोंके लिथे अपना प्राण देता है।
12. मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ोंका मालिक है, भेडिए को आते हुए देख, भेड़ोंको छोड़कर भाग जाता है, और भेडिय़ा उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है।
13. वह इसलिथे भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उस को भेड़ोंकी चिन्ता नहीं।
14. अच्छा चरवाहा मैं हूं; जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूं।
15. इसी तरह मैं अपी भेड़ोंको जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, और मैं भेड़ोंके लिथे अपना प्राण देता हूं।
16. और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही फुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।
17. पिता इसलिथे मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं।
18. कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, बरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिक्कारने है, और उसे फिर लेने का भी अधिक्कारने है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।।
19. इन बातोंके कारण यहूदियोंमें फिर फूट पड़ी।
20. उन में से बहुतेरे कहने लगे, कि उस में दुष्टात्क़ा है, और वह पागल है; उस की क्योंसुनते हो
21. औरोंने कहा, थे बात ऐसे मनुष्य की नहीं जिस में दुष्टात्क़ा हो: क्या दुष्टात्क़ा अन्धोंकी आंखे खोल सकती है
22. यरूशलेम में स्यापन पर्ब्ब हुआ, और जाड़े की ऋतु यी।
23. और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा या।
24. तब यहूदियोंने उसे आ घेरा और पूछा, तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।
25. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं ने तुम से कह दिया, और तुम प्रतीति करते ही नहीं, जो काम मैं अपके पिता के नाम से करता हूं वे ही मेरे गवाह हैं।
26. परन्तु तुम इसलिथे प्रतीति नहीं करते, कि मेरी भेड़ोंमें से नहीं हो।
27. मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।
28. और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा।
29. मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।
30. मैं और पिता एक हैं।
31. यहूदियोंने उसे पत्यरवाह करते को फिर पत्यर उठाए।
32. इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मैं ने तुम्हें अपके पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उन में से किस काम के लिथे तुम मुझे पत्यरवाह करते हो
33. यहूदियोंने उस को उत्तर दिया, कि भले काम के लिथे हम तुझे पत्यरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिथे कि तू मनुष्य होकर अपके आप को परमेश्वर बनाता है।
34. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, क्या तुम्हारी व्यवस्या में नहीं लिखा है कि मैं ने कहा, तुम ईश्वर हो
35. यदि उस ने उन्हें ईश्वर कहा जिन के पास परमेश्वर का वचन पहुंचा (और पवित्र शास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।)
36. तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उस से कहते हो कि तू निन्दा करता है, इसलिथे कि मैं ने कहा, मैं परमेश्वर का पुत्र हूं।
37. यदि मैं अपके पिता के काम नहीं करता, तो मेरी प्रतीति न करो।
38. परन्तु यदि मैं करता हूं, तो चाहे मेरी प्रतीति न भी करो, परन्तु उन कामोंकी तो प्रतीति करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूं।
39. तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उन के हाथ से निकल गया।।
40. फिर वह यरदन के पार उस स्यान पर चला गया, जहां यूहन्ना पहिले बपतिस्क़ा दिया करता या, और वहीं रहा।
41. और बहुतेरे उसके पास आकर कहते थे, कि युहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इस के विषय में कहा या वह सब सच या।
42. और वहां बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया।।
Chapter 11
1. मरियम और उस की बहिन मरया के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार या।
2. यह वही मरियम यी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवोंको अपके बालोंसे पोंछा या, इसी का भाई लाजर बीमार या।
3. सो उस की बहिनोंने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
4. यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिथे है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।
5. और यीशु मरया और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता या।
6. सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्यान पर वह या, वहां दो दिन और ठहर गया।
7. फिर इस के बाद उस ने चेलोंसे कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।
8. चेलोंने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्यरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है
9. यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10. परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं।
11. उस ने थे बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।
12. तब चेलोंने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।
13. यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा या: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14. तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है।
15. और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न या जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।
16. तब योमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपके साय के चेलोंसे कहा, आओ, हम भी उसके साय मरने को चलें।
17. सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18. बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर या।
19. और बहुत से यहूदी मरया और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिथे आए थे।
20. सो मरया यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21. मरया ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22. और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।
23. यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा।
24. मरया ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरूत्यान के समय वह जी उठेगा।
25. यीशु ने उस से कहा, पुनरूत्यान और जीवन मैं ही हूं, जा कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26. और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है
27. उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला या, वह तू ही है।
28. यह कहकर वह चक्की गई, और अपक्की बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।
29. वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30. (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा या, परन्तु उसी स्यान में या जहां मरया ने उस से भेंट की यी।)
31. तब जो यहूदी उसके साय घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिथे।
32. जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु या, तो उसे देखते ही उसके पांवोंपर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता।
33. जब यीशु न उस को और उन यहूदियोंको जो उसके साय आए थे रोते हुए देखा, तो आत्क़ा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है
34. उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
35. यीशु के आंसू बहने लगे।
36. तब यहूदी कहने लगे, देखो, वह उस से कैसी प्रीति रखता या।
37. परन्तु उन में से कितनोंने कहा, क्या यह जिस ने अन्धे की आंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता
38. यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा यी, और एक पत्यर उस पर धरा या।
39. यीशु ने कहा; पत्यर को उठाओ: उस मरे हुए की बहिन मरया उस से कहने लगी, हे प्रभु, उस में से अब तो र्दुगंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।
40. यीशु ने उस से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा ााि कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।
41. तब उन्होंने उस पत्यर को हटाया, फिर यीशु ने आंखें उठाकर कहा, हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि तू ने मेरी सुन ली है।
42. और मै जानता या, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उन के कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।
43. यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ।
44. जो मर गया या, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ यारू यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो।।
45. तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा या, उन में से बहुतोंने उस पर विश्वास किया।
46. परन्तु उन में से कितनोंने फरीसियोंके पास जाकर यीशु के कामोंका समाचार दिया।।
47. इस पर महाथाजकोंऔर फरीसियोंने मुख्य सभा के लोगोंको इकट्ठा करके कहा, हम करते क्या हैं यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48. यदि हम उसे योंही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनोंपर अधिक्कारने कर लेंगे।
49. तब उन में से काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महाथाजक या, उन से कहा, तुम कुछ नहीं जानते।
50. और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिथे यह भला है, कि हमारे लोगोंके लिथे एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।
51. यह बात उस ने अपक्की ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महाथाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिथे मरेगा।
52. और न केवल उस जाति के लिथे, बरन इसलिथे भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानोंको एक कर दे।
53. सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे।।
54. इसलिथे यीशु उस समय से यहूदियोंमें प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहां से जंगल के निकट के देख में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपके चेलोंके साय वहीं रहने लगा।
55. और यहूदियोंका फसह निकट या, और बहुतेरे लोग फसह से पहिले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपके आप को शुद्ध करें।
56. सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, तुम क्या समझते हो
57. क्या वह पर्ब्ब में नहीं आएगा और महाथाजकोंऔर फरीसियोंने भी आज्ञा दे रखी यी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहां है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।।
Chapter 12
1. फिर यीशु फतह से छ: दिन पहिले बैतनिय्याह में आया, जंहा लाजर या: जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया या।
2. वहां उन्होंने उसके लिथे भोजन तैयार किया, और मरया सेवा कर रही यी, और लाजर उन में से एक या, जो उसके साय भोजन करने के लिथे बैठे थे।
3. तब मरियम ने जटामासी का आध सेर बहुमोल इत्र लेकर यीशु के पावोंपर डाला, और अपके बालोंसे उसके पांव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया।
4. परन्तु उसके चेलोंमें से यहूदा इस्किरयोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर या, कहने लगा।
5. यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालोंको कयोंन दिया गया
6. उस ने यह बात इसलिथे न कही, कि उसे कंगालोंकी चिन्ता यी, परन्तु इसलिथे कि वह चोर या और उसके पास उन की यैली रहती यी, और उस में जो कुछ डाला जाता या, वह निकाल लेता या।
7. यीशु ने कहा, उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिथे रहने दे।
8. क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साय सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साय सदा न रहूंगा।।
9. यहूदियोंमें से साधारण लोग जान गए, कि वह वहां है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिथे भी कि लाजर को देंखें, जिसे उस ने मरे हुओं में से जिलाया या।
10. तब महाथाजकोंने लाजर को भी मार डालने की सम्मति की।
11. क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।।
12. दूसरे दिन बहुत से लोगोंने जो पर्ब्ब में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है।
13. खजूर की, डालियां लेीं, और उस से भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, कि होशाना, धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।
14. जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो उस पर बैठा।
15. जैसा लिखा है, कि हे सिय्योन की बेटी, मत डर, देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा हुआ चला आता है।
16. उसके चेले, थे बातें पहिले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उन को स्क़रण आया, कि थे बातें उसके विषय में लिखी हुई यीं; और लोगोंने उस से इस प्रकार का व्यवहार किया या।
17. तब भीड़ के लोगोंने जो उस समय उसके साय थे यह गवाही दी कि उस ने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया या।
18. इसी कारण लोग उस से भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना या, कि उस ने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है।
19. तब फरीसियोंने आपस में कहा, सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता: देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।।
20. जो लोग उस पर्ब्ब में भजन करने आए थे उन में से कई यूनानी थे।
21. उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलप्पुस के पास आकर उस से बिनती की, कि श्र्ीमान् हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।
22. फिलप्पुस ने आकर अद्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलप्पुस ने यीशु से कहा।
23. इस पर यीशु ने उन से कहा, वह समय आ गया है, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो।
24. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।
25. जो अपके प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपके प्राण को अप्रिय जानता हे, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपके प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिथे उस की रझा करता करेगा।
26. यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहां मैं हूं वहां मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।
27. जब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिथे अब मैं क्या कहूं हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुंचा हूं।
28. हे पिता अपके नाम की महिमा कर: तब यह आकाशवाणी हुई, कि मैं ने उस की महिमा की है, और फिर भी करूंगा।
29. तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरोंने कहा, कोई स्वर्गदूत उस से बोला।
30. इस पर यीशु ने कहा, यह शब्द मेरे लिथे नहीं परन्तु तुम्हारे लिथे आया है।
31. अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया जाएगा।
32. और मैं यदि पृय्वी पर से ऊंचे पर चढ़ाया जाऊंगा, तो सब को अपके पास खीचंूगा।
33. ऐसा कहकर उस ने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा।
34. इस पर लोगोंने उस से कहा, कि हम ने व्यवस्या की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्योंकहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है
35. यह मनुष्य का पुत्र कौन है यीशु ने उन से कहा, ज्योति अब योड़ी देन तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साय है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे; जो अन्धकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है।
36. जब तक ज्योति तुम्हारे साय है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान होओ।। थे बातें कहकर यीशु चला गया और उन से छिपा रहा।
37. और उस ने उन के साम्हने इतने चिन्ह दिखाए, तौभी उन्होंने उस पर विश्वास न किया।
38. ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उस ने कहा कि हे प्रभु हमारे समाचार की किस ने प्रतीति की है और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ
39. इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने फिर भी कहा।
40. कि उस ने उन की आंखें अन्धी, और उन का मन कठोर किया है; कहीं ऐसा न हो, कि आंखोंसे देखें, और मन से समझें, और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं।
41. यशायाह ने थे बातें इसलिथे कहीं, कि उस ने उस की महिमा देखी; और उस ने उसके विषय में बातें की।
42. तौभी सरदारोंमें से भी बहुतोंने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियोंके कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएं।
43. क्योंकि मनुष्योंकी प्रशंसा उन को परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती यी।।
44. यीशु ने पुकारकर कहा, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, बरन मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है।
45. और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है।
46. मैं जगत में ज्योति होकर आया हूं ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में ने रहे।
47. यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिथे नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिथे आया हूं।
48. जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उस को दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्यात् जो वचन मैं ने कहा है, वह पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।
49. क्योंकि मैं ने अपक्की ओर से बातें नहीं कीं, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या क्या कहूं और क्या क्या बोलूं
50. और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिथे मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं।।
Chapter 13
1. फसह के पर्ब्ब से पहिले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरी वह घड़ी आ पहुंची है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊं, तो अपके लोगोंसे, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता या, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।
2. और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्किरयोती के मन में यह डाल चुका या, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय।
3. यीशु ने यह जानकर कि पिता ने सब कुछ मेरे हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूं, और परमेश्वर के पास जाता हूं।
4. भोजन पर से उठकर अपके कपके उतार दिए, और अंगोछा लेकर अपक्की कमर बान्धी।
5. तब बरतन में पानी भरकर चेलोंके पांव धोने और जिस अंगोछे से उस की कमर बन्धी यी उसी से पोंछने लगा।
6. जब वह शमौन पतरस के पास आया: तब उस ने उस से कहा, हे प्रभु,
7. क्या तू मेरे पांव धोता है यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो मैं करता हूं, तू अब नहीं जानता, परन्तु इस के बाद समझेगा।
8. पतरस ने उस से कहा, तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा: यह सुनकर यीशु ने उस से कहा, यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साय तेरा कुछ भी साफा नहीं।
9. शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, बरन हाथ और सिर भी धो दे।
10. यीशु ने उस से कहा, जो नहा चुका है, उसे पांव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।
11. वह तो अपके पकड़वानेवाले को जानता या इसी लिथे उस ने कहा, तुम सब के सब शुद्ध नहीं।।
12. जब वह उन के पांव धो चुका और अपके कपके पहिनकर फिर बैठ गया तो उन से कहने लगा, क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साय क्या किया
13. तुम मुझे गुरू, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूं।
14. यदि मैं ने प्रभु और गुरू होकर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दुसरे के पांव धोना चाहिए।
15. क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साय किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।
16. मैं तुम से सच सच कहता हूं, दास अपके स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपके भेजनेवाले से।
17. तुम तो थे बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।
18. मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैं ने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूं: परन्तु यह इसलिथे है, कि पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हो, कि जो मेरी रोटी खाता है, उस ने मुझ पर लात उठाई।
19. अब मैं उसके होने से पहिले तुम्हें जताए देता हूं कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूं।
20. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।।
21. थे बातें कहकर यीशु आत्क़ा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।
22. चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे।
23. उसके चेलोंमें से एक जिस से यीशु प्रेम रखता या, यीशु की छाती की ओर फुका हुआ बैठा या।
24. तब शमौन पतरस ने उस की ओर सैन करके पूछा, कि बता तो, वह किस के विषय में कहता है
25. तब उस ने उसी तरह यीशु की छाती की ओर फुक कर पूछा, हे प्रभु, वह कौन है यीशु ने उत्तर दिया, जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूंगा, वही है।
26. और उस ने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्किरयोती को दिया।
27. और टुकड़ा लेते ही शैतान उस में समा गया: तब यीशु ने उस से कहा, जो तू करता है, तुरन्त कर।
28. परन्तु बैठनेवालोंमें से किसी ने न जाना कि उस ने यह बात उस से किस लिथे कही।
29. यहूदा के पास यैली रहती यी, इसलिथे किसी किसी ने समझा, कि यीशु उस से कहता है, कि जो कुछ हमें पर्ब्ब के लिथे चाहिए वह मोल ले, या यह कि कंगालोंको कुछ दे।
30. तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय या।।
31. जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा; अब मनुष्य पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उस में हुई।
32. और परमेश्वर भी अपके में उस की महिमा करेगा, बरन तुरन्त करेगा।
33. हे बालको, मैं और योड़ी देन तुम्हारे पास हूं: फिर तुम मुझे ढूंढोगे, और जैसा मैं ने यहूदियोंसे कहा, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूं।
34. मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो।
35. यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।।
36. शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तू कहां जाता है यीशु ने उत्तर दिया, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता! परन्तु इस के बाद मेरे पीछे आएगा।
37. पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्योंनहीं आ सकता मैं तो तेरे लिथे अपना प्राण दूंगा।
38. यीशु ने उत्तर दिया, क्या तू मेरे लिथे अपना प्राण देगा मैं तुझ से सच सच कहता हूं कि मुर्ग बांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।
Chapter 14
1. तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।
2. मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्यान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिथे जगह तैयार करने जाता हूं।
