2 पतरस (2 Peter)
Chapter 1
1. शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है, उन लोगोंके नाम जिन्होंने हमारे परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की धामिर्कता से हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।
2. परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए।
3. क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपक्की ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।
4. जिन के द्वारा उस ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूटकर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्वभाव के समभागी हो जाओ।
5. और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपके विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ।
6. और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति।
7. और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।
8. क्योंकि यदि थे बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी।
9. और जिस में थे बातें नहीं, वह अन्धा है, और धुन्धला देखता है, और अपके पूर्वकाली पापोंसे धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है।
10. इस कारण हे भाइयों, अपके बुलाए जाने, और चुन लिथे जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे।
11. बरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साय प्रवेश करने पाओगे।
12. इसलिथे यद्यपि तुम थे बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उस में बने रहते हो, तौभी मैं तुम्हें इन बातोंकी सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूंगा।
13. और मैं यह अपके लिथे उचित समझता हूं, कि जब तक मैं इस डेरे में हूं, तब तक तुम्हें सुधि दिलाकर उभारता रहूं।
14. क्योंकि यह जानता हूं, कि मसीह के वचन के अनुसार मेरे डेरे के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है।
15. इसलिथे मैं ऐसा यत्न करूंगा, कि मेरे कूच करने के बाद तुम इन सब बातोंको सर्वदा स्क़रण कर सको।
16. क्योंकि जब हम ने तुम्हें अपके प्रभु यीशु मसीह की सामर्य का, और आगमन का समाचार दिया या तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियोंका अनुकरण नहीं किया या बरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा या।
17. कि उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है जिस से मैं प्रसन्न हूं।
18. और जब हम उसके साय पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।
19. और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धिक्कारने स्यान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे ह्रृदयोंमें न चमक उठे।
20. पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपके ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।
21. क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्क़ा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।।
Chapter 2
1. और जिस प्रकार उन लोगोंमें फूठे भविष्यद्वक्ता थे उसी प्रकार तुम में भी फूठे उपकेशक होंगे, जो नाश करनेवाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी का जिस ने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपके आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।
2. और बहुतेरे उन की नाई लुचपन करेंगे, जिन के कारण सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी।
3. और वे लोभ के लिथे बातें गढ़कर तुम्हें अपके लाभ का कारण बनाएंगे, और जो दण्ड की आज्ञा उन पर पहिले से हो चुकी है, उसके आने में कुछ भी देर नहीं, और उन का विनाश ऊंघता नहीं।
4. क्योंकि जब परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतोंको जिन्होंने पाप किया नहीं छोड़ा, पर नरक में भेजकर अन्धेरे कुण्डोंमें डाल दिया, ताकि न्याय के दिन तक बन्दी रहें।
5. और प्रयम युग के संसार को भी न छोड़ा, बरन भक्तिहीन संसार पर महा जल-प्रलय भेजकर धर्म के प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियोंको बचा लिया।
6. और सदोम और अमोरा के नगरोंको विनाश का ऐसा दण्ड दिया, कि उन्हें भस्क़ करके राख में मिला दिया ताकि वे आनेवाले भक्तिहीन लोगोंकी शिझा के लिथे एक दृष्टान्त बनें।
7. और धर्मी लूत को जो अधमिर्योंके अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुखी या छुटकारा दिया।
8. ( क्योंकि वह धर्मी उन के बीच में रहते हुए, और उन के अधर्म के कामोंको देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपके सच्चे मन को पीडित करता या)।
9. तो प्रभु के भक्तोंको पक्कीझा में से निकाल लेना और अधमिर्योंको न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।
10. निज करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं: वे ढीठ, और हठी हैं, और ऊंचे पदवालोंको बुरा भला कहने से नहीं डरते।
