कुलुस्सियों (Colossians)
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुयियुस की ओर से।
2. मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयोंके नाम जो कुलुस्से में रहते हैं।। हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे।।
3. हम तुम्हारे लिथे नित प्रार्यना करके अपके प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्यात् परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
4. क्योंकि हम ने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगोंसे प्रेम रखते हो।
5. उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिथे स्वर्ग में रखी हुई है, जिस का वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो।
6. जो तुम्हारे पास पहुंचा है और जैसा जगत में भी फल लाता, और बढ़ता जाता है; अर्यात् जिस दिन से तुम ने उस को सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहिचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है।
7. उसी की शिझा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिथे मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है।
8. उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्क़ा में है हम पर प्रगट किया।।
9. इसी लिथे जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिथे यह प्रार्यना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्क़िक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ।
10. ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामोंका फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ।
11. और उस की महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्य से बलवन्त होते जाओ, यहां तक कि आनन्द के साय हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।
12. और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगोंके साय मीरास में समभागी हों।
13. उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपके प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।
14. जिस से हमें छुटकारा अर्यात् पापोंकी झमा प्राप्त होती है।
15. वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है।
16. क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अयवा पृय्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिक्कारने, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिथे सृजी गई हैं।
17. और वही सब वस्तुओं में प्रयम है, और सब वस्तुएं उसी में स्यिर रहती हैं।
18. और वही देह, अर्यात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालोंमें पहिलौठा कि सब बातोंमें वही प्रधान ठहरे।
19. क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सरी परिपूर्णता वास करे।
20. और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपके साय मेल कर ले चाहे वे पृय्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।
21. और उस ने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया जो पहिले निकाले हुए थे और बुरे कामोंके कारण मन से बैरी थे।
22. ताकि तुम्हें अपके सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्यित करे।
23. यदि तुम विश्वास की नेव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिस का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिस का मैं पौलुस सेवक बना।।
24. अब मैं उन दुखोंके कारण आनन्द करता हूं, जो तुम्हारे लिथे उठाता हूं, और मसीह के क्लेशोंकी घटी उस की देह के लिथे, अर्यात् कलीसिया के लिथे, अपके शरीर में पूरी किए देता हूं।
25. जिस का मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिथे मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा पूरा प्रचार करूं।
26. अर्यात् उस भेद को समयोंऔर पीढिय़ोंसे गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगोंपर प्रगट हुआ है।
27. जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियोंमें उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
28. जिस का प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्यित करें।
29. और इसी के लिथे मैं उस की उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्य के साय प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्र्म भी करता हूं।
Chapter 2
1. मैं चाहता हूं कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उन के जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिथे जिन्होंने मेरा शारीरिक मुंह नहीं देखा मैं कैसा परिश्र्म करता हूं।
2. ताकि उन के मनोंमें शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्यात् मसीह को पहिचान लें।
3. जिस में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।
4. यह मैं इसलिथे कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातोंसे धोखा न दे।
5. क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूं, तौभी आत्क़िक भाव से तुम्हारे निकट हूं, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूं।।
6. सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।
7. और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।।
8. चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्य धोखे के द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्योंके परम्पराई मत और संसार की आदि शिझा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।
9. क्योंकि उस में ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
10. और तुम उसी में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिक्कारने का शिरोमणि है।
11. उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, अर्यात् मसीह का खतना, जिस से शारीरिक देह उतार दी जाती है।
12. और उसी के साय बपतिस्क़ा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उस को मरे हुओं में से जिलाया, उसके साय जी भी उठे।
13. और उस ने तुम्हें भी, जो अपके अपराधों, और अपके शरीर की खतनारिहत दशा में मुर्दा थे, उसे साय जिलाया, और हमारे सब अपराधोंको झमा किया।
14. और विधियोंका वह लेख जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में या मिटा डाला; और उस को क्रूस पर कीलोंसे जड़कर साम्हने से हटा दिया है।
15. और उस ने प्रधानताओं और अधिक्कारनेोंको अपके ऊपर से उतार कर उन का खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जय-कार की घ्वनि सुनाई ।।
16. इसलिथे खाने पीने या पर्ब्ब या नए चान्द, या सब्तोंके विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे।