3. और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिथे जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपके यहंा ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।
4. और जहां मैं जाता हूं तुम वहां का मार्ग जानते हो।
5. योमा ने उस से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू हां जाता है तो मार्ग कैसे जानें
6. यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
7. यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।
8. फिलप्पुस ने उस से कहा, हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिथे बहुत है।
9. यीशु ने उस से कहा; हे फिलप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साय हूं, और क्या तू मुझे नहीं जानता जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है: तू क्योंकहता है कि पिता को हमें दिखा।
10. क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं थे बातें जो मैं तुम से कहता हूं, अपक्की ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपके काम करता है।
11. मेरी ही प्रतीति करो, कि मैं पिता में हूं; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामोंही के कारण मेरी प्रतीति करो।
12. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, थे काम जो मैं करता हूं वही भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं।
13. और जो कुछ तुम मेरे नाम से मांगोगे, वही मैं करूंगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो।
14. यदि तुम मुझ से मेरे नाम से कुछ मांगोगे, तो मैं उसे करूंगा।
15. यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।
16. और मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहाथक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साय रहे।
17. अर्यात् सत्य का आत्क़ा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साय रहता है, और वह तुम में होगा।
18. मैं तुम्हें अनाय न छोडूंगा, मैं तुम्हारे पास आता हूं।
19. और योड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिथे कि मैं जीवित हूं, तुम भी जीवित रहोगे।
20. उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपके पिता में हूं, और तुम मुझ में, और मैं तुम में।
21. जिस के पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा, और अपके आप को उस पर प्रगट करूंगा।
22. उस यहूदा ने जो इस्किरयोती न या, उस से कहा, हे प्रभु, क्या हुआ की तू अपके आप को हम पर प्रगट किया चाहता है, और संसार पर नहीं।
23. यीशु ने उस को उत्तर दिया, यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साय वास करेंगे।
24. जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन पिता का है, जिस ने मुझे भेजा।।
25. थे बातें मैं ने तुम्हारे साय रहते हुए तुम से कही।
26. परन्तु सहाथक अर्यात् पवित्र आत्क़ा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्क़रण कराएगा।
27. मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपक्की शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
28. तुम ने सुना, कि मैं ने तुम से कहा, कि मैं जाता हूं, और तुम्हारे पास फिर आता हूं: यदि तुम मुझ से प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूं क्योंकि पिता मुझ से बड़ा है।
29. और मैं ने अब इस के होने के पहिले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम प्रतीति करो।
30. मैं अब से तुम्हारे साय और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं।
31. परन्तु यह इसलिथे होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूं, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूं: उठो, यहां से चलें।।
Chapter 15
1. सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।
2. जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।
3. तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो।
4. तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपके आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।
5. में दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।
6. यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाई फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में फोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।
7. यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिथे हो जाएगा।
8. मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
9. जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।
10. यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपके पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।
11. मैं ने थे बातें तुम से इसलिथे कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
12. मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
13. इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपके मित्रोंके लिथे अपना प्राण दे।
14. जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।
15. अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपके पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।
16. तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।
17. इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिथे देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
18. यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उस ने तुम से पहिले मुझ से भी बैर रखा।
19. यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनोंसे प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार में से चुन लिया है इसी लिथे संसार तुम से बैर रखता है।
20. जो बात मै। ने तुम से कही यी, कि दास अपके स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।
21. परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साय करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।
22. यदि मैं न आता और उन से बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उन के पाप के लिथे कोई बहाना नहीं।
23. जो मुझ से बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है।
24. यदि मैं उन में वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनोंको देखा, और दोनोंसे बैर किया।
25. और यह इसलिथे हुआ, कि वहि वचन पूरा हो, जो उन की व्यवस्या में लिखा है, कि उन्होंने मुझ से व्यर्य बैर किया।
26. परन्तु जब वह सहाथक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास भेजूंगा, अर्यात् सत्य का आत्क़ा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा।
27. और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साय रहे हो।।
Chapter 16
1. थे बातें मैं ने तुम से इसलिथे कहीं कि तुम ठोकर न खाओ।
2. वे तुम्हें आराधनालयोंमें से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं।
3. और यह वे इसलिथे करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं।
4. परन्तु थे बातें मैं ने इसलिथे तुम से कहीं, कि जब उन का समय आए तो तुम्हें स्क़रण आ जाए, कि मैं ने तुम से पहिले ही कह दिया या: और मैं ने आरम्भ में तुम से थे बातें इसलिथे नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साय या।
5. अब मैं अपके भेजनेवाले के पास जाता हूं और तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता, कि तू कहां जाता हैं
6. परन्तु मैं ने जो थे बातें तुम से कही हैं, इसलिथे तुम्हारा मन शोक से भर गया।
7. तौभी मैं तुम से सच कहता हूं, कि मेरा जाना तुम्हारे लिथे अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहाथक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।
8. और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।
9. पाप के विषय में इसलिथे कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते।
10. और धामिर्कता के विषय में इसलिथे कि मैं पिता के पास जाता हूं,
11. और तुम मुझे फिर न देखोगे: न्याय के विषय में इसलिथे कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।
12. मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।
13. परन्तु जब वह अर्यात् सत्य का आत्क़ा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपक्की ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।
14. वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातोंमें से लेकर तुम्हें बताएगा।
15. जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिथे मैं ने कहा, कि वह मेरी बातोंमें से लेकर तुम्हें बताएगा।
16. योड़ी देर तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे।
17. तब उसके कितने चेलोंने आपस में कहा, यह क्या है, जो वह हम से कहता है, कि योड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे और यह इसलिथे कि मैं कि मैं पिता के मास जाता हूं
18. तब उन्होंने कहा, यह योड़ी देर जो वह कहता है, क्या बात है हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।
19. यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उन से कहा, क्या तुम आपस में मेरी इस बाते के विषय में पूछ पाछ करते हो, कि योड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे।
20. मैं तुम से सच सच कहता हूं; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा।
21. जब स्त्री जनने लगती है तो उस को शोक होता है, क्योंकि उस की दु:ख की घड़ी आ पहुंची, परन्तु जब वह बालक जन्क़ चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्क़रण नहीं करती।
22. और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।
23. उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे: मैं तुम से सच सच कहता हूं, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा।
24. अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं मांगा; मांगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।।
25. मैं ने थे बातें तुम से दृष्टान्तोंमें कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तोंमें और फिर नहीं कहूंगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊंगा।
26. उस दिन तुम मेरे नाम से मांगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिथे पिता से बिनती करूंगा।
27. क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिथे कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया।
28. मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं।
29. उसके चेलोंने कहा, देख, अब तो तू खोलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता।
30. अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है।
31. यह सुन यीशु ने उन से कहा, क्या तुम अब प्रतीति करते हो
32. देखो, वह घड़ी आती है वरन आ पहुंची कि तुम सब तित्तर बित्तर होकर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साय है।
33. मैं ने थे बातें तुम से इसलिथे कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है।।
Chapter 17
1. यीशु ने थे बातें कहीं और अपक्की आंखे आकाश की ओर उठाकर कहा, हे पिता, वह घड़ी आ पहुंची, अपके पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे।
2. क्योंकि तू ने उस का सब प्राणियोंपर अधिक्कारने दिया, कि जिन्हें तू ने उस को दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।
3. और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने।
4. जो काम तू ने मुझे करने को दिया या, उसे पूरा करके मैं ने पृय्वी पर तेरी महिमा की है।
5. और अब, हे पिता, तू अपके साय मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहिले, मेरी तेरे साय यी।
6. मैं ने तेरा नाम उन मनुष्योंपर प्रगट किया जिन्हें तू ने जगत में से मुझे दिया: वे तेरे थे और तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है।
7. अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तू ने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है।
8. क्योंकि जो बातें तू ने मुझे पहुंचा दीं, मैं ने उन्हें उनको पहुंचा दिया और उन्होंने उन को ग्रहण किया: और सच सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से निकला हूं, और प्रतीति कर ली है कि तू ही ने मुझे भेजा।
9. मैं उन के लिथे बिनती करता हूं, संसार के लिथे बिनती नहीं करता हूं परन्तु उन्हीं के लिथे जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं।
10. और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है, वह मेरा है; और इन से मेरी महिमा प्रगट हुई है।
11. मैं आगे को जगत में न रहूंगा, परन्तु थे जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूं; हे पवित्र पिता, अपके उस नाम से जो तू ने मुझे दिया है, उन की रझा कर, कि वे हमारी नाई एक हों।
12. जब मै। उन के साय या, तो मैं ने तेरे उस नाम से, जो तू ने मुझे दिया है, उन की रझा की, मैं ने उन की चौकसी की और विनाश के पुत्र को छोड़ उन में से काई नाश न हुआ, इसलिथे कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो।
13. परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूं, और थे बातें जगत में कहता हूं, कि वे मेरा आनन्द अपके में पूरा पाएं।
14. मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुंचा दिया है, और संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
15. मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।
16. जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
17. सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है।
18. जैसे तू ने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा।
19. और उन के लिथे मैं अपके आप को पवित्र करता हूं ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएं।
20. मैं केवल इन्हीं के लिथे बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिथे भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों।
21. जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिथे कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।
22. और वह महिमा जो तू ने मुझे दी, मैं ने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक होंजैसे की हम एक हैं।
23. मैं उन में और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएं, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही उन से प्रेम रखा।
24. हे पिता, मै। चाहता हूं कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहां मैं हूं, वहां वे भी मेरे साय होंकि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहिले मुझ से प्रेम रखा।
25. हे धामिर्क पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा।
26. और मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से या, वह उन में रहे और मैं उन में रहूं।।
Chapter 18
1. यीशु थे बातें कहकर अपके चेलोंके साय किद्रोन के नाले के पार गया, वहां एक बारी यी, जिस में वह और उसके चेले गए।
2. और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता या, क्योंकि यीशु अपके चेलोंके साय वहां जाया करता या।
3. तब यहूदा पलटन को और महाथाजकोंऔर फरीसियोंकी ओर से प्यादोंको लेकर दीपकोंऔर मशालोंऔर हिययारोंको लिए हुए वहां आया।
4. तब यीशु उन सब बातोंको जो उस पर आनेवाली यीं, जानकर निकला, और उन से कहने लगा, किसे ढूंढ़ते हो
5. उन्होंने उसको उत्तर दिया, यीशु नासरी को: यीशु ने उन से कहा, मैं ही हूं: और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उन के साय खड़ा या।
6. उसके यह कहते ही, कि मैं हूं, वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पके।
7. तब उस ने फिर उन से पूछा, तुम किस को ढूंढ़ते हो।
8. वे बोले, यीशु नासरी को। यीशु ने उत्तर दिया, मैं तो तुम से कह चुका हूं कि मैं ही हूं, यदि मुझे ढूंढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।
9. यइ इसलिथे हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उस ने कहा या कि जिन्हें तू ने मुझे दिया, उन में से मैं ने एक को भी न खोया।
10. शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास यी, खींची और महाथाजक के दास पर चलाकर, उसका दिहना कान उड़ा दिया, उस दास का नाम मलखुस या।
11. तब यीशु ने पतरस से कहा, अपक्की तलवार काठी में रख: जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊं
12. तब सिपाहियोंऔर उन के सूबेदार और यहूदियोंके प्यादोंने यीशु को पकड़कर बान्ध लिया।
13. और पहिले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महाथाजक काइफा का ससुर या।
14. यह वही काइफा या, जिस ने यहूदियोंको सलाह दी यी कि हमारे लोगोंके लिथे एक पुरूष का मरना अच्छा है।
15. शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए: यह चेला महाथाजक का जाना पहचाना या और यीशु के साय महाथाजक के आंगत में गया।
16. परन्तु पतरस द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महाथाजक का जाना पहचाना या, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया।
17. उस दासी ने जो द्वारपालिन यी, पतरस से कहा, क्या तू भी इस मनुष्य के चेलोंमें से है उस ने कहा, मैं नहीं हूं।
18. दास और प्यादे जाड़े के कारण कोएले धधकाकर खड़े ताप रहे थे और पतरस भी उन के साय खड़ा ताप रहा या।।
19. तक महाथाजक ने यीशु से उसके चेलोंके विषय में और उसके उपकेश के विषय में पूछा।
20. यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि मैं ने जागत से खोलकर बातें की; मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहां सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपकेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा।
21. तू मुझ से क्योंपूछता है सुननेवालोंसे पूछ: कि मैं ने उन से क्या कहा देख वे जानते हैं; कि मैं ने क्या क्या कहा
22. तब उस ने यह कहा, तो प्यादोंमें से एक ने जो पास खड़ा या, यीशु को यप्पड़ मारकर कहा, क्या तू महाथाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।
23. यीशु ने उसे उत्तर दिया, यदि मैं ने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्योंमारता है
24. हन्ना ने उसे बन्धे हुए काइफा महाथाजक के पास भेज दिया।।
25. शमौन पतरस खड़ा हुआ ताप रहा या। तब उन्होंने उस से कहा; क्या तू भी उसके चेलोंमें से है उस न इन्कार करके कहा, मैं नहीं हूं।
26. महाथाजक के दासोंमें से एक जो उसके कुटुम्ब में से या, जिसका कान पतरस ने काट डाला या, बोला, क्या मैं ने तुझे उसके साय बारी में न देखा या
27. पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्ग ने बांग दी।।
28. और वे यीशु को काइफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय या, परन्तु वे आप किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न होंपरन्तु फसह खा सकें।
29. तब पीलातुस उन के पास बाहर निकल आया और कहा, तुम इस मनुष्य पर किस बात की नालिया करते हो
30. उन्होंने उस को उत्तर दिया, कि यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपके।
31. पीलातुस ने उन से कहा, तुम ही इसे ले जाकर अपक्की व्यवस्या के अनुसार उसका न्याय करो: यहूदयोंने उस से कहा, हमें अधिक्कारने नहीं कि किसी का प्राण लें।
32. यह इसलिथे हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उस ने यह पता देते हुए कही यी, कि उसका मरना कैसा होगा।।
33. तब पीलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उस से पूछा, क्या तू यहूदियोंका राजा है
34. यीशु ने उत्तर दिया, क्या तू यह बात अपक्की ओर से कहता है या औरोंने मेरे विषय में तुझ से कही
35. पीलातुस ने उत्तर दिया, क्या मैं यहूदी हूं तेरी ही जाति और महाथाजकोंने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तू ने क्या किया है
36. यीशु ने उत्तर दिया, कि मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियोंके हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।
37. पीलातुस ने उस से कहा, कि तू कहता है, क्योंकि मैं राजा हूं; मैं ने इसलिथे जन्क़ लिया, और इसलिथे जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।
38. पीलातुस ने उस से कहा, सत्य क्या है और यह कहकर वह फिर यहूदियोंके पास निकल गया और उन से कहा, मैं तो उस में कुछ दोष नहीं पाता।
39. पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिथे एक व्यक्ति को छोड़ दूं सो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिथे यहूदियोंके राजा को छोड़ दूं
40. तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, इसे नहीं परन्तु हमारे लिथे बरअब्बा को छोड़ दे; और बरअब्बा डाकू या।।
Chapter 19
1. इस पर पीलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए।
2. और सिपाहियोंने कांटोंका मुकुट गूंयकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया।
3. और उसके पास आ आकर कहने लगे, हे यहूदियोंके राजा, प्रणाम! और उसे यप्पड़ मारे।
4. तक पीलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगोंसे कहा, देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूं; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।
5. तक यीशु कांटोंका मुकुट और बैंजनी वस्त्र पहिने हुए बाहर निकला और पीलातुस ने उन से कहा, देखो, यह पुरूष।
6. जब महाथाजकोंऔर प्यादोंने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, कि उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर : पीलातुस ने उन से कहा, तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उस में दोष नहीं पाता।
7. यहूदियोंने उस को उत्तर दिया, कि हमारी भी व्यवस्या है और उस व्यवस्या के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उस ने अपके आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।
8. जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया।
9. और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, तू कहां का है परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया।
10. पीलातुस ने उस से कहा, मुझ से क्योंनहीं बोलता क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिक्कारने मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिक्कारने है।
11. यीशु ने उत्तर दिया, कि यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिक्कारने न होता; इसलिथे जिस ने मुझे तेरे हाध पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।
12. इस से पीलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा, परन्तु यहूदयोंने चिल्ला चिल्लाकर कहा, यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपके आप को राजा बनाता है वह कैसर का साम्हना करता है।
13. थे बातें सुनकर पीलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा या जो इब्रानी में गब्बता कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा।
14. यह फसह की तैयारी का दिन या और छठे घंटे के लगभग या: तब उस ने यहूदियोंसे कहा, देखो, यही है, तुम्हारा राजा!