11. तौभी स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्य में उन से बड़े हैं, प्रभु के साम्हने उन्हें बुरा भला कहकर दोष नहीं लगाते।
12. पर थे लोग निर्बुद्धि पशुओं ही के तुल्य हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिथे उत्पन्न हुए हैं; और जिन बातोंको जानते ही नहीं, उन के विषय में औरोंको बुरा भला कहते हैं, वे अपक्की सड़ाहट में आप ही सड़ जाएंगे।
13. औरोंका बुरा करने के बदले उन्हीं का बुरा होगा: उन्हें दिन दोपहर सुख-विलास करना भला लगता है; यह कलंक और दोष है- जब वे तुम्हारे साय खाते पीते हैं, तो अपक्की ओर से प्रेम भोज करके भोग-विलास करते हैं।
14. उन ही आंखोंमें व्यभिचारिणी बसी हुई है, और वे पाप किए बिना रूक नहीं सकते: वे चंचल मनवालोंको फुसला लेते हैं; उन के मन को लोभ करने का अभ्यास हो गया है, वे सन्ताप के सन्तान हैं।
15. वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं; जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना।
16. पर उसके अपराध के विषय में उलाहना दिया गया, यहां तक कि अबोल गदही ने मनुष्य की बोली से उस भविष्यद्वक्ता को उसके बावलेपन से रोका।
17. थे लोग अन्धे कुंए, और आन्धी के उड़ाए हुए बादल हैं, उन के लिथे अनन्त अन्धकार ठहराया गया है।
18. वे व्यर्य घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामोंके द्वारा, उन लोगोंको शारीरिक अभिलाषाओं में फंसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं।
19. वे उन्हें स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा तो देते हैं, पर आप ही सड़ाहट के दास हैं, क्योंकि जो व्यक्ति जिस से हार गया है, वह उसका दास बन जाता है।
20. और जब वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की पहचान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर उन में फंसकर हार गए, तो उन की पिछली दशा पहिली से भी बुरी हो गई है।
21. क्योंकि धर्म के मार्ग में न जानना ही उन के लिथे इस से भला होता, कि उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई यी। उन पर यह कहावत ठीक बैठती है,
22. कि कुत्ता अपक्की छांट की ओर और धोई हुई सुअरनी कीचड़ में लोटने के लिथे फिर चक्की जाती है।।
Chapter 3
1. हे प्रियो, अब मैं तुम्हें यह दूसरी पत्री लिखता हूं, और दोनोंमें सुधि दिलाकर तुम्हारे शुद्ध मन को उभारता हूं।
2. कि तुम उन बातोंको, जो पवित्र भविश्यद्वक्ताओं ने पहिले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्ता की उस आज्ञा को स्क़रण करो, जो तुम्हारे प्रेरितोंके द्वारा दी गई यी।
3. और यह पहिले जान लो, कि अन्तिम दिनोंमे हंसी ठट्ठा करनेवाले आएंगे, जो अपक्की ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।
4. और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से या
5. वे तो जान बूफकर यह भूल गए, कि परमेश्वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृय्वी भी जल में से बनी और जल में स्यिर है।
6. इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।
7. पर वर्तमान काल के आकाश और पृय्वी उसी वचन के द्वारा इसलिथे रखे हैं, कि जलाए जाएं; और वह भक्तिहीन मनुष्योंके न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे।।
8. हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं।
9. प्रभु अपक्की प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।
10. परन्तु प्रभु का दिन चोर की नाईं आ जाएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़हड़ाहट के शब्द से जाता रहेगा, और तत्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएंगे, और पृय्वी और उस पर के काम जल जाऐंगे।
11. तो जब कि थे सब वस्तुएं, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए।
12. और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिथे कैसा यत्न करना चाहिए; जिस के कारण आकाश आग से पिघल जाएंगे, और आकाश के गण बहुत ही तप्त होकर गल जाएंगे।
13. पर उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृय्वी की आस देखते हैं जिन में धामिर्कता वास करेगी।।
14. इसलिथे, हे प्रियो, जब कि तुम इन बातोंकी आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके साम्हने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो।
15. और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस न भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है।
16. वैसे ही उस ने अपक्की सब पत्रियोंमें भी इन बातोंकी चर्चा की है जिन में कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना किठन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्योंको भी पवित्र शास्त्र की और बातोंकी नाईं खींच तानकर अपके ही नाश का कारण बनाते हैं।
17. इसलिथे हे प्रियो तुम लोग पहिले ही से इन बातोंको जानकर चौकस रहो, ताकि अधमिर्योंके भ्रम में फंसकर अपक्की स्यिरता को हाथ से कहीं खो न दो।
18. पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है, उन लोगोंके नाम जिन्होंने हमारे परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की धामिर्कता से हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।
2. परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए।
3. क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपक्की ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।
4. जिन के द्वारा उस ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूटकर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्वभाव के समभागी हो जाओ।
5. और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपके विश्वास पर सद्गुण, और सद्गुण पर समझ।
6. और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति।
7. और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।
8. क्योंकि यदि थे बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी।
9. और जिस में थे बातें नहीं, वह अन्धा है, और धुन्धला देखता है, और अपके पूर्वकाली पापोंसे धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है।
10. इस कारण हे भाइयों, अपके बुलाए जाने, और चुन लिथे जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे।
11. बरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साय प्रवेश करने पाओगे।
12. इसलिथे यद्यपि तुम थे बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उस में बने रहते हो, तौभी मैं तुम्हें इन बातोंकी सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूंगा।
13. और मैं यह अपके लिथे उचित समझता हूं, कि जब तक मैं इस डेरे में हूं, तब तक तुम्हें सुधि दिलाकर उभारता रहूं।
14. क्योंकि यह जानता हूं, कि मसीह के वचन के अनुसार मेरे डेरे के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है।
15. इसलिथे मैं ऐसा यत्न करूंगा, कि मेरे कूच करने के बाद तुम इन सब बातोंको सर्वदा स्क़रण कर सको।
16. क्योंकि जब हम ने तुम्हें अपके प्रभु यीशु मसीह की सामर्य का, और आगमन का समाचार दिया या तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियोंका अनुकरण नहीं किया या बरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा या।
17. कि उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है जिस से मैं प्रसन्न हूं।
18. और जब हम उसके साय पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।
19. और हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस घटना से दृढ़ ठहरा है और तुम यह अच्छा करते हो, कि जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धिक्कारने स्यान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे ह्रृदयोंमें न चमक उठे।
20. पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपके ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।
21. क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्क़ा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।।
Chapter 2
1. और जिस प्रकार उन लोगोंमें फूठे भविष्यद्वक्ता थे उसी प्रकार तुम में भी फूठे उपकेशक होंगे, जो नाश करनेवाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी का जिस ने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपके आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।
2. और बहुतेरे उन की नाई लुचपन करेंगे, जिन के कारण सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी।
3. और वे लोभ के लिथे बातें गढ़कर तुम्हें अपके लाभ का कारण बनाएंगे, और जो दण्ड की आज्ञा उन पर पहिले से हो चुकी है, उसके आने में कुछ भी देर नहीं, और उन का विनाश ऊंघता नहीं।
4. क्योंकि जब परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतोंको जिन्होंने पाप किया नहीं छोड़ा, पर नरक में भेजकर अन्धेरे कुण्डोंमें डाल दिया, ताकि न्याय के दिन तक बन्दी रहें।
5. और प्रयम युग के संसार को भी न छोड़ा, बरन भक्तिहीन संसार पर महा जल-प्रलय भेजकर धर्म के प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियोंको बचा लिया।
6. और सदोम और अमोरा के नगरोंको विनाश का ऐसा दण्ड दिया, कि उन्हें भस्क़ करके राख में मिला दिया ताकि वे आनेवाले भक्तिहीन लोगोंकी शिझा के लिथे एक दृष्टान्त बनें।
7. और धर्मी लूत को जो अधमिर्योंके अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुखी या छुटकारा दिया।
8. ( क्योंकि वह धर्मी उन के बीच में रहते हुए, और उन के अधर्म के कामोंको देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपके सच्चे मन को पीडित करता या)।
9. तो प्रभु के भक्तोंको पक्कीझा में से निकाल लेना और अधमिर्योंको न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।
10. निज करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं: वे ढीठ, और हठी हैं, और ऊंचे पदवालोंको बुरा भला कहने से नहीं डरते।
11. तौभी स्वर्गदूत जो शक्ति और सामर्य में उन से बड़े हैं, प्रभु के साम्हने उन्हें बुरा भला कहकर दोष नहीं लगाते।