17. क्योंकि थे सब आनेवाली बातोंकी छाया हैं, पर मूल वस्तुएं मसीह की हैं।
18. कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतोंकी पूजा करके तुम्हें दोड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातोंमें लगा रहता है और अपक्की शारीरिक समझ पर व्यर्य फूलता है।
19. और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिस से सारी देह जोड़ोंऔर पट्ठोंके द्वारा पालन-पोषण पाकर और एक साय गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।।
20. जब कि तुम मसीह के साय संसार की आदि शिझा की ओर से मर गए हो, तो फिर उन के समान जो संसार में जीवन बिताते हैं मनुष्योंकी आज्ञाओं और शिझानुसार
21. और ऐसी विधियोंके वश में क्योंरहते हो कि यह न छूना, उसे न चखना, और उसे हाथ न लगाना।
22. (क्योंकि थे सब वस्तु काम में लाते लाते नाश हो जाएंगी)।
23. इन विधियोंमें अपक्की इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन के कुछ भी लाभ नहीं होता।।
Chapter 3
1. सो जब तुम मसीह के साय जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दिहनी ओर बैठा है।
2. प्रय्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।
3. क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साय परमेश्वर में छिपा हुआ है।
4. जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साय महिमा सहित प्रगट किए जाओगे।
5. इसलिथे अपके उन अंगो को मार डालो, जो पृय्वी पर हैं, अर्यात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूतिर् पूजा के बराबर है।
6. इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालोंपर पड़ता है।
7. और तुम भी, जब इन बुराइयोंमें जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे।
8. पर अब तुम भी इन सब को अर्यात् क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा, और मुंह से गालियां बकना थे सब बातें छोड़ दो।
9. एक दूसरे से फूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामोंसमेत उतार डाला है।
10. और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपके सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिथे नया बनता जाता है।
11. उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारिहत, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र: केवल मसीह सब कुछ और सब में है।।
12. इसलिथे परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
13. और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध झमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध झमा किए, वैसे ही तुम भी करो।
14. और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का किटबन्ध है बान्ध लो।
15. और मसीह की शान्ति जिस के लिथे तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे ह्रृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
16. मसीह के वचन को अपके ह्रृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपके अपके मन में अनुग्रह के साय परमेश्वर के लिथे भजन और स्तुतिगान और आत्क़िक गीत गाओ।
17. और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।।
18. हे पत्नियो, जेसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपके अपके पति के आधीन रहो।
19. हे पतियो, अपक्की अपक्की पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।
20. हे बालको, सब बातोंमें अपके अपके माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है।
21. हे बच्चेवालो, अपके बालकोंको तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।
22. हे सेवको, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातोंमें उन की आज्ञा का पालन करो, मनुष्योंको प्रसन्न करनेवालोंकी नाईं दिखाने के लिथे नहीं, परन्तु मन की सीधाई और परमेश्वर के भय से।
23. और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्योंके लिथे नहीं परन्तु प्रभु के लिथे करते हो।
24. क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इस के बदले प्रभु से मीरास मिलेगी: तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो।
25. क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपक्की बुराई का फल पाएगा; वहां किसी का पझपात नहीं।
Chapter 4
1. हे स्वामियों, अपके अपके दासोंके साय न्याय और ठीक ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है।।
2. प्रार्यना में लगे रहो, और धन्यवाद के साय उस में जागृत रहो।
3. और इस के साय ही साय हमारे लिथे भी प्रार्यना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिथे वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिस के कारण मैं कैद में हूं।
4. और उसे ऐसा प्रगट करूं, जैसा मुझे करना उचित है।
5. अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालोंके साय बुद्धिमानी से बर्ताव करो।
6. तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।
7. प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा।
8. उसे मैं ने इसलिथे तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे ह्रृदयोंको शान्ति दे।
9. और उसके साय उनेसिमुस को भी भेजा है जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, थे तुम्हें यहां की सारी बातें बता देंगे।।
10. अरिस्तर्खुस जो मेरे साय कैदी है, और मरकुस जो बरनबा का भाई लगता है। (जिस के विषय में तुम ने आज्ञा पाई यी कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उस से अच्छी तरह व्यवहार करना।)
11. और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगोंमें से केवल थे ही परमेश्वर के राज्य के लिथे मेरे सहकर्मी और मेरी शान्ति का कारण रहे हैं।
12. इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम से नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिथे प्रार्यनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साय परमेश्वर की इच्छा पर स्यिर रहो।
13. मैं उसका गवाह हूं, कि वह तुम्हारे लिथे और लौदीकिया और हियरापुलिसवालोंके लिथे बड़ा यत्न करता रहता है।
14. प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार।
15. लौदीकिया के भाइयोंको और तुमफास और उन के घर की कलीसिया को नमस्कार कहना।
16. और जब यह पत्र तुम्हारे यहां पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना।
17. फिर अखिर्प्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साय पूरी करना।।
18. मुझ पौलुस का अपके हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरोंको स्क़रण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुयियुस की ओर से।
2. मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयोंके नाम जो कुलुस्से में रहते हैं।। हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे।।
3. हम तुम्हारे लिथे नित प्रार्यना करके अपके प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्यात् परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।
4. क्योंकि हम ने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगोंसे प्रेम रखते हो।
5. उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिथे स्वर्ग में रखी हुई है, जिस का वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो।
6. जो तुम्हारे पास पहुंचा है और जैसा जगत में भी फल लाता, और बढ़ता जाता है; अर्यात् जिस दिन से तुम ने उस को सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहिचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है।
7. उसी की शिझा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिथे मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है।
8. उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्क़ा में है हम पर प्रगट किया।।
9. इसी लिथे जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिथे यह प्रार्यना करने और बिनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्क़िक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ।
10. ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामोंका फल लगे, और परमेश्वर की पहिचान में बढ़ते जाओ।
11. और उस की महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्य से बलवन्त होते जाओ, यहां तक कि आनन्द के साय हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।
12. और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिस ने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगोंके साय मीरास में समभागी हों।
13. उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपके प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।
14. जिस से हमें छुटकारा अर्यात् पापोंकी झमा प्राप्त होती है।
15. वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है।
16. क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अयवा पृय्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिक्कारने, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिथे सृजी गई हैं।
17. और वही सब वस्तुओं में प्रयम है, और सब वस्तुएं उसी में स्यिर रहती हैं।
18. और वही देह, अर्यात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालोंमें पहिलौठा कि सब बातोंमें वही प्रधान ठहरे।
19. क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सरी परिपूर्णता वास करे।
20. और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपके साय मेल कर ले चाहे वे पृय्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।
21. और उस ने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया जो पहिले निकाले हुए थे और बुरे कामोंके कारण मन से बैरी थे।
22. ताकि तुम्हें अपके सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्यित करे।
23. यदि तुम विश्वास की नेव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिस का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिस का मैं पौलुस सेवक बना।।
24. अब मैं उन दुखोंके कारण आनन्द करता हूं, जो तुम्हारे लिथे उठाता हूं, और मसीह के क्लेशोंकी घटी उस की देह के लिथे, अर्यात् कलीसिया के लिथे, अपके शरीर में पूरी किए देता हूं।
25. जिस का मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिथे मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा पूरा प्रचार करूं।
26. अर्यात् उस भेद को समयोंऔर पीढिय़ोंसे गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगोंपर प्रगट हुआ है।
27. जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियोंमें उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
28. जिस का प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्यित करें।
29. और इसी के लिथे मैं उस की उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्य के साय प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्र्म भी करता हूं।
Chapter 2
1. मैं चाहता हूं कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उन के जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिथे जिन्होंने मेरा शारीरिक मुंह नहीं देखा मैं कैसा परिश्र्म करता हूं।
2. ताकि उन के मनोंमें शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्यात् मसीह को पहिचान लें।
3. जिस में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।
4. यह मैं इसलिथे कहता हूं, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातोंसे धोखा न दे।
5. क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूं, तौभी आत्क़िक भाव से तुम्हारे निकट हूं, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूं।।
6. सो जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।
7. और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।।
8. चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्य धोखे के द्वारा अहेर न करे ले, जो मनुष्योंके परम्पराई मत और संसार की आदि शिझा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।
9. क्योंकि उस में ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।
10. और तुम उसी में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिक्कारने का शिरोमणि है।
11. उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, अर्यात् मसीह का खतना, जिस से शारीरिक देह उतार दी जाती है।
12. और उसी के साय बपतिस्क़ा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिस ने उस को मरे हुओं में से जिलाया, उसके साय जी भी उठे।
13. और उस ने तुम्हें भी, जो अपके अपराधों, और अपके शरीर की खतनारिहत दशा में मुर्दा थे, उसे साय जिलाया, और हमारे सब अपराधोंको झमा किया।
14. और विधियोंका वह लेख जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में या मिटा डाला; और उस को क्रूस पर कीलोंसे जड़कर साम्हने से हटा दिया है।
15. और उस ने प्रधानताओं और अधिक्कारनेोंको अपके ऊपर से उतार कर उन का खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जय-कार की घ्वनि सुनाई ।।
16. इसलिथे खाने पीने या पर्ब्ब या नए चान्द, या सब्तोंके विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे।