15. परन्तु वे चिल्लाए कि ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा: पीलातुस ने उन से कहा, क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊं महाथाजकोंने उत्तर दिया, कि कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।
16. तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।।
17. तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्यान तक बाहर गया, जो खोपड़ी का स्यान कहलाता है और इब्रानी में गुलगुता।
18. वहां उन्होंने उसे और उसके साय और दो मनुष्योंको क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।
19. और पीलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उस में यह लिखा हुआ या, यीशु नासरी यहूदियोंका राजा।
20. यह दोष-पत्र बहुत यहूदियोंने पढ़ा क्योंकि वह स्यान जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया या नगर के पास या और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ या।
21. तब यहूदियोंके महाथाजकोंने पीलातुस से कहा, यहूदियोंका राजा मत लिख परन्तु यह कि ?उस ने कहा, मैं यहूदियोंका राजा हूं।
22. पीलातुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने जो लिख दिया, वह लिख दिया।।
23. जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपके लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिथे एक भाग और कुरता भी लिया, परन्तु कुरता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ या: इसलिथे उन्होंने आपस में कहा, हम इस को न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।
24. यह इसलिथे हुआ, कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कि उन्होंने मेरे कपके आपस में बांट लिथे और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली: सो सिपाहियोंने ऐसा ही किया।
25. परन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी यी।
26. यीशु ने अपक्की माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।
27. तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपके घर ले गया।।
28. इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिथे कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं।
29. वहां एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा या, सो उन्होंने सिरके के भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया।
30. जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर फुकाकर प्राण त्याग दिए।।
31. और इसलिथे कि वह तैयारी का दिन या, यहूदियोंने पीलातुस से बिनती की कि उन की टांगे तोड़ दी जाएं और वे उतारे जाएं ताकि सब्त के दिन वे क्रूसोंपर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन या।
32. सो सिपाहियोंने आकर पहिले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साय क्रूसोंपर चढ़ाए गए थे।
33. परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं।
34. परन्तु सिपाहियोंमें से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला।
35. जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।
36. थे बातें इसलिथे हुईं कि पवित्र शास्त्र की यह बात पूरी हो कि उस की कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।
37. फिर एक और स्यान पर यह लिखा है, कि जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।।
38. इन बातोंके बाद अरमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला या, (परन्तु यहूदियोंके डर से इस बात को छिपाए रखता या), पीलातुस से बिनती की, कि मैं यीशु की लोय को ले जाऊं, और पीलातुस ने उस की बिनती सुनी, और वह आकर उस की लोय ले गया।
39. निकुदेमुस भी जो पहिले यीशु के पास रात को गया या पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया।
40. तब उन्होंने यीशु की लोय को लिया और यहूदियोंके गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साय कफन में लपेटा।
41. उस स्यान पर जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया या, एक बारी यी; और उस बारी में एक नई कब्र यी; जिस में कभी कोई न रखा गया या।
42. सो यहूदियोंकी तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट यी।।
Chapter 20
1. सप्ताह के पहिले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्यर को कब्र से हटा हुआ देखा।
2. तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिस से यीशु प्रेम रखता या आकर कहा, वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहां रख दिया है।
3. तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले।
4. और दोनोंसाय साय दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहिले पहुंचा।
5. और फुककर कपके पके देखे: तौभी वह भीतर न गया।
6. तब शमौन पतरस उसके पीछे पीछे पहुंचा और कब्र के भीतर गया और कपके पके देखे।
7. और वह अंगोछा जो उसके सिर से बन्धा हुआ या, कपड़ोंके साय पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा।
8. तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहिले पहुंचा या, भीतर गया और देखकर विश्वास किया।
9. वे तो अब तक पवित्र शास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा।
10. तब थे चेले अपके घर लौट गए।
11. परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते रोते कब्र की ओर फुककर,
12. दो स्वर्गदूतोंको उज्ज़वत कपके पहिने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहां यीशु की लोय पड़ी यी।
13. उन्होंने उस से कहा, हे नारी, तू क्योंरोती है उस ने उन से कहा, वे मरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहां रखा है।
14. यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है।
15. यीशु ने उस से कहा, हे नारी तू क्योंरोती है जिस को ढूंढ़ती है उस ने माली समझकर उस से कहा, हे महाराज, यदि तू ने उसे उठा लिया है तो मुझ से कह कि उसे कहां रखा है और मैं उसे ले जाऊंगी।
16. यीशु ने उस से कहा, मरियम! उस ने पीछे फिरकर उस से इब्रानी में कहा, रब्बूनी अर्यात् हे गुरू।
17. यीशु ने उस से कहा, मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयोंके पास जाकर उन से कह दे, कि मैं अपके पिता, और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं।
18. मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलोंको बताया, कि मैं ने प्रभु को देखा और उस ने मुझ से बातें कहीं।।
19. उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन या, सन्ध्या के समय जब वहां के द्वार जहां चेले थे, यहूदियोंके डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
20. और यह कहकर उस ने अपना हाथ और अपना पंजर उन को दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
21. यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं।
22. यह कहकर उस ने उन पर फूंका और उन से कहा, पवित्र आत्क़ा लो।
23. जिन के पाप तुम झमा करो वे उन के लिथे झमा किए गए हैं जिन के तुम रखो, वे रखे गए हैं।।
24. परन्तु बारहोंमें से एक व्यक्ति अर्यात् योमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उन के साय न या।
25. जब और चेले उस से कहने लगे कि हम ने प्रभु को देखा है: तब उस ने उन से कहा, जब तक मैं उस के हाथोंमें कीलोंके छेद न देख लूं, और कीलोंके छेदोंमें अपक्की उंगली न डाल लूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूंगा।।
26. आठ दिन के बाद उस के चेले फिर घर के भीतर थे, और योमा उन के साय या, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
27. तब उस ने योमा से कहा, अपक्की उंगली यहां लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।
28. यह सुन योमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!
29. यीशु ने उस से कहा, तू ने तो मुझे देखकर विश्वास किया है, धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।।
30. यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलोंके साम्हने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए।
31. परन्तु थे इसलिथे लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।।
Chapter 21
1. इन बातोंके बाद यीशु ने अपके आप को तिबिरियास फील के किनारे चेलोंपर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया।
2. शमौन पतरस और योमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलोंमें से दो और जन इकट्ठे थे।
3. शमौन पतरस ने उन से कहा, मैं मछली पकड़ने जाता हूं: उन्होंने उस से कहा, हम भी तेरे साय चलते हैं: सो वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा।
4. भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; तौभी चेलोंने न पहचाना कि यह यीशु है।
5. तब यीशु ने उन से कहा, हे बालको, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है उन्होंने उत्तर दिया कि नहीं।
6. उस ने उन से कहा, नाव की दिहनी ओर जाल डालो, तो पाओगे, तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछिलयोंकी बहुतायत के कारण उसे खींच न सके।
7. इसलिथे उस चेले ने जिस से यीशु प्रेम रखता या पतरस से कहा, यह तो प्रभु है: शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा या, और फील में कूद पड़ा।
8. परन्तु और चेले डोंगी पर मछिलयोंसे भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे।
9. जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोएले की आग, और उस र मछली रखी हुई, और रोटी देखी।
10. यीशु ने उन से कहा, जो मछिलयां तुम ने अभी पकड़ी हैं, उन में से कुछ लाओ।
11. शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिर्मन बड़ी मछिलयोंसे भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछिलयां होने पर भी जान न फटा।
12. यीशु ने उन से कहा, कि आओ, भोजन करो और चेलोंमें से किसी को हियाव न हुआ, कि उस से पूछे, कि तू कौन है
13. यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी।
14. यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलोंको दर्शन दिए।।
15. भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है उस ने उस से कहा, हां प्रभु तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: उस ने उस से कहा, मेरे मेमनोंको चरा।
16. उस ने फिर दूसरी बार उस से कहा, हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है उस ने उन से कहा, हां, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: उस ने उस से कहा, मेरी भेड़ोंकी रखवाली कर।
17. उस ने तीसरी बार उस से कहा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है पतरस उदास हुआ, कि उस ने उसे तीसरी बार ऐसा कहा; कि क्या तू मुझ से प्रीति रखता है और उस से कहा, हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: यीशु ने उस से कहा, मेरी भेड़ोंको चरा।
18. मैं तुझ से सच सच कहता हूं, जब तू जवान या, तो अपक्की कमर बान्धकर जहां चाहता या, वहां फिरता या; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपके हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बान्धकर जहां तू न चाहेगा वहां तुझे ले जाएगा।
19. उस ने इन बातोंसे पता दिया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उस से कहा, मेरे पीछे हो ले।
20. पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिस से यीशु प्रेम रखता या, और जिस ने भोजन के समय उस की छाती की और फुककर पूछा हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है
21. उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, हे प्रभु, इस का क्या हाल होगा
22. यीशु ने उस से कहा, यदि मैं चाहूं कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या तू मेरे पीछे हो ले।
23. इसलिथे भाइयोंमें यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तौभी यीशु ने उस से यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि यदि मैं चाहूं कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इस से क्या
24. यह वही चेला है, जो इन बातोंकी गवाही देता है और जिस ने इन बातोंको लिखा है और हम जानते हैं, कि उस की गवाही सच्ची है।
25. और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूं, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।
Chapter 1
1. आदि में वचन या, और वचन परमेश्वर के साय या, और वचन परमेश्वर या।
2. यही आदि में परमेश्वर के साय या।
3. सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
4. उस में जीवन या; और वह जीवन मुनष्योंकी ज्योति यी।
5. और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
6. एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्यित हुआ जिस का नाम यूहन्ना या।
7. यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं।
8. वह आप तो वह ज्योति न या, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिथे आया या।
9. सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली यी।
10. वह जगत में या, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना।
11. वह अपके घर में आया और उसके अपनोंने उसे ग्रहण नहीं किया।
12. परन्तु जितनोंने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिक्कारने दिया, अर्यात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
13. वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14. और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।
15. यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, कि यह वही है, जिस का मैं ने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझ से बढ़कर है क्योंकि वह मुझ से पहिले या।
16. क्योंकि उस की परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्यात् अनुग्रह पर अनुग्रह।
17. इसलिथे कि व्यवस्या तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।
18. परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।।
19. यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियोंने यरूशलेम से याजकोंऔर लेवीयोंको उस से यह पूछने के लिथे भेजा, कि तू कौन है
20. तो उस ने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया परन्तु मान लिया कि मैं मसीह नहीं हूं।
21. तब उन्होंने उस से पूछा, तो फिर कौन है क्या तू एलिय्याह है उस ने कहा, मैं नहीं हूं: तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है उस ने उत्तर दिया, कि नहीं।
22. तब उन्होंने उस से पूछा, फिर तू है कौन ताकि हम अपके भेजनेवालोंको उत्तर दें; तू अपके विषय में क्या कहता है
23. उस ने कहा, मैं जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूं कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो।
24. थे फरीसियोंकी ओर से भेजे गए थे।
25. उन्होंने उस से यह प्रश्न पूछा, कि यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्क़ा क्योंदेता है
26. यूहन्ना ने उन को उत्तर दिया, कि मैं तो जल से बपतिस्क़ा देता हूं; परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते।
27. अर्यात् मेरे बाद आनेवाला है, जिस की जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं।
28. थे बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहां यूहन्ना बपतिस्क़ा देता या।
29. दूसरे दिन उस ने यीशु को अपक्की ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।
30. यह वही है, जिस के विषय में मैं ने कहा या, कि एक पुरूष मेरे पीछे आता है, जो मुझ से श्र्ेष्ठ है, क्योंकि वह मुझ से पहिले या।
31. और मैं तो उसे पहिचानता न या, परन्तु इसलिथे मैं जल से बपतिस्क़ा देता हुआ आया, कि वह इस्त्राएल पर प्रगट हो जाए।
32. और यूहन्ना ने यह गवाही दी, कि मैं ने आत्क़ा को कबूतर की नाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया।
33. और मैं तो उसे पहिचानता न या, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्क़ा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्क़ा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्क़ा से बपतिस्क़ा देनेवाला है।
34. और मैं ने देखा, और गवाही दी है, कि यही परमेश्वर का पुत्र है।।
35. दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलोंमें से दो जन खड़े हुए थे।
36. और उस ने यीशु पर जो जा रहा या दृष्टि करके कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।
37. तब वे दोनोंचेले उस की सुनकर यीशु के पीछे हो लिए।
38. यीशु ने फिरकर और उन को पीछे आते देखकर उन से कहा, तुम किस की खोज में हो उन्होंने उस से कहा, हे रब्बी, अर्यात् (हे गुरू) तू कहां रहता है उस ने उन से कहा, चलो, तो देख लोगे।
39. तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्यान देखा, और उस दिन उसी के साय रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग या।
40. उन दोनोंमें से जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक तो शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास या।
41. उस ने पहिले अपके सगे भाईं शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को खि्रस्तस अर्यात् मसीह मिल गया।
42. वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, कि तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू केफा, अर्यात् पतरस कहलाएगा।।
43. ूदूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा; और फिलप्पुस से मिलकर कहा, मेरे पीछे हो ले।
44. फिलप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी या।
45. फिलप्पुस ने नतनएल से मिलकर उस से कहा, कि जिस का वर्णन मूसा ने व्यवस्या में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हम को मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।
46. नतनएल ने उस से कहा, क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है फिलप्पुस ने उस से कहा, चलकर देख ले।
47. यीशु ने नतनएल को अपक्की ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, देखो, यह सचमुच इस्त्राएली है: इस में कपट नहीं।
48. नतनएल ने उस से कहा, तू मुझे कहां से जानता है यीशु ने उस को उत्तर दिया; उस से पहिले कि फिलप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले या, तब मैं ने तुझे देखा या।
49. नतनएल ने उस को उत्तर दिया, कि हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है; तू इस्त्राएल का महाराजा है।
50. यीशु ने उस को उत्तर दिया;
51. मैं ने जो तुझ से कहा, कि में ने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसी लिथे विश्वास करता है तू इस से बड़े बड़े काम देखेगा।
Chapter 2
1. फिर उस से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतोंको मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते और ऊपर जाते देखोगे।।
2. फिर तीसरे दिन गलील के काना में किसी का ब्याह या, और यीशु की माता भी वहां यी।
3. और यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे।
4. जब दाखरस घट गया, तो यीशु की माता ने उस से कहा, कि उन के पास दाखरस नहीं रहा।
5. यीशु ने उस से कहा, हे महिला मुझे तुझ से क्या काम अभी मेरा समय नहीं आया।
6. उस की माता ने सेवकोंसे कहा, जो कुद वह तुम से कहे, वही करना।
7. वहां यहूदियोंके शुद्ध करने की रीति के अनुसार पत्यर के छ: मटके धरे थे, जि में दो दो, तीन तीन मन समाता या।
8. यीशु ने उन से कहा, अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।
9. वे ले गए, जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया या, और नहीं जानता या, कि वह कहां से आया हे, (परन्तु जिन सेवकोंने पानी निकाला या, वे जानते थे) तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उस से कहा।
10. हर एक मनुष्य पहिले अच्छा दाखरस देता है और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तू ने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।
11. यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहिला चिन्ह दिखाकर अपक्की महिमा प्रगट की और उसके चेलोंने उस पर विश्वास किया।।
12. इस के बाद वह और उस की माता और उसके भाई और उसके चेले कफरनहूम को गए और वहां कुछ दिन रहे।।
13. यहूदियोंका फसह का पर्ब्ब निकट या और यीशु यरूशलेम को गया।
14. और उस ने मन्दिर में बैल और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालोंओर सर्राफोंको बैठे हुए पाया।
15. और रस्सियोंका कोड़ा बनाकर, सब भेड़ोंऔर बैलोंको मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफोंके पैसे बियरा दिए, और पीढ़ोंको उलट दिया।
16. और कबूतर बेचनेवालोंसे कहा; इन्हें यहां से ले जाओ: मेरे पिता के भवन को व्योपार का घर मत बनाओ।
17. तब उसके चेलोंको स्क़रण आया कि लिखा है, ?तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी।
18. इस पर यहूदियोंने उस से कहा, तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता हे
19. यीशु ने उन को उत्तर दिया; कि इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा।
20. यहूदियोंने कहा; इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हें, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा
21. परन्तु उस ने अपक्की देह के मन्दिर के विषय में कहा या।
22. सो जब वह मुर्दोंमें से जी उठा तो उसके चेलोंको स्क़रण आया, कि उस ने यह कहा या; और उन्होंने पवित्र शास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा या, प्रतीति की।।
23. जब वह यरूशलेम में फसह के समय पर्ब्ब में या, तो बहुतोंने उन चिन्होंको जो वह दिखाता या देखकर उसके नाम पर विश्वास किया।