12. पर थे लोग निर्बुद्धि पशुओं ही के तुल्य हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिथे उत्पन्न हुए हैं; और जिन बातोंको जानते ही नहीं, उन के विषय में औरोंको बुरा भला कहते हैं, वे अपक्की सड़ाहट में आप ही सड़ जाएंगे।
13. औरोंका बुरा करने के बदले उन्हीं का बुरा होगा: उन्हें दिन दोपहर सुख-विलास करना भला लगता है; यह कलंक और दोष है- जब वे तुम्हारे साय खाते पीते हैं, तो अपक्की ओर से प्रेम भोज करके भोग-विलास करते हैं।
14. उन ही आंखोंमें व्यभिचारिणी बसी हुई है, और वे पाप किए बिना रूक नहीं सकते: वे चंचल मनवालोंको फुसला लेते हैं; उन के मन को लोभ करने का अभ्यास हो गया है, वे सन्ताप के सन्तान हैं।
15. वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं; जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना।
16. पर उसके अपराध के विषय में उलाहना दिया गया, यहां तक कि अबोल गदही ने मनुष्य की बोली से उस भविष्यद्वक्ता को उसके बावलेपन से रोका।
17. थे लोग अन्धे कुंए, और आन्धी के उड़ाए हुए बादल हैं, उन के लिथे अनन्त अन्धकार ठहराया गया है।
18. वे व्यर्य घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामोंके द्वारा, उन लोगोंको शारीरिक अभिलाषाओं में फंसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं।
19. वे उन्हें स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा तो देते हैं, पर आप ही सड़ाहट के दास हैं, क्योंकि जो व्यक्ति जिस से हार गया है, वह उसका दास बन जाता है।
20. और जब वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की पहचान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर उन में फंसकर हार गए, तो उन की पिछली दशा पहिली से भी बुरी हो गई है।
21. क्योंकि धर्म के मार्ग में न जानना ही उन के लिथे इस से भला होता, कि उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई यी। उन पर यह कहावत ठीक बैठती है,
22. कि कुत्ता अपक्की छांट की ओर और धोई हुई सुअरनी कीचड़ में लोटने के लिथे फिर चक्की जाती है।।
Chapter 3
1. हे प्रियो, अब मैं तुम्हें यह दूसरी पत्री लिखता हूं, और दोनोंमें सुधि दिलाकर तुम्हारे शुद्ध मन को उभारता हूं।
2. कि तुम उन बातोंको, जो पवित्र भविश्यद्वक्ताओं ने पहिले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्ता की उस आज्ञा को स्क़रण करो, जो तुम्हारे प्रेरितोंके द्वारा दी गई यी।
3. और यह पहिले जान लो, कि अन्तिम दिनोंमे हंसी ठट्ठा करनेवाले आएंगे, जो अपक्की ही अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।
4. और कहेंगे, उसके आने की प्रतिज्ञा कहां गई क्योंकि जब से बाप-दादे सो गए हैं, सब कुछ वैसा ही है, जैसा सृष्टि के आरम्भ से या
5. वे तो जान बूफकर यह भूल गए, कि परमेश्वर के वचन के द्वारा से आकाश प्राचीन काल से वर्तमान है और पृय्वी भी जल में से बनी और जल में स्यिर है।
6. इन्हीं के द्वारा उस युग का जगत जल में डूब कर नाश हो गया।
7. पर वर्तमान काल के आकाश और पृय्वी उसी वचन के द्वारा इसलिथे रखे हैं, कि जलाए जाएं; और वह भक्तिहीन मनुष्योंके न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे।।
8. हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं।
9. प्रभु अपक्की प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।
10. परन्तु प्रभु का दिन चोर की नाईं आ जाएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़हड़ाहट के शब्द से जाता रहेगा, और तत्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएंगे, और पृय्वी और उस पर के काम जल जाऐंगे।
11. तो जब कि थे सब वस्तुएं, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए।
12. और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिथे कैसा यत्न करना चाहिए; जिस के कारण आकाश आग से पिघल जाएंगे, और आकाश के गण बहुत ही तप्त होकर गल जाएंगे।
13. पर उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृय्वी की आस देखते हैं जिन में धामिर्कता वास करेगी।।
14. इसलिथे, हे प्रियो, जब कि तुम इन बातोंकी आस देखते हो तो यत्न करो कि तुम शान्ति से उसके साम्हने निष्कलंक और निर्दोष ठहरो।
15. और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस न भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है।
16. वैसे ही उस ने अपक्की सब पत्रियोंमें भी इन बातोंकी चर्चा की है जिन में कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना किठन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्योंको भी पवित्र शास्त्र की और बातोंकी नाईं खींच तानकर अपके ही नाश का कारण बनाते हैं।
17. इसलिथे हे प्रियो तुम लोग पहिले ही से इन बातोंको जानकर चौकस रहो, ताकि अधमिर्योंके भ्रम में फंसकर अपक्की स्यिरता को हाथ से कहीं खो न दो।
18. पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
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