17. क्योंकि थे सब आनेवाली बातोंकी छाया हैं, पर मूल वस्तुएं मसीह की हैं।
18. कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतोंकी पूजा करके तुम्हें दोड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातोंमें लगा रहता है और अपक्की शारीरिक समझ पर व्यर्य फूलता है।
19. और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिस से सारी देह जोड़ोंऔर पट्ठोंके द्वारा पालन-पोषण पाकर और एक साय गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।।
20. जब कि तुम मसीह के साय संसार की आदि शिझा की ओर से मर गए हो, तो फिर उन के समान जो संसार में जीवन बिताते हैं मनुष्योंकी आज्ञाओं और शिझानुसार
21. और ऐसी विधियोंके वश में क्योंरहते हो कि यह न छूना, उसे न चखना, और उसे हाथ न लगाना।
22. (क्योंकि थे सब वस्तु काम में लाते लाते नाश हो जाएंगी)।
23. इन विधियोंमें अपक्की इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन के कुछ भी लाभ नहीं होता।।
Chapter 3
1. सो जब तुम मसीह के साय जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दिहनी ओर बैठा है।
2. प्रय्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।
3. क्योंकि तुम तो मर गए, और तुम्हारा जीवन मसीह के साय परमेश्वर में छिपा हुआ है।
4. जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साय महिमा सहित प्रगट किए जाओगे।
5. इसलिथे अपके उन अंगो को मार डालो, जो पृय्वी पर हैं, अर्यात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूतिर् पूजा के बराबर है।
6. इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालोंपर पड़ता है।
7. और तुम भी, जब इन बुराइयोंमें जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे।
8. पर अब तुम भी इन सब को अर्यात् क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा, और मुंह से गालियां बकना थे सब बातें छोड़ दो।
9. एक दूसरे से फूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामोंसमेत उतार डाला है।
10. और नए मनुष्यत्व को पहिन लिया है जो अपके सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिथे नया बनता जाता है।
11. उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारिहत, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र: केवल मसीह सब कुछ और सब में है।।
12. इसलिथे परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
13. और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध झमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध झमा किए, वैसे ही तुम भी करो।
14. और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का किटबन्ध है बान्ध लो।
15. और मसीह की शान्ति जिस के लिथे तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे ह्रृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
16. मसीह के वचन को अपके ह्रृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपके अपके मन में अनुग्रह के साय परमेश्वर के लिथे भजन और स्तुतिगान और आत्क़िक गीत गाओ।
17. और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।।
18. हे पत्नियो, जेसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपके अपके पति के आधीन रहो।
19. हे पतियो, अपक्की अपक्की पत्नी से प्रेम रखो, और उन से कठोरता न करो।
20. हे बालको, सब बातोंमें अपके अपके माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है।
21. हे बच्चेवालो, अपके बालकोंको तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।
22. हे सेवको, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातोंमें उन की आज्ञा का पालन करो, मनुष्योंको प्रसन्न करनेवालोंकी नाईं दिखाने के लिथे नहीं, परन्तु मन की सीधाई और परमेश्वर के भय से।
23. और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्योंके लिथे नहीं परन्तु प्रभु के लिथे करते हो।
24. क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इस के बदले प्रभु से मीरास मिलेगी: तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो।
25. क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपक्की बुराई का फल पाएगा; वहां किसी का पझपात नहीं।
Chapter 4
1. हे स्वामियों, अपके अपके दासोंके साय न्याय और ठीक ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है।।
2. प्रार्यना में लगे रहो, और धन्यवाद के साय उस में जागृत रहो।
3. और इस के साय ही साय हमारे लिथे भी प्रार्यना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिथे वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिस के कारण मैं कैद में हूं।
4. और उसे ऐसा प्रगट करूं, जैसा मुझे करना उचित है।
5. अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालोंके साय बुद्धिमानी से बर्ताव करो।
6. तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।
7. प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा।
8. उसे मैं ने इसलिथे तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे ह्रृदयोंको शान्ति दे।
9. और उसके साय उनेसिमुस को भी भेजा है जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, थे तुम्हें यहां की सारी बातें बता देंगे।।
10. अरिस्तर्खुस जो मेरे साय कैदी है, और मरकुस जो बरनबा का भाई लगता है। (जिस के विषय में तुम ने आज्ञा पाई यी कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उस से अच्छी तरह व्यवहार करना।)
11. और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगोंमें से केवल थे ही परमेश्वर के राज्य के लिथे मेरे सहकर्मी और मेरी शान्ति का कारण रहे हैं।
12. इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम से नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिथे प्रार्यनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साय परमेश्वर की इच्छा पर स्यिर रहो।
13. मैं उसका गवाह हूं, कि वह तुम्हारे लिथे और लौदीकिया और हियरापुलिसवालोंके लिथे बड़ा यत्न करता रहता है।
14. प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार।
15. लौदीकिया के भाइयोंको और तुमफास और उन के घर की कलीसिया को नमस्कार कहना।
16. और जब यह पत्र तुम्हारे यहां पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना।
17. फिर अखिर्प्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साय पूरी करना।।
18. मुझ पौलुस का अपके हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरोंको स्क़रण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन।।
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