24. परन्तु यीशु ने अपके आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता या।
25. और उसे प्रयोजन न या, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता या, कि मनुष्य के मन में क्या है
Chapter 3
1. फरीसियोंमें से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य या, जो यहूदियोंका सरदार या।
2. उस ने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर अया है; क्योंकि कोई इन चिन्होंको जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साय न हो, तो नहीं दिखा सकता।
3. यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नथे सिक्के से न जन्क़ें तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
4. नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्क़ ले सकता है
5. यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्क़ा से न जन्क़े तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
6. क्योंकि जो शरीर से जन्क़ा है, वह शरीर है; और जो आत्क़ा से जन्क़ा है, वह आत्क़ा है।
7. अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नथे सिक्के से जन्क़ लेना अवश्य है।
8. हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है जो कोई आत्क़ा से जन्क़ा है वह ऐसा ही है।
9. नीकुदेमुस ने उस को उत्तर दिया; कि थे बातें क्योंकर हो सकती हैं
10. यह सुनकर यीशु ने उस से कहा; तू इस्त्राएलियोंका गुरू हो कर भी क्या इन बातोंको नहीं समझता।
11. मैं तुझ से सच सच कहता हूं कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हम ने देखा है उस की गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते।
12. जब मैं ने तुम से पृय्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूं, तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे
13. और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वहीं जो स्वर्ग से उतरा, अर्यात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।
14. और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
15. ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए।।
16. क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
17. परमेश्वर ने अपके पुत्र को जगत में इसलिथे नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिथे कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
18. जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहरा चुका; इसलिथे कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
19. और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्योंने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे।
20. क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामोंपर दोष लगाया जाए।
21. परन्तु जो सच्चाई पर चलता हैख् वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।
22. इस के बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहां उन के सायर रहकर बपतिस्क़ा देने लगा।
23. और यूहन्ना भी शालेम् के निकट ऐनोन में बपतिस्क़ा देता या। क्योंकि वहां बहुत जल या और लोग आकर बपतिस्क़ा लेते थे।
24. क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया या।
25. वहां यूहन्ना के चेलोंका किसी यहूदी के साय शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ।
26. और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साय या, और जिस की तू ने गवाही दी है देख, वह बपतिस्क़ा देता है, और सब उसके पास आते हैं।
27. यूहन्ना ने उत्तर दिया, जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता।
28. तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैं ने कहा, मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूं।
29. जिस की दुलहिन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उस की सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हिर्षत होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है।
30. अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं।।
31. जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृय्वी से आता है वह पृय्वी का है; और पृय्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है।
32. जो कुछ उस ने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उस की गवाही ग्रहण नहीं करता।
33. जिस ने उस की गवाही ग्रहण कर ली उस ने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है।
34. क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्क़ा नाप नापकर नहीं देता।
35. पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उस ने सब वस्तुएं उसके हाथ में दे दी हैं।
36. जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।।
Chapter 4
1. फिर जब प्रभु को मालूम हुआ, कि फरीसियोंने सुना है, कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता, और उन्हें बपतिस्क़ा देता है।
2. (यद्यपि यीशु आप नहीं बरन उसके चेले बपतिस्क़ा देते थे)।
3. तब यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया।
4. और उस को सामरिया से होकर जाना अवश्य या।
5. सो वह सूखार नाम सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है, जिस याकूब ने अपके पुत्र यूसुफ को दिया या।
6. और याकूब का कूआं भी वहीं या; सो यीशु मार्ग का यका हुआ उस कूएं पर योंही बैठ गया, और यह बात छठे घण्टे के लगभग हुई।
7. इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई: यीशु ने उस से कहा, मुझे पानी पिला।
8. क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे।
9. उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्योंमांगता है (क्योंकि यहूदी सामरियोंके साय किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते)।
10. यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के बरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है; मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।
11. स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहा से आया
12. क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआं दिया; और आपक्की अपके सन्तान, और अपके ढारोंसमेत उस में से पीया
13. यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर पियासा होगा।
14. परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक पियासा न होगा: बरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिथे उमड़ता रहेगा।
15. सी ने उस से कहा, हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊं और न जल भरने को इतनी दूर आऊं।
16. यीशु ने उस से कहा, जा, अपके पति को यहां बुला ला।
17. स्त्री ने उत्तर दिया, कि मैं बिना पति की हूं: यीशु ने उस से कहा, तू ठीक कहती है कि मैं बिना पति की हूं।
18. क्योंकि तू पांच पति कर चुकी है, और जिस के पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है।
19. स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे ज्ञात होता है कि तू भविष्यद्वक्ता है।
20. हमारे बापदादोंने उसी पहाड़ पर भजन किया: और तुम कहते हो कि वह जगह जहां भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।
21. यीशु ने उस से कहा, हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में।
22. तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियोंमें से है।
23. परन्तु वह समय आता है, बरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्क़ा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपके लिथे ऐसे ही भजन करनेवालोंको ढूंढ़ता है।
24. परमेश्वर आत्क़ा है, और अवश्य है कि उसके भजन करनेवाले आत्क़ा और सच्चाई से भजन करें।
25. स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।
26. यीशु ने उस से कहा, मैं जो तुझ से बोल रहा हूं, वही हूं।।
27. इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; तौभी किसी ने न कहा, कि तू क्या चाहता है या किस लिथे उस से बातें करता है।
28. तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चक्की गई, और लोगोंसे कहने लगी।
29. आओ, एक मनुष्य को देखो, जिस ने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है
30. सो वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे।
31. इतने में उसके चेले यीशु से यह बिनती करने लगे, कि हे रब्बी, कुछ खा ले।
32. परन्तु उस ने उन से कहा, मेरे पास खाने के लिथे ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।
33. तब चेलोंने आपस में कहा, क्या कोई उसके लिथे कुछ खाने को लाया है
34. यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह है, कि अपके भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।
35. क्या तुम नहीं कहते, कि कटनी होने में अब भी चार महीने पके हैं देखो, मैं तुम से कहता हूं, अपक्की आंखे उठाकर खेतोंपर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिथे पक चुके हैं।
36. और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिथे फल बटोरता है; ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनोंमिलकर आनन्द करें।
37. क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है कि बानेवाला और है और काटनेवाला और।
38. मैं ने तुम्हें वह खेत काटने के लिथे भेजा, जिस में तुम ने परिश्र्म नहीं किया: औरोंने परिश्र्म किया और तुम उन के परिश्र्म के फल में भागी हुए।।
39. और उस नगर के बहुत सामरियोंने उस स्त्री के कहने से, जिस ने यह गवाही दी यी, कि उस ने सब कुछ जो मैं ने किया है, मुझे बता दिया, विश्वास किया।
40. तब जब थे सामरी उसके पास आए, तो उस से बिनती करने लगे, कि हमारे यहां रह: सो वह वहां दो दिन तक रहा।
41. और उसके वचन के कारण और भी बहुतेरोंने विश्वास किया।
42. और उस स्त्री से कहा, अब हम तेरे कहने की से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हम ने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।।
43. फिर उन दो दिनोंके बाद वह वहां से कूच करके गलील को गया।
44. क्योंकि यीशु ने आप ही साझी दी, कि भविष्यद्वक्ता अपके देश में आदर नहीं पाता।
45. जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साय उस से मिले; क्योंकि जितने काम उस ने यरूशलेम में पर्ब्ब के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा या, क्योंकि वे भी पर्ब्ब में गए थे।।
46. तब वह फिर गलील के काना में आया, जहां उस ने पानी को दाख रस बनाया या: और राजा का कर्मचारी या जिस का पुत्र कफरनहूम में बीमार या।
47. वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उस से बिनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर या।
48. यीशु ने उस से कहा, जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।
49. राजा के कर्मचारी ने उस से कहा; हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने के पहिले चल।
50. यीशु ने उस से कहा, जा, तेरा पुत्र जीवित है: उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात की प्रतीति की, और चला गया।
51. वह मार्ग में जा रहा या, कि उसके दास उस से आ मिले और कहने लगे कि तेरा लड़का जीवित है।
52. उस न उन से पूछा कि किस घड़ी वह अच्दा होने लगा उन्होंने उस से कहा, कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।
53. तब पिता जान गया, कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उस से कहा, तेरा पुत्र जीवित है, और उस ने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया।
54. यह दूसरा आश्चर्यकर्म या, जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।।
Chapter 5
1. इन बातोंके पीछे यहूदियोंका एक पर्ब्ब हुआ और यीशु यरूशलेम को गया।।
2. यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है, और उसके पांच ओसारे हैंं।
3. इन में बहुत से बीमार, अन्धे, लंगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पके रहते थे।
4. (क्योंकि नियुक्ति समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहिले उतरता वह चंगा हो जाता या चाहे उसकी कोई बीमारी क्योंन हो।)
5. वहां एक मनुष्य या, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा या।
6. यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और जानकर कि वह बहुत दिनोंसे इस दशा में पड़ा है, उस से पूछा, क्या तू चंगा होना चाहता है
7. उस बीमार ने उस को उत्तर दिया, कि हे प्रभु, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुंचते पहुंचते दूसरा मुझ से पहिले उतर पड़ता है।
8. यीशु ने उस से कहा, उठ, अपक्की खाट उठाकर चल फिर।
9. वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपक्की खाट उठाकर चलने फिरने लगा।
10. वह सब्त का दिन या। इसलिथे यहूदी उस से, जो चंगा हुआ या, कहने लगे, कि आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित्त नहीं।
11. उस ने उन्हें उत्तर दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझ से कहा, अपक्की खाट उठाकर चल फिर।
12. उन्होंने उस से पूछा वह कौन मनुष्य है जिस ने तुझ से कहा, खाट उठाकर चल फिर
13. परन्तु जो चंगा हो गया या, वह नहीं जानता या वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहां से हट गया या।
14. इन बातोंके बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उस न उस से कहा, देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इस से कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पके।
15. उस मनुष्य ने जाकर यहूदियोंसे कह दिया, कि जिस ने मुझे चंगा किया, वह यीशु है।
16. इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे ऐसे काम सब्त के दिन करता या।
17. इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूं।
18. इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपके आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता या।।
19. इस पर यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामोंको वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।
20. क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इन से भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो।
21. क्योकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है उन्हें जिलाता है।
22. और पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।
23. इसलिथे कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें: जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।
24. मैं तुम से सच सच कहता हूं, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25. मैं तुम से सच सच कहता हूं, वह समय आता है, और अब है, जिस में मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएंगे।
26. क्योंकि जिस रीति से पिता अपके आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उस ने पुत्र को भी यह अधिक्कारने दिया है कि अपके आप में जीवन रखे।
27. बरन उसे न्याय करने का भी अधिक्कारने दिया है, इसलिथे कि वह मनुष्य का पुत्र है।
28. इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रोंमें हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।
29. जिन्होंने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्यान के लिथे जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है वे दंड के पुनरूत्यान के लिथे जी उठेंगे।
30. मैं अपके आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूं, वैसा न्याय करता हूं, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपक्की इच्छा नहीं, परन्तु अपके भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूं।
31. यदि मैं आप ही अपक्की गवाही दूं; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं।
32. एक और है जो मेरी गवाही देता है वह सच्ची है।
33. तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उस ने सच्चाई की गवाही दी है।
34. परन्तु मैं अपके विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता; तौभी मैं थे बातें इसलिथे कहता हूं, कि तुम्हें उद्धार मिले।
35. वह जो जलता और चमकता हुआ दीपक या; और तुम्हें कुछ देर तक उस की ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा।
36. परन्तु मेरे पास जो गवाही है वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्यात् यही काम जो मैं करता हूं, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।
37. और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।
38. और उसके वचन को मन में स्यिर नहीं रखते क्योंकि जिसे उस ने भेजा उस की प्रतीति नहीं करते।
39. तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।
40. फिर भी तुम जीवन पाने के लिथे मेरे पास आना नहीं चाहते।
41. मैं मनुष्योंसे आदर नहीं चाहता।
42. परन्तु मैं तुम्हें जानता हूं, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं।
43. मैं अपके पिता के नाम से आया हूं, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपके ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे।
44. तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो अद्वैत परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किसी प्रकार विश्वास कर सकते हो
45. यह न समझो, कि मैं पिता के साम्हने तुम पर दोष लगाऊंगा: तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्यात् मूसा जिस पर तुम ने भरोसा रखा है।
46. क्योंकि यदि तुम मूसा की प्रतीति करते, तो मेरी भी प्रतीति करते, इसलिथे कि उस ने मेरे विषय में लिखा है।
47. परन्तु यदि तुम उस की लिखी हुई बातोंकी प्रतीति नहीं करते, तो मेरी बातोंकी क्योंकर प्रतीति करोगे।।
Chapter 6
1. इन बातोंके बाद यीशु गलील की फील अर्यात् तिबिरियास की फील के पास गया।
2. और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली कयोंकि जो आश्चर्य कर्म वह बीमारोंपर दिखाता या वे उन को देखते थे।
3. तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपके चेलोंके साय वहां बैठा।
4. और यहूदियोंके फसह के पर्ब्ब निकट या।
5. तब यीशु ने अपक्की आंखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपके पास आते देखा, और फिलप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिथे कहां से रोटी मोल लाएं
6. परन्तु उस ने यह बात उसे परखने के लिथे कही; क्योंकि वह आप जानता या कि मैं क्या करूंगा।
7. फिलप्पुस ने उस को उत्तर दिया, कि दो सौ दीनार की रोटी उन के लिथे पूरी भी न होंगी कि उन में से हर एक को योड़ी योड़ी मिल जाए।
8. उसके चेलोंमें से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उस से कहा।
9. यहां एक लड़का है जिस के पास जव की पांच रोटी और दो मछिलयां हैं परन्तु इतने लोगोंके लिथे वे क्या हैं।
10. यीशु ने कहा, कि लोगोंको बैठा दो। उस जगह बहुत घास यी: तब वे लोग जो गिनती में लगभग पांच हजार के थे, बैठ गए:
11. तब यीशु ने रोटियां लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालोंको बांट दी: और वैसे ही मछिलयोंमें से जितनी वे चाहते थे बांट दिया।
12. जब वे खाकर तृप्त हो गए तो उस ने अपके चेलोंसे कहा, कि बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।
13. सो उन्होंने बटोरा, और जव की पांच रोटियोंके टुकड़े जो खानेवालोंसे बच रहे थे उन की बारह टोकिरयां भरीं।
14. तब जो आश्चर्य कर्म उस ने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला या निश्चय यही है।
15. यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिथे आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
16. फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले फील के किनारे गए।
17. और नाव पर चढ़कर फील के पार कफरनहूम को जाने लगे: उस समय अन्धेरा हो गया या, और यीशु अभी तक उन के पास नहीं आया या।
18. और आन्धी के कारण फील में लहरे उठने लगीं।
19. सो जब वे खेते खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को फील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए।
20. परन्तु उस ने उन से कहा, कि मैं हूं; डरो मत।
21. सो वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिथे तैयार हुए और तुरन्त वह नाव के स्यान पर जा पहुंची जहां वह जाते थे।
22. दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो फील के पार खड़ी यी, यह देखा, कि यहां एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न यी, और यीशु अपके चेलोंके साय उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले चले गए थे।
23. (तौभी और छोटी नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आई, जहां उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई यी।)
24. सो जब भीड़ ने देखा, कि यहां न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी छोटी नावोंपर चढ़ के यीशु को ढूंढ़ते हुए कफरनहूम को पहुंचे।
25. और फील के पार उस से मिलकर कहा, हे रब्बी, तू यहां कब आया
26. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, तुम मुझे इसलिथे नहीं ढूंढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिथे कि तुम रोटियां खाकर तृप्त हुए।
27. नाशमान भोजन के लिथे परिश्र्म न करो, परन्तु उस भोजन के लिथे जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्यात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।
28. उन्होंने उस से कहा, परमेश्वर के कार्य्य करने के लिथे हम क्या करें
29. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया; परमेश्वर का कार्य्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उस ने भेजा है, विश्वास करो।
30. तब उन्होंने उस से कहा, फिर तू कौन का चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरी प्रतीति करें, तू कौन सा काम दिखाता है
31. हमारे बापदादोंने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है; कि उस ने उन्हें खाने के लिथे स्वर्ग से रोटी दी।
32. यीशु ने उन से कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है।
33. क्योकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।
34. तब उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।
35. यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी पियासा न होगा।
36. परन्तु मैं ने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तोभी विश्वास नहीं करते।
37. जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूंगा।
38. क्योंकि मैं अपक्की इच्छा नहीं, बरन अपके भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिथे स्वर्ग से उतरा हूं।
39. और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उस ने मुझे दिया है, उस में से मैं कुछ न खोऊं परन्तु उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊं।
40. क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
41. सो यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिथे कि उस ने कहा या; कि जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूं।
42. और उन्होंने कहा; क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिस के माता पिता को हम जानते हैं तो वह क्योंकर कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूं।
43. यीशु ने उन को उत्तर दिया, कि आपस में मत कुड़कुड़ाओ।
44. कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा।
45. भविष्यद्वक्ताओं के लेखोंमें यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।
46. यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है।
47. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।
48. जीवन की रोटी मैं हूं।
49. तुम्हारे बापदादोंने जंगल में मन्ना खाया और मर गए।
50. यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे।
51. जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिथे दूंगा, वह मेरा मांस है।
52. इस पर यहूदी यह कहकर आपस में फगड़ने लगे, कि यह मनुष्य क्योंकर हमें अपना मांस खाने को दे सकता है
53. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।
54. जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता हे, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा।
55. क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लोहू वास्तव में पीन की वस्तु है।
56. जो मेरा मांस खाता और मेरा लोहू पीता है, वह मुझ में स्यिर बना रहता है, और मैं उस में।
57. जैसा जीवते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूं वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा।
58. जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, बापदादोंके समान नहीं कि खाया, और मर गए: जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।
59. थे बातें उस ने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपकेश देते समय कहीं।
60. इसलिथे उसके चेलोंमें से बहुतोंने यह सुनकर कहा, कि यह बात नागवार है; इसे कौन सुन सकता है
61. यीशु ने अपके मन में यह जान कर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उन से पूछा, क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है
62. और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहां वह पहिले या, वहां ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा
63. आत्क़ा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्क़ा है, और जीवन भी हैं।
64. परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते: क्योंकि यीशु तो पहिले ही से जानता या कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं और कौन मुझे पकड़वाएगा।
65. और उस ने कहा, इसी लिथे मैं ने तुम से कहा या कि जब तक किसी को पिता की ओर यह बरदान न दिया जाए तक तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।
66. इस पर उसके चेलोंमें से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साय न चले।
67. तब यीशु ने उन बारहोंसे कहा, क्या तुम भी चले जाना चाहते हो
68. शमौन पतरस ने उस को उत्तर दिया, कि हे प्रभु हम किस के पास जाएं अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।
69. और हम ने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।
70. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, क्या मैं ने तुम बारहोंको नहीं चुन लिया तौभी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।
71. यह उस ने शमौन इस्किरयोती के पुत्र यहूदाह के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहोंमें से या, उसे पकड़वाने को या।।
Chapter 7
1. इन बातोंके बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिथे वह यहूदिया में फिरना न चाहता या।
2. और यहूदियोंका मण्डपोंका पर्ब्ब निकट या।
3. इसलिथे उसके भाइयोंने उस से कहा, यहां से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें।
4. क्योंकिं ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपके तई जगत पर प्रगट कर।
5. क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे।
6. तब यीशु ने उन से कहा, मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिथे सब समय है।
7. जगत तुम से बैर नहीं कर सकता, परन्तु वह मुझ से बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूं, कि उसके काम बुरे हैं।
8. तुम पर्ब्ब में जाओ: मैं अभी इस पर्ब्ब में नहीं जाता; क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।
9. वह उन से थे बातें कहकर गलील ही में रह गया।।
10. परन्तु जब उसके भाई पर्ब्ब में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानोंगुप्त होकर गया।
11. तो यहूदी पर्ब्ब में उसे यह कहकर ढूंढ़ने लगे कि वह कहां है
12. और लोगोंमें उसके विषय चुपके चुपके बहुत सी बातें हुईं: कितने कहते थे; वह भला मनुष्य है: और कितने कहते थे; नहीं, वह लोगोंको भरमाता है।
13. तौभी यहूदियोंके भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता या।
14. और जब पर्ब्ब के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपकेश करने लगा।
15. तब यहूदियोंने अचम्भा करके कहा, कि इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई
16. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरा उपकेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।
17. यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपकेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपक्की ओर से कहता हूं।
18. जो अपक्की ओर से कुछ कहता है, वह अपक्की ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपके भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उस में अधर्म नहीं।
19. क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्या नहीं दी तौभी तुम में से काई व्यवस्या पर नहीं चलता। तुम क्योंमुझे मार डालना चाहते हो
20. लोगोंने उत्तर दिया; कि तुझ में दुष्टात्क़ा है; कौन तुझे मार डालना चाहता है
21. यीशु ने उन को उत्तर दिया, कि मैं ने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो।
22. इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है (यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु बाप-दादोंसे चक्की आई है), और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो।
23. जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्या की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्योंइसलिथे क्रोध करते हो, कि मैं ने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया।
24. मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय चुकाओ।।
25. तब कितने यरूशलेमी कहने लगे; क्या यह वह नहीं, जिस के मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है।
26. परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उस से कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारोंने सच सच जान लिया है; कि यही मसीह है।
27. इस को तो हम जानते हैं, कि यह कहां का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहां का है।
28. तब यीशु ने मन्दिर में उपकेश देते हुए पुकार के कहा, तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहां का हूं: मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उस को तुम नहीं जानते।
29. मैं उसे जानता हूं; क्योंकि मैं उस की ओर से हूं और उसी ने मुझे भेजा है।
30. इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तौभी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया या।
31. और भीड़ में से बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, कि मसीह जब आएगा, तो क्या इस से अधिक आश्चर्यकर्म दिखाएगा जो इस ने दिखाए
32. फरीसियोंने लोगोंको उसके विषय में थे बातें चुपके चुपके करते सुना; और महाथाजकोंऔर फरीसियोंने उसके पकड़ने को सिपाही भेजे।
33. इस पर यीशु ने कहा, मैं योड़ी देर तक और तुम्हारे साय हूं; तब अपके भेजनेवाले के पास चला जाऊंगा।
34. तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे और जहां मैं हूं, वहां तुम नहीं आ सकते।
35. यहूदियोंने आपस में कहा, यह कहां जाएगा, कि हम इसे न पाएंगे: क्या वह उन के पास जाएगा, जो यूनानियोंमें तित्तर बित्तर होकर रहते हैं, और यूनानियोंको भी उपकेश देगा
36. यह क्या बात है जो उस ने कही, कि तुम मुझे ढूंढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहां मैं हूं, वहां तुम नहीं आ सकते
37. फिर पर्ब्ब के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, यदि कोई पियासा हो तो मेरे पास आकर पीए।
38. जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है उसके ह्रृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेगी।
39. उस ने यह वचन उस आत्क़ा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्क़ा अब तक न उतरा या; क्योंकि यीशु अब तक अपक्की महिमा को न पहुंचा या।
40. तब भीड़ में से किसी किसी ने थे बातें सुन कर कहा, सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।
41. औरोंने कहा; यह मसीह है, परन्तु किसी ने कहा; क्योंक्या मसीह गलील से आएगा
42. क्या पवित्र शास्त्र में नहीं आया, कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गांव से आएगा जहां दाऊद रहता या
43. सो उसके कारण लोगोंमें फूट पड़ी।
44. उन में से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला।।
45. तब सिपाही महाथाजकोंऔर फरीसियोंके पास आए, और उन्होंने उन से कहा, तुम उसे क्योंनहीं लाए
46. सिपाहियोंने उत्तर दिया, कि किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।
47. फरीसियोंने उन को उत्तर दिया, क्या तुम भी भरमाए गए हो
48. क्या सरदारोंया फरीसियोंमें से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है
49. परन्तु थे लोग जो व्यवस्या नहीं जानते, स्त्रापित हैं।
50. नीकुदेमुस ने, (जो पहिले उसके पास आया या और उन में से एक या), उन से कहा।
51. क्या हमारी व्यवस्या किसी व्यक्ति को जब तक पहिले उस की सुनकर जान न ले, कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है
52. उन्होंने उसे उत्तर दिया; क्या तू भी गलील का है ढूंढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।
53. तब सब कोई अपके अपके घर को गए।।
Chapter 8
1. परन्तु यीशु जैतून के पहाड़ पर गया।
2. और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपकेश देने लगा।
3. तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को लाए, जो व्यभिचार में पकड़ी गई यी, और उस को बीच में खड़ी करके यीशु से कहा।
4. हे गुरू, यह स्त्री व्यभिचार करते ही पकड़ी गई है।
5. व्यवस्या में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियोंकोंपत्यरवाह करें: सो तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है
6. उन्होंने उस को परखने के लिथे यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिथे कोई बात पाएं, परन्तु यीशु फुककर उंगली से भूमि पर लिखने लगा।
7. जब वे उस से पूछते रहे, तो उस ने सीधे होकर उन से कहा, कि तूुम में जो निष्पाप हो, वही पहिले उसको पत्यर मारे।
8. और फिर फुककर भूमि पर उंगली से लिखने लगा।
9. परन्तु वे यह सुनकर बड़ोंसे लेकर छोटोंतक एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई।
10. यीशु ने सीधे होकर उस से कहा, हे नारी, वे कहां गए क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी।
11. उसा ने कहा, हे प्रभु, किसी ने नहीं: यीशु ने कहा, मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।।
12. तब यीशु ने फिर लोगोंसे कहा, जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।
13. फरीसियोंने उस से कहा; तू अपक्की गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।
14. यीशु ने उन को उत्तर दिया; कि यदि मैं अपक्की गवाही आप देता हूं, तौभी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूं, कि मैं कहां से आया हूं और कहां को जाता हूं परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहां से आता हूं या कहां को जाता हूं।
15. तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता।
16. और यदि मैं न्याय करूं भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूं, और पिता है जिस ने मुझे भेजा।
17. और तुम्हारी व्यवस्या में भी लिखा है; कि दो जनोंकी गवाही मिलकर ठीक होती है।
18. एक तो मैं आप अपक्की गवाही देता हूं, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिस ने मुझे भेजा।
19. उन्होंने उस से कहा, तेरा पिता कहां है यीशु ने उत्तर दिया, कि न तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।
20. थे बातें उस ने मन्दिर में उपकेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया या।।
21. उस ने फिर उन से कहा, मैं जाता हूं और तुम मुझे ढूंढ़ोगे और अपके आप में मरोगे: जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते।
22. इस पर यहूदियोंने कहा, क्या वह अपके आप को मार डालेगा, जो कहता है; कि जहां मैं जाता हूं वहां तुम नहीं आ सकते
23. उस ने उन से कहा, तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूं; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं।
24. इसलिथे मैं ने तुम से कहा, कि तुम अपके पापोंमें मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूं, तो अपके पापोंमें मरोगे।
25. उन्होंने उस से कहा, तू कौन है यीशु ने उन से कहा, वही हूं जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूं।
26. तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैं ने उस से सुना हे, वही जगत से कहहा हूं।
27. वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है।
28. तब यीशु ने कहा, कि जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूं, और अपके आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही थे बातें कहता हूं।
29. और मेरा भेजनेवाला मेरे साय है; उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूं, जिस से वह प्रसन्न होता है।
30. वह थे बातें कह ही रहा या, कि बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया।।
31. तब यीशु ने उन यहूदियोंसे जिन्होंने उन की प्रतीति की यी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।
32. और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
33. उन्होंने उस को उत्तर दिया; कि हम तो इब्राहीम के वंश से हैं और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्योंकर कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे
34. यीशु ने उन को उत्तर दिया; मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है।
35. और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है।
36. सो यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।
37. मैं जानता हूं कि तुम इब्राहीम के वंश से हो; तौभी मेरा वचन तुम्हारे ह्रृदय में जगह नहीं पाता, इसलिथे तुम मुझे मार डालना चाहते हो।
38. मैं वही कहता हूं, जो अपके पिता के यहां देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुमने अपके पिता से सुना है।
39. उन्होंने उन को उत्तर दिया, कि हमारा पिता तो इब्राहीम है: यीशु ने उन से कहा; यदि तुम इब्राहीम के सन्तान होते, तो इब्राहीम के समान काम करते।
40. परन्तु अब तुम मुझ ऐसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिस ने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो इब्राहीम ने नहीं किया या।
41. तुम अपके पिता के समान काम करते हो: उन्होंने उस से कहा, हम व्यभिचार से नहीं जन्क़े; हमारा एक पिता है अर्यात् परमेश्वर।
42. यीशु ने उन से कहा; यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझ से प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकल कर आया हूं; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा।
43. तुम मेरी बात क्योंनहीं समझते इसलिथे कि मेरा वचन सुन नहीं सकते।
44. तुम अपके पिता शैतान से हो, और अपके पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्यिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं: जब वह फूठ बोलता, तो अपके स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह फूठा है, बरन फूठ का पिता है।
45. परन्तु मैं जो सच बोलता हूं, इसीलिथे तुम मेरी प्रतीति नहीं करते।
46. तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है और यदि मैं सच बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्योंनहीं करते
47. जो परमेश्वर से होता हे, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिथे नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।
48. यह सुन यहूदियोंने उस से कहा; क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्क़ा है
49. यीशु ने उत्तर दिया, कि मुझ में दुष्टात्क़ा नहीं; परन्तु मैं अपके पिता का आदर करता हूं, और तुम मेरा निरादर करते हो।
50. परन्तु मैं अपक्की प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हां, एक तो है जो चाहता है, और न्याय करता है।
51. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा।
52. यहूदियोंने उस से कहा, कि अब हम ने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्क़ा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।
53. हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उस से बड़ा है और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपके आप को क्या ठहराता है।
54. यीशु ने उत्तर दिया; यदि मैं आप अपक्की महिमा करूं, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है।
55. और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूं; और यदि कहूं कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी नाईं फूठा ठहरूंगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूं।
56. तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन या; और उस ने देखा, और आनन्द किया।
57. यहूदियोंने उस से कहा, अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तू ने इब्राहीम को देखा है
58. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं; कि पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूं।
59. तब उन्होंने उसे मारने के लिथे पत्यर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।।
Chapter 9
1. फिर जाते हुए उस ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्क़ का अन्धा या।
2. और उसके चेलोंने उस से पूछा, हे रब्बी, किस ने पाप किया या कि यह अन्धा जन्क़ा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने
3. यीशु ने उत्तर दिया, कि न तो इस ने पाप किया या, न इस के माता पिता ने: परन्तु यह इसलिथे हुआ, कि परमेश्वर के काम उस में प्रगट हों।
4. जिस ने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है: वह रात आनेवाली है जिस में कोई काम नहीं कर सकता।
5. जब तक मैं जंगल में हूं, तब तक जगत की ज्योति हूं।
6. यह कहकर उस ने भूमि पर यूका और उस यूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अन्धे की आंखोंपर लगाकर।
7. उस से कहा; जा शीलोह के कुण्ड में धो ले, (जिस का अर्य भेजा हुआ है) सो उस ने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया।
8. तब पड़ोसी और जिन्होंने पिहले उसे भीख मांगते देखा या, कहने लगे; क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख मांगा करता या
9. कितनोंने कहा, यह वही है: औरोंने कहा, नहीं; परन्तु उसके समान है: उस ने कहा, मैं वही हूं।
10. तब वे उस से पूछने लगे, तेरी आंखें क्योंकर खुल गई
11. उस ने उत्तर दिया, कि यीशु नाम एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आंखोंपर लगाकर मुझ से कहा, कि शीलोह में जाकर धो ले; सो मैं गया, और धोकर देखने लगा।
12. उन्होंने उस से पूछा; वह कहां है उस ने कहा; मैं नहीं जानता।।
13. लोग उसे जो पहिले अन्धा या फरीसियोंके पास ले गए।
14. जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उस की आंखे खोली यी वह सब्त का दिन या।
15. फिर फरीसियोंने भी उस से पूछा; तेरी आंखें किस रीति से खुल गई उस न ेउन से कहा; उस ने मेरी आंखो पर मिट्टी लगाई, फिर मैं ने धो लिया, और अब देखता हूं।
16. इस पर कई फरीसी कहने लगे; यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता। औरोंने कहा, पापी मनुष्य क्योंकर ऐसे चिन्ह दिखा सकता है सो उन में फूट पड़ी।
17. उन्होंने उस अन्धे से फिर कहा, उस ने जो तेरी आंखे खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है उस ने कहा, यह भविष्यद्वक्ता है।
18. परन्तु यहूदियोंको विश्वास न हुआ कि यह अन्धा या और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिस की आंखे खुल गई यी, बुलाकर।
19. उन से न पूछा, कि क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अन्धा जन्क़ा या फिर अब क्योंकर देखता है
20. उसके माता-पिता ने उत्तर दिया; हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अन्धा जन्क़ा या।
21. परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब क्योंकर देखता है; और न यह जानते हैं, कि किस ने उस की आंखे खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपके विषय में आप कह देगा।
22. थे बातें उसके माता-पिता ने इसलिथे कहीं क्योंकि वे यहूदियोंसे डरते थे; क्योकि यहूदी एका कर चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए।
23. इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, कि वह सयाना है; उसी से पूछ लो।
24. तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अन्धा या दूसरी बार बुलाकर उस से कहा, परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।
25. उस ने उत्तर दिया: मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं: मैं एक बात जानता हूं कि मैं अन्धा या और अब देखता हूं।
26. उन्होंने उस से फिर कहा, कि उस ने तेरे साय क्या किया और किस तेरह तेरी आंखें खोली
27. उस ने उन से कहा; मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने ने सुना; अब दूसरी बार क्योंसुनना चाहते हो क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो
28. तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं।
29. हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहां का है।
30. उस ने उन को उत्तर दिया; यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते की कहां का है तौभी उस ने मेरी आंखें खोल दीं।
31. हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियोंकी नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है।
32. जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्क़ के अन्धे की आंखे खोली हों।
33. यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।
34. उन्होंने उस को उत्तर दिया, कि तू तो बिलकुल पापोंमें जन्क़ा है, तू हमें क्या सिखाता है और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।।
35. यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उसे भेंट हुई तो कहा, कि क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है
36. उस ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु; वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूं
37. यीशु ने उस से कहा, तू ने उसे देखा भी है; और जो तेरे साय बातें कर रहा है वही है।
38. उस ने कहा, हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं: और उसे दंडवत किया।
39. तब यीशु ने कहा, मैं इस जगत में न्याय के लिथे आया हूं, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अन्धे हो जाएं।
40. जो फरीसी उसके साय थे, उन्होंने थे बातें सुन कर उस से कहा, क्या हम भी अन्धे हैं
41. यीशु ने उन से कहा, यदि तुम अन्धे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिथे तुम्हारा पाप बना रहता है।।
Chapter 10
1. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु और किसी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है।
2. परन्तु जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है वह भेड़ोंका चरवाहा है।
3. उसके लिथे द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेंड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपक्की भेड़ोंको नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है।
4. और जब वह अपक्की सब भेड़ोंको बाहर निकाल चुकता है, तो उन के आगे आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसक शब्द पहचानती हैं।
5. परन्तु वे पराथे के पीछे नहीं जाएंगी, परन्तु उस से भागेंगी, क्योंकि वे परायोंका शब्द नहीं पहचानती।
6. यीशु ने उन से यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि थे क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।।
7. तब यीशु ने उन से फिर कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि भेड़ोंका द्वार मैं हूं।
8. जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ोंने उन की न सुनी।
9. द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा औश्र् भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा।
10. चोर किसी और काम के लिथे नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिथे आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।
11. अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ोंके लिथे अपना प्राण देता है।
12. मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ोंका मालिक है, भेडिए को आते हुए देख, भेड़ोंको छोड़कर भाग जाता है, और भेडिय़ा उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है।
13. वह इसलिथे भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उस को भेड़ोंकी चिन्ता नहीं।
14. अच्छा चरवाहा मैं हूं; जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूं।
15. इसी तरह मैं अपी भेड़ोंको जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, और मैं भेड़ोंके लिथे अपना प्राण देता हूं।
16. और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही फुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।
17. पिता इसलिथे मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं।
18. कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, बरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिक्कारने है, और उसे फिर लेने का भी अधिक्कारने है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।।
19. इन बातोंके कारण यहूदियोंमें फिर फूट पड़ी।
20. उन में से बहुतेरे कहने लगे, कि उस में दुष्टात्क़ा है, और वह पागल है; उस की क्योंसुनते हो
21. औरोंने कहा, थे बात ऐसे मनुष्य की नहीं जिस में दुष्टात्क़ा हो: क्या दुष्टात्क़ा अन्धोंकी आंखे खोल सकती है
22. यरूशलेम में स्यापन पर्ब्ब हुआ, और जाड़े की ऋतु यी।
23. और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा या।
24. तब यहूदियोंने उसे आ घेरा और पूछा, तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।
25. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मैं ने तुम से कह दिया, और तुम प्रतीति करते ही नहीं, जो काम मैं अपके पिता के नाम से करता हूं वे ही मेरे गवाह हैं।
26. परन्तु तुम इसलिथे प्रतीति नहीं करते, कि मेरी भेड़ोंमें से नहीं हो।
27. मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।
28. और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूं, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा।
29. मेरा पिता, जिस ने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।
30. मैं और पिता एक हैं।
31. यहूदियोंने उसे पत्यरवाह करते को फिर पत्यर उठाए।
32. इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मैं ने तुम्हें अपके पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उन में से किस काम के लिथे तुम मुझे पत्यरवाह करते हो
33. यहूदियोंने उस को उत्तर दिया, कि भले काम के लिथे हम तुझे पत्यरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण और इसलिथे कि तू मनुष्य होकर अपके आप को परमेश्वर बनाता है।
34. यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, क्या तुम्हारी व्यवस्या में नहीं लिखा है कि मैं ने कहा, तुम ईश्वर हो
35. यदि उस ने उन्हें ईश्वर कहा जिन के पास परमेश्वर का वचन पहुंचा (और पवित्र शास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।)
36. तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उस से कहते हो कि तू निन्दा करता है, इसलिथे कि मैं ने कहा, मैं परमेश्वर का पुत्र हूं।
37. यदि मैं अपके पिता के काम नहीं करता, तो मेरी प्रतीति न करो।
38. परन्तु यदि मैं करता हूं, तो चाहे मेरी प्रतीति न भी करो, परन्तु उन कामोंकी तो प्रतीति करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूं।
39. तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उन के हाथ से निकल गया।।
40. फिर वह यरदन के पार उस स्यान पर चला गया, जहां यूहन्ना पहिले बपतिस्क़ा दिया करता या, और वहीं रहा।
41. और बहुतेरे उसके पास आकर कहते थे, कि युहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इस के विषय में कहा या वह सब सच या।
42. और वहां बहुतेरोंने उस पर विश्वास किया।।
Chapter 11
1. मरियम और उस की बहिन मरया के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार या।
2. यह वही मरियम यी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवोंको अपके बालोंसे पोंछा या, इसी का भाई लाजर बीमार या।
3. सो उस की बहिनोंने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
4. यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिथे है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।
5. और यीशु मरया और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता या।
6. सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्यान पर वह या, वहां दो दिन और ठहर गया।
7. फिर इस के बाद उस ने चेलोंसे कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।
8. चेलोंने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्यरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है
9. यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10. परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं।
11. उस ने थे बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।
12. तब चेलोंने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।
13. यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा या: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14. तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है।
15. और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न या जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।
16. तब योमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपके साय के चेलोंसे कहा, आओ, हम भी उसके साय मरने को चलें।
17. सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18. बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर या।
19. और बहुत से यहूदी मरया और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिथे आए थे।
20. सो मरया यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21. मरया ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22. और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।
23. यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा।
24. मरया ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरूत्यान के समय वह जी उठेगा।
25. यीशु ने उस से कहा, पुनरूत्यान और जीवन मैं ही हूं, जा कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26. और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है
27. उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला या, वह तू ही है।
28. यह कहकर वह चक्की गई, और अपक्की बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।
29. वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30. (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा या, परन्तु उसी स्यान में या जहां मरया ने उस से भेंट की यी।)
31. तब जो यहूदी उसके साय घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिथे।
32. जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु या, तो उसे देखते ही उसके पांवोंपर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता।
33. जब यीशु न उस को और उन यहूदियोंको जो उसके साय आए थे रोते हुए देखा, तो आत्क़ा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है
34. उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
35. यीशु के आंसू बहने लगे।
36. तब यहूदी कहने लगे, देखो, वह उस से कैसी प्रीति रखता या।
37. परन्तु उन में से कितनोंने कहा, क्या यह जिस ने अन्धे की आंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता
38. यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा यी, और एक पत्यर उस पर धरा या।
39. यीशु ने कहा; पत्यर को उठाओ: उस मरे हुए की बहिन मरया उस से कहने लगी, हे प्रभु, उस में से अब तो र्दुगंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।
40. यीशु ने उस से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा ााि कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।
41. तब उन्होंने उस पत्यर को हटाया, फिर यीशु ने आंखें उठाकर कहा, हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि तू ने मेरी सुन ली है।
42. और मै जानता या, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उन के कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।
43. यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ।
44. जो मर गया या, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ यारू यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो।।
45. तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा या, उन में से बहुतोंने उस पर विश्वास किया।
46. परन्तु उन में से कितनोंने फरीसियोंके पास जाकर यीशु के कामोंका समाचार दिया।।
47. इस पर महाथाजकोंऔर फरीसियोंने मुख्य सभा के लोगोंको इकट्ठा करके कहा, हम करते क्या हैं यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48. यदि हम उसे योंही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनोंपर अधिक्कारने कर लेंगे।
49. तब उन में से काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महाथाजक या, उन से कहा, तुम कुछ नहीं जानते।
50. और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिथे यह भला है, कि हमारे लोगोंके लिथे एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।
51. यह बात उस ने अपक्की ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महाथाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिथे मरेगा।
52. और न केवल उस जाति के लिथे, बरन इसलिथे भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानोंको एक कर दे।
53. सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे।।
54. इसलिथे यीशु उस समय से यहूदियोंमें प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहां से जंगल के निकट के देख में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपके चेलोंके साय वहीं रहने लगा।
55. और यहूदियोंका फसह निकट या, और बहुतेरे लोग फसह से पहिले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपके आप को शुद्ध करें।
56. सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, तुम क्या समझते हो
57. क्या वह पर्ब्ब में नहीं आएगा और महाथाजकोंऔर फरीसियोंने भी आज्ञा दे रखी यी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहां है तो बताए, कि उसे पकड़ लें।।
Chapter 12
1. फिर यीशु फतह से छ: दिन पहिले बैतनिय्याह में आया, जंहा लाजर या: जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया या।
2. वहां उन्होंने उसके लिथे भोजन तैयार किया, और मरया सेवा कर रही यी, और लाजर उन में से एक या, जो उसके साय भोजन करने के लिथे बैठे थे।
3. तब मरियम ने जटामासी का आध सेर बहुमोल इत्र लेकर यीशु के पावोंपर डाला, और अपके बालोंसे उसके पांव पोंछे, और इत्र की सुगंध से घर सुगन्धित हो गया।
4. परन्तु उसके चेलोंमें से यहूदा इस्किरयोती नाम एक चेला जो उसे पकड़वाने पर या, कहने लगा।
5. यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालोंको कयोंन दिया गया
6. उस ने यह बात इसलिथे न कही, कि उसे कंगालोंकी चिन्ता यी, परन्तु इसलिथे कि वह चोर या और उसके पास उन की यैली रहती यी, और उस में जो कुछ डाला जाता या, वह निकाल लेता या।
7. यीशु ने कहा, उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिथे रहने दे।
8. क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साय सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साय सदा न रहूंगा।।
9. यहूदियोंमें से साधारण लोग जान गए, कि वह वहां है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिथे भी कि लाजर को देंखें, जिसे उस ने मरे हुओं में से जिलाया या।
10. तब महाथाजकोंने लाजर को भी मार डालने की सम्मति की।
11. क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।।
12. दूसरे दिन बहुत से लोगोंने जो पर्ब्ब में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है।
13. खजूर की, डालियां लेीं, और उस से भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, कि होशाना, धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।
14. जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो उस पर बैठा।
15. जैसा लिखा है, कि हे सिय्योन की बेटी, मत डर, देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा हुआ चला आता है।
16. उसके चेले, थे बातें पहिले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उन को स्क़रण आया, कि थे बातें उसके विषय में लिखी हुई यीं; और लोगोंने उस से इस प्रकार का व्यवहार किया या।
17. तब भीड़ के लोगोंने जो उस समय उसके साय थे यह गवाही दी कि उस ने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया या।
18. इसी कारण लोग उस से भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना या, कि उस ने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है।
19. तब फरीसियोंने आपस में कहा, सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता: देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।।
20. जो लोग उस पर्ब्ब में भजन करने आए थे उन में से कई यूनानी थे।
21. उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलप्पुस के पास आकर उस से बिनती की, कि श्र्ीमान् हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।
22. फिलप्पुस ने आकर अद्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलप्पुस ने यीशु से कहा।
23. इस पर यीशु ने उन से कहा, वह समय आ गया है, कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो।
24. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।
25. जो अपके प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपके प्राण को अप्रिय जानता हे, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपके प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिथे उस की रझा करता करेगा।
26. यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहां मैं हूं वहां मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।
27. जब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिथे अब मैं क्या कहूं हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुंचा हूं।
28. हे पिता अपके नाम की महिमा कर: तब यह आकाशवाणी हुई, कि मैं ने उस की महिमा की है, और फिर भी करूंगा।
29. तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरोंने कहा, कोई स्वर्गदूत उस से बोला।
30. इस पर यीशु ने कहा, यह शब्द मेरे लिथे नहीं परन्तु तुम्हारे लिथे आया है।
31. अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया जाएगा।
32. और मैं यदि पृय्वी पर से ऊंचे पर चढ़ाया जाऊंगा, तो सब को अपके पास खीचंूगा।
33. ऐसा कहकर उस ने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा।
34. इस पर लोगोंने उस से कहा, कि हम ने व्यवस्या की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्योंकहता है, कि मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है
35. यह मनुष्य का पुत्र कौन है यीशु ने उन से कहा, ज्योति अब योड़ी देन तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साय है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे; जो अन्धकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है।
36. जब तक ज्योति तुम्हारे साय है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान होओ।। थे बातें कहकर यीशु चला गया और उन से छिपा रहा।
37. और उस ने उन के साम्हने इतने चिन्ह दिखाए, तौभी उन्होंने उस पर विश्वास न किया।
38. ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उस ने कहा कि हे प्रभु हमारे समाचार की किस ने प्रतीति की है और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ
39. इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने फिर भी कहा।
40. कि उस ने उन की आंखें अन्धी, और उन का मन कठोर किया है; कहीं ऐसा न हो, कि आंखोंसे देखें, और मन से समझें, और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं।
41. यशायाह ने थे बातें इसलिथे कहीं, कि उस ने उस की महिमा देखी; और उस ने उसके विषय में बातें की।
42. तौभी सरदारोंमें से भी बहुतोंने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियोंके कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएं।
43. क्योंकि मनुष्योंकी प्रशंसा उन को परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती यी।।
44. यीशु ने पुकारकर कहा, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, बरन मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है।
45. और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है।
46. मैं जगत में ज्योति होकर आया हूं ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में ने रहे।
47. यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिथे नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिथे आया हूं।
48. जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उस को दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्यात् जो वचन मैं ने कहा है, वह पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।
49. क्योंकि मैं ने अपक्की ओर से बातें नहीं कीं, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या क्या कहूं और क्या क्या बोलूं
50. और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिथे मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूं।।
Chapter 13
1. फसह के पर्ब्ब से पहिले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरी वह घड़ी आ पहुंची है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊं, तो अपके लोगोंसे, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता या, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।
2. और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्किरयोती के मन में यह डाल चुका या, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय।
3. यीशु ने यह जानकर कि पिता ने सब कुछ मेरे हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूं, और परमेश्वर के पास जाता हूं।
4. भोजन पर से उठकर अपके कपके उतार दिए, और अंगोछा लेकर अपक्की कमर बान्धी।
5. तब बरतन में पानी भरकर चेलोंके पांव धोने और जिस अंगोछे से उस की कमर बन्धी यी उसी से पोंछने लगा।
6. जब वह शमौन पतरस के पास आया: तब उस ने उस से कहा, हे प्रभु,
7. क्या तू मेरे पांव धोता है यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो मैं करता हूं, तू अब नहीं जानता, परन्तु इस के बाद समझेगा।
8. पतरस ने उस से कहा, तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा: यह सुनकर यीशु ने उस से कहा, यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साय तेरा कुछ भी साफा नहीं।
9. शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, बरन हाथ और सिर भी धो दे।
10. यीशु ने उस से कहा, जो नहा चुका है, उसे पांव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।
11. वह तो अपके पकड़वानेवाले को जानता या इसी लिथे उस ने कहा, तुम सब के सब शुद्ध नहीं।।
12. जब वह उन के पांव धो चुका और अपके कपके पहिनकर फिर बैठ गया तो उन से कहने लगा, क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साय क्या किया
13. तुम मुझे गुरू, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वहीं हूं।
14. यदि मैं ने प्रभु और गुरू होकर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दुसरे के पांव धोना चाहिए।
15. क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साय किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।
16. मैं तुम से सच सच कहता हूं, दास अपके स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपके भेजनेवाले से।
17. तुम तो थे बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।
18. मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैं ने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूं: परन्तु यह इसलिथे है, कि पवित्र शास्त्र का यह वचन पूरा हो, कि जो मेरी रोटी खाता है, उस ने मुझ पर लात उठाई।
19. अब मैं उसके होने से पहिले तुम्हें जताए देता हूं कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वहीं हूं।
20. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।।
21. थे बातें कहकर यीशु आत्क़ा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।
22. चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किस के विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे।
23. उसके चेलोंमें से एक जिस से यीशु प्रेम रखता या, यीशु की छाती की ओर फुका हुआ बैठा या।
24. तब शमौन पतरस ने उस की ओर सैन करके पूछा, कि बता तो, वह किस के विषय में कहता है
25. तब उस ने उसी तरह यीशु की छाती की ओर फुक कर पूछा, हे प्रभु, वह कौन है यीशु ने उत्तर दिया, जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूंगा, वही है।
26. और उस ने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्किरयोती को दिया।
27. और टुकड़ा लेते ही शैतान उस में समा गया: तब यीशु ने उस से कहा, जो तू करता है, तुरन्त कर।
28. परन्तु बैठनेवालोंमें से किसी ने न जाना कि उस ने यह बात उस से किस लिथे कही।
29. यहूदा के पास यैली रहती यी, इसलिथे किसी किसी ने समझा, कि यीशु उस से कहता है, कि जो कुछ हमें पर्ब्ब के लिथे चाहिए वह मोल ले, या यह कि कंगालोंको कुछ दे।
30. तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और रात्रि का समय या।।
31. जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा; अब मनुष्य पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उस में हुई।
32. और परमेश्वर भी अपके में उस की महिमा करेगा, बरन तुरन्त करेगा।
33. हे बालको, मैं और योड़ी देन तुम्हारे पास हूं: फिर तुम मुझे ढूंढोगे, और जैसा मैं ने यहूदियोंसे कहा, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूं।
34. मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो।
35. यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।।
36. शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तू कहां जाता है यीशु ने उत्तर दिया, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता! परन्तु इस के बाद मेरे पीछे आएगा।
37. पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्योंनहीं आ सकता मैं तो तेरे लिथे अपना प्राण दूंगा।
38. यीशु ने उत्तर दिया, क्या तू मेरे लिथे अपना प्राण देगा मैं तुझ से सच सच कहता हूं कि मुर्ग बांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।
Chapter 14
1. तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।
2. मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्यान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिथे जगह तैयार करने जाता हूं।
3. और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिथे जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपके यहंा ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।
4. और जहां मैं जाता हूं तुम वहां का मार्ग जानते हो।
5. योमा ने उस से कहा, हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू हां जाता है तो मार्ग कैसे जानें
6. यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
7. यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।
8. फिलप्पुस ने उस से कहा, हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिथे बहुत है।
9. यीशु ने उस से कहा; हे फिलप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साय हूं, और क्या तू मुझे नहीं जानता जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है: तू क्योंकहता है कि पिता को हमें दिखा।
10. क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं थे बातें जो मैं तुम से कहता हूं, अपक्की ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपके काम करता है।
11. मेरी ही प्रतीति करो, कि मैं पिता में हूं; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामोंही के कारण मेरी प्रतीति करो।
12. मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, थे काम जो मैं करता हूं वही भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं।
13. और जो कुछ तुम मेरे नाम से मांगोगे, वही मैं करूंगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो।
14. यदि तुम मुझ से मेरे नाम से कुछ मांगोगे, तो मैं उसे करूंगा।
15. यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।
16. और मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहाथक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साय रहे।
17. अर्यात् सत्य का आत्क़ा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साय रहता है, और वह तुम में होगा।
18. मैं तुम्हें अनाय न छोडूंगा, मैं तुम्हारे पास आता हूं।
19. और योड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिथे कि मैं जीवित हूं, तुम भी जीवित रहोगे।
20. उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपके पिता में हूं, और तुम मुझ में, और मैं तुम में।
21. जिस के पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा, और अपके आप को उस पर प्रगट करूंगा।
22. उस यहूदा ने जो इस्किरयोती न या, उस से कहा, हे प्रभु, क्या हुआ की तू अपके आप को हम पर प्रगट किया चाहता है, और संसार पर नहीं।
23. यीशु ने उस को उत्तर दिया, यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साय वास करेंगे।
24. जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन पिता का है, जिस ने मुझे भेजा।।
25. थे बातें मैं ने तुम्हारे साय रहते हुए तुम से कही।
26. परन्तु सहाथक अर्यात् पवित्र आत्क़ा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्क़रण कराएगा।
27. मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपक्की शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
28. तुम ने सुना, कि मैं ने तुम से कहा, कि मैं जाता हूं, और तुम्हारे पास फिर आता हूं: यदि तुम मुझ से प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूं क्योंकि पिता मुझ से बड़ा है।
29. और मैं ने अब इस के होने के पहिले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम प्रतीति करो।
30. मैं अब से तुम्हारे साय और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं।
31. परन्तु यह इसलिथे होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूं, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूं: उठो, यहां से चलें।।
Chapter 15
1. सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।
2. जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।
3. तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो।
4. तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपके आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।
5. में दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।
6. यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाई फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में फोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।
7. यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिथे हो जाएगा।
8. मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
9. जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।
10. यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपके पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।
11. मैं ने थे बातें तुम से इसलिथे कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
12. मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
13. इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपके मित्रोंके लिथे अपना प्राण दे।
14. जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।
15. अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपके पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।
16. तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।
17. इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिथे देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
18. यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उस ने तुम से पहिले मुझ से भी बैर रखा।
19. यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनोंसे प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार में से चुन लिया है इसी लिथे संसार तुम से बैर रखता है।
20. जो बात मै। ने तुम से कही यी, कि दास अपके स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।
21. परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साय करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।
22. यदि मैं न आता और उन से बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उन के पाप के लिथे कोई बहाना नहीं।
23. जो मुझ से बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है।
24. यदि मैं उन में वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनोंको देखा, और दोनोंसे बैर किया।
25. और यह इसलिथे हुआ, कि वहि वचन पूरा हो, जो उन की व्यवस्या में लिखा है, कि उन्होंने मुझ से व्यर्य बैर किया।
26. परन्तु जब वह सहाथक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास भेजूंगा, अर्यात् सत्य का आत्क़ा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा।
27. और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साय रहे हो।।
Chapter 16
1. थे बातें मैं ने तुम से इसलिथे कहीं कि तुम ठोकर न खाओ।
2. वे तुम्हें आराधनालयोंमें से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं।
3. और यह वे इसलिथे करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं।
4. परन्तु थे बातें मैं ने इसलिथे तुम से कहीं, कि जब उन का समय आए तो तुम्हें स्क़रण आ जाए, कि मैं ने तुम से पहिले ही कह दिया या: और मैं ने आरम्भ में तुम से थे बातें इसलिथे नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साय या।
5. अब मैं अपके भेजनेवाले के पास जाता हूं और तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता, कि तू कहां जाता हैं
6. परन्तु मैं ने जो थे बातें तुम से कही हैं, इसलिथे तुम्हारा मन शोक से भर गया।
7. तौभी मैं तुम से सच कहता हूं, कि मेरा जाना तुम्हारे लिथे अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहाथक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।
8. और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।
9. पाप के विषय में इसलिथे कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते।
10. और धामिर्कता के विषय में इसलिथे कि मैं पिता के पास जाता हूं,
11. और तुम मुझे फिर न देखोगे: न्याय के विषय में इसलिथे कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।
12. मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।
13. परन्तु जब वह अर्यात् सत्य का आत्क़ा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपक्की ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।
14. वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातोंमें से लेकर तुम्हें बताएगा।
15. जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिथे मैं ने कहा, कि वह मेरी बातोंमें से लेकर तुम्हें बताएगा।
16. योड़ी देर तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे।
17. तब उसके कितने चेलोंने आपस में कहा, यह क्या है, जो वह हम से कहता है, कि योड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे और यह इसलिथे कि मैं कि मैं पिता के मास जाता हूं
18. तब उन्होंने कहा, यह योड़ी देर जो वह कहता है, क्या बात है हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।
19. यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उन से कहा, क्या तुम आपस में मेरी इस बाते के विषय में पूछ पाछ करते हो, कि योड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर योड़ी देर में मुझे देखोगे।
20. मैं तुम से सच सच कहता हूं; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा।
21. जब स्त्री जनने लगती है तो उस को शोक होता है, क्योंकि उस की दु:ख की घड़ी आ पहुंची, परन्तु जब वह बालक जन्क़ चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्क़रण नहीं करती।
22. और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।
23. उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे: मैं तुम से सच सच कहता हूं, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा।
24. अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं मांगा; मांगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।।
25. मैं ने थे बातें तुम से दृष्टान्तोंमें कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तोंमें और फिर नहीं कहूंगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊंगा।
26. उस दिन तुम मेरे नाम से मांगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिथे पिता से बिनती करूंगा।
27. क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिथे कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया।
28. मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं।
29. उसके चेलोंने कहा, देख, अब तो तू खोलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता।
30. अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है।
31. यह सुन यीशु ने उन से कहा, क्या तुम अब प्रतीति करते हो
32. देखो, वह घड़ी आती है वरन आ पहुंची कि तुम सब तित्तर बित्तर होकर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साय है।
33. मैं ने थे बातें तुम से इसलिथे कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीन लिया है।।
Chapter 17
1. यीशु ने थे बातें कहीं और अपक्की आंखे आकाश की ओर उठाकर कहा, हे पिता, वह घड़ी आ पहुंची, अपके पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे।
2. क्योंकि तू ने उस का सब प्राणियोंपर अधिक्कारने दिया, कि जिन्हें तू ने उस को दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।
3. और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने।
4. जो काम तू ने मुझे करने को दिया या, उसे पूरा करके मैं ने पृय्वी पर तेरी महिमा की है।
5. और अब, हे पिता, तू अपके साय मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहिले, मेरी तेरे साय यी।
6. मैं ने तेरा नाम उन मनुष्योंपर प्रगट किया जिन्हें तू ने जगत में से मुझे दिया: वे तेरे थे और तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है।
7. अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तू ने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है।
8. क्योंकि जो बातें तू ने मुझे पहुंचा दीं, मैं ने उन्हें उनको पहुंचा दिया और उन्होंने उन को ग्रहण किया: और सच सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से निकला हूं, और प्रतीति कर ली है कि तू ही ने मुझे भेजा।
9. मैं उन के लिथे बिनती करता हूं, संसार के लिथे बिनती नहीं करता हूं परन्तु उन्हीं के लिथे जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं।
10. और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है, वह मेरा है; और इन से मेरी महिमा प्रगट हुई है।
11. मैं आगे को जगत में न रहूंगा, परन्तु थे जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूं; हे पवित्र पिता, अपके उस नाम से जो तू ने मुझे दिया है, उन की रझा कर, कि वे हमारी नाई एक हों।
12. जब मै। उन के साय या, तो मैं ने तेरे उस नाम से, जो तू ने मुझे दिया है, उन की रझा की, मैं ने उन की चौकसी की और विनाश के पुत्र को छोड़ उन में से काई नाश न हुआ, इसलिथे कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो।
13. परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूं, और थे बातें जगत में कहता हूं, कि वे मेरा आनन्द अपके में पूरा पाएं।
14. मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुंचा दिया है, और संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
15. मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।
16. जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।
17. सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है।
18. जैसे तू ने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा।
19. और उन के लिथे मैं अपके आप को पवित्र करता हूं ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएं।
20. मैं केवल इन्हीं के लिथे बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिथे भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों।
21. जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिथे कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।
22. और वह महिमा जो तू ने मुझे दी, मैं ने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक होंजैसे की हम एक हैं।
23. मैं उन में और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएं, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही उन से प्रेम रखा।
24. हे पिता, मै। चाहता हूं कि जिन्हें तू ने मुझे दिया है, जहां मैं हूं, वहां वे भी मेरे साय होंकि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहिले मुझ से प्रेम रखा।
25. हे धामिर्क पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैं ने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा।
26. और मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से या, वह उन में रहे और मैं उन में रहूं।।
Chapter 18
1. यीशु थे बातें कहकर अपके चेलोंके साय किद्रोन के नाले के पार गया, वहां एक बारी यी, जिस में वह और उसके चेले गए।
2. और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता या, क्योंकि यीशु अपके चेलोंके साय वहां जाया करता या।
3. तब यहूदा पलटन को और महाथाजकोंऔर फरीसियोंकी ओर से प्यादोंको लेकर दीपकोंऔर मशालोंऔर हिययारोंको लिए हुए वहां आया।
4. तब यीशु उन सब बातोंको जो उस पर आनेवाली यीं, जानकर निकला, और उन से कहने लगा, किसे ढूंढ़ते हो
5. उन्होंने उसको उत्तर दिया, यीशु नासरी को: यीशु ने उन से कहा, मैं ही हूं: और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उन के साय खड़ा या।
6. उसके यह कहते ही, कि मैं हूं, वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पके।
7. तब उस ने फिर उन से पूछा, तुम किस को ढूंढ़ते हो।
8. वे बोले, यीशु नासरी को। यीशु ने उत्तर दिया, मैं तो तुम से कह चुका हूं कि मैं ही हूं, यदि मुझे ढूंढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।
9. यइ इसलिथे हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उस ने कहा या कि जिन्हें तू ने मुझे दिया, उन में से मैं ने एक को भी न खोया।
10. शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास यी, खींची और महाथाजक के दास पर चलाकर, उसका दिहना कान उड़ा दिया, उस दास का नाम मलखुस या।
11. तब यीशु ने पतरस से कहा, अपक्की तलवार काठी में रख: जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊं
12. तब सिपाहियोंऔर उन के सूबेदार और यहूदियोंके प्यादोंने यीशु को पकड़कर बान्ध लिया।
13. और पहिले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महाथाजक काइफा का ससुर या।
14. यह वही काइफा या, जिस ने यहूदियोंको सलाह दी यी कि हमारे लोगोंके लिथे एक पुरूष का मरना अच्छा है।
15. शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए: यह चेला महाथाजक का जाना पहचाना या और यीशु के साय महाथाजक के आंगत में गया।
16. परन्तु पतरस द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महाथाजक का जाना पहचाना या, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया।
17. उस दासी ने जो द्वारपालिन यी, पतरस से कहा, क्या तू भी इस मनुष्य के चेलोंमें से है उस ने कहा, मैं नहीं हूं।
18. दास और प्यादे जाड़े के कारण कोएले धधकाकर खड़े ताप रहे थे और पतरस भी उन के साय खड़ा ताप रहा या।।
19. तक महाथाजक ने यीशु से उसके चेलोंके विषय में और उसके उपकेश के विषय में पूछा।
20. यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि मैं ने जागत से खोलकर बातें की; मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहां सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपकेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा।
21. तू मुझ से क्योंपूछता है सुननेवालोंसे पूछ: कि मैं ने उन से क्या कहा देख वे जानते हैं; कि मैं ने क्या क्या कहा
22. तब उस ने यह कहा, तो प्यादोंमें से एक ने जो पास खड़ा या, यीशु को यप्पड़ मारकर कहा, क्या तू महाथाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।
23. यीशु ने उसे उत्तर दिया, यदि मैं ने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्योंमारता है
24. हन्ना ने उसे बन्धे हुए काइफा महाथाजक के पास भेज दिया।।
25. शमौन पतरस खड़ा हुआ ताप रहा या। तब उन्होंने उस से कहा; क्या तू भी उसके चेलोंमें से है उस न इन्कार करके कहा, मैं नहीं हूं।
26. महाथाजक के दासोंमें से एक जो उसके कुटुम्ब में से या, जिसका कान पतरस ने काट डाला या, बोला, क्या मैं ने तुझे उसके साय बारी में न देखा या
27. पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्ग ने बांग दी।।
28. और वे यीशु को काइफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय या, परन्तु वे आप किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न होंपरन्तु फसह खा सकें।
29. तब पीलातुस उन के पास बाहर निकल आया और कहा, तुम इस मनुष्य पर किस बात की नालिया करते हो
30. उन्होंने उस को उत्तर दिया, कि यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपके।
31. पीलातुस ने उन से कहा, तुम ही इसे ले जाकर अपक्की व्यवस्या के अनुसार उसका न्याय करो: यहूदयोंने उस से कहा, हमें अधिक्कारने नहीं कि किसी का प्राण लें।
32. यह इसलिथे हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उस ने यह पता देते हुए कही यी, कि उसका मरना कैसा होगा।।
33. तब पीलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उस से पूछा, क्या तू यहूदियोंका राजा है
34. यीशु ने उत्तर दिया, क्या तू यह बात अपक्की ओर से कहता है या औरोंने मेरे विषय में तुझ से कही
35. पीलातुस ने उत्तर दिया, क्या मैं यहूदी हूं तेरी ही जाति और महाथाजकोंने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तू ने क्या किया है
36. यीशु ने उत्तर दिया, कि मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियोंके हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।
37. पीलातुस ने उस से कहा, कि तू कहता है, क्योंकि मैं राजा हूं; मैं ने इसलिथे जन्क़ लिया, और इसलिथे जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।
38. पीलातुस ने उस से कहा, सत्य क्या है और यह कहकर वह फिर यहूदियोंके पास निकल गया और उन से कहा, मैं तो उस में कुछ दोष नहीं पाता।
39. पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिथे एक व्यक्ति को छोड़ दूं सो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिथे यहूदियोंके राजा को छोड़ दूं
40. तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, इसे नहीं परन्तु हमारे लिथे बरअब्बा को छोड़ दे; और बरअब्बा डाकू या।।
Chapter 19
1. इस पर पीलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए।
2. और सिपाहियोंने कांटोंका मुकुट गूंयकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया।
3. और उसके पास आ आकर कहने लगे, हे यहूदियोंके राजा, प्रणाम! और उसे यप्पड़ मारे।
4. तक पीलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगोंसे कहा, देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूं; ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता।
5. तक यीशु कांटोंका मुकुट और बैंजनी वस्त्र पहिने हुए बाहर निकला और पीलातुस ने उन से कहा, देखो, यह पुरूष।
6. जब महाथाजकोंऔर प्यादोंने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, कि उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर : पीलातुस ने उन से कहा, तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उस में दोष नहीं पाता।
7. यहूदियोंने उस को उत्तर दिया, कि हमारी भी व्यवस्या है और उस व्यवस्या के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उस ने अपके आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।
8. जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया।
9. और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, तू कहां का है परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया।
10. पीलातुस ने उस से कहा, मुझ से क्योंनहीं बोलता क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिक्कारने मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिक्कारने है।
11. यीशु ने उत्तर दिया, कि यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिक्कारने न होता; इसलिथे जिस ने मुझे तेरे हाध पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।
12. इस से पीलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा, परन्तु यहूदयोंने चिल्ला चिल्लाकर कहा, यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपके आप को राजा बनाता है वह कैसर का साम्हना करता है।
13. थे बातें सुनकर पीलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा या जो इब्रानी में गब्बता कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा।
14. यह फसह की तैयारी का दिन या और छठे घंटे के लगभग या: तब उस ने यहूदियोंसे कहा, देखो, यही है, तुम्हारा राजा!
15. परन्तु वे चिल्लाए कि ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा: पीलातुस ने उन से कहा, क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊं महाथाजकोंने उत्तर दिया, कि कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।
16. तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।।
17. तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्यान तक बाहर गया, जो खोपड़ी का स्यान कहलाता है और इब्रानी में गुलगुता।
18. वहां उन्होंने उसे और उसके साय और दो मनुष्योंको क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।
19. और पीलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उस में यह लिखा हुआ या, यीशु नासरी यहूदियोंका राजा।
20. यह दोष-पत्र बहुत यहूदियोंने पढ़ा क्योंकि वह स्यान जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया या नगर के पास या और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ या।
21. तब यहूदियोंके महाथाजकोंने पीलातुस से कहा, यहूदियोंका राजा मत लिख परन्तु यह कि ?उस ने कहा, मैं यहूदियोंका राजा हूं।
22. पीलातुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने जो लिख दिया, वह लिख दिया।।
23. जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपके लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिथे एक भाग और कुरता भी लिया, परन्तु कुरता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ या: इसलिथे उन्होंने आपस में कहा, हम इस को न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि वह किस का होगा।
24. यह इसलिथे हुआ, कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कि उन्होंने मेरे कपके आपस में बांट लिथे और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली: सो सिपाहियोंने ऐसा ही किया।
25. परन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी यी।
26. यीशु ने अपक्की माता से कहा; हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।
27. तब उस चेले से कहा, यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला, उसे अपके घर ले गया।।
28. इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिथे कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूं।
29. वहां एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा या, सो उन्होंने सिरके के भिगोए हुए इस्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया।
30. जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर फुकाकर प्राण त्याग दिए।।
31. और इसलिथे कि वह तैयारी का दिन या, यहूदियोंने पीलातुस से बिनती की कि उन की टांगे तोड़ दी जाएं और वे उतारे जाएं ताकि सब्त के दिन वे क्रूसोंपर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन या।
32. सो सिपाहियोंने आकर पहिले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साय क्रूसोंपर चढ़ाए गए थे।
33. परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं।
34. परन्तु सिपाहियोंमें से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उस में से तुरन्त लोहू और पानी निकला।
35. जिस ने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उस की गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।
36. थे बातें इसलिथे हुईं कि पवित्र शास्त्र की यह बात पूरी हो कि उस की कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।
37. फिर एक और स्यान पर यह लिखा है, कि जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।।
38. इन बातोंके बाद अरमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला या, (परन्तु यहूदियोंके डर से इस बात को छिपाए रखता या), पीलातुस से बिनती की, कि मैं यीशु की लोय को ले जाऊं, और पीलातुस ने उस की बिनती सुनी, और वह आकर उस की लोय ले गया।
39. निकुदेमुस भी जो पहिले यीशु के पास रात को गया या पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया।
40. तब उन्होंने यीशु की लोय को लिया और यहूदियोंके गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साय कफन में लपेटा।
41. उस स्यान पर जहां यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया या, एक बारी यी; और उस बारी में एक नई कब्र यी; जिस में कभी कोई न रखा गया या।
42. सो यहूदियोंकी तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट यी।।
Chapter 20
1. सप्ताह के पहिले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्यर को कब्र से हटा हुआ देखा।
2. तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिस से यीशु प्रेम रखता या आकर कहा, वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहां रख दिया है।
3. तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले।
4. और दोनोंसाय साय दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहिले पहुंचा।
5. और फुककर कपके पके देखे: तौभी वह भीतर न गया।
6. तब शमौन पतरस उसके पीछे पीछे पहुंचा और कब्र के भीतर गया और कपके पके देखे।
7. और वह अंगोछा जो उसके सिर से बन्धा हुआ या, कपड़ोंके साय पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा।
8. तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहिले पहुंचा या, भीतर गया और देखकर विश्वास किया।
9. वे तो अब तक पवित्र शास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा।
10. तब थे चेले अपके घर लौट गए।
11. परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते रोते कब्र की ओर फुककर,
12. दो स्वर्गदूतोंको उज्ज़वत कपके पहिने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहां यीशु की लोय पड़ी यी।
13. उन्होंने उस से कहा, हे नारी, तू क्योंरोती है उस ने उन से कहा, वे मरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहां रखा है।
14. यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यीशु है।
15. यीशु ने उस से कहा, हे नारी तू क्योंरोती है जिस को ढूंढ़ती है उस ने माली समझकर उस से कहा, हे महाराज, यदि तू ने उसे उठा लिया है तो मुझ से कह कि उसे कहां रखा है और मैं उसे ले जाऊंगी।
16. यीशु ने उस से कहा, मरियम! उस ने पीछे फिरकर उस से इब्रानी में कहा, रब्बूनी अर्यात् हे गुरू।
17. यीशु ने उस से कहा, मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयोंके पास जाकर उन से कह दे, कि मैं अपके पिता, और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूं।
18. मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलोंको बताया, कि मैं ने प्रभु को देखा और उस ने मुझ से बातें कहीं।।
19. उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन या, सन्ध्या के समय जब वहां के द्वार जहां चेले थे, यहूदियोंके डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
20. और यह कहकर उस ने अपना हाथ और अपना पंजर उन को दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
21. यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं।
22. यह कहकर उस ने उन पर फूंका और उन से कहा, पवित्र आत्क़ा लो।
23. जिन के पाप तुम झमा करो वे उन के लिथे झमा किए गए हैं जिन के तुम रखो, वे रखे गए हैं।।
24. परन्तु बारहोंमें से एक व्यक्ति अर्यात् योमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उन के साय न या।
25. जब और चेले उस से कहने लगे कि हम ने प्रभु को देखा है: तब उस ने उन से कहा, जब तक मैं उस के हाथोंमें कीलोंके छेद न देख लूं, और कीलोंके छेदोंमें अपक्की उंगली न डाल लूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूंगा।।
26. आठ दिन के बाद उस के चेले फिर घर के भीतर थे, और योमा उन के साय या, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
27. तब उस ने योमा से कहा, अपक्की उंगली यहां लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।
28. यह सुन योमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!
29. यीशु ने उस से कहा, तू ने तो मुझे देखकर विश्वास किया है, धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।।
30. यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलोंके साम्हने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए।
31. परन्तु थे इसलिथे लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।।
Chapter 21
1. इन बातोंके बाद यीशु ने अपके आप को तिबिरियास फील के किनारे चेलोंपर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया।
2. शमौन पतरस और योमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलोंमें से दो और जन इकट्ठे थे।
3. शमौन पतरस ने उन से कहा, मैं मछली पकड़ने जाता हूं: उन्होंने उस से कहा, हम भी तेरे साय चलते हैं: सो वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा।
4. भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; तौभी चेलोंने न पहचाना कि यह यीशु है।
5. तब यीशु ने उन से कहा, हे बालको, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है उन्होंने उत्तर दिया कि नहीं।
6. उस ने उन से कहा, नाव की दिहनी ओर जाल डालो, तो पाओगे, तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछिलयोंकी बहुतायत के कारण उसे खींच न सके।
7. इसलिथे उस चेले ने जिस से यीशु प्रेम रखता या पतरस से कहा, यह तो प्रभु है: शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा या, और फील में कूद पड़ा।
8. परन्तु और चेले डोंगी पर मछिलयोंसे भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे।
9. जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोएले की आग, और उस र मछली रखी हुई, और रोटी देखी।
10. यीशु ने उन से कहा, जो मछिलयां तुम ने अभी पकड़ी हैं, उन में से कुछ लाओ।
11. शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिर्मन बड़ी मछिलयोंसे भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछिलयां होने पर भी जान न फटा।
12. यीशु ने उन से कहा, कि आओ, भोजन करो और चेलोंमें से किसी को हियाव न हुआ, कि उस से पूछे, कि तू कौन है
13. यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी।
14. यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलोंको दर्शन दिए।।
15. भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है उस ने उस से कहा, हां प्रभु तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: उस ने उस से कहा, मेरे मेमनोंको चरा।
16. उस ने फिर दूसरी बार उस से कहा, हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है उस ने उन से कहा, हां, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: उस ने उस से कहा, मेरी भेड़ोंकी रखवाली कर।
17. उस ने तीसरी बार उस से कहा, हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है पतरस उदास हुआ, कि उस ने उसे तीसरी बार ऐसा कहा; कि क्या तू मुझ से प्रीति रखता है और उस से कहा, हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं: यीशु ने उस से कहा, मेरी भेड़ोंको चरा।
18. मैं तुझ से सच सच कहता हूं, जब तू जवान या, तो अपक्की कमर बान्धकर जहां चाहता या, वहां फिरता या; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपके हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बान्धकर जहां तू न चाहेगा वहां तुझे ले जाएगा।
19. उस ने इन बातोंसे पता दिया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उस से कहा, मेरे पीछे हो ले।
20. पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिस से यीशु प्रेम रखता या, और जिस ने भोजन के समय उस की छाती की और फुककर पूछा हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है
21. उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, हे प्रभु, इस का क्या हाल होगा
22. यीशु ने उस से कहा, यदि मैं चाहूं कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या तू मेरे पीछे हो ले।
23. इसलिथे भाइयोंमें यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तौभी यीशु ने उस से यह नहीं कहा, कि यह न मरेगा, परन्तु यह कि यदि मैं चाहूं कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इस से क्या
24. यह वही चेला है, जो इन बातोंकी गवाही देता है और जिस ने इन बातोंको लिखा है और हम जानते हैं, कि उस की गवाही सच्ची है।
25. और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूं, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।
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